यह लेख Sukeerti K G द्वारा लिखा गया है, जो लॉसीखो से एडवांस सिविल लिटिगेशन: प्रैक्टिस, प्रोसेसर एंड ड्राफ्टिंग में सर्टिफिकेट कोर्स कर रही हैं। इस लेख में रिविजन पिटीशन कैसे ड्राफ्ट की जाती है के बारे में चर्चा की गई है और पिटीशन ड्राफ्ट करने के लिए एक सैंपल भी दिया गया है। इस लेख का अनुवाद Archana Chaudhary द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
क्या आप इस बात पर अटके हुए हैं कि हाई कोर्ट के समक्ष एक पिटिशन कैसे ड्राफ्ट की जाए जिससे आपके मामले को अच्छे तरीके से समझने की अधिक संभावना हो? या क्या आप एक कॉम्प्रिहेंसिव चेकलिस्ट चाहते हैं जिसका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है कि आपके आवेदन (एप्लीकेशन) में रिविजन पिटिशन का कोई भी आवश्यक तत्व रह ना जाए? या क्या आप केवल यह जानना चाहते हैं कि एक रिविजन पिटिशन कोर्ट में व्यावहारिक (प्रैक्टिकली) रूप से कैसे काम करती है? तब तो यह लेख आपके लिए ही है।
रिविजन पिटीशन क्या है?
रिविजन पिटीशन एक हाई कोर्ट में अपने सबोर्डिनेट कोर्ट्स द्वारा की गई गलतियों को सुधारने के लिए किया गया एक आवेदन है। किसी राज्य के हाई कोर्ट को अपने अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) के तहत सबोर्डिनेट कोर्ट के कार्यों की निगरानी करने की शक्ति होती है। यदि सब-कोर्ट ने कोई अवैधता (इल्लीगेलिटी), अनियमितता (इरेगुलेरिटी), चंचलता से (कैप्रिशियसली), मनमाने ढंग से कार्य किया है, या प्रक्रिया में कुछ गलती की है, तो हाई कोर्ट को निगरानी, संशोधन और सुधार करने की शक्ति है। उदाहरण के लिए: मद्रास हाई कोर्ट के पास उन सभी कोर्ट्स की निगरानी करने की शक्ति है जो उसके अधिकार क्षेत्र में हैं। सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 की धारा 115 बताती है कि हाई कोर्ट इस शक्ति का प्रयोग कब कर सकते हैं। (यहां ‘सीपीसी’ के रूप में रेफर्ड है)।
इस प्रकार, हाई कोर्ट सबोर्डिनेट कोर्ट द्वारा किए गए आदेश को रिवाइज करता है यदि कोर्ट ने अधिकार क्षेत्र संबंधी गलती की है। यह लेख मुख्य रूप से इस बात के लिए है कि रिविजन पिटिशन कैसे ड्राफ्ट किया जाना चाहिए न कि रिविजन पिटिशन क्या है।
एक स्मॉल कॉज कोर्ट में एक मुकदमा (सूट) दायर किया जाता है और स्मॉल कॉज कोर्ट की आर्थिक (पिक्यूनियरी) सीमा 10,000 रुपये है, विवाद में पैसा 5000 रुपये है। धारा 96(4) के तहत स्मॉल कॉज कोर्ट की डिक्री से कोई अपील नहीं होगी यदि विषय का मूल्य रु. 10,000 से अधिक नहीं है,जब तक कि यह कानून के प्रश्न पर आधारित न हो। इसलिए, इस मामले में, हाई कोर्ट या उसके सबोर्डिनेट किसी कोर्ट में अपील नहीं की जा सकती। लेकिन, यदि धारा 115 के तहत प्रीरिक्विसाइट शर्तों को पूरा किया जाए तो हाई कोर्ट में एक रिविजन पिटिशन दायर की जा सकती है। इस प्रकार, यदि कोई अपील नहीं होती है, और मामला तथ्य के प्रश्न से संबंधित है, न कि कानून के प्रश्न से और ऐसा प्रश्न अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में विफलता से संबंधित है या अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में निहित (वेस्टेड) नहीं है या कोर्ट ने अवैध या मेटेरियल अनियमितता के साथ कार्य किया है तो हाई कोर्ट में एक रिविजन पिटिशन दायर की जा सकती है।
आप रिविजन पिटिशन कब दायर कर सकते हैं?
- आक्षेपित (इंपंड) आदेश एक निश्चित मामले के बराबर है।
- मामले का फैसला हाई कोर्ट के सबोर्डिनेट कोर्ट ने किया है। (एक कोर्ट एक मुकदमे में कई आदेश पास कर सकती है और ऐसा आदेश को अंतिम होना जरूरी नहीं है।)
- हाई कोर्ट या हाई कोर्ट के सबोर्डिनेट किसी अन्य कोर्ट में मुकदमे के विरुद्ध कोई अपील दायर नहीं की जानी चाहिए।
- सबोर्डिनेट कोर्ट में ऐसा प्रतीत होता है:
- प्रयोग किया गया अधिकार क्षेत्र कानून द्वारा इसमें निहित नहीं है;
- निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में विफल;
- न्यायाधीश के अभ्यास में अवैध रूप से या मेटेरियल अनियमितता में कार्य किया।
आपको रिविजन पिटिशन कहाँ दायर करनी चाहिए?
रिविजनरी शक्ति केवल राज्य के हाई कोर्ट द्वारा ही लागू की जा सकती है। यह हाई कोर्ट के अपीलीय अधिकार क्षेत्र के अंदर आती है। यह लगभग हाई कोर्ट के आर्टिकल 226 और 227 के तहत कोट्स की शक्ति के समान है, लेकिन रिट अधिकार क्षेत्र शक्तियां बहुत व्यापक (वाइड) हैं।
सीमा अवधि (लिमिटेशन पीरियड)
रिविजन आवेदन दाखिल करने की सीमा की अवधि सबोर्डिनेट कोर्ट के आदेश या डिक्री की तारीख से 90 दिन है।
उदाहरण (प्रेसीडेंट्स)
- हाई कोर्ट निचली कोर्ट के फैसले में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकता जब तक कि रिकॉर्ड पर गलती स्पष्ट न हो।
- रिविजनल शक्तियों का प्रयोग करने में हाई कोर्ट किसी भी परिस्थिति में (यहां तक कि जब पक्षकार एक सूट की सहमति देते हैं) धारा 113 के तहत कन्फर्ड किसी अन्य बिंदु पर निर्णय नहीं ले सकता है। ऐसा करने से सूट को हाई कोर्ट के मूल अधिकार क्षेत्र के तहत विचारण (ट्राइड) के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा, जिसकी सीपीसी के तहत अनुमति नहीं है।
- रिविजन पिटिशन में हाई कोर्ट का दायरा व्यापक है, लेकिन, कोर्ट के पास एक्ट के प्रावधान (प्रोविजन) की वैधता तय करने की शक्ति नहीं है।
- जहां लोअर कोर्ट ने माना कि प्रो-नोट पर अपर्याप्त रूप से मुहर लगी थी और इस प्रकार यह सबूत के रूप में अस्वीकार्य है, हाई कोर्ट के रिविजनल अधिकार क्षेत्र ने इसको बरकरार रखा था। वर्तमान सूट में, प्रो-नोट के रूप में दस्तावेज़ को संतुष्ट करने वाली सभी शर्तें संतुष्ट थीं और यदि यह ऐसा मामला होता जहां पक्ष ने प्रो-नोट पर पर्याप्त रूप से मुहर लगा दी होती, तो इसे स्वीकार कर लिया जाता। और यदि ऐसा मामला होता जहां पाक्ष ने प्रो-नोट पर पर्याप्त रूप से मुहर लगा दी होती, तो इसे स्वीकार्य माना जाता। लोअर कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में गलती की थी क्योंकि स्टाम्प एक तकनीकीता (टेक्निकेलिटी) है और इसे बाद के चरण (स्टेज) में ठीक किया जा सकता है। जब साक्ष्य किसी मामले के लिए महत्वपूर्ण है तो इसे केवल तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है।
रिविजन पिटिशन मामले के लिए चेकलिस्ट
- एक प्रीमा फेसी मामला आपके पक्ष में होना चाहिए जहां लोअर कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर काम किया है या अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में विफल रहा है।
- आदेश अंतिम होना चाहिए, यह अस्थायी (टेंपरेरी) अवधि के लिए या अंतरिम (इंटरिम) आदेश नहीं होना चाहिए।
- आदेश एक अपीलीय आदेश नहीं होना चाहिए अर्थात, कोई भी अपील हाई कोर्ट (प्रत्यक्ष (डायरेक्टली) या अप्रत्यक्ष (इनडायरेक्टली) रूप से) या किसी अन्य कोर्ट में नहीं हो सकती है।
रिविजन पिटिशन के लिए आपका ड्राफ्ट कैसा होना चाहिए?
- आवश्यक फॉर्मेट का पालन किया जाना चाहिए जो कि कारण शीर्षक (टाइटल), कोर्ट का नाम, पक्षों का मेमो, सूचकांक (इंडेक्स) आदि है। (राज्य लागू नियमों को देखें क्योंकि विभिन्न राज्यों में कुछ अतिरिक्त आवश्यकताएं हैं। दिल्ली हाई कोर्ट में आपको निश्चित रूप से एक सूचकांक और तिथियों और घटनाओं की सूची प्रदान करनी होती है)।
- पहले पैरा में कहा जाना चाहिए कि सीपीसी की धारा 115 के तहत एक रिवीजन पिटिशन दायर की गई है और इस तरह याचिकाकर्ता (पिटीशनर) सबोर्डिनेट कोर्ट के आदेश को चुनौती दे रहा है। साथ ही, केस नंबर का उल्लेख करें और उस आदेश की प्रमाणित (सर्टिफाइड) कॉपी साथ लगा दे जिसे आप चुनौती दे रहे हैं।
- संक्षेप (ब्रीफ) में वर्णन करें कि सबोर्डिनेट कोर्ट ने कहाँ गलती की है और कोर्ट अपने कारण का औचित्य (जस्टिफाई) सिद्ध करें। यह पैरा आपके मामले की रूपरेखा को व्यक्त करने में सक्षम होना चाहिए और न्यायाधीश के पास नीचे दिए गए पैरा में आप जो समझाने जा रहे हैं उसकी एक उचित रूपरेखा होनी चाहिए।
- ओरिजनल सूट का संक्षिप्त विवरण (स्टेटमेंट) दें ताकि न्यायाधीश को इस बात की बेहतर समझ हो कि आपने रिविजन के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाया है। मामले के तथ्यों में न जाए और विस्तार से व्याख्या करें क्योंकि हाई कोर्ट केवल यह देखता है कि क्या कोई ‘अधिकार क्षेत्र की गलती’ हुई है।
- 3 से 7 पैराग्राफ में संक्षिप्त तथ्यों को बताने के बाद (कितने पैराग्राफ का कोई नियम नहीं है, यह स्पष्टीकरण विवाद और जो मामला है उस पर निर्भर करता है, कुछ मामलों में लंबे पैराग्राफ की आवश्यकता हो सकती है और कुछ को नहीं। इस नियम को लागू करने के लिए कोई सीधा जैकेट फॉर्मूला नहीं है)।
- आपको तथ्यों को संक्षेप में बताना चाहिए और कहां सबोर्डिनेट कोर्ट ने अधिकार क्षेत्र संबंधी गलती की थी या अवैधता या अनैतिकता के साथ कार्य किया था। यह अनिवार्य रूप से रिविजन पिटिशन दायर करने के आधार के तहत हो सकता है।
- आधार के तहत उन सभी कारणों की व्याख्या करें जिनके कारण वर्तमान रिवीजन पिटिशन दायर की गई। कोर्ट को लागू वैध प्रावधान प्रदान करें और जहां सब-कोर्ट अपनी शक्तियों का उपयोग करने में विफल रहा हो या उसके पास कोई शक्ति न हो, लेकिन इसका इस्तेमाल किया है जिससे याचिकाकर्ता के साथ अन्याय हुआ है और यदि यह प्राकृतिक न्याय सिद्धांत (नेचुरल जस्टिस) या निष्पक्ष परीक्षण (फेयर ट्रायल) का उल्लंघन है तो वह भी बताए।
- यदि, एक मामले में आपके लिए आधारों को खोजना कठिन है, तो आप किसी निर्णय का मूल/रेशियो ले सकते हैं और उसे आधार के रूप में उद्धृत (कोट) कर सकते हैं। जैसे सुप्रीम कोर्ट के मामले में एपेक्स कोर्ट ने यह माना था कि इस प्रकार की कार्यवाही में इसका पालन किया जाना चाहिए। लोअर कोर्ट ने इसकी अवहेलना (डिसरिगार्ड) की है। इस प्रकार, यह एक अनियमितता है और रिविजन के लिए उपयुक्त मामला है।
- बताएं कि हाइयर कोर्ट का हस्तक्षेप क्यों आवश्यक है और गैर-हस्तक्षेप के परिणामों की संक्षेप में व्याख्या करें। यह भी बताएं कि अगर कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया तो यह याचिकाकर्ता के साथ घोर अन्याय होगा।
- सुनवाई की अगली तारीख बताएं और मामला किस कोर्ट में पेंडिंग है। अपने वादपत्र (प्लेंट)/लिखित विवरण (रिटेन स्टेटमेंट) की एक कॉपी भी संलग्न (अटैच) करें, यदि रिविजनरी कोर्ट समस्या को बेहतर ढंग से समझने के लिए वादपत्र/लिखित कथन को देखना महत्वपूर्ण समझता है। तिथि प्रदान करने का कारण यह है कि यदि स्टे आदेश दिया जाता है, तो कोर्ट निश्चित रूप से जानना चाहेगी कि अगली सुनवाई कब होगी।
- अंतिम पैराग्राफ में कहा गया है कि हाई कोर्ट या उसके सबोर्डिनेट किसी अन्य कोर्ट में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई अपील नहीं है।
- प्रार्थना में उन सटीक आवश्यकताओं या उपायों का उल्लेख होना चाहिए जो आप कोर्ट से चाहते हैं।
सेंपल ड्राफ्ट रिविजन पिटिशन
मद्रास के हाई कोर्ट में
सिविल अपीलीय अधिकार क्षेत्र
2020 की सिविल रिविजन संख्या 333
पक्षों का मेमो
नाम &
पता……………………………………………………………………………….याचिकाकर्ता (वादी (प्लेंटिफ)/प्रतिवादी (डिफेंडेंट))
बनाम
नाम &
पता ………………………………………………… ……………………………….प्रतिवादी (वादी/प्रतिवादी)
सूचकांक (इंडेक्स)
क्रमांक संख्या | दस्तावेज़ों का विवरण | पृष्ठ संख्या |
1. | कोर्ट का शुल्क | |
2. | पक्षों का मेमो | |
3. | तिथियों और घटनाओं की सूची | |
4. | सीपीसी, 1908 की धारा 115 के तहत रिविजन मेमो | |
5. | आक्षेपित आदेश दिनांक 15/07/2019 | |
6. | वकालतनामा |
जगह:
दिनांक :
(याचिकाकर्ता के वकील)
मद्रास के हाई कोर्ट में
सिविल अपीलीय अधिकार क्षेत्र
2020 की सिविल रिविजन संख्या 333
नाम…………………………………………………………………………………वादी (वादी/प्रतिवादी)
बनाम
नाम…………………………………………………………………………………..प्रतिवादी (वादी/प्रतिवादी)
सिविल प्रोसिजर कोड, 1908 की धारा 115 के तहत रिविजन पिटिशन _________ में पास आदेश को चुनौती देती है।
याचिकाकर्ता सम्मानपूर्वक दिखाता है:
- कि, याचिकाकर्ता द्वारा सिविल प्रोसिजर कोड (सीपीसी), 1908 की धारा 115 के तहत तत्काल रिविजन पिटिशन दायर की गई है, जो सिविल जज, एल.डी.________ द्वारा पास आदेश दिनांक _______ से व्यथित है। नई दिल्ली 2019 के सिविल सूट नंबर ________ में इसे अलग रखने की मांग कर रहे हैं। आक्षेपित आदेश की प्रमाणित कॉपी इसके साथ संलग्न है और एनेक्सर A1 के रूप में चिह्नित है।
- याचिकाकर्ता ने माननीय कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग की क्योंकि सबोर्डिनेट कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण गवाहों को जो कि मामले के निर्धारक (डिटरमिनेंट) थे, उनको बुलाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट के हस्तक्षेप के बिना, और इस तरह समन का आदेश जारी किए बिना, ऐसा कोई तरीका नहीं है कि वे शपथ पर उपस्थित हों और जवाब दें। गवाह के उपस्थित न होने से याचिकाकर्ता को गंभीर नुकसान हुआ है। इस प्रकार, यह पिटिशन सबोर्डिनेट कोर्ट को गवाह को समन जारी करने का निर्देश देती है और इस तरह कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करती है।
मामले के संक्षिप्त तथ्य
- पब्लिक सेक्टर यूनिट (पीएसयू) द्वारा जारी एक टेंडर की संयुक्त रूप से बोली लगाने के लिए वादी और प्रतिवादी के बीच किए गए कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर याचिकाकर्ता द्वारा __________ पर मनी सूट दायर की गई थी। यह सहमति हुई कि बिक्री से प्राप्त आय बोलीदाताओं (बिडर्स) को समान रूप से वितरित की जाएगी।
- पक्षों ने अपने पक्ष में 5,00,000 रुपये के टेंडर सुरक्षित किए और राशि प्रतिवादी के खाते में जमा कर दी गई थी। लेकिन, टेंडर का मूल्य कम से कम रु. 10,00,000 था।
- प्रतिवादी ने बिक्री की आय प्राप्त करने के बाद वादी को सूचित किया कि उसने 5,00,000 रुपये के लिए टेंडर स्वीकार कर लिया है। जब वादी ने प्रतिवादी से पूछा कि इतनी कम राशि क्यों सुरक्षित की गई, तो प्रतिवादी ने कपटपूर्ण (इवेसिव) जवाब दिया और कभी नहीं बताया कि इतनी कम राशि क्यों मिली, जबकि स्पष्ट रूप से फिल्मों का मूल्य बहुत अधिक था। कॉन्ट्रैक्ट के नियमों और शर्तों के अनुसार, वित्तीय (फाइनेंशियल) आय का आधा वादी का था।
- कि ट्रायल कोर्ट ने 19/01/2019 को मुद्दे तय किए और याचिकाकर्ता को सबूत पेश करने का निर्देश दिया, जिस पर याचिकाकर्ता ने कोर्ट में नीचे दिए चार गवाहों को यह अनुरोध करते हुए प्रस्तुत किया कि उस कोर्ट द्वारा गवाह को बुलाया जाना चाहिए।
- वादी ने 4 गवाहों को सूचीबद्ध किया, जिनमें से 2 पीएसयू के गवाह हैं।
- न्यायाधीश ने इस तरह के अनुरोध पर विचार करने से इनकार कर दिया और वादी को 2 पीएसयू गवाहों की उपस्थिति को स्वयं सुरक्षित करने का निर्देश दिया।
- न्यायाधीश ने दो अन्य गवाहों से जिरह (क्रॉस-एग्जामिनिंग) करने के बाद वादी के गवाह को बंद करने का आदेश पास किया था (आदेश दिनांक 15/07/2019)।
- याचिकाकर्ता के, 2 गवाह पेश हुए और उनके बयान दर्ज किए गए। तथापि, लोअर कोर्ट के लर्नेड प्रेसिडिंग अधिकारी ने एक आदेश पास किया कि शेष गवाहों को याचिकाकर्ता-वादी द्वारा कोर्ट की सहायता के बिना अपने दम पर पेश किया जाए। याचिकाकर्ता के अनुरोध के बावजूद यह आदेश पास किया गया था कि सूची में नामित कम से कम उन गवाहों को कोर्ट द्वारा बुलाया जाना चाहिए जो राज्य के कर्मचारी हैं, क्योंकि उन्हें पेश करना और कुछ आधिकारिक रिकॉर्ड साबित करना आवश्यक है।
ग्राउंड्स:
- कि इस रिविजन में आक्षेपित आदेश द्वारा लर्नेड ट्रायल कोर्ट की सुनवाई की तिथि पर याचिकाकर्ता-वादी के साक्ष्य को इस आधार पर बंद कर दिया कि शेष गवाहों को उसके द्वारा पेश नहीं किया गया था।
- यह कि आक्षेपित आदेश ने याचिकाकर्ता के लिए प्रेज्यूडिस पैदा किया है और यदि उसे याचिकाकर्ता के सूट को शुरू करने की अनुमति दी जाती है तो उसका सूट विफल होना तय है।
- न्यायाधीश सिविल प्रोसिजर कोड, 1908 के आदेश XVI, नियम I के तहत उसे दी गई शक्तियों का प्रयोग करने में विफल रहे हैं।
- कि ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता-वादी को अपने गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट की सहायता से अनुचित रूप से इनकार किया है। न्याय के हितों की मांग है कि उसे इस संबंध में सभी कानूनी सहायता प्रदान की जाए।
- पीएसयू के 2 गवाहों को समन करने के मकसद से मामले पर काफी असर पड़ा है। केवल उन्हीं पर गवाही देने से पक्षकारों के अधिकारों का निर्णय किया जा सकता है और न्याय को कायम रखा जा सकता है और पक्षों के वास्तविक अधिकारों का निर्णय किया जा सकता है।
- कि यह प्राकृतिक न्याय और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- वादी का कहना है कि सभी कोर्ट शुल्क का भुगतान कर दिया गया है।
- वादी का निवेदन है कि हाई कोर्ट या उसके सबोर्डिनेट किसी अन्य कोर्ट में कोई अपील नहीं है।
प्रार्थना
ऊपर वर्णित तथ्यों और परिस्थितियों में याचिकाकर्ता प्रार्थना करता है कि यह माननीय कोर्ट उस पर कृपा करें
- रिविजन के तहत आदेश को रद्द करें और क्वॉश करें।
- वादी-साक्षियों को समन करने के लिए कोर्ट की सहायता प्रदान करने के लिए नीचे के कोर्ट को निर्देश दें।
और कोई भी अन्य आदेश पास करें जो कोर्ट दी गई परिस्थितियों में सही और उचित समझे और इस प्रकार न्याय प्रदान करे।
याद रखने योग्य बातें (पॉइंट्स टू रिमेंबर)
- रिविजनरी अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने की शक्ति हाई कोर्ट की डिस्क्रेशनरी है। अपील की तुलना में रिविजन पिटिशन दायर करने के लिए सूट के पक्षकारों के पास कोई पूर्ण (एब्सोल्यूट) शक्ति नहीं है।
- एक रिविजन पिटिशन केवल उन आदेशों के विरुद्ध दायर की जा सकती है जो अंतिम रूप प्राप्त कर चुके हैं। अंतरिम या इंटरलॉक्टरी आदेशों के मामले मे जो अस्थायी अवधि के लिए हैं, जैसे विवादित पक्ष को 6 महीने की अवधि के लिए अलग करने से प्रतिबंधित (रिस्ट्रिक्टिंग) करने वाला आदेश में कोई रिविजन पिटिशन नहीं होगी। ध्यान दें कि टेंपरेरी इनजंक्शन, परमानेंट और मेंडेटरी इंजेक्शन अपील योग्य आदेश हैं और इसलिए एक रिविजन पिटिशन नहीं होगी।
- अपील और धारा 115 के तहत मामले के बीच स्पष्ट अंतर है। हाई कोर्ट एक रिविजन पिटिशन में मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में नहीं जाता है। यह केवल उस पहलू को देखता है जहां लोअर कोर्ट ने अधिकार क्षेत्र ग्रहण (एज्यूम) किया था, जहां उसका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था या जहां लोअर कोर्ट का अधिकार क्षेत्र है और इसे लागू करने में विफल रहा है।
- कोर्ट मामले में सबूतों की समीक्षा (रिव्यू) नहीं करेगा। हाई कोर्ट ने विश्लेषण (एनालाइज) करने के बाद, यदि यह पाया कि अधिकार क्षेत्र मे कोई गलती हुई है तो लोअर कोर्ट को इसे ठीक करने के लिए निर्देश पास करेगा। हाई कोर्ट मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा और अपील के मामले में आदेश या निर्णय पास नहीं करेगा, जहां अपीलीय कोर्ट किसी मामले को संशोधित (मोडिफाई), बदल (ऑल्टर), उलट (रिवर्स) या रिमांड कर सकती है।
- हाई कोर्ट अपनी रिविजनरी शक्तियों का स्वयं (सु मोटो) भी प्रयोग कर सकता है।
- हाई कोर्ट लोअर कोर्ट के तथ्यों के निष्कर्षों (फाइंडिंग्स) को रद्द करने का आदेश पास नहीं कर सकता है।
- यदि कोई रिविजन पिटिशन दायर की जाती है, तो यह ओरिजनल सूट पर स्थगन कार्यवाही (स्टे प्रोसीडिंग्स) के रूप में तब तक कार्य नहीं करेगी जब तक कि हाई कोर्ट ने स्थगन कार्यवाही का आदेश नहीं दिया हो। इसका अर्थ है कि एक रिविजन की पेंडिंग सूट या अन्य कार्यवाही के स्थगन के रूप में कार्य नहीं करेगा।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
यदि कोर्ट अपनी सीमाओं से परे चला गया है तो रिविजन पिटिशन पक्षकारों के लिए एक उपाय है। यह कोई रोजमर्रा की घटना नहीं है, लेकिन अगर हालात गंभीर हैं तो शिकायतों के समाधान के लिए उच्च अधिकारी के पास जाकर पीड़ित पक्ष के लिए एक रिविजन पिटिशन एक प्रभावी उपाय होगी। चूंकि यह मांग का अंतिम उपाय है, इसलिए पिटिशन का ड्राफ्ट अच्छी तरह से तैयार किया जाना चाहिए ताकि कोर्ट को यह स्पष्ट रूप से समझाया जा सके कि लोअर कोर्ट ने सरल और प्रभावी शब्दों में कहां गलती की है। हर ड्राफ्ट अलग होता है और इस तरह आपके दिमाग में जो कुछ भी है उसे कोर्ट तक पहुंचा (कन्वे) देता है। हमेशा ध्यान रखें कि राहत (रिलीफ) देना या न देना कोर्ट का डिस्क्रीशन है, इसलिए पिटिशन का ड्राफ्ट इस तरह से तैयार करें कि कोर्ट को पिटिशन को खारिज करने का अवसर ही न मिले।