यह लेख डिप्लोमा इन एडवांस कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्टिंग ,नेगोटिएशन एंड डिस्प्यूट रेसोलुशन कर रहे Vivek Ranjan द्वारा लिखा गया है और Shashwat Kaushik द्वारा संपादित किया गया है। यह लेख भारत में भीड द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) के कारणों और परिणामों, राज्यों द्वारा विकसित कानूनी तंत्र और महत्वपूर्ण कानूनी मामलों और प्रचलित चुनौतियों और समाधानों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों के बारे में चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Shubham Choube द्वारा किया गया है।
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परिचय
भीड द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) एक वीभत्स (ग्रूसम) कार्य है जिसमें ऐसे लोगों का एक समूह शामिल होता है जो एक संदिग्ध अपराधी को दंडित करने के लिए कानून अपने हाथ में लेते हैं। जो लोग इस निंदनीय कार्य को करते हैं वे अक्सर रूढ़िवादी लोगों द्वारा फैलाई गई अफवाहों पर विश्वास करते हैं, जो आमतौर पर धर्म, जाति आदि पर आधारित होती हैं। इस भयानक कार्य ने कानून और व्यवस्था, मानवाधिकार और सामाजिक एकजुटता की स्थिति के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। इस लेख में, लेखक भारत में भीड द्वारा हत्या के कारणों और परिणामों, राज्यों द्वारा विकसित कानूनी तंत्र और महत्वपूर्ण कानूनी मामलों और प्रचलित चुनौतियों और समाधानों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों पर चर्चा करना चाहते हैं। भीड द्वारा हत्या
भारत में भीड द्वारा हत्या के कारण
भारत में भीड द्वारा हत्या की घटनाओं के कारण विभिन्न पहलुओं पर निर्भर करते हैं, जिनमें ये शामिल हैं, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं हैं:
- अफवाहें- बच्चों के अपहरण, मवेशी चोरी, धर्म और जातिगत घृणा जैसे संवेदनशील मुद्दों से संबंधित जानकारी, जो आम तौर पर सोशल-मीडिया के माध्यम से अक्सर फर्जी खातों द्वारा फैलाया जाता है, ने भीड़ को अपराधी के खिलाफ कानून अपने हाथ में लेने के लिए उकसाया, जिस पर गलत तरीके से अपराध का आरोप लगाया गया था।
- सामाजिक विभाजन– भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहाँ विभिन्न धर्म, जाति और संस्कृति के लोग निवास करते हैं। इन विभाजनों के कारण विभिन्न संस्कृतियों का चलन शुरू हुआ और थोड़ी सी भी गलत सूचना के कारण लोगों को हाशिए पर मौजूद वर्गों के खिलाफ हिंसा का सहारा लेना पड़ा।
- कानूनी प्रणाली में अविश्वास– प्रसिद्ध उद्धरण “न्याय में देरी, यानी न्याय न मिलना”, जिसका अर्थ है लंबी जांच और अदालती कार्यवाही, पुलिस और न्यायिक प्रणाली में विश्वास की कमी पैदा करती है, जो अक्सर कुछ व्यक्तियों को कानून अपने हाथ में लेने के लिए प्रेरित करती है। यह धारणा बनी हुई है कि प्रचलित कानूनी तंत्र के माध्यम से उन्हें न्याय नहीं मिलेगा।
- राजनीतिक प्रतिशोध– कुछ राजनीतिक दल, अपनी प्रतिद्वंद्विता को पूरा करने के लिए या वोट बैंक के लिए, उत्तेजक भाषणों की एक श्रृंखला के माध्यम से उकसाने की रणनीति का उपयोग करते हैं और धर्म और जाति के आधार पर लोगों के समूहों के बीच कड़वी या सामंती प्रवृत्ति पैदा करते हैं।
भारत में भीड द्वारा हत्या का प्रभाव
भीड द्वारा हत्या की घटनाएं केवल पीड़ितों तक ही सीमित नहीं हैं; वे समग्र रूप से समाज को प्रभावित करते हैं। यह भारत में कुछ लोगों में विवेक की कमी को दर्शाता है, जो बेहद हृदय विदारक (रेन्चिंग) है। कुछ प्रमुख प्रभाव हैं:
- विविधता में एकता को बाधित करता है- भारत “अनेकता में एकता” के आदर्श वाक्य वाला देश होने का दावा करता है, जहां विभिन्न धर्म, जातियां और संस्कृतियां शांति से रह सकती हैं। भीड द्वारा हत्या के मामले विविधता में एकता की कमी को दर्शाते हैं। यह भाग लेने वाले लोगों के समूह में विवेक की कमी को दर्शाता है, यहां तक कि उन लोगों में भी जिन्होंने इन भीड़ का समर्थन किया था।
- डर का माहौल- भीड द्वारा हत्या के मामलों में बढ़ोतरी से खासकर अल्पसंख्यकों में डर का माहौल बनता है। इंडियन स्पेंड विश्लेषण के अनुसार, 2020 में, भारत में भीड द्वारा हत्या की 22 घटनाएं हुईं, जिनमें 22 मौतें हुईं।
- मानव जीवन की हानि- एक प्रसिद्ध कहावत भी है “न्याय में जल्दबाजी, यानी न्याय को दफना दिया गया है”। ऐसा कहा जाता है कि जीवन “भगवान का उपहार” है और इसे सावधानी से संभालना चाहिए और भीड द्वारा हत्या के मामले ऐसे अनमोल उपहार पर खंजर की तरह काम करते हैं क्योंकि ये अफवाहों पर आधारित होते हैं।
- कानून के शासन का उल्लंघन करता है- भारत के संविधान में अनुच्छेद 21 “किसी व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा” प्रदान करता है। भीड द्वारा हत्या के मामले व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और कानून और न्याय के शासन को कमजोर करते हैं। साथ ही, ऐसे कार्य “दोषी साबित होने तक निर्दोष” के कानूनी सिद्धांत को भी दरकिनार कर देते हैं।
मामले का अध्ययन
पहलू खान भीड द्वारा हत्या मामला (2017): डेयरी किसान पहलू खान (55 वर्षीय) और उनके बेटे ने राजस्थान के अलवर में एक पशु मेले में गायें खरीदी थीं। जब वे गायों को ले जा रहे थे, तो गौ-रक्षकों ने उनकी पिटाई कर दी, जिसके कारण पहलू खान की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। अगस्त 2019 में सत्र न्यायालय ने सबूतों की कमी और पुलिस जांच में चूक के कारण आरोपियों को बरी कर दिया। इस प्रकार के निर्णयों से कानून प्रवर्तन संस्थाओँ में विश्वास की कमी पैदा होती है।
पालघर भीड द्वारा हत्या मामला (2020): 16 अप्रैल, 2020 को एक व्हाट्सएप अफवाह फैल गई कि चोर भारत के महाराष्ट्र के पालघर जिले के गडचिंचले गांव में घूम रहे हैं। ऐसे बहाने से भीड़ समूहों ने तीन लोगों – दो साधुओं और एक ड्राइवर – को पकड़ लिया और उनकी हत्या कर दी।
जी.कृष्णैया (आईएएस अधिकारी) भीड द्वारा हत्या मामला: 5 दिसंबर, 1994 को 5,000 लोगों की भीड़ ने गोपालगंज के जिला मजिस्ट्रेट जी. कृष्णैया के वाहन पर हमला कर उन्हें उनकी कार से बाहर खींच लिया। भीड़ ने उन पर हमला किया, जिससे उन्हें कई चोटें आईं और अंत में उनकी सिर में गोली मार दी।
भीड द्वारा हत्या के खिलाफ भारत में कानूनी तंत्र
भीड द्वारा हत्या के अपराधियों के खिलाफ भारत में कोई विशिष्ट (स्पेसीफिक) तंत्र नहीं है, लेकिन जो व्यक्ति इस तरह के भयानक कार्य में शामिल हैं, उनसे विभिन्न प्रावधानों और दिशानिर्देशों के अनुसार निपटा जाएगा-
भारतीय दंड संहिता, 1860
भारतीय दंड संहिता – भीड द्वारा हत्या के मामलों में अपराधियों के खिलाफ आईपीसी की कई धाराएं लगाई जा सकती हैं:
धारा 302 (हत्या), धारा 307 (हत्या का प्रयास), और धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) को भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या या चोट पहुंचाने के मामलों में लगाया जा सकता है।
धारा 153A (धर्म, नस्ल, जाति, जन्म स्थान आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और धारा 295A (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को परिभाषित करना) उन अपराधियों के खिलाफ लागू किया जा सकता है जो सांप्रदायिक तनाव भड़काते हैं या उकसाते हैं।
धारा 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई लोगों द्वारा किया गया कार्य); (गैरकानूनी सभा); धारा 142 (गैरकानूनी सभा का सदस्य होना); धारा 143 (सजा); धारा 144 (घातक हथियार से लैस गैरकानूनी सभा में शामिल होना); धारा 146 (दंगा); धारा 147 (दंगा करने के लिए सज़ा); धारा 148 (दंगा, घातक हथियार से लैस); धारा 149 (गैरकानूनी सभा का प्रत्येक सदस्य सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में किए गए अपराध का दोषी)।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस द्वारा निवारक कार्रवाई प्रदान करती है, जिसमें धारा 149 (संज्ञेय (काग्निज़बल) अपराधों को रोकने के लिए पुलिस); धारा 150 (संज्ञेय अपराध करने की योजना की जानकारी); और धारा 154 (संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए गिरफ्तारी)। सीआरपीसी की धारा 154 के तहत पुलिस अधिकारी को संज्ञेय अपराध के मामलों में जांच करने की शक्ति भी प्रदान करती है।
भीड द्वारा हत्या की घटनाओं के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश
सर्वोच्च न्यायालय ने भीड द्वारा हत्या के मामलों में वृद्धि के कारण 2018 में सभी राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों को ऐसी घटनाओं को रोकने और उन पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी उपाय अपनाने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए। दिशानिर्देश इस प्रकार हैं:
- राज्य सरकारें प्रत्येक जिले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को, जो पुलिस अधीक्षक के पद से नीचे का न हो, एक नोडल अधिकारी के रूप में नामित करेंगी। ऐसे नोडल अधिकारी को भीड़ हिंसा और भीड द्वारा हत्या की घटनाओं को रोकने के लिए उपाय करने में जिले के डीएसपी रैंक के अधिकारियों में से एक द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। वे एक विशेष टास्क फोर्स का गठन करेंगे ताकि उन लोगों के बारे में खुफिया रिपोर्ट हासिल की जा सके जो ऐसे अपराध करने की संभावना रखते हैं या जो नफरत फैलाने वाले भाषणों, भड़काऊ बयानों और फर्जी खबरों में शामिल हैं।
- राज्य सरकारें तुरंत उन जिलों, उप-मंडलों और गांवों की पहचान करेंगी जहां हाल के दिनों में भीड द्वारा हत्या की घटनाएं सामने आई हैं।
- संबंधित राज्यों के गृह विभाग के सचिव संबंधित जिलों के नोडल अधिकारियों को निर्देश/ सलाह जारी करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी अपने संबंधित अधिकार क्षेत्र में अतिरिक्त सतर्क हैं।
- नामित नोडल अधिकारी भीड़ हिंसा भड़काने वाली किसी भी सूचना के प्रसार के खिलाफ निवारक उपाय करने के लिए जिले के सभी स्टेशन हाउस अधिकारियों के साथ-साथ जिले में स्थानीय खुफिया इकाइयों के साथ नियमित बैठकें (महीने में कम से कम एक बार) आयोजित करेंगे।
- सीआरपीसी की धारा 129 के तहत किसी भी गैरकानूनी जमावड़े या पांच या अधिक व्यक्तियों के जमावड़े को तितर-बितर करने के लिए उप-निरीक्षक रैंक से नीचे के पुलिस अधिकारी का कर्तव्य नहीं होगा, जिससे सार्वजनिक शांति में बाधा उत्पन्न होने की संभावना हो या जिसके माध्यम से तबाही मचने की संभावना हो।
- पुलिस महानिदेशक उन क्षेत्रों में पुलिस गश्त के संबंध में पुलिस अधीक्षकों को एक परिपत्र जारी करेंगे जहां अतीत में घटनाएं सामने आई हैं।
- राज्य सरकारें भीड द्वारा हत्या के प्रभाव और कानून के शासन के उल्लंघन के बारे में राज्यों के गृह विभाग और पुलिस की आधिकारिक वेबसाइटों सहित रेडियो, टेलीविजन और अन्य मीडिया प्लेटफार्मों पर एक जन जागरूकता अभियान चलाएंगी।
- संबंधित राज्यों की सभी कानून प्रवर्तन (एन्फॉर्स्मन्ट) एजेंसियां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की निगरानी करेंगी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और अन्य प्रासंगिक कानूनों के अनुसार भीड़ हिंसा और भीड द्वारा हत्या को बढ़ावा देने वाली जानकारी के प्रसार को रोकने के लिए कार्रवाई करेंगी।
- यदि भीड द्वारा हत्या की कोई घटना होती है, तो अधिकार क्षेत्र वाला पुलिस स्टेशन आईपीसी के प्रासंगिक प्रावधानों या कानून के अन्य प्रावधानों के तहत बिना किसी देरी के तुरंत एफआईआर दर्ज करेगा और जिले में नोडल अधिकारी को सूचित करेगा, जो बदले में यह सुनिश्चित करेगा कि पीड़िता के परिवार के सदस्यों का आगे कोई उत्पीड़न नहीं होगा।
- राज्य सरकारें सीआरपीसी की धारा 357A के प्रावधानों के आलोक में पीड़ित मुआवजा योजना तैयार करेंगी।
- यदि संबंधित राज्य सरकारें या पुलिस अधिकारी भीड द्वारा हत्या के किसी भी अपराध को रोकने या त्वरित सुनवाई की सुविधा के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करने में विफल रहते हैं, तो इसे जानबूझकर लापरवाही और कदाचार का कार्य माना जाएगा जिसके लिए उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।
चुनौतियाँ और समाधान
शिक्षा और जागरूकता की कमी- भारत में कई धार्मिक रूढ़िवादी एक-दूसरे के धर्म के बारे में नफरत सिखाते हैं, जो लोगों के मन में घर कर जाती है, खासकर उन लोगों के मन में जो बचपन से उनके साथ रहे हैं।
- केंद्र और राज्य सरकारों को उन संस्थाओँ पर नजर रखनी चाहिए जो नफरत का माहौल पैदा करती हैं और ऐसी शिक्षाओं पर अंकुश लगाने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें तत्परता से जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना व्यक्तियों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। हाल ही में, कर्नाटक सरकार ने राज्य के सभी शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों और शिक्षकों के लिए सुबह की सभा के दौरान भारत के संविधान की प्रस्तावना को जोर से पढ़ना अनिवार्य कर दिया है और दस्तावेज़ में निहित सिद्धांतों को अपने दैनिक जीवन में अपनाने की शपथ भी ली है। “बच्चों को भारतीय संविधान के उद्देश्यों से अवगत कराने के लिए इसे पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है।”
कानूनी तंत्र को मजबूत करना– मौजूदा कानूनी तंत्र भीड द्वारा हत्या के लिए विशिष्ट नहीं है, जो त्वरित सुनवाई में बाधा डालता है। मौजूदा कानून, जैसे कि भारतीय दंड संहिता, 1860, और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973, मामलों की लंबी अवधि तक चलते हैं। इसके अलावा, भीड द्वारा हत्या में शामिल लोगों पर मुकदमा चलाना विभिन्न कारणों से एक चुनौती बनी हुई है, जैसे गवाहों को धमकी, राजनीतिक समूहों का प्रभाव, सबूत इकट्ठा करने में कठिनाइयाँ आदि।
- ऐसे उदाहरण हैं जहां कानून प्रवर्तन संस्थाओँ ने राजनीतिक दबाव या सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के कारण 2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया है। ऐसे मामले सामने आए हैं जहां पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की, उचित जांच में देरी की और मनगढ़ंत सबूत दिए। इसके अलावा, ऐसे भी उदाहरण हैं जहां अदालत ने भीड द्वारा हत्या के अपराधियों को जमानत दे दी है। उदाहरण के लिए, जी कृष्णैया मामले में, मुख्य आरोपी आनंद मोहन सिंह को बिहार राज्य सरकार द्वारा जेल मैनुअल में संशोधन के कारण पटना उच्च न्यायालय ने रिहा कर दिया है। अपने राजनीतिक प्रतिशोध को पूरा करने के लिए ऐसे गुंडों को रिहा करना राजनीतिक प्रभाव दर्शाता है।
- राज्य सरकारों को ऐसे प्रावधान करने चाहिए जो पीड़ितों को त्वरित सुनवाई, सुरक्षा और मुआवजा प्रदान करें। उन्हें ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए पुलिस अधिकारियों की मॉक ड्रिल आयोजित करनी चाहिए। उन्हें पुलिस अधिकारियों को संविधान के मूल्यों के बारे में सिखाना चाहिए ताकि वे एफआईआर दर्ज कर सकें और कानूनी रूप से जांच कर सकें।
- राजस्थान, मणिपुर और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्य सरकारों ने ऐसे भयानक कार्यों पर अंकुश लगाने और कड़ी सजा का प्रावधान करने के लिए कानून बनाए हैं। अन्य राज्य सरकारों को सबक लेना चाहिए और इस तरह के खतरे को रोकने के लिए विशिष्ट कानून तैयार करना चाहिए।
मीडिया का उत्तरदायित्व- मीडिया कर्मियों को आम जनता को वास्तविक समाचार उपलब्ध कराने चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और अगर मीडिया टेलीविज़न रेटिंग प्रोग्राम (टीआरपी) के लिए झूठी खबरें और अफवाहें फैला रहा है, तो यह भारत में लोकतंत्र को बाधित करता है।
- मीडिया को राजनीतिक दलों से प्रभावित नहीं होना चाहिए और बिना पक्षपात या पूर्वाग्रह के सच्चाई का प्रसारण करना चाहिए। राज्य सरकार को मीडिया के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए और मीडिया कर्मियों की सुरक्षा के लिए कानून भी बनाना चाहिए।
सूचना प्रौद्योगिकी कानून- फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं, जिनका उपयोग रूढ़िवादियों द्वारा भीड द्वारा हत्या को भड़काने के लिए किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, पालघर भीड द्वारा हत्या मामले में अफवाह थी कि कुछ चोर गांव में घुस आए हैं और इसी बहाने भीड़ ने दो साधुओं और एक ड्राइवर की हत्या कर दी।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और इसके संशोधनों ने इन सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की निगरानी और जांच के लिए उचित दिशानिर्देश बनाए हैं, लेकिन ऐसे कानूनों के बावजूद, पालघर जैसी घटना हुई है। इसलिए, राज्य सरकार को फर्जी सूचना फैलाने के लिए जिम्मेदार अपराधियों पर नज़र रखने के लिए ऐसे प्लेटफार्मों के साथ एक समझौता करना चाहिए, जिससे उन्हें ऐसे भयानक कार्य को प्रभावित करने के लिए सजा मिलेगी।
निष्कर्ष
भारत में भीड द्वारा हत्या एक गंभीर मुद्दा है जो भारतीय समाज के लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डालता है, भारतीय संविधान की प्रस्तावना के उद्देश्यों को बाधित करता है, और कानून के शासन, सामाजिक एकजुटता आदि को कमजोर करता है। ऐसी घटनाएं विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के बीच भय का माहौल पैदा करती हैं। ऐसे खतरों से निपटने के लिए कानूनी तंत्र हैं, लेकिन विशिष्ट कानूनों के अभाव के कारण मामले लंबे समय तक चलते रहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के मौजूदा दिशानिर्देशों को ठीक से लागू नहीं किया गया है, उदाहरण के लिए, पालघर भीड द्वारा हत्या मामले में, जहां उचित जांच नहीं हुई है, और जी. कृष्णैया मामले में मुख्य आरोपी की रिहाई हुई है। इस प्रकार के मामले कानून प्रवर्तन संस्थाओँ पर भरोसा कम करते हैं, जो भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अच्छा नहीं है। यह पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों को न्याय वितरण प्रणाली में भारत की विश्वसनीयता की कमी को दिखा सकता है। एक प्रसिद्ध उद्धरण है “जो लोग अतीत से नहीं सीखते वे खुद को दोहराएंगे”। यदि भारत न्याय, मानवाधिकार और कानून के शासन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बरकरार रखना चाहता है, तो उसे शिक्षा और सामाजिक जागरूकता को मजबूत करने, विवेक पैदा करने और कानूनी तंत्र को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
संदर्भ