अंडाणु और शुक्राणु के दान संबंधी कानून 

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Assisted Reproductive Technique Bill
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यह लेख एमिटी लॉ स्कूल, नोएडा की Paridhi Goyal ने लिखा है। यह एक संपूर्ण लेख है जो हमारे देश में अंडे और शुक्राणु (एग एंड स्पर्म) के दान को नियंत्रित करने वाले कानूनों की व्याख्या के साथ-साथ इस पर चर्चा करता है कि क्या वर्तमान दिशानिर्देश दान की प्रक्रिया को सुचारु रूप से कवर करते है या नहीं। इस लेख का अनुवाद Harshita Ranjan द्वारा किया गया है।

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परिचय 

यदि आप दैनिक समाचार का अनुसरण (फॉलो) करते हैं, आपने सुर्ख़ियों (हेडलाइन) में आए इसे ज़रूर पढ़ा होगा “माता-पिता को बताए बिना पैसे के लिए अपने अंडे दान करती युवा लड़कियां”(यंग गल्स डोनेटिंग देयर एग्स फॉर मनी विदाऊट इन्फोर्मिंग देयर पैरेंट्स)। या फिर अगर आप फिल्मों के दीवाने हैं, तब आप आयुष्मान खुराना कि ‘विक्की डोनर’ को नहीं भूल सकते जिसने भारत में शुक्राणु दान को लोकप्रिय बना दिया। वास्तव में एक महिला के लिए अपने अंडे दान करना और एक पुरुष के लिए शुक्राणु दान करना कानूनन सही है। इससे वास्तव में अच्छे पैसे भी आ जाते हैंl उदाहरण के लिए, एक महिला अपने अंडों को एक बार दान कर के  25000 से 75,000 रुपये तक कमा सकती है।

हालाँकि, कुछ ज़रूरी बातें हैं जिन्हें फर्टिलिटी क्लीनिक या स्पर्म बैंक में दान करने के लिए पूरी करनी आवश्यक है। दुर्भाग्य से वर्तमान में अंडों और शुक्राणुओं के दान को निर्देशित करने के लिए उपयुक्त कानून या विधेयक (लेजिस्लेशन) नहीं है, लेकिन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आई सी एम आर) ) ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे देश में ऐ आर टी (असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजीज) को मान्यता प्राप्त हो, कुछ दिशा-निर्देश (गाइडलाइंस) जारी किए हैं ताकि दाताओं (डोनर) को स्वास्थ्य संबंधी कोई जोखिम न हो ।

विश्व स्वस्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) के अनुसार, 1,000 मिलियन भारतीयों की आबादी में से लगभग 13 से 19 मिलियन जोड़े वर्तमान में माता-पिता बनने की कोशिश कर रहे हैं क्यूंकि दोनों या उनमें से कोई एक बांझ (इनफर्टाइल) है। इन जोड़ों में से अधिकांश उन्नत (एडवांस्ड) एआरटी प्रक्रियाओं जैसे कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई वि एफ ) या इन्टरसिटोप्लाज़्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आई ई एस आई) की मदद लेते हैं जिसमे महिलाओं द्वारा अंडों का दान और पुरुषों द्वारा संक्राणुओं का दान पुरे प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इस कारण से, एक व्यक्ति द्वारा किया गया दान न केवल इस दुनिया में एक नया जीवन ला सकता है बल्कि बाँझ जोड़ों के  मानसिक आघात (मेन्टल ट्रौमा) को भी समाप्त  कर देगा। हालाँकि, प्रत्येक दाता के लिए कुछ कानूनी नियम हैं जिनका पालन कुछ स्वास्थ्य खतरों को रोकने के लिए करना चाहिए, जैसे कि कम उम्र में अंडे दान करने वाली लड़कियां। इस विषय पर कानूनी जागरूकता महत्वपूर्ण है ताकि कोई भी दाता का लाभ न उठा सके और दान प्रक्रिया सुचारू (स्मूदली) रूप से हो जाए।

अंडा दान क्या है?

अंडा दान एक ऐसी विधि है जहां एक महिला किसी अन्य महिला को बच्चे को जन्म देने में मदद करने के लिए अपने अंडे दान करती है। यह सहायक प्रजनन (असिस्टेड रिप्रोडक्शन) का एक हिस्सा है और उन जोड़ों के लिए एक बढ़िया परिवार निर्माण विकल्प है जिनमें महिला या तो प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर या पारंपरिक ओवेरियन स्टिम्युलेशन की शिकार होती है और पुरुष युग्मक उत्पादन (गैमेट प्रोडक्शन) में गंभीर गड़बड़ी से पीड़ित होता है। अंडों का दान उन जोड़ों के लिए भी किया जा सकता है जो आनुवंशिक (हेरिडिटरी) बीमारियों के वाहक (करिअर) हैं और वे अपनी बीमारी के कारण अपने बच्चे को कोई महत्वपूर्ण रोग नहीं देना चाहते हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार अंडा दान एक गुमनाम प्रक्रिया (अनोनिमस प्रोसेस) होनी चाहिए और अंडों का उपयोग करने से पहले दाता की ठीक से जांच की जानी चाहिए।

अंडा दाता कौन है?

अंडा दाता एक महिला है जो सहमति से अपनी आनुवंशिक सामग्री अर्थात अंडाणु का योगदान करती है जो दूसरी महिला की प्रजनन प्रक्रिया में मदद करते हैं। अंडा दाताओं को एक स्वस्थ महिला होना चाहिए जिसकी कम से कम खुद की एक संतान हो। वे एक पूर्ण चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन (साइकोलॉजिकल ईवोल्यूशन) से गुजरते हैं जिसमें एचआईवी और हेपेटाइटिस जैसे संक्रामक (इंफेक्शियस) रोगों की भी जाँच होती है। दाता को चुनने से पहले आईसीएमआर द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता है और तदनुसार सभी परीक्षण किए जाते हैं।  स्क्रीनिंग प्रक्रिया और कानूनी कागजी कार्रवाई पूरी तरह से समाप्त होने के बाद ही अंडा दान की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

दान किये हुए अंडे प्राप्त करने के तरीके

  1. अनाम (एनोनिमस) दाता- ऐसी महिला जो अंडे के प्राप्तकर्ताओं को पता नहीं है या अपनी पहचान छुपाने की इच्छुक है। ऐसे दाताओं को अंडा दान कार्यक्रम, एजेंसियों या फर्टिलिटी क्लिनिक के रिकॉर्ड्स के माध्यम से पाया जा सकता है। भारत में,  कानूनी ढांचे का प्रस्ताव है कि दाता अनाम हो और कोई ऐसा न हो जो प्राप्तकर्ता को ज्ञात हो।
  2. ज्ञात (नोन) दाता- ऐसी महिला जो जोड़े या प्राप्तकर्ता को ज्ञात हो। ऐसी दाता आम तौर पर एक करीबी रिश्तेदार या दोस्त हो सकता है। कुछ मामलों में युगल (कपल) या प्राप्तकर्ता सीधे दाताओं के लिए सीधे समाचार पत्र या इंटरनेट पर विज्ञापन देते हैं। ऐसी परिस्थितियों में दाता और प्राप्तकर्ता एक दूसरे को पहले से जानते हैं और बिना किसी मध्यस्थ कार्यक्रम (इंटरमीडियरी प्रोग्राम) या एजेंसी के मिलते हैं। हालांकि, दानदाताओं की स्क्रीनिंग के लिए किसी मध्यस्थ कार्यक्रम या एजेंसी के बिना या पहले कानूनी सलाह लिए बिना सीधे दाताओं की भर्ती करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
  3. आईवीएफ कार्यक्रम- महिलाएं जो आईवीएफ से गुजर रही हैं वे अपनी अधिक हो गए अंडों को बांझ रोगियों को देने  की सहमति दे सकती है। दान का यह तरीका सीमित है क्योंकि इसे जबरदस्ती के रूप में देखा जा सकता है यदि दाताओं को उनके आईवीएफ चक्र पर वित्तीय छूट (फाइनेंशियल डिस्काउंट) की पेशकश (ऑफर) की जाती है।

अंडा दाता होने के लिए आवश्यकताएं

अंडे दान करने की इच्छा एक ऊसाइट दाता द्वारा उठाया गया पहला आवश्यक कदम है। आगे कुछ आवश्यकताएं और परीक्षण हैं जिन्हें दाता को योग्य अंडा दाता बनने के लिए पूरा करना होता है। वे इस प्रकार है-

  • व्यक्ति को एचआईवी और हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण, उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), मधुमेह (डाइबिटीज़), यौन संचारित रोग (सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिज़ीज़) के सामान आनुवंशिक रोग विकारों (कॉमन जेनेटिक डिसऑर्डर)  जैसे थलसिमिआ से मुक्त होना चाहिए।
  • दाता को गोनोरिया, क्लैमाइडिया और सिफलिस जैसे अन्य संक्रमणों के लिए परीक्षण किया जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए कि वह पहले सिस्टिक फाइब्रोसिस जीन नहीं पाले हुए है।
  • दाताओं के इतिहास और जातीय पृष्ठभूमि के आधार पर एक और आनुवंशिकपरीक्षण किया जाना चाहिए। कुछ कार्यक्रम गुणसूत्र विश्लेषण (क्रोमोज़ोम एनालिसिस) करते हैं और फ्रैज़ाइल X सिंड्रोम के लिए परीक्षण करते हैं, जिनकी हमेशा आवश्यकता नहीं होती है। साइकोमेट्रिक परीक्षण अक्सर मानसिक स्वास्थ्य के हिस्से के रूप में किया जाता है।
  • दाता की आरएच स्थिति और रक्त समूह निर्धारित और दर्ज की जानी चाहिए। 
  • दाताओं से संबंधित जानकारी जैसे ऊंचाई, वजन, आयु, शैक्षिक योग्यता, पेशा। उनकी त्वचा और आंखों का रंग, पारिवारिक पृष्ठभूमि और किसी भी पारिवारिक विकार के इतिहास को उचित रूप से दर्ज किया जाना चाहिए।
  • दाता की आयु 21 वर्ष से कम या 45 से अधिक नहीं होनी चाहिए। ऐसी महिला दाता को प्राथमिकता दी जाती है जिसकी कम से कम एक संतान हो।

जबकि ये सारी आवस्यकताएँ एक अंडा दाता को पूरी करनी ज़रूरी है, लेकिन भारत में सही कानून की कमी की वजह से कई प्रजनन क्लिनिक्स इन्हें पूरा नहीं करते हैं।ज्यादातर क्लिनिक्स द्वारा उम्र की ज़रुरत को दरकिनार (नेग्लेक्टेड) किया जाता है जब 18 वर्ष की नौजवान लड़कियां पैसे के लिए अंडा दान करने क्लिनिक आती हैं। भारत ने 2010 में एक मौत को देखा जब 17 वर्ष की सुषमा पांडेय ने मुंबई के नमी प्रजनन क्लिनिक में अंडा दान के 2 दिन बाद प्राण त्याग दिए।  यह घटना अभी भी एक रहस्य है। इसीलिए, यह ज़रूरी है कि सुरक्षित दान के लिए दिशानिर्देशों का पालन किया जाये।

अंडा दाता किसे माना जाना चाहिए 

बांझपन किसी भी व्यक्ति के लिए किसी अन्य महिला से उसके अंडे दान करने के लिए कहने का मूल कारण है। कई अन्य कारण भी हो सकते हैं। ये हैं-

  • गोनाडल डिसजेनेसिस जो महिला गोनाड (अंडाशय या अंडे की थैली) के दोषपूर्ण विकासात्मक मुद्दे हैं जो आमतौर पर जन्मजात (कॉनजेनाइटल) दोष के कारण होता है।
  • समय से पहले डिम्बग्रंथि विफलता (प्रीमैच्योर ओवेरियन फैल्योर) जो 40 वर्ष की आयु से पहले डिम्बग्रंथि के सामान्य कामकाज का नुकसान है।
  • अंडाशय में सर्जिकल हस्तक्षेप या रासायनिक बधिया (केमिकल कास्ट्रेशन) के कारण, या किसी तरह के विकिरण संसर्ग (रेडिएशन एक्सपोज़र) के कारण आइट्रोजेनिक डिंबग्रंथि विफलता ।
  • अंडाशय सिंड्रोम  के विकास में प्रतिरोध (रेज़िस्टेंस) या अंडाशय प्रेरण (ओव्यूलेशन इंडक्शन) में महिलाओं की ख़राब प्रतिक्रिया।
  • महिला जो रिसेसिव ऑटोसोमल डिसऑर्डर (विकारों ) की वाहक हैं।
  • महिलाएं जो रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज़) तक पहुंचती हैं उन्हें आईवीएफ पर विचार करना चाहिए और अंडा दान मांगना चाहिए।

फायदे 

अंडा दान के कुछ फायदे जिन पर विचार किया जा सकता है, वे इस प्रकार हैं-

  • महिला एक जोड़े को पितृत्व का उपहार देने में सक्षम होगी जो एक परिवार शुरू करना चाहता था और चिकित्सा या व्यक्तिगत कारणों से अपने दम पर ऐसा नहीं कर पा रहा था।
  • यह महिला अंडा दाता को मुफ्त चिकित्सा परीक्षण प्राप्त करने की अनुमति देता है क्योंकि, दान करने से पहले, दाताओं को किसी तरह की आनुवंशिकया संक्रामक रोग पता लगाने के लिए परीक्षणों की एक श्रृंखला (सीरीज़) से गुजरना पड़ता है।
  • अंडा दान सिर्फ एक तरह का दयालु कार्य नहीं है बल्कि आर्थिक लाभ भी देता है।
  • यह महिला को उसकी प्रजनन क्षमता के बारे में सूचित करता है। इसके अलावा, क्लिनिक महिलाओं में अंडे के जमने (फ्रीज़) के लिए प्रोत्साहित भी करता है, जो भविष्य में मददगार हो सकता है।
  • यह महिला को बच्चे के जीवन का हिस्सा बनने की अनुमति दे सकता है जिसका जन्म उसके अंडे दान करने के निर्णय से संभव हुआ था।

नुकसान 

अंडा दान के कुछ नुकसान हैं जिन पर कोई भी निर्णय लेने से पहले विचार करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं-

  1. अंडा दान की पूरी प्रक्रिया में समय और धैर्य लगता है जो तनाव और कभी-कभी महिला दाता के चिंता का कारण बन सकता है।
  2. यह ओव्यूलेशन चक्र में अपरिवर्तनीय शारीरिक परिवर्तन का कारण बन सकता है। जैसे कुछ महिलाएं अंडा दान के कारण प्रारंभिक रजोनिवृत्ति (अर्ली मेनोपॉज़) की शुरुआत का अनुभव करती हैं।
  3. यह आमतौर पर एक अनाम प्रक्रिया है और दाता को यह बता दिया जाता है कि उसका कोई विवरण (डिटेल्स) बच्चे के साथ साझा (शेयर) नहीं किया जाएगा जिसे बनाने में उसने मदद की और न ही दाता का ऐसे बच्चे से कोई संपर्क हो सकता है। कभी-कभी गुमनामी से निपटना मुश्किल हो सकता है और महिला दाता को बच्चे की भलाई के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है।
  4. अंडे को पुनः प्राप्त करने में बहुत समय और प्रयास लगता है जिसमें मामूली सर्जरी की आवश्यकता होती है। दाता को उस दिन जटिलताओं (कॉम्प्लीकेशंस) का सामना करना पड़ सकता है। पूरी प्रक्रिया को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।

आई सी एम आर के अन्य दिशानिर्देश 

अंडे के दान के संबंध में आईसीएमआर के कुछ दिशानिर्देश हैं जिसका पालन अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ किया जाना चाहिए। और वे इस प्रकार हैं-

  • ऐसे सभी क्लीनिक जो शरीर के बाहर भ्रूण (इम्ब्रायो) के उपयोग और निर्माण को बढ़ावा देने और नियोक्ताओं पर शोध करने के लिए बांझपन उपचार में शामिल हैं, वे  कानूनी रूप से पंजीकृत होने चाहिए।
  • अभ्यास का एक कोड इन क्लिनिक्समें व्यक्तिगत योग्यता निर्धारित करता है।
  • किसी भी प्रकार का उपचार रोगी की लिखित सहमति से शुरू होना चाहिए। इसके साथ ही रोगियों को पहले से ही जानकारी और परामर्श प्राप्त करना चाहिए।
  • मानव भ्रूण को एक अमानवीय जानवर में प्रयोग के लिए नहीं रखा जाना चाहिए और सभी शोध परियोजनाओं (प्रोजेक्ट्स) को संस्थागत आचार समिति (इंस्टीटूशनल एथिक्स कमिटी) से सहमति प्राप्त करना चाहिए।

शुक्राणु दान क्या है?

शुक्राणु दान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक पुरुष जिसे शुक्राणु दाता के रूप में संदर्भित (रेफर) किया जाता है, अपने वीर्य (सीमेन) को इस इरादे से दान करता है कि इसका उपयोग गर्भावस्था को प्राप्त करने और एक महिला में एक बच्चा पैदा करने के लिए किया जा सकता है जो दाता की यौन साथी नहीं है और जिसके साथ पुरुष शारीरिक रूप से सम्बंधित नहीं है। दाता के शुक्राणु के साथ महिला को गर्भवती करने के लिए तृतीय-पक्ष प्रजनन (थर्ड पार्टी रिप्रोडक्शन) तकनीकों का उपयोग करते हुए विभिन्न प्रयास किये जाते हैं जिसमें ज्यादातर कृत्रिम गर्भाधान (आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन) शामिल है। शुक्राणु दाता या तो स्पर्म बैंक के नाम से जाने जाने वाले क्लिनिक में महिला प्राप्तकर्ता को सीधे दान करके हो सकता है या किसी तीसरे पक्ष के माध्यम से किया जा सकता है जो दलाल शुक्राणु दाताओं और उन लोगों के बीच व्यवस्था करता है जिन्हें ‘शुक्राणु एजेंसी’ में इसकी आवश्यकता होती है।

शुक्राणु दाता

शुक्राणु दाता एक पुरुष होता है जो किसी महिला या दंपत्ति को, जो गर्भवती होने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें सीमेन दान करता है, जिसमें स्पर्म होता है । दाता को क्लिनिक में किसी भी तरह का दान स्वीकार करने से पहले अपनी सहमति देनी चाहिए। दाता को युगल या महिला के लिए गुमनाम होना चाहिए जिसे स्पर्म दिया जा रहा है; हालांकि क्लिनिक को दाताओं के विवरण का रिकॉर्ड रखना चाहिए। दाता के पास संतान के प्रति कोई माता-पिता वाला अधिकार नहीं होता है। आईसीएमआर के अनुसार, भारत में एक शुक्राणु दाता को स्पर्म बैंक के माध्यम से ही संपर्क किया जाना चाहिए।

शुक्राणु दाता होने के लिए आवश्यकताएं

शुक्राणु दाता एक योग्य दाता बनने से पहले एक स्क्रीनिंग प्रक्रिया से गुजरता है। उसकी आवश्यकताएँ इस प्रकार हैं:

  • दाताओं की एचआईवी, हेपेटाइटिस, गोनोरिया और सिफलिस जैसे संचारी रोगों के लिए भी जांच की जानी चाहिए।
  • अनाम दाताओं से शुक्राणु को कम से कम छह महीने के लिए संगरोध (क्वारनटाइण्ड) में रहना चाहिए जब तक कि इन बीमारियों के लिए दाता की दोबारा जांच नहीं की जाती है और ऐसे परीक्षणों के परिणाम नकारात्मक नहीं आते हैं।
  • एक दाता के वीर्य की गुणवत्ता (क्वालिटी) का मूल्यांकन अवश्य होना चाहिए जिसमें कुछ समय लग सकता है । यही कारण है कि कुछ बैंक कम से कम छह महीने के लिए संक्रामक रोगों के लिए शुक्राणु का विश्लेषण करना जारी रखते हैं।
  • शुक्राणु दाताओं को किसी भी आनुवंशिकविकार की जांच के लिए एक पूरा पारिवारिक और चिकित्सा का इतिहास इकठ्ठा करना होगा।
  • जिस क्लिनिक में शुक्राणु दान होता है, उसके पास दाताओं की पूरी जानकारी होनी चाहिए जैसे कि ऊंचाई, वजन, त्वचा का रंग, योग्यता, जातीयता (एथनिसिटी), पेशा आदि। शुक्राणु का आमतौर पर विभिन्न कृत्रिम प्रजनन तकनीकों का उपयोग करके गर्भाधान (इन्सेमिनटेड) किया जाता है।
  • शुक्राणु दाता की आयु 25 वर्ष से कम और 45 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • रक्त समूह और दाता की आरएच स्टेटस  निर्धारित की जानी चाहिए और उसे रिकॉर्ड में रखा जाना चाहिए।
  • आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए स्पर्म बैंक का दाता केवल शुक्राणु बैंक से शुक्राणु दान कर सकता है एक और दाता की पहचान एक बच्चा पैदा करने के लिए ऐसे शुक्राणु का उपयोग करने वाले से गुमनाम रहती है।

एक शुक्राणु दाता की आवश्यकता कब होती है?

एक व्यक्ति या एक जोड़े को आमतौर पर निम्नलिखित स्थितियों में शुक्राणु दाता की आवश्यकता होती है-

  • जब पुरुष साथी को अज़ूस्परमिया होता है, साधारण शब्दों में कहे तो शुक्राणु की अनुपस्थिति रुकावट (ब्लॉकेज) के कारण हो सकती है जैसे कि वास डेफेरेंस की जन्मजात द्विपक्षीय अनुपस्थिति (कॉनजेनाइटल बाइलेटरल ऐब्सेंसे) या पहले की गई  पुरुष नसबंदी। वैकल्पिक (अल्टर्नेटिवली) रूप से, अज़ूस्परमिया विषाक्त (टोक्सिन) पदार्थों के संपर्क में आने के परिणामस्वरूप वृषण विफलता (टेस्टिक्युलर फैल्यर) के कारण हो सकता है जैसे कि कीटनाशक, विकिरण उपचार (रेडिएशन ट्रीटमेंट) या कीमोथेरेपी।
  • जब पुरुष साथी गंभीर ओलिगोज़ूस्पर्मिया से पीड़ित होता है, यानी शुक्राणुओं की संख्या में कमी या अन्य महत्वपूर्ण शुक्राणु या वीर्य द्रव असामान्यताएं(सीमाईनल फ्लूएड एब्नॉर्मैलिटीज़)।
  • जब पुरुष साथी ईजैक्युलेटरी डिसफंक्शन का सामना कर रहा हो, जैसे कि इरेक्शन हासिल करने या बनाए रखने में असमर्थता या फिर ईजैक्युलेशन में।
  • जब पुरुष साथी को कुछ आनुवंशिकविकार होते हैं, जो वह अपने बच्चे को नहीं देना चाहता है।
  • जब कोई पुरुष साथी नहीं होता है, जैसे कि एकल महिला जो मां बनना चाहती है या समलैंगिक जोड़े जो दान किए गए शुक्राणु का उपयोग करके गर्भावस्था के इच्छुक हैं। दान किये गए स्पर्म का उपयोग कर के वे खुद का एक परिवार शुरू कर सकते है।

फायदे 

शुक्राणु दान करने के कुछ फायदे हैं। वे इस प्रकार हैं –

  • शुक्राणु दान का सबसे बड़ा लाभ एक जोड़े को गर्भ धारण करने में मदद करने में सक्षम होना है जिससे उन्हें जीवन भर के दुःख से छुटकारा मिलता है और उन्हें पितृत्व का उपहार देता है। दाता के योगदान से दुनिया में एक नया जीवन ला सकता है।
  • शुक्राणु दाताओं को यह जानकर खुशी होगी कि उनका स्वास्थ्य पहले की तरह अच्छा है। वे किसी भी आनुवंशिकविकार या संक्रामक रोगों की जांच के लिए परीक्षणों की एक श्रृंखला से गुजरते हैं।
  • शुक्राणु दाताओं को उनके योगदान के से हुए  नुकसान के लिए आर्थिक रूप से मुआवजा दिया जाता है।

नुकसान

कुछ समस्याएं हैं जो एक दाता को शुक्राणु दान करने का निर्णय लेते समय सामना करना पड़ सकता है। वे इस प्रकार हैं-

  • दाता को अपना शुक्राणु दान करने से पहले कम से कम दो से तीन दिनों तक ईजैक्युलेशन से दूर रहने के लिए कहा जाता है।
  • आपको अपने जैविक बच्चे (बायोलॉजिकल चाइल्ड) से मिलने या जानने के लिए नहीं मिलेगा क्यूंकि आपकी पहचान और आपके शुक्राणु का उपयोग करने वाले व्यक्ति को गुमनाम रहना होगा।
  • आप इस तथ्य को जानकार चिंतित हों सकते हैं कि आपका बच्चा अभी भी दुनिया में कहीं बाहर है और फिर भी आपको इसकी कोई जानकारी नहीं है।

अन्य आईसीएमआर दिशानिर्देश

कुछ मूल दिशानिर्देश हैं जिनका पालन करने के साथ-साथ शुक्राणु दाता की आवश्यकताओं को पूरा करने की आवश्यकता होती है। वे इस प्रकार हैं-

  • महिला साथी के रिश्तेदार, मित्र या वास्तविक पुरुष साथी को भारत में शुक्राणु दान करने की अनुमति नहीं है।
  • दाता को गुमनाम होना चाहिए। ना ही क्लिनिक और ना ही शुक्राणु का उपयोग करने वाले जोड़े को दाता की पहचान जानने का अधिकार है।
  • यह एआरटी क्लिनिक की जिम्मेदारी होगी कि वह उपयुक्त शुक्राणु बैंकों से शुक्राणु प्राप्त करे।
  • क्लिनिक और दंपत्ति को दाता के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जैसे कि ऊंचाई, वजन, त्वचा का रंग, पेशा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, बीमारियों से मुक्ति, जातीय मूल और डीएनए फिंगरप्रिंट।
  • एआरटी क्लिनिक उचित शुल्क मांगने के लिए दंपत्ति से प्रदान किए गए सीमेन और सीमेन दाता पर किये गए परीक्षणों के लिए अधिकृत होगा।
  • उम्र सीमा का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।

दाताओं के अधिकार और कर्तव्य

दाताओं को कुछ अधिकारों का आश्वासन दिया जाता है और बदले में यह उम्मीद की जाती है कि वे दाता होने के कर्तव्यों को पूरा करेंगे। निम्नलिखित उनके अधिकार और कर्तव्य हैं-

  • दाताओं के बारे में सभी जानकारी को गोपनीय रखा जाएगा। ऊसाइट या शुक्राणु दान के किसी भी विवरण का खुलासा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के केंद्रीय डेटाबेस के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से नहीं किया जा सकता है बशर्ते की उस व्यक्ति या व्यक्तियों की सहमति हो जिससे जानकारी संबंधित है या किसी भी सक्षम क्षेत्राधिकार के न्यायालय का आदेश हो।
  • दाता को यह तय करने का अधिकार दिया जाएगा कि उससे संबंधित कौनसी जानकारी और किसे पारित की जा सकती है और इसके अलावा सक्षम अधिकार क्षेत्र के न्यायालय के आदेश के द्वारा भी ऐसा किया जा सकता है।
  • एक दाता को बच्चे पर सभी माता-पिता के अधिकारों को त्यागने के लिए पहले से सूचित किया जाता है।
  • शुक्राणु या अंडाणु दान करने वाले किसी व्यक्ति पर या उसके संबंध में किसी भी प्रकार के सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी प्रक्रिया आयोजित नहीं की जाएगी जब तक कि ऐसी प्रक्रिया के लिए उनकी लिखित सहमति नहीं ली जाती है।

बच्चे को दाता के बारे में जानकारी का अधिकार

  • एक बच्चा जो माता-पिता के संभावित (पॉसिबल) दान के कारण पैदा हुआ था, जिसे तब आनुवंशिकमाता-पिता के रूप में जाना जाता है, 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर अपने आनुवंशिकमाता-पिता से संबंधित व्यक्तिगत पहचान को छोड़कर जानकारी के लिए आवेदन कर सकता है।
  • नाबालिग बच्चे के कानूनी अभिभावक (लीगल गार्डियन) बच्चे के आनुवंशिकमाता-पिता के बारे में व्यक्तिगत पहचान को छोड़कर किसी भी जानकारी के लिए आवेदन कर सकते है, या माता-पिता आवश्यक होने पर, बच्चे के कल्याण के लिए आवश्यक सीमा तक आवेदन कर सकते हैं।
  • आनुवंशिकमाता-पिता या माता-पिता की व्यक्तिगत पहचान केवल जानलेवा चिकित्सा स्थितियों में जारी की जा सकती है जिसमें आनुवंशिक माता-पिता के शारीरिक परिक्षण या सैंपल की आवश्यकता होगी।
  • वे सारी व्यक्तिगत जानकारियां आनुवंशिक माता-पिता के पूर्व सहमति के बिना नहीं दिए जा सकते हैं।

अंडा और शुक्राणु दान के संबंध में क्लिनिक के कर्तव्य

एक महिला अंडा और ऊसाइट दान के लिए आमतौर पर एक प्रजनन क्लिनिक से संपर्क करती है। इसी प्रकार, एक पुरुष को दान करने के लिए शुक्राणु बैंक या सीमेन क्लिनिक से संपर्क करने की आवश्यकता होती है ताकि वह दूसरे को प्रजनन में सहायता कर सके। ऐसी सहायक प्रजनन तकनीकें (एआरटी) क्लिनिक्स का इन दाताओं के प्रति कर्तव्य है और कानून द्वारा उनसे ऐसे कर्तव्यों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है। वे इस प्रकार हैं-

  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि अंडे और शुक्राणु के दाता ऐसा दान करने के योग्य हैं, उन्हें आईसीएमआर द्वारा सुझाये स्क्रीनिंग प्रक्रिया को अनुकूलित करने और यौन संचारित या इसके अलावा किसी भी बीमारी की जांच करने की आवश्यकता होती है ताकि दान प्रक्रिया में दाता के स्वास्थ्य को खतरा न हो।
  • यह ऐआरटी क्लिनिक का कर्तव्य है कि वह शुक्राणु बैंकों या फर्टिलिटी क्लिनिक के रिकॉर्ड से उचित जानकारी प्राप्त करे ताकि जोड़े को सही दाता चुनने में मदद मिल सके। हालांकि, ऐसी जानकारी में ऐसे विवरण शामिल नहीं होना चाहिए जो दाता की पहचान को प्रकट करे।
  • एआरटी क्लिनिक को उस बैंक की सहमति प्राप्त करनी होगी जिससे वे दान किए गए शुक्राणु ले रहे हैं और जहां से उन्होंने ऊसाईट प्राप्त किया है। ऐसी सहमति को लिखित में होना चाहिए। किसी भी प्रकार की जानकारी का खुलासा उस जोड़े को जिसे ज़रुरत है या किसी और को करना कानून द्वारा दंडनीय अपराध है।
  • क्लिनिक्स का कर्तव्य है कि वह दाताओं को दान की प्रक्रिया के बारे में सभी संभावित जानकारी दें कि जिसके अंतर्गत संभावित स्वास्थ्य जोखिमों सहित वे कैसा महसूस कर सकते हैं, पेमेंट विवरण और गुमनामी क्लॉज भी शामिल हो।
  • क्लिनिक्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि दाताओं के लिए निर्दिष्ट (स्पेसिफाइड) आयु सीमाएं को माना जाये।
  • उन्हें दाताओं की मदद करनी चाहिए यदि कोई दाता असहज (अनकम्फर्टेबल) महसूस करता है या कठिनाई का सामना करता है।
  • उन्हें किसी भी महिला या पुरुष द्वारा दान किये गए अंडे/शुक्राणु की जानकारी रखनी चाहिए और ऐसे दान को उचित रिकॉर्ड में रखना चाहिए।

एआरटी रेग्युलेशन बिल, 2020 (सहायक प्रजनन तकनीक (नियमन) विधेयक, 2020)

सहायक प्रजनन तकनीक (नियमन) विधेयक, 2020 को 14 सितम्बर, 2020 लोकसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा पेश किया गया था। केंद्रीय कैबिनेट ने सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक 2020 को लोगों को गर्भावस्था प्राप्त करने में सहायता करने के लिए उपयोग की जाने वाली चिकित्सा प्रक्रियाओं की निगरानी को मंजूरी दे दी। यह बिल देश में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं को नियंत्रित करेगा जिसके परिणामस्वरूप बांझ जोड़े नैतिक प्रथाओं (एथिकल प्रैक्टिस) के प्रति अधिक आश्वस्त (कॉन्फिडेंट) होंगे, जिनका पालन एआरटी द्वारा किया जाता है।

बिल यह प्रकाशित करता है कि एआरटी वह तकनीक है जो दान किये गए गैमेट को संभालकर रखती है और गर्भावस्था प्राप्त करवाती है और फिर उस गैमेट या निषेचित भ्रूण (फर्टिलाइज़्ड इम्ब्रयो) को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित (ट्रांसफर)करती है। इन व्यवस्थाओं में इन-विट्रो फर्टिलाइज़ेशन शामिल है जो एक अंडे को प्रयोगशाला, गैमेट डोनेशन और सरोगेसी लैब में फर्टिलाइज करने की प्रक्रिया है।

यह विधेयक विवाहित बांझ जोड़ों और महिलाओं को अनुमति देता है की एक निश्चित आयु तक एआरटी प्रक्रियाओं को चालू कर सकते हैं।यह गैमेट दाताओं के लिए आयु सीमा भी निर्दिष्ट करता है। यह शर्तें रखता है जैसे अंडा दाताओं को विवाहित और एक बच्चा होना चाहिए जो कम से कम तीन वर्ष का हो, जो आईसीएमआर के दिशानिर्देशों से थोड़ा अलग है।कमीशनिंग पार्टी अंडे दाताओं को जोखिम के खिलाफ सुनिश्चित करती है। इसमें यह भी कहा गया है कि राष्ट्रीय और राज्य बोर्ड्स को बनाया जायेगा जो एआरटी सेवाओं को विनियमित (रेग्युलेट) करेंगी।

आगे, सभी एआरटी क्लिनिक्सऔर बैंकों के बारे में जानकारी के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री को बनाया जायेगा। एआरटी क्लिनिक्स और बैंक को दाताओं और कमीशनिंग पार्टियों के बारे में अधिक जानकारी रजिस्ट्री के साथ साझा करने की आवश्यकता होगी, जो इसे राष्ट्रीय बोर्ड के साथ साझा कर सकते हैं। हालांकि, पहचान को किसी और के साथ बाँटा नहीं जायेगा। अपराधों और दंड के तहत यह बिल सुझाव देता है कि गैमेट कि खरीद या बिक्री पर 5 – 10 लाख रुपये के बिच जुर्माना लगेगा। उसके बाद भी अपराध होने पर 8 से 12 साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान होगा।

दाताओं के संबंध में बिल की विशेषताएं

एआरटी बिल, 2020 की प्रमुख विशेषताओं में क्लिनिक्स, जोड़ों का पंजीकरण, योग्यता इत्यादि आते हैं। इसके नियम को शुक्राणु और अंडे के दान के संबंध में भी पालन किया जाना चाहिए। वे इस प्रकार हैं-

  • दाताओं की योग्यता- एक बैंक 21 से 55 वर्ष की आयु के पुरुषों से सीमेन प्राप्त करते हैं और 23 से 35 वर्ष की महिलाओं से अंडे प्राप्त करते हैं। अंडा दाता को कभी भी विवाहित महिला और कम से कम एक जीवित बच्चे के साथ होना चाहिए जो कम से कम तीन साल का हो। महिला अपने जीवन में केवल एक बार अंडे का दान कर सकती है और सात से अधिक अंडों को उससे प्राप्त नहीं किया जा सकता है। एक बैंक एक दाता का गैमेट एक से अधिक कमीशनिंग पार्टी को नहीं दे सकता है। 
  • सेवाओं की पेशकश के लिए- एआरटी प्रक्रियाओं को केवल कमीशनिंग पार्टियों की लिखित सहमति के साथ ही किया जा सकता है। कमीशनिंग पार्टी को अंडा दाता के पक्ष में बीमा कवरेज प्रदान करने की आवश्यकता होगी, यदि कोई नुकसान, क्षति (डैमेज) या मृत्यु होती है। क्लीनिक को सख्ती से किसी व्यक्ति द्वारा कोई दान किए जाने से पहले आनुवंशिकरोगों की जांच की जानी चाहिए और किसी प्रकार के लिंग सम्बन्धी सेवाएं जैसे लिंग-परिक्षण पर बंदिश (प्रोहिबिट) लगानी चाहिए।
  • ऐआरटी के माध्यम से पैदा हुए बच्चे के अधिकार- एआरटी के माध्यम से पैदा हुए बच्चे को कमीशनिंग दंपत्ति का जैविक (बायोलॉजिकल) बच्चा माना जाएगा और वह प्राकृतिक बच्चे के लिए उपलब्ध अधिकारों और विशेषाधिकारों (प्रिविलेज़ेस) का हकदार होगा। एक दाता का  बच्चे पर कोई माता-पिता का अधिकार नहीं होगा।
  • एक ऐआरटी क्लीनिक और शुक्राणु बैंकों के कर्तव्य- एक ऐआरटी क्लीनिक और बैंक को राष्ट्रीय रजिस्ट्री से सम्बंधित जानकारी साझा करना ज़रूरी है-
  • इच्छुक जोड़े, या कमीशनिंग पार्टी और दाताओं का नामांकन 
  • वे सारी प्रक्रिआएं जो पूरी की जा रही है 
  • प्रक्रिया का फल 

आगे, उन्हें पिछले 10 वर्षों में किये गए सभी दानों की रिकॉर्ड बनानी होती है और जिसके बाद रिकॉर्ड्स को राष्ट्रीय रजिस्ट्री में भेज दिया जाता है।

अपराध और दंड- विधेयक के तहत अपराध

  1. ऐआरटी के माध्यम से पैदा हुए बच्चों को छोड़ना या उनका शोषण करना
  2. बिक्री, क्रय (परचेज़), व्यापार या एकत्रित मानव भ्रूण (कलेक्टेड ह्यूमन इम्ब्रयो) या गैमेट्स ​​​​का आयात करना।
  3. कमीशनिंग दंपत्ति, महिलाओं या किसी भी रूप में गैमेट्स ​​दाता का शोषण।

ये अपराध पहली बार उल्लंघन के लिए 5 से 10 लाख रुपये के बीच के जुर्माने के साथ दंडनीय होंगे। बाद के उल्लंघनों के लिए ये अपराध 8 से 12 साल के कारावास और 10 से 20 लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडनीय होंगे। एक न्यायालय शिकायत पर ही अपराध का संज्ञान (कॉग्नीज़न्स) लेगा जो या तो राष्ट्रीय या राज्य बोर्ड या द्वारा की जाती है।

निष्कर्ष 

विंस्टन चर्चिल की एक प्रसिद्ध कहावत है कि “हम लिए हुए चीज़ों से जीवन यापन (लिविंग) करते हैं, लेकिन हम जो देते हैं उससे हम जीवन बनाते हैं”। अंडे और शुक्राणु का दान कुछ ऐसा है जिस पर एक दाता को गर्व होना चाहिए क्योंकि यह किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े को परिवार शुरू करने में मदद करने के लिए किया जाता है। एआरटी बिल रेगुलेशन 2020, मेडिकल का अभ्यास करने वाले, रोगी, दाताओं और एआरटी सेवाओं में रुचि रखने वाले पक्ष के लिए एक गाइड के रूप में काम करता है। यह उनके अधिकारों की रक्षा करता है और उनसे उनके कर्तव्यों की याद दिलाता है जिसे उन्हें एआरटी के भाग होते हुए निभाना है। अंडों और शुक्राणुओं के कानून बहुत सीधे और सरल हैं। तकलीफ बस यह है कि भारत अभी भी इन कानूनों के कार्यान्वयन (इम्प्लीमेंटेशन) का सामना कर रहा है। भले ही कई दिशानिर्देशों और नियमों का नेतृत्व किया गया हो, एक मजबूत कानून समय की आवश्यकता है क्योंकि यह केवल एक और जीवन को इस दुनिया में लाने के लिए एक दाता के जीवन को जोखिम में डालने लायक नहीं है।

 संदर्भ 

 

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