यह लेख एमिटी लॉ स्कूल, नोएडा के Nikunj Arora ने लिखा है। यह लेख सामान्य रूप से इच्छामृत्यु की अवधारणा के साथ-साथ निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेशिया) का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करता है। इस लेख में वैश्विक परिप्रेक्ष्य (ग्लोबल पर्सपेक्टिव) और ऐतिहासिक निर्णय भी शामिल है जिसमें भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु कानूनी बन गई थी। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।
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परिचय
इच्छामृत्यु का तरीका सक्रिय (एक्टिव) या निष्क्रिय हो सकता है; हालांकि, निष्क्रिय इच्छामृत्यु का सही अर्थ कभी-कभी स्पष्ट नहीं होता है। भले ही सभी निष्क्रिय इच्छामृत्यु में जीवन-निर्वाह उपचार को रोकना शामिल हो, लेकिन ऐसा लगता है कि इस पर कुछ विवाद है कि क्या जीवन समर्थन से इनकार करने को निष्क्रिय इच्छामृत्यु माना जाना चाहिए।
ऐतिहासिक रूप से, सक्रिय इच्छामृत्यु और निष्क्रिय इच्छामृत्यु में अंतर बताया गया है। यह लंबे समय से सोचा गया है कि दोनों के बीच इतना बुनियादी अंतर है कि निष्क्रिय इच्छामृत्यु को इजाज़त दी जा सकती है लेकिन सक्रिय इच्छामृत्यु को हमेशा मना किया जाता है। इस सिद्धांत को चुनौती देने के कई कारण हैं। तथ्य के रूप में, सक्रिय इच्छामृत्यु, कई मामलों में, निष्क्रिय इच्छामृत्यु की तुलना में अधिक मानवीय तरीका है। इसके अलावा, पारंपरिक सिद्धांत अप्रासंगिक आधार पर जीवन और मृत्यु के बारे में निर्णय ले सकते हैं। तीसरा मुद्दा यह है कि सिद्धांत हत्या और मरने देने के बीच के अंतर पर आधारित है, जिसका स्वयं में अधिक नैतिक (मोरल) मूल्य नहीं है। इसके अलावा, सिद्धांत के समर्थन में कुछ सामान्य तर्क अमान्य हैं।
फरवरी 2001 में, यूरोपीय संघ प्रशामक (पैलियटिव) देखभाल (ईएपीसी) द्वारा स्थापित एक विशेष कार्य बल ने बहुत स्पष्ट तरीके से निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विरोध किया। इसके अनुसार, निष्क्रिय इच्छामृत्यु शब्द एक विरोधाभास था और इसलिए, यह इच्छामृत्यु की अवधारणा का हिस्सा नहीं हो सकता था। तर्कों पर तीन भागों में चर्चा की गई है।
- सबसे पहले, एक तर्क इच्छामृत्यु के गलत होने और निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति पर आधारित था।
- दूसरा दावा यह था कि निष्क्रिय इच्छामृत्यु, इच्छामृत्यु नहीं थी क्योंकि इसके परिणामस्वरूप मृत्यु नहीं हुई थी।
- एक परिणाम-आधारित तर्क भी था जिसमें तर्क दिया गया था कि निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बुरे परिणाम थे।
इच्छामृत्यु का अवलोकन
इच्छामृत्यु क्या है?
इच्छामृत्यु की अवधारणा को पहले 17वीं शताब्दी के दौरान सर फ्रांसिस बेकन द्वारा तैयार किया गया था। इच्छामृत्यु को अंग्रेजी में यूथेनेशिया कहा जाता है, इसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘यू’ और ‘थानाटोस’ से हुई है, जिसका अर्थ क्रमशः ‘अच्छा’ और ‘मृत्यु’ होता है। हालांकि, इसका अर्थ ‘अच्छा’ या ‘आसान’ मौत था।
इच्छामृत्यु के कार्य में मरीजों के असहनीय और असाध्य दर्द और पीड़ा को दूर करने के लिए रोगी को एक घातक पदार्थ (लीथल सब्सटेंस) देना शामिल है। चिकित्सक आमतौर पर मरीजों की पीड़ा को दूर करना चाहते हैं, और उनके उद्देश्य आमतौर पर दयालु होते हैं। चिकित्सक इच्छामृत्यु करते हैं, जिसे सक्रिय या निष्क्रिय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
इच्छामृत्यु के प्रकार
इच्छामृत्यु विभिन्न रूपों में होती है। निम्नलिखित प्रकार कई तत्वों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, जिनमें किसी का दृष्टिकोण और जागरूकता का स्तर शामिल है:
1. पीएएस और इच्छामृत्यु
पीएएस (फिजिशियन-असिस्टेड-सुसाइड) की अवधारणा का उल्लेख ऊपर किया गया है। पीएएस का मतलब है जब कोई डॉक्टर जानबूझकर किसी की जिंदगी खत्म करने में उसकी मदद करता है। यह व्यक्ति लंबे समय तक दर्द से गुजरता है इसलिए संभावित रूप से उसे एक लाइलाज बीमारी से निदान दिया जा सकता है। ज्यादातर मामलों में, ऐसे व्यक्तियों का डॉक्टर विश्लेषण करेगा और मूल्यांकन करेगा कि कौन सी प्रक्रिया सबसे प्रभावी और दर्द रहित है।
2. सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु
सक्रिय इच्छामृत्यु के मामले में, एक व्यक्ति (चिकित्सक), रोगी की मृत्यु सीधे और उद्देश्यपूर्ण तरीके से करता है। जबकि निष्क्रिय इच्छामृत्यु के मामले में मरीज की जान सीधे तौर पर नहीं ली जाती, बल्कि उन्हें मरने दिया जाता है।
3. अनैच्छिक और स्वैच्छिक इच्छामृत्यु
जिस व्यक्ति की मृत्यु होने वाली है वह स्वैच्छिक इच्छामृत्यु का अनुरोध कर सकता है। स्वैच्छिक इच्छामृत्यु तब होती है जब कोई व्यक्ति/रोगी डॉक्टर के हाथों अपने जीवन को समाप्त करने का सचेत निर्णय लेता है। ऐसे व्यक्ति/रोगी को अपना जीवन समाप्त करने के लिए ऐसी सहायता के लिए अपनी पूर्ण सहमति देनी होगी और यह स्थापित करना होगा कि वे स्थिति से पूरी तरह अवगत है।
दूसरी ओर, अनैच्छिक इच्छामृत्यु के तहत, दूसरा व्यक्ति किसी के जीवन को समाप्त करने का फैसला करता है, और ज्यादातर स्थितियों में, ऐसा निर्णय अक्सर परिवार के करीबी सदस्य द्वारा लिया जाता है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु को लेकर विवाद
पीएएस और इच्छामृत्यु दोनों के कई समर्थक और विरोधी हैं। तर्क आमतौर पर चार श्रेणियों में से एक में आते हैं:
- नैतिकता (मॉरलिटी) और धर्म: ज्यादातर मामलों में, निष्क्रिय इच्छामृत्यु कुछ लोगों के लिए नैतिक रूप से अस्वीकार्य हो सकती है। इसके अलावा, बहुत से लोग तर्क देते हैं कि अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लेने में सक्षम होना जीवन की पवित्रता को कमजोर करता है। इसी तरह के कारणों से, कई चर्च, धार्मिक समूह और आस्था संगठन भी इच्छामृत्यु का विरोध करते हैं।
- एक चिकित्सक का निर्णय: किसी व्यक्ति को पीएएस में भाग लेने से पहले निर्णय लेने में मानसिक रूप से सक्षम होना चाहिए। फिर भी, किसी की संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) क्षमताओं को निर्धारित करना मुश्किल हो सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि डॉक्टर हमेशा यह नहीं पहचान पाते हैं कि किसी के पास निर्णय लेने की मानसिक क्षमता कब है।
- नीतिशास्त्रीय (एथिकल) विचार: ऐसे चिकित्सक हैं जो पीएएस का विरोध करते हैं जो नीतिशास्त्रीय जटिलताओं के बारे में चिंतित हैं। हिप्पोक्रेटिक शपथ 2,500 साल पहले चिकित्सकों द्वारा ली गई थी। डॉक्टर शपथ लेते हैं कि वे अपने अधीन लोगों की अच्छी देखभाल करेंगे और उन्हें कभी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।
पीएएस दुख को कम करता है और नुकसान नहीं पहुंचाता है, इसलिए हिप्पोक्रेटिक शपथ इसका समर्थन करती है। हालांकि, कुछ लोगों का तर्क है कि यह व्यक्ति और उनके प्रियजनों को नुकसान पहुंचाता है।
4. व्यक्तिगत पसंद: इस तर्क के तहत, “गरिमा (डिग्निटी) के साथ मौत” वाक्यांश को एक आंदोलन माना जाता है जो लोगों को अपने जीवनकाल में मरने के तरीके यह चुनने की अनुमति देता है। कुछ लोग अक्सर मौत की लंबी प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहते हैं, क्योंकि वे अपने प्रियजनों पर पड़ने वाले तनाव के बारे में चिंतित रहते हैं।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु क्या है?
निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अवधारणा, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, अन्य सभी प्रकार की इच्छामृत्यु की तरह है, और रोगी के सर्वोत्तम हित में मृत्यु को शीघ्रता से करने की इच्छा पर जोर देती है। निष्क्रिय इच्छामृत्यु इस आधार पर सक्रिय इच्छामृत्यु से भिन्न होती है कि सक्रिय इच्छामृत्यु में कुछ देने में विफल होने से मृत्यु हो जाती है, और यदि वह वस्तु प्रदान की जाती है तो मृत्यु में देरी हो जाती, अर्थात, निष्क्रिय इच्छामृत्यु में चिकित्सक द्वारा रोगी के जीवन भर चलने वाली चिकित्सा को हटाना शामिल है। निष्क्रिय इच्छामृत्यु के उदाहरणों में दवा न देना और रोगी की जान बचाने वाली सर्जरी न करना शामिल हो सकता है।
नतीजतन, निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए तीन आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिए:
- जीवन भर चलने वाले उपचार बंद किए जा रहा है या रोके जा रहा हैं।
- उपचार को बंद करने या रोकने का प्राथमिक लक्ष्य रोगी की मृत्यु में तेजी लाना है।
- तेजी से मौत का औचित्य (जस्टिफिकेशन) यह है कि मरने के लिए रोगी के सर्वोत्तम हित में कार्य किया गया था।
हालांकि, हर स्थिति जहां जीवन भर का उपचार रोक दिया जाता है या स्वचालित (ऑटोमैटिक) रूप से हटा दिया जाता है, वह इच्छामृत्यु के बराबर नहीं होता है। जैसा कि हमने देखा है, निष्क्रिय इच्छामृत्यु में रोगियों के हितों की रक्षा करना शामिल है, जहां एक जोखिम है कि उनके जीवन की गुणवत्ता इतनी खराब होगी कि वे जीवित रहने के बजाय मर जाना चाहते है। लेकिन इलाज रोकने के अन्य कारण भी हैं।
इसके तीन कारण हो सकते हैं।
- पहला, उपचार व्यर्थ हो सकता है और इसलिए अप्रभावी हो सकता है,
- दूसरा, यह लागत प्रभावी भी नहीं हो सकता है।
- यह निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बराबर नहीं है, चाहे वह कितना भी उचित क्यों न हो, क्योंकि यह तीसरी शर्त को पूरा नहीं करता है, अर्थात् रोगी के हित में मृत्यु की जल्दबाजी।
तीसरी शर्त के बारे में बात करते हैं। तीसरे उदाहरण में, अत्यधिक बोझ या नुकसान के कारण उपचार रोक दिया जाता है या वापस ले लिया जाता है। यह निष्क्रिय इच्छामृत्यु का गठन नहीं करता है क्योंकि यह उपरोक्त दूसरी शर्त का उल्लंघन करता है।
कुछ स्थितियों में, रोगी विचाराधीन उपचार से इनकार कर सकता है, जो उपचार को बंद करने या रोकने का चौथा संभावित कारण हो सकता है। एक बुनियादी नियम के रूप में, किसी भी वयस्क (एडल्ट) रोगी को मना करने का अधिकार है, और इस तरह के इनकार के कारण, उस इनकार के साथ चिकित्सक का अनुपालन निष्क्रिय इच्छामृत्यु का गठन नहीं करता है, क्योंकि उपरोक्त दूसरी शर्त संतुष्ट नहीं हुई है।
स्वास्थ्य सेवा प्रदाता (प्रोवाइडर) रोगी के इलाज से इंकार करने पर भी रोगी की पहले मरने की इच्छा को साझा नहीं करता है। यदि एक सक्षम रोगी चिकित्सक के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद इलाज से इंकार कर देता है, तो डॉक्टर केवल इच्छाओं और स्वायत्तता (ऑटोनोमी) का सम्मान कर सकता है। इसके अलावा, मृत्यु से संबंधित रोगियों के लक्ष्यों से सहमत होने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु की वैधता: एक वैश्विक दृष्टिकोण
निष्क्रिय इच्छामृत्यु की नैतिकता और वैधता के बारे में अधिकांश बहस 20वीं सदी के मध्य और 21वीं सदी की शुरुआत के दौरान हुई है। प्राचीन ग्रीक और रोमन मान्यताओं के अनुसार, जीवन को हर कीमत पर संरक्षित नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए, उन्होंने कुछ परिस्थितियों में आत्महत्या की अनुमति दी, जैसे कि जब किसी मरने वाले व्यक्ति को कोई राहत नहीं दी जा सकती थी या जब कोई व्यक्ति अपने जीवन की परवाह नहीं करता है। दुनिया भर के कई देशों में इच्छामृत्यु की वैधता का सारांश नीचे दिया गया है:
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नीदरलैंड
अनुरोध पर जीवन की समाप्ति और सहायता प्राप्त आत्महत्या (समीक्षा (रिव्यू) प्रक्रिया) अधिनियम 2002 नीदरलैंड में इच्छामृत्यु को नियंत्रित करता है। यह अत्यंत विशेष परिस्थितियों में इच्छामृत्यु के साथ-साथ पीएएस को वैध और नियंत्रित करता है।
1970 और 1980 के दशक के दौरान अदालती मामलों की एक श्रृंखला के परिणामस्वरूप नीदरलैंड में प्रतिमान (पैराडिग्म) में एक बदलाव आया, जिसके परिणामस्वरूप चिकित्सा और कानूनी अधिकारियों के बीच एक समझौता हुआ, यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसी भी चिकित्सक पर लंबे समय तक मरने के लिए एक मरीज की सहायता करने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जाएगा क्योंकि कुछ दिशानिर्देशों का पालन किया गया था। चिकित्सकों को निष्क्रिय इच्छामृत्यु करने की अनुमति देने के लिए दिशानिर्देश स्थापित किए गए थे, जब एक सक्षम रोगी स्वेच्छा से मरने का अनुरोध करता है और उनके कार्यों के परिणामों के बारे में पूरी जानकारी रखता है। नीदरलैंड में, निष्क्रिय इच्छामृत्यु की प्रथा को वैध बनाने के लिए नवंबर 2000 में कानून पारित किया गया था। सभी संसदीय चरणों ने 2001 की शुरुआत में कानून को मंजूरी दी थी।
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ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्र की संसद में एक विधेयक के पारित होने के साथ, निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए पहली विधायी स्वीकृति प्राप्त हुई थी। 1996 में अधिनियम बनने के तुरंत बाद, निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विरोध करने वालों ने इसे चुनौती दी थी। एक दशक से अधिक की चुनौतियों के बाद, ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय संसद ने 1997 में संवैधानिक आधार पर निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देने वाले कानून को पारित करने से ऑस्ट्रेलियाई क्षेत्रों को प्रतिबंधित करके कानून को उलट दिया। पश्चिम ऑस्ट्रेलिया स्वैच्छिक चिकित्सकीय सहायता प्राप्त मृत्यु की अनुमति देने वाला कानून अपनाने वाला दूसरा राज्य बन गया। यह कानून 2021 में प्रभावी हो गया। एक और तीन राज्यों, तस्मानिया, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया और क्वींसलैंड ने स्वैच्छिक चिकित्सकीय सहायता प्राप्त मृत्यु की अनुमति देने वाला कानून पारित किया है जो क्रमशः (रिस्पेक्टेवली) 2022 या 2023 में पहले दो राज्यों के लिए प्रभावी होगा।
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बेल्जियम और लक्जमबर्ग
सितंबर 2002 में, बेल्जियम में इच्छामृत्यु कानूनी हो गई। बेल्जियम का कानून उन शर्तों को स्थापित करता है जिनके तहत डॉक्टरों की अनुमति के बिना किसी व्यक्ति द्वारा आत्महत्या की जा सकती है। जो व्यक्ति अपने जीवन को समाप्त करना चाहते हैं, उन्हें अपने कार्यों के बारे में पता होना चाहिए और कानून के तहत इच्छामृत्यु के लिए अपने अनुरोध को दोहराना चाहिए। इसके अतिरिक्त, कानून कहता है कि इच्छामृत्यु के लिए अनुरोध करने के लिए एक व्यक्ति को एक लाइलाज बीमारी की निरंतर और असहनीय शारीरिक या मनोवैज्ञानिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है।
इसी तरह का कानून 2009 में लक्जमबर्ग में भी पारित किया गया था।
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स्पेन
2021 में, स्पेन निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाने वाला अगला देश बन गया।
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क्यूबेक
2014 के दौरान, क्यूबेक प्रांत ने मरने में चिकित्सा सहायता की अनुमति देने वाला कानून पारित किया। 2016 के कानून के परिणामस्वरूप, चिकित्सक-सहायता प्राप्त आत्महत्या और निष्क्रिय इच्छामृत्यु पूरे कनाडा संघ (फेडरेशन) में कानूनी हो गई है।
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इटली
2017 में, इटेलियन विधायिका ने अपने डॉक्टरों के सहयोग से वयस्कों को अपने जीवन के अंत की चिकित्सा देखभाल चुनने की अनुमति देने वाला कानून पारित किया, जिसमें वे स्थितियां भी शामिल हैं जहां वे डॉक्टर से अपने उपचार को अस्वीकार करने का विकल्प चुन सकते हैं। नतीजतन, इटेलियन चिकित्सा उपचार, कृत्रिम (आर्टिफिशियल) पोषण और जलयोजन (हाइड्रेशन) से इनकार कर सकते हैं।
इटली में, सक्रिय इच्छामृत्यु वर्तमान में अवैध है। विशेष रूप से, आपराधिक संहिता का अनुच्छेद 579 किसी को भी उनकी सहमति से किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनने से रोकता है, जबकि अनुच्छेद 580 सहायता प्राप्त आत्महत्या को प्रतिबंधित करता है। वर्तमान में, अनुच्छेद 579 के लिए 6 से 15 वर्ष की जेल और अनुच्छेद 580 के लिए 5 से 12 वर्ष की सजा है। हालांकि, निष्क्रिय इच्छामृत्यु (असाध्य रूप से बीमार लोगों के जीवन रक्षक उपचार को जानबूझकर रोकना) इटली में कानूनी है। इटली का संविधान यह निर्धारित करता है कि “किसी को भी एक विशिष्ट चिकित्सा उपचार प्राप्त करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है जब तक कि यह कानून द्वारा आवश्यक न हो”। इटली एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) राज्य होने के बावजूद, कैथोलिक प्रभाव देश में समाज और संस्कृति के सभी पहलुओं में घुसपैठ करते हैं, जिससे जनता पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है, लेकिन यह धीरे-धीरे कम हो रहा है।
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स्वीडन
स्वीडिश स्वास्थ्य प्राधिकरण ने 2010 में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अधिकृत (ऑथराइज) किया, जिससे रोगियों को यह जानकर, अपना इलाज समाप्त करने की अनुमति मिली कि, इससे उनकी मृत्यु हो जाएगी। डॉक्टरों द्वारा स्पष्टीकरण का अनुरोध करने के बाद यह निर्णय आया क्योंकि स्वीडिश कानून रोगियों को इलाज से इनकार करने की अनुमति देता है, लेकिन सहायता प्राप्त आत्महत्या, जिसमें श्वासयंत्र बंद करना शामिल है, अवैध है। हालांकि, सक्रिय इच्छामृत्यु, जिसमें व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनने वाली दवाओं का इंजेक्शन शामिल है, स्वीडन में अवैध है।
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फ्रांस
फ्रांसीसी सरकार ने 2005 में ‘मरने के अधिकार’ की अवधारणा को पेश करके निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध कर दिया। 2 संसद सदस्य, एक सत्तारूढ़ सोशलिस्ट पार्टी से, और दूसरे विपक्ष से, डॉक्टरों को निष्क्रिय इच्छामृत्यु को ‘गहरी और निरंतर बेहोश करने की क्रिया’ के साथ गठबंधन करने की अनुमति दी, जो गंभीर रूप से बीमार रोगी, जो कोई उपचार प्राप्त नहीं कर रहे हैं या दवा लेना बंद करना चाहते हैं, के लिए है। उनके अनुसार, कुछ मामलों में, जो रोगी निर्णय लेने में असमर्थ थे, उन्हें भी स्थायी रूप से सुलाया जा सकता था। इच्छामृत्यु की बहस अक्सर उन लोगों के बीच एक लड़ाई की ओर ले जाती है जो जीवन पर जोर देते हैं कि उन्हें हर कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए और जो लोग कहते हैं कि असहनीय दर्द सहने वाले रोगी मरने के लायक हैं। हाई-प्रोफाइल एंड-ऑफ-लाइफ कहानियों की एक कड़ी के बाद, फ्रेंकोइस ओलांद (राष्ट्रपति) ने अपने 2012 के चुनाव अभियान के दौरान इस विभाजनकारी मुद्दे को गहराई से देखने के लिए प्रतिबद्ध किया
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अमेरिका
अमेरिका में, 50 राज्यों में सक्रिय इच्छामृत्यु को प्रतिबंधित कर दिया गया है, और ओरेगन, वाशिंगटन और मोंटाना में पीएएस की अनुमति दी गई है। हालांकि, अमेरिका के अधिकांश राज्यों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अवधारणा कानूनी है। इसलिए, जहां भी अनुमति हो, किसी भी प्रकार की इच्छामृत्यु का संचालन करते समय डॉक्टरों को रोगियों की इच्छाओं का पालन करना चाहिए।
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जर्मनी
जर्मनी में, आत्महत्या में सक्रिय रूप से किसी की मदद करना कानून के खिलाफ है। दूसरी ओर, निष्क्रिय इच्छामृत्यु देश में कानूनी है, और किसी भी रोगी द्वारा किए गए अनुरोध (लिखित अनुरोध) पर, डॉक्टर जीवन भर चलने वाले उपायों को रोक सकते हैं। कानून मरने वाले व्यक्ति को दर्द निवारक भी प्रदान करता है।
भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु का वैधीकरण
क्या भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु कानूनी है?
मार्च 2018 में एक बड़े फैसले [कॉमन कॉज (ए रजिस्टर्ड सोसाइटी) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया रिट याचिका (सिविल) संख्या. 2005 का 215], में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देते हुए, गरिमा के साथ मरने के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था।
ऐसा हमेशा से नहीं था क्योंकि मार्च 2018 से पहले भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अवधारणा कानूनी नहीं थी। भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 300 का अपवाद 5 उन चिकित्सकों पर लागू होगा जिन्होंने इच्छामृत्यु को प्रेरित किया या उसमें भाग लिया, क्योंकि उनका संबंधित रोगी की मृत्यु करने का आवश्यक इरादा था, और ‘इरादा’ शब्द ही मायने रखता था।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त निर्णय में कहा कि जारी किए गए निर्देश और दिशानिर्देश तब तक प्रभावी रहेंगे जब तक इस विषय पर एक प्रभावी क़ानून पेश नहीं किया जाता है।
जबकि पीठ (बेंच) के न्यायाधीशों के चार अलग-अलग दृष्टिकोण थे, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि ‘जीवित इच्छा’ की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि किसी व्यक्ति को वानस्पतिक (वेजीटेटिव) स्थिति में पीड़ित होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है यदि वह जीना नहीं चाहता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2011 में अरुणा शानबाग मामले में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता दी। मामले के माध्यम से, सर्वोच्च न्यायालय ने उन रोगियों से जीवन-निर्वाह देखभाल वापस लेने की अनुमति दी जो स्वयं के लिए एक सूचित निर्णय लेने में असमर्थ थे।
निर्णय गैर-लाभकारी संगठन ‘कॉमन कॉज़’ द्वारा दायर 2005 की जनहित याचिका (पीआईएल) से उत्पन्न हुआ है। इस मामले की पैरवी प्रशांत भूषण वकील ने की थी। एनजीओ ने अदालत से ‘जीवित इच्छा’ को मान्यता देने के लिए कहा, और सख्ती से तर्क दिया कि जब एक चिकित्सा विशेषज्ञ कहता है कि लाइलाज बीमारी वाला व्यक्ति एक ऐसे चरण पर पहुंच गया है जहा वो ठीक नहीं हो सकता है, तो उसे जीवन समर्थन से इनकार करने का अधिकार दिया जाना चाहिए, ताकि एक विस्तारित अवधि के कष्टदायी दर्द से बचा जा सके।
इस ऐतिहासिक मामले में पीठ ने पहले 11 अक्टूबर, 2017 वाले अपने फैसले में कोई बदलाव न करने का निर्णय लिया था। पीठ के अनुसार, शांति से मरने के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार से अलग नहीं किया जा सकता है।
ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य [1969 एआईआर 946, 1996 एससीसी (2) 648] में, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भारत में इच्छामृत्यु को वैध बनाने के पक्ष में कई तर्क दिए गए थे। प्रमुख तर्कों में से एक यह था कि भारतीय संविधान में “जीवन के अधिकार” में “मरने का अधिकार” भी शामिल है।
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है, और इस प्रकार, इस बात को दर्शाने के लिए इसका विस्तार नहीं किया जा सकता है। नतीजतन, सर्वोच्च न्यायालय यह फैसला नहीं करता है कि इच्छामृत्यु असंवैधानिक है।
उपरोक्त निर्णय से मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:
- सर्वोच्च न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता दे दी है। निर्णय के अनुसार, एक रोगी जो निर्णय लेने में सक्षम है, और एक रोगी जो निर्णय लेने में असमर्थ है, दोनों को निष्क्रिय इच्छामृत्यु माना जाएगा।
- न्यायालय ने फैसला सुनाया कि व्यर्थ चिकित्सा उपचार को बंद करना जैसे चिकित्सा निर्णयों के संदर्भ में एक मरीज की जीवित इच्छा एक वैध कानूनी दस्तावेज है।
- निर्णय चिकित्सा उपचार से इनकार करने के लिए एक सूचित निर्णय लेने के अधिकार की पुष्टि करता है, जिसमें जीवन रक्षक उपकरणों को बंद करना भी शामिल है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु के वैधीकरण के बाद सरकार का समर्थन
23 दिसंबर 2014 को जारी एक प्रेस में, भारत सरकार ने राज्य सभा में एक भाषण के बाद, निष्क्रिय इच्छामृत्यु से संबंधित निर्णय-कानून के समर्थन और पुनर्वैधीकरण (रिवेलीडेशन) की घोषणा की है। भारत सरकार ने कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशेष मामले में दया हत्या की याचिका को खारिज करते हुए निष्क्रिय इच्छामृत्यु के मामलों से निपटने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश तैयार करने की पहल की है। तदनुसार, बेरहम हत्याओं के मामले पर कानून और न्याय मंत्रालय के साथ चर्चा की गई, और यह निर्णय लिया गया कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही दिशानिर्देश निर्धारित कर दिए हैं, इसलिए उनका पालन किया जाना चाहिए। जैसा कि इस विषय पर कोई कानून पारित नहीं किया गया था, और यह कि उपरोक्त मामले (कॉमन कॉज (ए रजिस्टर्ड सोसायटी) बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया) में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सभी पर बाध्यकारी है।
अदालत के फैसले के परिणामस्वरूप, घातक इंजेक्शन के माध्यम से सक्रिय इच्छामृत्यु को खारिज कर दिया गया था। यह देखते हुए कि भारत में इच्छामृत्यु को विनियमित करने वाला कोई कानून नहीं है, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब तक भारत की संसद इस मुद्दे पर उपयुक्त कानून नहीं बनाती, तब तक उसका निर्णय देश का कानून बन जाता है। सक्रिय इच्छामृत्यु अभी भी भारत के साथ-साथ अधिकांश अन्य देशों में अवैध है, जिसमें जीवन समाप्त करने की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में घातक यौगिकों (कंपाउंड) का उपयोग शामिल है। सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश कानून हैं क्योंकि जब तक संसद कानून पारित नहीं करती तब तक इच्छामृत्यु से संबंधित कोई भारतीय कानून नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित दिशानिर्देश निर्धारित किए:
- जीवन समर्थन बंद करने के निर्णय के लिए माता-पिता, पति या पत्नी या अन्य करीबी रिश्तेदार जिम्मेदार हैं, लेकिन, उनकी अनुपस्थिति में, मित्र के रूप में कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति या समूह निर्णय ले सकता है। मरीज के डॉक्टर भी निर्णय ले सकते हैं। लेकिन निर्णय रोगी के सर्वोत्तम हित में लिया जाना चाहिए, और यह मनमाना (आर्बिट्ररी) नहीं होना चाहिए।
- हालांकि जीवन समर्थक को बंद करने का फैसला रिश्तेदार या डॉक्टर ले सकते हैं, लेकिन उच्च न्यायालय को इसकी मंजूरी देनी होती है।
- इस तरह का एक आवेदन (एप्लीकेशन) प्राप्त होने पर, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को तुरंत कम से कम दो न्यायाधीशों वाली एक पीठ बुलानी चाहिए जो यह तय कर सके कि आवेदन को मंजूरी दी जाए या नहीं। यह तीन प्रतिष्ठित डॉक्टरों का एक पैनल होगा जिसे पीठ नामांकित करेगी, जो मरीज की स्थिति पर रिपोर्ट करेगी। फैसला सुनाए जाने से पहले राज्य और करीबी परिवार के सदस्यों को सूचित किया जाना चाहिए। पक्षों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिया जा सकता है।
- स्वस्थ मानसिक स्थिति वाला व्यक्ति ही अग्रिम निर्देशों का पालन कर सकता है। यह स्वैच्छिक और बिना जबरदस्ती के होना चाहिए। एक लिखित बयान होगा कि चिकित्सा उपचार कब वापस लिया जा सकता है या कोई चिकित्सा उपचार नहीं दिया जा सकता है जो मृत्यु की प्रक्रिया में देरी करता है, या दर्द और पीड़ा का कारण बनता है।
- जब निष्पादक (एग्जिक्युटर) दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करता है, तो दो प्रमाणित गवाह मौजूद होने चाहिए, और प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट (जेएमएफसी) को उस पर प्रतिहस्ताक्षर (काउंटरसाइन) करना चाहिए। यह प्रमाणित करने के लिए गवाहों और जेएमएफसी की जिम्मेदारी है कि दस्तावेज़ पर स्वतंत्र रूप से और बिना दबाव के हस्ताक्षर किए गए थे। दस्तावेज़ की एक प्रति (कॉपी) जेएमएफसी द्वारा अपने कार्यालय में रखी जाएगी, और एक प्रति संरक्षण के लिए अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिकशन) के जिला न्यायालय के रजिस्ट्रार को अग्रेषित (फॉरवर्ड) की जाएगी। यदि निष्पादन के समय निष्पादक मौजूद नहीं है, तो जेएमएफसी निष्पादक के परिवार के सदस्यों को तत्काल सूचित करेगा। अधिसूचना (नोटिफिकेशन) की एक प्रति स्थानीय सरकार को दी जाएगी।
- इलाज करने वाला चिकित्सक न्यायाधिकारी जेएमएफसी से निष्पादन की प्रामाणिकता को सत्यापित (वेरिफाई) करेगा यदि निष्पादक ठीक होने की कोई उम्मीद के बिना अंतिम रूप से बीमार हो जाता है। चिकित्सक को निष्पादक या अभिभावक (गार्डियन)/करीबी रिश्तेदार को बीमारी की प्रकृति, उपलब्ध चिकित्सा देखभाल और उपचार के वैकल्पिक रूपों के परिणामों के बारे में सूचित करना चाहिए और निर्देशों का पालन करने की आवश्यकता होने पर उपचार न किया जाना चाहिए।
- चिकित्सा बोर्ड का गठन अस्पताल द्वारा किया जाएगा जिसमें उपचार विभाग के प्रमुख और कम से कम तीन अनुभवी चिकित्सक होंगे जो संयुक्त रूप से रोगी के रिश्तेदारों के साथ मिलकर यह तय करेंगे कि चिकित्सा उपचार वापस लेना है या नहीं।
- यदि चिकित्सा बोर्ड प्रमाणित करता है कि निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए तो अस्पताल को कलेक्टर को प्रस्ताव के बारे में सूचित करना चाहिए। कलेक्टर द्वारा जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और तीन विशेषज्ञ डॉक्टरों के साथ मिलकर एक अतिरिक्त चिकित्सा बोर्ड का गठन किया जाएगा। यदि रोगी संवाद (कम्युनिकेट) करने में सक्षम नहीं है, तो बोर्ड रोगी की जांच करेगा और उपचार वापस लेने के लिए सहमत हो सकता है। अगर बोर्ड इलाज वापस लेने का फैसला करता है, तो उन्हें अपने फैसले के बारे में जेएमएफसी को सूचित करना होगा। सभी पहलुओं की जांच करने के बाद, जेएमएफसी रोगी का दौरा करता है और इसके कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) की अनुमति दे सकता है।
भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की स्वीकृति
भारत में, धार्मिक विचार अकाल मृत्यु का पूरी तरह से विरोध करते हैं, और इसलिए, जीवन का अधिकार गरिमा के साथ मरने के अधिकार से अधिक हो सकता है, जिसे 2018 में उपर्युक्त मामले में अभी कानूनी मान्यता दी गई है।
एक मौलिक अधिकार के रूप में गरिमा के साथ मरने के अधिकार की सर्वोच्च न्यायालय की स्वीकृति के बावजूद, भारत में धार्मिक समुदाय, जो इच्छामृत्यु का कड़ा विरोध करते हैं, महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को मारना, चाहे सक्रिय इच्छामृत्यु (पीएएस) या निष्क्रिय इच्छामृत्यु द्वारा, सुन्नियों और शिया दोनों द्वारा भगवान के खिलाफ अवज्ञा का कार्य माना जाता है। इसी तरह के दृष्टिकोण से, भारतीय ईसाइयों द्वारा इच्छामृत्यु की अवधारणा का विरोध किया जाता है। इच्छामृत्यु कैथोलिक चर्च की मान्यताओं के खिलाफ है क्योंकि यह जीवन की पवित्रता का समर्थन करता है।
चिकित्सा पेशेवरों के अनुसार, देश भर के अधिकांश अस्पतालों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु पहले से ही एक आम बात है, क्योंकि कई गरीब रोगी और उनके परिवार उन्हें जीवित रखने की भारी लागत के कारण उपचार समाप्त करना पसंद करते हैं। दूसरी ओर, जो लोग इसे वहन कर सकते हैं, उनके लिए उन्नत चिकित्सा तकनीकों और उपशामक (पैलिएटिव) देखभाल के साथ जीवन को बनाए रखना अधिक नियमित हो गया है।
निष्कर्ष
‘कॉमन कॉज’ का उपरोक्त निर्णय दूरगामी प्रभाव वाला महत्वपूर्ण निर्णय है। निर्णय यह आश्वासन देता है कि जो लोग स्वस्थ होने में असमर्थ हैं और उन्हें चिकित्सकीय रूप से अयोग्य माना जाता है, जो अपने जीवन को समाप्त करना चाहते हैं, उन्हें निष्क्रिय इच्छामृत्यु से भारी मात्रा में लाभ मिल सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि परिवार इस प्रावधान का दुरुपयोग नहीं करते हैं और ऐसे व्यक्तियों से छुटकारा पाते हैं जो परिवार के लिए ‘फिट’ नहीं हैं, और इसलिए, इसे सुनिश्चित करने के लिए कुछ उपाय किए गए हैं।
यह थोड़ी आश्चर्य की बात है कि उपरोक्त ऐतिहासिक निर्णय ने भारत के उपशामक देखभाल समुदाय के बीच परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाओं को प्रेरित किया है। जीवन के अंत के मुद्दों पर भारतीय कानूनी स्थिति को सबसे अच्छे रूप में भ्रमित करने वाला बताया गया है, और निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाने वाले नए कानून की शर्तों की समीक्षा ने कई स्पष्ट विसंगतियां दिखाई हैं।
एक अलग परिप्रेक्ष्य में, सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय, हालांकि, निष्क्रिय इच्छामृत्यु में कुछ स्पष्टता जोड़ता है। ग्लासगो विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक लेख, निरर्थक उपचार और अग्रिम निर्देशों को वापस लेने/रोकने की न्यायिक स्वीकृति को कुछ भ्रामक शब्दावली के साथ सही दिशा में पहला कदम माना जा सकता है। इसके अलावा, जीवन के अंत में गरिमा प्रदान करने और बनाए रखने के बारे में अधिक स्पष्टता, साथ ही खुले और ईमानदार सामुदायिक संवाद आवश्यक हैं।
संदर्भ
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