आईपीसी की धारा 498A- एक शील्ड या हथियार

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1860
Indian Penal Code

इस ब्लॉग पोस्ट में, Osita Kirti Ranjan जो कि विनोबा भावे यूनिवर्सिटी, झारखंड की छात्रा, भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड), 1860 की धारा 498 A के बारे में लिखती हैं और भारतीय समाज के संदर्भ में एक ही प्रावधान (प्रोविजन) के दो अलग-अलग पक्षों को दिखाने का प्रयास करती हैं। वह प्रावधान को लागू करने के इरादे को भी दर्शाने की कोशिश करती है और इसकी तुलना आज के भारत में इस प्रावधान के वास्तविक प्रभावों से करती है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

नारी की समाज में मुख्य रूप से असुविधाजनक स्थिति रही है। उसे अपने जीवन के हर पड़ाव पर कई बाधाओं से गुजरना पड़ता है। लेकिन उसकी जिंदगी तब और खराब हो जाती है जब उसकी शादी किसी गलत व्यक्ति से हो जाती है और उसके साथ क्रूरता की जाती है। न केवल उसका पति बल्कि उसके पति के रिश्तेदार भी दहेज की मांग करने लगते हैं। वे जबरदस्ती पैसे, गहने, या कोई संपत्ति में हिस्सा मांगते हैं।

अगर वह उनकी गैरकानूनी मांगों को पूरा करने में विफल रहती है, तो उसे परेशान किया जाता है और कई बार इन औरतों को मानसिक और शारीरिक क्रूरता का सामना भी करना पड़ता है। अक्सर वह दयनीय स्थिति के कारण आत्महत्या कर लेती है या उसके ससुराल वालों द्वारा उसकी हत्या कर दी जाती है। छोटी लड़कियों की अप्राकृतिक मृत्यु की यह बहुत बुरी स्थिति है। यह एक अपराध है, और पूरे परिवार को पुलिस थाने में शिकायत के आधार पर भारतीय दंड संहिता (आई पी सी) की धारा 498A के तहत जेल भी हो सकती है।

भारतीय दंड संहिता में धारा 498 A को आपराधिक कानून (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 1983 द्वारा डाला गया था। इसे घरेलू हिंसा और वैवाहिक हिंसा को रोकने और महिलाओं को दहेज उत्पीड़न (हरैसमेंट) और पति या ससुराल वालों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार से बचाने के लिए लाया गया था।

धारा 498 A का कानूनी पहलू

धारा 498 A में कहा गया है कि – “जो कोई भी महिला का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए, ऐसी महिला के साथ क्रूरता करता है, उसे एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

स्पष्टीकरण (एक्सप्लेनेशन)- इस धारा के उद्देश्य के लिए, “क्रूरता” का अर्थ है-

  1. कोई भी जानबूझकर किया गया आचरण (कंडक्ट) जो इस तरह की प्रकृति का है जिससे महिला को आत्महत्या करने या गंभीर चोट या महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य (चाहे मानसिक या शारीरिक) के लिए खतरा हो; या
  2. महिला का उत्पीड़न जहां इस तरह का उत्पीड़न (या “इरादा”) उसे या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति को किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए मजबूर करना है।”

इस धारा की जांच करने से पता चलता है कि नीचे दिए गए सभी क्रूरता के बराबर है:

  • कोई भी आचरण जो किसी महिला को आत्महत्या के लिए प्रेरित करता हो,
  • कोई भी आचरण जिससे महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को गंभीर चोट लगने की संभावना हो,
  • महिला या उसके रिश्तेदारों को कुछ संपत्ति देने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से उत्पीड़न।
  • उत्पीड़न क्योंकि महिला या उसके रिश्तेदार या तो अधिक पैसे की मांग के आगे झुकने में असमर्थ हैं या संपत्ति का कुछ हिस्सा नहीं दे पते हैं।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113A

इस धारा को भारतीय साक्ष्य अधिनियम (इंडियन एविडेंस एक्ट) में जोड़ा गया था ताकि दहेज हत्या या विवाहित महिला की आत्महत्या के लिए उपशमन (एबेटमेंट) की दिखावट को बढ़ाया जा सके। इस धारा का वही अर्थ होगा जो आईपीसी की धारा 304B में परिभाषित है। इसका उद्देश्य सिर्फ दहेज हत्या और क्रूरता के खतरे का मुकाबला करना है।

क्रूरता: एक बुराई

  • कालियापेरुमल बनाम स्टेट ऑफ़ तमिलनाडु

इस केस में यह माना गया कि आईपीसी की धारा 304B और 498A दोनों के तहत अपराधों में क्रूरता एक अनिवार्य सामान्य तत्व है। ये दोनों अपराध अलग-अलग हैं, लेकिन दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने वाले व्यक्ति को आईपीसी के 498A के लिए भी दोषी ठहराया जा सकता है। धारा 304B  क्रूरता के अर्थ को परिभाषित नहीं करती है, लेकिन धारा 498A में दिया गया क्रूरता और उत्पीड़न का अर्थ धारा 304B में भी लागू होता है।

इस धारा के अंदर आने वाली क्रूरता के ये सारे प्रकार हैं:

  1. कष्टप्रद मुकदमेबाजी (वेक्सेशियस लिटिगेशन) द्वारा क्रूरता
  2. अभाव (डेप्रिवेशन) और व्यर्थ की आदतों से क्रूरता
  3. लगातार मांग से क्रूरता
  4. विवाहेतर (एक्सट्रामैरिटल) संबंधों द्वारा क्रूरता
  5. दहेज न देने की मांग पर उत्पीड़न
  6. बच्ची को स्वीकार न करने से हो रही क्रूरता
  7. शुद्धता पर झूठे हमलों से क्रूरता
  8. बच्चों को ले जाना

498A का दुरुपयोग

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इस कानून ने कई महिलाओं को न्याय दिलाने में मदद की है, लेकिन यह दृश्य अब बदल रहा है। यह ढाल एक असंतुष्ट पत्नी के लिए पति से बदला लेने का हथियार बनता जा रहा है। यह आज-कल वैवाहिक संस्था (मैरिटल इंस्टीट्यूशन) से बाहर निकलने का सबसे आसान तरीका बन गया है। आज के समय में सामाजिक परिस्थितियों में परिवर्तन आया है। महिलाएं अपने पति के अलावा अन्य पुरुषों से शारीरिक संबंध बनाने से नहीं हिचकिचाती हैं। जब वे व्यभिचार (अडल्ट्री) में शामिल होते हैं और फिर यह बात बाहर आ जाती हैं, तो वे सामाजिक सहानुभूति प्राप्त करने के लिए दहेज उत्पीड़न के साथ अपने गलत काम को चालाकी से ढकने की कोशिश करते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ पत्नियां अपने पति पर नियंत्रण चाहती हैं। वे अपने पति को अपने परिवार का समर्थन न करने और उनके साथ अपने बंधन तोड़ने और अपनी जिम्मेदारियों को छोड़ने के लिए मजबूर करती हैं। ऐसा नहीं करने पर उसके खिलाफ 498A का मामला दर्ज करने को कहती हैं। यदि उसके माता-पिता उसकी पसंद के लड़के से उसकी शादी करने में विफल रहते हैं, तो वह कई बार अपने माता-पिता द्वारा तय की गई शादी से बाहर निकलने के लिए हथियार के रूप में 498A का उपयोग करती है।

  • राजकुमार बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश 120 ऑफ़ 2004  

इस केस में पत्नी की उसके कमरे में बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उसके पति पर आईपीसी की धारा 498A और 302 के तहत आरोप लगाया गया था। आरोपी पति के खिलाफ आरोप को साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य की कमी थी। यह माना गया कि किसी व्यक्ति के खिलाफ केवल संदेह ही उसे दोषी साबित करने के लिए काफी नहीं है।

न्यायपालिका और पुलिस विभाग (ज्यूडिशियरी एंड पुलिस डिपार्टमेंट)

हम हमेशा लैंगिक समानता (जेंडर इक्वलिटी) की बात करते हैं लेकिन क्या होता है जब एक मासूम पति अपनी लालची पत्नी और उसके रिश्तेदारों के जाल में फंस जाता है। पति को उसकी पत्नी या उसके रिश्तेदारों द्वारा पीटा जाता है। कभी-कभी ऐसी चोट बहुत घातक हो सकती है। लेकिन न्यायपालिका पत्नी और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ कुछ नहीं करती है। 498A के नाम पर पत्नी और उसके रिश्तेदारों को अत्याचारी व्यवहार में लिप्त होने का मुफ्त लाइसेंस दिया जाता है। सबसे पहले, वे अपराध करते हैं और फिर इसे ढकने के लिए 498A की शिकायत दर्ज करते हैं। इसके बावजूद, जज ऐसे मामलों में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं और जब पत्नी कोर्ट की सुनवाई में शामिल नहीं होती है तो उसे कितनी भी संख्या में स्थगन (ऐडजोर्नमेन्ट) की अनुमति देते हैं। साथ ही, जब पत्नी कई सालों तक कोर्ट में पेश नहीं होती है तो जज केस को खारिज नहीं करते हैं। ऐसी पत्नीयों के लिए न्यायपालिका को एजेंट के रूप में काम करना बंद कर देना चाहिए।

दूसरी ओर, पुलिस आरोपी पति को बिना उचित जांच के गिरफ्तार कर लेती है और वे दोनों पक्षों से पैसे कमाने और रिश्वत की मांग करने का प्रयास भी करते हैं। वे पति के व्यवसाय के स्थान पर जाते हैं और सार्वजनिक रूप से उसका अपमान करते हैं और उसे परेशान भी करते हैं। हमारी व्यवस्था में भारी भ्रष्टाचार है। अंतरिम जमानत (इंटरिम बेल) से पति को कोई राहत नहीं मिलती है क्योंकि उसे अंत में अपनी पत्नी या उसके रिश्तेदारों और कथित पुलिस अधिकारियों की मदद से सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। यह देखा गया है कि सास-ससुर को भी इस धारा का आरोपी बनाया जाता है। विदेशों में रहने वाली ननदों पर भी दहेज कानून के तहत आरोप लग रहे हैं। पति के निर्दोष होने पर यह घोर अन्याय है।

संशोधन की जरूरत है (अमेंडमेंट इज नीडेड)

दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार से इन प्रावधानों की समीक्षा (रिव्यु) करने का आग्रह किया है। जज जे.डी. कपूर ने सरकार से इस कानून की समीक्षा करने का आग्रह किया, जबकि सावित्री देवी द्वारा अपने बहनोई और भाभी की गिरफ्तारी की याचिका (प्ली) को खारिज कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रावधान को अच्छे इरादों के साथ लागू किया गया था लेकिन समय के साथ अब यह प्रावधान खराब रूप ले रहा है और शादी की नींव पर ही चोट कर रहा है, और यह बड़े पैमाने पर समाज के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि आईपीसी की धारा 498A और 406 को जमानती बनाया जाना चाहिए क्योंकि यह फिरौती मांगने का जरिया बनता जा रहा है। कुछ लोग इसे कानूनी आतंकवाद मानते हैं। यह बताया गया कि 2007-09 के दौरान पतियों की मृत्यु में लगभग 35% की वृद्धि दहेज के विवादों में फंसने के कारण हुई थी। इसी अवधि के दौरान महिलाओं के मामले में दहेज हत्या में लगभग 3.5% की वृद्धि हुई थी। झूठी शिकायत दर्ज करने में अपीलकर्ता (अपीलेंट) का यह कार्य क्रूरता की श्रेणी (केटेगरी) में आता है और विवाह के तलाक का आधार भी बन सकता है। इसके अलावा, इस धारा को एक कंपाउंडेबल अपराध में बदल दिया जाना चाहिए। यदि पार्टियां आपसी तलाक से अपनी शादी को खत्म करने का फैसला करके अपने विवाद को सुलझाने के लिए तैयार हैं, तो इसकी अनुमति भी दी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ऐसे सभी परिवारों के बचाव में आगे आया है जिन्हें इस तरह के आरोपों में झूठा गिरफ्तार किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पुलिस ऐसे मामलों में आरोपी को अपने मनचाहे रूप से गिरफ्तार नहीं कर सकती है, और उसे ऐसे कदम उठाने के लिए कारण बताना होगा जिनकी न्यायिक जांच की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पुलिस दहेज उत्पीड़न के मामलों सहित 7 साल तक की जेल की सजा वाले सभी अपराधों में गिरफ्तारी का सहारा न ले।

​​निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

पितृसत्तात्मक व्यवस्था (पैट्रियार्कल सिस्टम) में एक महिला की रक्षा करना बहुत जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि न्याय केवल महिलाओं के लिए ही हो। संविधान के अनुच्छेद (आर्टिकल) 14 को भी बरकरार रखा जाना चाहिए। किसी भी तरह का लैंगिक भेदभाव नहीं होना चाहिए। धारा 498A के तहत कुछ प्रावधानों की समीक्षा करने की अत्यधिक आवश्यकता है ताकि एक असंतुष्ट पत्नी के कारण निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को पीड़ित न होना पड़े।

 

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