यह लेख Vasundhara Thakur द्वारा लिखा गया है, जो लॉसीखो से इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी, मीडिया और एंटरटेनमेंट लॉ में डिप्लोमा कर रही हैं। इस लेख में लेखक कॉफी के रेगुलेशन से संबंधित एक्ट्स और प्रावधानों के बारे में बताते हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
भारत में कॉफी केवल एक पेय (बेवरेज) ही नहीं है, बल्कि लोगों के बीच एक लोकप्रिय पेय भी है। चाहे वह सामाजिक सभा (सोशल गैदरिंग) हो या आधिकारिक बैठक (ऑफिशियल मीटिंग), हर जगह कॉफी परोसना एक अहम (वाइटल) हिस्सा है। हालांकि, यह जानना दिलचस्प है कि 17वीं सदी में कॉफी को पहली बार भारत में बाबा बुदान नामक एक भारतीय तीर्थयात्री (पिल्ग्रिमेज), 1670 में यमन से 7 कॉफी बीन्स लाये और उन्होंने उन बीन्स को कर्नाटक में चंद्रगिरी पहाड़ियों में लगा दिया था। पहले, डच ने पूरे भारत में कॉफी की खेती में मदद की थी। लेकिन 19वीं सदी में अंग्रेजों ने कॉफी का व्यावसायिक (कमर्शियल) रूप से एक्सप्लोइटेशन शुरू कर दिया। बाद में, 1942 के कॉफी एक्ट के लागू होने के बाद, भारत में कॉफी स्टैंडर्ड को रेगुलेट करने के लिए ‘कॉफी बोर्ड’ नामक एक एग्जीक्यूटिव कमेटी बनाई गई थी।
भारत में कॉफी रेगुलेशन का बैकग्राउंड
इस सदी की शुरुआत में बीमारियों और कीटों (पेस्ट्स) से बढ़ते नुकसान के बाद, भारतीय कॉफी इंडस्ट्री काफी हद तक विदेशों से एस्पोर्ट्स पर निर्भर (डिपेंडेंट) थी। यह लुप्त (वेनिश) होने के कगार (वर्ज) पर था क्योंकि प्लांटर्स ने कॉफी की खेती छोड़ दी थी। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, भारतीय सरकार ने कॉफी सेस एक्ट, 1935 पास किया। यह कमिटी, देश और विदेश में कॉफी की बिक्री और खपत (कंजप्शन) में वृद्धि (इंक्रीज) को बढ़ावा देने वाली पहली भारतीय सेस कमिटी थी।
पहली कॉफी कंट्रोल कांफ्रेंस, सितंबर 1940 में भारत सरकार द्वारा आयोजित (हेल्ड) की गई थी, जब दूसरे विश्व युद्ध के बाद, इंडस्ट्री एक गंभीर संकट का सामना कर रही थी जो कॉफी सेस कमिटी की डीलिंग्स से भी परे था और इस कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता (हेड), सर ए. रामास्वामी मुदलियार द्वारा की गई थी, जो वाइसरॉय के एग्जीक्यूटिव काउंसिल में उस समय के कॉमर्स मिनिस्टर थे और एक कॉफी बोर्ड की स्थापना की गई थी, और भारत सरकार ने कॉफी एक्ट, 1942 को लागू किया था।
इंडियन कॉफी एक्ट के एनक्टमेंट का उद्देश्य
कॉफी इंडस्ट्री को विकसित (डेवलप) करने के लिए कॉफी एक्ट बनाया गया था। इन इंडस्ट्रीज को केंद्र सरकार द्वारा रेगुलेट किया जाएगा और यह भारत और विदेशों के बाजारों में कॉफी उत्पादन (प्रोडक्शन), खपत और बिक्री के विस्तार के लिए था।
कॉफी बोर्ड का फॉर्मेशन
कॉफी बोर्ड को पहली बार, इंडियन कॉफी मार्केट एक्सपेंशन ऑर्डिनेंस, 1940 की धारा 4 के तहत कॉफी मार्किट एक्सपेंशन बोर्ड के रूप में बनाया था, जो शुरू में एक वर्ष के लिए भारतीय कॉमर्स मिनिस्ट्री के पूर्वावलोकन (परव्यू) के तहत था। इस बोर्ड को, भारतीय सेस कमीटी के अतिरिक्त कार्यों और नियंत्रित (कंट्रोल्ड) तरीके से, वर्ष की अनुमानित (एस्टिमेटेड) कॉफी फसल की बाजारी और उसका कलेक्शन करने के लिए बनाया गया था। कॉफी एक्सपेंशन अमेंडमेंट एक्ट (1942 का VII) के तहत बोर्ड को खेती के क्षेत्रों के बाहर अपने नियंत्रण का विस्तार (एक्सपैंड) करने का अधिकार दिया गया था। इस एक्ट को सभी राज्यों में, बिना किसी सीमा के, बढ़ा दिया गया था। 1943 के बाद कोई आंतरिक (इंटरनल) बिक्री कोटा नहीं था और इस एक्ट ने, प्रत्येक बोने वाले को अपनी फसल को सामान्य पूल में पहुंचाने के लिए बाध्य (ओब्लिगेट) किया, सिवाय बोर्ड द्वारा एक निर्धारित (प्रेसक्राइब्ड) मात्रा के, जो उनके पास घरेलू इस्तेमाल और फसल उगाने के लिए होनी चाहिए।
यह केंद्र सरकार के नियंत्रण में कॉफी इंडस्ट्री को और विकसित करने के लिए किया गया था, और कॉफी बोर्ड को दुबारा बनाया गया था, जो 1 अगस्त, 1955 से लागू हुआ था। अमेंडमेंट एक्ट द्वारा लाया गया प्रमुख अमेंडमेंट यह था कि इसमें एक पूर्णकालिक (फुल टाइम) चेयरमैन की नियुक्ति की गई थी, जिसे केंद्र सरकार द्वारा बोर्ड के मुख्य एग्जीक्यूटिव के रूप में नियुक्त किया जाना था। यह परपेचुअल सक्सेशन वाली एक कॉरपोरेट बॉडी होगी।
बोर्ड का कांस्टिट्यूशन
एक्ट की धारा 4 के तहत बनाए गए बोर्ड में, सदस्यों की कुल संख्या 33 होगी, जिसमें चेयरमैन, संसद के 3 सदस्य और सरकार द्वारा समीचीन (एक्सपीडिएंट) अन्य ऐसे सदस्य शामिल होंगे, जिनकी संख्या 29 से अधिक नहीं होगी। प्रत्येक सदस्य के लिए मेंबरशिप की अवधि 3 वर्ष होगी, जो पुनर्नियुक्ति (रीअपॉइंटमेंट) के अधीन हैं।
बोर्ड के कार्य
निम्नलिखित कार्य हैं जो बोर्ड द्वारा किए जाते हैं:
- भारत और विदेशों में भारतीय कॉफी की खपत को बढ़ावा देना।
- कॉफी उगाने वालों को उनके एस्टेट के विकास में सहायता करना।
- भारतीय कॉफी इंडस्ट्री के हित (इंटरेस्ट) में कृषि (एग्रीकल्चर) और तकनीकी अनुसंधान (रिसर्च) को बढ़ावा देना।
- कॉफी बागानों (प्लांटेशंस) पर काम करने वालों के लिए कल्याणकारी (वेलफेयर) उपाय तैयार करना।
- धारा 30, 31 और 32 के तहत जेनरल फंड और पूल फंड के रूप में दो श्रेणियों (कैटेगरीज) में विभाजित (डिवाइडेड) फंड को बनाए रखना।
- कॉफी की बिक्री को नियंत्रित करने के लिए, सरप्लस पूल में कितना बेचा जाना है और एस्टेट के मालिक द्वारा घरेलू या मुफ्त बिक्री के लिए कितनी मात्रा में रखा जाना है।
- एस्टेट के मालिकों के खातों का इंस्पेक्शन।
- भारत और विदेशों में कॉफी उत्पादन, एक्सपोर्ट, इम्पोर्ट, वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) के रिकॉर्ड और खातों को बनाए रखना।
- अनरजिस्टर्ड मालिकों की कॉफी होल्डिंग्स के विकास के लिए सामान्य फंड का उपयोग करना।
- बोर्ड के पास खर्च करने की शक्ति है, चोरी, डकैती (रॉबरी), धोखाधड़ी और नेगलीजेंस के कारण नुकसान के मामले में 10,000 / – तक के नुकसान को राइट-ऑफ कर सकता है और अन्य मामलों में रु 20,000/- तक राइट-ऑफ कर सकता है।
केंद्र सरकार की भूमिका (रोल ऑफ़ सेंट्रल गवर्नमेंट)
- केंद्र सरकार को जैसा वह उचित समझे, बोर्ड के किसी भी कार्य को रद्द (कैंसल) करने, बदलने, निलंबित (सस्पेंड) करने का अधिकार दिया है।
- यह कॉफी की कीमत तय करती है कि उसे थोक और रिटेल दोनों तरह से कितनी मात्रा में बेचा जाना है।
- यह खुद बोर्ड के रिकॉर्ड्स को इंस्पैक्ट कर सकती है या अपनी ओर से किसी भी सदस्य को प्राधिकृत (ऑथराइज) कर सकती है।
- यह एक अपीलेट बॉडी के रूप में कार्य करती है यदि कोई व्यथित (अग्रिव्ड) व्यक्ति अपील करता है या जब बोर्ड लाइसेंस देने से इनकार करता है या ऐसे आदेश के 60 दिनों की अवधि के अंदर क्योरिंग एस्टेब्लिशमेंट का लाइसेंस रद्द करता है तो 5 रुपये का भुगतान करके अपील की जा सकती है, जो सरकारी राजस्व (रिवेन्यू) के खाते में जाएंगे।
कॉफी एस्टेट के मालिक का रजिस्ट्रेशन
कॉफी एस्टेट के प्रत्येक मालिक को, उस तारीख, जिस दिन वह संपत्ति का मालिक बन गया था, से एक महीने के अंदर राज्य सरकार द्वारा नियुक्त रजिस्टरिंग अधिकारी से रजिस्ट्रेशन प्राप्त करना होता है। ऐसे मालिक को धारा 14(1) के तहत रजिस्टर्ड मालिक माना जाएगा।
एक बार किए गए रजिस्ट्रेशन को तब तक रद्द नहीं किया जा सकता जब तक कि रजिस्टर्ड कार्यालय द्वारा उसे रद्द ना किया गया हो, जैसा कि धारा 14(3) के तहत उल्लेख किया गया है।
कॉफी की बिक्री
एक रजिस्टर्ड मालिक कॉफी बेच सकता है यदि, इसे धारा 28 के तहत लाइसेंस प्राप्त एक क्योरिंग एस्टेब्लिशमेंट के माध्यम से वितरित (डिलीवर) किया जाता है, या इसे धारा 24 के तहत बोर्ड से प्राप्त लाइसेंस के प्रावधान के अनुसार बेचा जाता है।
एक रजिस्टर्ड मालिक को बोर्ड को, क्योरिंग एस्टेब्लिशमेंट को कॉफी भेजते समय प्रत्येक एस्टेट को भेजी गई मात्रा के बारे में सूचित करना चाहिए। प्रत्येक क्योरिंग एस्टेब्लिशमेंट, अनक्योर्ड एस्टेब्लिशमेंट से प्राप्त कॉफी की मात्रा के बारे में बोर्ड को सूचित करेगा।
क्योरिंग एस्टेब्लिशमेंट का लाइसेंस
सभी बिक्री योग्य कॉफी को मालिक द्वारा रजिस्टर्ड किया जाना चाहिए या धारा 28 के अनुसार एक क्योर्ड एस्टेब्लिशमेंट द्वारा उसके मालिक को वितरित किया जाना चाहिए। हालांकि, धारा 24, निर्दिष्ट (स्पेसिफाई) करती है कि बोर्ड से लाइसेंस प्राप्त करने के बाद एक अनक्योर्ड एस्टेब्लिशमेंट कॉफी बेची जा सकती है।
कॉफी का एक्सपोर्ट और री-इंपोर्ट
धारा 20 में कहा गया है कि बोर्ड या बोर्ड की ओर से प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा, भारत से कॉफी का एक्सपोर्ट किया जाएगा। केंद्र सरकार के पास एक्सपोर्ट की मात्रा को नियंत्रित करने की शक्ति है। जबकि कॉफी को री-इंपोर्ट करने की अनुमति तब तक नहीं है जब तक कि धारा 20(1) में उल्लिखित बोर्ड द्वारा अनुमति नहीं दी जाती है।
अपराध और दंड (ऑफेंसेस एंड पेनेल्टीज)
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या फर्स्ट क्लास के जुडिशियल मजिस्ट्रेट का कोर्ट निम्नलिखित आधारों पर अपराध का कॉग्निजेंस ले सकता है:
- रजिस्टर करने में विफल होना- कॉफी एस्टेट के प्रत्येक मालिक को, धारा 14 के तहत खुद को रजिस्टर्ड करवाना होगा और विफल होने के मामले में 1000 रुपये का जुर्माना लग सकता है जिसे बाद की विफलताओं के लिए 5000 तक बढ़ाया जा सकता है।
- झूठी रिटर्न फाइल करना- यदि कोई रजिस्टर्ड मालिक झूठी रिटर्न फाइल करता है, तो उसे 1000 रुपये के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
- बोर्ड को कॉफी की डिलीवरी में विफलता- यदि कोई रजिस्टर्ड मालिक या लाइसेंस क्योरर, कोर्ट के आदेश से कॉफी को बोर्ड तक पहुंचाने में विफल रहता है तो उसे कॉन्फिस्केट किया जा सकता है या उसे 1000 रुपये तक का जुर्माना देना होगा।
- बाधा (ऑब्सट्रक्शन)- जो कोई भी बोर्ड के सदस्यों के इंस्पेक्शन में बाधा डालता है, उसे 1000 रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
- कंपनी के मामले में- यदि अपराध किसी कंपनी द्वारा किया जाता है, तो कंपनी के व्यवसाय (बिजनेस) के संचालन (कंडक्ट) के लिए जिम्मेदार प्रत्येक व्यक्ति को दंडित किया जाएगा।
कॉफी रूल्स, 1955
बोर्ड, केंद्र सरकार के नियंत्रण के अंदर है, जैसा कि एक्ट की धारा 42 में उल्लेख किया गया है, जो सरकार को बोर्ड के किसी भी एक्ट को बदलने, रद्द करने, अमेंड करने का नियंत्रण देता है। हालांकि, धारा 48 के अनुसार, केंद्र सरकार ने बोर्ड को कुछ नियम बनाने का अधिकार दिया है और ऐसा करने के लिए कॉफी रूल्स सामने आए जो बोर्ड के कामकाज, मेंबरशिप, विभिन्न कमिटीज के गठन जैसे कॉफी क्वालिटी कमिटी, रिसर्च कमिटी, मार्केटिंग कमिटी, बोर्ड के सदस्यों के कर्तव्य (ड्यूटीज), रिक्तियों (वेकेंसी) को भरना, बजट बनाना, बोर्ड के फाइनेंस का प्रबंधन (मैनेज) करना, इंपोर्ट और एक्सपोर्ट आदि। यह रूल्स एक्ट को लागू करने के लिए दिशानिर्देश (गाइडलाइंस) हैं।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
इस प्रकार, कॉफी इंडस्ट्री के विकास के लिए और विश्व के अन्य भागों में भारतीय कॉफी को स्टैंडरडाइज करने के लिए कॉफी एक्ट बनाया गया था। जबकि केंद्र सरकार, कॉफी को नियंत्रित करने का अधिकार देती है, कॉफी बोर्ड की स्थापना कॉफी के उत्पादन, वितरण, बिक्री और खरीद की जांच और संतुलन (बैलेंस) रखने के लिए की गई थी। यदि कोई व्यक्ति कॉफी की खेती करना चाहता है तो रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होती है, हालांकि, अनक्योर्ड कॉफी की बिक्री के लिए लाइसेंस की अनुमति, बोर्ड द्वारा दी गई अनुमति और अप्रूव किया गए लाइसेंस के साथ दी जाती है।
संदर्भ (रेफरेंसेस)
- Indian Coffee Act, 1942
- Coffee Rule, 1955