अपराध, टॉर्ट, अनुबंध का उल्लंघन और ट्रस्ट के उल्लंघन के बीच अंतर

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Difference between crime, tort, breach of contract and breach of trust

यह लेख Tejaswini Kumari द्वारा लिखा गया है, जो टेक्नोलॉजी लॉ, फिनटेक रेगुलेशन और टेक्नोलॉजी कॉन्ट्रैक्ट्स में डिप्लोमा कर रही हैं और इसे Oishika Banerji (टीम लॉसीखो) द्वारा संपादित (एडिट) किया गया है। इस लेख में वह अपराध, टॉर्ट, अनुबंध का उल्लंघन और ट्रस्ट के उल्लंघन के बीच अंतर को स्पष्ट करते है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

परिचय

अपराध एक सामाजिक बुराई है जो बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करता है, जबकि टॉर्ट एक सिविल उल्लंघन है जो एक व्यक्ति को प्रभावित करता है। कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें सभी देशों में अपराध माना जाता है, लेकिन प्रत्येक राष्ट्र या राज्य की अपनी परिभाषा होती है कि अपराध क्या होता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो अपराध कोई भी ऐसा कार्य है जो कानून का उल्लंघन करता है। टॉर्ट्स अक्सर ही अपराध से जुड़े होते हैं। टॉर्ट तब विकसित होता है जब किसी व्यक्ति के निजी अधिकारों का उल्लंघन होता है। जब किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के गलत व्यवहार के परिणामस्वरूप नुकसान होता है, तो प्रभावित व्यक्ति को टॉर्ट कानून के तहत हर्जाने के लिए मुकदमा करने का अधिकार होता है। इसके अलावा, जहाँ एक ओर, एक टॉर्ट का कार्य सिविल कानून का उल्लंघन है, वहीं दूसरी ओर, अपराध तब होता है जब सार्वजनिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, यही कारण है कि ऐसे कार्यों को समाज के खिलाफ माना जाता है। यह लेख अपराध, टॉर्ट, अनुबंध के उल्लघंन और ट्रस्ट के उल्लघंन के बीच मूलभूत अंतरों पर चर्चा करने के उद्देश्य से लिखा जा रहा है, क्योंकि ये सभी एक दूसरे के समान दिखाई देते हैं।

अपराध क्या है

  • अपराध को किसी भी ऐसे कार्य को करने या न करने जो अपराध का गठन करता है और जिसे कानून द्वारा दंडित किया जाता है के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • अपराध एक अवैध आचरण है जो राज्य या उस राज्य को नियंत्रित करने वाले कानून द्वारा निषिद्ध (प्रोहिबिटेड) और दंडनीय है।
  • दूसरे शब्दों में, लोक कल्याण को खतरे में डालने वाली हर चीज एक अपराध है।
  • अपराध को मानव व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसकी समाज द्वारा सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) रूप से निंदा की जाती है।
  • हालाँकि, वर्तमान परिभाषा में, एक अपराध कोई भी ऐसा आचरण है जो लागू आपराधिक कानून द्वारा प्रतिबंधित है और जिसके परिणामस्वरूप सजा होती है।

अपराध के आवश्यक तत्व 

  1. इंसान: अपराध का पहला तत्व इंसान है। कोई भी गलत कार्य जिसे अपराध कहा जाता है वह मनुष्य द्वारा किया जाना चाहिए। किसी विशेष तरीके से कार्य करने के लिए एक कानूनी दायित्व के तहत एक इंसान होना चाहिए, और उसे दंडित किए जाने में में भी सक्षम होना चाहिए।
  2. अपराधिक इरादा अर्थात् मेन्स रीआ: आपराधिक इरादा, या दोषी मन या बुरा उद्देश्य, अपराध का दूसरा मूल घटक है। आपराधिक इरादा एक इंसान द्वारा किए गए किसी भी अनुचित कार्य को अपराध करार देने के लिए मानसिक तत्व की आवश्यकता को संदर्भित करता है।
  • कोई कार्य करते समय, कोई बुरा उद्देश्य होना चाहिए।
  • एक प्रसिद्ध कहावत है “एक्टस नॉन फेसिट रेम निसी मेन्स सिट रीआ”। इसका अर्थ है कि कार्य किसी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं बनाता जब तक कि उसकी ऐसी नीयत न हो।

3. परिणामी कार्य अर्थात् ऐक्टस रीउस: परिणामी कार्य अपराध का तीसरा तत्व है। दंडित किए जाने के लिए, आपराधिक इरादे को किसी स्वैच्छिक कार्य या चूक में प्रकट होना चाहिए। केनी के अनुसार, अपराधिक कार्य मानव व्यवहार का एक परिणाम है जिसे कानून प्रतिबंधित करने का प्रयास करता है, और प्रदर्शन किया गया कार्य ऐसा होना चाहिए जो कानून द्वारा निषिद्ध या दंडित किया गया हो। 

4. चोट: चोट एक अपराध का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण घटक है। यह अवैध रूप से किसी अन्य इंसान, व्यक्तियों के समूह या बड़े पैमाने पर समाज के कारण होना चाहिए। भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 44 चोट को “शरीर, प्रतिष्ठा या संपत्ति पर किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से पहुंचाई गई कोई भी हानि” के रूप में परिभाषित करती है। हालाँकि, इसी तरह के अपराध भी हो सकते हैं जो किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। उदाहरण के लिए, ड्राइविंग लाइसेंस के बिना कार चलाना एक अपराध है, भले ही आपने किसी को चोट न पहुंचाई हो।

अपराध के चरण

इरादा

किसी अपराध को करने में प्रारंभिक चरण को मानसिक चरण के रूप में जाना जाता है। यह चरण आईपीसी के तहत दंडनीय नहीं है। “एक्टस नॉन फेसिट रेम निसी मेन्स सिट रिया” एक लैटिन कहावत है जिसका अर्थ है की एक दोषी मानसिकता के बिना प्रतिवादी को उसके कार्य के लिए दोषी नहीं बनाया जा सकता है। यह इंगित करता है कि एक कार्य अपने आप में एक दोष नहीं बनता है। कार्य एक व्यक्ति द्वारा किया गया शारीरिक कार्य है, और अपराधिक इरादा दोषी विचार है जिसके साथ अपराध किया जाता है। एक कार्य जो किसी दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से पहले नहीं होता है, उसे दंडित नहीं किया जाता है।

अपराध करने की तैयारी

दूसरा चरण तैयारी है। तैयारी को दंडित नहीं किया जाता है क्योंकि किसी व्यक्ति के पास अपना मन बदलने के लिए अभी भी समय होता है। इस सामान्य नियम का एक अपवाद है कि यह प्रदर्शित करना असंभव होता है कि तैयारी उल्लंघन पर निर्देशित थी। कुछ ही परिस्थितियाँ हैं जब आईपीसी नियोजन चरण के दौरान भी दंडित करती है, जैसा कि यहाँ निर्धारित किया गया है:

  1. धारा 122 एक ऐसे व्यक्ति को दंडित करती है जो राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए हथियारों के अधिग्रहण (एक्विजिशन) में शामिल है।
  2. धारा 126 भारत के साथ शांति से रहने वाले किसी भी देश पर हमला करने जैसी गतिविधियों को करना गैरकानूनी बनाती है।
  3. धारा 399 डकैती करने के लिए योजनाओं की स्थापना पर चर्चा करती है।

प्रयास 

यह तीसरा चरण है, जिसे अक्सर प्रारंभिक अपराध के रूप में जाना जाता है। अपराध करने का प्रयास द्वेष के साथ की गई कार्रवाई है। यदि इसे नहीं रोका गया, तो इसका परिणाम अपराध का कार्य होगा। एक कार्य का प्रयास करने के लिए तीन आवश्यकताएं हैं।

  • दुर्भावनापूर्ण इरादे की आवश्यकता है।
  • अपराध करने की तैयारी में कार्य किया जाना चाहिए।
  • किया गया कार्य अपराध को पूर्ण नहीं कर पाया।

आईपीसी के निम्नलिखित प्रावधानों के तहत एक प्रयास दंडनीय है: 

  • धारा 196 – वास्तविक साक्ष्य के रूप में किसी ऐसे साक्ष्य का उपयोग करना या उपयोग करने का प्रयास करना जिसे वह व्यक्ति जानता है कि वह झूठा है।
  • धारा 239 – किसी अन्य व्यक्ति की विधिपूर्ण गिरफ्तारी में बाधा।
  • धारा 250 – सिक्के की सुपुर्दगी (डिलीवरी) इस ज्ञान के साथ कि इसे बदला गया है।
  • धारा 385 – जबरन वसूली (एक्सटोर्शन) करने के लिए किसी को हानि पहुँचाने के भय में डालना या डालने का प्रयास करना।
  • धारा 307 – हत्या के प्रयास को दंडित करना।
  • धारा 308 – गैर इरादतन मानव वध (कल्पेबल होमीसाइड) करने के प्रयास को दंडित करना।
  • धारा 393 – डकैती करने के प्रयास को दण्ड देना।

कार्य पूर्ण करना

यह अपराध करने का अंतिम चरण है। अपराधिक कार्य को इस चरण में पूर्ण कहा जाता है। यदि अभियुक्त अपने प्रयास में सफल हो जाता है, तो उसे पूर्ण अपराध का दोषी माना जाएगा। यदि वह विफल रहता है, तो उस पर केवल अपराध करने का प्रयास करने का आरोप लगाया जाएगा।

यदि X, Y को मारने के उद्देश्य से उस पर गोली चलाता है, तो X को आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी पाया जाएगा। यदि Y की मृत्यु नहीं होती है लेकिन उसे नुकसान पहुंचता है, तो X पर आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का आरोप लगाया जाएगा।

टॉर्ट क्या है 

टॉर्ट कानून का संबंध सिविल गलत के उपचार से है। जानबूझकर या अनजाने में किए गए हानिकारक आचरण के लिए एक व्यक्ति जवाबदेह होता है। नुकसान के लिए भुगतान करने से पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिया जाता है। टॉर्ट में शारीरिक या भावनात्मक पीड़ा, संपत्ति की क्षति या हानि, और अतीत या भविष्य की असुविधाजनक घटनाओं से होने वाली वित्तीय हानि शामिल हो सकती है। अदालत हर्जाने के रूप में मुआवजे की राशि निर्धारित करती है। टॉर्ट कानून को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

  1. लापरवाही द्वारा टॉर्ट 
  2. इरादतन टॉर्ट
  3. कठोर दायित्व का टॉर्ट

दुर्घटनाओं को लापरवाह टॉर्ट माना जाता है, जबकि चोरी एक इरादतन टॉर्ट है, और दोषपूर्ण उत्पादों का निर्माण या आपूर्ति कठोर दायित्व के तहत हर्जाने के लिए जवाबदेह है। टॉर्ट कानून में अनुबंध का उल्लंघन और ट्रस्ट का उल्लंघन शामिल होता है।

अनुबंध का उल्लंघन

एक व्यावसायिक अनुबंध विशिष्ट दायित्वों को स्थापित करता है जिन्हें पक्षों द्वारा समझौते के लिए पूरा किया जाना चाहिए। अनुबंध का उल्लंघन तब होता है जब एक पक्ष अपने किसी भी अनुबंध संबंधी दायित्वों को पूरा करने में विफल रहता है। उल्लंघन तब होता है जब कोई पक्ष समझौते की शर्तों के अनुसार समय पर प्रदर्शन करने में विफल रहता है, या बिल्कुल भी प्रदर्शन करने में विफल रहता है। लिखित अनुबंध और मौखिक अनुबंध दोनों में अनुबंध का उल्लंघन एक आम दृश्य है। वे पक्ष जो अनुबंध के उल्लंघन में शामिल हैं, वे आपस में इस मुद्दे को हल कर सकते हैं या सक्षम अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिकशन) वाले कानून की अदालत की सहायता ले सकते हैं। विभिन्न प्रकार के अनुबंध उल्लंघन होते हैं, जिनमें मामूली या भौतिक उल्लंघन और वास्तविक या अग्रिम उल्लंघन शामिल हैं। अनुबंध के उल्लंघन को न तो अपराध माना जाता है और न ही टॉर्ट और शायद ही कभी इसमें अतिरिक्त मौद्रिक मुआवजे का भुगतान किया जाता है।

एक वादी, जो सक्षम अधिकार क्षेत्र के साथ अदालत के समक्ष मुकदमा शुरू करता है, यह दावा करता है कि अनुबंध का उल्लंघन हुआ है, पर यह साबित करने का बोझ है कि पक्षों के बीच अनुबंध मौजूद है। वादी को यह भी दिखाना होगा कि प्रतिवादी की ओर से लापरवाही कैसे हुई, जब वह कानून की अदालत में मुकदमा लाता है।  

ट्रस्ट का उल्लंघन

किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति जिम्मेदारी के साथ कार्य करने में विफलता जिसने आपको सुरक्षित रखने के लिए कुछ दिया है, उदाहरण के लिए पैसा या कंपनी की गुप्त जानकारी, ट्रस्ट का उल्लंघन माना जाता है। भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 405 ट्रस्ट के आपराधिक उल्लंघन से संबंधित है और इसमें कहा गया है कि संपत्ति का सौंपना ट्रस्ट के आपराधिक उल्लंघन के लिए एक आवश्यक तत्व माना जाता है। आईपीसी की धारा 405 के तहत प्रदान किया गया शब्द “सौंपा गया” न केवल “संपत्ति के साथ” शब्दों को नियंत्रित करता है बल्कि “या संपत्ति पर किसी भी प्रभुत्व के साथ” वाक्यांश को भी शामिल करता है।

अनुबंध के उल्लंघन और ट्रस्ट के उल्लंघन के बीच अंतर 

अनुबंध का उल्लंघन  ट्रस्ट का उल्लंघन 
अनुबंध का उल्लंघन तब होता है जब एक संविदात्मक समझौते का एक पक्ष समझौते की शर्तों को पूरा करने में विफल रहता है। एक ट्रस्टी का जानबूझकर किसी चीज़ का दुरुपयोग जो की उसे विश्वास में सौंपा गया था।
अनुबंध का उल्लंघन लिखित और मौखिक अनुबंध दोनों में हो सकता है। एक प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) या विश्वास तोड़ना।
अनुबंध के उल्लंघन को संबंधित पक्षों के बीच या कानून की अदालत में सुलझाया जा सकता है। ट्रस्टी द्वारा कोई भी आचरण या चूक जो ट्रस्ट समझौते या ट्रस्ट के कानून की शर्तों के विपरीत है।
एक उल्लंघन देर से भुगतान से लेकर अधिक गंभीर उल्लंघन तक हो सकता है, जैसे कि वादा की गई संपत्ति को वितरित करने में विफल होना। उदाहरण के लिए, A परिवहन उद्देश्यों के लिए अपने मित्र B को अपना वाहन उधार देता है। दूसरी ओर, B इसका उपयोग हाथी दांत जैसी अवैध वस्तुओं को ले जाने के लिए करता है। इस मामले में, B आपराधिक रूप से A के विश्वास को धोखा देने का दोषी है।
अनुबंध में विशिष्ट व्यक्ति के प्रति कर्तव्य है।  ट्रस्ट, संपत्ति के कानून की एक शाखा है।

टॉर्ट और अपराध के बीच अंतर 

टॉर्ट  अपराध 
टॉर्ट एक प्रकार का सिविल दोष है जो सिविल कार्यवाहियों को जन्म देता है। एक अपराध आपराधिक कार्यवाही को जन्म देता है।
टॉर्ट कानून का लक्ष्य किसी व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना है। आपराधिक कानून का लक्ष्य समाज को व्यवस्था में रखना और अपराध को रोकना है।
टॉर्ट का कानून असंहिताबद्ध (अनकोडीफाइड) कानून है। अपराध का कानून संहिताबद्ध कानून है।
टॉर्ट में किसी व्यक्ति के निजी अधिकारों का उल्लंघन होता है। अपराध में लोक अधिकारों एवं दायित्वों का उल्लघंन होता है, जिसका प्रभाव समाज पर पड़ता है।
टॉर्ट में, घायल व्यक्ति को वादी के रूप में जाना जाता है, और वह गलत काम करने वाले के खिलाफ मुकदमा दायर करता है। एक अपराध में, पीड़ित वह होता है जो पुलिस रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
टॉर्ट में वादी मुकदमा दायर कर कार्यवाही करता है। अपराध के मामले में, राज्य पुलिस के माध्यम से प्रवक्ता (स्पोक्सपिपल) के रूप में कार्य करता है।
टॉर्ट में, गलत काम करने वाला मुआवजे के लिए जिम्मेदार होता है। अपराध के मामले में अपराधी को सजा का सामना करना पड़ता है।
टॉर्ट में, आम तौर पर इरादा प्रासंगिक नहीं होता है। अपराध में, इरादा हमेशा प्रासंगिक होता है।
वादी को टॉर्ट राशि का मुआवजा दिया जाता है। अपराध में दण्ड के रूप में लगाई गई जुर्माने की राशि राज्य को दी जाती है।

निष्कर्ष 

आम तौर पर, इस लेख में चर्चा किए गए शब्दों मे कभी कभी भ्रम होता है क्योंकि ये सभी एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए प्रतीत होते हैं। उनमें से हर एक को दूसरे से क्या अलग करता है, उनकी प्रकृति, उद्देश्य और विशेषता है, जैसा कि इस लेख में बताया गया है। 

 

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