आईपीसी की धारा 279 के तहत सजा

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Indian Penal Code

यह लेख जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी, स्कूल ऑफ लॉ, भोपाल, मध्य प्रदेश के छात्र Srejan Gupta Reza द्वारा लिखा गया है। यह लेख भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 279 की व्याख्या करता है, और इस धारा के आसपास की बारीकियों पर प्रकाश डालता है और महत्वपूर्ण मामलो को भी बताता है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय 

जल्दबाजी से और गैर-जिम्मेदार तरीके से वाहन चलाना यह एक ऐसा कार्य है जो मानव जीवन को खतरे में डालता है या इससे किसी अन्य व्यक्ति को चोट लगने की संभावना होती है। जल्दबाजी से वाहन चलाने के कार्य में तेज गति, रेसिंग, ओवरटेकिंग, यातायात संकेत (ट्रैफिक सिग्नल) को अनदेखा करना, नशे में गाड़ी चलाना आदि शामिल हैं। हाल के दिनों में, जल्दबाजी से वाहन चलाने का कार्य सड़क का उपयोग करनेवाले लोगो के लिए प्रमुख समस्याओं में से एक बन गया है। यह विभिन्न कारणों से होता है जैसे वाहनों की बढ़ती संख्या, वाहन चलाते समय ध्यान भटकना, समय सीमा को पूरा करने का दबाव, सड़क सुरक्षा शिक्षा की कमी, खराब वाहन चलाना, आदि। जल्दबाजी से वाहन चलाने से चालकों के साथ-साथ सड़क पर चलनेवाले और अन्य लोग दोनों के लिए भी इसके गंभीर कारण हो सकते हैं। 

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 की धारा 279 के तहत प्रावधान, जनता की सुरक्षा करने और दुर्घटनाओं जिसके परिणामस्वरूप चोट और मृत्यु हो सकती है, को रोकने के लिए है। इस प्रावधान का मूल उद्देश्य व्यक्तियों को सार्वजनिक सड़कों पर जल्दबाजी से वाहन चलाने और सवारी करने से रोकना और जनता के लिए सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस प्रावधान का उद्देश्य जिम्मेदारी से वाहन चलाने की आदतों को बढ़ावा देना और सड़क पर खुद को और दूसरों को खतरे में डालने से रोकना है। 

आईपीसी की धारा 279 के तहत किस अपराध को परिभाषित किया गया है 

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 279 का शीर्षक है, “सार्वजनिक मार्ग पर जल्दबाजी से गाड़ी चलाना या सवारी करना”। इस धारा के तहत, सार्वजनिक रूप से मानव जीवन को खतरे में डालने वाले या व्यक्तियों को चोट पहुंचाने की संभावना वाले जल्दबाजी या लापरवाही से वाहन चलाने के कार्य को अपराध बनाया गया है। यह धारा यह बताती है कि कोई भी व्यक्ति जो सार्वजनिक सड़क या अन्य सार्वजनिक रास्तों पर किसी भी मोटर वाहन को जल्दबाजी या लापरवाही से चला रहा है या उसकी सवारी कर रहा है, जिससे मानव जीवन को खतरा हो सकता है या किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी प्रकार की चोट लग सकती है, वह इस धारा के अंतर्गत सजा के लिए उत्तरदायी होगा। 

चित्रण (इलस्ट्रेशन)

उदाहरण के लिए- “Z” नाम का व्यक्ति सड़क का इस्तेमाल करनेवाले अन्य लोगो की सुरक्षा की परवाह किए बिना लापरवाह तरीके से व्यस्त सड़क पर कार चला रहा है। वह तेज रफ्तार से गलियों में और बाहर घूम रहा है और असुरक्षित तरीके से अन्य वाहनों को ओवरटेक कर रहा है। ऐसा करते हुए वह दूसरी कार से टकरा जाता है और दूसरी कार के चालक और यात्रियों को घायल कर देता है।

उपरोक्त परिदृश्य में, “Z” ने अन्य बातों के साथ-साथ धारा 279 के तहत जल्दबाजी से गाड़ी चलाने का अपराध किया है और वह उस प्रावधान के तहत उचित सजा के लिए उत्तरदायी है।

आईपीसी की धारा 279 के तहत अपराध की अनिवार्यता

धारा 279 के प्रावधान के तहत सार्वजनिक सड़क पर जल्दबाजी से गाड़ी चलाने या सवारी करने का अपराध स्थापित करने के लिए धारा का संक्षिप्त पठन यह बताता है कि इस अपराध के घटित होने के लिए तीन आवश्यक तत्वों को पूरा करने की आवश्यकता है। इस धारा के तहत अपराध स्थापित करने के लिए अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) पक्ष को यह साबित करना होगा कि:

  • अभियुक्त ने सड़क या किसी सार्वजनिक रास्ते पर कोई भी वाहन चलाया,
  • वाहन को जल्दबाजीया जल्दबाजी से चलाया गया था,
  • मानव जीवन के लिए खतरा था या किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचने का खतरा था।

सार्वजनिक मार्ग 

सार्वजनिक मार्ग शब्द को संहिता में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन आम तौर पर यह शब्द किसी भी सड़क, राजमार्ग या रास्ते को संदर्भित करता है जो आम जनता के उपयोग के लिए अभिप्रेत (इंटेडेड) है।

लापरवाही या जल्दबाजी

आईपीसी की धारा 279 के तहत प्रावधान के संदर्भ में, वाहन चलाते समय किसी व्यक्ति की जल्दबाजी की सीमा को लापरवाही और उतावलेपन से संदर्भित किया जाता है। उतावलापन और जल्दबाजी इस मायने में अलग-अलग हैं कि “जल्दबाजी से” वाहन चलाते समय सुरक्षा के प्रति किसी व्यक्ति की उपेक्षा (डिसरिगार्ड) को संदर्भित करता है, जबकि शब्द “लापरवाही” वाहन चलाते समय उचित देखभाल करने में व्यक्ति की विफलता के बारे में बताता है। क्या गाड़ी चलाते समय कोई व्यक्ति लापरवाह था या उतावला था, यह प्रश्न मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, तेज गति से गाड़ी चलाने या लापरवाही से ओवरटेक करने के कार्य को जल्दबाजी से गाड़ी चलाने के रूप में माना जा सकता है, जबकि लापरवाही में यातायात नियमों का पालन करने में विफलता, विचलित होने पर गाड़ी चलाना आदि शामिल हैं।

मानव जीवन को खतरे में डालना

यह सुनिश्चित करने के लिए कि धारा 279 के तहत एक अपराध किया गया था, यह प्रदर्शित करना आवश्यक है कि अभियुक्त वाहन को इस तरह से चला रहा था जिससे किसी व्यक्ति के जीवन को खतरा हो या किसी अन्य व्यक्ति को कोई अन्य नुकसान हो। जब कोई व्यक्ति टक्कर के समय सड़क के गलत साइड पर गाड़ी चला रहा होता है, तो उसे न्यायालय को संतुष्ट करना चाहिए कि वह उस तरफ गाड़ी चलाने में जल्दबाजी या लापरवाही नहीं बरत रहा था।

बालकृष्णन नायर बनाम पी. विजयन (2020) के मामले में, यह नोट किया गया था कि एक व्यक्ति जो सार्वजनिक सड़क पर वाहन चलाता है, वह न केवल अपने कार्यों के लिए बल्कि परिणामों के लिए भी उत्तरदायी होता है। जिस गति से वाहन चलाया जाता है वह हमेशा इस बात का विश्वसनीय संकेतक नहीं होता है कि कोई वाहन जल्दबाजी से चला रहा था या लापरवाही से। धीमी गति से वाहन चलाना अभी भी आईपीसी की धारा 279 के तहत “जल्दबाजी या उतावलेपन से वाहन चलाना” के रूप में योग्य होगी यदि वाहन लापरवाह तरीके से चलाया गया था। इसीलिए विधायिका ने अपने विवेक से ‘मानव जीवन को खतरे में डालने के लिए ‘जल्दबाजी या लापरवाही’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इस कानून को लागू करने के लिए, तीन बातों पर विचार किया जाना चाहिए: 

  1. जिस तरह से वाहन चलाया गया था; 
  2. क्या इसे जल्दबाजी से या उतावलेपन से चलाया गया था और; 
  3. यदि इस तरह की जल्दबाजी या लापरवाही से वाहन चलाना मानव जीवन को खतरे में डालता है। 

यदि यह तीनों मानदंड (क्राइटेरिया) पूरे होते हैं, तो आईपीसी की धारा 279 में बताए गए दंड लगाए जाएंगे।

आईपीसी की धारा 279 के तहत सजा

सजा का दायरा

कोई भी व्यक्ति जो धारा 279 के तहत अपराध का दोषी पाया जाता है, उसे कारावास की सजा दी जा सकती है, जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, जो एक हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों। धारा 279 के तहत कारावास का प्रकार मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अधीन सरल या कठोर हो सकता है।

आईपीसी की धारा 279 सार्वजनिक रास्ते पर जल्दबाजी से गाड़ी चलाने या सवारी करने के अपराध से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, ऐसा अपराध करने के लिए न्यूनतम सजा एक हजार रुपए से कम का जुर्माना या छह महीने से कम कारावास है। हालांकि, सजा की सटीक राशि और अवधि, मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर, पीठासीन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के विवेक पर है।

दूसरी ओर, आईपीसी की धारा 279 के तहत अपराध के लिए अधिकतम सजा एक हजार रुपये के जुर्माने के साथ छह महीने कारावास हो सकती है। इसका मतलब यह है कि अगर अभियुक्त जल्दबाजी से गाड़ी चलाने या सवारी करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे छह महीने तक के कारावास हो सकता है और एक हजार रुपये तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सजा की गंभीरता विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगी, जैसे प्रकृति और नुकसान की सीमा, शामिल जल्दबाजी की डिग्री, और अभियुक्तों की कोई पिछली दोषसिद्धि (कनविक्शन)।

कुल मिलाकर, आईपीसी की धारा 279 के प्रावधानों का उद्देश्य व्यक्तियों को सार्वजनिक सड़कों पर लापरवाह तरीके से गाड़ी चलाने या सवारी करने से रोकना है, और यह सुनिश्चित करना है कि दूसरों के जीवन को खतरे में डालने वालों को उनके कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जाए।

जिस मामले में दोषी को कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी वह सुभाष चंद बनाम पंजाब राज्य (2019) का मामला है, जहां अपीलकर्ता एक व्यस्त सड़क के गलत साइड पर तेज गति से और लापरवाही से ट्रक चला रहा था, जिसके परिणामस्वरूप एक दुर्घटना हुई जिसमें एक बिना नंबर के गाड़ी हीरो मोपेड के चालक की मौत हो गई। विचारणीय न्यायालय ने पाया कि वह दुर्घटना के लिए जिम्मेदार था और आपत्तिजनक वाहन के चालक के रूप में उसकी पहचान के बारे में कोई संदेह नहीं था क्योंकि उसने अपने आपसे अपराध मान्य (सरेंडर) कर दिया था। जिसकी वजह से, अभियुक्त को आईपीसी की धारा 279 और धारा 304A के तहत अपराध का दोषी ठहराया गया और छह महीने के कठोर कारावास और अपराध के लिए एक हर बार बताई जानेवाली शर्त के साथ 1000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

धारा 279 के तहत जमानत के संबंध में नियम

धारा 279 के तहत अपराध जमानती अपराध है। इसका अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति इस धारा के तहत गिरफ्तार किया जाता है तो वह जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट के समक्ष जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।

जमानत कानूनी कार्यवाही के दौरान उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने की आवश्यकता के साथ एक अभियुक्त की स्वतंत्रता के अधिकार को संतुलित करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करती है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 436 के प्रावधानों के अनुसार, एक जमानती अपराध में अभियुक्त को जमानत पर रिहा होने का एक अधिकार है। जैसे ही अभियुक्त व्यक्ति जमानत देने की इच्छा व्यक्त करता है, यह उस पुलिस अधिकारी या न्यायालय का कर्तव्य बन जाता है जिसके समक्ष जमानत की पेशकश की जाती है कि वह उन्हें उचित जमानत शर्तों पर रिहा करे।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जमानत की शर्तों की तर्कसंगतता तय करने का विवेक संबंधित अधिकारी या न्यायालय के पास है। कुछ स्थितियों में, अधिकारी या न्यायालय ज़मानत स्वीकार करने के बजाय सीआरपीसी की धारा 436 के तहत ज़मानत-बॉन्ड के निष्पादन (एग्जिक्यूशन) पर अभियुक्त को रिहा कर सकता है। यह दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करने के लिए लिया जाता है कि अभियुक्त को लंबे समय तक हिरासत में नहीं रखा जाए, जो स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार के लिए हानिकारक हो सकता है।

हालांकि, यह समझा जाना चाहिए कि जमानती अपराधों में जमानत एक अधिकार है, लेकिन यह एक पूर्ण अधिकार नहीं है। यदि अभियुक्त जमानत या जमानत बॉन्ड की शर्तों का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें हिरासत में भेजा जा सकता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए है कि अभियुक्त अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग न करें और कानूनी प्रक्रिया में सहयोग करना जारी रखें।

आईपीसी की धारा 279 के तहत आरोप के खिलाफ कैसे बचाव करें

किसी अपराध का आरोप लगने के परिणाम अत्यंत गंभीर और दूरगामी हो सकते हैं। अभियुक्तों को न केवल कारावास होने या पर्याप्त जुर्माना भरने की संभावना का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि वे महत्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव भी अनुभव कर सकते हैं जो उनकी प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को प्रभावित कर सकते हैं। आपराधिक आरोपों से कलंक और सामाजिक अलगाव (सेपरेशन) हो सकता है जो अत्यधिक भावनात्मक संकट और आघात का कारण बन सकता है।

इसके अलावा, आपराधिक गिरफ्तारी के बाद की कानूनी कार्यवाही लंबी, जटिल और भावनात्मक रूप से थकाऊ हो सकती है। उचित मार्गदर्शन के बिना कानूनी प्रणाली पर ध्यान देना भारी पड़ सकता है, खासकर जब एक आपराधिक सजा के संभावित परिणामों से निपटने की प्रक्रिया हो। इसलिए, आपराधिक आरोपों का सामना करने पर अनुभवी आपराधिक वकील की सलाह लेना महत्वपूर्ण है।

एक अनुभवी आपराधिक वकील मूल्यवान कानूनी परामर्श (एडवाइस) प्रदान कर सकता है और अभियुक्तों को पूरी कानूनी प्रक्रिया के दौरान उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित कर सकता है। वे अभियुक्तों को उनके खिलाफ आरोपों, संभावित दंडों और उनके मामले के लिए सर्वोत्तम संभव परिणाम हासिल करने के लिए कानूनी रणनीतियों को समझने में भी मदद कर सकते हैं।

एक आपराधिक वकील को काम पर रखने से केवल कानूनी प्रणाली को नेविगेट करने के तनाव और बोझ को कम किया जा सकता है। वकील कानून में अच्छी तरह से वाकिफ हैं और कागजी कार्रवाई दाखिल करने, याचिका सौदों पर बातचीत करने और न्यायालय में एक आकर्षक बचाव पेश करने में सहायता कर सकते हैं।

आईपीसी की धारा 279 पर महत्वपूर्ण मामले  

हाल के फैसले

प्रताप कुमार जी बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य (2022)

इस मामले में, शिकायतकर्ता की मां अपने पालतू कुत्ते को टहला रही थी, तभी एक फॉर्च्यूनर एसयूवी ने उसे टक्कर मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई। कुत्ते को पशु चिकित्सालय ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मामले की समीक्षा (रिव्यू) की और निष्कर्ष निकाला कि आईपीसी की धारा 279 के तहत परिभाषा, जो किसी व्यक्ति को चोट या नुकसान पहुंचाने की संभावना को शामिल करती है, पालतू जानवरों पर लागू नहीं होती है। इसलिए, पालतू जानवर की चोट या मौत इस परिभाषा के तहत शामिल नहीं होगी। यह निर्णय बताता है कि जबकि कानून मानव जीवन की रक्षा और नुकसान को रोकने की कोशिश करता है, यह जानवरों को होने वाले नुकसान को स्पष्ट रूप से शामिल नहीं करता है। 

थंगासामी बनाम तमिलनाडु राज्य (2019)

इस मामले में, अपीलकर्ता को तेज़ और लापरवाही से गाड़ी चलाने का दोषी पाया गया, जिसके परिणामस्वरूप चार लोगों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए। अपराधों की गंभीरता के बावजूद, विचारणीय न्यायालय ने आईपीसी की धारा 304A के तहत अपराध की प्रत्येक गिनती के लिए केवल चार महीने के कारावास की अपेक्षाकृत उदार (रिलेटिवली लिनिएंट) सजा सुनाई। अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 337 के तहत हर एक अपराध के लिए 100 रुपए और आईपीसी की धारा 279 के तहत हर अपराध के लिए 200 रुपये बताए गए थे। किए गए अपराधों की गंभीरता को देखते हुए इस मामले में दी गई सजा बहुत कम थी। यह निर्णय अभियुक्तों के कार्यों  के कारण होने वाले नुकसान के अनुरूप उचित दंड लगाने के लिए न्यायालय की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

पी रजप्पन बनाम केरल राज्य

इस मामले में कहा गया कि यह आवश्यक नहीं है कि जल्दबाजी या लापरवाही के कारण जीवन या संपत्ति को क्षति पहुँचे। चालक की ओर से जल्दबाजी या लापरवाही तय करने के लिए केवल गति ही कसौटी नहीं है। तेज गति और जल्दबाजी या लापरवाही के बीच संबंध स्थान और समय पर निर्भर करता है। एक सीधी चौड़ी सड़क में, जहाँ अन्य वाहनों या पैदल चलने वालों की बाधाएँ मौजूद नहीं हैं, यह नहीं कहा जा सकता है कि तेज गति में गाड़ी चलाना या हॉर्न न बजाना अपने आप में जल्दबाजी या लापरवाही होगी।

नगा मायत थिन

किसी भी तरह से जो सभी विषयों के लिए सामान्य है, चाहे वह सीधे किसी कस्बे की ओर जाता हो या किसी कस्बे से परे दूसरे कस्बों या कस्बे से कस्बे तक जाता हो, उसे ठीक से सार्वजनिक मार्ग कहा जा सकता है।

राघवन पिल्लई बनाम राज्य एआईआर 1954

इस मामले में आरोपी सड़क के समानांतर (पैरलेल) चलने वाली ट्रेन की गति के समान गति रखने के इरादे से एक सीधी सड़क के डिवाइडर के साथ तेज गति से ट्रक चला रहा था। ट्रक भारी बैग से लदा हुआ था और बैग के ऊपर दो व्यक्ति बैठे थे।

अचानक तीन बैलगाड़ियाँ विपरीत दिशा से उनके रास्ते में उपयुक्त दिशा में आ गईं। इस पर, आरोपी ने बैलगाड़ी को गुजरने देने के लिए अपने ट्रक को सड़क के दाईं ओर मोड़ दिया, लेकिन दुर्भाग्य से, ट्रक पलट गया, जिससे ऊपर बैठे लोगों में से एक की मौत हो गई और दूसरे को गंभीर चोटें आईं।

यह माना गया कि अभियुक्त आईपीसी की धारा 279, 304A, 337 और 338 के तहत दोषी था।

लोकप्रिय निर्णय

दलबीर सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2000)

इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने तेज गति से या जल्दबाजी से वाहन चलाने के अपराध में मौत की सजा की मात्रा का निर्धारण करते हुए निवारण (डिटरेंस) के महत्व पर जोर दिया। इस संबंध में, न्यायालय ने यह अवलोकन किया कि पेशेवर चालकों को वाहन चलाते समय किसी भी पल की ढिलाई या असावधानी के संभावित परिणामों के बारे में खुद को लगातार याद दिलाना चाहिए। यह अत्यावश्यक है कि वे कोई जोखिम न लें और यह मान लें कि उनकी जल्दबाजी से गाड़ी चलाने से कोई दुर्घटना नहीं होगी या किसी भी परिणामी दुर्घटना से मानव जीवन का नुकसान नहीं होगा। इसके अलावा, चालकों को यह नहीं मान लेना चाहिए कि मृत्यु होने पर भी उन्हें अपराध का दोषी नहीं ठहराया जाएगा या कुल मिलाकर, उन्हें कम सजा मिलेगी। 

मनीष जालान बनाम कर्नाटक राज्य (2008)

इस मामले में, जिस व्यक्ति पर लापरवाह तरीके से वाहन चलने का आरोप लगाया गया था, वह शराब या किसी अन्य पदार्थ के प्रभाव में नहीं पाया गया था जो वाहन चलाने की उनकी क्षमता को कम कर सकता है। आईपीसी की धारा 279 और 304A के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को बनाए रखा गया था, हालांकि, कारावास की मूल सजा को पहले से ही की गई अवधि तक कम कर दिया गया था और जुर्माना लगाने की भी पुष्टि की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि कारावास की सजा को पहले से ही काटी गई अवधि तक कम कर दिया जाए तो न्याय का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। प्रतिवादी को आईपीसी की धारा 279 और 304A के तहत दोषी ठहराया गया था, लेकिन न्यायालय ने उनकी सजा को कम करने का फैसला किया और जुर्माना लगाने को बरकरार रखा। न्याय सुनिश्चित करने के लिए, न्यायालय ने अपीलकर्ता को 1,00,000 रुपये की राशि का भुगतान करने का भी आदेश दिया। 

हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम अमर नाथ (2001)

इस मामले में, प्रतिवादी द्वारा तेज गति और जल्दबाजी से ट्रक चलाने के कारण, उसने टैक्सी को टक्कर मार दी, जिसे शिकायतकर्ता चला रहा था। प्रतिवादी को आईपीसी की धारा 279 और 337 के तहत अपराध करने का दोषी ठहराया गया था। इस हिसाब से धारा 279 के तहत 5,000/- रुपये जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई और यदि वह जुर्माने का भुगतान नही करता तो ऐसे स्थिति में उसे एक माह का साधारण कारावास भुगतना होगा। इसलिए उसे धारा 337 के तहत 5,000/- जुर्माना भरने की और वह न भरने पर या भुगतान में चूक होने पर, एक महीने के साधारण कारावास से गुजरने की सजा सुनाई गई। 

पुत्तुस्वामी बनाम कर्नाटक राज्य (2008)

इस मामले में, अपीलकर्ता के तेज गति और जल्दबाजी से ट्रैक्टर चलाने के कारण सात साल की एक बच्ची की मौत हो गई। सर्वोच्च न्यायलय ने शामिल पक्षों द्वारा किए गए समझौते के बावजूद आईपीसी की धारा 279 और धारा 304A के तहत अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। साथ ही न्यायालय ने जुर्माने की राशि को 2,000 रुपये से बढ़ाकर 20,000 रुपये कर दिया था। जो अपीलकर्ता को मृतक के माता-पिता को भुगतान करना होगा। अपीलकर्ता की सजा को उस अवधि तक कम कर दिया गया था जो उन्होंने पहले ही पूरी कर ली थी, बशर्ते कि उन्होंने जुर्माने का भुगतान किया हो। 

यह निर्णय इंगित करता है कि न्यायालय उल्लंघनों और दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप जीवन की हानि को बहुत गंभीरता से लेती है और जिम्मेदार पक्षों को उनके कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराने का प्रयास करती है।

निष्कर्ष 

अंत में, धारा 279 के तहत प्रावधान उन व्यक्तियों के लिए अपेक्षित सजा का प्रावधान करता है जो तेज गति से और लापरवाही से वाहन चलाते हैं, जिससे निर्दोष लोगों की जान जोखिम में पड़ती है। धारा 279 के तहत प्रावधान भारत सरकार द्वारा यह सुनिश्चित करने के इरादे से लागू किया गया था कि देश में सड़कें चलने और आवागमन (ट्रांसपोर्टेशन) के लिए सुरक्षित हैं। लोगों की जिम्मेदारी है कि वे सावधानी से वाहन चलाएं, नहीं तो उन्हें कानून के तहत सजा भुगतनी पड़ेगी। यदि कोई वाहन चलाने वाला व्यक्ति अपनी लापरवाही के कारण दुर्घटना का कारण बनता है, तो उस पर धारा 279 के साथ-साथ धारा 337 और धारा 338 के तहत अन्य प्रावधानों का आरोप लगाया जाता है। यदि उसके कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उस पर धारा 304A के तहत आरोप लगाया जा सकता है। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू) 

आईपीसी की धारा 279 के तहत अधिकतम सजा क्या है?

धारा 279 के तहत अधिकतम सजा छह महीने की कारावास, 1000 रुपये का जुर्माना या दोनो है। 

आईपीसी की धारा 279 के तहत अपराध की प्रकृति क्या है?

इस धारा के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध (कॉग्नीजेबल ऑफेंस) है, जिसका अर्थ है कि पुलिस अधिकारियों के पास बिना वारंट के अभियुक्त को गिरफ्तार करने की शक्ति है। अपराध जमानती, गैर-शमनिय (नॉन कंपाउंडेबल) भी है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा इसका विचारण किया जा सकता है।

क्या धारा 279 के तहत अपराध छोटे अपराध के अंतर्गत आता है?

धारा 279 के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है और कारावास, जुर्माना या दोनों से दंडनीय है। इसलिए यह छोटा अपराध नहीं है।

आईपीसी की धारा 279 के तहत किसी मामले का विचारण करने का अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) किस न्यायालय के पास है?

आईपीसी की धारा 279 के दायरे में आने वाले मामलों का विचारण किसी भी न्यायाधीश के न्यायालय में किया जा सकता है।

आईपीसी की धारा 279 के तहत वारंट के साथ या बिना वारंट के गिरफ्तारी की जाती है? 

आईपीसी की धारा 279 के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है; इसलिए, एक पुलिस अधिकारी न्यायालय से वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकता है। 

क्या एक न्यायालय किसी व्यक्ति को आईपीसी की धारा 279 और 337 के तहत एक ही अपराध के लिए दोषी ठहरा सकती है और तदनुसार दोनों धाराओं के तहत सजा सुना सकती है?

अपराध एक ही कार्य का परिणाम होने के कारण, अभियुक्त को एक समय में एक ही अपराध के लिए दंडित किया जाएगा, लेकिन यह माना जाएगा कि जब धारा 279 के तहत निर्धारित सजा धारा 337 के तहत निर्धारित सजा से अधिक गंभीर है, तो अभियुक्त को धारा 279 के तहत ही दंडित किया जा सकता है। 

संदर्भ 

 

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