यह लेख चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना के छात्र Gautam Badlani ने लिखा है। यह लेख भारत में धन विधेयकों (बिल) से संबंधित प्रावधानों और न्यायिक निर्णयों की जांच करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयकों की परिकल्पना की गई है और लोकसभा को इन विधेयकों के संबंध में विशेष शक्तियां प्राप्त हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।
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परिचय
भारत में, सामान्य नियम यह है कि संसद के दोनों सदनों द्वारा एक विधेयक पारित होने पर एक नया कानून प्रख्यापित (प्रोमुलगेट) किया जाता है। विधेयक तीन प्रकार के होते हैं: साधारण विधेयक (अनुच्छेद 107), वित्त (फाइनेंस) विधेयक (अनुच्छेद 117) और धन विधेयक (अनुच्छेद 109 और 110)।
धन विधेयक संसद के दोनों सदनों के अनिवार्य अनुमोदन (अप्रूवल) के सामान्य नियम का अपवाद है। भारत ने धन विधेयक की अवधारणा को अंग्रेजों से अपनाया गया है। यूनाइटेड किंगडम में, यह संसद अधिनियम, 1911 था जिसने हाउस ऑफ कॉमन्स को विशेष शक्तियां प्रदान कीं और हाउस ऑफ लॉर्ड्स को धन विधेयकों को अस्वीकार करने के अधिकार से वंचित कर दिया।
धन विधेयक क्या है?
एक धन विधेयक उन मामलों से संबंधित होता है जो प्रकृति में वित्तीय होते हैं, जैसे कराधान (टैक्सेशन) मामले, सार्वजनिक व्यय (एक्सपेंडिचर) से संबंधित विधेयक, सरकार के वित्तीय दायित्व या भारत की संचित निधि (कंसोलिडेटेड फंड) से व्यय, आदि।
धन विधेयक एक प्रकार का वित्तीय विधेयक है। तीन प्रकार के वित्तीय विधेयक हैं:
- धन विधेयक
- वित्त विधेयकों की श्रेणी I, अर्थात, अनुच्छेद 117(1) के तहत परिकल्पित वित्तीय विधेयक। इन विधेयकों में अनुच्छेद 110(1)(a) से 110(1)(f) के तहत प्रावधान शामिल हैं। इन विधेयकों में धन विधेयक और साधारण विधेयक दोनों की विशेषताएं हैं। यह विधेयक दोनों सदनों की संयुक्त समिति के समक्ष भी रखा जा सकता है।
- वित्तीय विधेयक को अनुच्छेद 117(3) के तहत परिकल्पित किया गया है, ये विधेयक मुख्य रूप से साधारण विधेयकों की प्रकृति के होते हैं, केवल अंतर यह है कि एक बार पारित होने के बाद, इनमें संचित निधि व्यय शामिल होता है। इन विधेयकों को राष्ट्रपति की सिफारिश पर संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।
धन विधेयक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:
- वित्तीय विधेयक: यह आम बजट के तुरंत बाद हर साल निचले सदन में पेश किया जाने वाला विधेयक है और वित्तीय मामलों से संबंधित होते है जैसे कर संबंधी कानूनों में संशोधन। इसे वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करते समय संसद के समक्ष रखा जाता है।
- विनियोग (एप्रोप्रिएशन) विधेयक: यह विधेयक संचित निधि से संबंधित अनुदानों (ग्रांट) के विनियोग को अधिकृत (ऑथराइज) करता है। एक बार जब अनुदान को सदन द्वारा अधिकृत कर दिया जाता है, तो यह विधेयक अनुदान को पूरा करने के लिए आवश्यक व्यय और धन को अधिकृत करता है।
किसी विधेयक को धन विधेयक कब माना जाता है?
संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिकल्पना की गई है। यह प्रावधान करता है कि धन विधेयक निम्नलिखित मामलों से संबंधित एक विधेयक है:
- कर लगाना
- सरकार के वित्तीय दायित्व या उधारी
- आकस्मिकता (कंटिंजेंसी) निधि या भारत की संचित निधि से संबंधित मामले
- संघ या राज्य के किसी भी खाते की लेखा परीक्षा (ऑडिट)
हालाँकि, किसी विधेयक को केवल इसलिए धन विधेयक नहीं माना जा सकता है क्योंकि वह निम्नलिखित से संबंधित है:
- आर्थिक जुर्माना या दंड का अधिरोपण (इंपोजिशन),
- किसी स्थानीय उद्देश्य के लिए या किसी स्थानीय अधिकारी या भुगतान द्वारा कर का अधिरोपण, छूट या परिवर्तन
- किसी भी लाइसेंस शुल्क का अधिरोपण
अनुच्छेद 199, राज्य विधानमंडल के संबंध में एक धन विधेयक को परिभाषित करता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि संविधान संशोधन विधेयक, भले ही वे अनुच्छेद 110 द्वारा प्रदान किए गए मानदंडों (क्राइटेरिया) को पूरा करते हों, लेकीन वह धन विधेयक नहीं बनते हैं। ऐसे विधेयकों पर अनुच्छेद 368 के तहत विचार किया जाता है और इसका अनुच्छेद 110 पर प्रभाव पड़ता है।
भारत में धन विधेयक के प्रावधान
उपरोक्त वर्गीकरण से, यह उचित रूप से माना जा सकता है कि किसी विधेयक के धन विधेयक होने या न होने के संबंध में कुछ विवाद उत्पन्न होने के लिए बाध्य हैं। इस तरह के विवाद की परिकल्पना करते हुए, अनुच्छेद 110(3) में प्रावधान है कि जब इस संबंध में कोई प्रश्न हो कि कोई विशेष विधेयक, धन विधेयक है या नहीं तो स्पीकर का निर्णय अंतिम होगा। कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, यह तय करने के लिए स्पीकर को किसी से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं है। यह प्रावधान आयरलैंड के संविधान, 1937 के अनुच्छेद 22 से लिया गया है जो प्रदान करता है कि धन विधेयक के मामले में आयरलैंड के निचले सदन के अध्यक्ष (चेयरमैन) का निर्णय अंतिम होगा।
इस प्रकार, अनुच्छेद 110(4) में प्रावधान है कि जब विधेयक को राज्य सभा और भारत के राष्ट्रपति के समक्ष उसकी सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो यह दर्शाता है कि स्पीकर द्वारा समर्थन की विधेयक एक धन विधेयक है, यह आवश्यक है।
चूंकि पूर्ण शक्तियां लोकसभा में निहित हैं, इसलिए संयुक्त समिति की कोई संभावना नहीं है। इस प्रकार, संयुक्त बैठक के प्रावधान, जैसा कि अनुच्छेद 108 के तहत प्रदान किया गया है, यह धन विधेयक के संबंध में काम नहीं करता है।
यूनाइटेड किंगडम में, धन विधेयक के संबंध में स्पीकर के निर्णय की न्यायिक समीक्षा (रिव्यू) नहीं की जा सकती है। हालाँकि, अनुच्छेद 110 स्पीकर के निर्णय के लिए ऐसी कोई छूट प्रदान नहीं करता है।
संसद में धन विधेयक पारित करने के चरण
यह ध्यान देने योग्य है कि धन विधेयक, अन्य विधेयकों के विपरीत, केवल निचले सदन, यानी लोकसभा में पेश किया जा सकता है, राज्यसभा में नहीं। अनुच्छेद 109(1) स्पष्ट रूप से धन विधेयक को राज्य सभा में पेश किए जाने से रोकता है। इसके अलावा, एक धन विधेयक केवल राष्ट्रपति की सिफारिश पर पेश किया जाता है।
अनुच्छेद 109 विशेष प्रक्रिया प्रदान करता है जिसका पालन, धन विधेयकों को पारित करने के लिए किया जाता है। धन विधेयक, लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद, उच्च सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है और राज्य सभा संबंधित विधेयक पर अपनी सिफारिशों को प्राप्त होने के 14 दिनों के भीतर लोकसभा को वापस भेज देती है। तथापि, सिफारिशों को पूर्ण या आंशिक रूप से स्वीकार करना लोकसभा का विवेकाधिकार है। इसके अलावा, यदि राज्य परिषद 14 दिनों की समयावधि के भीतर धन विधेयक को प्रसारित (ट्रांसमिट) करने में विफल रहती है, तो विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाएगा।
इसी तरह, धन विधेयक राज्य विधानसभाओं में भी एक विशेष पारित प्रक्रिया का आनंद लेते हैं। राज्य विधानसभा में अनुच्छेद 198 के आधार पर धन विधेयक पेश नहीं किया जा सकता है। धन विधेयक, राज्य विधानसभा द्वारा पारित होने पर, विधान परिषद को भेजा जाता है, और परिषद के पास सिफारिशें करने और विधेयक को वापस विधान सभा में भेजने के लिए 14 दिन का समय होता है, ऐसा न करने पर, विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया माना जाएगा। परिषद की सिफारिशें केवल सुझाव प्रदान करती हैं और यह अनिवार्य नहीं हैं।
धन विधेयक को लेकर विवाद
धन विधेयकों के प्रावधान और इसके द्वारा लोकसभा को प्रदान की जाने वाली विशेष शक्ति ने कई विवादों को जन्म दिया है।
- आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) विधेयक, 2016 को संसद में धन विधेयक के रूप में पेश किया गया था। राज्यसभा ने कुछ सिफारिशें कीं जिन्हें निचले सदन ने खारिज कर दिया था। के.एस पुट्टस्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018) के ऐतिहासिक फैसले में न्यायालय के सामने यह सवाल आया कि क्या आधार विधेयक को कानूनी रूप से धन विधेयक के तौर पर पास किया गया था या नहीं।
आधार विधेयक को केवल धन विधेयक के रूप में पेश किया गया था क्योंकि विधेयक के 59 धाराओं में से एक, अर्थात् धारा 7, संचित निधि से संबंधित थी।
न्यायालय ने बहुमत से यह माना कि विधेयक वास्तव में एक धन विधेयक था क्योंकि यह सीधे और काफी हद तक संचित निधि से वहन किए गए खर्चों से जुड़ा था।
असहमति जताने वाले न्यायाधीश, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का मत था कि आधार विधेयक, विशिष्ट पहचान से संबंधित होने के कारण, निश्चित रूप से धन विधेयक नहीं था। उन्होंने आगे निचले सदन द्वारा शक्तियों के मनमाने प्रयोग पर रोक लगाने में राज्य सभा के महत्व पर प्रकाश डाला।
2. एक और विवाद तब पैदा हुआ जब वित्त विधेयक, 2017 को धन विधेयक के रूप में पेश किया गया। वित्त अधिनियम, 2017 ने कई कानूनों में संशोधन किया और कुछ न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनल) के विलय (मर्जर) या एकीकरण (इंटीग्रेशन) का प्रावधान किया।
रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड, (2019) में सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह सवाल आया कि क्या वित्त विधेयक, 2017 अनुच्छेद 110 के अनुसार धन विधेयक है या नहीं।
न्यायालय ने माना कि मौजूदा मिसालें धन विधेयक की आवश्यक विशेषताओं और स्पीकर के समर्थन की वैधता पर स्पष्टता प्रदान नहीं करती हैं और इसलिए इस प्रश्न को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया था।
आगे यह माना गया कि एक विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इस बारे में स्पीकर के निर्णयों की न्यायिक समीक्षा “सीमित आधार” पर अनुरक्षणीय (मेंटेनेबल) है। हालांकि, न्यायालय ने मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1996) के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि स्पीकर के फैसले की न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग प्रतिबंधित रूप से किया जाना चाहिए और वरीयता (प्रिफरेंस) “नियामक सम्मान (रेगुलेटरी डिफरेंस)” की अवधारणा के प्रति दिखाई गई थी, जिसका पालन संयुक्त राज्य अमेरिका में किया जाता है।
धन विधेयक से संबंधित कई अन्य ऐतिहासिक निर्णय हुए हैं। ये मामले निम्नलिखित हैं:
- एल पोन्नम्मल बनाम भारत संघ (2022): इस मामले में, याचिकाकर्ता ने मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष दलील दी कि वित्त अधिनियम, 2021 की धारा 128 से 146, संविधान के अनुच्छेद 110 के उल्लंघन में थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि हालांकि प्रावधानों को संसद में धन विधेयक के रूप में पेश किया गया था, लेकिन संशोधन अनुच्छेद 110 के दायरे में नहीं आता था। याचिकाकर्ता ने जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के आईपीओ को भी चुनौती दी थी।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने दलील दी कि न्यायालय को स्पीकर की बुद्धिमत्ता का सम्मान करना चाहिए और उसे बचाना चाहिए, जब तक कि यह संविधान की भावना का स्पष्ट रूप से उल्लंघन नहीं करता है।
न्यायालय ने माना कि संशोधन का प्राथमिक उद्देश्य भारत की संचित निधि में धन प्राप्त करना था। इस निधि का इस्तेमाल विकास कार्यों के लिए किया जाना था, और इसलिए संशोधन अनुच्छेद 110 के दायरे में था। इस प्रकार, उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया था।
2. कलकत्ता की निगम (कॉर्पोरेशन) बनाम लिबर्टी सिनेमा (1964): इस मामले में, न्यायालय ने माना कि “सभी नगरपालिका कराधान” अनुच्छेद 110 द्वारा प्रदान किए गए धन विधेयक की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते हैं। यह आगे नोट किया गया था कि लाइसेंस शुल्क जिसे इस परिभाषा के द्वारा बाहर रखा गया है वे, वह हैं जो किसी लाइसेंस और उसकी शर्तों द्वारा नियंत्रित गतिविधि के विनियमन (रेगुलेशन) और पर्यवेक्षण (सुपरविजन) लागत को पूरा करने के लिए लगाई जाती हैं।
3. मोहम्मद सईद सिद्दीकी बनाम यूपी राज्य (2014) : इस मामले में, यूपी लोकायुक्त और उप-लोकायुक्त (संशोधन) अधिनियम, 2012 को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने के स्पीकर के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी। हालांकि, न्यायालय ने माना कि इस तरह के प्रश्न केवल एक सदस्य द्वारा विधान सभा के समक्ष उठाए जा सकते हैं। न्यायालय ने अनुच्छेद 212 और 255 पर भरोसा करते हुए कहा कि न्यायालय स्पीकर के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करेगा और इस प्रकार याचिका को खारिज कर दिया गया था।
धन विधेयक और वित्त विधेयक के बीच अंतर
धन विधेयक | वित्तीय विधेयक |
धन विधेयकों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत निपटाया जाता है। | वित्तीय विधेयकों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 117 के तहत निपटाया जाता है। |
स्पीकर के पास यह तय करने का अधिकार है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं। | वित्तीय विधेयकों को स्पीकर द्वारा समर्थन की आवश्यकता नहीं होती है। |
सभी धन विधेयक अनिवार्य रूप से प्रकृति में वित्तीय विधेयक होते हैं। | सभी वित्तीय विधेयकों को धन विधेयक नहीं माना जा सकता। |
धन विधेयकों को राज्यसभा द्वारा खारिज नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, राज्यों की परिषद धन विधेयक के संबंध में राज्य सभा की सिफारिशें अनिवार्य नहीं हैं। | राज्यसभा को वित्तीय विधेयक में बदलाव करने या यहां तक कि अस्वीकार करने का अधिकार है। |
राष्ट्रपति धन विधेयक को या तो अपनी स्वीकृति दे सकते है या अस्वीकार कर सकते है। | राष्ट्रपति वित्तीय विधेयक पर पुनर्विचार की सिफारिश भी कर सकते है और उसे वापस सदन में भी भेज सकते है। |
संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की कोई संभावना नहीं है। | गतिरोध (डेडलॉक) की स्थिति में राष्ट्रपति संयुक्त बैठक का आदेश दे सकते हैं। |
यह ध्यान रखना उचित है कि धन विधेयक और वित्तीय विधेयक के बीच भी कुछ समानताएं हैं। इन दोनों को राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही पेश किया जा सकता है। इसके अलावा, उन्हें केवल लोकसभा के समक्ष पेश किया जा सकता है।
निष्कर्ष
धन विधेयकों की विषय वस्तु की विशेष प्रकृति के कारण ही संसद के माध्यम से धन विधेयकों को पारित करने के लिए अलग संवैधानिक प्रक्रियाएं स्थापित की गई हैं और लोगों के निर्वाचित (इलेक्टेड) प्रतिनिधियों के सदन में विशेष विशेषाधिकार (प्रिविलेज) निहित किए गए हैं।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि धन विधेयक के प्रावधानों को यह सुनिश्चित करने के लिए शामिल किया गया है कि राज्य सभा निचले सदन की राजकोष (एक्सचेकर) तक पहुंच को रोकने में सक्षम नहीं है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफ.ए.क्यू.)
प्रश्न- धन विधेयक क्या है?
उत्तर: एक धन विधेयक, जैसा कि अनुच्छेद 110 के तहत परिभाषित किया गया है, कराधान, सार्वजनिक व्यय आदि से संबंधित एक विधेयक है। यह एक प्रकार का वित्त विधेयक है।
प्रश्न- धन विधेयक कहाँ पेश किया जा सकता है?
उत्तर : धन विधेयक केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है
प्रश्न – क्या धन विधेयक के संबंध में स्पीकर का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकता है?
उत्तर: हां, स्पीकर के निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। हालांकि, इस तरह की शक्ति का प्रयोग प्रतिबंधित और सीमित आधार पर किया जाता है।
प्रश्न- क्या राज्यसभा धन विधेयकों में बदलाव की सिफारिश कर सकती है?
उत्तर: हां, राज्यसभा धन विधेयक में बदलाव की सिफारिश कर सकती है। हालाँकि, यह लोकसभा का विवेक है कि वह सिफारिशों को स्वीकार करे या नहीं।
प्रश्न- संविधान सभा में धन विधेयक के संबंध में किस समिति ने सिफारिश की थी?
उत्तर: वित्तीय प्रावधानों पर विशेषज्ञ समिति
प्रश्न- भारतीय कानून के तहत धन विधेयक ब्रिटिश व्यवस्था से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर: यूनाइटेड किंगडम में, सदन के स्पीकर के पास यह निर्धारित करने का पूर्ण अधिकार है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और उसके निर्णय की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है। दूसरी ओर, स्पीकर को भारत में ऐसा कोई पूर्ण अधिकार प्राप्त नहीं है।
प्रश्न- भारत में धन विधेयक की अवधारणा ऑस्ट्रेलिया से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर: भारत में, धन विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत स्पष्ट रूप से निपटाया जाता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया में “धन विधेयक” अभिव्यक्ति का कोई उल्लेख नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ संविधान अधिनियम, 1900 की धारा 53 में केवल यह प्रावधान है कि कराधान और राजस्व (रेवेन्यू) के विनियोग से संबंधित एक विधेयक केवल निचले सदन में पेश किया जा सकता है।
दूसरा, धन विधेयकों से संबंधित कार्यवाही को विधायिका के आंतरिक मामलों के रूप में माना जाता है जो न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है। भारत में, कार्यवाही की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
प्रश्न- कनाडा में धन विधेयक से संबंधित क्या प्रावधान हैं?
उत्तर: कनाडा में, कनाडा के संविधान अधिनियम, 1867 में अभिव्यक्ति “धन विधेयक” का उपयोग नहीं किया गया है। संविधान की धारा 53 में प्रावधान है कि कराधान और राजस्व के विनियोग से संबंधित एक विधेयक को गवर्नर जनरल की सिफारिश से हाउस ऑफ कॉमन्स में पेश किया जा सकता है और पारित किया जा सकता है।
संदर्भ