आयकर अधिनियम की धारा 37

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1655
Income Tax Act

यह लेख नोएडा के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल के छात्र Ayush Tiwari ने लिखा है। इस लेख का उद्देश्य आपको समर्थन करने वाले मामलो के साथ कर योग्य व्यावसायिक लाभ की गणना करते समय कटौती के लिए स्वीकार्य व्यय (एक्सपेंडिचर) के संबंध में सभी जानकारी प्रदान करना है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

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परिचय

आयकर अधिनियम, 1961 में दो प्रकार के प्रावधान हैं: एक यह निर्धारित करते है कि किस प्रकार के व्यय स्वीकार्य हैं; और दूसरे जो परिभाषित करते है कि किस प्रकार के व्यय बाद वाले प्रावधान के साथ कैसे अधिकृत (ऑथराइज्ड) नहीं हैं। ओवरराइडिंग नियमों को हमेशा पहले लागू किया जाना चाहिए और फिर ही व्यय की स्वीकार्यता का मूल्यांकन किया जा सकता है। यदि किसी प्रावधान द्वारा व्यय की अनुमति नहीं है, तो यह निषिद्ध है। लागत को प्रतिबंधित करने वाले प्रावधान विशिष्ट या सामान्य हो सकते हैं। एक व्यय को एक लेखा (अकाउंटिंग) अवधि के भीतर की गई गतिविधियों या एक अवधि में एकत्रित आय जिसके लाभ इस अवधि से आगे नहीं बढ़ते हैं, के रूप में परिभाषित किया जाता है।

एक फर्म या व्यवसाय के लिए लाभ की गणना करते समय खर्च की अनुमति देना यह दर्शाता है कि कर अधिकारी ऐसे खर्च के लाभों को स्वीकार नहीं करेंगे, और निर्धारिती (एसेसी) को ऐसे व्यय पर शुद्ध लाभ में वापस जोड़कर, कर का भुगतान करना होगा। किसी भी खर्च को दो कारणों में से एक के लिए कटौती करने की अनुमति नहीं दी जा सकती:

  • भुगतान करते समय कर राशि नहीं काटी जाती है, जिसे कुछ खर्चों से घटाया जाना चाहिए।
  • व्यावसायिक व्यवहार का व्यय से कोई स्पष्ट संबंध नहीं है।

किसी भी अस्वीकृत खर्च पर 30% की दर से कर लगाया जाता है (विशिष्ट निगमों के लिए 25%), लेकिन इसमें ब्याज, दायित्व और दोषसिद्धि के प्रावधान अक्सर शामिल होते हैं। एक निश्चित व्यय कटौती योग्य है या नहीं, यह निर्धारित करने में पहला कदम यह जांचना है कि कटौती “आयकर अधिनियम” के किसी भी खंड द्वारा स्पष्ट रूप से अनिवार्य है या नहीं। वैकल्पिक रूप से, धारा 37 का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है कि व्यय की अनुमति है या नहीं।

आयकर अधिनियम की धारा 37 क्या है

धारा 37 प्रदान करती है कि कंपनी या पेशे के उद्देश्यों के लिए पूरी तरह से निर्धारित या खर्च किए गए किसी भी व्यय (पूंजीगत (कैपिटल) व्यय या निर्धारिती के व्यक्तिगत व्यय के अलावा) को “व्यवसाय या पेशे के लाभ” के तहत भुगतान की जाने वाली आय की गणना करने की अनुमति दी जाएगी।

धारा के माध्यम से यह भी समझा जाना चाहिए कि, किसी भी संदेह से बचने के लिए, किसी भी उद्देश्य के लिए एक निर्धारिती द्वारा किया गया कोई भी खर्च जो एक अपराध बनता है या कानूनी रूप से निषिद्ध है, कंपनी या पेशे के उद्देश्य के लिए किया गया खर्च नहीं माना जाएगा और ऐसे खर्चों के संबंध में कोई कटौती नहीं की जानी है।

किसी भी संदेह से बचने के लिए यह भी उल्लेख किया गया है कि, उप-धारा (1) के विशिष्ट उद्देश्य के लिए, कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी गतिविधियों पर एक निर्धारिती द्वारा किए गए किसी भी खर्च को निर्धारिती द्वारा कंपनी या पेशा के लिए किए गए उद्देश्यों के लिए किए गए खर्च के रूप में नहीं माना जाएगा।

धारा 37 के तहत भत्ते (एलाउंस) की शर्तें

धारा 30 से 36 के अंतर्गत व्यय नहीं आते है

यह गारंटी दी जानी चाहिए कि धारा 37(1) के तहत कटौती का दावा करने से पहले व्यय धारा 30 से 36 में निर्दिष्ट प्रकार का नहीं है। यदि व्यय की एक वस्तु उपर्युक्त प्रावधानों में से किसी के द्वारा शामिल की जाती है, तो अवशिष्ट (रेसिड्यूअरी) धारा के तहत इसका दावा नहीं किया जा सकता है।

व्यय प्रकृति में पूंजीगत नहीं होना चाहिए

जैसा कि अधिनियम “पूंजीगत व्यय” और “राजस्व (रिवेन्यू) व्यय” शब्दों को परिभाषित नहीं करता है, किसी को उनके अंतर्निहित अर्थ के साथ-साथ नीचे वर्णित परिस्थितियों पर भरोसा करना चाहिए:

निश्चित परिसंपत्तियों (फिक्स्ड एसेट्स) का अधिग्रहण (एक्विजिशन) और नियमित व्यय 

राजस्व व्यय व्यवसाय के सामान्य कार्यप्रणाली में एक नियमित व्यवसाय व्यय के रूप में किया जाता है, जबकि पूंजीगत व्यय एक निश्चित परिसंपत्ति के अधिग्रहण, विस्तार या सुधार में किया जाता है।

कई पिछले साल और एक पिछला साल

पूंजीगत व्यय कई वर्षों में लाभ उत्पन्न करता है, जबकि राजस्व व्यय का उपयोग एक वर्ष में किया जाता है।

रखरखाव और सुधार

पूंजीगत व्यय से कंपनी की कमाने की क्षमता बढ़ती है। दूसरी ओर राजस्व व्यय, कंपनी की लाभ कमाने की क्षमता को बरकरार रखता है।

आवर्ती (रिकरिंग) और अनावर्ती (नॉन रिकरिंग)

आमतौर पर, पूंजीगत व्यय एक बार का व्यय होता है, जबकि राजस्व व्यय एक चालू व्यय होता है।

आवधिक भुगतान और एकमुश्त (लम सम) भुगतान

तथ्य यह है कि एक व्यय एकमुश्त भुगतान है या आवर्ती भुगतान है, यह निर्धारित करने में अप्रासंगिक है कि व्यय प्रकृति में पूंजीगत या राजस्व है या नहीं।

व्यक्तिगत खर्चे नहीं करने चाहिए

धारा 37(1) के तहत व्यक्तिगत व्यय स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित हैं। व्यक्तिगत व्यय वे हैं जो व्यक्तिगत आवश्यकताओं जैसे भोजन, कपड़े और आवास को पूरा करने के लिए किए जाते हैं जो व्यवसाय से संबंधित नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, व्यापार या पेशे के विपरीत घरेलू या निजी उद्देश्यों के लिए खर्च किया गया धन कटौती योग्य नहीं है।

व्यय पिछले वर्ष में खर्च किया जाना चाहिए था

कटौती के लिए पात्र होने के लिए, धन को अलग रखा जाना चाहिए या पिछले वर्ष में खर्च किया जाना चाहिए।

व्यापार या पेशे के उद्देश्य के लिए व्यय पूरी तरह से खर्च किया जाना चाहिए

धारा 37(1) का आवश्यक मानदंड (क्राइटेरिया) यह है कि व्यय पूर्ण रूप से या केवल व्यवसाय के उद्देश्य के लिए किया जाता है।

व्यय, निर्धारिती के व्यवसाय के संबंध में होना चाहिए

धारा 37(1) के तहत कटौती का दावा करने के उद्देश्य से, पिछले वर्ष में निर्धारिती के व्यवसाय के उद्देश्य से व्यय किया गया होना चाहिए, जिसके लाभ का अनुमान और मूल्यांकन किया जाना चाहिए, और व्यय व्यवसाय को स्थापित करने के के बाद किया जाना चाहिए।

अवैध व्यय 

एक निर्धारिती द्वारा किसी भी उद्देश्य के लिए किया गया कोई भी व्यय जो एक अपराध है या कानून द्वारा प्रतिबंधित है, व्यवसाय या पेशे के उद्देश्य के लिए किया गया नहीं माना जाता है, और इस तरह के व्यय के संबंध में कोई भत्ता या कटौती नहीं दी जाती है। अवैध व्यय कटौती योग्य नहीं हैं। ये नियम केवल “व्यावसायिक व्यय” पर लागू होते हैं, न कि “व्यावसायिक घाटे” पर। इसलिए, अवैध स्टॉक-इन-ट्रेड की जब्ती से होने वाली हानि अवैध आचरण से कमाई के खिलाफ व्यापार हानि के रूप में स्वीकार्य होता है।

धारा 37 में संशोधन

संशोधन की पृष्ठभूमि

धारा 37(1) के स्पष्टीकरण -1 के अनुसार, कानून द्वारा निषिद्ध किसी भी उद्देश्य के लिए एक निर्धारिती द्वारा किया गया व्यय व्यावसायिक व्यय के रूप में स्वीकार्य नहीं है। हालाँकि, यह देखा गया है कि चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में विभिन्न करदाताओं ने किसी व्यक्ति को कुछ लाभ और अनुलाभ (परक्विसाइट) प्रदान करने में किए गए व्यय के संबंध में कटौती का दावा किया है, जिनको अनुमति देने का इरादा नहीं है, जैसे यात्रा, आतिथ्य सत्कार (हॉस्पिटैलिटी), सम्मेलनों (कांफ्रेंस) आदि से संबंधित व्यय को पूरा करना, या यहां तक ​​कि नकद या अन्य प्रोत्साहनों (इंसेंटिव) की अनुमति देना। ये खर्च भारतीय चिकित्सा परिषद (काउंसिल) के नियमों का उल्लंघन था।

सीबीडीटी (सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स) ने 1 अगस्त, 2012 को एक परिपत्र (सर्कुलर) भी जारी किया, जिसमें कहा गया था कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम (रेगुलेशन), 2002, चिकित्सकों और उनके पेशेवर संघों को फार्मास्युटिकल और संबद्ध (एलाइड) स्वास्थ्य क्षेत्र के उद्योगों (इंडस्ट्री) से कोई उपहार, यात्रा सुविधा, आतिथ्य, नकद या मौद्रिक अनुदान (ग्रांट) स्वीकार करने से रोकता हैं। नतीजतन, उपरोक्त परिपत्र में कहा गया है कि किसी भी निर्धारिती द्वारा किए गए इन व्ययों के संबंध में कोई कटौती की अनुमति नहीं दी जाएगी क्योंकि ये भारतीय चिकित्सा परिषद के मानदंडों के उल्लंघन में हैं। हालांकि, इस परिपत्र को भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग परिसंघ (कंफेडरेशन) बनाम सीबीडीटी (2013) के मामले में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जिसमें उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और सीबीडीटी परिपत्र की वैधता की पुष्टि की थी।

हालाँकि, कई न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनल) ने निर्धारिती के व्यय को अधिकृत किया है, जबकि अन्य न्यायाधिकरणों और अदालतों ने भी इसे अस्वीकार कर दिया है। ऐसे में इस मामले पर स्पष्ट कानूनी स्थिति की जरूरत थी। वित्त विधेयक (फाइनेंस बिल), 2022 में प्रस्तावित संशोधन उपरोक्त मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास करता है।

नतीजतन, धारा 37(1) के लिए एक नया स्पष्टीकरण-3 जोड़ा गया है, जो अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) “एक निर्धारिती द्वारा किसी भी उद्देश्य के लिए किया गया व्यय जो एक अपराध है या जो कानून द्वारा निषिद्ध है” को समझाने के लिए जोड़ा गया है।

संशोधन

स्पष्टीकरण 3 को अस्पष्टता से बचने के लिए जोड़ा गया था, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से सिद्ध किया गया है कि स्पष्टीकरण -1 में “किसी भी गतिविधि के लिए एक निर्धारिती द्वारा खर्च किया गया व्यय जो एक अपराध या कानून द्वारा निषिद्ध कार्य है” शामिल होना चाहिए और निर्धारिती के व्यय में हमेशा शामिल माना जाएगा- 

  • किसी भी आचरण के लिए जो भारत या अन्य जगहों पर प्रभावी किसी भी कानून के तहत अपराध है या प्रतिबंधित है; या भारत या अन्य जगहों पर पहले से ही प्रभावी किसी भी कानून के तहत उल्लंघन को कम करने के लिए है।
  • किसी व्यक्ति जो व्यवसाय कर रहा हो, को किसी भी लाभ या अनुलाभ की पेशकश करने के लिए और ऐसे व्यक्ति द्वारा इस तरह के लाभ या अनुलाभ की स्वीकृति प्रावधानों, नियम, विनियम, या दिशानिर्देश के उल्लंघन में हो सकती है। 

संशोधन का विश्लेषण

धारा में संशोधन ने कई मुद्दों का समाधान प्रदान किया है जिनका प्रावधान की अस्पष्टता के कारण लोग सामना कर रहे थे। संशोधन ने निम्नलिखित तरीकों से समाधान प्रदान किया है:

  • स्पष्टीकरण-3 का खंड (ii) चिकित्सा और स्वास्थ्य उद्योगों द्वारा प्रदान किए जा रहे अनधिकृत लाभों या अनुलाभों के मुद्दे को हल करता है और परिणामस्वरूप, उपहार, यात्रा सुविधाओं, अनुलाभों, नकद चिकित्सकों और उनके पेशेवर संगठनों को प्रदान किए जाने वाले अन्य वित्तीय पुरस्कार के रूप में किए गए किसी भी व्यय के लिए कोई छूट नहीं दी जाएगी।
  • यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि उपरोक्त संशोधन के स्पष्टीकरण में “हमेशा शामिल किया हुआ माना जाएगा” वाक्यांश के उपयोग के कारण इसका पूर्वव्यापी (रेस्ट्रोस्पेक्टिव) प्रभाव है।
  • स्पष्टीकरण 3 अतिरिक्त रूप से बताता है कि किसी भी उद्देश्य के लिए खर्च करने के लिए कोई कटौती की अनुमति नहीं दी जाएगी जो कि विदेशी कानून के तहत अपराध है या विदेशी कानून के उल्लंघन के लिए अपराध के संज्ञान (कंपाउंडिंग) के लिए है। इस संशोधन से पहले, यह तर्क दिया गया था कि उप-धारा 37(1) का स्पष्टीकरण-1 केवल देश में घरेलू कानून द्वारा निषिद्ध अपराधों से संबंधित है। पूर्वव्यापी आधार पर, स्पष्टीकरण-3 ने अब इस स्थिति को रद्द कर दिया है।

धारा 37(1) के तहत व्यापार आय से कटौती के रूप में स्वीकार्य व्यय की सूची

दलाली (कमीशन)

देवेंद्र एक्सपोर्ट्स (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम एसीआईटी के मामले में मूल्यांकन प्रक्रियाओं के दौरान, मूल्यांकन अधिकारी ने विदेशी एजेंटों को भुगतान की गई दलाली के लिए निर्धारिती के दावे से इनकार किया था। अपील पर, यह कहा गया कि संबंधित वित्तीय वर्ष में बिक्री के परिणामस्वरूप दलाली देने की आवश्यकता हुई थी। इस दृष्टि से, बिक्री राशि को अगले वित्तीय वर्ष में प्राप्त करने से थोड़ा फर्क पड़ेगा क्योंकि दलाली का भुगतान करने का शुल्क बिक्री के वर्ष में ही स्पष्ट हो गया था। उपरोक्त मामले के प्रकाश में, न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) ने निर्धारित किया कि दलाली भुगतान के लिए कटौती के लिए निर्धारिती का दावा मंजूर किया जाना चाहिए।

मशीनो को बदलना 

सीआईटी बनाम गीतांजलि मिल्स लिमिटेड (1986) के मामले के अनुसार, पुरानी मशीनरी को बदलने पर होने वाले व्यय को चल रही मरम्मत के बजाय “संचित (एक्युमुलेटेड) मरम्मत” के रूप में वर्गीकृत किया गया था। नतीजतन, उच्च न्यायालय ने धारा 31 के बजाय धारा 37 के तहत इस तरह की कटौती की अनुमति दी। इसके अलावा, सीआईटी बनाम मोदी इंडस्ट्रीज लिमिटेड (1957), के मामले में जहां निर्धारिती बड़े उपकरणों के टुकड़े खरीदता है, ऐसा खर्च राजस्व व्यय के रूप में स्वीकार्य किए गए थे।

इसी तरह, सीआईटी बनाम मलेरकोटला स्टील्स एंड अलॉयज (प्राइवेट) (2015) में कहा गया कि सांचों को बदलने के परिणामस्वरूप एक नई पूंजीगत परिसंपत्ति का निर्माण या स्थायी प्रकृति का लाभ नहीं है। और केवल यह तथ्य कि उत्पादन प्रक्रिया में सांचो का उपयोग किया गया था, व्यय की प्रकृति के रूप में निर्णायक नहीं हो सकता; इस प्रकार, सांचों प्रतिस्थापन पर व्यय राजस्व व्यय था।

अस्वथ एन राव (डॉ) बनाम एसीआईटी (2010), में जहां निर्धारिती ने नकद लेखा प्रणाली का उपयोग किया था, इसके स्पेयर पार्ट्स का उपयोग करने के उद्देश्य से प्रयुक्त मशीनरी की खरीद के लिए किया गया व्यय राजस्व व्यय है और उस वर्ष में कटौती योग्य है जिसमें बिक्री प्रतिफल (कंसीडरेशन) का भुगतान किया गया था, भले ही प्रासंगिक वर्ष के अंत के बाद भारत में मशीनरी प्राप्त हुई थी।

इसी तरह, महिंद्रा एंड महिंद्रा बनाम जेसीआईटी (2016), में धारा 37 के तहत अपने मौजूदा यूटिलिटी वाहनों के प्रदर्शन में सुधार लाने और मिट्टी के मॉडल की अवधारणा विकसित करने के उद्देश्य से एक विदेशी कंपनी को भुगतान की गई राशि धारा 37 के तहत स्वीकार्य थी क्योंकि व्यय एक मौजूदा उत्पाद (1) के प्रदर्शन में सुधार करने के लिए किया गया था।

किरायेदार को मुआवजा

सीआईटी बनाम लकी भारत गैरेज (1988) के अनुसार, खाली कब्जा प्राप्त करने के लिए ऐसी संपत्ति पर किरायेदार द्वारा निर्मित संरचना में रहने वाले किरायेदार को निर्धारिती द्वारा भुगतान की गई राशि पूंजीगत व्यय है। हालाँकि, सैप लैब्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम एसीआईटी (2016), में निर्धारिती ने व्यापार के लिए आधारभूत (इंफ्रास्ट्रक्चरल) सुविधाओं के लिए भूमि के अधिग्रहण के लिए एक समझौता किया, लेकिन निर्धारिती ने समझौते को रद्द कर दिया और मुआवजे का भुगतान किया, जिसे पूंजी के रूप में माना गया और यह राजस्व व्यय के रूप में स्वीकार्य नहीं था, इसलिए यह कटौती योग्य भी नहीं है।

यात्रा व्यय

आईटीओ बनाम आरएसजी मीडिया (प्राइवेट) लिमिटेड के मामले में, जहां निर्धारिती-कंपनी ने अपने निदेशक (डायरेक्टर) के लिए बोर्ड की बैठकों में भाग लेने और विभिन्न प्राधिकरणों (अथॉरिटी) के समक्ष विभिन्न कागजात दाखिल करने के लिए यात्रा व्यय का खर्च किया था, कटौती के लिए निर्धारिती का दावा स्वीकृत किया गया था।

मुनीश गुप्ता बनाम डिप्टी सीआईटी (2019) के मामले में खर्च स्वीकार्य नहीं थे क्योंकि निर्धारिती मालिकाना व्यवसाय की गतिविधियों के लिए कार के उपयोग को स्थापित करने के लिए लॉगबुक या रिकॉर्ड पेश करने में असमर्थ था। निर्धारिती ने हीरा संस्थान से रिकॉर्ड पर एक प्रमाण पत्र प्रदान किया था जिसमें दिखाया गया था कि उसकी पत्नी ने पॉलिश किए गए हीरों में एक कोर्स किया था और आभूषण तकनीक में डिप्लोमा किया था। पत्नी के विदेशी दौरे के खर्चों के बारे में अधिक जानकारी, जिसमें उसके द्वारा खरीदी गई विदेशी मुद्रा भी शामिल है, भी प्रदान की गई। अदालत के अनुसार, निर्धारिती की पत्नी योग्य थी और उसने पति या पत्नी के स्वामित्व वाले व्यवसाय के उद्देश्य से कई स्थानों की यात्रा की थी। परिणामस्वरूप, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए निर्धारिती का व्यय कटौती के रूप में स्वीकृत किया जाना था।

व्यवहार्यता (फिजेबिलिटी) पर रिपोर्ट

केजेएस इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम सीआईटी (2012) के मामले में यह निष्कर्ष निकाला गया था कि निर्धारिती, एक शीतल पेय निर्माता, ने कीमत के साथ अपने ब्रांड के प्रदर्शन की पहचान करने, मौजूदा कीमत या कम कीमत पर उपभोक्ता मांग को मापने के लिए एक पेशेवर एजेंसी की सेवाओं का उपयोग करते हुए एक बाजार अध्ययन किया था, और यह जानने के लिए किया कि क्या इसका ब्रांड मूल स्वादों और नए स्वादों के बीच अलग-अलग मूल्य निर्धारण को अपना सकता है, और लागतों को परिस्थितियों की जांच के लिए खर्च किया गया था कि कैसे निर्धारिती अपने व्यवसाय को और अधिक प्रभावी ढंग से चला सकता है। चूंकि निर्धारिती ने अभी अपने निर्माण कार्य को रोक दिया है, लेकिन अपनी व्यापारिक गतिविधि को बंद नहीं किया है, यह कंपनी के बंद होने का मामला नहीं है, और इसलिए कर्मचारी विच्छेद (सेवरेंस) के लिए किए गए व्यय राजस्व व्यय के रूप में स्वीकार्य हैं।

विदेश यात्राएं

सीआईटी बनाम विलियमसन टी (असम) लिमिटेड (2001) के मामले में यह आयोजित किया गया था कि  यूरोपीय देशों में पत्नियों के लिए अपने पति के साथ जाने की प्रथा थी और पत्नियों की अपने पति के साथ यात्रा को पत्नियों की व्यक्तिगत यात्रा नहीं कहा जा सकता था, लेकिन इसे कंपनी के व्यवसाय के उद्देश्य से किया गया माना जाना था। विदेश यात्रा की लागत कटौती योग्य थी। कॉटन कॉलेज के शताब्दी समारोह, राज्य स्तरीय राष्ट्रीय बाल कांग्रेस और क्लबों के कार्यक्रमों जैसे प्रायोजन (स्पॉन्सरिंग) कार्यक्रम जिनमें निदेशक विज्ञापन में सदस्य थे और निर्धारिती और उसके सामान की पहचान में वृद्धि हुई थी। चूँकि इवेंट प्रायोजकों के रूप में निर्धारिती के बैनर उत्सवों में प्रदर्शित किए गए थे, ऐसे खर्च को केवल कंपनी की आय बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया माना जा सकता है और इस प्रकार इसकी अनुमति दी जाती है।

वारंटी 

लेनोवो इंडिया लिमिटेड बनाम एसीआईटी (2016), के मामले में निर्धारिती ने आईबीएम इंडिया के पर्सनल कंप्यूटर और लैपटॉप डिवीजन को खरीदा था और पीसी और एमसी का व्यापार और निर्माण जारी रखा था। इसने भारतीय ग्राहकों को बेचे जाने वाले पीसी और लैपटॉप पर एक साल या तीन साल की वारंटी की पेशकश की थी। निर्धारिती ने पूरे वर्ष में किए गए वास्तविक वारंटी व्यय को श्रेय दिया और असमाप्त समय के लिए की गई बिक्री पर वारंटी दायित्वों के आकलन के आधार पर लाभ और हानि खाते में अतिरिक्त प्रावधान भी किया और इसके लिए कटौती के रूप में दावा भी किया। यह माना गया था कि क्योंकि आईबीएम पिछले मूल्यांकन वर्षों में भारत में व्यापार कर रहा था और विश्वव्यापी डेटा के आधार पर वारंटी प्रावधान कर रहा था, निर्धारिती गणना के लिए आईबीएम द्वारा पिछले वर्षों में उपयोग किए गए डेटा का उपयोग कर सकता है, और यदि निर्धारिती ने वैज्ञानिक आधार पर प्रावधान किया था, तो इसे कटौती के रूप में प्रदान किया जाना था।

नई परियोजना (प्रोजेक्ट)

रूसी प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) केंद्र प्राइवेट लिमिटेड बनाम डिप्टी सीआईटी (2008) के मामले में, यह निर्धारित किया गया था कि निर्धारिती को रक्षा मंत्रालय द्वारा आपूर्तिकर्ता (सप्लायर) के रूप में एक विक्रेता के रूप में पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) नहीं दिया गया था और इसलिए कोई आपूर्ति नहीं हुई। नतीजतन, फर्म अभी तक स्थापित नहीं हुई थी, इसलिए खर्च को अस्वीकार कर दिया गया था। हालांकि, पंजीकरण के बाद के खर्च स्वीकार्य थे।

लेकिन, सीआईटी बनाम सैमसंग इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (2013), के मामले में सभी निर्धारिती प्रमुख व्यक्तियों की भर्ती, समझौतों में शामिल होने और 1 अक्टूबर, 1995 को आवश्यक बुनियादी ढांचे और वाणिज्यिक (कमर्शियल) गतिविधियों को शुरू करने से निगमन (इंकॉर्पोरेशन) की तारीख से पहले वाणिज्यिक संचालन शुरू करने के लिए तैयार थे। इस तिथि से पहले किए गए व्यय पूर्व-प्रारंभिक व्यय नहीं हैं और इस प्रकार अनुमत हैं।

उन्नति या मरम्मत

सीआईटी बनाम एच.पी. ग्लोबल सॉफ्ट लिमिटेड (2018), में यह निर्धारित किया गया था कि पूंजीगत व्यय को राजस्व व्यय से अलग करने के लिए सटीक दिशानिर्देश नहीं बनाए जा सकते हैं। विभाजन रेखा संकीर्ण (नैरो) है। हालाँकि, कुछ व्यापक परीक्षण स्थापित किए गए हैं। प्रत्येक मामला अपने अनूठे तथ्यों द्वारा निर्धारित किया जाता है। खर्च का उद्देश्य और इरादा यह स्थापित करेगा कि यह पूंजीगत व्यय है या राजस्व व्यय है। जब फर्म के दीर्घकालिक (लॉन्ग टर्म) लाभ के लिए एक संपत्ति या लाभ प्राप्त करने या बनाने के लिए एक व्यय किया जाता है, तो इसे उचित रूप से पूंजी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है और यह पूंजीगत व्यय का एक प्रकार का होता है। लकड़ी के विभाजन प्रदान करने, पट्टे (लीज) पर दिए गए परिसर को पेंट करने, परिसर को उपयोग करने योग्य बनाने के लिए मरम्मत करने और शीशे को बदलने पर खर्च की गई राशि को राजस्व व्यय माना जाता है। बिजली, सिविल कार्यों और आंतरिक डिजाइन पर व्यय, व्यय की प्रकृति को निर्धारित करने के मुद्दे में ध्यान रखे जाते है।

एपीएल इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम सीआईटी (2017) के मामले में सीडी रोम ड्राइव, हार्ड डिस्क ड्राइव और रैम जैसे भाग, जो कंप्यूटर की सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के हिस्से हैं, को अलग और स्वतंत्र मशीनरी नहीं माना जाता है; परिणामस्वरूप, ऐसे भागों पर व्यय राजस्व व्यय के रूप में माना जाता है। हालाँकि, एक प्रिंटर, स्कैनर और वेब कैमरा अलग-अलग मशीनें हैं, ऐसे गैजेट्स में निवेश प्रकृति में पूंजीवादी है। राजस्व व्यय में एक नई पूंजीगत संपत्ति के निर्माण के बिना व्यावसायिक उपयोग के लिए कार्यालय परिसर को उपयुक्त बनाने के लिए निर्धारिती द्वारा किया गया खर्च शामिल है। स्प्लिट एसी पर व्यय पूंजी प्रकृति का है क्योंकि निर्धारिती ने एक नई संपत्ति बनाई है।

धारा 37(1) के तहत व्यापार आय से कटौती के रूप में अस्वीकार्य व्यय की सूची

सामान्य व्यय

गुरुदास मान बनाम डिप्टी सीआईटी (2012) के मामले में निर्धारिती एक फिल्म निर्माता और कार्यक्रम आयोजक है। निर्धारिती ने परियोजना पूर्णता तरीके का उपयोग किया, जिसके परिणामस्वरूप फिल्म कंपनी को नुकसान हुआ और संगीत रिकॉर्ड से लाभ हुआ। इसके अलावा, निर्धारिती ने पिछली फिल्मों से कमाई, यानी रॉयल्टी, फिल्म प्रसारण (ब्रॉडकास्ट) अधिकार, फिल्म उपग्रह (सैटेलाइट) अधिकार, और व्यक्तिगत रूप से अपनी प्रत्येक परियोजना के संबंध में संबंधित व्यय प्रदान किया। इसके अलावा, निर्धारिती ने दीवाली के खर्च, छपाई और स्टेशनरी, पेशेवर शुल्क, वाहन, क्रेडिट कार्ड शुल्क, मूल्यह्रास (डेप्रिसिएशन), कपड़े और पोशाक, ऋण पर ब्याज, विविध खर्च और टेलीफोन शुल्क जैसे सामान्य खर्चों का दावा भी किया। निर्धारण अधिकारी ने निर्धारित किया कि पेशेवर शुल्क, प्रचार, व्यापार विपणन (मार्केटिंग), पोशाक आदि के लिए किया गया व्यय पुरानी फिल्म आय से संबंधित नहीं था और इसलिए अनुमेय नहीं था। निर्धारण अधिकारी के निर्णय की आयुक्त (अपील) द्वारा पुष्टि की गई थी। अपील पर, न्यायाधिकरण ने निर्धारित किया कि लागत और शीर्षक पंजीकरण शुल्क जो साधारण व्यावसायिक खर्चों से संबंधित नहीं हैं, स्वीकार्य नहीं हैं। न्यायाधिकरण ने यह भी निर्धारित किया कि नए फर्नीचर की खरीद पर व्यय स्वीकार्य नहीं है। न्यायाधिकरण ने आगे निर्धारित किया कि विद्युत (इलेक्ट्रिक) स्थापना को बदले गए विद्युत उपकरण की प्रकृति को प्रदर्शित करने के लिए अपर्याप्त साक्ष्य थे, इसलिए कटौती से इनकार किया गया था।

नैगमिक (कॉरपोरेट) गारंटी 

सीआईटी बनाम युनाइटेड ब्रुअरीज लिमिटेड (2007), में निर्णय के अनुसार निर्धारिती कंपनी द्वारा निर्धारिती कंपनी की दो सहायक कंपनियों द्वारा निश्चित कंपनियों के लिए बकाया गारंटी दायित्वों का निर्वहन करने के लिए किया गया भुगतान, जो बाद के साथ समामेलित था, जिसका निर्धारिती के व्यवसाय से कोई प्रत्यक्ष निकटता या संबंध नहीं था और इस लिए यह कटौती के रूप में स्वीकार्य नहीं था।

गैर-प्रतिस्पर्धा शुल्क (नॉन कंपीट फीस)

ऑर्किड केमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड बनाम एसीआईटी (2019) में, एक फार्मास्युटिकल फर्म की खरीद पर निर्धारिती द्वारा गैर-प्रतिस्पर्धी शुल्क का भुगतान किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप माल की एक नई पंक्ति का मूल्यांकन राजस्व व्यय के रूप में स्वीकार्य नहीं है। व्यय को आस्थगित (डिफर्ड) राजस्व व्यय के रूप में पहचाना जाना है और प्रासंगिक निर्धारण वर्ष से शुरू होने वाली चार साल की यथानुपात (प्रो राटा) अवधि के लिए अधिकृत है।

रियल इमेज टेक्नोलॉजी (प्राइवेट) लिमिटेड (2012) में, राजस्व व्यय के रूप में प्रस्तुत गैर-प्रतिस्पर्धी शुल्क भुगतान को पूंजीगत व्यय माना गया था। धारा 32 के तहत इसे एक अमूर्त संपत्ति के रूप में मानने के लिए निर्धारिती की वैकल्पिक याचिका थी और इसलिए इस मामले के मूल्यह्रास अनुदान को बरकरार रखा गया था।

दान

ए.एम माथुर बनाम डिप्टी आय कर आयुक्त (2007), के मामले में निर्धारिती, एक वकील ने एक धर्मार्थ (चेरिटेबल) ट्रस्ट के लिए विशेष अनुरोध के साथ योगदान दिया कि ब्याज का उपयोग पुस्तकों और पत्रिकाओं को प्राप्त करने और अदालत में अभ्यास करने वाले अधिवक्ताओं को अन्य प्रोत्साहन देने के लिए किया जाना चाहिए। न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया कि क्योंकि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि योगदान सीधे निर्धारिती की कंपनी या पेशे से संबंधित था, इसे इसके लिए व्यावसायिक व्यय के रूप में अनुमति नहीं दी गई थी।

पूर्व अवधि के खर्चे

कैडिला फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड बनाम एसीआईटी, में निर्धारिती ने लेखापरीक्षा (ऑडिट) शुल्क और कच्चे माल की खरीद के लिए कटौती की मांग की थी। निर्धारण अधिकारी ने यह कहते हुए निर्धारिती के दावे का खंडन किया कि शुल्क पूर्व-अवधि के खर्चे थे। न्यायाधिकरण ने निर्धारित किया कि लेखापरीक्षा पिछले वर्षों में किया गया था, भले ही पिछले वर्ष में बिल प्राप्त नहीं हुआ हो, उस वर्ष में व्यय का मूल्यांकन किया जाना चाहिए था, और इसलिए परीक्षा के तहत वर्ष में कटौती स्वीकार्य नहीं थी। कच्चे माल की लागत के संबंध में, क्योंकि निर्धारिती अपने मामले का समर्थन करने के लिए किसी भी सामग्री को रिकॉर्ड पर लाने में विफल रहा कि आपूर्तिकर्ता को किए जाने वाले भुगतान के संबंध में कोई विवाद था और विवाद को संबंधित वर्ष में सुलझा लिया गया था, कटौती के लिए कोई मामला नहीं बनाया गया था, और इस प्रकार अस्वीकृति को उचित समझा गया था।

निष्कर्ष

आम तौर पर, धारा 37(1) कहती है कि व्यापार के लिए पूरी तरह से किया गया खर्च कटौती के रूप में स्वीकार्य है। हालांकि, पिछली चर्चा के आधार पर, यह स्पष्ट है कि उपरोक्त प्रावधान का दायरा एक विशिष्ट कटौती के दावे की अनुमति देने के लिए काफी व्यापक है, बशर्ते उसमें निर्धारित कुछ आवश्यकताओं को पूरा किया गया हो।

राजस्व विभाग का अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) व्यय की वास्तविकता का निर्धारण करने तक सीमित है, अर्थात, कटौती के लिए दावा की गई राशि वास्तव में खर्च की गई थी या नहीं और क्या यह पूरी तरह से और केवल व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए थी। एक बार निर्धारिती के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद पूरी राशि काट ली जानी चाहिए। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि अधिनियम के तहत आय का आकलन करने में अनुमत कटौती संपूर्ण नहीं है। आयकर को लाभ उत्पन्न करने के लिए किए गए व्यय के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है; बल्कि, इसे कमाई के बाद लाभ के आवेदन के रूप में माना जाता है, और इसलिए यह कटौती योग्य नहीं है। व्यक्तिगत लागत, जैसे कि निर्धारिती द्वारा भोजन और कपड़ों के लिए किए गए खर्च को भी धारा 37(1) के तहत कटौती के रूप में अनुमति नहीं है।

यह निर्धारित करने के लिए कि क्या कोई विशेष व्यय व्यवसाय के उद्देश्य के लिए पूर्ण या आंशिक रूप से न्यायोचित (जस्टीफाइड) है, यह निर्धारित करने के लिए नहीं है कि क्या यह आवश्यक था, और न ही यह निर्धारित करना उचित है कि क्या किसी अन्य समान स्थिति वाले व्यक्ति ने व्यय करना उचित समझा होगा। वास्तविक परीक्षण यह निर्धारित करने के लिए है कि क्या व्यवसायी, जब उसने पैसा खर्च किए, अपने स्वयं के व्यवसाय के हितों में यथोचित व्यवहार कर रहा था, किसी अप्रासंगिक और बाहरी विचारों से प्रभावित नहीं था, और यदि व्यय निर्धारिती के नियमित व्यवसाय गतिविधि के उद्देश्य से नियोजित किया गया था।

संदर्भ

 

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