इस ब्लॉग पोस्ट में, एमिटी यूनिवर्सिटी, लखनऊ कैंपस की छात्रा Sakshi Jain, मई 2016 में पेश किए गए ‘ट्रैफिकिंग ऑफ़ पर्सन्स (प्रोहिबिशन, प्रोटेक्शन एंड रिहैबिलिटेशन) बिल, 2016’ का विश्लेषण (एनालिसिस) किया है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
Table of Contents
परिचय (इंट्रोडक्शन)
ह्यूमन ट्रैफिकिंग, सेक्शुअल स्लेवरी, बंधुआ (बॉन्डेड) और जबरन श्रम (फोर्स्ड लेबर) या किसी कमर्शियल) सेक्शुअल एक्सप्लॉयटेशन और प्रॉस्टिट्यूशन के उद्देश्य से व्यक्तिओं का व्यापार (बेचना और खरीदना) है। ह्यूमन ट्रैफिकिंग के तहत, पुरुषों, महिलाओं या बच्चों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि संबंधित व्यक्ति उन्हें किसी दूसरे देश या स्थान पर अच्छी नौकरी प्रदान करेगा। वह ट्रेफिकर्स पर आँख बंद करके विश्वास कर लेते हैं और फिर ऐसे लोग, उन्हे बेच देते हैं। लापता और एब्डक्टेड बच्चों को सम्मानित करने के लिए 25 मई को अंतर्राष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस (इंटरनेशनल मिसिंग चिल्ड्रंस डे) के रूप में मनाया जाता है। एक सर्वेक्षण (सर्वे) में पाया गया है कि हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता होता है और यह माना गया है कि पिछले 14 वर्षों में इसमें लगभग 84% की वृद्धि हुई है। ऐसे लापता बच्चों में से 45% का कोई अता-पता नहीं हैं।
नए बिल के बारे में (अबाउट द न्यू बिल)
श्रीमती मेनका गांधी, महिला और बाल विकास मंत्री ने मई, 2016 में ट्रैफिकिंग ऑफ़ पर्सन्स (प्रोहिबिशन, प्रोटेक्शन एंड रिहैबिलिटेशन) बिल, 2016 का एक मसौदा (ड्राफ्ट) जारी किया था। इस बिल का उद्देश्य किसी व्यक्ति की ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक मजबूत सामाजिक (सोशल), कानूनी, आर्थिक और राजनीतिक वातावरण बनाना है। इसमें ट्रैफिकिंग से जुड़े मामले भी शामिल हैं। विशेषज्ञों (एक्सपर्ट्स) के सुझावों और आलोचना (क्रिटिसिज्म) के लिए इस बिल का मसौदा तैयार किया गया था और इसे जारी किया गया था। श्रीमती मेनका गांधी यह स्पष्ट करती हैं कि यह बिल ट्रैफिकिंग से पीड़ित लोगों के लिए बनाया गया है, और यह दो शब्दों ‘ट्रैफ़िकर’ और ‘ट्रेफिक्ड’ के बीच अंतर बताता है। वर्तमान कानूनों में कमियों को कवर करने के लिए इस बिल का मसौदा तैयार किया गया था। इस बिल में ट्रैफिकिंग से पीड़ित लोगों के रिहैबिलिटेशन केंद्रों (सेंटर्स) के लिए फंड का प्रावधान (प्रोविजन) भी है।
बिल में ट्रैफिकिंग के विभिन्न पहलुओं को सामने लाया गया है और इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 370 से धारा 373 के तहत इसकी सजा प्रदान की गई है। इस बिल का उद्देश्य उन अपराधों से निपटना है जो पहले किसी एक्ट या कानून के तहत नहीं निपटाए गए हैं। यह ट्रैफिकिंग के पीड़ित और उसके गवाह की पहचान का खुलासा करना, ट्रैफिकिंग के उद्देश्य के लिए एक मादक दवा (नार्कोटिक ड्रग) या मनोदैहिक पदार्थ (साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस) या शराब का उपयोग या एक रासायनिक (केमिकल) पदार्थ या हार्मोन का उपयोग करने के लिए दंडात्मक प्रावधान का सुझाव देता है। यह पीड़ितों को अल्पकालिक (शॉर्ट टर्म) और दीर्घकालिक (लॉन्ग टर्म) रिहैबिलिटेशन सहायता के लिए सुरक्षा गृह और विशेष गृह भी प्रदान करता है। शीघ्र सुनवाई और देरी से बचने के लिए प्रस्तावित (प्रपोज्ड) बिल में प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में विशेष कोर्ट्स स्थापित (एस्टेब्लिश) करने का प्रावधान है। इस प्रस्तावित बिल के तहत ट्रैफिकिंग से पीड़ित लोगों को मुआवजा (कंपनसेशन) प्रदान किया जाता है। संबंधित जिले या राज्य में अवैध व्यापार से पीड़ितों को सुरक्षा गृहों या विशेष गृहों के किसी पुलिस अधिकारी, लोक सेवक (पब्लिक सर्वेंट), या किसी अन्य कर्मचारी को शिकायत की रिपोर्ट करना अनिवार्य कर दिया गया है। एक्ट में पीड़ितों को देखभाल, सुरक्षा और रिहैबिलिटेशन प्रदान करने के लिए एंटी-ट्रैफिकिंग कमिटीज के गठन (कॉन्स्टीट्यूशन) के प्रावधान भी हैं।
यह बिल ट्रैफिकिंग से बचे लोगों को पीड़ित के रूप में मानता है और उन्हें उचित देखभाल प्रदान करता है। उन्हें उचित आश्रय (शेल्टर) और रिहैबिलिटेशन दिया जाता है। ट्रैफिकिंग के तहत दर्ज मामलों को निपटाने के लिए विशेष कोर्ट्स स्थापित किए जाते हैं। ड्रग्स एंड क्राइम पर यूनाइटेड नेशंस ऑफिस का कहना है कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए, ईस्ट एशिया के बाद, दक्षिण एशिया दूसरा बढ़ता देश है और तीसरे स्थान पर भारत आता है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2014 में 5,466 ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामले दर्ज किए गए थे। गरीब, महिलाओं और बच्चों सहित ग्रामीण लोगों को ट्रेफिकर्स द्वारा बड़े शहरों में ले जाया जाता है और घरेलू काम या सेक्स वर्क के लिए बेचा जाता है। वह उन्हें कार्यशालाओं (वर्कशॉप्स) में भी बेचते हैं। ऐसी कार्यशालाओं में उनके द्वारा किए गए सभी कार्य अवैतनिक (अनपेड) होते हैं, और उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता है।
जो कोई भी ट्रैफिकिंग के उद्देश्य से किसी भी मादक दवा या मनोदैहिक पदार्थ, या शराब का उपयोग करता है, उसे एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जो 7 साल से कम नहीं होगा, लेकिन जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और वह, कम से कम 1 लाख रुपये से अधिक के जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा (धारा 16)। यही सजा उस व्यक्ति के लिए निर्धारित है जो जल्दी सेक्शुअल मैच्योरिटी और एक्सप्लॉयटेशन के उद्देश्य से अवैध व्यापार की गई महिलाओं या बच्चों पर रसायनों या हार्मोन का उपयोग करता है। (धारा 17)
भारतीय संविधान के तहत प्रावधान
भारतीय संविधान का आर्टिकल 21, कानून द्वारा स्थापित (एस्टेब्लिश) प्रक्रिया के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है। इसलिए, किसी व्यक्ति की ट्रैफिकिंग को रोकने की आवश्यकता है, और पीड़ितों को देखभाल, सुरक्षा और रिहैबिलिटेशन की आवश्यकता है।
भारत के संविधान का आर्टिकल 23(1), ह्यूमन की ट्रैफिकिंग को प्रतिबंधित (प्रोहिबिट) करता है और किसी व्यक्ति को भीख मांगने या किसी अन्य प्रकार के जबरन श्रम के लिए मजबूर करने के अपराध को दंडनीय बनाता है।
- ह्यूमन ट्रैफिकिंग और जबरन श्रम को प्रतिबंधित करना
ह्यूमन ट्रैफिकिंग और भीख मंगवाना और इसी तरह के अन्य प्रकार के जबरन श्रम प्रतिबंधित हैं, और इस प्रावधान का कोई भी उल्लंघन (कॉन्ट्रेवेंशन), कानून द्वारा दंडनीय अपराध होगा।
इंडियन पीनल कोड, 1860 के तहत प्रावधान
इंडियन पीनल कोड, 1860 के तहत, धारा 370 से 373 ह्यूमन ट्रैफिकिंग से संबंधित है। यह ह्यूमन ट्रैफिकिंग को इस प्रकार परिभाषित करता है:
धारा 370- किसी भी व्यक्ति को स्लेवरी के लिए खरीदना या बेचना
इस धारा के तहत, जो कोई किसी व्यक्ति को दास (स्लेव) के रूप में आयात (इंपोर्ट), निर्यात (एक्सपोर्ट), हटाता, खरीदता या बेचता या उसे कैद (डिटेन) में रखता है, या किसी व्यक्ति की इच्छा के खिलाफ उसे दास के रूप में स्वीकार करता है, प्राप्त करता है या कैद रखता है, उसे किसी भी अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा, जो 7 साल तक हो सकती है और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
धारा 371- दासों में अभ्यासिक व्यवहार (हैबिचुअल डीलिंग इन स्लेव्स)
इस धारा के तहत, जो कोई भी अभ्यासतः (हैबिचुअली), दासों को आयात, निर्यात, हटाता, खरीदता, बेचता, ट्रैफिकिंग या उनका सौदा करता है, उसे आजीवन कारावास, या 10 साल से अधिक की अवधि के लिए किसी भी प्रकार के कारावास के साथ दंडित किया जाएगा, और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
धारा 372 – प्रॉस्टिट्यूशन, आदि के उद्देश्य के लिए नाबालिग को बेचना (सेलिंग माइनर फॉर पर्पसेज ऑफ़ प्रॉस्टिट्यूशन, ईटीसी)
इस धारा के तहत, जो कोई भी 18 वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस इरादे से बेचता है, काम पर रखता है, या अन्यथा उसे व्ययनित (डिस्पोज) करता है, यह जानते हुए की ऐसे व्यक्ति को किसी भी उम्र में प्रॉस्टिट्यूशन या किसी व्यक्ति के साथ अवैध संभोग (इंटरकोर्स) या किसी गैरकानूनी और अनैतिक (इम्मोरल) उद्देश्य के लिए नियोजित (एम्प्लॉय) या उपयोग किया जाएगा, या यह जानते हुए कि इस तरह के व्यक्ति को किसी भी उम्र में नियोजित किया जाएगा या किसी ऐसे उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, तो उसे किसी भी तरह के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और वह जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा।
स्पष्टीकरण (एक्सप्लेनेशन) I
जब 18 वर्ष से कम आयु की महिला को किसी प्रॉस्टिट्यूट को या किसी ऐसे व्यक्ति को बेच दिया जाता है, किराए पर दिया जाता है, या अन्यथा व्ययनित किया जाता है, जो वेश्यालय (ब्रॉथल) चलाता है या उसका प्रबंधन (मैनेज) करता है, तो जब तक कि इसके विपरीत न हो, यह माना जाएगा की ऐसी महिला को इस प्रकार व्ययनित करने वाला व्यक्ति ने इस इरादे से उसको व्ययनित किया है कि उसका उपयोग प्रॉस्टिट्यूशन के उद्देश्य के लिए किया जाएगा।
स्पष्टीकरण II
इस धारा के उद्देश्यों के लिए “अवैध संभोग” का अर्थ उन व्यक्तियों के बीच संभोग से है जो विवाह या किसी संघ (यूनियन) या बंधन से जुड़े नहीं होते हैं, हालांकि वह विवाह की श्रेणी में नहीं आता है, लेकिन व्यक्तिगत कानून या समुदाय (कम्युनिटी) के रिवाज द्वारा मान्यता प्राप्त है जिससे वह संबंधित हैं या, जहां वह विभिन्न समुदायों से संबंधित हैं, ऐसे दोनों समुदायों के, जो उनके बीच एक अर्ध-वैवाहिक (क्वासी-मैरिटल) संबंध बनाते हैं।
धारा 373- प्रॉस्टिट्यूशन, आदि के उद्देश्य के लिए नाबालिग को ख़रीदना
जो कोई भी 18 वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस इरादे से खरीदता है, या काम पर रखता है या अन्यथा उसपर कब्जा (पोजेशन) कर लेता है, यह जानते हुए कि ऐसे व्यक्ति को किसी भी उम्र में प्रॉस्टिट्यूशन या किसी व्यक्ति के साथ अवैध संभोग या किसी भी गैर-कानूनी और अनैतिक उद्देश्य के लिए नियोजित या उपयोग किया जाएगा और यह जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी भी उम्र में किसी भी उद्देश्य के लिए नियोजित या उपयोग किया जाएगा, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
स्पष्टीकरण I
कोई भी प्रॉस्टिट्यूट या वेश्यालय का प्रबंधन या प्रबंधन करने वाला कोई भी व्यक्ति, जो 18 वर्ष से कम आयु की महिला को खरीदता है, किराए पर लेता है या अन्यथा उस पर कब्जा कर लेता है, जब तक कि इसके विपरीत साबित नहीं हो जाता तक तक यह माना जाएगा कि उसने ऐसी महिला पर इस इरादे से कब्ज़ा किया है, कि उसे प्रॉस्टिट्यूशन के उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
स्पष्टीकरण II
“अवैध संभोग” का वही अर्थ है जो धारा 372 में है।
इस प्रस्तावित बिल के तहत अपराध एक नॉन बेलेबल और कॉग्निजेबल अपराध है। यह कोड ऑफ क्रिमीनल प्रोसीजर, 1973 के तहत प्रदान किया गया है, लेकिन बिल की धारा 19 निर्दिष्ट (सेप्सिफाई) करती है कि एक व्यक्ति को बिल के तहत बेल मिल सकती है जब विशेष पब्लिक प्रोसिक्यूटर को आवेदन (एप्लीकेशन) का विरोध करने का अवसर दिया जाता है और कोर्ट के पास यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हों की आरोपी दोषी नहीं है और उसे बेल पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
बिल के अध्याय (चैप्टर) X में संपत्ति की जब्ती (कंफिस्केशन), फॉरफिचर और अटैचमेंट की व्याख्या की गई है। कोई भी व्यक्ति पर बिल की धारा 16 और 17 या आई.पी.सी. की धारा 370-373 के तहत मादक या रासायनिक पदार्थ का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है और आरोपी, उसके स्वामित्व (ओनरशिप) वाली या कब्जे वाली संपत्ति को किसी भी तरीके से छुपाता, स्थानांतरित (ट्रांसफर) या निपटाता है और किसी भी कोर्ट की किसी कार्यवाही को खराब करता है, तो विशेष कोर्ट संपत्ति को अटैच कर सकता है।
बिल की धारा 16 और 17 या आई.पी.सी. की धारा 370-373 के तहत, यदि आरोपी ने अपराध करने के लिए किसी संपत्ति का इस्तेमाल किया है, तो उसे सरकार द्वारा फॉरफीट कर लिया जाएगा।
अनुमान (प्रिजंप्शन)
विशेष कोर्ट यह मान लेगा कि आरोपी ने बिल के तहत अपराध किया है, जब तक कि इसके विपरीत साबित न हो जाए, यदि उस पर बिल की धारा 16 और 17 के तहत या आई.पी.सी. की धारा 370-373 के तहत कोई अपराध करने या उकसाने के लिए मुकदमा चलाया जाता है।
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर के प्रावधान बिल के तहत विशेष कोर्ट के समक्ष कार्यवाही पर लागू होते हैं। कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर, 1973 की धारा 360 और ऑफेंडर्स एक्ट, 1958 के प्रावधान, इस बिल के तहत अपराध करने के दोषी पाए गए व्यक्तियों पर लागू नहीं होते हैं यदि वह व्यक्ति 18 वर्ष से अधिक आयु का है।
आलोचना (क्रिटिसिज्म)
श्रीमती मेनका गांधी ने सुझाव और आलोचना के लिए बिल जारी किया था। कई विशेषज्ञ, मसौदा बिल की आलोचना करते हैं। उनका दावा है कि बिल बिलकुल भी प्रभावी नहीं है और पिछले कानूनों और प्रावधानों की तुलना में इसमें कुछ भी नया नहीं लाया है। इस बिल में इम्मोरल ट्रैफिक (प्रीवेंशन) एक्ट, 1956 जैसी ही विशेषताएं हैं। समानताओं में इस बिल के तहत सभी प्लेसमेंट एजेंसीज के रजिस्ट्रेशन के लिए अनिवार्य प्रावधान शामिल हैं, लेकिन सभी एजेंसीज को इम्मोरल ट्रैफिक (प्रीवेंशन) एक्ट, 1956 के तहत रजिस्टर किया जाएगा। धारा 29 में ट्रैफिकिंग के पीड़ित लोगों के लिए एंटी-ट्रैफिकिंग फंड शामिल है, लेकिन यह इसके उपयोग की व्याख्या करने में विफल रहता है। यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि फंड कैसे आवंटित (एलोकेट) किया जाएगा, इसका उपयोग कैसे किया जाएगा, इसका प्रबंधन कैसे किया जाएगा, आदि। इस बिल की आलोचना, एक अवास्तविक (अनरियालिस्ट) बिल के रूप में की गई है।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
ह्यूमन ट्रैफिकिंग एक गंभीर अपराध है। यह भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति के सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है। प्रोटोकॉल टू प्रीवेंट, सप्रेस एंड पनिश ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स का आर्टिकल 3, पैराग्राफ (a), व्यक्तियों में ट्रैफिकिंग को भर्ती (रिक्रूटमेंट), परिवहन (ट्रांसपोर्टेशन), स्थानांतरण, आश्रय या प्राप्ति के रूप में परिभाषित करता है, जिसे एक्सप्लॉयटेशन करने के उद्देश्य से धमकी देने, बल, जबरदस्ती करने के अन्य माध्यमों जैसे, एबडक्शन, धोखाधड़ी, धोखे, शक्ति के दुरुपयोग (अब्यूज) या भेद्यता (वल्नरेबीलिटी) की स्थिति या किसी व्यक्ति पर नियंत्रण (कंट्रोल) के लिए किसी अन्य व्यक्ति की सहमति पाने के लिए उसे भुगतान या लाभ देने के माध्यम से किया जाता है। एक्सप्लॉयटेशन में कम से कम, प्रॉस्टिट्यूशन के रूप में एक्सप्लॉयटेशन या सेक्शुअल एक्सप्लॉयटेशन के अन्य रूप, जबरन श्रम या सेवाएं, स्लेवरी या अंगों को हटाने जैसी प्रथाएं शामिल हैं। यह बिल ह्यूमन ट्रैफिकिंग की व्यापक (ब्रॉड) अवधारणा (कांसेप्ट) के बारे में बात करता है लेकिन मौजूदा मुद्दों से निपटने के मामले में इसका अभाव (लेक) है। कई बच्चों को बंधुआ मजदूर बना दिया जाता है और लड़कियों को प्रॉस्टिट्यूशन के धंधे में डाल दिया जाता है। इसलिए सरकार को इस समस्या को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।