भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 9

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Indian Evidence Act

यह लेख सत्यबामा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के Michael Shriney द्वारा लिखा गया है। इस लेख में भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 9 पर विस्तार से चर्चा की गई है, जिसमें इसके मूल सिद्धांत, उदहारण, दायरे और महत्वपूर्ण मामलो को शामिल किया गया है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, एक क़ानून है जो अदालत के समक्ष दिए गए बयानों को नियंत्रित करता है और जांच के तहत तथ्यों के संबंध में गवाहों को पेश करने में सक्षम बनाता है। 1872 का भारतीय साक्ष्य अधिनियम सर जेम्स फिट्जजेम्स स्टीफन द्वारा लिखा गया था। इस अधिनियम का लक्ष्य भारतीय अदालतों में साक्ष्य को स्वीकार करने के प्रकार या प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करना है। अधिनियम उन तथ्यों पर लागू होता है जो प्रासंगिक हैं और जिन पर न्यायालय द्वारा विचार किया जाना चाहिए; स्वीकृति, गवाही, मौखिक साक्ष्य, दस्तावेजी साक्ष्य, कानूनी अनुमान, सबूत का बोझ, विबंधन (एस्टॉपल), और अन्य सभी मामले जिनमें साक्ष्य के अधिग्रहण (एक्विजिशन) और उन मुद्दों की स्वीकार्यता (एडमिसिबिलिटी) जिन पर अदालत को अपनी टिप्पणियों को दर्ज करना चाहिए, शामिल है।

1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 उन तथ्यों से संबंधित है जिन्हें किसी मुकदमे में तर्क के मुद्दे के रूप में समझाया या पेश नहीं किया जाना चाहिए। इस धारा में यह बताया गया है कि कौन से तथ्य आवश्यक हैं, किन तथ्यों को मुद्दे में तथ्यों के रूप में पेश किया जाता है, और प्रासंगिक तथ्य क्या हैं। एक उदाहरण के साथ, यह अवधारणा अधिक स्पष्ट होगी। उदाहरण के लिए, ‘अखिल’ ने ‘भास्कर’ पर ‘चंद्रन’ को चाकू मारने का आरोप लगाया। इस स्थिति में, ‘अखिल’ द्वारा बताए गए तथ्य आवश्यक हैं। तथ्य ‘भास्कर’ द्वारा दिए गए थे, जिसने विरोध किया था कि उसने ‘चंद्रन’ को नहीं मारा, जो कि प्रश्न है, यानी मुद्दे में तथ्य है। जब ‘डेनी’ इस तथ्य को याद करता है कि ‘चंद्रन’ के घर में प्रवेश करने पर ‘भास्कर’ के हाथ में एक चाकू था और उसने चंद्रन को मृत देखा, तो यह तथ्य मामले के लिए प्रासंगिक है। यह उदाहरण दर्शाता है कि किन तथ्यों को आवश्यक बनाया गया है, किन तथ्यों को मुद्दे के रूप में पेश किया गया है, और कौन से तथ्य इस धारा के तहत महत्वपूर्ण हैं।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1972 की धारा 9 क्या है?

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 9 के तहत निम्नलिखित तथ्य हैं जो अदालत के समक्ष मामले में महत्वपूर्ण तथ्यों को समझाने या प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक हैं:

  • तथ्य जिन्हें समझाया जाना आवश्यक है, या
  • विवाद में एक तथ्य का बताना, या
  • अदालत के समक्ष मामले के संबंध में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रासंगिक तथ्य, या
  • जिन तथ्यों का समर्थन किया जा सकता है, या
  • वे तथ्य जिनका खंडन (रिबट) किसी विवाद के तथ्य से निकाले गए निष्कर्ष के परिणामस्वरूप होता है, या
  • तथ्य जो किसी भी चीज़ या किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करता है जिसकी पहचान प्रासंगिक है, या
  • वे तथ्य जो उस समय या स्थान को निर्धारित करते हैं जिस पर किसी मुद्दे या प्रासंगिक तथ्य में कोई तथ्य घटित होता है, या
  • तथ्य जो पक्षों के संबंध को दर्शाते है जिनके द्वारा इस तरह के किसी भी तथ्य का लेन-देन किया गया था, उस हद तक प्रासंगिक है कि किस उद्देश्य के लिए इसकी आवश्यकता है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1972 की धारा 9 के उदाहरण

वसीयत की वैधता

  • दावा की गई ‘वसीयत’ के समय A की संपत्ति और परिवार की स्थिति यह निर्धारित करने में आवश्यक मानदंड (क्राइटेरिया) हो सकती है कि कोई निश्चित दस्तावेज ‘A’ की वसीयत है या नहीं। यह प्रासंगिक तथ्य का एक उदाहरण है।

मुद्दे में तथ्यों को बताना

  • जब ‘A’ झूठी मानहानि (डेफेमेशन) के लिए ‘B’ पर मुकदमा करता है, तो ‘B’ उसके बुरे व्यवहार के लिए ‘A’ पर आरोप लगाता है। ‘B’ स्वीकार करता है कि मानहानि का मामला एक सच्चा तथ्य है। उस समय जब मानहानि का बयान प्रकाशित किया गया था, उस समय पक्षों की स्थिति और संबंध मुद्दे के तथ्यों के लिए महत्वपूर्ण तथ्य हो सकते हैं। जब ‘A’ और ‘B’ के बीच कोई विशिष्ट मानहानि विवाद नहीं है, तो इसे प्रासंगिक विवाद नहीं माना जाता है; लेकिन, जब उनके बीच झूठी मानहानि को लेकर विवाद होता है, तो इसे एक प्रासंगिक विवाद माना जाता है।

प्रासंगिक तथ्य

  • ‘A’ अपराध करने के कार्य में पकड़ा जाता है। तथ्य यह है कि अपराध होते ही ‘A’ अपने घर से भाग गया, यह तथ्य के लिए महत्वपूर्ण है और विवादित तथ्यों को प्रभावित करता है। तथ्य यह है कि जिस स्थान पर वह अपने घर से निकलने के समय गया था, उस स्थान पर उसे जरूरी काम था यह ‘A’ द्वारा कहा गया बहाना है। यहां, अदालत को कंपनी के विवरण में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन यह क्यों जरूरी है इसका स्पष्टीकरण मायने रखता है।

व्याख्यात्मक (एक्सप्लेनेटरी) के रूप में प्रासंगिक तथ्य

  • ‘A’ ने B के खिलाफ मुकदमा दायर किया क्योंकि B ने C को प्रेरित किया जिससे C ने हस्ताक्षरित अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) का उल्लंघन  किया। “मैं आपको छोड़ रहा हूं क्योंकि B ने मुझे एक बेहतर सौदा प्रदान किया है”, ऐसा ‘C’ ‘A’ से कहता है क्योंकि वह A की सेवा छोड़ रहा होता है। यह कथन C के कार्यों के बारे में एक व्याख्यात्मक टिप्पणी के रूप में एक प्रासंगिक तथ्य है, जो कि एक विवादित तथ्य है।
  • ‘A’ को चोरी का दोषी पाया गया, और यह देखा गया कि उसने चोरी का सामान ‘B’ को दे दिया था, जिसने इसे A की पत्नी को दे दिया। A कहता है कि आपको इसे छिपाना होगा। B का कथन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसे तथ्य की व्याख्या करता है जो संव्यवहार (ट्रांजेक्शन) का हिस्सा है।
  • ‘A’ पर दंगा करने का आरोप लगाया जाता है और पाया जाता है कि उसने भीड़ के सामने मार्च किया था। भीड़ की चीखें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे संव्यवहार की प्रकृति की व्याख्या करती हैं।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1972 की धारा 9 के लागू होने की शर्तें

धारा की प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) या तो इस तथ्य के कारण है कि यह व्याख्यात्मक है या प्रकृति में परिचयात्मक (इंट्रोडक्टरी) है। निम्नलिखित शर्तें हैं जिनमें इस धारा को किसी मामले में लागू किया जाना चाहिए:

  1. तथ्यों को आवश्यक रूप से मुद्दे में तथ्य या प्रासंगिक तथ्यों की व्याख्या करनी चाहिए; या
  2. तथ्यों को आवश्यक रूप से मुद्दे में तथ्य या प्रासंगिक तथ्यों का परिचय देना चाहिए; या
  3. तथ्यों को अनिवार्य रूप से एक अनुमान का समर्थन करना चाहिए या मुद्दे में तथ्य या प्रासंगिक तथ्य का खंडन करना चाहिए; या
  4. तथ्यों को किसी भी चीज़ या किसी व्यक्ति की पहचान को साबित करना चाहिए जिसकी पहचान महत्वपूर्ण है; या
  5. तथ्यों को आवश्यक रूप से विवादित तथ्यों का समय या स्थान निर्दिष्ट करना चाहिए; या
  6. तथ्यों को हमेशा संव्यवहार में शामिल व्यक्तियों के संबंध को दिखाना चाहिए।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1972 की धारा 9 का दायरा

  • व्याख्यात्मक तथ्य

जब तथ्यों को अकेले देखा जाता है, तो कुछ साक्ष्यों का कोई अर्थ नहीं होता है, लेकिन जब किसी मामले में अन्य तथ्यों के संबंध में उनकी व्याख्या की जाती है, तो वे सार्थक हो जाते हैं। ऐसे तथ्य महत्वपूर्ण या प्रासंगिक तथ्य हैं जिन्हें उचित रूप से संप्रेषित (कम्युनिकेट) किया जाना चाहिए।

निम्नलिखित स्थिति पर विचार करें: अलेक्जेंडर ने एक लड़की का व्यपहरण (किडनैप) करने का प्रयास किया। पुलिस की पूछताछ के दौरान, आरोपी थाने के पास घूमता हुआ नजर आया। जब लड़की ने आरोपी को देखा तो वह अपने भाई के सामने रोने लगी, जिसने पुलिस को घटना की सूचना दी। आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। लड़की का बयान व्यख्यात्मक है।

  • परिचयात्मक तथ्य

जब तथ्य एक महत्वपूर्ण तथ्य के परिचय के रूप में कार्य करते हैं, तो वे एक महत्वपूर्ण लेनदेन की वास्तविक प्रकृति को समझने में मदद करते हैं। साक्ष्य की अनुमति केवल उस सीमा तक दी जाती है जिसका उपयोग विवाद में तथ्यों या प्रासंगिक तथ्यों को पेश करने के लिए किया जाता है।

  • अनुमान का समर्थन करने वाले तथ्य

तथ्य की यह श्रेणी न तो किसी मुद्दे में तथ्यों के रूप में प्रासंगिक है और न ही प्रासंगिक तथ्य है, लेकिन यह मुद्दे में तथ्यों या प्रासंगिक तथ्यों द्वारा प्रदान किए गए अनुमान का समर्थन या विरोध करते है।

उदाहरण के लिए, जब ‘A’ ‘B’ की हत्या करता है, तो ‘A’ गांव से भागने की कोशिश करता है। तथ्य यह है कि वह भागने में कामयाब रहा, उसके द्वारा की गई हत्या के संबंध में एक सहायक अनुमान है। यह एक प्रासंगिक तथ्य है।

  • तथ्य जो अनुमान का खंडन करते है

दिए गए अनुमानों या प्रासंगिक तथ्यों के साथ, तथ्य का खंडन किया जा सकता है या मुद्दे के तथ्यों को अस्वीकृत किया जा सकता है।

  • किसी चीज़ या व्यक्ति की पहचान स्थापित करने वाले तथ्य

जब किसी चीज की पहचान के मुद्दे पर बात होती है, तो उसकी पहचान निर्धारित करने में जो जानकारी सबसे अधिक फायदेमंद होती है, उसे प्रासंगिक तथ्य माना जाता है।

उदाहरण के लिए: ‘A’ एक डकैती करता है और जिसमे वह लोगो की हत्या भी करता है, तो गृहस्वामी को चोरी की गई वस्तुओं और मृत लोगों की पहचान करने के लिए कहा जाता है। मृतक के कपड़ों और जूतों से उसकी पहचान की जा सकती है। पीड़ित के गहने स्वीकार्य हैं यदि उसकी पहचान उसके घर में एक पार्टी में शामिल पड़ोसी द्वारा की गई थी।

व्यक्ति की पहचान

किसी व्यक्ति की पहचान भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 9 के अंतर्गत आती है। जब किसी प्रासंगिक मामले में किसी व्यक्ति की पहचान की जांच की जा रही हो, तो माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी या अन्य रिश्तेदारों द्वारा पहचान की जा सकती है। कुछ मामलों में शारीरिक निशान, चिन्ह या शरीर पर किसी घाव से पहचान का पता लगाया जा सकता है। किसी व्यक्ति की पहचान के लिए हड्डियों, कंकालों, उम्र, आवाज आदि जैसी चिकित्सीय जांचों का भी उपयोग किया जाता है। किसी व्यक्ति की लिखावट, उंगली और पैरों के निशान, और अन्य सुराग की खोज के कारण विशेषज्ञ पहचान प्राप्त की जा सकती है। किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिए विभिन्न तरीकों और विधियों का उपयोग किया जाता है। पहचान परीक्षण का उद्देश्य जांच एजेंसी की सहायता करना है। जब परिवार के सदस्य उस सोने की पहचान नहीं करते जो मृतक व्यक्ति का था, लेकिन सोने का मालिक करता है। तो यह तय किया जाएगा कि उसकी गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अगर परिवार के सदस्य इस बारे में भूल गए हैं तो गहनों को खारिज करना असंभव है। पहचान के साक्ष्य को अदालत में पर्याप्त साक्ष्य माना जाता है।

टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड (टीआईपी)

‘टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड’ आरोपी की पहचान निर्धारित करने के तरीकों में से एक है। परीक्षणों का उद्देश्य घटना के प्रत्यक्षदर्शी (आई विटनेस) को मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोपी की पहचान करने की अनुमति देना है। परीक्षण पहचान का लक्ष्य एक प्रत्यक्षदर्शी के स्मरण (रिकलेक्शन) का मूल्यांकन करना और अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) पक्ष के लिए यह निर्धारित करना है कि किसे प्रत्यक्षदर्शी कहा जा सकता है। अदालत कुछ स्थितियों में पहचान या समर्थन साक्ष्य पर विचार कर सकती है। अदालत में पुष्टि के बिना नाबालिग (माइनर) गवाह द्वारा किसी आरोपी की पहचान को स्वीकार करना, या किसी गवाह द्वारा पहली बार बिना पुष्टि के आरोपी की पहचान को स्वीकार करना असंभव होगा।

टीआईपी से संबंधित प्रासंगिक मामले 

हीरा बनाम राजस्थान राज्य (2007)

इस विशिष्ट मामले में टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड के संबंध में डकैती शामिल है। सात डकैतों ने पैसे चोरी करने के लिए आधी रात में एक पेट्रोल पंप कार्यालय का दरवाजा तोड़ दिया, जब कर्मचारी कार्यालय में सो रहे थे। कार्यालय में घुसे तीन डकैतों ने मजदूरों को लाठियों से पीटा। कार्यकर्ता के रोने की आवाज सुनकर पास का एक पड़ोसी मौके पर आया और डकैतों ने उसकी भी पिटाई कर दी। बदमाश कैश बॉक्स से रुपये लूट कर फरार हो गए। सुनवाई के दौरान 37 गवाहों से पूछताछ की गई। टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड का उपयोग करके संदिग्धों की पहचान की गई।

टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड (टीआईपी) आयोजित करने के लिए निम्नलिखित सिद्धांत स्थापित किए गए हैं:

  • टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड (टीआईपी) को महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं माना जाता है। इनका उपयोग सूचनाओं को सत्यापित (वेरिफाई) करने के लिए किया जाता है।
  • मुख्य लक्ष्य पूछताछ चरण के दौरान गवाह की स्मृति का परीक्षण करना है।
  • आरोपी के गिरफ्तार होते ही टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड (टीआईपी) प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
  • प्रत्यक्षदर्शी की सत्यता के आधार पर सराहना की जाएगी।

राजनाथ सिंह, महतीम सिंह, राम मनम, मुन्नू उर्फ ​​मोनू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1978)

इस मामले में परेड के परीक्षण पहचान के संबंध में डकैती शामिल है। सक्कापुर गांव स्थित शिव शंकर तिवारी के घर में रात में चार डकैतों ने तोड़फोड़ की। वे बंदूक, चाकू और लाठी जैसे हथियार लेकर घर में घुसे थे। वे मशालें भी लेकर आए थे। इन डकैतों ने सोते समय परिवार को उनके बिस्तर से बांध दिया था। डकैतों द्वारा उन्हें हथियार से धमकाया जा रहा था। डकैत सामान लेकर घर से फरार हो गए। उन्होंने डकैतों में से एक का नाम खोजा और उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। अन्य के नाम अज्ञात थे, लेकिन परिवार ने उन्हें पहचान लिया था। परेड परिक्षण से उनकी पहचान हुई। प्रत्यक्षदर्शी ने अन्य लोगों को ट्रैक किया, जिन्हें गिरफ्तार किया गया और उन्हें दंडित किया गया।

पहचान का मूल्य

पहचान का मूल्य जांच एजेंसी और आरोपी दोनों के लिए फायदेमंद है। यहां तक ​​कि अगर गवाह आरोपी से जुड़ा नहीं है, तो वह अपराधी की पहचान करने में सक्षम हो सकता है, बशर्ते कि जल्द से जल्द एक टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड आयोजित किया जाए।

अदालत में पहचान

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 9 ने अदालत में आरोपी की पहचान करने के लिए नियम स्थापित किए है। अदालत में पहचान करने वाले व्यक्ति को आरोपी की पहचान की पुष्टि करनी चाहिए, और पहचान परीक्षण में पहचान करने वाले व्यक्ति को इसे सत्यापित करना चाहिए।

फोटो पहचान

गवाहों को चित्र प्रदर्शित करके आरोपी की पहचान करने की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है। व्यवहार में, पुलिस यह सुनिश्चित करने के लिए गवाह को तस्वीरें दिखाती है कि अपराधी की ठीक से पहचान हो गई है। यदि अपराधी वीडियो के माध्यम से पहचान में स्पष्ट है तो गवाह को फोटो पहचान पत्र देने की आवश्यकता नहीं है। करीब सात साल की फोटोग्राफी के बाद अब इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

आर बनाम टॉल्सन (1864)

यह मामला फोटो पहचान से जुड़ा है। विवाह प्रमाण पत्र पर गवाह के रूप में शादी में शामिल होने वाले व्यक्ति के साथ पहले पति की पहचान की पुष्टि करने के लिए किया गया था। आरोपी व्यक्ति की छवि के दृश्य प्रतिनिधित्व की पहचान करने के लिए फोटो साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य थी। गवाह फोटो के माध्यम से घटना की अपनी यादों को बताते हैं। यह गवाहों द्वारा मान्यता प्राप्त छवियों के आधार पर एक आरोपी की पहचान मात्र है। नतीजतन, अदालत ने फैसला किया कि अपराध के दृश्यों के चित्र और फोटो स्वीकार किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष

यह लेख 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 को सारांशित करते हुए समाप्त होता है। तथ्यों को प्रासंगिक तथ्यों या मुद्दों में तथ्य या व्याख्यात्मक या परिचयात्मक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। तथ्यों को समझाया जाना चाहिए या पेश किया जाना चाहिए, और इन्हे अदालत के तर्क के लिए प्रासंगिक या सहायक होना चाहिए। इसका खंडन भी किया जा सकता है यदि किसी विवादित तथ्य से निष्कर्ष निकालता है, और अन्यथा, यह किसी भी चीज या किसी भी तथ्य से संबंधित किसी भी व्यक्ति की पहचान कर सकते है या जब प्रासंगिक तथ्य होते हैं। लेन-देन में शामिल पक्षों के बीच संबंधों को प्रदर्शित करने वाली जानकारी भी तथ्यों के लिए प्रासंगिक होनी चाहिए।

तथ्यों की पहचान करके अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए जा सकने वाले तथ्यों को निर्धारित करने के लिए विभिन्न परीक्षणों का भी उपयोग किया जाता है। परेड के पहचान परीक्षण का उपयोग आरोपी के खिलाफ एक प्रत्यक्षदर्शी के स्मरण का आकलन करने के लिए किया जाता है। किसी व्यक्ति की पहचान किसी भी चिह्न या पहचान परिक्षण का उपयोग करके या परिवार के सदस्यों की पहचान के माध्यम से किसी आरोपी व्यक्ति या मृत व्यक्ति की पहचान करने की प्रक्रिया है। यह चित्र पहचान के माध्यम से भी पता लगाया जाता है, जिसका उपयोग अधिकारियों द्वारा प्रत्यक्षदर्शियों से अपराधी की पहचान करने के लिए किया जाता है।

संदर्भ

 

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