भारतीय संविदा  अधिनियम, 1872 के तहत न्यूडम पैक्टम

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Indian Contract Act
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इस लेख को Sneha Mahawar के द्वारा लिखा गया है, जो रमैया इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज की छात्रा हैं। इस लेख में उन्होंने भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के तहत न्यूडम पैक्टम की अवधारणा (कांसेप्ट) पर चर्चा की है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

परिचय

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872, भारत में संविदा को नियंत्रित करने वाले कानून की स्थापना करता है और यह भारतीय संविदा कानून को नियंत्रित करने वाले कानून का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस अधिनियम को अंग्रेजी आम कानून के सिद्धांतों पर स्थापित किया गया है। यह सभी भारतीय राज्यों के लिए ज़रूरी है। यह उन शर्तों को स्थापित करता है जिनके तहत संविदा करने वाले पार्टियों द्वारा की गई प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) कानूनी रूप से लागू करने योग्य होती है। भारतीय संविदा अधिनियम एक संविदा को धारा 2 (h) के तहत कानून द्वारा लागू करने योग्य समझौते के रूप में परिभाषित करता है। इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा भारतीय संविदा अधिनियम को 25 अप्रैल 1872 को अधिनियमित किया गया था, जो 1 सितंबर 1872 को लागू हुआ था।

भारत में, एक समझौता तब एक वैध संविदा बनता है जब इसे कानून की अदालत में लागू किया जा सकता है। एक समझौते की प्रवर्तनीयता (एंफोर्सेबिलिटी) एक वैध संविदा की छह अनिवार्यताओं पर निर्भर करती है, अर्थात् जो, प्रस्ताव और स्वीकृति, पार्टियों का कानूनी दायित्व बनाने का इरादा, पार्टियों द्वारा दी गई स्वतंत्र सहमति, पार्टियों की क्षमता, प्रतिफल (कंसीडरेशन) और वैध उद्देश्य है। इस प्रकार, यदि एक वैध संविदा की इन सभी अनिवार्यताओं में से कोई भी एक संतुष्ट नहीं होती है, तो संविदा अमान्य हो जाता है और कानून की अदालत में अप्रवर्तनीय हो जाता है।

अर्थ

न्यूडम पैक्टम

‘न्यूडम पैक्टम’ शब्द लैटिन शब्दावली से लिया गया है जिसका अर्थ, एक अप्रतिभूत समझौता (नेकेड एग्रीमेंट) है।

यह कहावत बिना किसी प्रतिफल के किए गए समझौते को दर्शाती है। कानून के अनुसार, एक संविदा केवल तब ही लागू करने योग्य होता है जब उसमें प्रतिफल की मूल आवश्यकता शामिल होती है। संविदा या समझौता कर रही पार्टियों द्वारा की गई बात चीत के अनुसार प्रतिफल को पैसे, मूल्यवान चीजों या किसी अन्य लाभ का भुगतान करने के वादे के रूप में परिभाषित किया गया है। जहां ऐसा कोई प्रतिफल नहीं है, वो एक न्यूडम पैक्टम है, और इसलिए ऐसा संविदा न तो लागू करने योग्य है और न ही वैध है।

एक न्यूडम पैक्टम मौखिक या लिखित रूप में बनाया जा सकता है। चूंकि ये समझौते लागू करने योग्य नहीं हैं, इसलिए इन्हें अदालत में आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। यह इंगित करता है कि ये समझौते उन समझौतों की श्रेणियों के तहत नहीं आते हैं जिनके द्वारा कानूनी कार्रवाई हो सकती है। ऐसा समझौता मौजूदा कर्तव्य में संशोधन या छूट का गठन (कांस्टीट्यूट) कर सकता है।

दूसरी ओर, संविदा पर मुहर लग जाने के बाद इसे वैध माना जाता है। इसके अलावा, कुछ संविदा, जैसे विनिमय (एक्सचेंज) के बिल, मुहर लगे हुए दस्तावेज, और वचन पत्र, अपने रूपों के परिणामस्वरूप उनमें पहले से प्रतिफल मौजूद होते हैं। भले ही उनके अंदर कोई औपचारिक (फॉर्मल) प्रतिफल न हो, फिर भी उन्हें वास्तविक माना जाता है।

अंग्रेजी कानून के तहत कोई न्यूडम पैक्टम लागू नहीं किया जा सकता है। हर दिन, बड़ी संख्या में समझौते बनाए जाते हैं, लेकिन प्रत्येक समझौते को कानूनी रूप से लागू करने योग्य संविदा के रूप में मानना ​​बेतुका होगा।

एंसन का कहना है कि जब कोई इस धारणा के इतिहास को समझता है तो यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन दिनों में भी अटकलें थीं कि एक समझौता जो बिना किसी प्रतिफल के है, वह कानूनी रूप से बाध्यकारी है और क्या पार्टियां इस तरह के समझौतों को करने के लिए बाध्य हो सकती हैं।

1756 में लॉर्ड मैन्सफील्ड ने कहा था कि “ऐसे सभी समझौते जो बिना किसी प्रतिफल के होते हैं, वे केवल एक नैतिक (मॉरल) दायित्व ही हैं।” इसका मतलब यह है कि अगर कोई समझौता बिना किसी प्रतिफल के है तो इस तरह के दायित्व का प्रदर्शन केवल नैतिक कर्तव्य है और इसे पूरा करना, इसे निभाने वाली पार्टी की जिम्मेदारी है। लेकिन अगर पार्टी ऐसे दायित्वों का पालन नहीं करती है तो वे ऐसे दायित्वों को निभाने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं हो सकती हैं।

अंग्रेजी कानून के तहत संविदा को दो तरह से बनाया जा सकता है, अर्थात् प्रतिफल के साथ बनाया गया संविदा और मुहर द्वारा बनाया गया संविदा। प्रतिफल के साथ बनाया गया संविदा एक ऐसा समझौता है जो एक वैध संविदा के सभी छह अनिवार्यताओं को पूरा करता है। जबकि दूसरी ओर, मुहर द्वारा बनाया गया संविदा, एक मुहर के तहत बनाया गया एक समझौता है, लेकिन यह बिना किसी प्रतिफल के बनाया जाता है।

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 25

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 25 में कहा गया है कि कोई भी समझौता जो बिना किसी प्रतिफल के बनाया जाता है उसे शून्य (वॉइड) माना जाता है। इसमें यह भी कहा गया है कि बिना किसी प्रतिफल के किसी समझौते को वैध समझौता नहीं कहा जा सकता।

अपवाद

स्वाभाविक प्रेम और स्नेह

यदि एक दूसरे के निकट संबंध में रह रहे व्यक्तियों के बीच स्वाभाविक प्रेम और स्नेह के कारण प्रतिफल के बिना समझौता किया जाता है। इसके अतिरिक्त, यदि दस्तावेजों के पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) के लिए यह लिखित रूप में कहा गया है और कानून के तहत दर्ज किया गया है, तो इस तरह के समझौते को वैध माना जा सकता है।

राजलुखी डाबी बनाम भूतनाथ मुखर्जी, 1900 के मामले में, पति पर मुकदमा किया गया था क्योंकि वह अपनी पत्नी को एक अलग अपार्टमेंट और सहायता प्रदान करने में विफल रहने के कारण अपनी एक प्रतिबद्धता को पूरा करने में असमर्थ रहा था, लेकिन संविदा को अमान्य पाया गया था। अदालत ने कहा कि “पति और पत्नी के बीच समझौते के मापदंडों (पैरामीटर्स) से पता चलता है कि उनके बीच कोई प्यार और स्नेह नहीं था और इसलिए, यह बिना किसी प्रतिफल के था”। नतीजतन, यह शुरू से ही शून्य हो गया था।

कोई पिछली सेवा

एक ऐसे व्यक्ति को पुरस्कृत करने का वादा जो पहले से ही स्वतंत्र रूप से वचनकर्ता (प्रॉमिसर) के लिए अपनी इच्छा से कोई कार्य कर चुका है, या ऐसा कुछ जिसे करने के लिए वचनकर्ता को कानूनी रूप से मजबूर किया गया था, तो वह बिना किसी प्रतिफल के एक वैध समझौता है।

सिंध श्री गणपत सिंहजी बनाम अब्राहम, 1896 के मामले में, A ने B के अनुरोध पर उसके नाबालिग होने के दौरान, उस को कुछ सेवाएं प्रदान कीं थी; जो B के वयस्क हो जाने के बाद भी जारी रही। अवयस्क होने के बाद, B ने अतीत में प्रदान की गई सेवाओं के लिए A को वार्षिकी का भुगतान करने का वादा किया। यह माना गया कि यह एक अच्छा संविदा  था और A पैसे की वसूली कर सकता है।

समय वर्जित ऋण (टाइम बार्ड डेट)

तीन शर्तों को पूरा करने पर बिना प्रतिफल के एक समय-वर्जित ऋण लागू किया जा सकता है:

  • एक लिखित वादा होना चाहिए जिस पर व्यक्ति या उसके चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए।
  • ऋण को पूर्ण या आंशिक (पार्शियल) रूप से चुकाने का वादा होना चाहिए।
  • लेनदार ने परिसीमा (लिमिटेशन) अवधि के लिए ऋण को लागू किया होगा।

भले ही ऋण परिसीमा अवधि में लागू नहीं किया गया हो, फिर भी यह वसूली योग्य है यदि:

  • यह एक वसूली योग्य ऋण और कानूनी वादा है।
  • यह एक लिखित वादा है जिस पर व्यक्ति या उसके चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं।
  • इसमें एक स्पष्ट वादा है।

एजेंसी बनाने के लिए किसी प्रतिफल  की आवश्यकता नहीं है

भारतीय संविदा  अधिनियम, 1872 की धारा 185 में कहा गया है कि एजेंसी बनाने के लिए किसी प्रतिफल  की आवश्यकता नहीं होती है।

उपहार

एक उपहार का अर्थ है एक व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को, बिना किसी प्रतिफल के कोई भी चल या अचल संपत्ति हस्तांतरित (ट्रांसफर) करना। इस तरह के समझौते वैध और लागू करने योग्य होते हैं।

उपनिधान (बेलमेंट)

उपनिधान को भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 148 में एक निश्चित उद्देश्य के लिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक वस्तुओं के आदान प्रदान के रूप में परिभाषित किया गया है। यह वितरण (डिलीवरी) एक संविदा पर आधारित होता है जिसमें कहा गया है कि एक बार उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद, उत्पादों को वितरित करने वाले व्यक्ति के निर्देशों के अनुसार उन्हें वापस कर दिया जाएगा या उनका निपटान किया जाएगा। एक उपनिधान संविदा को किसी भी प्रतिफल की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार, एक उपनिधान, प्रतिफल के बिना एक वैध समझौता होता है।

दान 

एक संविदा वैध होता है यदि कोई व्यक्ति दान देने के लिए दूसरे व्यक्ति की प्रतिबद्धता के आधार पर जिम्मेदारी लेता है। इसलिए “यदि कोई प्रतिफल नहीं है, तो कोई संविदा नहीं है” नियम इस परिस्थिति में लागू नहीं होता है।

इलस्ट्रेशन

  • अमन एक घर का मालिक है। किसी भी शुल्क का भुगतान करने की किसी भी प्रतिबद्धता के बिना अमन, बॉब नामक एक दलाल को नियुक्त करता है ताकि वह भुगतान करने के लिए बिना किसी प्रतिफल के घर बेच सके। वहीं, अमन ने अपने आप घर बेच दिया। इसलिए ऐसी स्थिति में, बॉब मुआवजा प्राप्त करने का हकदार नहीं है क्योंकि उसके साथ किया गया समझौता बिना किसी प्रतिफल के किया गया था।
  • X अपनी पत्नी Y को एक संपत्ति हस्तांतरित करने का वादा करता है यदि वह उसे तलाक देती है। उनके तलाक के बाद X ने संपत्ति को स्थानांतरित करने से इनकार कर दिया। Y संपत्ति के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती क्योंकि समझौता न्यूडम पैक्टम था।
  • राम ने सीता को आश्वासन दिया कि वह उसे 50,000 रुपये और एक अंगूठी देगा जिसके बदले में सीता कोई प्रतिफल नहीं देगी। यह एक मात्र वादा है, इस प्रकार इसे लागू नहीं किया जा सकता है और यह न्यूडम पैक्टम के बराबर है।
  • राहुल जो रोहित के पिता हैं, रोहित को 15,000 रुपये देने का वादा करते हैं और उन्होंने इसे लिख लिया है और इसे पंजीकृत कर लिया है। यह संविदा स्वाभाविक प्रेम और स्नेह पर आधारित है, और इस प्रकार, यह संविदा अधिनियम की धारा 25 के तहत वैध है।
  • सौम्या पर बिमल का 41,000 रुपये बकाया है, लेकिन परिसीमा अधिनियम उसे इकट्ठा करने से रोकता है। लिखित रूप में ऋण होने के कारण सौम्या ने बिमल को 41,000 रुपये देने का वादा किया। क्योंकि यह संविदा  क़ानून की धारा 25 में सूचीबद्ध अपवादों में से एक के भीतर फिट बैठता है, इसलिए यह केवल एक वादा (न्यूडम पैक्टम) होने के बजाय, एक संविदा  के रूप में वैध और लागू करने योग्य है।

मामले

रैन बनाम ह्यूजेस, 1778

इस मामले में, मैरी ह्यूजेस की मृत्यु हो गई थी, और रैन उसकी वसीयत का निष्पादक (एग्जीक्यूटर) था। इसाबेला ह्यूजेस, जॉन ह्यूजेस की संपत्ति के प्रशासक थी जब उनकी बिना किसी वसीयतनामा के मृत्यु हो गई थी। मैरी और जॉन के जीवित रहने के दौरान विभिन्न असहमति थी, जिन्हें मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) के माध्यम से हल किया गया था, जॉन ने मैरी को £ 983 का भुगतान करने के लिए सहमति व्यक्त की थी। जॉन की मृत्यु के समय, इस कर्ज  का भुगतान नहीं हुआ था। मैरी की मृत्यु के बाद, उसके निष्पादकों ने जॉन की विरासत पर दायित्व के भुगतान की मांग की, जिसका अनुमान उन्होंने कम से कम £ 3000 लगाया। इसाबेला ने पैसे देने का वादा किया, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी क्योंकि संपत्ति में अपर्याप्त पैसा था।

निष्पादकों ने तब इसाबेला पर मुकदमा दायर किया, और यह आरोप लगाया कि उसका वादा उसके अपने अधिकार में किया गया था, न कि प्रशासक के रूप में, और इस प्रकार पर्याप्त नकदी वाली संपत्ति पर आकस्मिक (कंटिंजेंट) नहीं था। वादी के हक में मुकदमे का फैसला सुनाया गया और अपील पर किंग की पीठ ने फैसले को बरकरार रखा। इस फैसले को, प्रतिवादी के पक्ष में राजकोष (एक्सचेकर) के न्यायालय में अपील करने पर उलट दिया गया था। इस उलटफेर के जवाब में त्रुटि का एक रिट दायर किया गया था। प्रतिवादी ने दावा किया कि प्रतिबद्धता प्रशासक के रूप में उसकी क्षमता में की गई थी, लेकिन भले ही यह व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह होने का वादा था, यह लिखित संविदा  की कमी या प्रतिफल की कमी के कारण अप्रवर्तनीय था।

इस मामले की सुनवाई जस्टिस स्काईमर ई.बी. की एक ही न्यायाधीश की पीठ ने की थी। अदालत ने कहा कि प्रतिवादियों द्वारा दिए गए दलीलों से यह माना गया कि बिना प्रतिफल के समझौतों की कोई कानूनी वैधता नहीं है, और एक वादा या समझौता जो मुहर के तहत नहीं है उस पर कार्रवाई नही की जा सकती, जब तक कि उस पर प्रतिफल न हो, भले ही वह लिखित रूप में हो।

यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम एफ. ज्ञान चंद कस्तूरी लाल, 1953

इस मामले में, वादी ने नमक शुल्क की वापसी की मांग करते हुए तीन मुकदमे दायर किए थे, जो उन्होंने पहले भुगतान किया था, यह दावा करते हुए कि वे नमक स्टॉकिस्ट थे, जिन्होंने शुल्क का भुगतान किया था और नोटिस के तहत धन की वापसी के हकदार थे। केंद्र सरकार ने इन मुकदमों को चुनौती देते हुए दावा किया कि वे शुल्क वापस करने के लिए बाध्य नहीं थे और भुगतान करने के लिए कोई दायित्व, यदि कोई हो, तो वह पश्चिम पंजाब सरकार की जिम्मेदारी थी।

हालांकि लिखित दावे उतने सटीक रूप से तैयार नहीं किए गए थे जितने कि यूनियन के कानूनी सलाहकार से उम्मीद की जाती है, प्रतिपूर्ति (रीइंबर्स) के लिए केंद्र सरकार के कर्तव्य के मामले को खारिज नहीं किया जा सकता है। 

इस मामले में, वादी ने यह साबित नहीं किया कि उनके पास अपने दावे का समर्थन करने के लिए कोई संविदा या कानून नहीं है, और इसलिए इसे जारी नहीं रखा जा सकता है।

इस मामले में, पंजाब-हरियाणा के उच्च न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि “इस प्रकार संविदा  करने के लिए किसी प्रकार या किसी अन्य के प्रतिफल की आवश्यकता होती है।” एक ‘न्यूडम  पक्टम’, या एक तरफ बिना पारिश्रमिक (रिम्यूनरेशन) के कुछ भी करने या भुगतान करने के लिए समझौता, कानून की नजर में कार्रवाई को सही नहीं ठहरा सकता है, और एक आदमी को इसे निष्पादित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

हमारी प्रणाली में, किसी वादे के अप्रतिभूत होने को प्रतिफल की कमी के रूप में परिभाषित किया जाता है, न कि लेखन या पंजीकरण जैसे औपचारिक मानदंडों (क्राइटेरिया) की अनुपस्थिति से। जिसके परिणामस्वरूप, हमारी राय में, एक अप्रतिभूत वादे का डाइजेस्ट के न्यूडम पैक्टम की अवधारणा से कोई संबंध नहीं है।

न्यू इराक अहद कंपनी (एन.आई.ए.सी.) मामला, 2014

इस मामले में, एन.आई.ए.सी. ने 25वीं इन्फैंट्री डिवीजन के लिए एक बाधा बनाने के लिए सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (मेमोरेंडम) पर हस्ताक्षर किए, लेकिन संविदा ने यह निर्धारित किया कि:

  • यह समझौता तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि धनराशि अधिकृत (ऑथराइज) नहीं हो जाती है और ठेकेदार को परियोजना प्राधिकारी (प्रोजेक्ट ऑफिसर) द्वारा काम शुरू करने के लिए नहीं कहा जाता है।
  • इस संविदा के पास इस समय धन उपलब्ध नहीं है।
  • इस संविदा  के तहत सरकार का कर्तव्य आवंटित (एलोकेट) धन की उपलब्धता पर सशर्त है जिससे संविदा का भुगतान करना है।
  • किसी भी भुगतान के लिए सरकार का कोई कानूनी कर्तव्य नहीं है जब तक कि इस संविदा के लिए संविदा प्राधिकारी को धन उपलब्ध नहीं कराया जाता है और ठेकेदार को ऐसी उपलब्धता की अधिसूचना (नोटिफिकेशन) प्राप्त होती है, जिसकी पुष्टि प्राधिकारी को लिखित रूप में करनी होगी।

एन.आई.ए.सी. ने बाड़ सामग्री पर 175,440 डॉलर खर्च किए, लेकिन वित्तपोषण (फाइनेंसिंग) कभी उपलब्ध नहीं कराया गया, और संविदा  प्राधिकारी ने कभी भी यह अधिसूचना नहीं दी कि धन उपलब्ध था। एन.आई.ए.सी. ने बाड़ के निर्माण की प्रत्याशा (एंटीसिपेशन) में खर्च किए गए 175,440 डॉलर के लिए प्रतिपूर्ति का अनुरोध किया, लेकिन बोर्ड ने पाया कि यह संविदा धन की उपलब्धता पर सशर्त था, जो कभी भी भौतिक (मैटेरियलाईज) नहीं हुआ था, और इसलिए “समझौता कभी बाध्यकारी नहीं हुआ था।” एन.आई.ए.सी. कुछ भी एकत्र करने में असमर्थ था क्योंकि लागू करने के लिए कोई संविदा नहीं था और कोई प्रतिफल भी नहीं था – यह एक “न्यूडम पैक्टम” स्थिति थी और इस प्रकार, एन.आई.ए.सी. किसी भी राशि की वसूली नहीं कर सकता था।

सिंपैथी कटेंगेजा चिसाले बनाम विली एमफोका फिरी, 2011

इस मामले में, वादी कानूनी रूप से प्रतिवादी को तीन ट्रक देने का हकदार था क्योंकि प्रतिवादी, वादी के प्रत्ययी दायित्वों (फिडुशियरी ऑब्लिगेशंस) के तहत था। वादी ने प्रतिवादी को मलावी में ट्रक पहुंचाने का निर्देश दिया था। हालांकि, प्रतिवादी ने वादी द्वारा दिए गए इस तरह के किसी भी निर्देश के बिना ट्रकों को श्री लिडामलेंडो को सौंप दिया था। जिसके नतीजतन, यह वितरण एक न्यूडम पैक्टम था। चूंकि कोई समझौता नहीं था, इसलिए समझौता लागू करने योग्य नहीं था।

निष्कर्ष

इसलिए, एक न्यूडम  पैक्टम का अर्थ है एक अप्रतिभूत समझौता और कोई भी समझौता कानून की अदालत में किसी प्रतिफल के बिना लागू करने योग्य नहीं है जब तक कि यह प्रेम और स्नेह, पहले दी गई सेवाओं, समय-वर्जित ऋण, एजेंसी या उपहार से नहीं बनता है। भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 25 में न्यूडम  पैक्टम समझौतों के अपवाद निर्धारित किए गए हैं।

वाक्यांश ‘न्यूडम  पैक्टम’ बिना किसी प्रतिफल के किए गए समझौते को संदर्भित करता है। एक संविदा केवल कानूनी रूप से बाध्यकारी होता है यदि इसमें प्रतिफल का मूल तत्व शामिल हो। संविदा या समझौते में शामिल पार्टियों द्वारा पैसे, मूल्यवान वस्तुओं, या किसी अन्य प्रोत्साहन का भुगतान करने की प्रतिबद्धता को प्रतिफल के रूप में संदर्भित किया जाता है। जब कोई प्रतिफल नहीं होता है तो एक न्यूडम पैक्टम मौजूद होता है, और इसलिए ऐसा संविदा न तो लागू करने योग्य होता है और न ही वैध होता है।

संदर्भ

 

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