संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के तहत पुरोबंध का अधिकार

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इस ब्लॉगपोस्ट में, गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की छात्रा Nimisha Srivastava, संपत्ति हस्तांतरण (ट्रांसफर) अधिनियम के तहत पुरोबंध (फॉरेक्लोजर) के अधिकार के बारे में बताती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 a) अचल संपत्ति से संबंधित विभिन्न विशिष्ट हस्तांतरणों से संबंधित है। b) चल और अचल संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित सामान्य सिद्धांत से संबंधित है। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 का अध्याय II चल और अचल संपत्ति दोनों से संबंधित है। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 58 से 104 बंधक (मॉर्गेज) और भार (चार्ज) से संबंधित है।

बंधक कुछ अचल संपत्ति में हित का हस्तांतरण है, जो की उधार के तौर पर दिए गए धन के संदाय (एडवांसमेंट) के लिए एक प्रतिभूति (सिक्योरिटी) के रूप में होता है। जो व्यक्ति प्रतिभूति देता है और उधार लेता है उसे बंधककर्ता (मॉर्गेजर) कहा जाता है और जो व्यक्ति धन संदाय करता है उसे बंधकदार (मॉर्गेजी) कहा जाता है। बंधककर्ता और बंधकदार के बीच का संबंध लेनदार और देनदार का होता है। भारत में बंधक पर कानून संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 द्वारा शासित होता है।

पुरोबंध का अधिकार एक बंधकदार को अपने बकाया धन की वसूली के लिए उपलब्ध अधिकार है। यह अधिकार संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 67 के तहत उपलब्ध है। मूल राशि देय होने के बाद, और बंधककर्ता द्वारा बंधक धन के भुगतान से पहले या न्यायालय द्वारा मोचन (रिडेंप्शन) की डिक्री पारित होने से पहले, बंधकदार के पास अधिकार है की वह न्यायालय से पुरोबंध की डिक्री प्राप्त कर सकता है। एक डिक्री प्राप्त करने के लिए एक वाद कि एक बंधककर्ता को बंधक रखी गई संपत्ति को मोचन करने के अपने अधिकार का प्रयोग करने से पूरी तरह से वंचित किया जाएगा, पुरोबंध के लिए एक वाद कहा जाता है।

स्थितियाँ जिसमे पुरोबंध के अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है

बंधकदार द्वारा पुरोबंध के अधिकार का प्रयोग केवल निम्नलिखित स्थितियों में किया जा सकता है:

  • ऋण की रकम देय हो गई है।
  • बंधक विलेख (डीड) में पुनर्भुगतान के लिए निर्धारित समय आदि के संबंध में कोई विपरीत शर्तें नहीं हैं।
  • बंधक धन देय हो गया है लेकिन बंधककर्ता को बंधक संपत्ति के मोचन की डिक्री नहीं मिला है।
  • बंधक राशि देय हो गई है लेकिन बंधककर्ता ने राशि का भुगतान या जमा नहीं किया है। बंधक राशि देय हो जाने के बाद, बंधककर्ता तीन तरीकों से अपना ऋण चुका सकता है:
  1. बंधकदार को सीधे बंधक राशि का टेंडर देकर या भुगतान करके
  2. मोचन के लिए वाद दायर करके।
  3. रकम न्यायालय में जमा करके। 
  • बंधकदार को नहर, रेलवे आदि जैसे सार्वजनिक कार्यों का बंधकदार नहीं होना चाहिए।
  • बंधकदार का कोई न्यासकर्ता (ट्रस्टी) या कानूनी प्रतिनिधि पुरोबंध के लिए नहीं बल्कि केवल बिक्री के लिए वाद दायर कर सकता है।

हालाँकि, जब बंधककर्ता संपत्ति को मोचन करने में विफल रहता है, तो बंधकदार संपत्ति का मालिक नहीं बन जाता है, और उसे देय राशि की वसूली के लिए वाद दायर करना पड़ता है। वाद संस्थित करने की सीमा अवधि 12 वर्ष है। प्रतिवादी द्वारा देय सभी राशियों का भुगतान करने में विफलता पर पुरोबंध के वाद में अंतिम डिक्री मोचन के अधिकार को समाप्त कर देती है जिसे विशेष रूप से घोषित किया जाता है। एक बंधकदार एक ही बंधककर्ता द्वारा निष्पादित दो या दो से अधिक बंधक रख सकता है। ऐसे प्रत्येक बंधक के संबंध में, उसे पुरोबंध की डिक्री प्राप्त करने का अधिकार हो सकता है। यदि वह बंधकों में से किसी एक पर ऐसी डिक्री प्राप्त करने के लिए वाद करता है, तो वह उन सभी बंधकों पर वाद करने के लिए बाध्य होगा जिनके संबंध में बंधक धन देय हो गया है। 

पुरोबंध का अधिकार और मोचन का अधिकार:

पुरोबंध का अधिकार मोचन के अधिकार का प्रति-भाग है। बंधककर्ता को ऋण राशि के भुगतान के बाद अपनी प्रतिभूति को मोचन करने का अधिकार मिलता है; इसी प्रकार बंधकदार के पास बंधककर्ता द्वारा मोचन में चूक होने पर पुरोबंध या बिक्री का अधिकार होता है। धारा 67 उस बंधकदार के हितों की रक्षा करती है जिसने किसी प्रतिभूति में कुछ हित के अनुसरण में ऋण दिया है और बंधककर्ता ने भुगतान में चूक की है। बंधकदार के पुरोबंध का अधिकार बंधककर्ता के मोचन के अधिकार के साथ सह-विस्तृत (को-एक्सटेंसिव) है। अनुबंध में व्यक्त इरादे के अधीन, बंधकदार को अपनी प्रतिभूति लागू करने का अधिकार तब मिलता है जब बंधककर्ता को मोचन करने का अधिकार प्राप्त होता है। लेकिन यह नियम बंधक की शर्तों तक सीमित हो सकता है और यदि सीमा दमनकारी या अनुचित नहीं है, तो इसे प्रभावी किया जाएगा। पुरोबंध का अधिकार पक्षों के बीच अनुबंध के अधीन प्रकृति में सीमित हो सकता है, लेकिन मोचन का अधिकार एक पूर्ण अधिकार है, जिसे किसी भी तरह से सीमित नहीं किया जा सकता है।

इसका तात्पर्य यह है कि जब कोई बंधकदार बंधक राशि की वसूली के अपने अधिकार के बारे में एक बयान देता है, तो ऐसा बयान बंधककर्ता के मोचन के संबंधित अधिकार को स्वीकार करता है। इसके अलावा, न्यायिक संबंध को स्वीकार करने वाले एक बयान को वहां से आने वाले अधिकारों और दायित्वों का उल्लेख या दोहराव करने की आवश्यकता नहीं है। जहां बंधक का एक पक्ष, अपने बयान से, बंधक के अस्तित्व या बंधक के तहत अपने अधिकारों को स्वीकार करता है, वह बंधक की सभी कानूनी घटनाओं को स्वीकार करता है जिसमें बंधककर्ता और बंधकदार दोनों पक्षों के अधिकार और दायित्व शामिल हैं।

पुरोबंध और विभिन्न प्रकार के बंधक

यह अधिनियम छह प्रकार के बंधक पर विचार करता है, अर्थात् सादा बंधक, सशर्त बिक्री द्वारा बंधक, भोग (यूसुफ्रक्टरी) बंधक, अंग्रेजी बंधक, हित विलेख के निक्षेप (डिपॉजिट) द्वारा बंधक और विलक्षण (एनोमेलस) बंधक। 

  • सादा बंधक: ऐसे बंधक में बंधकदार को बंधक की गई संपत्ति पर कब्जा नहीं मिलता है और इसलिए वह पुरोबंध के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता है। इसका उपाय या तो बंधककर्ता के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से कार्यवाही करना या बंधक की गई संपत्ति की बिक्री करना है।
  • सशर्त बिक्री द्वारा बंधक: सशर्त बिक्री द्वारा बंधक भुगतान की चूक के मामले में प्रावधान करता है की बंधक बिक्री बन जाएगा। ऐसी स्थिति में उपाय पुरोबंध नहीं है बल्कि बंधककर्ता के मोचन के अधिकार पर रोक लगाना है।
  • भोग बंधक: इस बंधक के तहत, बंधकदार पैसे के पुनर्भुगतान तक संपत्ति का कब्जा बरकरार रखता है और ब्याज और बंधक धन के भुगतान में या आंशिक रूप से ब्याज के बदले में और आंशिक रूप से बंधक धन के भुगतान के बदले में किराया और लाभ या उसका कुछ हिस्सा प्राप्त करता है। मोचन तब होता है जब देय राशि का भुगतान व्यक्तिगत रूप से किया जाता है या किराए या प्राप्त लाभ से चुकाया जाता है। उसे पुरोबंध या बिक्री का अधिकार नहीं है। 
  • अंग्रेजी बंधक: एक बंधककर्ता व्यक्तिगत रूप से ऋण का भुगतान करने के लिए बाध्य होता है, और बंधकदार के पक्ष में बंधक की गई संपत्ति का पूर्ण हस्तांतरण होता है। इसलिए उसे पुरोबंध का अधिकार नहीं है बल्कि बंधक की गई संपत्ति की बिक्री के लिए वाद दायर करने का अधिकार है।
  • हक विलेख के निक्षेप द्वारा बंधक: धारा 96 के अनुसार, स्वामित्व विलेखों का बंधक एक साधारण बंधक के समान स्तर पर है, इसलिए उपलब्ध उपाय बंधक की गई संपत्ति की बिक्री है।
  • विलक्षण बंधक: उपाय, बंधक विलेख में निहित शर्तों पर निर्भर करता है क्योंकि विलक्षण बंधक दो या दो से अधिक प्रकार के बंधकों का संयोजन है। 

आंशिक पुरोबंध:

आंशिक पुरोबंध धारा 67 के तहत एक उपाय नहीं है। नियम यह है कि कई बंधक धारकों में से एक अपने हिस्से के संबंध में पुरोबंध या बिक्री नहीं कर सकता है जब तक कि कई बंधक धारकों ने, बंधककर्ता की सहमति से, बंधक के तहत अपने हितों को अलग नहीं कर दिया हो। इस नियम का कारण बंधककर्ता को कई वाद से परेशान होने से बचाना है, जहां बंधककर्ता की सहमति के बिना बंधकदार के हितों का विच्छेद हुआ है। तदनुसार सभी सह-बंधकदारों को एक साथ मिलकर संपूर्ण बंधक धन के संबंध में एक वाद दायर करना होगा।

प्रत्यासन (सब्रोगेशन)

जहां बंधक की गई संपत्ति का मोचन किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिसका बंधकदार के अलावा बंधक की गई संपत्ति में हित है, जैसे कि बाद वाला बंधकदार, सह-बंधककर्ता, बंधक की गई संपत्ति का खरीदार, बंधक ऋण का ज़मानतदार (श्योरिटी) या बंधककर्ता का लेनदार, ऐसा व्यक्ति बंधकदार की स्थिति में प्रवेश करता है। उसे वे सभी अधिकार मिलते हैं जो ऋणदाता (बंधकदार) को मुख्य ऋणी (बंधककर्ता) के विरुद्ध प्राप्त होते हैं, जिसमें पुरोबंध, मोचन या बिक्री का अधिकार भी शामिल है। इसे प्रत्यासन के रूप में जाना जाता है। हालाँकि, संपूर्ण बंधक का भुगतान व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए।

व्यक्ति प्रतिपूर्ति (रीइंबर्समेंट) के लिए मूल देनदार पर प्रतिभूति लागू कर सकता है। एक व्यक्ति संपत्ति में अपने हित की रक्षा के लिए बंधक का भुगतान करता है या क्योंकि वह ऋण के लिए या ग्रहणाधिकार (लिएन) के निर्वहन (डिस्चार्ज) के लिए द्वितीयक रूप से उत्तरदायी है। हालाँकि, यदि उधारकर्ता ने ऋण की आय का उपयोग पूर्व ऋणभार का निर्वहन करने के लिए किया है, तो यह ऋणदाता को अधिकार देने के लिए पर्याप्त कारण नहीं है। इस बात के पर्याप्त सबूत होने चाहिए कि ऋण उस उद्देश्य के लिए दिया गया था। 

संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 67 के तहत बंधकदार द्वारा उपयोग किए जाने वाले पुरोबंध या बिक्री के अधिकारों का उपयोग करके, उसके द्वारा मोचन किए गए अतिरिक्त शेयर के कब्जे में एक सह-बंधककर्ता, गैर-छुटकारा देने वाले बंधककर्ता के खिलाफ अपने दावे को लागू कर सकता है, लेकिन इससे वह बंधकदार नहीं बन जाता है। ऐसे सह-बंधक के लिए उपलब्ध मोचन, पुरोबंध और बिक्री के उपाय एक उप-प्रतिबंधक के रूप में अधिकार हैं, बंधक के पुनर्गठन के रूप में नहीं, बल्कि बंधक में निहित अधिकारों के समान अधिकारों के माध्यम से। 

पुरोबंध के अधिकार पर विबंधन (एस्टॉपल) 

जहां बंधकदार ने मोचन राशि स्वीकार कर ली है और राशि का पुनर्मूल्यांकन किया है और मोचन का अधिकार लागू किया गया है, तब इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। बंधकदार अनुमोदन (अप्रोबेट) और पुन:पुनर्मूल्यांकन नहीं कर सकता था, क्योंकि बंधकदार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लंबित रहने के दौरान निष्पादन कार्यवाही को चुनौती नहीं दी थी, इसलिए विबंधन के कारण पुरोबंध का अधिकार खो जाता है।

संदर्भ

  • डॉ. अवतार सिंह, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम पर पाठ्यपुस्तक , तीसरा संस्करण (नई दिल्ली: यूनिवर्सल लॉ पब्लिशिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड, 2012)।
  • धारा 58(a), संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882।
  • धारा 67, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882।
  • धारा 82, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882।
  • म्हाडागोंडा रामगोंडा पाटिल बनाम श्रीपाल बलवंत रैनाडे (1988) 3 एससीसी 298।
  • धारा 67-A संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882।
  • धारा 60, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 बंधककर्ता को मोचन का अधिकार देता है।
  • मैना देवी बनाम ठाकुर मानसिंह एवं अन्य, एआईआर 1986 राज 44।
  • प्रभाकरण और अन्य बनाम एम. अज़गिरी पिल्लई (मृत) एलआर द्वारा और अन्य, एआईआर 2006 एससी 1567।
  • धारा 58, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882।
  • अचलदास दुर्गाजी ओसवाल बनाम राम विलास गंगाबेसन हेडा एआईआर 2003 एससी 1017।
  • धारा 91, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882।
  • धारा 92, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882।
  • परिच्चन मिस्त्री बनाम अच्चियाबर मैत्री, एआईआर 1997 एससी 456।
  • वरियावन सरस्वती बनाम इचाम्पी थेवी 1993 सप्लिमेंट(2)एससीसी 201।
  • कृष्णा पिल्लई राजशेखरन नायर बनाम पद्मनाभ पिल्लई (2004)12 एससीसी 754।
  • के. विलासिनी बनाम एडविन पेरीएरा (2008) 14 एससीसी 349।

 

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