इंटरनेशनल लॉ के तहत स्टेट की मान्यता

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International Law
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यह लेख राजस्थान के बनस्थली विद्यापीठ की छात्रा Pankhuri Anand ने लिखा है। यह लेख इंटरनेशनल लॉ के तहत एक स्टेट की मान्यता (रिकॉग्निशन) और स्टेट की मान्यता के तरीकों, सिद्धांतों और प्रकारों पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय (कम्युनिटी) एक अंतर्राष्ट्रीय मंच (प्लेटफॉर्म) पर सोवरेन स्टेट्स का समुदाय है। किसी भी स्टेट के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानून के अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों (ऑब्लिगेशन) का आनंद लेने और अंतराष्ट्रीय समुदाय का सदस्य होने के लिए, एक स्टेट के रूप में इकाई (एंटिटी) की मान्यता बहुत महत्वपूर्ण है। एक स्टेट के रूप में इकाई की मान्यता के बाद ही, इसे अन्य स्टेट्स द्वारा स्वीकार किया जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्य हैं। इंटरनेशनल लॉ, मान्यता के कार्य को मौजूदा स्टेट समुदाय के एक स्वतंत्र कार्य के रूप में मानता है।

स्टेट की मान्यता 

इंटरनेशनल लीगल सिस्टम के तहत स्टेट की मान्यता को “अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के मौजूदा स्टेट्स द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व (पर्सनेलिटी) के रूप में एक नए स्टेट की औपचारिक (फॉर्मल) स्वीकृति” के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह मौजूदा स्टेट द्वारा स्वीकृति है कि एक राजनीतिक इकाई में स्टेटहुड की विशेषताएं हैं।

एक स्टेट के रूप में मान्यता के एसेंशियल्स:

इंटरनेशनल लॉ के तहत, मोंटेवीडियो कांफ्रेंस, 1933 के आर्टिकल 1 में स्टेट को एक व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और स्टेट के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए एक इकाई के निम्नलिखित एसेंशियल्स हैं:

  1. इसकी एक स्थायी (पर्मानेंट) आबादी होनी चाहिए। (पर्मानेंट पॉपुलेशन)
  2. एक निश्चित क्षेत्र को इसके द्वारा नियंत्रित (कंट्रोल) किया जाना चाहिए। (डेफिनेट टेरिटरी)
  3. इस विशेष क्षेत्र की एक सरकार होनी चाहिए। (गवर्नमेंट)
  4. इस इकाई में अन्य स्टेट्स के साथ संबंध स्थापित करने की क्षमता होनी चाहिए। (कैपेसिटी टू एंटर इंटू रिलेशंस विथ अदर स्टेट्स)

ऐसी मान्यता के कानूनी प्रभाव

जब कोई स्टेट मान्यता प्राप्त करता है, तो उसे कुछ अधिकार, दायित्व और प्रतिरक्षा (इम्यूनिटीज) प्राप्त होती है, जैसे कि:

  1. यह अन्य स्टेट्स के साथ डिप्लोमेटिक संबंधों में प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त करता है।
  2. यह अन्य स्टेट्स के साथ ट्रीटीज में प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त करता है।
  3. स्टेट अंतर्राष्ट्रीय स्टेटहुड के अधिकारों और विशेषाधिकारों (प्रिविलेज) का आनंद लेने में सक्षम होता है।
  4. स्टेट में स्टेट सक्सेशन हो सकता है।
  5. स्टेट की मान्यता के साथ मुकदमा करने और स्टेट के खिलाफ मुकदमा होने का अधिकार आता है।
  6. स्टेट युनाइटेड नेशन्स ऑर्गेनाइजेशन का सदस्य बन सकता है।

मान्यता की थ्योरीज़

एक साॅवरेन स्टेट के रूप में एक नई इकाई की मान्यता दो मुख्य थ्योरीज़ पर आधारित 

1. कंसीक्यूटिव थ्योरी

इस थ्योरी से संबंधित मुख्य एक्सपोनेंट ओपेनहेम, हेगल और अंज़िलोटी हैं।

इस थ्योरी के अनुसार, एक स्टेट को एक अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति के रूप में मान्यता देने के लिए, मौजूदा स्टेट्स के द्वारा एक साॅवरेन के रूप में इसकी मान्यता आवश्यक है। इस थ्योरी का विचार है कि मान्यता के बाद ही किसी स्टेट को एक अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति का दर्जा प्राप्त होता है और वह इंटरनेशनल लॉ का विषय बन जाता है। इसलिए, भले ही एक इकाई के पास स्टेट की सभी विशेषताएं हों, उसे मौजूदा स्टेट्स द्वारा मान्यता प्राप्त होने तक एक अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति का दर्जा नहीं मिलता है।

इस थ्योरी का मतलब यह नहीं है कि एक स्टेट का अस्तित्व तब तक नहीं है जब तक उसे मान्यता नहीं दी जाती है, लेकिन इस थ्योरी के अनुसार, एक स्टेट को केवल एक्सक्लूजिव अधिकार और दायित्व मिलते हैं और अन्य मौजूदा स्टेट्स द्वारा मान्यता के बाद इंटरनेशनल लॉ का विषय बन जाता है।

थ्योरी का क्रिटिसिज्म

इस थ्योरी को कई ज्यूरिस्ट्स ने क्रिटिसाइज किया है। इस थ्योरी के कुछ क्रिटिसिज्म निम्न हैं:

  • इस थ्योरी को क्रिटिसाइज किया जाता है क्योंकि जब तक किसी स्टेट को अन्य मौजूदा स्टेट्स द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है, इंटरनेशनल लॉ के तहत स्टेट समुदाय के अधिकार, कर्तव्य और दायित्व उस पर लागू नहीं होते हैं।
  • यह थ्योरी तब भी भ्रम पैदा करती है जब एक नए स्टेट को कुछ मौजूदा स्टेट्स द्वारा स्वीकार और मान्यता दी जाती है और अन्य स्टेट्स द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होती है।

2. डिक्लेरेटरी थ्योरी

स्टेटहुड की डिक्लेरेटरी थ्योरी के मुख्य एक्सपोनेन्ट विग्नर, हॉल, फिशर और ब्रियरली हैं। इस थ्योरी के अनुसार, कोई भी नया स्टेट मौजूदा स्टेट्स की सहमति से स्वतंत्र होता है। यह थ्योरी 1933 के मोंटेवीडियो कॉन्फ्रेंस के आर्टिकल 3 के तहत निर्धारित की गई है। इस सिद्धांत में कहा गया है कि एक नए स्टेट का अस्तित्व मौजूदा मान्यता प्राप्त होने पर निर्भर नहीं करता है। अन्य स्टेट्स द्वारा मान्यता प्राप्त होने से पहले ही, नए स्टेट को इंटरनेशनल लॉ के तहत अपनी अखंडता (इंटीग्रिटी) और स्वतंत्रता की रक्षा करने का अधिकार है।

थ्योरी के फॉलोअर्स मान्यता की प्रक्रिया को अन्य स्टेट्स द्वारा स्टेटहुड की औपचारिक स्वीकृति मानते हैं।

थ्योरी के क्रिटिसिज्म

स्टेटहुड की डेक्लेरेटरी थ्योरी को भी क्रिटिसाइज किया गया है। इस थ्योरी का क्रिटिसिज्म इस आधार पर किया गया है कि यह थ्योरी अकेले किसी स्टेट की मान्यता के लिए लागू नहीं हो सकती है। जब एक स्टेट के रूप में आवश्यक विशेषताओं वाला स्टेट अस्तित्व में आता है, तो वह अंतर्राष्ट्रीय अधिकारों और दायित्वों का प्रयोग कर सकता है और यहां डिक्लेरेटरी थ्योरी का आवेदन (एप्लीकेशन) आता है, लेकिन जब अन्य स्टेट इसके अस्तित्व को स्वीकार करते हैं और स्टेट को मान्यता के कानूनी अधिकार मिलते हैं, तो कंजीक्यूटिव थ्योरी लागू होती है।

मान्यता के तरीके

स्टेट की मान्यता के दो तरीके हैं:

1. डी-फैक्टो मान्यता

डी-फैक्टो मान्यता स्टेट हुड के दर्जे की एक प्रोविजनल मान्यता है। यह डी-ज्यूरे मान्यता के लिए एक प्राथमिक (प्राइमरी) कदम है। यह एक स्टेट के रूप में एक अस्थायी (टेंपरेरी) और तथ्यात्मक (फैक्चूअल) मान्यता है, और यह या तो किसी शर्त के साथ या बिना किसी शर्त के हो सकती है।

इस तरीके की मान्यता तब दी जाती है जब एक नया स्टेट पर्याप्त क्षेत्र रखता है और किसी विशेष क्षेत्र पर नियंत्रण रखता है, लेकिन अन्य मौजूदा स्टेट मानते हैं कि इसमें पर्याप्त स्थिरता (स्टेबिलिटी) नही है या कोई अन्य अनसेटलिंग मुद्दे हैं। इसलिए, हम इसे नवगठित (न्यूली फॉर्म्ड) स्टेट्स के लिए नियंत्रण की परीक्षा के रूप में मान सकते हैं। डी-फैक्टो मान्यता एक नॉन-कमिटल कार्य द्वारा एक नए स्टेट को स्वीकार करने की एक प्रक्रिया है।

डी-फैक्टो मान्यता वाले स्टेट यूनाइटेड नेशन्स के सदस्य होने के योग्य नहीं हैं, जैसे, इज़राइल, ताइवान, बांग्लादेश।

2. डी-ज्यूरे मान्यता

डी-ज्यूरे मान्यता मौजूदा स्टेट द्वारा एक नए स्टेट की मान्यता है जब वे मानते हैं कि नया स्टेट एक स्टेट की सभी एसेंशियल विशेषताओं को पूरा करता है। डी-ज्यूरे मान्यता या तो डी-फैक्टो मान्यता के साथ या उसके बिना दी जा सकती है। इस तरीके से मान्यता तब दी जाती है जब नवगठित स्टेट स्थायी स्थिरता और स्टेटहुड प्राप्त कर लेता है। डी-ज्यूरे मान्यता एक नवगठित स्टेट को एक साॅवरेन स्टेट के रूप में स्थायी दर्जा देती है।

लूथर बनाम सागर के मामले में यह माना गया था कि मान्यता प्राप्त प्राधिकारी (अथॉरिटी) के आंतरिक (इंटरनल) कार्यों को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से डी-फैक्टो और डी-ज्यूरे के बीच कोई अंतर नहीं है।

डी-फैक्टो और डी-ज्यूरे मान्यता के उदाहरण:

  • डी फैक्टो और डी ज्यूरे मान्यता के उदाहरणों में से एक सोवियत यूनियन की मान्यता 1917 में स्थापित (एस्टेब्लिश) की गई थी। इसे 1921 में यू.के. की सरकार द्वारा डी फैक्टो मान्यता दी गई थी, लेकिन इसे 1924 तक डी ज्यूरे मान्यता नहीं दी गई थी।
  • बांग्लादेश की स्थापना मार्च 1971 में हुई थी। भारत और भूटान ने इसे स्थापना के 9 महीने बाद ही मान्यता दी थी लेकिन अमेरिका ने इसे लगभग 1 साल बाद अप्रैल 1972 में कानूनी मान्यता दी थी।

डी-फैक्टो और डी-ज्यूरे मान्यता के बीच अंतर

क्र.सं. डी-फैक्टो मान्यता डी-ज्यूरे मान्यता
1 डी-फैक्टो मान्यता एक प्रोविजनल और तथ्यात्मक मान्यता है। डी-ज्यूरे मान्यता कानूनी मान्यता है।
2 डी-फैक्टो मान्यता तब दी जाती है जब स्टेटहुड की एसेंशियल शर्तों को पूरा किया जाता है। डी-ज्यूरे मान्यता तब दी जाती है जब स्टेट पर्याप्त नियंत्रण और स्थायित्व (पर्मानेंसी) के साथ स्टेट्स की सभी एसेंशियल शर्तों को पूरा करता है।
3 डी-ज्यूरे मान्यता प्रदान करने की दिशा में डी-फैक्टो मान्यता एक प्राथमिक कदम है। डी-ज्यूरे मान्यता, डी-फैक्टो मान्यता के साथ या उसके बिना दी जा सकती है।
4 डी-फैक्टो मान्यता या तो शर्त के साथ  या बिना किसी शर्त के हो सकती है। डी-ज्यूरे मान्यता एक अंतिम और बिना किसी शर्त के मान्यता है।
5 डी-फैक्टो मान्यता प्रकृति में रिवोकेबल है। डी-ज्यूरे मान्यता नॉन-रिवोकेबल है।
6 इस तरीके से मान्यता प्राप्त स्टेट्स के पास अन्य स्टेट्स के खिलाफ कुछ ही अधिकार और दायित्व हैं। इस तरीके से मान्यता प्राप्त स्टेट के पास अन्य स्टेट्स के खिलाफ पूर्ण अधिकार और दायित्व हैं।
7 स्टेट वास्तव में स्टेट के सक्सेशन से नहीं गुजर सकता है। डी-ज्यूरे मान्यता वाला स्टेट, स्टेट के सक्सेशन के अधीन हो सकता है।
8. डी-फैक्टो मान्यता वाला स्टेट पूर्ण डिप्लोमेटिक प्रतिरक्षा का आनंद नहीं ले सकते है। डी-ज्यूरे मान्यता वाले स्टेट पूर्ण डिप्लोमेटिक प्रतिरक्षा का आनंद ले सकते है।

मान्यता के प्रकार

जब एक नवगठित स्टेट को मान्यता दी जाती है, तो इसकी घोषणा (डिक्लेरेशन) दो प्रकारों में की जा सकती है:

1. एक्सप्रेस्ड मान्यता

जब कोई मौजूदा स्टेट किसी नए स्टेट को आधिकारिक (ऑफिशियल) घोषणा या अधिसूचना (नोटिफिकेशन) के माध्यम से एक्सप्रेसली मान्यता देता है, तो इसे मान्यता का एक्सप्रेस प्रकार माना जाता है। एक्सप्रेस मान्यता किसी भी एक्सप्रेस या औपचारिक माध्यम से की जा सकती है, जैसे विरोधी पक्ष को घोषणा या बयान भेजना या प्रकाशित (पब्लिश) करना। जब किसी स्टेट को एक्सप्रेस तरीकों से पहचाना जाता है, तो यह एक डी ज्यूरे मान्यता है जब तक कि घोषणा में मान्यता देने वाले स्टेट द्वारा अन्यथा प्रदान नहीं किया जाता है।

2. इंप्लाइड मान्यता

जब मौजूदा स्टेट किसी इंप्लाइड कार्य के माध्यम से एक नवगठित स्टेट को मान्यता देता है, तो इसे एक इंप्लाइड मान्यता के रूप में माना जाता है। इंप्लाइड मान्यता किसी भी इंप्लाइड माध्यम से दी जा सकती है जिसके द्वारा एक वर्तमान स्टेट नवगठित स्टेट को एक अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति के रूप में मानता है। इंप्लाइड क्रेडिट किसी आधिकारिक अधिसूचना या घोषणा के माध्यम से प्रदान नहीं किया गया है। इंप्लाइड साधनों के माध्यम से मान्यता हर मामले में भिन्न होती है।

सशर्त मान्यता (कंडीशनल रिकॉग्नीशन)

स्टेट की मान्यता जिसके साथ एक साॅवरेन स्टेट के रूप में अपनी स्थिति प्राप्त करने के लिए कुछ शर्तें जुड़ी हुई हैं, वो सशर्त मान्यता है। शर्तें एक स्टेट से दूसरे स्टेट में भिन्न होती हैं जैसे कि धार्मिक स्वतंत्रता, कानून का शासन, लोकतंत्र (डेमोक्रेसी), मानवाधिकार (ह्यूमन राईट) आदि। किसी भी स्टेट की मान्यता पहले से ही एक सॉवरेन स्टेट की स्थिति के लिए पूरी की जाने वाली एसेंशियल शर्तों से जुड़ी होती है, लेकिन जब अतिरिक्त (एडिशनल) शर्त जुड़ी है तो यह सशर्त मान्यता है।

क्रिटिसिज्म

कई ज्यूरिस्ट्स, सशर्त मान्यता को क्रिटिसाइज करते हैं। सशर्त मान्यता का क्रिटिसिज्म इस आधार पर किया जाता है कि मान्यता एक कानूनी प्रक्रिया है, और इसके साथ कानून द्वारा मान्यता प्राप्त शर्तों के अलावा कोई अतिरिक्त शर्तें नहीं जोड़ी जानी चाहिए। क्रिटिसिज्म का एक अन्य कारण यह है कि मान्यता प्राप्त स्टेट यदि अपनी मान्यता के लिए जुड़ी हुई शर्त को पूरा नहीं करता है, तो मान्यता समाप्त नहीं होती है और यह अभी भी मान्य होती है।

मान्यता का विड्रॉल

1. डी फैक्टो मान्यता का विड्रॉल

इंटरनेशनल लॉ के तहत जब डी-फैक्टो मान्यता वाला स्टेट, स्टेटहुड की एसेंशियल शर्तों को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसकी मान्यता विड्रॉ की जा सकती है। मान्यता प्राप्त स्टेट द्वारा घोषणा के माध्यम से या मान्यता प्राप्त स्टेट्स के अधिकारियों के साथ संवाद (कम्युनिकेट) के माध्यम से मान्यता विड्रॉ जा सकती है। सार्वजनिक बयान जारी करके भी विड्रॉल किया जा सकता है।

2. डी ज्यूरे मान्यता का विड्रॉल

इंटरनेशनल लॉ के तहत डी ज्यूरे मान्यता को विड्रॉ करना एक बहस का मुद्दा है। डी ज्यूरे मान्यता को विड्रॉल करना एक बहुत ही असाधारण घटना है। यदि पूरी तरह से व्याख्या की जाए, तो डी ज्यूरे मान्यता को विड्रॉ किया जा सकता है।

भले ही मान्यता की प्रक्रिया एक राजनीतिक कार्य है, पर डी-ज्यूरे मान्यता कानूनी प्रकृति की है। डी-ज्यूरे मान्यता को एक राजनीतिक कार्य के रूप में मानने वाले ज्यूरिस्ट इसे रिवोकेबल मानते हैं। डी-ज्यूरे मान्यता प्राप्त स्टेट्स के इस तरह के रिवोकेशन को तभी वापस लिया जा सकता है जब कोई स्टेट, स्टेटहुड की एसेंशियल विशेषताओं या किसी अन्य असाधारण परिस्थितियों को खो देता है। इस प्रकार के रिवोकेशन, एक्सप्रेसली मान्यता प्राप्त स्टेट द्वारा एक सार्वजनिक बयान जारी करके किया जा सकता है।

सरकार की मान्यता

किसी भी स्टेट के लिए, सरकार एक महत्वपूर्ण तत्व (एलिमेंट) है। जब कोई स्टेट बनता है तो उसकी सरकार समय-समय पर बदलती रहती है। जब सरकार राजनीतिक कार्य के एक सामान्य पाठ्यक्रम (कोर्स) के रूप में बदलती है, तो मौजूदा स्टेट द्वारा सरकार की मान्यता की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन जब किसी क्रांति (रिवोल्यूशन) के कारण सरकार बदलती है, तो मौजूदा स्टेट द्वारा इसकी मान्यता की आवश्यकता होती है।

क्रांति से स्थापित नई सरकार को मान्यता देने के लिए, मौजूदा स्टेट्स को इस पर विचार करने की आवश्यकता है:

  1. नई सरकार का क्षेत्र और उसका लोगों पर पर्याप्त नियंत्रण है या नहीं।
  2. नई सरकार अंतर्राष्ट्रीय कर्तव्यों और दायित्वों को पूरा करने को तैयार है या नहीं।

जब मौजूदा स्टेट संतुष्ट हो जाते हैं कि क्रांति के परिणामस्वरूप नई सरकार ऊपर वर्णित शर्तों को पूरा करने में सक्षम है, तो मौजूदा स्टेट्स द्वारा नई सरकार को मान्यता दी जा सकती है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

स्टेट की मान्यता एक आवश्यक प्रक्रिया है ताकि वह इंटरनेशनल लॉ के तहत स्टेटहुड के समुदाय के सभी विशेषाधिकारों का आनंद ले सके। विभिन्न ज्यूरिस्ट्स द्वारा मान्यता की कंसीक्यूटिव थ्योरी और डिक्लेरेटरी थ्योरी के बीच एक विवाद है, लेकिन हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मान्यता के लिए अपनाई गई थ्योरी कंसीक्यूटिव और डेक्लेरेटरी थ्योरी के बीच में है।

मान्यता या तो डी-फैक्टो या डी-ज्यूरे है, यह अधिकार, विशेषाधिकार और दायित्व प्रदान करती है। जब किसी स्टेट को डी-फैक्टो मान्यता मिलती है, तो अधिकार, विशेषाधिकार और दायित्व कम होते हैं, लेकिन जब इसे डी-ज्यूरे मान्यता दी जाती है, तो उसे पूर्ण अधिकार, दायित्व और विशेषाधिकार मिलते हैं। स्टेट की मान्यता अंतर्राष्ट्रीय मंच पर राजनीतिक रूप से बहुत अधिक प्रभावित करती है।

ऐसे कई उदाहरण हैं जहां शक्तिशाली स्टेट एक नवगठित स्टेट की मान्यता में रुकावटें पैदा करते हैं। यह तब भी वापस लिया जा सकता है जब मान्यता देने वाले स्टेट को लगता है कि नया स्टेट एक सॉवरेन स्टेट होने के लिए आवश्यक शर्तें पूरी नहीं कर रहा है। मान्यता या तो एक्सप्रेस या इंप्लाइड प्रकार से की जा सकती है और इसका तरीका, यानी, डी-फैक्टो और डी-ज्यूरे मान्यता अलग-अलग मामले के आधार पर भिन्न होती है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

  • Verma S.K, Introduction to Public International Law, 2nd Edition,2014.
  • Luther v. Sagor [(1921)3 KB 532,].

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