भारत के संविधान का प्रिएंबल

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इस लेख में, उत्तरांचल विश्वविद्यालय की छात्रा Palak Goel, भारत के संविधान के प्रिएंबल पर चर्चा करती हैं। इस लेख का अनुवाद Archana Chaudhary द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

भारतीय संविधान के प्रिएंबल की प्रारंभिक पंक्तियाँ हैं:

“हम, भारत के लोग, भारत को एक सॉवरेन सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक बनाने और इसके सभी नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए पूरी तरह से संकल्प लेते हैं:

न्याय, सामाजिक (सोशल), आर्थिक (इकनॉमिक) और राजनीतिक;

विचार, अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन), विश्वास (बिलीफ), भरोसा और पूजा की स्वतंत्रता;

स्थिति (स्टेटस) और अवसर (ऑपर्च्युनिटी) की समानता;

और उन सभी के बीच प्रचार (प्रमोट) करने के लिए

व्यक्ति की गरिमा (डिग्निटी) और राष्ट्र की एकता (यूनिटी) और अखंडता (इंटीग्रिटी) को सुनिश्चित करने वाली बिरादरी (फ्रेटरनिटी);

नवंबर, 1949 के इस 26वें दिन को हमारी संविधान सभा (एसेंबली) ने, इसके द्वारा, इस संविधान को अपनाया (एडॉप्ट), लागू (इनेक्ट) किया और स्वयं को दिया”।

भारत का संविधान, भूमि का मौलिक (फंडामेंटल) कानून है। यह एक क्रांतिकारी (रिवोल्यूशनरी) डोमेन के साथ एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक साधन है। दुनिया का हर संविधान एक प्रिएंबल के साथ आगे बढ़ता है और इसलिए, भारतीय संविधान भी एक प्रिएंबल के साथ शुरू होता है, जो भारत के लोगों के आदर्शों, आकांक्षाओं (एस्पिरेशंस), अपेक्षाओं (एक्सपेक्टेशन) और निष्पक्षता (ऑब्जेक्टिविटी) को दर्शाता है। प्रिएंबल में भारतीय गणराज्य (रिपब्लिक) के लक्ष्य और उद्देश्य शामिल हैं और इसमें भारतीय संविधान के संपूर्ण दर्शन (फिलोसॉफी) और लेजिस्लेटिव मंशा (इंटेंट) को संक्षेप में शामिल किया गया है। किसी भी संविधान का कोई भी पाठ, प्रिएंबल को पढ़े बिना पूरा नहीं हो सकता। यह एक ऐसे विषय के रूप में कार्य करता है जिसके चारों ओर एक कानून घूमता है।

प्रिएंबल निम्नलिखित के बारे में विचार देती है:

  • संविधान का स्रोत (सोर्स);
  • भारतीय राज्य की प्रकृति;
  • इसके उद्देश्यों का एक बयान; तथा
  • इसको अपनाने की तिथि

संविधान के प्रिएंबल की लेजिसलेटिव मंशा, पंडित नेहरू द्वारा तैयार और प्रस्तुत किए गए “ओपन माइंडेड पर्सेवरेंस” पर आधारित है और 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया।

इस प्रकार प्रिएंबल के प्रमुख पहलुओं का विश्लेषण (एनालाइजिंग) करने पर इसे गुणात्मक (क्वालिटेटिव) विशेषताओं के संदर्भ में 3 भागों में विभाजित (डिवाइड) किया जा सकता है। प्रिएंबल है:

  1. घोषणात्मक (डिक्लेरेटरी), संविधान का प्रिएंबल अधिनियमन (इनैक्टमेंट) के संबंध में, अर्थात, भारत के लोगों ने अपनी संविधान सभा में इस संविधान को अपनाया, अधिनियमित किया और खुद को यह संविधान दिया ।
  2. क्रांतिकारी (रिवॉल्यूशनरी), प्रिएंबल की लेजिस्लेटिव मंशा के अर्थ में, जिससे भारत के लोगों ने भारत को एक सॉवरेन सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक और अपने सभी नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए संकल्प लिया है।
  3. सूचनात्मक (इनफॉर्मेटिव), संविधान के प्रिएंबल के स्रोत के रूप में, अर्थात्, “हम, भारत के लोग”।

15 तथ्य जो आप प्रिएंबल के बारे में नहीं जानते थे

  1. प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने भारत के असली संविधान को सुंदर कैलीग्राफी के साथ प्रवाहित (फ्लोइंग) इटैलिक स्टाइल में लिखा है।
  2. भारत के पार्लियामेंट के पुस्तकालय में हीलियम से भरे विशेष केसेस में भारतीय संविधान की असली कॉपीज रखी गई हैं जो हिंदी और अंग्रेजी में लिखी गई है।
  3. भारतीय संविधान दुनिया के किसी भी सॉवरेन देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें 25 भाग हैं, जिनमें 448 आर्टिकल्स और 12 शेड्यूल हैं।
  4. पहली संविधान सभा, दिसंबर 09, 1946 को मिली और भारतीय संविधान के अंतिम ड्राफ्टिंग के लिए ठीक 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे।
  5. बहस और चर्चा के परिणाम स्वरूप इसे अंतिम रूप देने के लिए इसमें 2000 से अधिक अमेंडमेंट किए गए थे।
  6. हस्तलिखित (हैंडरिटन) संविधान जिस पर 24 जनवरी, 1950 को हस्ताक्षर किए गए थे, वह, 26 जनवरी यानी हस्ताक्षर होने के 2 दिन बाद लागू हुआ। संविधान सभा के 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किए, जिसमें 15 महिलाएं भी शामिल थीं।
  7. संविधान की अंतिम ड्राफ्टिंग 26 नवंबर, 1949 को पूरी हुई। लेकिन यह 26 जनवरी, 1950 को, 2 महीने बाद लागू हुआ, जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में जाना जाता है।
  8. हमारे संविधान निर्माताओं (मेकर्स) ने हमारे संविधान का ड्रॉफ्ट तैयार करते समय विभिन्न संविधानों से विभिन्न प्रावधानों (प्रोविजंस) को अपनाया है।
  9. डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी (डीपीएसपी) की विचारधारा (आइडियोलॉजी), आयरलैंड से अपनाई गई थी।
  10. फ्रेंच रिवोल्यूशन ने हमारे प्रिएंबल में स्वतंत्रता, समानता और बिरादरी के सिद्धांतों (प्रिंसिपल्स) को निर्धारित (लैड डाउन) किया, जिसे फ्रेंच आदर्श (फ्रेंच मोटो) भी कहा जाता है।
  11. यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के संविधान का प्रिएंबल भी “हम लोगों” से शुरू होता है, जिसने संविधान का प्रिएंबल राजी (पर्सुएड) किया था।
  12. लेजिसलेटिव मंशा जो हमारे संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त मौलिक अधिकारों की अवधारणा (कंसेप्ट) के पीछे है, वह अमेरिकन संविधान से अपनाया गया था। यह अपने सभी नागरिकों को सुरक्षित 9 मौलिक अधिकारों की मान्यता देता है।
  13. शुरुआत में, संपत्ति का अधिकार भी संविधान के आर्टिकल 31 के तहत उल्लिखित (एनुमरेट) मौलिक अधिकारों में से एक था, जिसमें कहा गया था कि “कानून के प्राधिकार (ऑथोरिटी) के बिना किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित (डिप्राइव) नहीं किया जाएगा।” हालाँकि,  इसे 44वें अमेंडमेंट, 1978 द्वारा हटा दिया गया था।
  14. भारतीय संविधान दुनिया के सबसे अच्छे संविधानों में से एक है, क्योंकि इसके लागू होने के 62 वर्षों में इसे 94 बार अमेंड किया जा चुका है। अभी तक, हमारे संविधान में कुल 100 से अधिक अमेंडमेंट हुए हैं।
  15. जबलपुर के प्रसिद्ध चित्रकार बेहर राममनोहर सिन्हा ने भारत के संविधान के अन्य पेजों के साथ प्रिएंबल के पेज को डिजाइन किया और सजाया है।

“प्रिएंबल, संविधान का एक सजावटी (ऑर्नेमेंटल) हिस्सा है और इसे बुलंद (लॉफ्टी) और उत्तेजक (स्टीरिंग) भाषा में लिखा गया है। न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बिरादरी जैसे ये शब्द हमारे मन में उठते हैं, उन महान संग्राम (स्ट्रगल) की यादें हैं जिन्हें राष्ट्र को सुरक्षित करने के लिए गुजरना (गोथ्रू) पड़ा था। ये शब्द हमें बताते हैं कि हमने भारत में लंबे समय तक स्वतंत्रता संग्राम क्यों लड़ा जिसमें हमारे हजारों लोग मारे गए। प्रिएंबल में निहित (इनश्राइंड) न्याय, बिरादरी, समानता और स्वतंत्रता जैसे महान विचारों से हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर सकते हैं। प्रिएंबल 1947 में संविधान सभा द्वारा अपनाए गए ऑब्जेक्टिव रेजोल्यूशन के सिद्धांतों का एक अवतार है। – ए.टी. फिलिप्स और के.एच. शिवाजी राव

प्रिएंबल एक कल्याणकारी राज्य बनने के लिए भारत की लेजिसलेटिव मंशा प्रदान करता है

प्रिएंबल की शब्दावली (टर्मिनोलॉजी) मौलिक मूल्यों (वैल्यूज) और मार्गदर्शक (गाइडिंग) सिद्धांतों को निहित करती है जो भारत के संविधान के लिए आधार बनाती हैं। यह भारत को एक कल्याणकारी (वेलफेयर) राज्य बनने के लिए लेजिसलेटिव मंशा प्रदान करता है। प्रिएंबल संविधान के लिए पथप्रदर्शक (पाथफाइंडर) के रूप में कार्य करता है और न्यायाधीश इसके प्रकाश में संविधान के प्रावधानों की विचारधारा की व्याख्या (इंटरप्रेट) करते हैं। भारत का संविधान एक पेड़ की तरह खड़ा है जिसकी जड़, तना (स्टेम) और स्रोत प्रिएंबल है। प्रिएंबल के कीवर्ड इस प्रकार हैं जो भारत के संविधान के होराइजन का विस्तार करते हैं।

  • सॉवरेन

सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “सॉवरेन” शब्द का अर्थ है कि उस राज्य के पास संवैधानिक सीमाओं (लिमिटेशन) के अनुरूप किसी भी विषय पर कानून बनाने की शक्ति है। इसका अर्थ सर्वोच्च (सुप्रीम) या स्वतंत्रता है। सॉवरेंटी दो प्रकार की होती है, आंतरिक (इंटरनल) और बाहरी (एक्सटर्नल) सॉवरेन। आंतरिक रूप से सॉवरेन होने का अर्थ, एक स्वतंत्र सरकार होने से है जो लोगों द्वारा सीधे चुनी जाती है, जो लोगों को नियंत्रित (गवर्न) करने वाले कानून बनाती है। बाहरी रूप से सॉवरेन का अर्थ है, किसी भी विदेशी शक्ति या अनुपालन (कंप्लायंस) के नियंत्रण से मुक्त होना है। सभी लोग अपनी सीमा में अपने-अपने हिसाब से काम करने के लिए स्वतंत्र हैं। एक देश का अपना संविधान नहीं हो सकता है यदि वह सॉवरेन नहीं है।

  • सोशलिस्ट

इमरजेंसी के दौरान, 42वें अमेंडमेंट,1976 द्वारा प्रिएंबल में “सोशलिस्ट” शब्द जोड़ा गया था। प्रिएंबल में भारतीय संविधान के सोशलिस्ट चरित्र पर जोर दिया गया है, जो अपने सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाने के लिए लोगों की आकांक्षा को दर्शाता है। इसका तात्पर्य सामाजिक और आर्थिक समानता से है। सामाजिक रूप से समान होने के स्तर (स्टैंडर्ड) का अर्थ है जाति, पंथ (क्रीड), लिंग, रंग, धर्म या भाषा के आधार पर असमानता का अभाव (एब्सेंस)। इसका मतलब है कि सभी को समान दर्जा प्राप्त है और हर अवसर तक उनकी समान पहुंच है। आर्थिक स्थिरता (स्टेबिलिटी) का अर्थ है धन का समान वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) जो सभी को एक सभ्य जीवन स्तर (स्टेंडर्ड) की ओर ले जाता है।

  • सेक्युलर

इमरजेंसी के दौरान, 42वें अमेंडमेंट, 1976 द्वारा प्रिएंबल में “सेक्युलर” शब्द जोड़ा गया था। भारत का संविधान एक सेक्युलर राज्य के लिए खड़ा है, यानी राज्य का कोई आधिकारिक (ऑफिशियल) धर्म नहीं है। सेक्युलरिज्म की अवधारणा अपनी पसंद के धर्म को मानने (प्रोफेस), अभ्यास (प्रेक्टिस) करने और प्रचार (प्रोपेगेट) करने का पूरा अवसर देने के लिए, अपने होराइजन का विस्तार करती है। संविधान, व्यक्ति को अपने धर्म और विवेक की पसंद की स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करने के साथ-साथ स्वतंत्रता भी सुनिश्चित करता है जिसका कोई धर्म नहीं है और राज्य को धर्म के आधार पर कोई भेदभाव (डिस्क्रिमिनेशन) करने से रोकता है।

सेक्युलर के सबसे महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स इस प्रकार हैं:

  • समानता आर्टिकल 14 में शामिल है;
  • धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव के खिलाफ निषेध (प्रोहिबिशन), आर्टिकल 15 और आर्टिकल 16 में शामिल है;
  • भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सभी नागरिकों की अन्य सभी महत्वपूर्ण स्वतंत्रता आर्टिकल 19 और आर्टिकल 21 के तहत प्रदान की जाती हैं;
  • धर्म का पालन करने का अधिकार आर्टिकल 25 से 28 के तहत प्रदान किया गया है;
  • सभी नागरिकों को समान मानते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने का राज्य का मौलिक कर्तव्य (फंडामेंटल ड्यूटी) आर्टिकल 44 द्वारा लगाया गया है;
  • गाय के प्रति और इसके वध (स्लॉटर) के खिलाफ मेजॉरिटी लोगों की भावना को आर्टिकल 48 में शामिल किया गया था

एस.आर. बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेक्युलरिज्म संविधान की मूल (बेसिक) विशेषता है।

संक्षेप में कहें तो सेक्युलरिज्म की अवधारणा यह है कि, बाल पाटिल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में यह कहा गया था कि “राज्य” का कोई धर्म नहीं होता है।

यह एम.पी. गोपालकृष्णन नायर बनाम स्टेट ऑफ केरल में यह कहा गया था कि एक सेक्युलर राज्य होने का मतलब नास्तिक (एथीस्ट) समाज होना नहीं है।

  • डेमोक्रेटिक

डेमोक्रेटिक शब्द, ग्रीक शब्द ‘डेमोस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘लोग’ और ‘क्रेटोस’, जिसका अर्थ है ‘अधिकार’। प्रिएंबल की प्रारंभिक पंक्तियाँ “हम, भारत के लोग” और आखिर की पंक्तियाँ “स्वयं को यह संविधान दें” संविधान में शामिल डेमोक्रेटिक भावना को दर्शाती है। भारत के लोग “एक आदमी एक वोट” की प्रणाली (सिस्टम) द्वारा सभी स्तरों अर्थात यूनियन, राज्य और स्थानीय (लोकल) पर अपनी सरकारों का चुनाव करते हैं।

  • रिपब्लिक

रिपब्लिक शब्द की उत्पत्ति (डेराइव्ड) ‘रेस पब्लिका’ से हुई है, जिसका अर्थ है सार्वजनिक (पब्लिक) संपत्ति या राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ)। एक रिपब्लिक का अर्थ, सरकार का एक रूप है जिसमें राज्य का हेड एक इलेक्टेड व्यक्ति होता है और न कि ग्रेट ब्रिटेन में राजा या रानी की तरह हेरेडिटरी मोनार्क होता है। रिपब्लिक होने का अर्थ है लोगों में राजनीतिक सॉवरेंटी का निहित होना और राज्य के हेड का चुनाव, राष्ट्र के लोगों द्वारा एक निश्चित (फिक्स्ड) अवधि के लिए किया जाता है। सामान्य अर्थ में, रिपब्लिक शब्द एक ऐसी सरकार का जिक्र करता है, जिसमें कोई भी सार्वजनिक शक्ति को मालिकाना (पप्रोपराइटरी) अधिकार नहीं मिला है।

भारतीय राज्य के चार उद्देश्य

प्रिएंबल का उद्देश्य उसमें उल्लिखित 4 कीवर्ड्स से प्राप्त किया जा सकता है, अर्थात्, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बिरादरी। पी.ए. इनामदार बनाम महाराष्ट्र राज्य, में यह देखा गया कि अगर भारतीय राजनीति को शिक्षित और श्रेष्ठता (एक्सीलेंस) के साथ शिक्षित करना है, तो यह संविधान के प्रिएंबल, यानी, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बिरादरी में निर्धारित सुनहरे लक्ष्यों का एक सुस्थापित (वेलसेटल्ड) सिद्धांत है।

  • न्याय

“न्याय” शब्द 3 अलग-अलग प्रकार के न्याय को दर्शाता है, जैसे, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक, जो भारत के संविधान, 1949 के भाग III और भाग IV के तहत निहित मौलिक अधिकारों और डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी के माध्यम से गारंटीकृत है।

सामाजिक न्याय का अर्थ, लिंग, रंग, पंथ, नस्ल या धर्म के आधार पर भेदभाव का अंत है। इसका अर्थ अनटचैबिलिटी का अंत है। इसमें पिछड़े वर्गों, यानी अनुसूचित जाति (शेड्यूल्ड कॉस्ट), अनुसूचित जनजाति (शेड्यूल्ड ट्राइब्स) और अन्य पिछड़े वर्गों की स्थिति में सुधार भी शामिल है।

यहाँ उल्लिखित आर्थिक न्याय से तात्पर्य धन, आय (इनकम) और संपत्ति की स्पष्ट असमानताओं को दूर करने से है। सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के संयोजन (कॉम्बिनेशन) को ‘वितरक न्याय’ के रूप में जाना जाता है।

राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार, सभी राजनीतिक कार्यालयों में समान पहुंच और सरकार में समान वॉइस होनी चाहिए।

  • समानता

प्राधिकरण से मंजूरी के बिना अधिकार का कोई मतलब नहीं है। समुदाय (कम्युनिटी) के सदस्यों द्वारा इस तरह के अधिकार का आनंद नहीं लिया जा सकता है। संविधान के निर्माताओं की लेजिसलेटिव मंशा सभी के लिए स्थिति और अवसर की समानता सुनिश्चित करना और अंत में एक समतावादी (इगेलिटेरियन) समाज की स्थापना के लिए आधार प्रदान करना था। प्रिएंबल में निहित स्थिति और अवसर की समानता सभी के लिए है, सबसे पहले, धर्म, नस्ल, जाति, लिंग के आधार पर नागरिकों के बीच सभी प्रकार के भेदभाव और पक्षपत्त (बायस) को समाप्त करके और दूसरा, खुले सार्वजनिक स्थानों पर समान पहुंच द्वारा, अनटचैबिलिटी और हक (टाइटल) को समाप्त करके, रोजगार क्षेत्र में अवसर के लिए समानता हासिल करके या राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में नियुक्ति (अपॉइंटमेंट) करके।

  • स्वतंत्रता

स्वतंत्रता मनुष्य की सबसे प्रिय संपत्ति है। संविधान का प्रिएंबल विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने का दावा करता है। इन स्वतंत्रताओं की गारंटी भारत के संविधान, 1949 के भाग III में निहित मौलिक अधिकारों के माध्यम से दी गई है। स्वतंत्रता वह करने की शक्ति है जो कानून द्वारा अनुमत (एलाउ) है। देश के संवैधानिक कानून ने अपने मैकेनिज्म, न्यायपालिका और न्यायसंगतता (जस्टिसिएबिलिटी) के स्थापित नियमों के माध्यम से स्वतंत्रता की पूरी गारंटी दी है। स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि जो पसंद है उसे करने के लिए ‘लाइसेंस’ हो और उसे संविधान में उल्लिखित सीमाओं के भीतर ही आनंद लेना हो। संक्षेप में, प्रिएंबल द्वारा परिकल्पित (कंसीव) स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है।

  • बिरादरी

वाक्यांश “राष्ट्र की एकता और अखंडता” को 42वें अमेंडमेंट, 1976 द्वारा संविधान के प्रिएंबल में प्रतिस्थापित (सब्सटिट्यूटेड) किया गया था। बिरादरी का अर्थ है भाईचारे की भावना। यह एक भावना है कि, सभी लोग एक ही मिट्टी, एक ही मातृभूमि के बच्चे हैं। भाईचारा एक विशेष प्रकार का रिश्ता है, चाहे लिंग और पीढ़ी (जनरेशन) कुछ भी हो। भारत जैसे देश में एकता और अखंडता की अभिव्यक्ति को प्राथमिकता (प्रायोरिटाइज) देना आवश्यक है, जिसे केवल भाईचारे की भावना से ही संरक्षित (प्रिजर्व्ड) किया जा सकता है। भारत के पास एक नागरिकता है और प्रत्येक नागरिक को यह महसूस करना चाहिए कि वह किसी अन्य आधार के बावजूद पहले भारतीय है।

प्रिएंबल: संविधान का एक हिस्सा है या नहीं

प्रिएंबल के बारे में बहस का विषय कि क्या वह संविधान का हिस्सा है या नहीं, दो प्रमुख मामलों में तय किया गया था:

बेरुबारी मामला

  • बेरुबारी मामले से संबंधित भारत-पाक समझौते के इंप्लीमेंटेशन और परिक्षेत्रों (एनक्लेव) के आदान-प्रदान पर भारत के संविधान पर, बेरुबारी मामला 8 न्यायाधीशों की एक बेंच द्वारा विचार के लिए आया था।
  • कोर्ट ने माना कि संविधान का प्रिएंबल “संविधान निर्माताओं के दिमाग को खोलने की कुंजी” है, लेकिन यह संविधान का एक हिस्सा नहीं है।

केशवानंद भारती मामला

इस मामले ने इतिहास रच दिया है। 13 जजों की बेंच असेंबल हुई और रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने मूल अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिकशन) में बैठ गई थी। इस मामले में यह कहा गया था कि:

  1. प्रिएंबल संविधान का हिस्सा है
  2. प्रिएंबल, स्टेट्यूट्स के लेजिसलेटिव मंशा की व्याख्या (इंटरप्रेट) करने के साथ-साथ भारत के संविधान की व्याख्या के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।

प्रिएंबल की मूल समझ, मंडल कमीशन के मामले के संदर्भ (रेफरेंस) के बिना अधूरी है, जिसका निर्णय 9 न्यायाधीशों की बेंच ने किया था। यह देखा गया कि अपने नागरिकों की, न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बिरादरी को हासिल करने की निष्पक्षता भारत के संविधान में हाईएस्ट ऑर्डर की जनता द्वारा प्रशासन को प्रदर्शित करती है।

क्या प्रिएंबल में अमेंडमेंट किया जा सकता है?

संविधान के मूल ढांचे को तोड़े बिना भारत के संविधान में अमेंडमेंट किया जा सकता है। जैसा कि केशवानंद भारती मामले में कहा गया था कि प्रिएंबल संविधान का हिस्सा है, इसका मतलब है कि संविधान के प्रिएंबल में अमेंडमेंट किया जा सकता है।

हालांकि अब तक, 1976 में इमरजेंसी की अवधि के दौरान इसमें केवल एक बार अमेंडमेंट किया गया है। यह संशोधन लोकप्रिय रूप से संविधान (42वां) अमेंडमेंट एक्ट, 1976 के रूप में जाना जाता है, जिसे आमतौर पर 42वें अमेंडमेंट, 1976 के रूप में जाना जाता है। इस अमेंडमेंट के परिणामस्वरूप प्रिएंबल की निष्पक्षता और विचारधारा को बढ़ाने के लिए कुछ सिद्धांतों को जोड़ा गया, जैसे,

  1. सोशलिस्ट;
  2. सेक्युलर; और
  3. बिरादरी।

संक्षेप में, हाँ, भारत के संविधान के प्रिएंबल में अमेंडमेंट किया जा सकता है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

  • प्रिएंबल भारत के संविधान का एक अभिन्न अंग है। यह संविधान निर्माताओं की लेजिसलेटिव मंशा को दर्शाता है।
  • यह संविधान के प्रावधानों के होराइजन को व्यापक बनाने में सहायता करता है।
  • यह एक पारंपरिक (कन्वेंशनल) जोड़ नहीं है, बल्कि राजनीति के अत्यधिक मूल्य और महत्व के साथ एक अतिरिक्त है, जिसे भारत एक सामाजिक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है।
  • प्रिएंबल हमारे देश की सर्वोपरि (पैरामाउंट) प्रकृति का कानून है।
  • यह उन मूल्यों, मार्गदर्शक सिद्धांतों और निष्पक्षता पर प्रकाश डालता है जिन पर भारतीय संविधान आधारित है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • (1990) 1 SCC 109
  • (1994) 3 SCC 1
  • (2005) 6 SCC 690
  • AIR 2005 SC 3053
  • (2005) 6 SCC 537
  • In Re: Berubari Union (1) (1960) 3 SCR 250
  • Kesavananda Bharati v. State of Kerala, (1973) 4 SCC 225
  • Indra Sawhney v. Union of India, AIR 1993 SC 477

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