व्यावसायिक लेनदेन में कॉपीराइट और ट्रेडमार्क की प्रासंगिकता

0
365
Relevance of copyrights and trademarks in business transactions

यह लेख सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, नोएडा के Aditya Anand और लॉसिखो से इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी मीडिया और एंटरटेनमेंट लॉज में डिप्लोमा कर रही Sakshi Jain के द्वारा लिखा गया है। इस लेख में ट्रेडमार्क, कॉपीराइट का संक्षिप्त ज्ञान और विवरण है और साथ ही यह व्यवसाय में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है पर चर्चा शामिल है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

परिचय

आज के आधुनिक परिदृश्य में, एक व्यवसाय मालिक के रूप में, किसी व्यक्ति के लिए सुचारू व्यावसायिक लेनदेन के संचालन में बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) अधिकारों की भूमिका के महत्व को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि प्रकृति में अमूर्त, वे बिना किसी संदेह के, सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक परिसंपत्तियों (एसेट) में से एक हैं। इस लेख का उद्देश्य पाठकों को बौद्धिक संपदा अधिकारों और व्यावसायिक लेनदेन में उनके महत्व के बारे में जागरूक करना है। हालाँकि कॉपीराइट और ट्रेडमार्क में से प्रत्येक अपने आप में महत्वपूर्ण है, यह लेख विशेष रूप से इन दोनो पर ही केंद्रित होगा।

कॉपीराइट और बौद्धिक संपदा व्यवसाय में मूल्यवान संपत्ति हैं। कॉपीराइट और ट्रेडमार्क, दोनों शब्दों को व्यावसायिक लेनदेन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा कहा जा सकता है, क्योंकि ये दोनों संभावित उपभोक्ताओं के साथ-साथ व्यवसाय मालिकों के मन में सुरक्षा की भावना पैदा करते हैं। हालांकि दोनों शब्द व्यवसाय के कार्य की मौलिकता का प्रमाण हैं, यह ध्यान रखना उचित है कि दोनों अलग-अलग अवधारणाओं का बचाव करते हैं। उन्हें एक-दूसरे के स्थान पर संदर्भित नहीं किया जा सकता है। आमतौर पर, कॉपीराइट व्यवसाय के मूल या तर्कसंगत (रेशनल) कार्यों की रक्षा करते हैं, जबकि ट्रेडमार्क व्यवसाय की व्यावसायिक पहचान की रक्षा करते हैं। कॉपीराइट की भूमिका मुख्य रूप से काल्पनिक, नाटकीय, संगीतमय और रचनात्मक कार्यों सहित अपने बौद्धिक कार्यों के व्यवसाय के अधिकारों की रक्षा करना है। दूसरी ओर, ट्रेडमार्क व्यवसाय के नाम के उपयोग और उसकी ब्रांड पहचान की रक्षा करने की भूमिका निभाता है।

उदाहरण के लिए, सलीम, रोहन और रघु अच्छे दोस्त और मेहनती व्यक्ति हैं जिनके पास आय का एक निश्चित स्रोत है। सलीम एक संगीतकार है, रोहन एक पुस्तक लेखक है और रघु एक कंपनी का निदेशक है जो वस्तुओं के विपणन (मार्केटिंग) का काम करती है। क्या होगा यदि सलीम द्वारा बनाया गया संगीत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपनी आय के लिए उपयोग किया जाता है, या यदि रोहन की पुस्तक जो उसकी आय का स्रोत है, प्रति हो जाती है, और दूसरा व्यक्ति लाभ कमाता है और यदि रघु एक निश्चित मार्क के साथ सामान बेचता है जिसकी बाजार में एक निश्चित छवि है और एक व्यक्ति प्रतिष्ठा और पैसा कमाने के लिए इसी तरह के प्रतीक का उपयोग करता है। यदि देश का कानून कॉपीराइट और ट्रेडमार्क नियमों के उल्लंघन को अवैध मानता है और अंततः उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, तो वे निश्चित रूप से उस व्यक्ति पर मुकदमा कर सकते हैं जो ये अपराध करता है। ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए कॉपीराइट और ट्रेडमार्क कानून हैं जो मालिकों को उत्पाद के निर्माण, प्रमाणीकरण (ऑथेंटिकेशन) और विशिष्टता के लिए कानूनी अधिकार प्रदान करके सुरक्षा की भावना देते हैं। कॉपीराइट और ट्रेडमार्क प्राथमिक बौद्धिक संपदा हैं। 

कॉपीराइट और ट्रेडमार्क और व्यावसायिक लेनदेन में उनकी भूमिका

कॉपीराइट और ट्रेडमार्क अमूर्त व्यावसायिक संपत्तियां हैं जिन्हें मौद्रिक शर्तों में परिवर्तित किया जा सकता है और किसी व्यवसाय के वित्तीय खातों में प्रतिबिंबित (रिफ्लेक्ट) किया जा सकता है। स्वतंत्रता के बाद के युग और 90 के दशक की शुरुआत के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर उदारीकरण (लिबरलाइजेश) और वैश्वीकरण (ग्लोबलाइजेशन) हुआ था। कॉपीराइट और ट्रेडमार्क की स्वीकृति ने कंपनी की छवि और मूल्यों को सुरक्षित किया है और साथ ही उन्हें अलग पहचान भी दी है क्योंकि इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विकास होता है। 

कॉपीराइट 

व्यावसायिक लेनदेन के संचालन में कॉपीराइट के महत्व को समझने से पहले, किसी को यह जानना चाहिए कि कॉपीराइट वास्तव में क्या है। सरल शब्दों में कहें तो, कानून प्रत्येक साहित्यिक, कलात्मक और संगीत कार्य के प्रवर्तकों को कुछ अधिकार देता है, ताकि उनके मूल और रचनात्मक कार्य को उनकी उचित अनुमति के बिना किसी अन्य तीसरे पक्ष द्वारा प्रतिलिपि (कॉपी) बनाने या शोषण किए जाने से बचाया जा सके। इन सभी अधिकारों को कॉपीराइट के रूप में जाना जाता है। 

यह किसी विशेष व्यक्ति जो मालिक है को उपयोग, प्रतिलिपि या बिक्री के लिए दिया गया अद्वितीय अधिकार है और वह उस मूल कार्य या रचना के उत्पादन, प्रकाशन या बिक्री पर विशेष अधिकार रखता है। यह उस उत्पाद की रचनात्मकता और मौलिकता को दर्शाता है। इसका कोई अनधिकृत उपयोग नहीं हो सकता क्योंकि यह मालिक को कानूनी अधिकार देता है। कॉपीराइट साहित्यिक, कलात्मक, नाटकीय, संगीतमय या किसी अन्य रचना के रूप में हो सकता है। 

कॉपीराइट की भूमिका अभिव्यक्ति के किसी भी रूप की रक्षा करना है। वे एक सफल व्यवसाय चलाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनका उपयोग विज्ञापन, बिक्री ब्रोशर, प्रचार सामग्री, वीडियो, निर्देश मैनुअल, फोटोग्राफ और वेबसाइट सामग्री सहित प्रत्येक व्यवसाय के मूल और रचनात्मक कार्यों को व्यवसाय मालिक की उचित अनुमति के बिना किसी अन्य तीसरे पक्ष द्वारा उपयोग किए जाने से बचाने के लिए किया जाता है।

क्या आपने कभी सोचा है, ऐसा कैसे होता है, कि जब हम ‘हैप्पीडेंट च्युइंग गम्स’ सुनते हैं, तो हमारा दिमाग तुरंत उन ट्यूबलाइट से भी चमकीले दांतों पर उछल पड़ता है, जब हम ‘अंबुजा सीमेंट’ सुनते हैं, तो वह अटूट दीवार, जब हम ‘वोडाफोन’ सुनते हैं, तो वह बेहद प्यारे ज़ूज़ूज़? ख़ैर, यह तो विज्ञापनों का जादू है और ये विज्ञापन कुछ और नहीं बल्कि किसी व्यवसाय के कॉपीराइट ही हैं। इसलिए, कॉपीराइट न केवल व्यवसाय के रचनात्मक और मूल कार्यों की रक्षा करने में बल्कि व्यवसाय को बढ़ावा देने और बड़े पैमाने पर जनता तक पहुंचने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कॉपीराइट मालिकों के रूप में, व्यवसाय मालिकों को यह नियंत्रित करने का अधिकार है कि उनके काम को सार्वजनिक रूप से कैसे पुन: प्रस्तुत और वितरित किया जाना चाहिए। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे दूसरों को, विशेष रूप से बाजार में अपने प्रतिस्पर्धियों (कंपटीटर) को उन प्रकार के कार्यों का उपयोग करने से रोक सकते हैं जो उनके कॉपीराइट किए गए कार्यों के समान हैं। कॉपीराइट कई लाभ प्रदान करता है। इनमें से कुछ लाभों में शामिल हैं:

  1. केवल कॉपीराइट धारक को ही कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग करने का अधिकार है। अन्य सभी को कार्य का उपयोग करने के लिए ऐसे धारकों से अनुमति लेनी होती  है। इसलिए, यदि कोई किसी व्यवसाय के कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग करना चाहता है, तो वे ऐसा तब तक नहीं कर सकते जब तक कि उन्होंने ऐसा करने के लिए कॉपीराइट के मालिक से स्पष्ट रूप से अनुमति नहीं ली हो। उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध ज़ूज़ूज़, जो वोडाफोन के रचनात्मक और मौलिक कार्य का परिणाम हैं, स्पष्ट रूप से केवल वोडाफोन द्वारा उपयोग किया जा सकता है। बिना अधिकार के कोई भी उनका शोषण नहीं कर सकता। फिर भी, यदि कोई उचित अनुमति प्राप्त किए बिना ऐसा करने का प्रयास करता है, तो ऐसे कार्य को उल्लंघन माना जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप भारी जुर्माना लगाया जाएगा। 
  2. कॉपीराइट व्यवसाय मालिकों को अतिरिक्त पैसा कमाने में भी मदद कर सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां व्यवसाय के मालिकों ने अपने स्वयं के निर्माण से अतिरिक्त आय अर्जित करने के साधन के रूप में, अपने कॉपीराइट किए गए कार्यों के उपयोग को तीसरे पक्ष को लाइसेंस देने जैसी प्रथाएं अपनाई हैं। 
  3. कॉपीराइट का एक और लाभ यह है कि, पेटेंट और ट्रेडमार्क के विपरीत, कोई व्यवसाय अपने काम पर कॉपीराइट प्राप्त करने के लिए पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) की औपचारिकता से गुजरने के लिए बाध्य नहीं है। कॉपीराइट सुरक्षा प्रकृति में स्वचालित है। इसका अधिकार उसी क्षण से शुरू हो जाता है जब कोई मूल कार्य बनाया जाता है। इस प्रकार, इसे प्राप्त करने या बनाए रखने के लिए किसी निवेश की आवश्यकता नहीं है। हालाँकि, किसी को कॉपीराइट कानून के तहत काम को विधिवत पंजीकृत कराने की दृढ़ता से सलाह दी जाती है। कार्य को पंजीकृत कराने से व्यवसाय को अधिक और प्रभावी कानूनी सुरक्षा प्राप्त करने में मदद मिलती है, क्योंकि यह व्यवसाय के मालिक को कार्य का स्वामित्व साबित करने के लिए सबूत के रूप में कार्य करता है। 
  4. भारत में, कॉपीराइट सुरक्षा न केवल व्यवसाय के मालिक के पूरे जीवनकाल तक रहती है, बल्कि मालिक की मृत्यु के बाद 60 अतिरिक्त वर्षों तक रहती है, जो काफी लंबी अवधि है। इसलिए, व्यवसाय को किसी तीसरे पक्ष द्वारा उल्लंघन किए जाने से अपने कॉपीराइट किए गए कार्य का आनंद लेने के लिए एक लंबी अवधि मिलती है, उस दिन तक जब उनका काम अंततः सार्वजनिक डोमेन की श्रेणी में आ जाता है और उसके बाद सामान्य रूप से जनता द्वारा इसका स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है।
  5. अंत में, कॉपीराइट कानून उल्लंघन अर्थात, उचित अनुमति के बिना किसी अन्य के कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग करना के लिए मौद्रिक दंड निर्धारित करता है। ये जुर्माने अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन वे पर्याप्त हो सकते हैं और आम तौर पर खोई हुई बिक्री, कानूनी शुल्क आदि के संदर्भ में व्यवसाय के मालिक को वित्तीय क्षति के अदालत के निर्धारण पर आधारित होते हैं।

संबंधित कानून

भारत में, कॉपीराइट कानूनों को कॉपीराइट नियम, (2013) और कॉपीराइट अधिनियम (1957)  में निपटाया गया है। लेखक कोई भी व्यक्ति हो सकता है और लेखक का अर्थ कॉपीराइट अधिनियम, (1957) की धारा 2(d) के तहत बताया गया है। आम तौर पर, कॉपीराइट की अवधि 60 वर्षों के लिए होती है जैसा की ऊपर बताया गया है, लेकिन मूल संगीत, कलात्मक, साहित्यिक और अन्य कार्यों के लिए विशेष प्रावधान हैं जिन्हें लेखक की मृत्यु के दिन से शुरू करके 60 वर्ष तक गिना जाता है। कॉपीराइट अधिनियम (1957) की धारा 17 में कहा गया है कि लेखक उस रचना का पहला मालिक है। कॉपीराइट अधिनियम (1957) की धारा 51 के तहत कॉपीराइट उल्लंघन का उल्लेख किया गया है। विभिन्न परिस्थितियों पर चर्चा भी की गई है। 

ऐतिहासिक निर्णय 

हिंदुस्तान पेंसिल लिमिटेड बनाम जे.एन. घोष एंड ब्रदर्स प्राइवेट लिमिटेड, 30 अक्टूबर, 2006 के मामले में अदालत ने माना कि गोवा के कॉपीराइट बोर्ड द्वारा कॉपीराइट कानूनों का उल्लंघन किया गया था क्योंकि यह माना गया था कि जब मौलिक और पर्याप्त होने पर कलात्मक कार्यों के बीच समानताएं होती हैं तो यह कॉपीराइट का उल्लंघन होता है। गोदरेज सोप्स (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम डोरा कॉस्मेटिक्स कंपनी, 23 अप्रैल 2001 दिल्ली उच्च न्यायालय का एक मामला था, जो स्वामित्व संबंधी मुद्दों के लिए था, जहां यह माना गया था कि जब रोजगार के दौरान वादी की ओर से मूल्यवान प्रतिफल (कंसीडरेशन) के लिए एक कार्टन डिजाइन किया गया था, जिसके लिए प्रतिवादी के पास कोई उचित औचित्य नहीं था जिसे अदालत स्वीकार करेगी, तो यह निष्कर्ष निकाला गया कि वादी उस कॉपीराइट का वैध मालिक है जो कार्टन के साथ-साथ लोगो में भी मुद्रित किया गया था।

ट्रेडमार्क 

ट्रेडमार्क को किसी भी ऐसी चीज़ के रूप में स्वीकार किया जा सकता है जो एक प्रतीक, वाक्यांश, नाम हो सकता है, या जिसका उपयोग किसी विशेष उत्पाद जो पहचानने योग्य है, को पहचानने और अलग करने के लिए किया जा सकता है व्यापार जगत में, ट्रेडमार्क को आमतौर पर ब्रांड नाम के और जिनका उपयोग व्यवसाय के मालिक संभावित उपभोक्ताओं की नज़र में अपने उत्पाद की छवि स्थापित करने के लिए करते हैं, के रूप में जाना जाता है। यह वस्तुओं और सेवाओं की पहचान और भेद का एक रूप है जो एक कंपनी से दूसरी कंपनी में अंतर करता है। फ्रैंचाइज़ व्यवसाय में ट्रेडमार्क बहुत आवश्यक हैं। ट्रेडमार्क को वस्तुओं या उत्पादों पर दर्शाया जा सकता है और यदि यह सेवाओं के मामले में है तो इसे वेबसाइट पर दर्शाया जा सकता है। कंपनी एकमात्र मालिक है और ग्राहक को किसी कंपनी के उत्पाद को दूसरो से अलग करने की सुविधा प्रदान करता है। 

उदाहरण के लिए, कोका – कोला, नाइकी, बूस्ट, बैंड-एड, एल.जी. और जकूज़ी, कुछ नाम है; उपभोक्ता अवचेतन (सबकॉनशियस) रूप से इन ट्रेडमार्क को उनके संबंधित ब्रांड के बजाय वास्तविक उत्पाद/ सेवाओं के रूप में मानते हैं जो उन्हें पेश किए जाते हैं। यह ट्रेडमार्क की ताकत है। इन मजबूत कंपनियों का जन्म उनके ब्रांडों और उनके द्वारा पेश किए जाने वाले उत्पादों/ सेवाओं के बीच इस एकाधिकार संबंध के साथ नहीं हुआ था। उन्होंने न केवल एक नाम, प्रतीक, डिज़ाइन या लोगो के बारे में सोचा जो उनके उत्पाद अवधारणाओं से मेल खाता हो, बल्कि उन्होंने अपनी बौद्धिक संपदा को ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत भी करवाया।

ट्रेडमार्क सबसे महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों में से एक है जो किसी व्यवसाय के पास होगी क्योंकि यह बाज़ार में व्यवसाय और उसके उत्पादों/ सेवाओं को उसके प्रतिस्पर्धियों से पहचानने और अलग करने में मदद करता है। बाज़ार में आने वाले और चल रहे प्रत्येक व्यवसाय की सफलता के लिए यह अति आवश्यक है। इसलिए, प्रत्येक व्यवसाय मालिक के लिए अपने ट्रेडमार्क की सुरक्षा और उसे लागू करने के लिए पर्याप्त मात्रा में कार्रवाई करना महत्वपूर्ण है।

ट्रेडमार्क कानून बाज़ार में संभावित उपभोक्ताओं को दूर से भी उत्पादों को आसानी से पहचानने की अनुमति देता है। ट्रेडमार्क मालिको के रूप में, व्यवसाय मालिको को अपने प्रतिस्पर्धियों सहित अन्य लोगों को उनके ट्रेडमार्क या किसी ऐसे मार्क का उपयोग करने से रोकने का अधिकार है, जो भ्रामक रूप से उनके ट्रेडमार्क के समान है और संभावित उपभोक्ताओं के मन में भ्रम पैदा कर सकता है। ट्रेडमार्क संरक्षण तीन मुख्य नीतियों को प्रोत्साहित करता है- व्यवसाय मालिक की सद्भावना की रक्षा, उपभोक्ता की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था की दक्षता। एक ट्रेडमार्क कई लाभ प्रदान करता है। इनमें से कुछ लाभों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. ट्रेडमार्क व्यवसाय के लिए संचार (कम्युनिकेशन) के एक प्रभावी उपकरण के रूप में कार्य करता है। एकल ब्रांड या लोगो में, ट्रेडमार्क व्यवसाय मालिकों, उनके व्यवसाय, बाज़ार में उनकी प्रतिष्ठा और उनके द्वारा पेश किए जाने वाले उत्पादों और सेवाओं के बारे में बौद्धिक और भावनात्मक विशेषता और संदेश दे सकते हैं। ट्रेडमार्क में हमेशा एक शब्द होना ज़रूरी नहीं है। डिज़ाइन को ट्रेडमार्क के रूप में भी पहचाना जा सकता है। उदाहरण के लिए, नाइकी का “स्वूश” डिज़ाइन ही व्यवसाय को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए पर्याप्त था।
  2. ट्रेडमार्क संभावित उपभोक्ताओं के लिए व्यवसाय मालिकों को ढूंढना आसान बनाते हैं। बाज़ार में भीड़ है और किसी व्यवसाय को उसके प्रतिस्पर्धियों से अलग करना कठिन है। यहीं पर ट्रेडमार्क स्थिति को बचाने के लिए सामने आता है। ट्रेडमार्क/ ब्रांड ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करने और व्यवसाय बनाने के लिए एक कुशल वाणिज्यिक (कमर्शियल) संचार उपकरण हैं, और इसके उत्पाद और सेवाएँ अलग हैं। ट्रेडमार्क देखने वाले ग्राहकों को तुरंत पता चल जाता है कि वे किसके साथ काम कर रहे हैं, व्यवसाय की प्रतिष्ठा क्या है और किसी अन्य वैकल्पिक उत्पाद/ सेवाओं की तलाश करने की संभावना कम होती है। ग्राहक के खरीदारी निर्णय को आगे बढ़ाने में ब्रांड महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।
  3. ट्रेडमार्क व्यवसायों को इंटरनेट और सोशल मीडिया का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की अनुमति देते हैं। उत्पाद और सेवाओं की तलाश करते समय ग्राहक सर्च इंजन या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सबसे पहले ब्रांड ही डालते हैं। 
  4. ट्रेडमार्क नियुक्ति को आसान बना सकते हैं। ब्रांड लोगों के मन में सकारात्मक भावनाएं पैदा कर सकते हैं। परिणामस्वरूप, लोगों के लिए रोजगार के अवसर अधिक आकर्षक होते हैं। यदि कर्मचारियों में ब्रांड और पेश किए गए उत्पादों और सेवाओं के प्रति सकारात्मक भावनाएं हों तो कर्मचारी प्रतिधारण अधिक हो सकता है।

संबंधित कानून

भारत में, ट्रेडमार्क से संबंधित नियम ट्रेडमार्क अधिनियम, (1999) के तहत शासित होते हैं। ट्रेडमार्क ट्रेडमार्क रजिस्ट्री द्वारा जारी किया जाता है, जिसका शाखा कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई में है और मुख्य कार्यालय मुंबई में है, जो ट्रेडमार्क अधिनियम, (1999) के प्रावधानों के अनुसार ट्रेडमार्क जारी करता है। ट्रेडमार्क अधिनियम, (1999) की धारा 2(1)(zg) के तहत ट्रेडमार्क की परिभाषा भी प्रदान की गई है। इससे ग्राहक को नकली सामान और असली सामान के बीच अंतर पहचानने में भी मदद मिलती है। 

ट्रेडमार्क विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं क्योंकि उनमें से एक उत्पाद ट्रेडमार्क होता है जिसका उपयोग उत्पाद के लिए किया जाता है और दूसरा सेवा ट्रेडमार्क होता है जिसका उपयोग सेवाओं की पहचान करने के लिए किया जाता है। इनका उपयोग आम तौर पर विज्ञापन उद्देश्यों के लिए किया जाता है। जारी किए गए ट्रेडमार्क की अवधि आम तौर पर दस वर्ष होती है जिसके बाद इसे नवीनीकृत (रिन्यू) करना होता है। प्रमाणीकरण ट्रेडमार्क के उल्लंघन की कार्यवाही पर ट्रेडमार्क अधिनियम, (1999) की धारा 75 के तहत चर्चा की गई है।

ऐतिहासिक निर्णय

ट्रेडमार्क के उल्लंघन या उसे पारित करने से संबंधित कुछ ऐतिहासिक निर्णय यहां दिए गए है, उनमें से एक टाटा संस लिमिटेड बनाम श्री मनु किशोरी और अन्य, 9 मार्च 2001 का मामला है, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने वादी, जो कि टाटा संस था, के पक्ष में फैसला सुनाया और प्रतिवादियों पर स्थायी निषेधाज्ञा (परमानेंट इंजंक्शन) जारी की और बाद में उन्हें किसी भी रूप में व्यवसाय संचालित करने वाले सक्षम प्राधिकारियों (अथॉरिटी) के लिए ट्रेडमार्क नाम टाटा का उपयोग करने से रोक दिया था क्योंकि वह भ्रामक था। सर्वोच्च न्यायालय का एक अन्य मामला एन.आर. डोंगरे और अन्य बनाम व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन और अन्य, 30 अगस्त 1996 का है। इस मामले के तथ्य यह थे कि प्रतिवादी ने वर्ष 1986 में ट्रेडमार्क पंजीकृत करने के लिए आवेदन किया था, जबकि वादी उस ट्रेडमार्क का ज्ञात मालिक था, जो वर्ष 1977 में समाप्त हो गया था, जब वादी द्वारा आपत्ति उठाई गई और याचिका की सुनवाई के बाद अदालत ने प्रतिवादियों पर अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने निस्संदेह तब स्वीकार कर लिया जब प्रतिवादी ने निचली अदालत और खंड पीठ (डिवीजन बेंच) के आदेशों के खिलाफ अपील की। अपमान या उल्लंघन के लिए नागरिक और आपराधिक उपचार उपलब्ध होते हैं। 

बौद्धिक संपदा को व्यवसाय के लिए उपयोगी बनाना

कॉपीराइट के कुछ फायदे हैं जो व्यवसाय के लिए अत्यधिक फायदेमंद होते हैं। कॉपीराइट का मूल लाभ यह है कि कॉपीराइट प्राप्त करने या बनाए रखने के लिए किसी निवेश की आवश्यकता नहीं होती है। भारत ने बर्न सम्मेलन (कन्वेंशन) जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों पर भी हस्ताक्षर किए हैं, जिन्हें 179 देशों द्वारा अनुमोदित किया गया है। भारत विश्व बौद्धिक संपदा संगठन का भी सदस्य है। कॉपीराइट कानूनों के महत्व को बहुत बड़े पैमाने पर ध्यान में रखा गया है और इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त अधिकांश देशों द्वारा स्वीकार भी किया गया है। यह सुझाव दिया जाता है कि व्यवसाय के प्रमुखों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कंपनी के रोजगार नियमों और शर्तों में एक आई.पी. खंड होना चाहिए ताकि रोजगार के दौरान नियोक्ता द्वारा किया गया या सौंपा गया कार्य व्यवसाय के पास बना रहे। 

ट्रेडमार्क विभिन्न लाभ प्रदान करता है जिनकी ऊपर चर्चा की गई और अंततः व्यवसाय में विविध उपयोग प्रदान करता है। उत्पाद या कुछ प्रकार की सेवाओं पर विशेष अधिकार बाजार में विश्वास और ब्रांड मूल्य बनाते हैं और ग्राहकों के बीच अपनी विशिष्टता के लिए प्रतिष्ठा अर्जित करते हैं। मुख्य लाभ यह है कि यह एक कंपनी से दूसरी कंपनी में वस्तुओं और सेवाओं को अलग करता है। इसे एक कंपनी से दूसरी कंपनी को बेचा, स्थानांतरित या खरीदा भी जा सकता है। यह एक मूल्यवान व्यावसायिक संपत्ति है। यह अमूर्त संपत्ति का एक रूप है जिसका मूल्य पैसे के रूप में होता है। यह सुरक्षा के रूप में कार्य करता है और कड़ी प्रतिस्पर्धा में मूल्य बनाता है। 

भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के समझौते की भी पुष्टि की गई है जिसमें बौद्धिक संपदा के व्यापार-संबंधित पहलुओं (ट्रिप्स) का भी उल्लेख किया गया है। 2013 में, भारत ने मैड्रिड प्रोटोकॉल पर भी हस्ताक्षर किए जो सभी सदस्य देशों द्वारा ट्रेडमार्क को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता और स्वीकृति प्रदान करता है। ट्रेडमार्क का उपयोग गैरकानूनी या नकली उत्पादों या सेवाओं को रोकता है।

कॉपीराइट और ट्रेडमार्क के बीच अंतर

                          कॉपीराइट                              ट्रेडमार्क 
यह नाटकीय, कलात्मक और संगीतमय कार्यों की रक्षा करता है, या कोई अन्य मौलिक रचना भी हो सकती है। यह व्यापार नाम, मूल्य, या कंपनी के लोगो या प्रतीक की सुरक्षा के रूप में कार्य करता है।
यह उन लोगों के अधिकारों की रक्षा करता है जो इसकी उत्पत्ति करते हैं या सृजन करते हैं। यह व्यक्तिगत मालिकों के लिए उनकी मृत्यु के बाद 60 वर्ष से ज्यादा के लिए वैध है। यह कंपनी के ब्रांड मूल्य, नाम और लोगो के अनधिकृत उपयोग का बचाव करता है। यह 10 साल तक के लिए वैध होता है। 
पंजीकरण के बाद कॉपीराइट के लिए “©” प्रतीक का उपयोग करने की कोई बाध्यता नहीं है। यह कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के साथ कॉपीराइट नियम, 2013 के तहत शासित होता है। पंजीकरण के बाद और उपयोग के दौरान “®” चिन्ह का उपयोग करना अनिवार्य है। यह ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत शासित होता है।

निष्कर्ष 

देश के व्यापार और स्टार्टअप क्षेत्रों में भारी वृद्धि ने देश के ट्रेडमार्क और कॉपीराइट कानूनों में बहुत बड़ा योगदान दिया है। कॉपीराइट और ट्रेडमार्क दोनों ही सुचारू व्यावसायिक लेनदेन के संचालन में अत्यधिक योगदान देते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य बाज़ार में मौलिकता बनाए रखना है, जो अंततः नई नौकरी के अवसरों और नए विचारों के लिए जगह बनाने में मदद करता है। ये नए विचार, बदले में, अर्थव्यवस्था को फलने-फूलने में मदद करते हैं। किसी व्यवसाय द्वारा अर्जित सद्भावना सीधे तौर पर उसके ट्रेडमार्क से जुड़ी होती है क्योंकि वर्षों से लोगों ने उससे अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी है। इसके साथ एक ब्रांड वैल्यू जुड़ी हुई है जो व्यवसाय को फलने-फूलने में मदद करती है। यदि कोई व्यक्ति उपभोक्ताओं को बेवकूफ बनाने की कोशिश करता है, तो वह उपलब्ध कानूनी संसाधनों का सहारा ले सकता है।

ट्रेडमार्क न केवल प्रतिष्ठा बनाए रखकर एक ब्रांड मूल्य बनाता है बल्कि अपने उत्पादों और सेवाओं को भी अलग करता है। कॉपीराइट कानून लोगों को अपनी रचनात्मकता को अधिकतम स्तर तक बढ़ाने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि इसे कानूनों द्वारा संरक्षित किया जाएगा। यदि कानून नहीं होंगे तो कोई रचनात्मक बनने का प्रयास नहीं करेगा और असुरक्षा की भावना रहेगी। कानून उन लोगों के हितों को सामने रखता है और उनकी रक्षा करता है जो व्यवसाय करते हैं और अपनी रचना या ब्रांड वैल्यू से आय अर्जित करते हैं। ऐसे कानून भय को कम करते हैं, संघर्ष को कम करते हैं और मौलिकता और प्रामाणिकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ उसकी रक्षा भी करते हैं।

संदर्भ 

 

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here