भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30: क्या यह निरपेक्ष है?

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Constitution of India
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यह लेख Aastha Verma द्वारा लिखा गया है, जो कलिंग विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ से बीए एलएलबी कर रही हैं। इस लेख में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यकों (माइनोरिटी) के अधिकारों और अल्पसंख्यक समुदाय में सरकार की भूमिका को शामिल किया गया है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30

अल्पसंख्यक शब्द को भारतीय संविधान में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। इसका अंग्रेज़ी शब्द “माइनोरिटी” लैटिन शब्द ‘माइनर’ और प्रत्यय (सफिक्स) ‘इटी’ से बना है जिसका अर्थ कम संख्या में होना है। अनुच्छेद 30 भारतीय संविधान के भाग III के तहत परिभाषित किया गया है जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को परिभाषित करता है जो उसे उसके धर्म, जाति, और लिंग के आधार पर बिना किसी भेदभाव के दिए जाते है। इसे ‘शैक्षिक अधिकारों का चार्टर’ भी कहा जाता है। अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदायों को उनकी पसंद के शिक्षण संस्थान की स्थापना और प्रशासन करने के अधिकारों की पुष्टि करता है। यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुनिश्चित करता है जिन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए। भारतीय समाज विभिन्न समुदायों का मिश्रण है और इसकी विविधता (डायवर्सिटी) ही इसकी ताकत है। हमारा संविधान अल्पसंख्यक समुदाय को इन अधिकारों की गारंटी देता है ताकि देश की विविधता को संरक्षित किया जा सके और उनकी संस्कृति का प्रचार किया जा सके। यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी के लिए समानता के सिद्धांत के द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा करता है। यह अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को उनकी भाषा में शिक्षा देने का अधिकार भी देता है।   

अल्पसंख्यकों को केवल भाषाई आधार पर सीमित करने के लिए संविधान सभा में एक बहस हुई थी और यह तर्क दिया गया था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) राज्य है और इसे धर्म के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए। विधानसभा के एक अन्य सदस्य ने प्रस्तावित किया कि अल्पसंख्यक आबादी के अधीन अपनी भाषा और लिपि में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। संविधान सभा ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और अल्पसंख्यकों को दो भागों में विभाजित कर दिया:

  • धार्मिक अल्पसंख्यक- धार्मिक अल्पसंख्यक, समुदाय की संख्यात्मक ताकत से तय होते हैं। भारत में, हिंदू बहुसंख्यक हैं और सरकार के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। चूंकि भारत एक बहु-धार्मिक देश है, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (कमीशन) 1992 की धारा 2(c) के तहत छह समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है। वे हैं- मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख, जैन और पारसी। यह अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए स्थापित किया गया है। 
  • भाषाई अल्पसंख्यक- जिन लोगों की मातृभाषा बहुसंख्यक समूह से भिन्न होती है, उन्हें भाषाई अल्पसंख्यक माना जाता है। भारतीय संविधान सभी के लिए समानता के सिद्धांत द्वारा इन अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 350A, शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर भाषा को मातृ भाषा में अनुवादित करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करने के लिए राज्य पर एक दायित्व लगाता है।   

टी.एम.ए.पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 से संबंधित दिशा-निर्देश निर्धारित किए थे। धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों का निर्धारण हर राज्य के अनुसार किया जाएगा और न कि राष्ट्रीय स्तर पर। उचित कामकाज, छात्रों और शिक्षकों की भलाई के संबंध में विनियमन सरकार द्वारा लगाया जा सकता है। सरकार मानक नियम लागू कर सकती है, लेकिन उन्हें संस्था के अल्पसंख्यक चरित्र को नष्ट नहीं करना चाहिए और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान में सरकार का हस्तक्षेप बहुत सीमित होना चाहिए।   

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान तीन प्रकार के होते हैं-

  1. संस्थाएं जो राज्य से मान्यता और सहायता की मांग करती हैं।
  2. संस्थाएं जो राज्य से मान्यता की मांग करती हैं न कि सहायता की।
  3. संस्थाएं जो न तो मान्यता की मांग करती हैं और न ही राज्य से सहायता मांगती हैं।

जो संस्थाएं राज्य से मान्यता की मांग करती हैं और राज्य से सहायता प्राप्त करती हैं या नहीं भी करती, तो वे राज्य के नियमों का पालन करने के लिए बाध्य हैं और ये नियम शिक्षण कर्मचारियों के रोजगार, अनुशासन, शैक्षणिक मानकों और स्वच्छता आदि से संबंधित हैं। और संस्थान जो न तो राज्य से मान्यता और न ही सहायता की मांग करते हैं, वह उनके नियमों को लागू करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन उन्हें श्रम कानून, संविदा (कॉन्ट्रेक्ट), औद्योगिक (इंडस्ट्रियल) कानून आदि जैसे सामान्य कानूनों का पालन करना होगा। इसके अलावा, इन संस्थानों को राज्य द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंड का पालन करना होगा। वे तर्कसंगत प्रक्रिया से ही शिक्षकों की नियुक्ति करने के लिए स्वतंत्र हैं। 

अनुच्छेद 30 पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

मलंकारा सीरियन कैथोलिक कॉलेज बनाम टी. जोस और अन्य (2006) के मामले में दिए गए निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यकों को दिया गया अधिकार बहुसंख्यक के साथ समानता सुनिश्चित करना है, जिसका मतलब यह नहीं है कि यह अल्पसंख्यकों को लाभप्रद स्थान देने के लिए हैं और इसलिए सामान्य कानून सभी शैक्षणिक संस्थानों पर लागू होंगे। साथ ही, एक मुद्दा उठाया गया था कि अनुच्छेद 30A भगवत गीता, वेद, पुराण आदि के शिक्षण को प्रतिबंधित करता है। न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 30A नहीं है।  

अल्पसंख्यकों की सुरक्षा– भारत सरकार के लिए क्यों ज़रूरी है?

भारत सरकार ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों के साथ भेदभाव करने वाले कानूनों और नीतियों को अपनाया है। दिल्ली में सांप्रदायिक (कम्यूनल) हिंसा के दौरान कुल 53 लोग मारे गए थे, जिनमें से 40 मुसलमान थे। जांच करने के बजाय, भाजपा नेताओं ने हिंसा और भड़काई और कार्यकर्ताओं और विरोध आयोजकों (ऑर्गनाइजर्स) को निशाना बनाया था।

नवंबर 2020 में, जब सिख कृषि बिलों का विरोध कर रहे थे, तो सरकार ने विरोध का जवाब दिया और उनके आरोपों की जांच की। 8 फरवरी को, प्रधान मंत्री ने संसद में किसानों के शांतिपूर्ण विरोध के लिए भारत में बढ़ते अधिनायकवाद (ऑथोरिटेरियन) की अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का आह्वान किया था।

दिसंबर 2019 में सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 पारित किया जो नागरिकता प्रदान करते समय मुस्लिम धर्म के साथ भेदभाव करता है। सरकार ने एकमात्र मुस्लिम बहुसंख्यक राज्य को दी गई संवैधानिक स्वायत्तता (ऑटोनोमी) को रद्द कर दिया और लोगों के मूल अधिकारों के उल्लंघन में प्रतिबंध लगा दिए। नेताओं और समर्थकों ने मुसलमानों के खिलाफ राष्ट्रीय हितों के खिलाफ साजिश रचने का विरोध किया।          

म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों (रिफ्यूजीस) को अपनी जान और सुरक्षा का खतरा था और भारत सरकार ने उन्हें धमकी दी और उन्हें वापस भेज दिया जाएगा। राज्य मुस्लिम पशु व्यापारियों पर मुकदमा चलाने के लिए गोहत्या के खिलाफ कानून का इस्तेमाल करते हैं और अफवाहें फैलाते हैं कि उन्होंने गोमांस के लिए गायों को मार डाला है। कई राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किए हैं जो हिंदू महिलाओं से शादी करने वाले मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ उपयोग किए जाते हैं।

सरकार के कार्यों ने समाज में एक सांप्रदायिक नफरत पैदा की है और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अधिकारियों के भय और अविश्वास को जन्म दिया है। इसलिए, सरकार को भेदभावपूर्ण कानूनों, नीतियों को वापस लेना होगा और अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुर्व्यवहार के लिए न्याय सुनिश्चित करना होगा। 

अनुच्छेद 30 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में राज्य कब हस्तक्षेप कर सकता है?

प्रत्येक संस्थान को संस्था के प्रबंधन के लिए नियमित जांच की आवश्यकता होती है ताकि कोई भी उन्हें दी गई शक्ति का दुरुपयोग न कर सके। सरकार शैक्षणिक स्थिति की जांच करने और संस्थान के लिए आवश्यक मानक बनाए रखने की कोशिश करती है। उनके पास शक्ति का दुरुपयोग होने पर कार्रवाई करने की शक्ति है और वे संस्था में कार्यरत शिक्षकों या कर्मचारियों को नियंत्रित भी कर सकते हैं। वे उन्हें संस्था के नियमों और विनियमों का पालन करने के लिए भी कह सकते हैं। नियमों और विनियमों के प्रभावी कामकाज के लिए इन संस्थानों को देखने के लिए राज्य जिम्मेदार है। राज्य को निर्देशात्मक नीतियां (डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स) बनाने का अधिकार है और वह संगठनों के कल्याण के लिए कार्रवाई कर सकता है। लेकिन यह आयोजित किया गया था कि सरकार संस्था के कामकाज पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती क्योंकि यह अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन है। और एक पूर्ण निर्णय के बाद, यह निर्धारित किया गया था कि सरकार निजी संगठनों के लिए नियम और कानून निर्धारित करती है और वही इन अल्पसंख्यक संस्थानों पर भी लागू होगी।   

अनुच्छेद 30 की सीमा में धन और वित्त (फाइनेंस) के मामले में राज्य से मदद लेने का अधिकार, प्रबंधन निकायों (मैनेजमेंट बॉडीज) और कर्मचारियों को चुनने का अधिकार भी शामिल है। इसके अलावा, ये अधिकार पूर्ण नहीं हैं। अनुच्छेद 30(1) के पीछे का मकसद अल्पसंख्यक संस्थानो को अस्तित्व में लाना, अपने नियम और शर्तें बनाना और परीक्षाएं कराना और डिग्री और डिप्लोमा प्रदान करना है।               

अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक संस्थान

जनवरी 2017 में, सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने माना कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को केवल वरिष्ठता (सिनियोरिटी) के आधार पर ही नहीं, बल्कि कार्य अनुभव के आधार पर भी योग्य प्रिंसिपल नियुक्त करने का पूर्ण अधिकार है। नियुक्ति उचित है या नहीं और यह जांचने के लिए कि क्या किसी उम्मीदवार के अधिकार का उल्लंघन किया गया है या नहीं, यह उच्च न्यायालय द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग करके किया जाता है।     

दोहरा परीक्षण मानदंड

रेव. सिद्धर्जभाई (1963) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान तभी मान्य होगा जब वह दोहरे परीक्षण को पूरा करता है जो अल्पसंख्यक संस्थान को अल्पसंख्यक शिक्षा के लिए अधिक प्रभावी बनाता है। केरल शिक्षा विधेयक मामले (1957) में यह कहा गया था की, अनुच्छेद 30 के तहत प्रमुख शब्द ‘विकल्प’ है। इस प्रकार, प्रत्येक अल्पसंख्यक, सरकार के साथ संबंधों के आधार पर विकल्प कर सकता है और उचित प्रतिबंधों के तहत न्यूनतम योग्यता निर्धारित कर सकता है। योग्यता और अनुभव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) (यू.जी.सी.) के समान ही लागू होंगे लेकिन सरकार अपनी पसंद के शिक्षकों के चयन को लागू नहीं कर पाएगी।        

अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकार

अल्पसंख्यक समुदायों को अपना शिक्षण संस्थान स्थापित करने का अधिकार है लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि अल्पसंख्यकों के अधिकार पूर्ण नहीं होने चाहिए क्योंकि यह राज्य के कानूनों में बाधा करता है जो धर्मनिरपेक्ष उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बनाए जाते हैं और इसमें शामिल है कि यदि अनुच्छेद 30 पूर्ण है तो सरकार हस्तक्षेप नहीं कर पाएगी, भले ही संस्था अलगाव (सिसेशन) या सशस्त्र क्रांति सिखा रहा है। किसी को भी ऐसा कुछ करने का अधिकार नहीं है जो सिर्फ अपने धर्म का प्रचार करने के लिए सार्वजनिक नीतियों के विरुद्ध हो। संविधान के अनुच्छेद 19(6) के तहत, यह कहा गया था कि सरकार को इस पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। साथ ही, अल्पसंख्यक संस्थान जो पूरी तरह से राज्य द्वारा वित्त पोषित हैं, वह अनुच्छेद 30 के तहत दिए गए अधिकारों के बावजूद इसे प्रशासित करने का अधिकार खो देते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 (1) और 30 (1) अल्पसंख्यक अधिकारों को स्थापित करने और अपने स्वयं के शिक्षण संस्थान को प्रबंधित करने की सुविधा प्रदान करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि अनुच्छेद 29(1) यह परिभाषित करने की कोशिश करता है कि अल्पसंख्यक समुदाय कौन हैं। सेंट जेवियर्स कॉलेज बनाम गुजरात राज्य, (1974) के मामले में यह कहा गया था कि दोनों अनुच्छेद परस्पर अनन्य (म्यूचुअली एक्सक्लूसिव) नहीं हैं। भारतीय संविधान अल्पसंख्यक समुदायों को सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार प्रदान करता है ताकि वे अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और लिपियों को संरक्षित करने में सक्षम हो सकें। 

1978 के 44वें संविधान संशोधन ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की श्रेणी से हटा दिया है, लेकिन यह सुनिश्चित किया है कि यह अल्पसंख्यक समुदाय के अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत, उन्हें अपनी पसंद का संस्थान स्थापित करने के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से संचालित करने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए राज्य के साथ औपचारिक सहयोगात्मक (फॉर्मल कोलेबोरेटिव) समझौता होना चाहिए।

निष्कर्ष

धर्म और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की ताकत है। अनुच्छेद 30 शैक्षिक संस्थानों में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित करता है और उनके खिलाफ भेदभाव को रोकता है। यह अनुच्छेद जाति, धर्म और लिंग के भेदभाव के बिना अल्पसंख्यकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है। संविधान अल्पसंख्यकों के अधिकारों की गारंटी देता है ताकि देश की विविधता को संरक्षित किया जा सके और पिछड़े हुए लोगों सहित सभी समूहों को उनकी संस्कृति की रक्षा और संरक्षण के लिए अवसर प्रदान किया जा सके। अल्पसंख्यकों को दो समूहों में बांटा गया है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के अनुसार धार्मिक अल्पसंख्यकों को परिभाषित किया गया है, और भाषाई अल्पसंख्यक ऐसे व्यक्तियों के समूह हैं जिनकी मातृभाषा बहुसंख्यकों से भिन्न है। टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने इन अल्पसंख्यक समुदायों के लिए दिशा-निर्देश दिए और कहा कि अल्पसंख्यकों का फैसला राज्य के आधार पर और आबादी के अनुसार किया जाएगा, न कि राष्ट्रीयता के आधार पर। संस्था के नियमों और विनियमों (रेगुलेशन) के प्रभावी कामकाज के लिए सरकार को इन संस्थानों पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। कई बार सरकार अल्पसंख्यक समुदाय के साथ भेदभाव करती है, इसलिए उन्हें भेदभावपूर्ण कानून वापस लेना पड़ता है और उन्हें न्याय सुनिश्चित करना पड़ता है, क्योंकि यह समाज में सांप्रदायिक असंतुलन पैदा कर रहा है।         

संदर्भ

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