इस लेख में, गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, एर्नाकुलम, केरल के छात्र Sreeraj K.V., अधिवक्ता (एडवोकेट) अधिनियम, 1961 के तहत व्यवसायिक कदाचार (प्रोफेशनल मिसकंडक्ट) के बारे में लिखते हैं। इस लेख में कदाचार की परिभाषा, अधिवक्ता अधिनियम के प्रावधानों को शामिल किया गया है और साथ ही कदाचार के मुद्दे से निपटने वाले विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों पर भी चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।
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परिचय
एक वकील का पेशा हर तरह से एक दैवीय या पवित्र पेशा माना जाता है। प्रत्येक पेशे में, कुछ पेशेवर नैतिकताएं (प्रोफेशनल एथिक्स) होती हैं, जिनका पालन हर उस व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए जो इस तरह के पेशे से जुड़े होते हैं। लेकिन तथ्य यह है कि पेशेवर कदाचार न केवल अन्य व्यवसायों में बल्कि वकालत में भी एक सामान्य पहलू होता है। सरल शब्दों में, इसका अर्थ यह है कि व्यक्तियों द्वारा किए गए कुछ कार्य जो पेशे के लिए अनुपयुक्त (अनफिट) प्रतीत होते हैं और साथ ही जो इस क्षेत्र में कुछ नैतिकता के विरुद्ध हैं।
ब्लैकस डिक्शनरी में इस शब्द को स्पष्ट रूप से इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “कार्रवाई के कुछ स्थापित और निश्चित नियम का उल्लंघन, एक निषिद्ध कार्य, कर्तव्य का अपमान, गैरकानूनी व्यवहार, अनुचित या गलत व्यवहार”। इसके पर्यायवाची हैं- कुकर्म (मिसडिमिनर), अनौचित्य (इमप्रोपराइटी), कुप्रबंधन (मिसमैनेजमेंट), अपराध, लेकिन लापरवाही नहीं।
इसकी परिभाषा के अनुसार, यह स्पष्ट है कि पेशेवर कदाचार का कार्य विशुद्ध रूप से गैरकानूनी लाभ प्राप्त करने के इरादे से किया जाता है। अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और भारतीय बार काउंसिल, भारत में वकीलों और अधिवक्ताओं से संबंधित कार्य, आचार संहिता और ऐसे अन्य मामलों के संबंध में नियम और दिशानिर्देश प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ऐसे पेशे की विशेषताएं हैं:
- विशेष ज्ञान या तकनीकों के एक निकाय का अस्तित्व में होना।
- प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) और अनुभव प्राप्त करने की औपचारिक (फॉर्मल) विधि।
- अपने लक्ष्य के रूप में व्यावसायिकता के साथ एक प्रतिनिधि संगठन की स्थापना।
- आचरण के मार्गदर्शन के लिए नैतिक संहिताओं का निर्माण।
- सेवाओं के आधार पर शुल्क लेना लेकिन मौद्रिक पुरस्कार की इच्छा पर सेवा की प्राथमिकता के संबंध में।
कदाचार का अर्थ है कोई भी ऐसा कार्य जो प्रकृति में गैरकानूनी होता है, भले ही वे स्वाभाविक रूप से गलत न हों। अधिवक्ता अधिनियम, 1961 से पहले, हमारे पास लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 था। इस अधिनियम में ‘कदाचार’ शब्द की कोई परिभाषा नहीं दी गई है, लेकिन अधिनियम में ‘अव्यवसायिक आचरण’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। पेशेवर कदाचार के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:
- कर्तव्य की उपेक्षा
- पेशेवर लापरवाही
- गबन (मिसअप्रोपरिएशन)
- पक्ष बदलना
- न्यायालय की अवमानना (कंटेंप्ट) और मजिस्ट्रेट के समक्ष अनुचित व्यवहार
- झूठी जानकारी देना
- अनुचित सलाह देना
- अदालत में ग्राहकों को गुमराह करना
- सच न बोलना
- अदालत के प्रति निष्ठा (एलेजियंस) को अस्वीकार करना
- आवेदन को बिना यह बताए स्थानांतरित (मूव) करना कि एक समान आवेदन को किसी अन्य प्राधिकारी (अथॉरिटी) द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था
- अदालत के अधिकारियों को रिश्वत देने का सुझाव
- अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) पक्ष के गवाह को सच न कहने के लिए मजबूर करना।
अधिवक्ता अधिनियम, 1961
अधिवक्ता अधिनियम की धारा 35 के प्रावधान भारत में वकीलों और अधिवक्ताओं के पेशेवर कदाचार से संबंधित हैं, जो इस प्रकार हैं:
यदि एक व्यक्ति पेशेवर कदाचार का दोषी पाया जाता है; तो वह मामले को अनुशासनात्मक समिति (डिसिप्लेनरी कमिटी) को संदर्भित करेगा, सुनवाई की तारीख तय करेगा और राज्य के अधिवक्ता और महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) को कारण बताओ नोटिस जारी करेगा। राज्य बार काउंसिल की अनुशासनात्मक समिति दोनों पक्षों को सुनने के बाद, यह कर सकती है:
- शिकायत को खारिज कर सकती है, या जहां राज्य बार काउंसिल के कहने पर कार्यवाही शुरू की गई थी, निर्देश दे सकता है कि कार्यवाही दायर की जाए;
- अधिवक्ता की निंदा (रिप्रीमैंड) कर सकता है।
- अधिवक्ता को व्यवसाय से ऐसी अवधि के लिए निलंबित (सस्पेंड) कर सकता है जो वह उचित समझे;
- अधिवक्ताओं की राज्य की विशिष्ट सूची से, उस अधिवक्ता का नाम हटा सकता है।
दुराचार अनंत विविधता (वैरायटी) का है; इस अभिव्यक्ति को व्यापक अर्थ में समझा जाना चाहिए, जैसे कि यह प्राकृतिक कानून के तहत अर्थ का विस्तार करता है, और उनके प्राकृतिक अर्थ को सीमित करने का कोई औचित्य (जस्टिफिकेशन) नहीं है। अधिवक्ता अधिनियम की धारा 49 बार काउंसिल ऑफ इंडिया को पेशेवर कदाचार के नियमों और मानकों (स्टैंडर्ड) को बनाने का अधिकार देती है। अधिनियम के तहत, किसी भी व्यक्ति को विज्ञापन देने या याचना (सोलीसिट) करने का अधिकार नहीं होता है; यह अधिवक्ता की आचार संहिता के खिलाफ है। वह परिपत्र (सर्कुलर), व्यक्तिगत संचार (पर्सनल कम्युनिकेशन) या साक्षात्कार (इंटरव्यू) के माध्यम से किसी भी विज्ञापन के लिए भी हकदार नहीं है, वह प्रशिक्षण के लिए शुल्क की मांग करने और अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) उद्देश्यों के लिए नाम/ सेवा का उपयोग करने का हकदार भी नहीं है।
पेशेवर कदाचार के रूप में न्यायालय की अवमानना (कंटेंप्ट)
अदालत की अवमानना को कुछ ऐसे व्यवहार के रूप में अदालत या उसके अधिकारियों के प्रति अवज्ञाकारी या अपमानजनक होने के अपराध के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो अदालत के अधिकार, न्याय और गरिमा (डिग्निटी) की अवहेलना करते हैं। अदालत की अवमानना से जुड़े विभिन्न मामलों में, अदालत ने माना है कि अगर कोई वकील या कानूनी व्यवसायी अदालत की अवमानना का दोषी पाया जाता है, तो उसे छह साल की कैद हो सकती है और उसे वकील के रूप में अभ्यास करने से निलंबित भी किया जा सकता है (री विनय चंद्र मिश्रा)। अदालत ने यह भी माना कि अवमानना क्षेत्राधिकार (ज्यूरिस्डिक्शन) का प्रयोग करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा कानूनी पेशे का अभ्यास करने के लिए वकील का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।
अधिवक्ताओं के पेशेवर कदाचार से जुड़े मामलों के संबंध में कई अन्य ऐतिहासिक निर्णय हैं। वीसी रंगदुरई बनाम डी. गोपालन के मामले में अदालत ने पेशेवर कदाचार के मामले को इस तरह से देखा कि इस मामले में आरोपी के भविष्य को देखते हुए मानवीय तरीके से फैसला लिया गया था। अदालत ने कहा कि “यहां तक कि न्याय में एक सुधारात्मक बढ़त है, एक सामाजिक रूप से उपयोगी कार्य है, खासकर अगर अपराधी क्षमा करने के लिए बहुत बूढ़ा है और वर्जित (डिस्बार) करने के लिए बहुत कम उम्र का है। इसलिए, कानूनी पेशे की सामाजिक सेटिंग में एक उपचारात्मक, क्रूर सजा नहीं दी जानी चाहिए”। अदालत ने तब निर्णय इस तरह दिया कि वह मामले से संबंधित प्रत्येक पहलू के साथ-साथ संबंधित पक्षों को भी देखता था। इसने एक निवारक (डिटरेन्ट) न्याय तंत्र को अपनाया ताकि आरोपी व्यक्ति को कुछ दंड दिया जा सके, लेकिन ऐसे अन्य लोगों के प्रति चेतावनी भी प्रदान की जो समान प्रकृति के कार्यों को करने का इरादा रखते हैं। यह निर्णय पेशेवर कदाचार से संबंधित मामलों में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ क्योंकि इसने एक प्रभावी निर्णय दिया और आरोपी व्यक्ति के भविष्य को खतरे में भी नहीं डाला। विभिन्न अन्य मामलों में जैसे जेएस जाधव बनाम मुस्तफा हाजी मोहम्मद यूसुफ के मामले में, अदालत ने इस तरह से फैसला सुनाया कि उसने गलत काम करने वालों के मन में यह धारणा पैदा कर दी कि अपराधियों को तदनुसार दंडित किया जाएगा।
निष्कर्ष
विभिन्न मामलों और कुछ तथ्यों और परिस्थितियों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि किसी भी अन्य पेशे के विपरीत, वकालत को एक महान पेशा माना जाता है और पेशेवर नैतिकता को बनाए रखा जाना चाहिए। अदालतों ने पेशेवर कदाचार के विभिन्न मामलों को निपटाया है जिसमें वकील द्वारा अपने मुवक्किल (क्लाइंट) के प्रति हत्या के प्रयास की भी रिपोर्ट की गई है। इसलिए, संबंधित अधिकारियों से हस्तक्षेप होना चाहिए ताकि आपराधिक इतिहास वाले व्यक्तियों को इस पेशे से दूर रखा जा सके। भले ही इस पेशे में नामांकन करने वाले व्यक्ति की सामाजिक पृष्ठभूमि से संबंधित दिशानिर्देश हैं, अर्थातनामांकन (इनरोल) करने वाला व्यक्ति किसी भी आपराधिक मामले से मुक्त होना चाहिए, यह साबित नहीं करता है कि व्यक्ति का अपना आपराधिक स्वभाव है या नहीं। इसलिए बार काउंसिल कुछ नियमों और विनियमों (रेगुलेशन) को लागू कर सकती है ताकि आपराधिक व्यवहार दिखाने वाले व्यक्ति के आचरण को सख्त दिशा-निर्देशों से नियंत्रित किया जा सके जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वह व्यक्ति अब अपने पेशे के खिलाफ गैरकानूनी काम नहीं करता है। नामांकन के तुरंत बाद बार काउंसिल द्वारा विभिन्न कैरियर मार्गदर्शन और विकास कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए ताकि नए कानूनी पेशेवरों को इस पेशे के बारे में पता चल सके और आने वाले दशकों में अधिवक्ताओं का एक बेहतर समूह सामने आएगा।
फुटनोट:
- In Re: Vinay Chandra Mishra AIR 1995 SC 2348. http://www.legalserviceindia.com/articles/sc_t.htm
- V.C. Rangadurai v. D. Gopalan and ors 1979 AIR 281
- J.S Jadhav v. Musthafa Haji Muhammed Yusuf and ors 1993 AIR 1535
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