नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस एक्ट, 1993 के तहत शक्तियां और कार्य

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National Commission for Backward Classes Act
Image Source- https://rb.gy/acgrdt

यह लेख Shobhana Aggarwal द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में बनस्थली विद्यापीठ से बीकॉम एलएलबी कर रही हैं। यह लेख नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस एक्ट, 1993 में उल्लिखित प्रोविजंस से संबंधित है। इसका उद्देश्य एनसीबीसी के अंदर लिखित सभी शक्तियों और कार्यों की बेहतर समझ बनाना है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Kumari ने किया है जो वर्त्तमान में फेयरफील्ड इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनजमेंट एंड टेक्नोलॉजी से बी.ए. एलएलबी  कर रही है

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परिचय (इंट्रोडक्शन)

नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस (एनसीबीसी), 1993 को 123वें अमेंडमेंट बिल, 2017 और 102वें कांस्टीट्यूशनल अमेंडमेंट बिल, 2018 के तहत एक कांस्टीट्यूशनल बॉडी के रूप में मान्यता दी गई, जिसने भारत के संविधान में आर्टिकल 338b को शामिल किया। इसे दो तिहाई (2/3) बहुमत (मेजॉरिटी) से 102वें कोंस्टीटूशनल अमेंडमेंट बिल, 2018 के रूप में पास किया गया था। एनसीबीसी एक्ट, 1993 पिछड़े वर्गों (बैकवर्ड क्लासेस) की श्रेणी (केटेगरी) के लिए पास किया गया था।

एनसीबीसी क्या है?

प्रथम बैकवर्ड क्लास कमिशन 29 जनवरी, 1953 को स्थापित (पॉइंटेड) किया गया था, जिसे काका कालेलकर कमिशन के नाम से जाना जाता है। पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए मानदंड (क्राइटेरिया) निर्धारित (आइडेंटिफाई) करने में कमिशन द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण (एप्रोच) से केंद्र सरकार संतुष्ट नहीं थी।

1 जनवरी, 1979 को राष्ट्रपति ने एक अन्य बैकवर्ड क्लास कमिशन की नियुक्ति की जिसे मंडल कमिशन के नाम से जाना जाता है, इसके श्री बी.पी. मंडल अध्यक्ष हैं।

1987 में, एससी और एसटी के लिए एक नेशनल कमिशन के रूप में एक एग्जिक्यूटिव बॉडी की स्थापना की गई थी, उसके बाद 1990 में, 65वां अमेंडमेंट पेश किया गया था, जिसने संविधान में आर्टिकल 338 को जोड़ा और एक कांस्टीट्यूशनल बॉडी के रूप में एससी और एसटी के लिए एक नेशनल कमिशन बनाया।

उसके बाद, पिछड़े वर्ग के लिए एक नेशनल कमिशन बनाने वाले कांसेप्ट को ऐतिहासिक केस इंद्र साहनी और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1992 में पेश किया गया था। जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछड़े वर्गों के लिए एक परमानेंट बॉडी होनी चाहिए जिसे सरकार स्वयं गठित करेगी, और इसलिए संसद ने नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज, 1993 के एक्ट द्वारा एक स्टेच्यूटरी बॉडी बनाई जिसे मिनिस्ट्री ऑफ़ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट के तहत 14 अगस्त 1993 को स्थपित किया गया था, इसलिए शुरू में यह केवल एक स्टेच्यूटरी बॉडी था, लेकिन बाद में 2003 में जब 89वां कांस्टीट्यूशनल अमेंडमेंट बिल आया, जिसने संविधान में आर्टिकल 338a को जोड़ा और नेशनल कमिशन के रूप में अनुसूचित जनजातियों (शेड्यूल ट्राइब्स (एससी)) के लिए एक अंतर और अनुसूचित जनजाति के लिए एक कांस्टीट्यूशनल बॉडी बनाई और उसी वर्ष यह उल्लेख किया गया था कि अन्य पिछड़े वर्गों से संबंधित मामले को केवल अनुसूचित जाति के लिए नेशनल कमिशन द्वारा देखा जाएगा, लेकिन इसने भारी अराजकता (चाओस) पैदा की, और पिछडे वर्ग भी इसे अलग करना चाहता था और अपने लिए एक अलग कांस्टीट्यूशनल बॉडी बनाना चाहता था l

इसलिए 2017 में ही, संसद ने पिछड़े वर्गों के लिए इसे एक कांस्टीट्यूशनल बॉडी बनाने के लिए 123वें अमेंडमेंट बिल की घोषणा की और इसे सामाजिक और पिछड़े वर्गों के लिए एक नेशनल कमिशन का नाम दिया गया था, लेकिन इस घोषणा के बाद ही, एक बड़ा विरोध हुआ, जो की छेत्रीये पार्टियों ने किया उनके अनुसार सत्ताधारी (रूलिंग) पार्टी लोगों को दबाने और अलग करने की कोशिश कर रही है, इसलिए अगस्त, 2018 में, संसद ने 123वां अमेंडमेंट बिल, 2017 और 102वां अमेंडमेंट एक्ट, 2018 पास किया, जिसने एक कांस्टीट्यूशनल बॉडी के रूप में पिछड़े वर्गों एनसीबीसी के लिए एक नेशनल कमिशन बनाया और आर्टिकल  338b संविधान में पिछड़े वर्गों के कमिशन के लिए जोड़ा गया।

पिछड़े वर्गों के लिए नेशनल कमिशन के संगठनात्मक ढांचे (ओर्गनाइजेशनल  सेटअप) में 5 सदस्य शामिल होंगे, जो केंद्र सरकार द्वारा नामित (नॉमिनेटेड) किए जाते हैं, जिसमें एक अध्यक्ष भी शामिल होता है जो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का न्यायाधीश हो या रहा हो, अन्य दो व्यक्ति जिनके पास  पिछड़े वर्गों से संबंधित मामलों के बारे में विशेष ज्ञान होना चाहिए, एक सामाजिक वैज्ञानिक, और एक सदस्य सेक्रेटरी जो भारत सरकार के सचिव के रूप में नियुक्त  किया गया होता है।

महत्वपूर्ण प्रोविजंस  

भारत का संविधान पिछड़े वर्गों और राष्ट्र की श्रेणियों के बीच सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अंतर को  बनाए रखने के लिए कई प्रोविजंस  प्रदान करता है, और इसलिए संविधान ने कुछ ऐसे प्रोविजंस बनाए जो पिछड़े वर्गों से संबंधित हैं जैसे आर्टिकल 15, आर्टिकल 16, आर्टिकल 340, आर्टिकल 338b।

आर्टिकल 15(4) और (5)[1] पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रोविजंस  हैं क्योंकि इसमें कहा गया है कि राज्य के पास सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों के किसी भी अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के उत्थान (एडवांसमेंट) और उपलिफ्टमेंट के लिए कोई विशेष प्रोविजंस  बनाने की पूरी शक्ति है। यह क्लॉज संविधान में फर्स्ट अमेंडमेन्ट बिल, 1951 द्वारा जोड़ा गया था क्योंकि बहुत प्राचीन समय से हम उच्च (अपर) और निम्न (लोअर) वर्ग, अमीर और गरीब वर्ग, साक्षर और अनपढ़ वर्ग के बीच इस अंतर की समस्या का सामना कर रहे हैं, इसलिए उनके लिए कुछ एक्स्ट्रा क्लॉसेस या कुछ अतिरिक्त विशेष प्रोविजंस  बनाने की बहुत आवश्यकता थी। प्रोविजंस  में शामिल अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) में आरक्षण शामिल हो सकता है लेकिन कई और चीजें जैसे कि वित्तीय सहायता (फाइनेंसियल असिस्टेंस), मुफ्त चिकित्सा, शैक्षिक (एजुकेशनल), या छात्रावास की सुविधा, ट्रांसपोर्ट, और अन्य भी शामिल है।

आर्टिकल 16(4) भी राज्य की सेवाओं के तहत नियुक्तियों या पदों के लिए आरक्षण के मामले में इन पिछड़े वर्ग के लोगों को मिलने वाले अतिरिक्त लाभ के बारे में बात करता है। इस क्लॉज में कहा गया है कि राज्य के पास पिछड़े वर्गों के लिए सीटों, पदों या नियुक्तियों के आरक्षण के लिए कोई विशेष प्रोविजंस  बनाने की शक्ति है।

आर्टिकल 340 पिछड़े वर्गों की जांच, उनके सामने आने वाली समस्याओं और कठिनाइयों का मूल्यांकन (इवेलुएट) करने के लिए एक कमिशन प्रदान करता है और कमिशन की नियुक्ति स्वयं राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और एक बार कमिशन का गठन हो जाने के बाद उन्हें इस पिछड़े वर्ग की श्रेणी की देखभाल करनी होती है और यदि ऐसी कोई स्थिति मिलती है तो उन्हे इसकी सूचना राष्ट्रपति को देनी होती है और फिर राष्ट्रपति उस समस्या को संसद के दोनों सदनों के सामने पेश करते है

भारतीय संविधान के आर्टिकल 338b में कहा गया है कि पिछड़े वर्गों के लिए एक कमिशन होगा जिसे एनसीबीसी के नाम से जाना जायेगा और इसमें एनसीबीसी की संरचना (कंपोजिशन) भी शामिल है। आर्टिकल  कमिशन  के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया और उनके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों (ड्यूटीज) को परिभाषित करता है।

कार्य और शक्तिया (फंक्शन्स  एंड  पावर्स )

  • इस एनसीबीसी एक्ट, 1993 के अध्याय III में कमिशन की शक्तियों और कार्यों को प्रदान करने वाले प्रोविजंस दिय गए है। इस अध्याय में 3 धारा हैं। धारा 9 से 11 में कमिशन को दी गई शक्तियों और कार्यों को बताया गया है।
  • सेक्शन 9(1) किसी भी श्रेणी को पिछड़े वर्ग के रूप में शामिल करने के लिए किए गए अनुरोध की जांच करने या समावेश (इंक्लूज़न) के तहत श्रेणी के सामने आने वाली स्थितियों या समस्याओं की जांच करने और फिर केंद्र सरकार को ऐसी सलाह देने के लिए कमिशन  के कार्य को बताती है। इस सलाह की प्रकृति आमतौर पर केंद्र सरकार पर बाध्यकारी होती है।
  • सेक्शन 10, एनसीबीसी एक्ट, 1993 के सेक्शन 9(1) के तहत अपने कर्तव्य का पालन करते हुए कमिशन की शक्तियां प्रदान करता है क्योंकि कमिशन के पास एक सिविल कोर्ट के रूप में कार्य करने की शक्ति है और किसी भी व्यक्ति या उनकी उपस्थिति के समन के लिए, किसी भी सबूत की खोज की आवश्यकता, एफिडेविट पर साक्ष्य प्राप्त करना और किसी गवाह या किसी अन्य की जांच के लिए कोई कमीशन जारी करना और निर्धारित किए गए अन्य कार्यों को करने के लिए कमिशन के पास सिविल कोर्ट की शक्तियां है।

महत्वपूर्ण निर्णय (इम्पोर्टेन्ट जजमेंट्स)

इंदिरा साहनी बनाम  यूनियन ऑफ इंडिया (एआईआर 1993 एससी 477)

इस केस को मंडल आयोग केस के नाम से भी जाना जाता है। इस केस में 9 जजों की बेंच का गठन किया गया था और उनके निम्नलिखित आवश्यक पॉइंट्स दिय गए थे।

  1. आर्टिकल 16(4) संपूर्ण (एग्जाॅस्टिव) है इसका उपयोग पिछड़े वर्गों के लिए रोजगार में किया जा सकता है।
  2. आरक्षण कुल के 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।
  3. आर्टिकल 16(4) में पिछड़े वर्ग  की परिभाषा आर्टिकल15(4) के समान नहीं है।
  4. विशिष्ट कारक (फैक्टर) पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए वित्तीय क्राइटेरिया पर पूरी तरह निर्भर नहीं होगा।
  5. यह प्रोविजंस संसद या लेजिस्लेचर द्वारा बनाए जाने के बजाय एग्जिक्यूटिव आदेश द्वारा भी बनाया जा सकता है।
  6. राज्य को पिछड़े वर्गों के लाभ के लिए आर्टिकल 16(4) के तहत दिय गए शक्तियों का पालन करना चाहिए।
  7. कोर्ट ने भी सरकार के इस कदम का समर्थन किया और कहा कि ओबीसी के बीच क्रीमी लेयर का बहिष्कार (एक्सक्लूजन) होना चाहिए ताकि ओबीसी के कमजोर वर्ग को लाभ मिल सके।
  8. कोर्ट ने केंद्र सरकार से ओबीसी के कमजोर वर्गों को ओबीसी के क्रीमी लेयर से अलग करने के लिए कुछ मानदंड (नॉर्म्स) तय करने को भी कहा। क्रीमी लेयर 1993 में 1 लाख रु., 2004 में 2.5 लाख रु., 2008 में 4.5 लाख रु., 2013 में 6 लाख रु., और 2017 से 8 लाख रु. है।

एम.आर. बालाजी और अन्य बनाम मैसूर राज्य [1963] सप्ल 1 एस.सी.आर. 439

इस केस में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने उक्त आदेश को खारिज करते हुए जरूरी बातें बताईं.

  1. आर्टिकल15(4) के तहत मुख्य उद्देश्य एक उचित उद्देश्य बनाए रखना है और समानता के नियम को हराना नहीं है जिसका उल्लेख क्लॉज (1) के तहत किया गया है।
  2. आरक्षण के सटीक प्रतिशत को परिभाषित करना थोड़ा मुश्किल है इसलिए आरक्षण की अधिकता नहीं होनी चाहिए, जैसे कि 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।
  3. यह प्रोविजंस लेजिस्लेशन द्वारा बनाए जाने के बजाय एग्जिक्यूटिवआदेश द्वारा भी बनाए जा सकते है।
  4. आर्टिकल 15(4) का मूल उद्देश्य सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों की उन्नति है।
  5. आर्टिकल 15(4) के तहत पिछड़े वर्गों को भविष्य में वर्गीकृत करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

राम सिंह और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

इस केस में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एनसीबीसी द्वारा दिनांक 26.02.2014 की रिपोर्ट एक विस्तृत थी क्योंकि उसने स्टेट बैकवर्ड क्लास कमिशन की विभिन्न रिपोर्टों पर विचार किया था। साथ ही आईसीएसएसआर (इंडियन कॉन्सिल ऑफ़ सोशल साइंस रिसर्च ) द्वारा विशेषज्ञ समिति भी। कोर्ट ने यह भी कहा कि एनसीबीसी ने उक्त मामले के कुछ हिस्सों को ओवरप्ले या ओवरस्ट्रेस किया है। इसके अलावा, सरकार की यह दलील कि जाट 9 में से 8 की राज्य सूची (लिस्ट) में थे, को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया। यह भी कहा की सूची को बनाए हुए एक दशक हो गया है, और महत्वपूर्ण निर्णय गंभीर थे जिसने भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 और 16 के तहत कई लोगों के अधिकारों को प्रभावित किया है।

कोर्ट ने यह भी बतया की जाति, सामाजिक पिछड़ेपन से अलग होने का कारक हो सकती है, लेकिन कोर्ट जाति कारक को सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में भेद करने को हतोत्साहित करती है। आर्टिकल 15(4) और 16(4) राज्य को योग्य व्यक्ति तक पहुंचने के लिए कुछ प्रतिज्ञान देता है।

नालसा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एआईआर (2014) 5 एससीसी 438

इस ऐतिहासिक फैसले में, कोर्ट ने केंद्र सरकार को सभी ट्रांसजेंडरों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में मानने और उन्हें उचित शिक्षा के साथ-साथ रोजगार प्रदान करने का निर्देश दिया, जो कि क्रीमी लेयर ओबीसी को छोड़कर सभी को प्रदान किया जाता है।

एक्ट कहाँ तक सफल रहा है?

1950 में गठित पहला कमिशन काका कालेकर था और फिर 1970 में बी.पी. मंडल। ये दो कमिशन पिछड़े वर्गों के लाभ के लिए थे। मंडल कमिशन मामले के बाद कोर्ट ने सरकार को विभिन्न पिछड़े वर्गों के लाभ और सुरक्षा के समावेश और बहिष्कार के लिए एक अलग बॉडी बनाने का निर्देश दिया। इसके लिए संसद ने नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस एक्ट, 1993 पास कीया। इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के हितों की रक्षा करना और उन्हें उचित सुरक्षा और देखभाल प्रदान करना है।

एनसीबीसी, 1993 के एक स्टेच्यूटरी एक्ट के रूप में अधिनियमित (इनैक्टमेंट) होने के तुरंत बाद, यह 102 वें अमेंडमेंट एक्ट, 2018 द्वारा वर्ष 2018 में कांस्टीट्यूशनल  बन गया, जो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के अपलिफ्टमेंट के लिए सबसे बड़ा नेतृत्व (लीड) और उपलब्धि थी।

अतः मेरे दृष्टिकोण (पर्सपेक्टिव) से एनसीबीसी को स्थायी (परमानेन्ट) कोंस्टीटूशनल बॉडी को प्राप्त करने का उद्देश्य इस पिछड़े वर्ग के लिए समाज में समान दर्जा प्राप्त करने के मुख्य उद्देश्यों में से एक है और इस कमिशन द्वारा प्रदान किए जाने वाले सुधार अगले लक्ष्य के लिए एक स्रोत (सोर्स) होंगे।

जटिल अन्वेषण (क्रिटिकल एनालिसिस)

जब मैं वर्तमान स्थिति और पिछड़े वर्ग की प्राचीन स्थिति या इन श्रेणियों के लिए एक्ट या कमिशन के प्रोविजंस का आलोचनात्मक विश्लेषण करती हूं तो, मैं इस पॉइंट पर आती हूं कि एक इमारत एक दिन में नहीं बनाई जा सकती है, हर चीज की बेहतरी के लिए समय लगता है एक भ्रूण (फीटस) से एक शिशु के रूप में विकसित (ग्रो) होने में लगभग 9 महीने लगते हैं इसलिए हमारी सरकार को भी सभी लोगों को उनकी सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति के संबंध में समान बनाने के लिए समय चाहिए। सरकार हमें इस उद्देश्य के लिए विशेष प्रोविजंस  के साथ-साथ कमीशन भी प्रदान करती है, लेकिन हमें उनका पालन भी करना होगा। हम वे लोग हैं जिनके लिए ये प्रोविजंस बनाए गए हैं और हम उनका पालन करेंगे कि किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगे और मानव स्वभाव को समान सम्मान और प्यार देगे।

सुझाव

  • इस देश के प्रत्येक नागरिक को सरकार द्वारा बनाए गए नियमों और विनियमों (रेगुलेशंस) का पालन करना चाहिए और साथ ही साथ दूसरों को अपने अधिकारों, कर्तव्यों और एक-दूसरे के साथ-साथ हमारे राष्ट्र के प्रति जागरूक करना चाहिए जो मानव जाति पर भी आधारित है।
  • दूसरे पॉइंट पर, कमीशन को अधिक पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट), प्रभावी, जिम्मेदार, और उन लोगों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए जिनके लाभ के लिए यह कमीशन बनाया गया था। कमीशन का उद्देश्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों का अपलिफ्टमेंट होना चाहिए और कोई दूसरा मकसद नहीं होना चाहिए

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

एनसीबीसी एक्ट ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए उपाय निर्धारित किए है। भारत के नागरिकों के बीच समानता और शांति बनाए रखने के लिए कमिशन का गठन किया गया था। कुछ पिछड़े वर्ग के नागरिकों को अपने अधिकारों के बारे में कोई जानकारी नहीं है और उन्हें क्या लाभ मिल सकता हैl कुछ पिछड़े वर्ग हैं, लेकिन क्रीमी लेयर के साथ हैं, जिसका अर्थ है कि वे शैक्षिक और सामाजिक रूप से उन्नत हैं और उनके कारण असली पिछड़े वर्ग के नागरिक भी छूट जाते हैएक्ट का उद्देश्य इस प्रकार के नागरिकों के समावेश और बहिष्करण को बनाए रखना है।

जब एक्ट एक कांस्टीट्यूशनल स्टेटस का बन गया, तो पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए अधिक पारदर्शिता या अधिक अधिकार उत्पन्न हुए। कांस्टीट्यूशनल स्टेटस के बाद पिछड़े वर्ग के नागरिकों को जो मुख्य लाभ हुआ वह यह था कि कांस्टीट्यूशनल स्टेटस से पहले कंमिशन  की सिफारिश सरकार पर बाध्यकारी नहीं थी। जबकि कोंस्टीटूशनल स्टेटस के बाद कंमिशन के पास सिविल कोर्ट के बराबर शक्ति है और अब शिकायतों की जांच करने की भी शक्ति है।

कांस्टीट्यूशनल स्टेटस देने में एक प्लस पॉइंट है लेकिन केवल कांस्टीट्यूशनल स्टेटस सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों को बढ़ने में मदद नहीं करेगा, सरकार को सामाजिक पिछड़े वर्ग की सर्वे का प्रचार करना चाहिए और यहां तक ​​कि सरकार को भी पिछड़े वर्ग को केवल वोट बैंक के रूप में नहीं सोचना चाहिए इसके बजाय वास्तविक उद्देश्य उन्हें सामाजिक न्याय देने के लिए शिक्षित करना चाहिए।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

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