यह लेख Kashmira Sahani द्वारा लिखा गया है, जो स्कूल ऑफ लॉ, यू.पी.ई.एस. देहरादून की छात्रा है। यह एक संपूर्ण लेख है जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग के अर्थ और मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम (प्रीवेंशन) पर वैश्विक (ग्लोबल) और भारतीय पहल शामिल हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
पैसा कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह बुरे इरादों का मूल कारण है- महात्मा गांधी। पैसा अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी) का एक अनिवार्य हिस्सा है जो समाज में सही से कार्य करने के लिए आवश्यक है और मनी लॉन्ड्रिंग दुनिया के लगभग हर देश में होती है। मनी लॉन्ड्रिंग का उपयोग आमतौर पर भ्रष्ट राजनेताओं, अपराधियों द्वारा आतंकवादी गतिविधि, मादक पदार्थों की तस्करी (ड्रग ट्रेफिकिंग) के माध्यम से प्राप्त अपने अवैध धन को छिपाने के लिए किया जाता है। यह कहा जा सकता है कि यह एक ऐसी प्रक्रिया (प्रोसेस) है जो लोगों से समझौता किए बिना अवैध मुनाफे को छुपाती है। आतंकवाद, अवैध हथियारों की बिक्री, वित्तीय (फाइनेंशियल) अपराध, तस्करी, या अवैध मादक पदार्थों की तस्करी जैसी आपराधिक गतिविधियां कुछ ऐसी गतिविधियां है जिनसे बहुत बड़ी मात्रा में धन का लाभ उठाया जा सकता है और इसलिए आज के समय मे, इन आपराधिक संगठनों (क्रिमिनल आर्गेनाइजेशन) को उनके अवैध मूल (इल्लीगल ओरिजिन) के बारे में संदेह होने के बिना, उनके धन का उपयोग करने के तरीके खोजने की बहुत अधिक आवश्यकता है।
मनी लॉन्ड्रिंग
अपराध से आय की लॉन्ड्रिंग, खोज और जब्ती (कांफिसकेशन) पर यूरोपीय समुदाय निर्देश (कम्युनिटी डायरेक्टिव) और कन्वेंशन के आर्टिकल 1 ने मनी लॉन्ड्रिंग को संपत्ति का रूपांतरण (कन्वर्जन) करना यह जानते हुए कि ऐसी संपत्ति गंभीर अपराध के द्वारा ली गई है, या संपत्ति के अवैध मूल को छिपाना या किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता करना जो ऐसे अपराध करने में शामिल है, के रूप में परिभाषित किया है। इसे यह प्रकट करने की प्रक्रिया के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है कि गंभीर अपराधों से प्राप्त बड़ी मात्रा में धन एक वैध स्रोत (सोर्स) से उत्पन्न हुआ है। प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 3 के तहत भी मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध को परिभाषित किया गया है।
मनी लॉन्ड्रिंग कैसे काम करता है?
1. प्लेसमेंट चरण (स्टेज)
यह पहला और सबसे जोखिम भरा चरण है जहां लॉन्डरर अक्सर नकद बैंक जमा (कैश बैंक डिपॉजिट) के रूप में एक वित्तीय संस्थान (फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन) में पैसा जमा करते है। उच्च जोखिम पर अंकुश लगाने के लिए, बड़ी राशि को छोटे हिस्से में तोड़ दिया जाता है और फिर सीधे बैंक खातों में जमा कर दिया जाता है।
2. लेयरिंग चरण
इस चरण में, लॉन्डरर पैसे को उनके स्रोतों से दूर करने के लिए पैसे के रूपांतरण की एक श्रृंखला (सिरीज़) में संलग्न (एंगेज) करता है और पैसे के रूपों को बदलने के लिए, इसे विभिन्न वित्तीय लेनदेन के माध्यम से भेजता है। इस चरण में कभी-कभी अलग-अलग बैंक-टू-बैंक हस्तांतरण (ट्रांसफर), अलग-अलग खातों के बीच अलग-अलग नामों से वायर ट्रांसफर शामिल हो सकते हैं।
3. एकीकरण (इंटीग्रेशन) चरण
यह तीसरा और अंतिम चरण है जिसमें धन मूल रूप से वित्तीय प्रणाली (सिस्टम) में प्रवेश करता है। लॉन्डरर फंड को रियल एस्टेट, लक्ज़री एसेट्स, या किसी भी व्यावसायिक उपक्रम (बिजनेस वेंचर) में निवेश करने का विकल्प चुन सकते है, जिसका अर्थ है कि पैसे का इस तरह से उपयोग किया जाता है कि इस चरण में लॉन्डरर को पकड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है।
मनी लॉन्ड्रिंग का प्रभाव
- विदेशी निवेशकों (इंवेस्टर) को हतोत्साहित (डिस्करेज) करता है
- आर्थिक संकट का कारण बनता है
- इसके परिणामस्वरूप विनिमय (एक्सचेंज) और ब्याज दरों (रेट) में अस्थिरता (वोलेटिलिटी) आती है
- कर चोरी (टैक्स इवेजन) की संस्कृति को बढ़ावा देता है
- आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है
- वित्तीय बाजार और संस्थानों की प्रतिष्ठा (रेप्यूटेशन) को नुकसान पहुंचाता है।
मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद का वित्तपोषण (फाइनेंसिंग)
किसी भी आपराधिक संगठन का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है और यह लाभ कमाने वाले अपराधों में शामिल होते है। इसका परिणाम यह होता है कि किसी भी आपराधिक संगठन के संचालन (ऑपरेशन) से भारी मात्रा में धन प्राप्त होता है और साथ ही साथ कई समस्याएं भी होती हैं। आपराधिक संगठन से उत्पन्न नकदी को छिपाना और उपयोग करना आसान नहीं होता है क्योंकि उस पैसे का अचानक उपयोग बहुत सारे सवाल खड़े कर देता है। हम मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण को दो अलग-अलग गतिविधियों के रूप में देखते हैं।
अपराधी अवैध धन को कानूनी धन की तरह बनाते हैं और वे संपत्ति, सामान और वित्तीय सेवाओं में धन को बेचकर और चैनलाइज करके ऐसा करते हैं। मनी लॉन्ड्रिंग से अधिकारियों के लिए उस अवैध धन के स्रोतों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। जो लोग आतंकवाद का वित्तपोषण करते हैं, वे इन तरीकों का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों के लिए और आतंकवाद को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने के लिए धन को चैनल करने के लिए करते हैं।
मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए वैश्विक पहल
मनी लॉन्ड्रिंग कोई नई बात नहीं है बल्कि यह एक अंतरराष्ट्रीय घटना है। कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (कन्वेंशन) मनी लॉन्ड्रिंग के बारे में बात करते हैं और इस अंतरराष्ट्रीय समस्या से निपटने के लिए कई पहल की गई हैं।
1. वियना सम्मेलन
इसे, दिसंबर 1988 में आयोजित किया गया था और यह मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम के लिए पहली पहल में से एक है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य यह है कि यह सदस्य राज्यों को मादक पदार्थों की तस्करी से मनी लॉन्ड्रिंग को अपराध बनाने के लिए किसी भी मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के प्रयासों को निर्धारित करता है, यह जांच में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को भी बढ़ावा देता है और सदस्य राज्यों के बीच प्रत्यर्पण (एक्सट्राडीशन) करता है। बाद में, इसने बैंक के घरेलू गोपनीयता प्रावधानों (डोमेस्टिक सीक्रेसी प्रोविजंस) पर एक सिद्धांत भी निर्धारित किया कि अंतरराष्ट्रीय आपराधिक जांच में हस्तक्षेप (इंटरफेयर) नहीं करना चाहिए।
2. यूरोप सम्मेलन की परिषद (द काउंसिल ऑफ़ यूरोप कन्वेंशन)
यह मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या पर एक सामान्य नीति स्थापित करता है, यह मनी लॉन्ड्रिंग की सामान्य परिभाषा देता है और इससे निपटने के उपाय बताता है। यह सदस्य राज्यों के बीच कुछ अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी प्रदान करता है, जिसमें यूरोप की परिषद (काउंसिल) के बाहर के राज्य भी शामिल हो सकते हैं। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार की आपराधिक गतिविधियों और मुख्य रूप से नशीले पदार्थों, आतंकवादी अपराधों, हथियारों के सौदे आदि के लिए सहायता, खोज और जब्ती के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुविधाजनक बनाना है।
3. बेसल समिति के सिद्धांतों का वक्तव्य (बेसल कमिटी स्टेटमेंट ऑफ़ प्रिंसिपल्स)
बैंकिंग विनियमों (रेगुलेशन) और पर्यवेक्षी (सुपरवाइज़री) प्रथाओं पर बेसल समिति ने दिसंबर 1988 में कहा कि वह बैंकिंग क्षेत्र को एक सामान्य स्थिति अपनाने के लिए प्रोत्साहित (इनकरेज) करने का इरादा रखते है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके की बैंकों का उपयोग आपराधिक गतिविधियों या किसी भी अवैध गतिविधियों के माध्यम से कमाए गए धन को छिपाने या लूटने के लिए नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह वक्तव्य ( स्टेटमेंट) खुद को किसी भी नशीले पदार्थ- संबंधी मनी लॉन्ड्रिंग तक सीमित नहीं रखता है, बल्कि यह लॉन्ड्रिंग तक फैला हुआ है जिसमें जमा, हस्तांतरण के द्वारा बैंकिंग सिस्टम शामिल हैं, और यह नशीले पदार्थों, आतंकवाद, धोखाधड़ी आदि, किसी भी प्रकार से कमाए पैसे को छुपाने के माध्यम से हो सकते हैं। यह उस क्षेत्र तक भी केंद्रित है जहां व्यक्ति को किसी भी प्रकार की मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल किसी भी बैंकिंग सिस्टम का आनंद लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
4. वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स)
एफ.ए.टी.एफ. एक अंतर-सरकारी निकाय (इंटर गवर्नमेंटल बॉडी) है, जो 1989 में पेरिस में जी 7 सम्मेलन (समिट) में कुछ उच्च मानकों (स्टैंडर्ड) को स्थापित करने और मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद वित्तपोषण की दुष्ट प्रथा को रोकने के लिए किसी भी कानून, नियामक (रेगुलेटरी) और परिचालन (ऑपरेशनल) उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) को बढ़ावा देने के लिए एक विचार और उद्देश्य के साथ था। एफ.ए.टी.एफ. द्वारा कई सिफारिशों को मान्यता दी गई है जिन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों द्वारा मान्यता प्राप्त है। अक्टूबर 2001 में आठ विशेष सिफारिशें जारी की गईं थी और अक्टूबर 2004 में, नौवीं विशेष सिफारिश प्रकाशित की गई, जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद वित्तपोषण से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को मजबूत करने की बात करती है।
5. मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र का वैश्विक कार्यक्रम (यू.एन. ग्लोबल प्रोग्राम)
इसकी स्थापना 1997 में सरकारों को दी जाने वाली तकनीकी सहयोग सेवाओं के माध्यम से किसी भी प्रकार के मनी लॉन्ड्रिंग के विरुद्ध सभी अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाइयों की प्रभावशीलता बढ़ाने के विचार के साथ की गई थी। इस कार्यक्रम के तहत तकनीकी सहयोग मुख्य कार्य है जिसमें जागरूकता और संस्था प्रशिक्षण (इंस्टीट्यूशन ट्रेनिंग) और निर्माण की गतिविधियाँ शामिल हैं। इसका उद्देश्य कानून के उचित कामकाज के लिए वित्तीय जांच सेवाओं की स्थापना का समर्थन (सपोर्ट) करना भी है।
मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए भारत में कानून
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मनी लॉन्ड्रिंग बिल
भारत 1998 के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव (रेजोल्यूशन) का एक हस्ताक्षरकर्ता है, जो सदस्य राज्यों से मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहता है, इसलिए हमारी सरकार ने एक विशिष्ट (स्पेसिफिक) मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम विधेयक (प्रिवेंशन बिल), 1999 शुरू किया, जो मनी लॉन्ड्रिंग को अधिग्रहण (एक्वायरिंग), स्वामित्व (ओनिंग), अपराध की किसी भी आय को रखने और जानबूझकर, भारतीय दंड संहिता, 1860 में सूचीबद्ध (लिस्टेड) अपराध के बारे में किसी भी लेनदेन में प्रवेश करने के रूप में परिभाषित करता है। यह अधिनियम नशीले पदार्थों और नशीले पदार्थों और अन्य अपराधों से संबंधित आपराधिक वित्तीय गतिविधियों को रोकने और नियंत्रित (कंट्रोल) करने का प्रयास करता है।
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मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम 2002
इस अधिनियम को 2002 में, मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के खिलाफ लड़ने और इस अपराध से लाभान्वित (बेनिफिट) होने वाले लोगों को दंडित करने के लिए पेश किया गया था। इस अधिनियम ने हमारी सरकार या किसी अधिकृत सार्वजनिक प्राधिकरण (ऑथोराइज़ पब्लिक अथॉरिटी) को अवैध लाभ और अवैध धन से कमाई गयी संपत्ति को जब्त करने में सक्षम बनाया है। इस अधिनियम के तहत, वित्तीय खुफिया इकाई (फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट) किसी भी संदिग्ध लेनदेन का पता लगाने के लिए सभी रिकॉर्ड की जांच करती है, और फिर प्रवर्तन निदेशालय (एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट) द्वारा जांच की जाती है।
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आतंकवाद रोकथाम अधिनियम (प्रिवेंशन ऑफ़ टेररिस्ट एक्ट), 2002
यह अधिनियम हमारी सरकार द्वारा आतंकवाद की गतिविधियों और इससे संबंधित अन्य मामलों की रोकथाम के लिए पहला कानूनी प्रयास था। इस अधिनियम की धारा 8 केंद्र सरकार द्वारा आतंकवाद की आय को जब्त करने की अनुमति देती है, चाहे जिस व्यक्ति के कब्जे से इसे जब्त या संलग्न किया गया हो, उस पर दिए गए अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाता है, यह आगे सामान्य रूप से आतंकवादी गतिविधियों को रोकने और जब्ती को लागू करने का और आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए धन को अवरुद्ध (ब्लॉक) करने का भी प्रयास करता है। ।
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वित्तीय खुफिया इकाई (फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट)
यह एक नियामक प्राधिकरण (रेगुलेटरी अथॉरिटी) नहीं है, लेकिन इस इकाई का मुख्य कर्तव्य नियामक प्राधिकरणों के साथ निकट संचालन में सभी वित्तीय खुफिया जानकारी इकट्ठा करना है जिसमें आर.बी.आई., सेबी और आई.आर.डी.ए. भी शामिल हैं, साथ ही यह सभी संदिग्ध लेनदेन की देखभाल करता हैं और फिर उसकी रिपोर्ट करता है। यह किसी भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खुफिया जानकारी के समन्वय (कोऑर्डिनेशन) और सुदृढ़ीकरण (स्ट्रेंथनिंग) के लिए जिम्मेदार है।
एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग दिशा निर्देश
भारतीय सुरक्षा और विनिमय बोर्ड
- ये सेबी पंजीकृत बिचौलियों (रजिस्टर्ड इंटरमीडियरीज) पर लागू होते हैं।
- यह नीतियां बनाने में सहायता करने के लिए, नीतियों और प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए सेबी पंजीकृत बिचौलियों पर कुछ कर्तव्य डालता है।
- यह मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ लड़ने के तरीके के बारे में भी बात करता है जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी और आतंकवादी वित्तपोषण जैसी अवैध गतिविधियों से संबंधित ऐसी समूह नीतियों का संचार शामिल होता है।
- यह ग्राहक खाते की जानकारी, प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) के लेनदेन, ग्राहक स्वीकृति नीति, ग्राहक के उचित परिश्रम के उपायों और रिकॉर्ड के रखरखाव को संभालता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.)
- ये दिशानिर्देश सभी बैंकिंग कंपनियों और गैर-बैंक वित्तीय कंपनियों पर लागू होते हैं जो आर.बी.आई. द्वारा विनियमित होते हैं।
- के.वाई.सी. (अपने ग्राहक को जानें) का प्रत्यारोपण (इंप्लांटेशन) करना।
- इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों और कंपनियों को मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले बैंकों और एन.बी.एफ.सी. के दुरुपयोग से रोकना है।
मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए पहल
1. बैंकों के दायित्व
बैंकों का यह कानूनी कर्तव्य है कि वे नया खाता खोलते समय ग्राहकों के विवरण (डिटेल) को अत्यंत गोपनीय (सीक्रेट) रखें और यह भी सुनिश्चित करें कि सभी विवरण सुरक्षित हाथों में हों और कोई भी उस जानकारी का दुरुपयोग न करे और यह भी सुनिश्चित करे कि ग्राहक से मांगी गई और एकत्र की गई जानकारी कथित जोखिम के लिए प्रासंगिक (रिलेवेंट) है और केवल ग्राहक की सहमति से अलग से मांगी जानी चाहिए।
2. के.वाई.सी. नीति
बैंक को प्रत्येक ग्राहक के लिए के.वाई.सी. तैयार करना चाहिए जिसमें कुछ बुनियादी तत्व शामिल हैं जो ग्राहक स्वीकृति नीति, ग्राहक पहचान प्रक्रिया, जोखिम समझौता और लेनदेन की निगरानी में हो।
अधिनियम के प्रस्तावित संशोधन (प्रपोज्ड अमेंडमेंट)
2019 में भारत सरकार ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम 2002 में 8 संशोधन किए थे। जैसा कि हम जानते हैं कि पहले, मनी लॉन्ड्रिंग को एक स्वतंत्र अपराध के रूप में नहीं माना जाता था, और इसलिए संशोधनों का मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध को हमारे देश में अपराध के रूप में मानना था।
- धारा 2(1)(U) के लिए स्पष्टीकरण (एक्सप्लेनेशन)- धारा 2(1)(U) के तहत, अपराधों के लिए आय का अर्थ संपत्ति से संबंधित अपराध है जो प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) या अप्रत्यक्ष (इनडायरेक्ट) रूप से किसी भी अनुसूचित (शेड्यूल) अपराध से संबंधित किसी भी गतिविधि से प्राप्त होता है।
- इस अधिनियम की धारा 3 का स्पष्टीकरण– इस अधिनियम की धारा 3, मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के बारे में बात करती है जिसमें कहा गया है कि एक व्यक्ति मनी लॉन्ड्रिंग का दोषी तब होगा यदि वह व्यक्ति उसमे सीधे तौर पर शामिल होता है या जानबूझकर अपराध की आय से जुड़ी निम्नलिखित में से एक या अधिक प्रक्रियाओं में एक पक्ष होता है –
- कंसीलमेंट
- कब्ज़ा
- अधिग्रहण
- उपयोग
- बेदाग (अनटेंटेड) संपत्ति के रूप में पेश करना
- इसे किसी भी तरह से बेदाग संपत्ति के रूप में दावा करना
यह स्पष्टीकरण एफ.ए.टी.एफ. द्वारा किए गए अवलोकन (ऑब्जर्वेशन) के आधार पर डाला गया था और इसलिए संशोधन के बाद उपरोक्त सभी अपराधों के अंदर आता हैं।
- रोहित टंडन बनाम एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि संपत्ति को बेदाग संपत्ति के रूप में पेश करके या दावा करके छिपाना, कब्जा करना, अधिग्रहण या उपयोग करना और बैंक ड्राफ्ट द्वारा इसे परिवर्तित करना, यह निश्चित रूप से अनुसूचित अपराध से संबंधित आपराधिक गतिविधि के अर्थ और दायरे मे आता है और मनी लॉन्ड्रिंग का मामला होने के कारण यह अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय होगा।
- धारा 17(1) और धारा 18(1) के तहत परंतुक (प्रोविजो) को हटा देना- उक्त प्रावधानों को छोड़कर, अब अधिनियम के तहत अधिकृत कार्यालय को, एक मजिस्ट्रेट या किसी अधिकृत सक्षम प्राधिकारी को एक अनुसूचित अपराध के बारे में सूचित किए बिना, किसी संपत्ति की तलाशी करने और जब्ती करने के उद्देश्य से उसमें प्रवेश करने का अधिकार है। हटाने से पहले, यह प्रदान किया गया था कि जब तक अपराध अनुसूचित अपराधों के दायरे में नहीं आता है, तब तक कोई खोज नहीं की जा सकती है।
- धारा 44 में संशोधन- एक परंतुक जोड़ा गया है जिसमें कहा गया है कि जांच के बाद मनी लॉन्ड्रिंग का कोई अपराध निर्धारित नहीं किया जा सकता है और प्राधिकरण विशेष न्यायालय (स्पेशल कोर्ट) के समक्ष एक क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा और यह साबित होते ही की कोई अपराध नही किया गया था, उस मामले को बंद कर दिया जाएगा।
- धारा 44 (1) (D) के तहत, एक स्पष्टीकरण जोड़ा गया है जो सभी अनुसूचित अपराधों के संबंध में विशेष अधिकार क्षेत्र (एक्सक्लूसिव ज्यूरिस्डिक्शन) के लिए विशेष न्यायालय को विशेष शक्ति प्रदान करता है। यह विशेष न्यायालय द्वारा किए गए परीक्षणों के बारे में भी बात करता है।
- धारा 45(2) में स्पष्टीकरण को जोड़ना– धारा 45 में एक स्पष्टीकरण भी जोड़ा गया है जो आगे स्पष्ट करता है कि मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध संज्ञेय (कॉग्निजेबल) और गैर-जमानती (नॉन बेलेबल) अपराध है जिसका अर्थ है कि आरोपी को किसी भी अधिकृत अधिकारी द्वारा बिना किसी वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है और जमानत देना या न देना, यह न्यायालय के विवेक (डिस्क्रेशन) पर है और इस अपराध के लिए सजा, 3 साल से अधिक है।
- कवि अरोड़ा बनाम राज्य के मामले में, याचिकाकर्ता (पिटीशनर) (कवि अरोड़ा) जो रेलिगेयर फिनवेस्ट लिमिटेड के पूर्व सी.ई.ओ. थे, ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में नियमित जमानत (रेगुलर बेल) मांगने के लिए एक याचिका (पिटीशन) दायर की थी। इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया क्योंकि याचिकाकर्ता पर आई.पी.सी. की धारा 409 के तहत आरोप लगाया गया है जिसकी सजा आजीवन कारावास और साथ ही आरोपी द्वारा की गई धोखाधड़ी जनता के पैसे के 2000/- रुपये करोड़ की थी, इसलिए याचिकाकर्ता को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद का वित्तपोषण ,हमारे वित्तीय और साथ ही किसी भी देश की संप्रभुता (सोवरेनिटी) के लिए एक गंभीर खतरा है। आतंकवाद का वित्तपोषण एक और बड़ी बाधा है जिसे ट्रैक करना और पकड़ना लगभग असंभव लगता है क्योंकि इनमें से ज्यादातर लेनदेन नकद में होते हैं और कोई भी बैंक इस प्रक्रिया में शामिल नहीं होता है। आतंकवाद गतिविधियों से संबंधित गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए भी मनी लॉन्ड्रिंग संरक्षण अधिनियम (पी.एम.एल.ए.) में संशोधन किया गया है। आर.बी.आई. और सेबी के पास एंटी मनी लॉन्ड्रिंग दिशानिर्देशों का अपना सेट है। एफ.आई.यू. इलेक्ट्रॉनिक रूपों में अधिकतम रिपोर्ट प्राप्त करना चाहता है। हमारे पास भारत में कई हाई-प्रोफाइल मनी लॉन्ड्रिंग मामले हैं, भले ही हमारे पास यह अधिनियम और इतने सारे दिशा निर्देश हैं, हमें बस उन दिशानिर्देशों और कानूनों को सही ढंग से लागू करने की आवश्यकता है।
संदर्भ (रेफरेंसेस)
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