आयकर अधिनियम 1961 का फॉर्म 10F

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यह लेख Suryanshi Bothra द्वारा लिखा गया था। इस लेख में आयकर अधिनियम के अंतर्गत फॉर्म 10F के उद्देश्य, महत्व और लाभों पर विस्तार से चर्चा की गई है। फॉर्म 10F दाखिल करने के लिए आवश्यक विवरण तथा फॉर्म दाखिल करने की प्रक्रिया भी स्पष्ट की गई है। लेख में दोहरे कर बचाव समझौते के लाभों का दावा करते समय आवश्यक कर निवास प्रमाण पत्र और डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाण पत्र पर भी चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Chitrangda Sharma के द्वारा किया गया है।

परिचय

बढ़ते वैश्वीकरण और वैश्विक व्यापार के विस्तार के कारण अंतर्राष्ट्रीय कराधान की एक जटिल प्रणाली का निर्माण हुआ है। अनिवासी करदाताओं को अक्सर अपनी आय पर दोहरे कराधान से बचने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सरकारों ने ऐसे समझौते किए हैं जो करदाताओं की मदद कर सकते हैं, जिन्हें दोहरा कर बचाव समझौते के नाम से जाना जाता है। 

इससे करदाता को दोनों देशों के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कर लगाए जाने से बचाया जा सकेगा। इस समझौते का लाभ उठाने के लिए सभी विशिष्ट विनियमों का अनुपालन आवश्यक है। भारत में, ऐसे लाभ प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक फॉर्म 10F दाखिल करना है। 

आयकर अधिनियम, 1961 का फॉर्म 10F क्या है?

फॉर्म 10F उन करदाताओं के लिए एक स्व-घोषणा कर फॉर्म है, जो व्यक्ति या संस्थाएं हैं और जिनकी आय का प्राथमिक स्रोत भारत से नहीं है। इसका उपयोग वे दोहरे कराधान परिहार (अवॉयडेंस) समझौते (जिसे आगे ‘डीटीएए’ कहा जाएगा) के तहत लाभ का दावा करने के लिए करते हैं, जब उनके कर निवास प्रमाण पत्र (जिसे आगे ‘टीआरसी’ कहा जाएगा) में कुछ महत्वपूर्ण विवरण नहीं होते हैं। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (जिसे आगे ‘सीबीडीटी’ कहा जाएगा) के अनुसार, फॉर्म 10F के माध्यम से आयकर पोर्टल पर ई-फाइल करने के लिए स्थायी खाता संख्या की आवश्यकता नहीं है। 

जुलाई 2022 में आयकर निदेशालय की एक अधिसूचना में करदाताओं के लिए फॉर्म 10F का इलेक्ट्रॉनिक प्रस्तुतीकरण अनिवार्य कर दिया गया था। बाद के नोटिसों में, सीबीडीटी ने फॉर्म 10F जमा करने पर आंशिक छूट दी। जिन लोगों के लिए आयकर अधिनियम, 1961 और आयकर नियम, 1962 के तहत पैन रखना अनिवार्य नहीं था, उन्हें फॉर्म 10F दाखिल करने में छूट दी गई। 

ये छूट केवल इलेक्ट्रॉनिक प्रस्तुतिकरण के लिए लागू थीं तथा फॉर्म 10F को मैन्युअल रूप से दाखिल करना अनिवार्य बना रहा। आयकर पोर्टल पर फॉर्म 10F की ई-फाइलिंग की शुरुआत के साथ, सीबीडीटी ने सभी गैर-निवासियों के लिए प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर दिया, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिनके पास पैन नहीं है। 

फॉर्म 10F यहां से डाउनलोड कर सकते है।

टीआरसी और डीटीएए

कर निवास प्रमाणपत्र गैर-निवासी करदाता के गृह देश द्वारा जारी किया गया एक दस्तावेज है जो निवासी की कर स्थिति की पुष्टि करता है। फॉर्म 10F, कर निवास प्रमाण पत्र में दी गई जानकारी का पूरक है। टीआरसी का आमतौर पर कोई मानक प्रारूप नहीं होता है। हालाँकि, डीटीएए के लाभों के विरुद्ध दावों पर विचार करते समय कुछ बातों पर ध्यान दिया जाता है: 

  1. करदाता की स्थिति, चाहे वह व्यक्ति हो, कंपनी हो या फॉर्म हो।
  2. व्यक्ति की राष्ट्रीयता, कंपनियों के निगमन या दूसरों के पंजीकरण का देश या क्षेत्र।
  3. निवास के देश में कर पहचान संख्या (टीआईएन) या विशिष्ट पहचान संख्या (यूआईडी)।
  4. वह अवधि जिसमें टीआरसी में उल्लिखित आवासीय स्थिति लागू होती है।
  5. टीआरसी की अवधि के दौरान देश में करदाता का पता। 

आयकर अधिनियम की धारा 90 और 90A में उन प्रावधानों पर चर्चा की गई है, जो करदाताओं को उन मामलों में दोहरे कराधान से राहत का दावा करने की अनुमति देते हैं, जहां आय पर दो देशों में कर लगाया जाता है। यह निवासियों और गैर-निवासियों दोनों के लिए लागू है। भारत में कर संधियों (ट्रीटी) का एक विशाल नेटवर्क है; यह कर चोरी को रोकता है और दोहरे कराधान से बचकर व्यापार को सुविधाजनक बनाता है। लाभांश, ब्याज, वेतन आय और अधिशुल्क (रॉयल्टी) भुगतान डीटीएए के माध्यम से करों में बचत के कुछ उदाहरण हैं। 

फॉर्म 10F दाखिल करने के लिए आवश्यक दस्तावेज

आमतौर पर आवश्यक दस्तावेज निम्नलिखित हैं: 

  1. अनिवासी करदाता की स्थिति,
  2. राष्ट्रीयता या निगमन का देश,
  3. गृह देश की कर पहचान संख्या,
  4. टीआरसी की प्रयोज्यता (एप्लिकेबिलिटी) की अवधि,
  5. गृह देश में पता,
  6. पैन कार्ड,
  7. डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र,
  8. राष्ट्रीयता का प्रमाण

क्या फॉर्म 10F ऑनलाइन भरना अनिवार्य है और क्या पैन कार्ड एक आवश्यकता है?

फॉर्म 10F भरना केवल तभी आवश्यक है जब नीचे उल्लिखित विवरण टीआरसी से गायब हों। हालांकि, डीटीएए के तहत राहत चाहने वाले सभी करदाताओं को फॉर्म 10F प्राप्त कर उसे भरने की सलाह दी जाती है। पैन कार्ड की आवश्यकता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। निम्नलिखित गैर निवासियों को पैन प्राप्त करना आवश्यक है: 

  1. गैर-निवासी जिनकी कुल आय अपवाद सीमा से अधिक है, जो आयकर के लिए उत्तरदायी नहीं है।
  2. ऐसे व्यवसाय या पेशे चलाने वाले गैर-निवासी जिनका कारोबार, कुल बिक्री या सकल प्राप्तियां किसी भी पिछले वर्ष में पांच लाख से अधिक हैं। 

गैर-निवासियों के लिए कुछ विशिष्ट छूट हैं। यह उन अनिवासियों को छूट प्रदान करता है जिन्होंने विशिष्ट निधियों में निवेश किया है। इन अपवादों का लाभ उठाने के लिए निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना आवश्यक है: 

  1. भारत से आय का एकमात्र स्रोत पिछले वर्ष में निर्दिष्ट निधि में निवेश है। 
  2. जब कोई गैर-निवासी व्यक्ति निर्दिष्ट निधि में निवेश करता है, तो निधि को भुगतान करने से पहले आय से कर काटना होगा। भारत सरकार को यह कटौती किया गया कर प्राप्त होता है और कर कटौती की दरें आयकर अधिनियम की धारा 194LLB में परिभाषित की गई हैं। 
  3. गैर-निवासी व्यक्ति निधि को निम्नलिखित विवरण प्रस्तुत करता है।
    • नाम, ईमेल और संपर्क नंबर
    • भारत में या भारत के बाहर निर्दिष्ट क्षेत्र में पता।
    • निवास की घोषणा, जो यह साबित करती है कि वह भारत से बाहर किसी देश या क्षेत्र का निवासी है।
    • कर पहचान संख्या या विशिष्ट पहचान संख्या।

इसके अलावा, यदि गैर-निवासी विदेशी निवेशक हैं और वे आयकर अधिनियम की धारा 47(viiab) के तहत पूंजीगत परिसंपत्ति का लेनदेन कर रहे हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफएससी) या मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज (आरएसई) में सूचीबद्ध है, तो उन्हें पैन की आवश्यकता नहीं है। 

डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र की आवश्यकता

डीएससी का उपयोग करके फॉर्म 10F पर डिजिटल रूप से हस्ताक्षर करने के लिए डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र (जिसे आगे ‘डीएससी’ कहा जाएगा) की आवश्यकता होती है। डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र भौतिक हस्ताक्षर का एक इलेक्ट्रॉनिक रूप है। इससे अधिकारियों को दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति की पहचान प्रमाणित करने और सत्यापित करने में मदद मिलती है। 

इन्हें भारत में प्रमाणन प्राधिकारियों द्वारा जारी किया जाना होगा। यह डिजिटल दस्तावेजों की अखंडता और प्रामाणिकता सुनिश्चित करता है। इसमें सामान्यतः नाम, ईमेल पता, देश, सार्वजनिक कुंजी और प्रमाणपत्र की वैधता अवधि शामिल होती है। फॉर्म 10F दाखिल करने के लिए, डीएससी इसे ऑनलाइन जमा करने का एक सुरक्षित और कानूनी रूप से बाध्यकारी तरीका है। 

करदाताओं के लिए फॉर्म पर डीएससी के साथ हस्ताक्षर करना अनिवार्य है क्योंकि इससे उच्च स्तर की सुरक्षा मिलती है और जालसाजी का जोखिम कम हो जाता है। जिनके पास पैन कार्ड नहीं है उनके लिए यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इससे भौतिक हस्ताक्षर की आवश्यकता समाप्त हो जाती है तथा डाक संबंधी देरी भी समाप्त हो जाती है। 

आयकर अधिनियम, 1961 के फॉर्म 10F की ई-फाइलिंग

  • पहला चरण: आयकर के आधिकारिक ई-फाइलिंग पोर्टल पर अपने पैन और यूजर आईडी के साथ लॉग इन करें। अगर आपके पास अकाउंट नहीं है, तो रजिस्टर करें।  
  • दूसरा चरण: डैशबोर्ड पर उपलब्ध ई-फाइल विकल्प का चयन करें।
  • तीसरा चरण: ई-फाइल ड्रॉप-डाउन विकल्प से, “आयकर फॉर्म” चुनें। “आयकर फॉर्म फाइल करें” चुनें। 
  • चौथा चरण: अगले पेज पर 3 विकल्प दिखेंगे। पहला, “व्यवसाय” या “पेशेवर आय आय वाले व्यक्ति”, दूसरा, “व्यवसाय” या “पेशेवर आय रहित व्यक्ति” और तीसरा, “आय के किसी भी स्रोत पर निर्भर न होने वाले व्यक्ति” (आय का स्रोत प्रासंगिक नहीं है)। इनमें से तीसरा विकल्प चुनें। 
  • 5वां चरण: उसी पेज पर तीसरे कॉलम में आपको फॉर्म 10F ई-फाइल करने का विकल्प मिलेगा। फाइल नाउ पर क्लिक करें। 
  • छठा चरण: एक ड्रॉपडाउन मेनू होगा जिसमें आप वह कर निर्धारण वर्ष चुन सकते हैं जिसके लिए आप कर छूट प्राप्त करना चाहते हैं। 
  • सातवां चरण: अपना टीआरसी फॉर्म तैयार रखें, क्योंकि यह फॉर्म 10F भरने में सहायक होगा। “चलो शुरू करें टैब” पर क्लिक करें। कृपया निर्देशों को ध्यानपूर्वक पढ़ें। 
  • आठवां चरण: अलग-अलग संस्थाओं के लिए अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता का विवरण टाइप करें। ड्रॉपडाउन से धारा 90 या धारा 90A का चयन करें। 
  • 9वां चरण: अगले पन्ने पर, पैन और स्थिति पहले से भरी होगी; सूचना अनुभाग की प्रकृति को अद्यतन (अपडेट) करें।
  • 10वां चरण: तीसरे बिंदु में, ड्रॉपडाउन से, निगमन या पंजीकरण का देश या क्षेत्र चुनें।
  • 11वां चरण: अगले चरण में, कर पहचान संख्या या विशिष्ट संख्या दर्ज करें जो सरकार को करदाता की पहचान करने में मदद करती है।
  • 12वां चरण: अवधि का चयन करें और भारत के बाहर के देश या क्षेत्र का पता भरें।
  • 13वां चरण: उस सरकार का पता भरें जिससे टीआरसी प्राप्त की गई है।
  • 14वां चरण: अंत में, सत्यापन प्रदान करें और टीआरसी संलग्न करें। कृपया सुनिश्चित करें कि प्रत्येक अनुलग्नक (अटैचमेंट) का आकार 5 एमबी से अधिक नहीं होना चाहिए। सभी अनुलग्नक कुल मिलाकर 50 एमबी से अधिक नहीं होने चाहिए तथा केवल ज़िप और पीडीएफ प्रारूप में होने चाहिए। 

फॉर्म 10F दाखिल न करने के परिणाम

दोहरे कराधान परिहार समझौते के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए फॉर्म 10F महत्वपूर्ण है। फॉर्म 10F दाखिल न करने के कुछ परिणाम निम्नलिखित हो सकते हैं। 

  1. करदाता डीटीएए के तहत लाभ का दावा नहीं कर पाएंगे, जिससे कुछ आय पर स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) की दर कम करने में मदद मिल सकती है। यदि यह फॉर्म नहीं भरा गया तो भुगतानकर्ता को भारतीय कर कानूनों के तहत मानक दर पर और कुछ मामलों में इससे भी अधिक दर पर टीडीएस काटने का दायित्व होगा। यह डीटीएए दरों से बहुत अधिक वृद्धि हो सकती है।
  2. इस फॉर्म को दाखिल किए बिना, करदाता को पूर्ण कराधान का सामना करना पड़ेगा, जो कि दाखिल किए जाने पर नहीं होता। उन पर उन आयों पर भी कर लगाया जाएगा जो कर से मुक्त हैं या जिन पर डीटीएए के अनुसार कम दर से कर लगाया जाता है।
  3. यदि कोई करदाता फॉर्म 10F दाखिल किए बिना कम कर का दावा करता है, तो आयकर विभाग उस करदाता को ‘चूक’ करने वाला करदाता’ मान सकता है। इस मामले में करदाता को अतिरिक्त दंड और देयताएं चुकानी होंगी। 
  4. धन प्रेषण को सुविधाजनक बनाने के लिए, सभी अनिवासी करदाताओं के लिए दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं का अनुपालन करना आवश्यक है। बैंक और वित्तीय संस्थाएं धन प्रेषण की प्रक्रिया के लिए उचित दस्तावेज की मांग करती हैं। फॉर्म 10F जैसे आवश्यक दस्तावेज दाखिल न करने से भारत से निवासी के गृह देश में धनराशि स्थानांतरित करने की प्रक्रिया कठिन हो सकती है। 
  5. आयकर विभाग के पास करदाताओं के विरुद्ध नोटिस जारी करने या गैर-अनुपालन के लिए कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है। इससे करदाता की कर निकासी प्रमाणपत्र प्राप्त करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है, जो कुछ वित्तीय और कानूनी लेनदेन में आवश्यक हो जाता है। 
  6. कर विभाग आयकर अधिनियम की धारा 234B और 234C के तहत ब्याज भी लगा सकता है। धारा 234B अग्रिम कर किस्त के भुगतान में चूक से संबंधित है और इसमें अग्रिम कर की बकाया राशि पर 1% मासिक या महीने के हिस्से के लिए ब्याज दर लगती है। अधिनियम की धारा 234C विशेष रूप से आयकर विभाग द्वारा मूल्यांकन के बाद कर देयताओं का भुगतान करने में विफलता के मामलों में लागू होती है। करों का कम भुगतान या देरी से भुगतान करने पर ये धाराएं लगाई जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त, विभाग धारा 271C और 276B के तहत जुर्माना भी लगा सकता है। इन धाराओं में करों का भुगतान न करने की स्थिति में अभियोजन के प्रावधान शामिल हैं। इसका उपयोग सही टीडीएस राशि काटने में विफलता पर दंडित करने के लिए किया जा सकता है। 
  7. फॉर्म 10F दाखिल न करने पर गैर-निवासियों को निवेश से प्राप्त आय पर उच्च कर दर का भुगतान करना पड़ सकता है। कुछ निवेशों को डीटीएए के अंतर्गत कराधान से छूट प्राप्त है; फॉर्म 10F दाखिल किए बिना वे इन छूटों का लाभ नहीं उठा पाएंगे। इसका भारत में भविष्य में होने वाले निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिससे समग्र व्यापार रणनीति प्रभावित हो सकती है। 

आयकर अधिनियम, 1961 का फॉर्म 10F दाखिल करने के लाभ

डीटीएए का लाभ केवल टीआरसी प्राप्त करके और शेष जानकारी प्रदान करते हुए फॉर्म 10F दाखिल करके ही प्राप्त किया जा सकता है। फॉर्म 10F दाखिल करने के कुछ सबसे महत्वपूर्ण लाभ निम्नलिखित हैं: 

  1. फॉर्म 10एफ भरने से गैर-निवासियों को ब्याज, लाभांश और रॉयल्टी जैसे विभिन्न स्रोतों से आय पर कम कर कटौती का लाभ मिलता है। दोहरे कराधान परिहार समझौते के अनुसार, उपर्युक्त निर्दिष्ट आय पर टीडीएस दरें आयकर कानून के तहत लागू मानक दरों की तुलना में कम हैं। इन लाभों का दावा करना संभव हो जाता है, जिससे उच्च करों से बचा जा सकता है। ये लाभ विदेशी निवेशकों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे भारत से उनकी शुद्ध आय में वृद्धि होती है। 
  2. भारतीय कर कानून के अनुसार फॉर्म 10F दाखिल करना अनिवार्य है और इसका अनुपालन न करने पर डीटीएए से लाभ से वंचित किया जा सकता है। यह करदाताओं को भविष्य के कर निर्धारण और जुर्माने से बचाता है। 
  3. फॉर्म 10F को सही ढंग से दाखिल करने से कर अधिकारियों को सभी आवश्यक जानकारी मिल सकती है, जिससे वे रिटर्न को शीघ्रता से संसाधित कर सकते हैं और यदि आवश्यक हो तो प्रतिदाय (रिफंड) भी शीघ्र जारी कर सकते हैं। यह अनावश्यक देरी को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है कि वित्तीय नियोजन में न्यूनतम व्यवधान हो। 

निष्कर्ष

दोहरे कराधान परिहार समझौते के तहत पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए फॉर्म 10F आवश्यक है। यह टी.आर.सी. में लुप्त सभी जानकारी उपलब्ध कराने में सहायता करता है। यह गैर-निवासियों को अपने कर दायित्वों को अनुकूलित करने में सहायता करता है। इन लाभों को प्राप्त करने की प्रक्रिया और सभी नियमों के अनुपालन के बारे में जानकारी रखने से कुशल कर नियोजन और वित्तीय प्रबंधन में मदद मिल सकती है। फॉर्म 10F की ई-फाइलिंग ने इसे और अधिक सुविधाजनक और सुलभ बना दिया है। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

क्या फॉर्म 10F ऑनलाइन दाखिल करना अनिवार्य है?

भारत में पैन के साथ या उसके बिना गैर-निवासियों के लिए फॉर्म 10F इलेक्ट्रॉनिक रूप से दाखिल करना अनिवार्य है। इसके लिए अन्य आवश्यक दस्तावेजों और डी.एस.सी. का उपयोग आवश्यक है। इससे प्रक्रिया सरल और तीव्र हो गई है। 

फॉर्म 10F और टीआरसी में क्या अंतर है?

टीआरसी निवास के निर्णायक प्रमाण के रूप में कार्य करता है, जबकि फॉर्म 10F डीटीएए के अनुसार निर्दिष्ट अनुपूरक जानकारी प्रदान करता है। यह एक गैर-निवासी द्वारा प्रस्तुत स्व-घोषित दस्तावेज है और टीआरसी देश के कर अधिकारियों द्वारा जारी किया जाता है। टीआरसी डीटीएए के तहत दावे को मान्य करता है। फॉर्म 10F इलेक्ट्रॉनिक रूप से दाखिल किया जा सकता है। 

फॉर्म 10F का उपयोग किस लिए किया जाता है?

फॉर्म 10F एक स्व-घोषणा प्रपत्र है जिसका उपयोग डीटीएए के तहत लाभों का दावा करने के लिए टीआरसी के साथ किया जाता है। इसमें भारतीय कर प्राधिकारियों द्वारा अपेक्षित अतिरिक्त विवरण उपलब्ध कराया गया है। 

संदर्भ

 

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