सिविल वाद में पक्षों की उपस्थिति और गैर-उपस्थिति

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19405
Civil Procedure Code

यह लेख राजस्थान के बनस्थली विद्यापीठ की छात्रा Pankhuri Anand ने लिखा है। यह लेख एक सिविल न्यायालय में कार्यवाही के दौरान पक्षों की उपस्थिति और गैर-उपस्थिति के प्रभाव पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।

परिचय

कानून के सामान्य सिद्धांत के रूप में जहां तक ​​संभव हो, प्रत्येक कार्यवाही पक्षों की उपस्थिति में की जानी चाहिए। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश IX में पक्षों की उपस्थिति और गैर-उपस्थिति के परिणामों के बारे में प्रावधान दिया गया हैं।

वाद के लिए पक्षों की उपस्थिति

जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश IX के नियम 1 के तहत कहा गया है, कि वाद (सूट) के पक्षों को या तो व्यक्तिगत रूप से या उनके प्लीडर द्वारा उस दिन अदालत में उपस्थित होना आवश्यक है जो सम्मन में तय किया गया है। यदि वादी या प्रतिवादी, जिसे व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया जाता है, अदालत के सामने पेश नहीं होता है और न ही उसकी गैर-उपस्थिति के लिए पर्याप्त कारण दिखाता है, तो अदालत आदेश IX के नियम 12 के तहत निम्नानुसार सशक्त है:

  1. यदि वादी उपस्थित नहीं होता है तो वाद खारिज कर दें।
  2. यदि प्रतिवादी उपस्थित नहीं होता है, तो एक पक्षीय (एक्सपार्टे) आदेश पारित कर दे।

वाद में दोनों पक्षों का उपस्थित न होना

जब वाद को सुनवाई के लिए बुलाए जाने पर न तो वादी और न ही प्रतिवादी न्यायालय के समक्ष उपस्थित होते हैं, तब न्यायालय आदेश IX के नियम 3 के तहत वाद को खारिज करने का अधिकार रखता है। इस नियम के तहत वाद का खारिज होना नियम 4 के अनुसार कार्रवाई के एक ही कारण पर एक नया मुकदमा दायर करने पर रोक नहीं लगाता है।

वादी, वाद को खारिज करने के आदेश को रद्द करने के लिए भी आवेदन कर सकता है यदि वह अदालत को संतुष्ट करने में सक्षम है कि उसकी गैर-उपस्थिति के पीछे पर्याप्त कारण था। यदि अदालत गैर-उपस्थिति के कारण से संतुष्ट है तो वह वाद को खारिज करने के आदेश को रद्द कर सकती है और मुकदमे की सुनवाई के लिए एक दिन निर्धारित कर सकती है।

वादी की उपस्थिति

जब केवल वादी उपस्थित होता है लेकिन प्रतिवादी उपस्थित नहीं होता है, तब प्रतिवादी के विरुद्ध एक पक्षीय आदेश पारित किया जा सकता है। लेकिन, वादी को यह साबित करना होगा कि प्रतिवादी को सम्मन तामील (सर्व) किया गया था।

यदि सम्मन की तामील साबित हो जाती है तो केवल अदालत प्रतिवादी के खिलाफ एक पक्षीय आदेश के लिए कार्यवाही कर सकती है और अदालत वादी के पक्ष में एक डिक्री पारित कर सकती है। यह प्रावधान केवल पहली सुनवाई के लिए लागू होता है न कि मामले की बाद की सुनवाई के लिए और यही संग्राम सिंह बनाम चुनाव न्यायाधिकरण (ट्रिब्युनल) के मामले में भी आयोजित किया गया है।

एक पक्षीय आदेश पारित करते समय भी प्रतिवादी की अनुपस्थिति में भी न्याय सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है। माया देवी बनाम लल्ता प्रसाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि यह सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है कि वादपत्र (प्लेंट) में दिए गए कथन साबित हों और न्यायालय के समक्ष की गई प्रार्थनाएं स्वीकार किए जाने के योग्य हों। एक पक्षीय आदेश पारित करने का यह प्रावधान तब पारित नहीं किया जा सकता जब मामले में एक से अधिक प्रतिवादी हों और उनमें से कोई भी उपस्थित हो।

प्रतिवादी की उपस्थिति

आदेश IX के नियम 7-11 में केवल प्रतिवादी की उपस्थिति से निपटने के लिए प्रावधान निर्धारित किए गए हैं। जब प्रतिवादी उपस्थित होता है लेकिन वादी की गैर-उपस्थित होती है, तो दो स्थितियां हो सकती हैं:

  1. प्रतिवादी वादी के दावे को या तो पूर्ण रूप से या उसके किसी भाग को स्वीकार नहीं करता है।
  2. प्रतिवादी वादी के दावे को स्वीकार करता है।

यदि प्रतिवादी वादी के दावे को स्वीकार नहीं करता है, तो न्यायालय वाद को खारिज करने का आदेश देगा। लेकिन, जब प्रतिवादी वादी द्वारा किए गए दावे कोपूरी तरह से या उसके किसी हिस्से को स्वीकार कर लेता है, तो अदालत को इस तरह की स्वीकृति के आधार पर प्रतिवादी के खिलाफ एक डिक्री पारित करने का अधिकार है और शेष दावे के लिए, मुकदमा खारिज कर दिया जाएगा।

वादी के मुकदमे को उसकी सुनवाई के बिना खारिज करना एक गंभीर मामला है और इसे तब तक नहीं अपनाया जाना चाहिए जब तक कि अदालत संतुष्ट न हो जाए कि न्याय के हित में इस तरह के खारिज करने के आदेश की आवश्यकता है, जैसा कि शामदासानी बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के मामले में मुख्य न्यायाधीश ब्यूमोंट द्वारा उद्धृत (कोट) किया गया है। 

क्या मृत्यु के कारण वादी के उपस्थित न होने पर भी यही प्रावधान लागू होता है?

जब वादी मृत्यु के कारण उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय को वाद को खारिज करने की कोई शक्ति नहीं होती है। यदि ऐसा आदेश पारित किया जाता है, तो यह अमान्य होगा जैसा कि पी.एम.एम. पिल्लयाथिरी अम्मा बनाम के. लक्षी अम्मा के मामले में कहा गया था।

खारिज करने के आदेश को रद्द करने के लिए आवेदन

जब वादी के उपस्थित न होने के आधार पर वाद खारिज कर दिया जाता है तो वह खारिज करने के आदेश को रद्द करने के लिए आवेदन कर सकता है। यदि न्यायालय उपस्थित न होने के कारण से संतुष्ट है ओर वह पर्याप्त कारण है तो न्यायालय वाद को खारिज करने के आदेश को रद्द कर सकता है और वाद की कार्यवाही के लिए एक दिन तय कर सकता है।

पर्याप्त कारण

वादी के उपस्थित न होने के पर्याप्त कारण पर विचार करने के लिए मुख्य तर्क पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या वादी ने वास्तव में उस दिन उपस्थित होने का प्रयास किया जो सुनवाई के लिए तय किया गया था या नहीं। जब वादी द्वारा उसकी गैर-उपस्थिति के लिए पर्याप्त कारण दिखाया जाता है, तो अदालत के लिए वाद को फिर से खोलना अनिवार्य हो जाता है। पर्याप्त कारण के अभाव में, यह अदालत के विवेक पर है कि वह वाद को खारिज करने के आदेश को रद्द करे या नहीं जैसा कि पी.के.पी.आर.एम रमन चेट्टर बनाम के.ए.पी. अरुणाचलम चेट्टियार के मामले में आयोजित किया गया था कि पर्याप्त कारण प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

छोटालाल बनाम अंबाला हरगोवन के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने देखा कि अगर पक्ष देर से आता है और उसकी गैर-उपस्थिति के कारण उसके मुकदमे को खारिज कर दिया जाता है तो वह लागत के भुगतान के साथ अपना मुकदमा या आवेदन बहाल (रिस्टोर) करने का हकदार है।

सम्मन तामील कब नहीं किया जाता है?

आदेश IX के नियम 2 से 5 उस स्थिति के लिए प्रावधान निर्धारित करते है जब प्रतिवादी को सम्मन तामील नहीं किया जाता है। प्रक्रियात्मक कानून के मौलिक कानूनों में से एक यह है कि एक पक्ष को अपने मामले का प्रतिनिधित्व करने का उचित अवसर दिया जाना चाहिए और, इसके लिए उसके खिलाफ शुरू की गई कानूनी कार्यवाही का नोटिस अनिवार्य है। इसलिए, प्रतिवादी को सम्मन तामील करना अनिवार्य है और यह एक सशर्त मिसाल (प्रिसिडेंट) है।

जब सम्मन की कोई तामील नहीं होती है या यह उसे मामले की प्रभावी प्रस्तुति के लिए पर्याप्त समय नहीं देता है तो उसके खिलाफ एक डिक्री पारित नहीं की जा सकती है जैसा कि बेगम पारा बनाम लुइज़ा मटिल्डा फर्नांडीस के मामले में आयोजित किया गया था।

आदेश IX के नियम 2 में यह भी कहा गया है कि जब वादी प्रतिवादी को सम्मन की तामील के लिए लागत का भुगतान करने में विफल रहता है तो वाद खारिज किया जा सकता है। लेकिन, ऐसी विफलता की उपस्थिति में भी कोई खारिज करने का आदेश नहीं दिया जा सकता  है यदि प्रतिवादी सुनवाई के दिन व्यक्तिगत रूप से या अपने प्लीडर के माध्यम से पेश होता है। हालाँकि, वादी इस नियम के तहत वाद खारिज होने पर एक नया मुकदमा दायर करने का हकदार है। और, अगर अदालत संतुष्ट है कि लागत का भुगतान करने में ऐसी विफलता के पीछे एक उचित कारण है तो अदालत खारिज के आदेश को रद्द कर सकती है।

जब सम्मन बिना तामील किए वापस कर दिया जाता है और वादी 7 दिनो में नए सम्मन के लिए आवेदन नहीं करता है, जिसमें से प्रतिवादी या किसी भी प्रतिवादी द्वारा बिना तामील किए सम्मन वापस कर दिया जाता है, तो अदालत प्रतिवादी या ऐसे प्रतिवादियों के खिलाफ मुकदमा खारिज कर सकती है।

जब सम्मन विधिवत रूप से प्रतिवादी को तामील नहीं किया गया था, यह साबित नहीं होता है तो अदालत प्रतिवादी को तामील के लिए एक नया सम्मन जारी करने का निर्देश दे सकती है। जब सम्मन की तामील न्यायालय के समक्ष सिद्ध हो जाती है, लेकिन सम्मन में निर्धारित समय उसके लिए तय दिन पर उत्तर देने के लिए पर्याप्त नहीं है, तब न्यायालय द्वारा सुनवाई को भविष्य की तारीख के लिए स्थगित किया जा सकता है और प्रतिवादी को नोटिस जारी किया जाता है। 

एक पक्षीय डिक्री

जब प्रतिवादी सुनवाई के दिन सम्मन में तय दिन के अनुसार गैर उपस्थित रहता है तो एक पक्षीय डिक्री पारित की जा सकती है। एक पक्षीय आदेश तब पारित किया जाता है जब वादी सुनवाई के दिन अदालत के सामने पेश होता है लेकिन प्रतिवादी सम्मन की तामील होने के बाद भी नहीं आता है। न्यायालय वाद की एक पक्षीय सुनवाई कर सकता है और प्रतिवादी के विरुद्ध एक पक्षीय डिक्री दे सकता है।

एक पक्षीय डिक्री वैध होती है और यह अशक्त और शून्य नहीं होती है, लेकिन जब तक इसे कानूनी और वैध आधार पर रद्द नहीं किया जाता है, तब तक यह केवल शून्यकरणीय (वॉयडेबल) हो सकती है। एक पक्षीय डिक्री को द्वि-पक्षीय डिक्री की तरह लागू किया जा सकता है और इसमें सभी बल एक वैध डिक्री के जैसा है, जैसा कि पांडुरंगा रामचंद्र बनाम शांतिबाई रामचंद्र के मामले में आयोजित किया गया था।

एक पक्षीय डिक्री के खिलाफ उपाय

जब एक प्रतिवादी के खिलाफ एक पक्षीय डिक्री पारित की गई हो, तो उसके लिए निम्नलिखित उपाय उपलब्ध हैं।

  1. वह आदेश IX के नियम 13 के तहत अदालत द्वारा पारित एक पक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है।
  2. वह संहिता की धारा 96(2) के तहत उस डिक्री के खिलाफ अपील कर सकता है या जब कोई अपील नहीं होती है तो संहिता की धारा 115 के तहत संशोधन (रिवीजन) को प्राथमिकता दे सकता है।
  3. वह आदेश 47 के नियम 1 के तहत समीक्षा (रिव्यू) के लिए आवेदन कर सकता है।
  4. धोखाधड़ी के आधार पर मुकदमा दायर किया जा सकता है।

एक पक्षीय डिक्री को रद्द करना

एक पक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए प्रतिवादी द्वारा एक आवेदन दायर किया जा सकता है। डिक्री को रद्द करने के लिए एक आवेदन उस डिक्री को पारित करने वाले न्यायालय में किया जा सकता है। एक पक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है और यदि प्रतिवादी पर्याप्त कारण से न्यायालय को संतुष्ट करता है केवल तभी एक पक्षीय डिक्री जो पारित की गई है, को रद्द किया जा सकता है।

एक पक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए आवेदन करने की सीमा अवधि 30 दिनों की है।

जिन आधारों पर एक पक्षीय डिक्री रद्द की जा सकती है वे हैं:

  1. जब सम्मन विधिवत रुप से तामील नहीं किया गया हो।
  2. किसी भी “पर्याप्त कारण” की वजह से वह सुनवाई के दिन उपस्थित नहीं हो सके।

पर्याप्त कारण

पर्याप्त कारण शब्द को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन जैसा कि यूको बैंक बनाम अयंगर कंसल्टेंसी के मामले में कहा गया था, यह एक ऐसा प्रश्न है जो मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्धारित होता है। इसके लिए लागू किया जाना वाला परीक्षण यह है कि क्या पक्ष वास्तव में और ईमानदारी से सुनवाई में उपस्थित होने का इरादा रखता है और ऐसा करने की पूरी कोशिश करता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्हें पर्याप्त कारण माना गया है जैसे कि ट्रेन का देर से आना, पक्ष का बीमार होना, अधिवक्ताओं की हड़ताल, पक्ष के किसी रिश्तेदार की मृत्यु होना, आदि।

गैर-उपस्थिति के पर्याप्त कारण को दिखाने का सबूत का भार प्रतिवादी पर होता है।

निष्कर्ष

पक्षों की उपस्थिति और गैर-उपस्थिति का क्या इसे अगली सुनवाई के लिए चलाया जाएगा, खारिज कर दिया जाएगा या एक पक्षीय डिक्री दी जाएगी, पर प्रभाव पड़ता है। जब कोई भी पक्ष उपस्थित नहीं होता है तो अदालत द्वारा मुकदमा खारिज किया जा सकता है। मुकदमा अगली सुनवाई के लिए तभी चलाया जाता है जब दोनों पक्ष अदालत के सामने पेश होते हैं।

यदि वादी अदालत के समक्ष पेश होता है लेकिन सुनवाई के दिन कोई प्रतिवादी पेश नहीं होता है तो अदालत प्रतिवादी के खिलाफ एक पक्षीय डिक्री पारित कर सकता है। जब वादी की ओर से गैर-उपस्थिति होती है तो वाद को खारिज किया जा सकता है यदि प्रतिवादी वादी के दावे को अस्वीकार करता है और यदि वह किसी दावे को स्वीकार करता है तो अदालत उसकी स्वीकृति के आधार पर उसके खिलाफ आदेश पारित कर सकती है।

जब कोई वाद खारिज कर दिया जाता है या एक पक्षीय आदेश पारित किया जाता है तो पक्ष की गैर उपस्थिति के पीछे पर्याप्त कारण होने पर इसे रद्द भी किया जा सकता है। यदि न्यायालय गैर उपस्थिति के कारण से संतुष्ट है तो वह खारिज करने के आदेश या एक पक्षीय आदेश को रद्द कर सकता है। इन सभी प्रक्रियाओं के दौरान अदालत को यह ध्यान रखना चाहिए कि खारिज करने के आदेश के दौरान या एक पक्षीय आदेश पारित करते समय कहीं भी न्याय का उल्लंघन नहीं हुआ हो।

संदर्भ

  • टकवानी सी.के., सिविल प्रक्रिया, आठवां संस्करण (पुनर्मुद्रण) 2019
  • नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908
  • शमदासानी विसेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया [(1938) एआईआर 199 बोम

 

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