न्यूबॉर्न या अनबॉर्न बच्चे से संबंधित अपराध

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Indian Penal Code
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यह लेख इकफाई लॉ स्कूल, देहरादून के Prasoon Shekhar द्वारा लिखा गया है। इस लेख में न्यूबोर्न या अनबॉर्न बच्चे से संबंधित अपराध के बारे में चर्चा की गई है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

 “बच्चा दुनिया में मौजूद भगवान की सुंदरता है, जो एक परिवार के लिए सबसे बड़ा उपहार है।”

                                                                                                                 -मदर टेरेसा

परिचय (इंट्रोडक्शन)

यह एक स्वाभाविक बात है कि जिसने जन्म लिया है उसे मरना पड़ता है, लेकिन एक अनबॉर्न या न्यूबॉर्न बच्चे की मृत्यु का कारण बनने वाला कार्य कॉगिटेबल नहीं है। उक्त अपराध के संभावित (प्रोबेबल) कारणों में से एक लड़का होने की इच्छा है, क्योंकि यह माना जाता है, कि एक लड़का अपने माता-पिता की उनके बुढापे में देखभाल करेगा। यह एक कड़वा सत्य है, कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां देवी-देवताओं की पूजा की जाती है लेकिन बच्चियों को गर्भ (वॉम) में या उनके जन्म के शुरुआती दिनों में ही मार दिया जाता है।

साथ ही, 2019 ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिजल्ट के अनुसार हंगर इंडेक्स में भारत 102वें स्थान पर है। इससे स्पष्ट होता है, कि बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें सरकार के लगातार प्रयास के बावजूद पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता है। यह एक प्रमुख कारण है कि ज्यादातर गरीब माता-पिता अपने बच्चों को गर्भ में या जन्म के शुरुआती दिनों में मारने के लिए मजबूर होते हैं।

अनबॉर्न और न्यूबॉर्न बच्चे के खिलाफ अपराध

अनबॉर्न या न्यूबॉर्न बच्चे की हत्या से संबंधित अपराधों को इंडियन पीनल कोड, 1860 के चैप्टर XVI के सेक्शन 312 से 318 में दिया गया है, यानी मिसकैरेज के कारण, ऐसा काम जो मारने के इरादे से किया गया हो, मृत्यु का कारण, बच्चे की मृत्यु, किसी मृत शरीर का गुप्त (सिक्रेटली) रूप से निपटान (डिस्पोज) करके जन्म को कंसील करना या बच्चे को एबंडन के इरादे से किसी बच्चे का एक्सपोजर या लीव कर देना। 

मिसकैरेज के कारण

इस कोड के तहत ‘मिसकैरेज’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। कानूनी शब्दों में, मिसकैरेज बच्चे के संपूर्ण (एंटायर) विकास से पहले (आमतौर पर गर्भावस्था (प्रेग्नेंसी) के 12वें से 28वें सप्ताह के बीच) महिला की गर्भावस्था (ह्यूमन फीटस  का एक्सपल्शन) की जानबूझकर समाप्ति (टर्मिनेशन) को संदर्भित करता है। इसे स्पॉन्टेनियस अबॉर्शन भी कहा जा सकता है।

इन अपराधों को कोड के सेक्शन 312 से 314 के तहत परिभाषित किया गया है। यह अपनी ग्रेविटी के आधार पर मिसकैरेज के कारण से संबंधित है। सेक्शन 312 के तहत ‘बच्चे के साथ महिला’ यानी गर्भवती होने के लिए और ‘जल्द ही बच्चे के साथ’ यानी गर्भावस्था के उन्नत चरण (एडवांस स्टेज) में जब फीटस  की गति (मूवमेंट) को महसूस किया जा सकता है, के लिए अलग अलग सजा है, लेकिन सेक्शन 313 के तहत सजा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है की ‘बच्चे के साथ महिला’ या जल्द ही बच्चे के साथ’ थी। सजा भी महिलाओं की कॉन्सेंट तत्व से भिन्न होती है। सेक्शन 312 के तहत मिसकैरेज, बेलेबल, नॉन-कॉग्निजेंबल-और नॉन-कंपाउंडेबल है लेकिन सेक्शन 313 के तहत मिसकैरेज नॉन-बेलेबल, कॉग्निजेबल और नॉन-कंपाउंडेबल है।

सेक्शन 312 और 313 के तहत मिसकैरेज के अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं:

  1. अपनी इच्छा से एक महिला को मिसकैरेज के लिए प्रेरित करना;
  2. महिलाओं की कंसेंट के बिना मिसकैरेज कराना;  या
  3. महिलाओं की जान बचाने के लिए मिसकैरेज गुड फेथ में नहीं किया गया हो।

मिसकैरेज के लिए सजा

सेक्शन 312 (अपनी इच्छा से गर्भपात करना) ‘बच्चों के साथ महिला’ 3 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों
‘जल्द ही बच्चे के साथ’ 7 साल तक की कैद और जुर्माना
सेक्शन 313 (महिलाओं की कंसेंट के बिना गर्भपात) आजीवन कारावास या 10 साल तक की कैद और जुर्माना

शरीफ बनाम उड़ीसा स्टेट के मामले में, यह माना गया था कि एक नाबालिग (माइनर) लड़की की गर्भावस्था की समाप्ति सेक्शन 312 को आकर्षित नहीं करती है, क्योंकि ऐसा उसकी मां के जीवन को बचाने के लिए किया गया था। आरोपी ने नाबालिग को मिसकैरेज के लिए जाने का निर्देश नहीं दिया, लेकिन समाज में शर्म से बचने के लिए नाबालिग खुद चली गई।

मिसकैरेज के दौरान महिलाओं की मौत

यह आईपीसी के सेक्शन 314 के तहत प्रदान किया गया है। इस सेक्शन के अंदर आने के लिए किसी कार्य के परिणाम का ज्ञान होना आवश्यक नहीं है। यदि मिसकैरेज महिला की कंसेंट से किया जा रहा था तो इसमें 3 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। लेकिन, अगर मिसकैरेज महिला की कंसेंट के बिना किया गया था तो सजा आजीवन कारावास या 3 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकती है।

मिसकैरेज के अपवाद (एक्सेप्शन टू मिसकैरेज)

  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971

इस एक्ट का उद्देश्य अत्यधिक बड़ी संख्या में अवैध अबॉर्शन को समाप्त करना था। एक्ट का सेक्शन 3 उन आधारों को निर्धारित करता है, जिनके तहत रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है अर्थात, जब महिलाओं का जीवन जोखिम में हो, बलात्कार के कारण गर्भावस्था, महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरा, असामान्य (एब्नॉर्मल) या विकलांग (हैंडीकैप) बच्चे का पैदा होना, बच्चों की संख्या को सीमित करने के लिए कपल द्वारा उपयोग किए जाने वाले एहतियाती साधनों (प्रिकॉशनरी टूल्स) की विफलता।

इसमें यह भी प्रावधान (प्रोविजन) है कि यदि गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह की अवधि से अधिक नहीं है, तो गर्भावस्था की समाप्ति एक मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा की जा सकती है लेकिन यदि गर्भावस्था की अवधि 12 से 20 सप्ताह के बीच है तो दो मेडिकल प्रैक्टिशनर की आवश्यकता है।

सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ एडमिनिस्ट्रेशन के मामले में, यह माना गया था कि यदि गर्भावस्था की समाप्ति एमटीपी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के अनुसार की गई थी, तो यह अपराध नहीं होगा। 

  • गुड फेथ

यदि मिसकैरेज गुड फेथ में किया जाता है (जैसा कि आईपीसी के सेक्शन 52 के तहत), तो यह अपराध नहीं होगा।

डॉ. जैकब बनाम केरल स्टेट के मामले में, डॉक्टर के खिलाफ आरोपों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखा गया था और यह माना गया था कि एक व्यक्ति को मिसकैरेज के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है यदि इसे महिलाओ के जीवन को बचाने के लिए गुड फेथ में नहीं किया गया था।

महाराष्ट्र स्टेट बनाम फ्लोरा सैंटुनो कुटिनो के मामले में, आरोपी का उस महिला के साथ अवैध संबंध था जो बाद में गर्भवती हो गई। आरोपी ने अपने रिश्ते के सबूत को छिपाने के लिए उसका मिसकैरेज कराने की कोशिश की जिसमें उसकी मौत हो गई। मिसकैरेज गुड फेथ में न होने के कारण आरोपी को जिम्मेदार ठहराया गया था।

अनबॉर्न बच्चे को चोट

सेक्शन 315 और 316 अनबॉर्न बच्चे के जन्म से संबंधित हैं। सेक्शन 315 का उद्देश्य फोटिसाइड है, यानी ऐसी स्थिति जिसमें गर्भ में फीटस मानव रूप धारण कर लेता है (आमतौर पर 6 महीने में)। इन्फेंटिसाइड के साथ अंतर यह है कि इन्फेंटिसाइड, डिलीवरी के बाद की जाती है लेकिन फिटिसाइड डिलीवरी से पहले की जा सकती है। सेक्शन 315 के तहत यह अपराध नॉन बेलेबल, नॉन-कॉग्निजेबल और-नॉन कंपाउंडेबल है।

सेक्शन 315 की अनिवार्यताएं इस प्रकार हैं:

  1. कार्य बच्चे की मृत्यु से पहले किया जाना चाहिए;
  2. बच्चे को जीवित पैदा होने से रोकने का इरादा या जन्म के बाद मारने का इरादा होना चाहिए;
  3. बच्चे का जीवित जन्म नही लेना चाहिए या जन्म के बाद बच्चे की मृत्यु होनी चाहिए।

अपवादः मां के जीवन को बचाने के लिए गुड फेथ में किया गया कार्य इस सेक्शन के अंदर नहीं आएगा।

अलका वर्मा बनाम स्टेट के मामले में, आरोपी पर बच्चे के जन्म के बावजूद आईपीसी के सेक्शन 315  के तहत लगाया गया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहा था कि जब बच्चे ने जन्म लिया है, तो आरोपी पर सेक्शन 315 के तहत आरोप नहीं लगाया जा सकता है।

हिरदानबाई और अन्य बनाम महाराष्ट्र स्टेट के मामले में, आरोपी को आईपीसी के सेक्शन 315 के तहत आरोप से बरी कर दिया गया था और अदालत ने माना कि इस बात के पर्याप्त सबूत होने चाहिए कि, आरोपी ने बच्चे को जीवित पैदा होने या जन्म के बाद मारने और किए गए कार्य के परिणामस्वरूप बच्चे का जीवित जन्म नहीं होना चाहिए या उसके जन्म के बाद बच्चे की मृत्यु होनी चाहिए, रोकने के लिए ऐसा कार्य किया है। तभी किसी व्यक्ति को आईपीसी की सेक्शन 315 के तहत बरी किया जा सकता है।

सेक्शन 316 बहुत गंभीर सेक्शन है। यह कल्पेबल होमिसाइड (मां के खिलाफ) का अपराध करने के इरादे या ज्ञान के साथ किया जाता है, त्वरित (क्विक) अनबॉर्न बच्चे की मृत्यु का कारण बनता है और 10 साल तक के कारावास और जुर्माने के लिए दंडनीय है, लेकिन यदि कार्य के कारण माँ की मृत्यु होती है, तो व्यक्ति कल्पेबल होमीसाइड के लिए दंडनीय होगा। यह नॉन-बेलेबल, कॉग्निजेबल और नॉन-कंपाउंडेबल अपराध है।

इसे आईपीसी के सेक्शन 299 के एक्सप्लेनेशन 3 के साथ पढ़ा जा सकता है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई बच्चा मां के गर्भ में मर जाता है तो कल्पेबल होमीसाइड के तहत दायित्व (लाइबिलिटी) नहीं बनता है, बल्कि यह तब उत्पन्न होता है, जब बच्चे के शरीर का कोई अंग बाहर आ गया हो।

जब्बार बनाम स्टेट के मामले में, यह माना गया था कि एक कार्य सेक्शन 316 के दायरे में आता है, जब कार्य मां के खिलाफ कल्पेबल होमीसाइड का कार्य करने के इरादे या ज्ञान के साथ किया गया हो। केवल इस आधार पर कि कार्यों को मां के प्रति निर्देशित (डायरेक्ट) किया गया था और एक त्वरित अनबॉर्न बच्चे की मृत्यु हुई है, किसी व्यक्ति को वर्तमान सेक्शन के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। आगे यह भी देखा गया कि यदि यह कार्य ज्ञान या इरादे से माँ के खिलाफ कल्पेबल होमीसाइड का अपराध करने के लिए किया गया होता, और माँ बच जाती है, लेकिन गर्भ में बच्चा मर जाता है, तो यह वर्तमान प्रावधान  में एक अपराध होगा।

एक बच्चे का अबेंडनमेंटऔर एक्सपोजर

आईपीसी का सेक्शन 317 किसी बच्चे को डेज़र्टिंग के इरादे से एक्सपोजर या लीविंग से संबंधित है। आईपीसी के वर्तमान सेक्शन 317 के तहत अपराध बेलेबल, कॉग्निजेबल और नॉन-कंपाउंडेबल है। ‘एक्सपोज़ एंड लीव’ शब्द का अर्थ है बच्चे को उचित सुरक्षा नहीं देना यानी भोजन, आश्रय (शेल्टर) आदि, जिससे बच्चे को खतरा हो।

सेक्शन को निम्नलिखित अनिवार्यताओं की आवश्यकता है:

  1. विचाराधीन (इन क्वेश्चन) व्यक्ति पिता, माता या बच्चे की देखभाल करने वाला व्यक्ति होना चाहिए;
  2. बच्चे की आयु 12 वर्ष से कम होनी चाहिए;  तथा
  3. बच्चे को जानबूझकर एक्सपोज किया जाना चाहिए या डेज़र्टिग के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।

यह प्रावधान स्कूलों, अनाथालयों को समान महत्व देता है क्योंकि वे बच्चे की देखभाल करने के लिए बाध्य हैं। इस प्रावधान के तहत सजा 7 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकती है।

सेक्शन के एक्सप्लेनेशन में यह प्रावधान है कि यदि बच्चे को लीव करने या बच्चे को डेजर्ट करने के इरादे से उसे एक्सपोज करने का कार्य, और यदि बच्चे की मृत्यु होती है, तो आरोपी व्यक्ति को हत्या या कल्पेबल होमीसाइड के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।

उदाहरण: ‘A’ एक महिला का नाजायज (इलेजिटिमेट) बच्चा है। उसने बच्चे को डेजर्ट कर दिया क्योंकि उसे 5 दिनों तक भोजन नहीं मिला। प्राकृतिक मौत के कारण अगले दिन बच्चे की मौत हो जाती है। यहां महिला को हत्या का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

बच्चे के जन्म का कन्सीलमेंट

आईपीसी का सेक्शन 318, बच्चे के मृत शरीर को गुप्त रूप से दफनाने या निपटाने से बच्चे के जन्म को कंसील करने के आरोपी व्यक्तियों से संबंधित है। इसमें 2 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकता है।

सेक्शन के आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं:

  1. बच्चे के जन्म को कंसील करने का इरादा;
  2. बच्चे के शव को गुप्त रूप से दफनाना या निपटाना;  तथा
  3. बच्चे की मृत्यु उसके जन्म से पहले, उसके दौरान या बाद में हो सकती है।

स्टेट बनाम केहरी सिंह के मामले में, आरोपी को बरी कर दिया गया था क्योंकि अदालत ने माना था कि जब बच्चे का जन्म हुआ था, तो अधिकांश ग्रामीणों को इसकी जानकारी थी और शव का निपटान बच्चे के जन्म को छिपाने के इरादे से नहीं किया गया था, इसलिए आरोपी को आईपीसी के सेक्शन 318 के तहत उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है।

राधा बनाम राजस्थान स्टेट के मामले में, यह माना गया था कि यदि बच्चा गुप्त रूप से निपटान के समय जीवित था, तो इस सेक्शन के तहत कोई अपराध नहीं माना जाएगा।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

एमटीपी एक्ट, 1971 बहुत पहले अधिनियमित (इनेक्टेड) किया गया था और बदलते समय के साथ इसमें बदलाव किए जाने चाहिए। इसमें प्रावधान है कि मिसकैरेज 20 सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए लेकिन कई मामलों में फीटस में असामान्यताएं (एबनोरमेलिटीज़) 20 सप्ताह के बाद सामने आती हैं और यह कभी-कभी बलात्कार के मामलों में भी होता है। इसके अलावा, जब अविवाहित कपल के एहतियाती साधनों का उपयोग करने के बावजूद महिला गर्भवती हो जाती है, तो अस्पष्टता (एंबीग्विटी) होती है। साथ ही, सरकार ने प्री-कंसेप्शन एंड प्री-नेटल डिग्नॉस्टिक टेक्नीक्स (प्रोहिबिशन ऑफ सेक्स सिलेक्शन) एक्ट, 1994 अधिनियमित किया है, ताकि जन्म से पहले बच्चे के लिंग का पता न चले। इससे निश्चित रूप से गर्भ के अंदर बालिकाओं की हत्या में कमी आई है लेकिन फिर भी, रूढ़िवादी (स्टीरियोटिपिकल) लोगों को अवैध रूप से भ्रष्ट डॉक्टरों के माध्यम से गर्भ में बच्चे के लिंग के बारे में पता चलता है। सरकार कई अन्य कदम भी उठा रही है। अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि जब तक समाज में लोगों की मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक इन सभी चीजों का कोई फायदा नहीं है।

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