व्यपहरण और अपहरण के बीच अंतर

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Indian Penal Code

यह लेख नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची के छात्र Amit Garg और एमिटी लॉ स्कूल, लखनऊ की छात्रा Pragya Agrahari द्वारा लिखा गया है। लेखक इस लेख के माध्यम से भारतीय दंड संहिता के तहत व्यपहरण (किडनैपिंग) और अपहरण (एब्डक्शन) के बीच के अंतर को सामने लाता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

परिचय

हम अक्सर फिल्मों या धारावाहिकों में देखते हैं कि एक अपराधी किसी भी व्यक्ति को उसके परिवार या प्रिय से फिरौती लेने के लिए जबरदस्ती दूसरी जगह ले जाते हैं। हम आमतौर पर इसे ‘व्यपहरण’ कहते हैं। लेकिन हम ‘अपहरण’ शब्द के बारे में कम जानते हैं। अपहरण व्यपहरण के समान है, लेकिन अपराध का गठन करने के लिए इसे ले जाने के बाद कुछ उद्देश्यों को पूरा करने की आवश्यकता होती है। जबकि व्यपहरण में केवल ले जाने की क्रिया करना ही अपराध होता है।

एनसीआरबी, क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में व्यपहरण और अपहरण के 1,01,707 मामले दर्ज किए गए थे। यह 2020 में दर्ज मामलों की तुलना में, ऐसे मामलों में 19.9% ​​की कमी दर्शाता है। व्यपहरण और अपहरण किए गए लोगों में से 17,605 पुरुष थे, 86,543 महिलाएं थीं और एक ट्रांसजेंडर था। आंकड़ों के अनुसार व्यपहरण और अपहरण के विभिन्न कारण हैं-

  • फिरौती
  • ज़बरदस्ती की शादी
  • हत्या
  • अवयस्क (माइनर) लड़कियों की खरीद
  • भीख मांगने का उद्देश्य
  • विदेशों में लड़कियों का निर्यात (एक्सपोर्टेशन)

इस अपराध का प्रमुख कारण एक लड़की को शादी के लिए मजबूर करना है, यह कारण सभी मामलों का लगभग एक चौथाई हिस्सा है।

भारतीय दंड संहिता, 1860 क्रमशः धारा 359 और धारा 362 में व्यपहरण और अपहरण दोनों अपराधों को परिभाषित करती है। उन्हें मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराधों (आई.पी.सी. का अध्याय XVI, मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराधों से निपटना) के तहत वर्गीकृत (क्लासिफाई) किया गया है।

व्यपहरण और अपहरण के बीच अंतर का अवलोकन

अंतर के आधार व्यपहरण अपहरण
धारा  धारा 359, व्यपहरण के अपराध को परिभाषित करती है। धारा 362 अपहरण के अपराध को परिभाषित करती है।
अर्थ व्यपहरण का अर्थ है किसी अवयस्क या विकृत दिमाग के व्यक्ति को उसकी कानूनी संरक्षकता (गार्डियनशिप) से दूर करना या किसी व्यक्ति को भारत की सीमा से परे ले जाना। अपहरण का तात्पर्य किसी व्यक्ति को बल का प्रयोग करके या किसी धोखेबाज तरीके से उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए मजबूर करना या प्रेरित करना है।
अपराध की प्रकृति यह लगातार चलने वाला अपराध नहीं है। यह उस समय ही पूरा हो जाता है जब कोई व्यक्ति अपनी वैध संरक्षकता से अलग हो जाता है। यह एक सतत (कंटिन्यूइंग) अपराध है। यह तब तक जारी रहता है जब तक व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाया जाता है।
प्रकार धारा 359 दो प्रकार के व्यपहरण को परिभाषित करती है:

  1. भारत से व्यपहरण (धारा 360)
  2. वैध संरक्षकता से व्यपहरण (धारा 361)
धारा 362 केवल एक प्रकार के अपहरण को परिभाषित करती है।
पक्षों का उल्लेख इसमें अवयस्क अर्थात, 18 वर्ष की आयु तक की लड़कियां या 16 वर्ष की आयु तक के लड़के, या विकृत (अनसाउंड) दिमाग के व्यक्ति और एक वैध संरक्षक शामिल हैं।  यह किसी भी उम्र के व्यक्ति के संदर्भ में हो सकता है। 
उपयोग किया गया तरीका उपयोग किए गए साधन सारहीन (इममैटेरियल) हैं। बल, विवशता या छलपूर्ण साधन शामिल होना चाहिए।
सहमति की प्रकृति “वैध संरक्षकता से व्यपहरण” के मामले में, अपराध करने को तय करने के लिए एक वैध संरक्षक की सहमति प्रासंगिक (रिलेवेंट) है। लेकिन “भारत से व्यपहरण” के मामले में, यह दिखाया जाना चाहिए कि यह उस व्यक्ति या उस व्यक्ति की ओर से सहमति देने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत व्यक्ति की सहमति के बिना किया गया था। व्यक्ति की सहमति, बल या मजबूरी या छल के साधनों से प्रेरित होती है।
इरादा व्यपहरण करने वाले का इरादा सारहीन है। अपराध करने का इरादा जरूरी है।
अपराध का प्रकार यह एक मूल अपराध है। इसका मतलब है कि केवल ले जाने का कार्य अपहरण का गठन करता है। यह मूल अपराध नहीं है। यह एक अपराध का गठन करता है जब यह अन्य अपराध करने के इरादे से किया गया था।
सज़ा धारा 363 व्यपहरण के लिए सजा का प्रावधान करती है जो कि कारावास है जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना लगाया जा सकता है। केवल अपहरण तब तक दंडनीय नहीं है जब तक कि धारा 364 से 369 में प्रदान किए गए अन्य अपराध करने के इरादे से ऐसा नहीं किया जाता है ।
चित्रण A, 16 वर्ष की एक लड़की, B को उसके वैध संरक्षक की सहमति के बिना उसकी संरक्षकता से ले जाता है। A ने व्यपहरण किया है। A, B को विवाह के लिए विवश करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए बलपूर्वक प्रेरित करता है। A ने अपहरण किया है।

व्यपहरण

‘व्यपहरण’ जिसे अंग्रेजी में किडनैपिंग कहा जाता है वह दो शब्दों से बना है, ‘किड’, जिसका अर्थ है बच्चा और नेपिंग’, जिसका अर्थ है चोरी करना। इस प्रकार, इसका शाब्दिक अर्थ है एक बच्चे की चोरी करना। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 359 व्यपहरण को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करती है:

  1. भारत से व्यपहरण
  2. वैध संरक्षकता से व्यपहरण  

भारत में व्यपहरण का अपराध केवल बच्चों की चोरी तक ही सीमित नहीं है। इसमें 16 साल से कम उम्र के पुरुषों या 18 साल से कम उम्र की महिलाओं के मामले में किसी इंसान को उसकी सहमति के बिना या कानूनी संरक्षकों की सहमति के बिना ले जाने के कार्य को शामिल करने की व्यापक गुंजाइश दी गई है।

ठाकोरलाल डी. वडगामा बनाम गुजरात राज्य (1973) के मामले में, जहां आरोपी, ठाकोर लाल को धारा 363 के तहत व्यपहरण के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था। उसने एक अवयस्क लड़की, मोहिनी को उसके पिता की वैध संरक्षकता से व्यपहरण कर लिया और उसे उसके पिता का स्थान छोड़ने के लिए प्रेरित किया और उसे प्रोत्साहित किया कि वह उसे आश्रय देगा। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि केवल ऐसी परिस्थितियां, कि उसकी कार्रवाई के कारण वह तुरंत अपने माता-पिता का घर नहीं छोड़ती, आरोपी के लिए उसे व्यपहरण के अपराध से मुक्त करने का बचाव नहीं होगा। 

व्यपहरण के प्रकार

भारत से व्यपहरण

धारा 360 में भारत से व्यपहरण का प्रावधान है। इसमें कहा गया है, “जो कोई भी उस व्यक्ति की सहमति के बिना, भारत की सीमा से परे किसी व्यक्ति को, या उस व्यक्ति की ओर से सहमति के लिए, कानूनी रूप से अधिकृत किसी व्यक्ति को ले जाता है, उस व्यक्ति को भारत से व्यपहरण करने के लिए कहा जाता है।”

इस अपराध को गठित करने के लिए आवश्यक तत्व हैं-

  • व्यक्ति को भारत की सीमाओं से परे पहुंचाना,
  • ऐसे व्यक्ति या उस व्यक्ति की ओर से सहमति देने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत व्यक्ति की सहमति के बिना यह करना। 

इस धारा के तहत अपराध तब तक पूरा नहीं होगा जब तक कि व्यक्ति वास्तव में न केवल एक विदेशी क्षेत्र बल्कि अपने गंतव्य (डेस्टिनेशन) तक भी पहुंच जाता है। धारा 361 के विपरीत, यह अपराध अवयस्कों या विकृत दिमाग के व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है। यह राष्ट्रीयता और उम्र के बावजूद, किसी भी व्यक्ति, पुरुष या महिला, व्यस्क (मेजर) या अवयस्क के खिलाफ किया जा सकता है। 

वैध संरक्षकता से व्यपहरण  

धारा 361 में वैध संरक्षकता से व्यपहरण का प्रावधान है। इसमें कहा गया है, “जो कोई भी व्यक्ति , 16 साल से कम उम्र के किसी भी अवयस्क पुरुष को, या 18 साल से कम उम्र की किसी भी अवयस्क महिला को, या विकृत दिमाग के किसी भी व्यक्ति को, ऐसे अवयस्क या विकृत दिमाग के व्यक्ति के विधिपूर्ण संरक्षक से, उनकी की सहमति के बिना ले ले जाता है, तो ऐसे अवयस्क या व्यक्ति को वैध संरक्षकता से व्यपहरण करने वाला कहा जाता है।” 

इस अपराध को गठित करने के लिए आवश्यक तत्व हैं-

  • अवयस्क या विकृत दिमाग के व्यक्ति को ले जाना या बहकाना,
  • ऐसे अवयस्क की आयु, पुरुष के मामले में 16 वर्ष से कम या महिला के मामले में 18 वर्ष से कम होनी चाहिए,
  • वैध संरक्षक से ले जाना या लुभाना,
  • कानूनी संरक्षक की सहमति के बिना।

इस धारा के तहत अपराध तभी पूरा हो जाता है जब अवयस्क या विकृत दिमाग के व्यक्ति को वास्तव में कानूनी संरक्षकता से हटा दिया जाता है। इसके अलावा, इस अपराध के संबंध में अवयस्कों की सहमति पूरी तरह से महत्वहीन है। इस धारा के तहत प्रदान किया गया एक अपवाद यह है कि यदि कोई व्यक्ति सद्भाव में खुद को एक नाजायज बच्चे का पिता मानता है या खुद को ऐसे बच्चे की संरक्षकता का हकदार मानता है, और बच्चे को उनकी सहमति के बिना वैध संरक्षकता की हिरासत से बाहर ले जाता है, लेकिन किसी भी गैरकानूनी या अनैतिक उद्देश्यों के लिए नहीं, तो इस धारा के तहत उसे दायित्व से छूट दी जाएगी। 

भीख मांगने के लिए अपहरण (धारा 363A)

धारा 363A, भारतीय दंड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1959 द्वारा सम्मिलित (इंसर्ट) की गई थी और 15 जनवरी 1960 को लागू हुई थी। यह धारा भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के दायरे को आगे बढ़ाती है, जो “भीख मांगने के उद्देश्य से व्यपहरण या अवयस्क को अपंग करने के लिए सजा का प्रावधान करती है।” यह ऐसे अपराध के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करती है, जहां अवयस्क को भीख मांगने के लिए अपहरण के लिए 10 वर्ष तक की अवधि तक के कारावास और जुर्माने से दंडित किया जाता है और भीख मांगने के लिए अवयस्क को अपंग करने के लिए आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकता है। 

इस अपराध के मुख्य तत्व हैं-

  • अवयस्क का व्यपहरण या उसे अपंग होना चाहिए,
  • व्यपहरणकर्ता एक वैध संरक्षक नहीं होना चाहिए,
  • व्यपहरणकर्ता को ऐसे अवयस्क की कस्टडी लेनी चाहिए,
  • अवयस्क का इस्तेमाल भीख मांगने के लिए किया जाना चाहिए।   

क्या व्यपहरण जमानती है? 

धारा 363 एक जमानती अपराध है, यानी आरोपी अपने अधिकार के तहत जमानत का दावा कर सकता है। लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य में इस अपराध के लिए कड़े कानून हैं। इसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 1983 (धारा 12) के बाद उत्तर प्रदेश में गैर-जमानती घोषित किया गया है ।

इसके अलावा, किशोर (जुवेनाइल) न्याय अधिनियम (बच्चों की देखभाल और संरक्षण), 2015 की धारा 86 के अनुसार, व्यपहरण का अपराध गैर-जमानती हो जाता है जबकि यह भारतीय दंड संहिता के तहत जमानती है। अधिनियम की धारा 84 भी व्यपहरण के अपराध के लिए पुरुष की आयु पर 16 वर्ष की ऊपरी सीमा को हटाती है और लिंग की परवाह किए बिना, किसी भी ऐसे व्यक्ति पर लागू होती है जो 18 वर्ष से कम उम्र का है, जिसका एक वैध संरक्षक से व्यपहरण किया गया है।  

काशीर अहमद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2018) के मामले में व्यपहरण के आरोपी को जमानत मिल गई है। अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) पक्ष के अनुसार, आरोपी ने शादी के बहाने 16 वर्षीय लड़की का व्यपहरण कर लिया और उसे सहारनपुर ले गया, जहां उसने कथित तौर पर तीन दिनों तक उसके साथ बलात्कार किया। लेकिन पीड़िता के साक्ष्य और परीक्षण के बाद, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता का आरोपी के साथ दोस्ताना संबंध था और वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी। इसलिए अदालत ने बॉन्ड और श्योरिटी के बाद आरोपी को जमानत दे दी।  

आम लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि व्यपहरण जैसी जघन्य (हीनियस) चीज को कैसे जमानती बना दिया गया है। जमानत के संबंध में संजय चंद्र बनाम सीबीआई (2011) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों का इस्तेमाल ऐसी झूठी धारणा का जवाब देने के लिए किया जा सकता है-

“जमानत का उद्देश्य आरोपी व्यक्ति को उसके मुकदमे में उचित जमानत राशि देकर उपस्थित होना है। जमानत का उद्देश्य न तो दंडात्मक है और न ही निवारक है।”

व्यपहरण संज्ञेय (कॉग्निजेबल) है या असंज्ञेय (नॉन कॉग्निजेबल)?

भारतीय दंड संहिता के तहत धारा 363 संज्ञेय है, अर्थात पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट द्वारा जारी वारंट के बिना भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं। आरोपी की गिरफ्तारी के बाद, उसे 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए, जिसमें आरोपी को मजिस्ट्रेट के कार्यालय तक ले जाने में यात्रा का समय शामिल नहीं होता है। व्यपहरण का अपराध प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

व्यपहरण कंपाउंडेबल है या नहीं?

भारतीय दंड संहिता की धारा 363 की प्रकृति नॉन कंपाउंडेबल है, अर्थात व्यपहरण के अपराध में पक्षों के बीच समझौता नहीं किया जा सकता है। हालांकि, कुछ विशेष मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय के पास नॉन कंपाउंडेबल अपराधों की कंपाउंडेबिलिटी को निर्देशित करने की शक्ति हो सकती है।  

इसके अलावा, राम पूजन बनाम यूपी राज्य (1973) के मामले में, उच्च न्यायालय ने नॉन कंपाउंडेबल अपराधों में पक्षों के बीच समझौते को देखते हुए कारावास की अवधि को कम कर दिया था। फिर, मामला सर्वोच्च न्यायालय में आया, जहां अदालत ने कहा कि: ” जिस प्रमुख अपराध के लिए अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया है, वह निस्संदेह नॉन कंपाउंडेबल है, लेकिन सजा की मात्रा निर्धारित करने में समझौते के तथ्य को ध्यान में रखा जा सकता है।”

अपहरण

अपहरण का अर्थ है किसी अपराध को करने के उद्देश्य से छल-कपट का प्रयोग करके किसी व्यक्ति को ले जाना। 

इस अपराध को गठित करने के लिए आवश्यक तत्व हैं-

  • जबरदस्ती बल का प्रयोग या किसी कपटपूर्ण साधन का प्रयोग,
  • व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेरित करना,
  • कोई अपराध करने के इरादे से।

अपहरण के अपराध को गठित करने के लिए बल या विवशता आवश्यक है। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि कोई लड़की स्वेच्छा से किसी व्यक्ति के साथ बिना किसी बल या मजबूरी के बाहर जाती है तो उस व्यक्ति पर अपहरण का मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। 

‘धोखेबाज साधनों’ का उपयोग न केवल धोखाधड़ी या गलत बयानी को शामिल करेगा, बल्कि किसी को बहाने से प्रेरित करके ले जाने का कार्य भी करेगा। 

कविता चंद्रकांत लखानी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018) के मामले में, यह अच्छी तरह से स्थापित किया गया था कि केवल एक महिला का अपहरण अपराध को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता कि आरोपी ने महिला का अपहरण उसको जबरदस्ती शादी करने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संभोग के लिए मजबूर करने या बहकाने के इरादे से किया था।

व्यपहरण और अपहरण में अंतर

पीड़ित व्यक्ति की आयु

  • व्यपहरण के मामले में, पीड़ित व्यक्ति की आयु आई.पी.सी. की धारा 361 के अनुसार पुरुषों के मामले में 16 और महिलाओं के मामले में 18 वर्ष है (जैसा कि हरियाणा राज्य बनाम राजा राम के मामले में देखा गया है)।
  • अपहरण के मामले में उम्र नाम की कोई चीज नहीं होती है। किसी भी व्यक्ति ने या तो बलपूर्वक किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी स्थान से जाने के लिए मजबूर किया या प्रेरित किया, चाहे वह किसी भी उम्र का हो, तो अपहरण के तहत मामला दर्ज किया जाएगा (जैसा कि बहादुर अली बनाम किंग एंपरर के मामले में देखा गया था)।

वैध संरक्षकता से हटाना

  • यहां वैध संरक्षकता में कोई भी ऐसा व्यक्ति शामिल होगा जिसे कानून द्वारा उस व्यक्ति की देखभाल करने के लिए अधिकृत किया गया है जिसने अभी तक वयस्कता की आयु प्राप्त नहीं की है। एक वैध संरक्षक माता-पिता, ससुराल वाले आदि हो सकते हैं।
  • जैसा कि व्यपहरण में, व्यपहरण किए जा रहे व्यक्ति की उम्र को ध्यान में रखा जाता है, अपराध में एक वैध व्यक्ति की संरक्षकता से हटाना शामिल है, जिसे कानून द्वारा ऐसे अवयस्क की देखभाल करने के लिए अधिकृत किया गया है।
  • चूंकि अपहरण केवल उसी व्यक्ति को मानता है जिसका अपहरण किया गया है, इसलिए वैध संरक्षकता चित्र में नहीं आती है।

साधन

  • व्यपहरण में व्यपहरणकर्ता द्वारा ले जाना या बहलाना शामिल है। इस तरह के उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने वाले साधन अप्रासंगिक हैं।
  • अपहरण के मामले में इस्तेमाल किया जाने वाला साधन बल, मजबूरी या छलपूर्ण साधन हो सकता है।

अनुमति

  • व्यपहरण के मामले में, व्यपहृत व्यक्ति की सहमति महत्वहीन है क्योंकि व्यपहरण किया जा रहा व्यक्ति अवयस्क है और कानून के अनुसार, ऐसा व्यक्ति स्वतंत्र सहमति प्रदान करने में असमर्थ है। व्यक्ति से प्राप्त सहमति सही नही होगी (जैसा कि हरियाणा राज्य बनाम राजा राम के मामले में देखा गया है)।
  • अपहरण के मामले में, अपहृत व्यक्ति की सहमति आरोपी को उसके खिलाफ आरोपित अपराध से माफ कर देती है।

आरोपी का इरादा

  • व्यपहरण के मामले में, अवयस्क का व्यपहरण करने वाले व्यक्ति का इरादा आरोपी द्वारा किए गए अपराध के लिए महत्वहीन है (जैसा कि रानी बनाम राजकुमार के मामले में देखा गया था)।
  • अपहरण के मामले में, अपहरण करने वाले व्यक्ति की मंशा आरोपी व्यक्ति के अपराध को निर्धारित करने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है।

सज़ा

  • व्यपहरण एक गंभीर अपराध है। आई.पी.सी. की धारा 363 में वर्णनात्मक अवधि के लिए व्यपहरण के लिए सजा का प्रावधान है जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
  • भारतीय दंड संहिता के तहत अपहरण के लिए प्रदान किए गए कुछ विशिष्ट दंड हैं:
व्यपहरण के प्रकार सज़ा आई.पी.सी. की धारा
भीख मांगने के लिए व्यपहरण 10 साल + जुर्माना 363A
हत्या के लिए व्यपहरण 10 साल + जुर्माना 364
फिरौती के लिए व्यपहरण 10 साल + जुर्माना 364A
किसी व्यक्ति को गलत तरीके से कैद करने के इरादे से व्यपहरण 7 साल + जुर्माना 365
महिला को शादी के लिए मजबूर करने के लिए व्यपहरण 10 साल + जुर्माना 366
व्यपहरण ताकि किसी व्यक्ति को गंभीर चोट लगे 10 साल + जुर्माना 367
किसी व्यक्ति से चोरी करने के लिए 10 साल से कम उम्र के बच्चे का अपहरण 7 साल + जुर्माना 369
  • अपहरण केवल एक सहायक कार्य है और अपने आप में दंडनीय नहीं है। इसलिए, भारतीय दंड संहिता में अपहरण के लिए कोई सामान्य सजा नहीं है।
  • लेकिन कुछ विशिष्ट प्रकार के अपहरण निम्नलिखित दंडों को आकर्षित करते हैं:
अपहरण के प्रकार सज़ा आई.पी.सी. की धारा
हत्या के लिए अपहरण 10 साल + जुर्माना 364
किसी व्यक्ति को गलत तरीके से सीमित करने के इरादे से अपहरण 7 साल + जुर्माना 365
महिला को शादी के लिए मजबूर करने के लिए किया अपहरण 10 साल + जुर्माना 366
अपहरण ताकि किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचे 10 साल + जुर्माना 367
किसी व्यक्ति से चोरी करने के लिए 10 साल से कम उम्र के बच्चे का अपहरण 7 साल + जुर्माना 369

अपराध की निरंतरता (कंटिन्यूटी)

  • व्यपहरण एक निरंतर अपराध नहीं है। जैसे ही आरोपी व्यक्ति, एक व्यक्ति को उसकी वैध संरक्षकता से हटा देता है, अपराध किया गया कहा जाता है।
  • अपहरण एक निरंतर प्रक्रिया है और इस प्रकार अपहरण किए गए व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हटा दिया जाता है।

संदर्भ

  • K.D.Gaur, “Textbook on Indian Penal Code’, Universal Lexis Nexis (7th Edition).

 

 

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