यह लेख रमैया इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज, बैंगलोर की बीबीए.एलएलबी की छात्र Kashish Kundlani द्वारा लिखा गया है। इस लेख में, हम रोंगफुल रिस्ट्रेंट और रोंगफुल कन्फाइनमेंट से संबंधित अपराधों पर चर्चा करेंगे। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
रोंगफुल रिस्ट्रेंट और रोंगफुल कन्फाइनमेंट मानव शरीर से संबंधित अपराध हैं। इन दो अपराधों को करने का मतलब होगा कि यह भारतीय संविधान के आर्टिकल 19 और 21 में दिए गए किसी व्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है।
रोंगफुल रिस्ट्रेंट और रोंगफुल कन्फाइनमेंट दोनों अपराध एक जैसे प्रतीत हो सकते हैं लेकिन नहीं हैं। इन दोनों अपराधों की एक उचित समझ बहुत अधिक आवश्यक हो जाती है क्योंकि रोंगफुल रिस्ट्रेंट के लिए सजा रोंगफुल कन्फाइनमेंट की सजा की तुलना में कम है।
रोंगफुल रिस्ट्रेंट
सबसे पहले हम रिस्ट्रेंट का अर्थ समझते हैं।
रिस्ट्रेंट का अर्थ है- किसी को या किसी चीज को नियंत्रण में रखने या किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता या गति (मूवमेंट) की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित (रिस्ट्रिक्ट) करने की क्रिया। इंडियन पीनल कोड की धारा 339 में रोंगफुल रिस्ट्रेंट को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को किसी भी दिशा में आगे बढ़ने से रोकने के इरादे से किसी व्यक्ति को रोकता है, जिसमें उसे आगे बढ़ने का अधिकार है, उस व्यक्ति को रोंगफुली रिस्ट्रेंट कहा जाता है।
अधिक सरल भाषा में- इसका अर्थ है, जानबूझकर किसी के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के अधिकार को रोकना। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शारीरिक रूप से किसी के अधिकार को रोकना ही एकमात्र कारक (फैक्टर) नहीं है जो रिस्ट्रेंट का गठन करता है। किसी के आगे बढ़ने के रास्ते के अधिकार को रोकने की धमकी भी रोंगफुल रिस्ट्रेंट का गठन करेगी।
रोंगफुल रिस्ट्रेंट एक पार्शियल रिस्ट्रेंट है क्योंकि केवल एक विशेष दिशा प्रतिबंधित है और किसी व्यक्ति के चलने की सभी दिशा प्रतिबंधित नहीं हैं।
एक्सेप्शन
इस धारा के तहत तब अपराध नहीं होगा जब एक व्यक्ति गुड फेथ में यह मानता है कि जमीन या पानी पर किसी अन्य व्यक्ति के निजी (प्राईवेट) रास्ते को रोकने का कानूनी अधिकार है।
सज़ा
इंडियन पीनल कोड की धारा 341 के तहत रोंगफुली रिस्ट्रेंट के लिए सजा को परिभाषित किया गया है क्योंकि जो कोई भी किसी के अधिकार को रोंगफुली रिस्ट्रेंट करता है उसे या तो साधारण कन्फाइनमेंट की सजा दी जाएगी, जो एक महीने तक हो सकती है, या जुर्माना जो 500 रुपये तक हो सकता है, या दोनों के साथ।
इंग्रेडिएंट्स
- किसी व्यक्ति को जानबूझकर या अपनी इच्छा से बाधा (ऑब्सट्रक्शन) डालना।
- उसे किसी भी दिशा में जाने से रोकने के लिए।
- जहां व्यक्ति को आगे बढ़ने का अधिकार हो।
- एक बाधा बैड फेथ में थी।
धारा 339 का उद्देश्य (ऑब्जेक्टिव ऑफ सेक्शन 339)
इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति के जहां चाहे स्वतंत्र रूप से घूमने के अधिकार की रक्षा करना है और साथ ही उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना है। इस धारा के तहत किसी व्यक्ति के अधिकार को बैड फेथ में बाधित करना एक अपराध है और दंडनीय है।
जैसे ही किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता या एक तरह से आगे बढ़ने के अधिकार में बाधा आती है, तो रोंगफुल रिस्ट्रेंट लग जाती है।
इलस्ट्रेशन
- ‘A’ जानबूझकर बैड फेथ में एक रास्ते में एक दीवार बनाता है जहां वह जानता है कि ‘Z’ को जाने का अधिकार है। परिणामस्वरूप, ‘Z’ को रास्ते से गुजरने से रोक दिया जाता है। यहां ‘A’ ने ‘Z’ के आगे बढ़ने के अधिकार को रोंगफुल रिस्ट्रेंट कर दिया है।
- ‘P’ को रास्ते में आगे बढ़ने का अधिकार है लेकिन आगे बढ़ने के लिए ‘M’ द्वारा धमकी दी जाती है। यदि वह आगे बढ़ता है, तो ‘M’ एक जंगली कुत्ते को ‘P’ के रास्ते में लायेगा। ऐसा करके ‘M’ ने ‘P’ के रास्ते रोंगफुली रिस्ट्रेंट कर दिया है। यदि ‘P’ यह दिखावा करता है कि कुत्ता क्रूर है जबकि वह वास्तव में नहीं है और इस प्रकार ‘M’ के मार्ग में बाधा डालता है, तो यह रोंगफुल रिस्ट्रेंट का गठन करेगा।
निर्णय विधि (केस लॉज)
मामला जहां रोंगफुल रिस्ट्रेंटमेंट है
लल्लू पं. बनाम केदारनाथ शुक्ला और अन्य 4 दिसंबर 1962
मामले के तथ्य
इस मामले में मृतक (डिसीज्ड) महादेव प्रसाद के पुत्र लल्लू प्रसाद ने कोर्ट में अपील दायर की थी।
शिकायतकर्ता (कंप्लेनेंट) महादेव प्रसाद ने आरोप लगाया कि डॉ शुक्ला ने दुकान में प्रवेश किया और किराए का भुगतान न करने के कारण उसे खाली करने के लिए कहा। उसने दुकान खाली करने से इनकार कर दिया और परिणामस्वरूप, शुक्ला दुकान के दरवाजे के ताले की चाबी ले गया। इसके बाद शिकायतकर्ता ने दुकान का दरवाजा बंद कर दिया और शिकायत दर्ज कराने चला गया।
वापस लौटने पर, उन्होंने शुक्ला को दुकान पर एक और ताला लगाते हुए पाया। उन्होंने इस कार्य का विरोध किया लेकिन शुक्ला ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
इसलिए अगले दिन जब शिकायतकर्ता दुकान खोलने आया तो उसने देखा कि शुक्ला अपने दो या तीन साथियों के साथ दरवाजे के सामने खड़ा है और शुक्ला ने उसे दुकान खोलने का प्रयास करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि शुक्ला बकाया मांगने के लिए दुकान में गया था और उसे पता चला कि शिकायतकर्ता किराया देने की स्थिति में नहीं था इसलिए उसने अपनी इच्छा से दुकान की चाबी उसे सौंप दी और शिकायतकर्ता की स्थिति देखकर शुक्ला ने उसे खाली करने को कहा।
अदालत ने फैसला किया कि एक किरायेदार को बकाया राशि का भुगतान न करने के लिए खाली करने के लिए कहना एक वैध कार्य है और इस प्रकार, उसे ट्रेस्पास के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
अदालत को यह भी पता चला कि शुक्ला ने दुकान के दरवाजे पर ताला लगा रखा था।
यह कहा गया कि शुक्ला ने दरवाज़ा बंद करके शिकायतकर्ता को दुकान में प्रवेश करने के लिए रोंगफुली रिस्ट्रेंट किया और उसे इंडियन पीनल कोड की धारा 341 के तहत दोषी पाया। उन पर ₹20 का जुर्माना लगाया गया।
मामला जहां रोंगफुल रिस्ट्रेंटमेंट नहीं है
शंकरलाल शर्मा (भात्रा) बनाम असम स्टेट और अन्य 4 मार्च 1975
तथ्य
इस मामले में भाइयों के बीच, एक आम एजमाली मार्ग है जहाँ उनके वाहन आते-जाते हैं। अंदर की तरफ उनका गैरेज है जहां उनके वाहन खड़े होते हैं। शिकायतकर्ता ने अपनी फिएट कार गैरेज के अंदर खड़ी की थी।
शिकायतकर्ता के बड़े भाई शंकरलाल शर्मा, जो याचिकाकर्ता (पेटीशनर) हैं, ने रास्ता रोककर अपनी कार सामने खड़ी कर दी। जिससे शिकायतकर्ता को वहां से अपनी कार निकालने में बाधा उत्पन्न हुई।
मुद्दा (इश्यू)
क्या इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा इंडियन पीनल कोड की धारा 339 के तहत कोई अपराध किया गया है।
जजमेंट
अदालत ने यह माना कि एजमाली मार्ग उनके द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक सामान्य मार्ग था, न कि निजी मार्ग।
इसलिए, याचिकाकर्ता ने गुड फेथ में किए जाने पर विश्वास करते हुए अपने वाहन को पार्क करने का कानूनी अधिकार प्राप्त किया। इस प्रकार, उन्होंने किसी के निजी रास्ते में बाधा नहीं डाली है।
यह धारा 339 के एक्सेप्शंस के तहत समझाया गया है। इस प्रकार, उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
रोंगफुल कन्फाइनमेंट
कन्फाइनमेंट का अर्थ है किसी को किसी स्थान पर या सीमाओं (बाउंड्रीज) के भीतर रोकना या प्रतिबंधित करने की क्रिया। इंडियन पीनल कोड की धारा 340 में रोंगफुल कन्फाइनमेंट को परिभाषित किया गया है।
इसमें कहा गया है कि, कोई किसी व्यक्ति को एक निश्चित (सर्टेन) प्रतिबंधित सीमा से आगे बढ़ने से रोकने के लिए किसी व्यक्ति को रोंगफुली रिस्ट्रेंट करता है, उसे रोंगफुल कन्फाइनमेंट का अपराध कहा जाता है।
सरल भाषा में, इसका अर्थ है किसी व्यक्ति को उस सीमित सीमा के भीतर चलने के अधिकार को प्रतिबंधित करना जिसमें उसे चलने का अधिकार है।
रोंगफुल कन्फाइनमेंट पूर्ण रिस्ट्रेंटमेंट है, क्योंकि एक व्यक्ति एक परिभाषित स्थान या क्षेत्र के भीतर प्रतिबंधित है।
सज़ा
इंडियन पीनल कोड की धारा 342 के तहत रोंगफुली कन्फाइनमेंट की सजा को परिभाषित किया गया है क्योंकि जो कोई भी किसी भी व्यक्ति को कन्फाइन करेगा, वो सजा जो एक वर्ष तक हो सकती है, या जुर्माना जो ₹1,000 तक हो सकता है, या दोनों के लिए उत्तरदायी होगा।
इंग्रेडिएंट्स
- बिना किसी कानूनी औचित्य (जस्टिफिकेशन) के किसी व्यक्ति को रोंगफुली और पूरी तरह से आगे बढ़ने के अधिकार को रिस्ट्रेंट करना।
- इस तरह के रिस्ट्रेंटमेंट से व्यक्ति को निर्धारित सीमा से आगे बढ़ने से रोकना चाहिए।
चित्रण
- ‘A’ ने ‘T’ को चारदीवारी में जाने के लिए धोखा दिया। जैसे ही ‘T’ ने प्रवेश किया, वैसे ही ‘A’ बैड फेथ में उसे कंफाइन करने के लिए दरवाजा बंद कर देता है। यहां ‘A’ ने एक परिभाषित दीवार के भीतर ‘T’ को रोंगफुली कन्फाइन करने का अपराध किया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह उस जगह से आगे कहीं और नहीं जा सकता।
- ‘D’ बैड फेथ में और ‘Z’ को सीमित करने के इरादे से, कुछ लोगों को फायरआर्म्स के साथ उस इमारत से खड़ा करता है जहां ‘Z’ रहता है। वह उसे धमकी देता है कि अगर उसने इमारत से बाहर निकलने की कोशिश की तो लोग उसे गोली मार देंगे। यहां ‘D’ ने रोंगफुली कन्फाइन करने का अपराध किया है
- ‘P’ दिल्ली से अमृतसर जा रहा था। ‘R’ ने उससे एक शहर, सोनीपत की सवारी करने के लिए कहा, जो उन दो शहरों के बीच में आता है जहाँ ‘P’ यात्रा कर रहा था। ‘P’ उसे सोनीपत में छोड़ने के लिए लिफ्ट देने के लिए तैयार हो गया लेकिन जब वे वहां पहुंचे तो ‘P’ अमृतसर पहुंचने तक नहीं रुका। यहां, ‘P’ ने ‘R’ को रोंगफुली कन्फाइन कर दिया है क्योंकि वह वहां नहीं रुका जहां वह सहमत था और उसे सीमा के भीतर भी रखा जहां से वह बाहर नहीं जा सकता। उसने रोंगफुल कन्फाइन का अपराध किया है।
महत्वपूर्ण बिंदु (इंपोर्टेंट पॉइंट्स)
- आगे बढ़ने या चलने की इच्छा के बिना, उस मामले में कोई रोंगफुल कन्फाइनमेंट नहीं हो सकता।
- यदि कन्फाइनमेंट के लिए व्यक्ति की सहमति है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि यह रोंगफुल कन्फाइनमेंट है।
- रोंगफुल कन्फाइनमेंट में वास्तविक (एक्चुअल) शारीरिक बाधा का प्रमाण (प्रूफ) आवश्यक नहीं है
- इस धारा में, कन्फाइनमेंट की अवधि महत्वहीन (इम्मेटेरियल) है। कन्फाइनमेंट की अवधि दंड देते समय केवल भौतिक (मेटेरियल) हो जाती है क्योंकि उस समय यह भिन्न हो सकती है।
निर्णय विधि (केस लॉ)
सम्राट बनाम बंदू इब्राहिम और अन्य 11 सितंबर 1917
मामले के तथ्य
इस मामले में आरोपी नंबर 1 वेश्यालय (ब्रोथल) में दलाल है और आरोपी नंबर 2 बंबई में वेश्यालय का रखवाला (ब्रोथल कीपर) है।
शिकायतकर्ता विठीबाई को इस वेश्यालय में लाया गया था और आरोपी ने उसे कन्फाइन कर लिया था। उसे बाहर जाने या कहीं भी जाने की अनुमति नहीं थी। वह हमेशा वहीं रहने वाली थी। उसे और अन्य महिलाओं को बाहर निकलने से रोकने के लिए दरवाजे पर पहरेदार भी थे।
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि उसने अपनी इच्छा से खुद को वेश्यावृत्ति (प्रॉस्टिट्यूशन) में प्रस्तुत किया था और अपनी इच्छा से उसके साथ बॉम्बे आई थी।
मामले के तथ्यों और सबूतों पर विचार करने के बाद, अदालत ने यह माना कि दोनों आरोपी इंडियन पीनल कोड की धारा 343 के तहत रोंगफुली कन्फाइनमेंट के लिए दोषी थे और 1 साल के कठोर कन्फाइनमेंट की सजा सुनाई गई थी।
रोंगफुल कन्फाइनमेंट के बढ़े हुए रूप (एग्रावेटेड फॉर्म्स ऑफ रोंगफुल कन्फाइनमेंट)
इसके तहत कन्फाइनमेंट की अवधि के अनुसार अपराध की सजा को बढ़ाया जाता है।
- धारा 343 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को तीन दिन या उससे अधिक की अवधि के लिए रोंगफुली कन्फाइन करता है, तो उसके कारावास को 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
- धारा 344 में कहा गया है कि 10 साल या उससे अधिक के लिए रोंगफुली कन्फाइनमेंट किया जाता है तो उसे कारावास जो 3 साल तक बड़ाई जा सकती है से दंडनीय होगा, या जुर्माना देने के लिए उत्तरदायी होगा।
- धारा 345 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को जानबूझकर रोंगफुली कन्फाइनमेंट में रखता है और उसे मुक्त करने के लिए रिट जारी की गई है, तो उन्हें कारावास से दंडित किया जाएगा जो कि अन्य सजा जिसमे वह रोंगफुल कन्फाइनमेंट के लिए उत्तरदायी होगा के अलावा, 2 साल तक हो सकती है।
- धारा 346 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को रोंगफुल कन्फाइन करता है और उसे दूसरों से गुप्त (सीक्रेट) रखता है या उसे यह जानने से रोकता है कि वह व्यक्ति कन्फाइन है, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जो कि किसी भी अन्य सजा जिसमें वह रोंगफुल कन्फाइनमें के लिए उत्तरदायी के अलावा 2 साल तक हो सकता है।
- धारा 347 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को उस व्यक्ति से या उस व्यक्ति में रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति से, किसी संपत्ति, या मूल्यवान सुरक्षा (वैल्युएबल सिक्यॉरिटी) या उस व्यक्ति या उस व्यक्ति में रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति को कुछ अवैध कार्य करने के लिए मजबूर करने के इरादे से रोंगफुली कन्फाइन करता है, तो उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी देना होगा।
- धारा 348 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को किसी भी स्वीकारोक्ति (कन्फेशन) या किसी भी जानकारी को किसी अपराध या कदाचार (कंडक्ट) का पता लगाने के लिए या कन्फाइन्ड व्यक्ति को किसी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा को रिस्टोर करने या कोई जानकारी देने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को रोंगफुल कन्फाइन करता है, जो किसी भी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा की रिस्टोरेशन का कारण बन सकता है, तो उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जो 3 साल तक का हो सकता है और जुर्माना भी देना होगा।
रोंगफुल रिस्ट्रेंट और रोंगफुल कन्फाइनमेंट के बीच अंतर
आधार (बेसिस) | रोंगफुल रिस्ट्रेंट | रोंगफुल कन्फाइनमेंट |
अर्थ | यह किसी व्यक्ति को उस दिशा में आगे बढ़ने से रोकता है, जिसमें व्यक्ति को आगे बढ़ने का अधिकार है। | किसी व्यक्ति को सीमा के भीतर रखकर किसी भी दिशा में आगे बढ़ने से रोकना है। |
दंड | धारा 341 में परिभाषित है।
एक माह की कैद या 500 रुपये जुर्माना या दोनों के साथ। |
धारा 342 में परिभाषित है।
एक साल की कैद या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों के साथ। |
अपराध की गंभीरता (सीरियसनेस) | यह बहुत गंभीर अपराध नहीं है क्योंकि रेस्ट्रेनमेंट सभी दिशाओं में नहीं है। | रोंगफुल रिस्ट्रेंट की तुलना में यह एक बहुत ही गंभीर अपराध है। क्योंकि रिस्ट्रेंटमेंट सभी दिशाओं में है। |
जीनस या स्पेसीज | रोंगफुल रिस्ट्रेंट एक जीनस है जिसका अर्थ है कि यह एक सामान्य शब्द है, एक व्यापक (वाइडर) शब्द है। यह सामान्य है क्योंकि इसमें कई प्रकार के रिस्ट्रेंट शामिल हैं। | रोंगफुल कन्फाइनमेंट एक स्पेसीज है क्योंकि यह एक प्रकार का रोंगफुल रिस्ट्रेंट है। |
पार्शियल या कंप्लीट अपराध | यह पार्शियल रिस्ट्रेंट है। व्यक्ति किसी अन्य दिशा में जा सकता है। | यह कंप्लीट या टोटल रिस्ट्रेंट है।
व्यक्ति चाहे तो किसी अन्य दिशा में आगे नहीं बढ़ सकता। |
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
दो अपराधों का व्यापक विश्लेषण (कॉम्प्रिहेंसिव एनालिसिस) यह है कि रोंगफुल रिस्ट्रेंट व्यक्ति को एक दिशा में आगे बढ़ने से रोक रहा है। इसका मतलब सभी दिशाओं से नहीं है, इसका मतलब केवल एक विशेष दिशा है। उदाहरण के लिए, आप एक सड़क पर चल रहे हैं और कोई आता है और उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए आपका रास्ता रोकता है जिस दिशा में आप जाना चाहते हैं, आपके पास रिस्ट्रेंट्ड सड़क के अलावा किसी अन्य दिशा में जाने का विकल्प है।
रोंगफुल कन्फाइनमेंट एक व्यक्ति के उन सभी रास्तों को अवरुद्ध (ब्लॉक) करना है जहां उसे जाने का अधिकार है। इन अपराधों का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता और भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने के उनके अधिकार की रक्षा करना है। लेकिन अगर कोई गुड फेथ में और वैध औचित्य के साथ रास्ते में बाधा डालता है, तो वह इस अपराध के तहत नहीं आएगा।