सूचना प्रौद्योगिकी (अवरुद्ध नियम), 2009 और आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69a

0
3423
Criminal Procedure Code

यह लेख Aishwarya S द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से साइबर लॉ, फिनटेक रेगुलेशन और टेक्नोलॉजी कॉन्ट्रैक्ट्स में डिप्लोमा कर रही हैं। इसका संपादन (एडिट) Prashant Baviskar (एसोसिएट, लॉसिखो) और Zigishu Singh (एसोसिएट, लॉसिखो) ने किया है। इस लेख में लेखक सूचना प्रौद्योगिकी (अवरुद्ध नियम) (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (ब्लॉकिंग रूल्स)) 2009 और आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69a को संक्षिप्त में समझाने की कोशिश करती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

परिचय

जैसे-जैसे मनुष्य ने अपने जीवन को सरल बनाने के लिए कई तकनीकों को विकसित करना और खोजना शुरू किया, ऐसी ही एक तकनीक, मशीनों का आविष्कार था जो मनुष्य की भागीदारी के साथ काम करती थी। यहां भागीदारी से मेरा तात्पर्य यह है कि जिन मशीनों का आविष्कार किया गया था, उन्हें वांछित (डिजायर) परिणाम प्राप्त करने के लिए मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है। कंप्यूटर ऐसे आविष्कारों में से एक है जिसने हमें 20वीं सदी के अंतिम चरण और 21वीं सदी के प्रारंभिक चरण के दौरान एक बड़ी डिजिटल क्रांति देखने की अनुमति दी है।

प्रौद्योगिकी के अत्यधिक विकास के कारण हम कई लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम थे, लेकिन साथ ही इसके कुछ नुकसान भी थे। इन्हीं में से एक है साइबर अपराध, शुरू में यह प्रकृति में बहुत गंभीर था क्योंकि यह अपराध सुदूर (रिमोट) इलाके से किया गया था। इसलिए इन सभी गतिविधियों को विनियमित (रेग्यूलेट) करने की आवश्यकता थी क्योंकि बिना विनियमन के इन मानवीय कार्यों को करने की अनुमति देना खतरनाक होगा। साइबर अपराध और प्रौद्योगिकी विकास दोनों को विनियमित करने की आवश्यकता है और इसलिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट), 2000 लागू हुआ। 

इस अधिनियम के परिणामस्वरूप, भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, बैंकर्स बुक अधिनियम, आरबीआई अधिनियम, आदि जैसे कई पारंपरिक कानूनों को भारतीय दंड संहिता, साक्ष्य अधिनियम के संबंध में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, दस्तावेजों, साक्ष्य को कानूनी मान्यता प्रदान करने के लिए संशोधित किया गया था। ऑनलाइन लेन-देन की सुविधा के लिए, गूगल-पे आदि जैसे कई तृतीय-पक्ष प्लेटफार्मों को उनकी पहचान मिली क्योंकि इससे ग्राहक और बैंकिंग क्षेत्र दोनों का काम आसान हो गया था। ऐसे ऑनलाइन लेनदेन को कानूनी मान्यता प्रदान करने के लिए बैंकिंग अधिनियमों और विनियमों में बदलाव की आवश्यकता थी।

आईटी अधिनियम में निर्धारित नियम भी बहुत आवश्यक हैं क्योंकि नियमों के बिना ऐसी विधियों को वास्तविक दुनिया में लागू करना मुश्किल होगा। 

इसलिए सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना की पहुंच के लिए अवरोधन (ब्लॉकिंग) के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा) नियम, 2009 को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत जनता को सूचना को अवरुद्ध करने के संबंध में नियमों को निर्धारित करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था क्योंकि कुछ गोपनीय जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता है।                                                       

आईटी (अवरुद्ध नियम), 2009 एक केंद्र सरकार का कानून है जो जनता द्वारा सूचना की पहुंच को अवरुद्ध करने के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों को निर्धारित करता है और इसे आईटी अधिनियम 2000 की धारा 87 (2) (z) जिसे आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69a के साथ पढ़ा जाता है, द्वारा प्रदान की गई शक्ति के तहत अधिनियमित किया जाता है।

सूचना प्रौद्योगिकी (अवरुद्ध नियम), 2009

यह एक छोटा सा अधिनियम है जिसमें 16 नियम हैं। आइए अब क्रम के अनुसार नियमों को समझते हैं। सामान्य रूप से, हम सभी जानते हैं कि पहला और दूसरा, चाहे यह कोई नियम या धाराएं हैं, यह क्रमशः संक्षिप्त शीर्षक और परिभाषा खंड ही होते है। 

  • नियम 1 – हम शीर्षक और उसके प्रारंभ विवरण के बारे में जान सकते हैं।
  • नियम 2 – हम इस क़ानून के तहत नौ महत्वपूर्ण शब्द और उनकी परिभाषा पा सकते हैं, जहां दो शब्दो जैसे, “संगठन” और “अनुरोध” पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि यहां जनता, जानकारी मांगती है तो ये महत्त्वपूर्ण है कि वे कौन से संगठन हैं जिसके समक्ष वे अपना अनुरोध प्रस्तुत करेंगे और अनुरोध का कौन सा तरीका है जिसे अवरुद्ध करने के लिए अनुरोध किया गया माना जाता है और जिसका खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। 
  • नियम 3 – यह नामित (डेजिग्नेटेड) अधिकारी के संबंध में नियम प्रदान करता है – उसे भारत की केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा और वह तब योग्य होगा जब वह संयुक्त सचिव (ज्वाइंट सेक्रेटरी) के पद से नीचे का न हो। वह राष्ट्रीय हित वाले कंप्यूटर संसाधनों के माध्यम से जनता द्वारा अनुरोधित किसी भी ऐसी जानकारी को अवरुद्ध करने का निर्देश दे सकता है, जो गोपनीय प्रकृति की है और जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 A (2) के दायरे में आती हैं।

  • नियम 4 – यह नियम संगठन के नोडल अधिकारी का चयन करने के तरीके और इन नियमों में बताए गए कार्यों को करने के तरीके को प्रदान करता है – इसके अधिकारियों में से एक को नोडल अधिकारी के रूप में चुना जाएगा और इसकी सूचना भारत की केंद्र सरकार, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग को दी जाएगी जो संचार (कम्युनिकेशन) और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आता है। 
  • नियम 5 – यह नियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69a(1) के तहत प्रदान की गई अनुरोधित जानकारी को संपूर्ण या आंशिक रूप से अवरुद्ध करने के लिए नोडल अधिकारी और अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) वाले न्यायालय, किसी भी सक्षम सरकारी एजेंसी द्वारा प्राप्त होने पर नामित अधिकारी द्वारा जारी निर्देश से संबंधित है।
  • नियम 6 – यह अनुरोध को एक संगठन से दूसरे संगठन में स्थानांतरित (ट्रांसफर) करने से संबंधित है। इस नियम में पांच उपखंड (सब क्लॉज) हैं। आइए अब हम प्रत्येक उपखंड की व्याख्या करें।
    • उप नियम 1 : यदि कोई व्यक्ति जनता (किसी व्यक्ति) द्वारा मांगी गई सूचना को अवरुद्ध करने के संबंध में कोई शिकायत करता है तो वह व्यक्ति संबंधित नोडल अधिकारी को अपनी शिकायत प्रस्तुत कर सकता है। ऐसी शिकायत उसी नोडल अधिकारी द्वारा किए गए इनकार की प्राप्ति नहीं होगी, जिसका अर्थ है कि जिस नोडल अधिकारी के समक्ष वह शिकायत कर रहा है वह वही नोडल अधिकारी नहीं होगा जिसने ऐसी जानकारी के लिए अपने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है और सूचना को अवरुद्ध करने के लिए निर्देश दिया है और संबंधित नोडल अधिकारी के समक्ष की गई ऐसी शिकायत जिसकी पूर्व मनाही प्राप्ति नहीं है, संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव (सीएस) द्वारा नामित अधिकारी को अनुमोदित (अप्रूव) किया जाएगा। सीएस की अनुपस्थिति में, उस विशेष केंद्र शासित प्रदेश के सलाहकार प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) द्वारा इसका दावा किया जा सकता है।
    • उप नियम 2: शिकायत की जांच संगठन द्वारा की जाएगी कि क्या शिकायत नियम 6 के उपखंड 1 के प्रावधानों का पालन कर रही है और क्या यह आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत दिए गए कारणों का पालन कर रही है और फिर इसे निर्धारित प्रारूप (फॉर्मेट) के अनुसार अपने नोडल अधिकारी के माध्यम से नामित अधिकारी को भेजा जाएगा।
    • उप नियम 3: जनता की ओर से सीधे नामित अधिकारी को की गई कोई भी शिकायत स्वीकार नहीं की जाएगी।
    • उप नियम 4: शिकायत लिखित रूप में होगी और यह अधूरी नहीं होगी और इसमें लेटरहेड के रूप में संबंधित संगठन शामिल होगा या यह शिकायतकर्ता के साथ संबंधित नोडल अधिकारी के इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के साथ इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में भी हो सकती है, और उस पर शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर भी होंगे। ऐसी हार्डकॉपी या ईमेल प्राप्त होने पर तीन दिनों के भीतर इसे नामित अधिकारी को भेज दिया जाएगा।
    • उप नियम 5: नामित अधिकारी शिकायत प्राप्ति की तारीख और समय के साथ एक नंबर निर्दिष्ट करेगा और ऐसी शिकायत प्राप्त होने के चौबीस दिनों के भीतर नोडल अधिकारी को शिकायत की पावती (एक्नोलेजमेंट) देगा।
  • नियम 7: शिकायत की जांच, समिति द्वारा की जाएगी जिसमें नामित अधिकारी, अध्यक्ष के रूप में, उनकी टीम के साथ आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 70b(1) के तहत कानून और न्याय, गृह मामलों, सूचना और प्रसारण (ब्रॉडकास्टिंग) मंत्रालय और भारतीय कंप्यूटर आपातकाल रिस्पांस टीम नियुक्त की जाएगी जिसमे संयुक्त सचिव के पद से नीचे के प्रतिनिधि शामिल नहीं होंगे।  
  • नियम 8: यह अनुरोधों की जांच से संबंधित है।
    • उप नियम 1: अनुरोध प्राप्त होने पर नामित अधिकारी उस व्यक्ति की पहचान करने के लिए विशेष शोध (रिसर्च) करेगा जिसने ऐसी जानकारी को पूर्ण या आंशिक रूप से कंप्यूटर संसाधन (रिसोर्स) के साथ होस्ट किया है जिस पर इसे पूर्ण या आंशिक रूप से होस्ट किया गया है। ऐसे व्यक्ति की पहचान करने पर वह या तो भौतिक (फिजिकल) रूप में या इलेक्ट्रॉनिक रूप में नोटिस जारी करेगा और 48 घंटे के भीतर जिस व्यक्ति को नोटिस जारी किया गया है, वह विशिष्ट तिथि और जैसा कि नोटिस में तिथि बताई गई है उस पर, समिति (नियम 7 के तहत गठित) के सामने उपस्थित होगा।
    • उप नियम 2: यदि ऐसा व्यक्ति जिसे नोटिस दिया गया है, वह नोटिस में दी गई विशिष्ट तिथि और समय पर उपस्थित होने में विफल रहता है, तो उसे नोडल अधिकारी द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों और समिति के पास उपलब्ध जानकारी के संबंध में लिखित रूप में विशिष्ट सिफारिश दी जाएगी।।
    • उप नियम 3: यदि ऐसा व्यक्ति जिसे नोटिस दिया गया है, को नामित अधिकारी द्वारा एक विदेशी इकाई के रूप में पहचाना जाता है, तो उसे समिति के समक्ष उसकी उपस्थिति के लिए उल्लिखित विशिष्ट तिथि और समय के साथ नोटिस दिया जाएगा। उपस्थित न होने पर, समिति को उपलब्ध सूचना के आधार पर नोडल अधिकारी से प्राप्त अनुरोध के अनुसार लिखित रूप में विशेष सिफारिशें दी जाएंगी।
    • उप नियम 4: समिति (नियम 7 का हवाला देते हुए) प्रिंटेड नमूना जानकारी के साथ अनुरोध का विश्लेषण करेगी कि क्या मांगी गई जानकारी आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69a(1) के दायरे में आती है, यदि वह पालन करती है तो वह विशिष्ट नोडल अधिकारी से प्राप्त अनुरोध पर लिखित में सिफारिशें प्रदान करेगी।
    • उप नियम 5: नामित अधिकारी, सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सचिव को नोडल अधिकारी द्वारा सूचना को अवरुद्ध करने के अनुरोध में समिति की रिपोर्ट भेजेगा।
    • उप नियम 6: सूचना को अवरुद्ध करने के लिए सचिव का अनुमोदन प्राप्त करने पर नामित अधिकारी संबंधित सरकारी एजेंसी या मध्यस्थ (इंटरमीडियरी) को ऐसी जानकारी को सार्वजनिक पहुंच से अवरुद्ध करने का निर्देश देगा और यदि सचिव द्वारा अनुमोदित नहीं है तो इसकी सूचना नोडल अधिकारी को दी जाएगी। 
  • नियम 9: यह आपातकालीन मामलों में सूचना को अवरुद्ध करने से संबंधित है।
    • उप नियम 1: किसी भी आपात स्थिति में नामित अधिकारी, बिना किसी देरी के नियम 7 और 8 का पालन करते हुए, प्रिंटेड नमूने के साथ अनुरोध का विश्लेषण करेगा और यह देखेगा कि क्या अनुरोध आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69a का पालन कर रहा है, यदि यह पालन कर रहा है तो ऐसी सूचना को अवरुद्ध करने की प्रकृति में शीघ्रता से वह सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार को लिखित रूप में विशिष्ट सिफारिशें देगा।
    • उप नियम 2: ऐसी आपातकालीन विशिष्ट सिफारिश प्राप्त होने पर वह बिना किसी देरी के इसकी जांच करेगा और यदि वह संतुष्ट है कि सार्वजनिक पहुंच से सूचना को अवरुद्ध करने के लिए यह समीचीन (एक्सपीडियंट) और न्यायसंगत है और अपने कारणों को दर्ज करेगा और अंतरिम (इंटरीम) उपाय के रूप में ऐसे पहचाने गए व्यक्ति को नोटिस जारी करेगा, जिसने बिना सुने कंप्यूटर संसाधनों पर ऐसी जानकारी को होस्ट किया है।
    • उप नियम 3: नामित अधिकारी बिना 48 घंटे से अधिक की देरी के उप-नियम 2 के तहत निर्देश जारी करता है और अनुरोध पर विचार करने और अपनी सिफारिश प्रदान करने के लिए समिति (नियम 7 के तहत संदर्भित) के समक्ष अनुरोध करता है।
    • उप नियम 4: समिति की सिफारिश पर, सचिव सार्वजनिक पहुंच से सूचना को अवरुद्ध करने के लिए अंतिम आदेश पारित करेगा और यदि सचिव द्वारा अपने अंतिम आदेश को अनुमोदित नहीं किया जाता है तो उप-नियम 2 के तहत दिए गए अंतरिम निर्देश को उलट दिया जाएगा और एक सूचना को अवरुद्ध न करने और सार्वजनिक पहुंच देने का आदेश दिया जाएगा।
  • नियम 10: आदेश की प्रमाणित (सर्टिफाइड) प्रति (कॉपी) प्राप्त होने पर आंशिक या पूर्ण रूप से सूचना को अवरुद्ध करने के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा कोई भी आदेश, नामित अधिकारी सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग को प्रस्तुत करेगा और अदालत के आदेश के तहत निर्दिष्ट कार्रवाई करेगा।
  • नियम 11: नोडल अधिकारी द्वारा प्राप्त अनुरोध पर इसके प्राप्त होने की तिथि से सात कार्य दिवसों के भीतर निपटारा किया जाएगा।
  • नियम 12 : नियम 9 के अनुसार यदि मध्यस्थ जारी निर्देश का पालन नहीं करता है तो सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव की सहमति से नामित अधिकारी द्वारा उसके खिलाफ  कार्यवाही की जायेगी और आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69a(3) के तहत उचित कार्यवाही की जायेगी।
  • नियम 13
    • उप नियम 1: इन नियमों के तहत प्रदान की गई जानकारी के अनुसार किसी भी कंप्यूटर संसाधनों पर उत्पन्न, होस्ट की गई, प्रेषित (ट्रांसमिट), प्राप्त, संग्रहीत (स्टोर्ड) जानकारी जैसे इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में सार्वजनिक पहुंच को अवरुद्ध करने के लिए निर्देश प्राप्त करने और संभालने के लिए मध्यस्थ उपयुक्त व्यक्ति को नियुक्त करता है।
    • उप नियम 2: वह (जिसे मध्यस्थ द्वारा नियुक्त किया जाता है) इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के साथ पावती पत्र या ई-मेल के माध्यम से इस तरह के निर्देश प्राप्त होने के 2 घंटे के भीतर नामित अधिकारी को निर्देश की प्राप्ति की सूचना देगा।  
  • नियम 14: एक समीक्षा (रिव्यू) समिति की बैठक, रिकॉर्ड का आकलन (एसेस) करने और यह पता लगाने के लिए दो महीने में एक बार बैठक करेगी कि क्या दिए गए सभी निर्देश सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A का पालन कर रहे हैं और यदि जारी निर्देश धारा 69 A का पालन नहीं कर रहे हैं तो वे आदेशों को उलट देंगे और सार्वजनिक पहुंच के लिए अनुरोध की गई जानकारी को अवरुद्ध न करने का निर्देश देंगे।
  • नियम 15: नामित अधिकारी को सार्वजनिक पहुंच द्वारा सूचना को अवरूद्ध करने तथा प्रत्येक मामले में उसके द्वारा की गई कार्रवाई के मामलों के रिकॉर्ड का डाटाबेस तैयार करना होता है। वह इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप और रजिस्टर दोनों में बनाए रखेगा।
  • नियम 16​​: प्रत्येक मामले में प्राप्त अनुरोध एवं शिकायत तथा प्रत्येक मामले में की जाने वाली कार्रवाई से संबंधित सभी सूचनाएं गोपनीय होंगी। संबंधित प्राधिकारी द्वारा इसका पालन कड़ी तरह से किया जाएगा।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A

यह धारा, किसी भी कंप्यूटर संसाधनों के माध्यम से सार्वजनिक पहुंच द्वारा सूचना को अवरुद्ध करने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करने की शक्तियों से संबंधित है।

  • उप धारा 1: यह भारत की केंद्र सरकार को शक्ति प्रदान करती है और इस संबंध में इसके द्वारा नियुक्त किसी भी अधिकारी को आवश्यक महसूस होता है और यदि कोई त्वरित निर्णय लिया जाता है, जैसे कि वह निम्नलिखित परिस्थितियों में आता है:
  1. भारत की अखंडता (इंटीग्रिटी) और संप्रभुता (सोवरेंटी) के हित में 
  2. भारत की रक्षा
  3. राज्य की सुरक्षा
  4. विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
  5. सार्वजनिक आदेश 
  6. उपरोक्त परिस्थितियों से संबंधित किसी भी संज्ञेय (कॉग्निजेबल) अपराध को करने के लिए उकसाने को रोकने के लिए 
  • उप धारा 2: सार्वजनिक पहुंच द्वारा सूचना को अवरुद्ध करने के संबंध में प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय निर्धारित किए जा सकते हैं।
  • उप धारा 3: उप धारा 1 के तहत दिए गए निर्देश का पालन करने में विफल रहने वाले मध्यस्थ को कारावास की सजा होगी जिसे होगी जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही जुर्माने के साथ दंडित किया जाएगा।

निष्कर्ष

मैं कुछ पंक्तियाँ कहकर अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ। सूचना प्रौद्योगिकी (अवरुद्ध) नियमों के सारांश और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69a का उल्लेख करते हुए, मैंने पाया कि यह कानून बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सूचना के रूप में सार्वजनिक पहुंच से सूचना के अवरुद्ध को लागू करने और विनियमित करने के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जो जानकारी गोपनीय है और राष्ट्रीय हित के लिए है उसे जनता के सामने प्रकट नहीं किया जा सकता है। इस अधिनियम के तहत संबंधित अधिकारियों की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए नियम 14 के तहत समीक्षा समिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69a केंद्र सरकार को उसी तरह से अपने निर्देश प्रदान करने का अधिकार देती है और इस प्रकार ऐसी कोई भी जानकारी जो सार्वजनिक पहुंच से अवरुद्ध है, उस पर आरटीआई के माध्यम से अनुरोध नहीं किया जा सकता है क्योंकि आईटी अधिनियम की धारा 69a (1) के तहत सभी परिस्थितियो को भी सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 8 के तहत सूचना को प्रकट करने से छूट दी गई है।

संदर्भ

  • BARE ACT

 

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here