यह लेख Sonali द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से इंटरनेशनल कमर्शियल आर्बिट्रेशन और मेडिएशन में सर्टिफिकेट कोर्स कर रही हैं। इस लेख में वह पर्यावरण संबंधी विवादों में आज तक मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) कैसे की जा रही है इस पर चर्चा करती हैं। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
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परिचय (इंट्रोडक्शन)
राज्यों द्वारा की गयी कई अंतरराष्ट्रीय संधियों (ट्रीटीज़) (जैसे हाल ही में पेरिस समझौता, 2015) के साथ-साथ उनके बाद के दायित्वों और पर्यावरण को बचाने और जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) को रोकने के लिए गैर-सरकारी संगठनों (नॉन-गवर्नमेंट आर्गेनाइजेशन) के निरंतर दबाव के कारण पर्यावरणीय विवाद हमेशा उच्च स्तर पर रहा है। वे एक राज्य से दूसरे राज्य के विवादों से निवेशक से राज्य (इंवेस्टर टू स्टेट) के विवादों में विकसित हुए है और अब वाणिज्यिक संविदात्मक विवादों (कमर्शियल कॉन्ट्रैक्चुअल डिस्प्यूट) की ओर मुड़ रहे हैं। 1945 में संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अस्तित्व के बाद से राज्यों के बीच पर्यावरण संबंधी विवादों से निपटा गया है और मुकदमेबाजी के माध्यम से हल किया गया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में मध्यस्थता की वृद्धि और पर्यावरण या जलवायु परिवर्तन विवादों के लिए इसका व्यावहारिक अनुप्रयोग (प्रैग्मैटिक एप्लीकेशन) अभी भी एक ग्रे क्षेत्र है। यहां हम समझेंगे कि इस तरह के विवादों में आज तक मध्यस्थता कैसे की जा रही है, इसमें शामिल पक्षों के लिए बेहतर परिणाम प्राप्त करने में यह कैसे उपयोगी है, और उनकी भविष्य की संभावनाएं (प्रोस्पेक्ट्स) क्या हैं।
पर्यावरणीय विवादों के लिए विवाद समाधान के उपाय
एक पर्यावरणीय विवाद को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर (लेवल) पर कई सारे उपाय उपलब्ध किए गए थे। देश अक्सर यह पहचानने के लिए फ़ोरम शॉपिंग करते हैं कि कौन सा संस्थान (इंस्टीट्यूशन) या संगठन (आर्गेनाइजेशन) उनकी मांगों को सबसे अच्छी तरीके से पूरा कर सकता है। उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ (यूनियन)- चिली स्वोर्डफ़िश विवाद में, यूरोपीय संघ ने विश्व व्यापार संगठन (वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन) से विवाद समाधान के लिए एक पैनल स्थापित करने का अनुरोध किया, जबकि चिली ने समुद्र के कानून के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण (इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर लॉ ऑफ़ द सी) (आई.टी.एल.ओ.एस.) में कार्यवाही शुरू की। लेकिन अंततः, उन्होंने 25 जनवरी 2001 को एक समझौते के तहत विवाद का निपटारा किया था। लेकिन व्यापक (कॉम्प्रिहेंसिव) रूप से दो श्रेणियां (कैटेगरी) हैं जिनके तहत इन विवादों को निपटाया जाता है:
- विवाद निपटान तंत्र (डिस्प्यूट सेटलमेंट मैकेनिज्म), और
- गैर-अनुपालन प्रणाली (नॉन कंप्लायंस सिस्टम)।
विवाद निपटान तंत्र
यह प्राथमिक (प्राइमरी) रूप से तब किया जाता है जब दो या दो से अधिक देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत उनके दायित्वों के बारे में विवाद उत्पन्न होता है और इसमें उनके नियमों और सिद्धांतों (प्रिंसिपल्स) की व्याख्या (इंटरप्रिटेशन) शामिल होती है। एक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए एक न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) या अदालत की स्थापना की जाती है जहां प्रारंभिक (इनिशियल) समझौता वार्ता कोई भी नहीं ले जाती है। यह प्रणाली कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संस्थाओं में मौजूद है, जो इस प्रकार हैं –
- अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आई.सी.जे.): यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है जिसकी स्थापना (एस्टेब्लिश) 1945 में की गई थी। कई बहुपक्षीय (मल्टीलेटरल) समझौते इसके अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) को निर्धारित (स्टीप्यूलेट) करते हैं। जब पार्टियां अपने अधिकार क्षेत्र को मान्यता देते हुए एकतरफा घोषणा करती हैं, तो आई.सी.जे. के पास उस विवाद पर निर्णय लेने का एकमात्र अधिकार होता है। 1993 में अदालत ने एक पर्यावरण कक्ष (चैम्बर) की स्थापना की और पर्यावरण विवादों में एक विशिष्ट निकाय विशेषज्ञ (स्पेसिफिक बॉडी एक्सपर्ट) बनाया।
- यूरोपीय न्यायालय (ई.सी.जे.): यह यूरोपीय संघ की संधियों से संबंधित विवादों और दायित्वों का समाधान करता है। अब तक, इसने 150 से अधिक पर्यावरणीय मामलों को निपटाया है और अब गैर-अनुपालन (नॉन कम्प्लायंस) करने वाले पक्षों पर तेजी से जुर्माना लगा रहा है।
- मानवाधिकार न्यायालय (ह्यूमन राइट्स कोर्ट्स): 1968 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (जनरल असेंब्ली) ने औपचारिक (फॉर्मल) रूप से माना कि मानव अधिकारों और पर्यावरण की सुरक्षा के बीच एक संबंध है, और 1972 के स्टॉकहोम घोषणा ने इसे दोहराया। यहां, विवादों को अंतर-राज्यीय चार्टर या आयोग (कमीशन) के नियमों द्वारा हल किया जाता है जैसे कि अफ्रीकी चार्टर ऑफ ह्यूमन एंड पीपल्स राइट्स या अमेरिकन कन्वेंशन ऑन ह्यूमन राइट्स उनमें से एक है।
- विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.): डब्ल्यू.टी.ओ., एक बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली (सिस्टम) है, जिसे 1995 में टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (जी.ए.टी.टी.) जैसे समझौतों के लागु होने पर निगरानी रखने के लिए बनाया गया। इन समझौतों से उत्पन्न होने वाले विवाद को दो चरणों (स्टेजेस) में निपटाया जाता है, पहले एक पैनल द्वारा और फिर एक अपील द्वारा। इन समझौतों के तहत शर्तों का उल्लंघन, जो एक साथ पर्यावरण को प्रभावित करता है उसे डब्ल्यूटीओ द्वारा निपटाया जाता है, जैसे कि यू.एस. का टूना डॉल्फिन केस।
- स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन) (पी.सी.ए.): पी.सी.ए. के तहत विवादों को हल करने के लिए मध्यस्थता और अन्य वैकल्पिक विवाद समाधान विधियों का उपयोग किया जाता है और इसमें 265 न्यायविदों (ज्यूरिस्ट्स) का एक पैनल होता है। राज्यों के अलावा, पी.सी.ए.के पास निजी पक्षों और अंतर-सरकारी संगठनों के बीच विवादों को सुलझाने की शक्ति है। 1996 में, इसने पर्यावरण प्रक्रिया नियमों का मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार करने के लिए एक कार्यरत समूह (वर्किंग ग्रुप) की स्थापना की थी।
- निवेश विवादों के निपटान के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र (इंटरनेशनल सेंटर फॉर सेटलमेंट ऑफ़ इन्वेस्टमेंट डिस्प्यूट्स) (आई.सी.एस.आई.डी.): यह एक निवेशक और मेजबान (होस्ट) राज्य के बीच एक निवेश संधि से उत्पन्न होने वाले विवादों को हल करने के लिए स्थापित किया गया था। आई.सी.एस.आई.डी. के समक्ष पर्यावरणीय चिंताओं के प्रश्न उठाए जा रहे हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या पर्यावरण कानून एक प्रकार का ज़ब्त (एक्सप्रोप्रिएशन) का गठन कर सकता है और क्या पर्यावरणीय कारणों से पूर्ण मुआवजे (कंपनसेशन) का भुगतान किया जाना चाहिए।
- विश्व बैंक निरीक्षण पैनल (वर्ल्ड बैंक इंस्पेक्शन पैनल): विश्व बैंक की एक परियोजना (प्रोजेक्ट) से उत्पन्न विवाद जो किसी व्यक्ति को प्रभावित करता है, उस पर, इस पैनल द्वारा पर्यावरण संबंधी चिंताओं सहित निरीक्षण किया जाता है।
- समुद्र के कानून के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण: संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन), समुद्र के कानून पर अनिवार्य विवाद निपटान के लिए एक प्रावधान (प्रोविजन) प्रदान करता है, जिसे पक्ष आई.सी.जे., मध्यस्थ न्यायाधिकरण, या समुद्र के कानून के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण को नामित कर सकते हैं।
उपर्युक्त मंच अंतरराष्ट्रीय समुदाय (कम्युनिटी) में पारंपरिक मुकदमेबाजी और आधुनिक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र का मिश्रण (मिक्स) हैं।
गैर-अनुपालन प्रणाली
जहां एक बहुपक्षीय पर्यावरण समझौते (मल्टीलैटरल एनवायरनमेंट एग्रीमेंट) (एम.ई.ए.) के दायित्वों को हस्ताक्षरकर्ता पार्टी द्वारा पूरा नहीं किया जाता है और यह अंततः शासन की सफलता को प्रभावित करता है, इसे गैर-अनुपालन प्रणाली के रूप में जाना जाता है। यह वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित है और विदेश मंत्रालय में निर्धारित दायित्वों के साथ पक्षों के अनुपालन का आकलन (एसेस) करता है। विदेश मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ़ एक्सटर्नल अफेयर) के तहत बनाया गया विशिष्ट निकाय, एक पार्टी द्वारा गैर-अनुपालन के मामले में प्रक्रिया को नियंत्रित (कंट्रोल) करता है, जिसमें राजनायिक (डिप्लोमेटिक) दबाव, सहायता का प्रावधान, तकनीकी और वित्तीय सहायता को वापस लेने के लिए चेतावनी जारी करना और व्यापार प्रतिबंध (ट्रेड रिस्ट्रिक्शन) भी शामिल हैं। ऐसी प्रक्रियाओं के उदाहरण, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, सी.आई.टी.ई.एस., इंटरनेशनल व्हेलिंग कमीशन, लंबी दूरी के ट्रांसबाउंडरी वायु प्रदूषण पर कन्वेंशन आदि में देखे जा सकते हैं। यह विधि गैर-प्रतिकूल (नॉन एडवर्सरियल) है और इसके प्रभावी परिणाम नहीं हो सकते हैं क्योंकि प्रतिबंध अलग-अलग संप्रभु (सोवरेन) राज्य पर बाध्यकारी नहीं हो सकते हैं। इसलिए, हम अपना ध्यान केवल अधिक गहराई में मध्यस्थता प्लेटफॉर्म्स पर पुनर्निर्देशित (रेडाईरेक्ट) करेंगे।
विवाद समाधान की तकनीक के रूप में मध्यस्थता का सहारा लेना
मध्यस्थता एक निजी विवाद निपटान प्रक्रिया है जो पक्षों को अपने स्वयं के निर्णायक (एडज्यूडिकेटर) चुनने और मामलों की गोपनीयता (कॉन्फिडेंशियल्टी) बनाए रखने का विकल्प प्रदान करती है। पक्षों ने अपने विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित (रेफर) करने के लिए एक समझौता किया होगा ताकि इसे उन पर बाध्यकारी बनाया जा सके। पास किया गया अवॉर्ड अंतिम और बाध्यकारी होता है और बहुत कम आधारों की जांच के अधीन होता है (मामले की योग्यता पर कोई समीक्षा (रिव्यू) नहीं हो सकती)। इसके अलावा कन्वेंशन ऑन रिकग्निशन एंड एनफोर्समेंट ऑफ फॉरेन आर्बिट्रल अवॉर्ड, 1958 या न्यूयॉर्क कन्वेंशन, 1958 (एन.वाई. कन्वेंशन) के कारण, पास किए गए अवॉर्ड्स को 160 से अधिक न्यायालयों में लागू किया जा सकता है।
पर्यावरणीय विवादों की मध्यस्थता तभी की जा सकती है जब पक्षों के बीच अग्रिम (एडवांस) रूप से सहमति हो गई हो, चाहे उनकी निवेश संधियों, बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों (एम.ई.ए.), या वाणिज्यिक अनुबंधों में हुई हो। जैसा कि ऊपर दिया गया है, विवाद समाधान तंत्र के पारंपरिक तरीकों में से, मध्यस्थता के उपयोग का भी उल्लेख किया गया है। स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने पर्यावरणीय विवादों के मध्यस्थता के लिए प्रक्रियाओं को शामिल करने के लिए अपने नियमों में प्रासंगिक (रिलेवेंट) परिवर्तन किए हैं। लेकिन इसके अलावा विशेष तदर्थ (स्पेशलाइज्ड एड हॉक) मध्यस्थता राज्य और गैर-राज्य निजी पक्षों के बीच भी लोकप्रिय है। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि पक्ष निम्नलिखित तरीकों से पर्यावरणीय विवादों के लिए मध्यस्थता का सहारा ले सकते हैं:
अनिवार्य मध्यस्थता प्रदान करने वाले अंतरराष्ट्रीय समझौते
अंतरराष्ट्रीय समझौतों में विवाद समाधान अक्सर शुरुआत में बातचीत (नेगोशिएशन) के साथ किया जाता है और इसके विफल होने पर पक्षों में से एक अपने विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित कर सकता है। विवादों का यह एकतरफा संदर्भ निम्नलिखित सहित कई संधियों में देखा जा सकता है लेकिन यह केवल इन तक ही सीमित नहीं है:
- नॉर्थ-ईस्ट अटलांटिक के समुद्री पर्यावरण के संरक्षण (प्रोटेक्शन) के लिए कन्वेंशन, 1992 (ओ.एस.पी.ए.आर): इसमें कहा गया है कि, यदि किसी मामले को कंसीलिएशन के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता है, तो कोई भी पक्ष मध्यस्थता के लिए विवाद प्रस्तुत कर सकता है।
- समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यू.एन.सी.एल.ओ.एस.): यहां पक्षों के पास विवाद समाधान की अनिवार्य विधि के रूप में मध्यस्थता चुनने का विकल्प होता है और यदि पक्षों द्वारा कोई घोषणा नहीं की जाती है, तो मध्यस्थता को पक्षों द्वारा स्वीकार कर लिया गया माना जाता है।
वैकल्पिक मध्यस्थता प्रदान करने वाले अंतरराष्ट्रीय समझौते
कभी-कभी पक्ष विभिन्न विवाद समाधान तंत्रों में से चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं और विवाद उत्पन्न होने पर अपनी पसंद बना सकते हैं। उन्हें केवल अपनी पसंद के बारे में कन्वेंशन के प्रशासनिक निकाय (एडमिनिस्ट्रेटिव बॉडी) को सूचित करना आवश्यक है। वैकल्पिक तंत्र के रूप में मध्यस्थता के समान प्रावधान वाली संधियाँ इस प्रकार हैं:
- वन्य जीवों और वनस्पतियों (फ्लोरा) की लुप्तप्राय प्रजातियों (एंडेंजर्ड स्पेशीज) में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन, 1973 (सी.आई.टी.ई.एस.) और जंगली जानवरों की प्रवासी प्रजातियों (माइग्रेटरी स्पेशीज) के संरक्षण पर कन्वेंशन, 1979: इन संधियों के तहत पक्ष अपने विवादों को मध्यस्थता के लिए प्रस्तुत कर सकते हैं जहां प्रारंभिक बातचीत केवल पक्षों की आपसी सहमति पर ही विफल होती है। यहा पर एकतरफा संदर्भ नहीं दिया जा सकता है।
- वियना कन्वेंशन ऑन प्रोटेक्शन ऑफ ओजोन लेयर, 1985 जिसके तहत मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, 1992 को अपनाया गया था: यहां पक्षों को कन्वेंशन के अनुसमर्थन (रेटिफिकेशन) के समय यह निर्णय लेना होता है कि क्या वे अपने विवादों को मध्यस्थता, आई.सी.जे., या दोनों में संदर्भित करना चाहते है। यहां मध्यस्थता केवल वैकल्पिक है और पार्टियां और कुछ भी चुन सकती हैं।
- जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) पर कन्वेंशन, 2002: इस संधि ने अपने आर्टिकल 27 में एक वैकल्पिक तंत्र के रूप में मध्यस्थता का भी उल्लेख किया है, और विस्तृत (डिटेल्ड) प्रक्रियाएं अनुबंध (एनेक्स) II में दी गई हैं।
- औद्योगिक (इंडस्ट्रियल) दुर्घटनाओं के सीमा-पार प्रभावों पर हेलसिंकी कन्वेंशन, 1992: इसी तरह, जैसा कि उपरोक्त कन्वेंशन में दिया गया है, इस कन्वेंशन में भी दोनों पक्ष बातचीत के निपटारे की विफलता के मामले में अपने विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित कर सकते हैं।
मध्यस्थता पर राज्य अभ्यास (स्टेट प्रैक्टिस)
राज्यों ने पी.सी.ए., आई.टी.एल.ओ.एस. जैसे संस्थानों के माध्यम से और तदर्थ मध्यस्थता के माध्यम से पर्यावरण विवाद समाधान के लिए मध्यस्थता की ओर झुकाव दिखाया है क्योंकि न्यायाधिकरण के चयन और सुनवाई/कार्यवाही के लिए प्रक्रिया चुनने के संबंध में पक्षों को अधिक स्वायत्तता (ऑटोनोमी) है।
बहुत प्रारंभिक उदाहरणों में से एक ट्रेल स्मेल्टर का मामला है, जो अमेरिका और कैनेडा के बीच है, जिसने सीमा पार पर्यावरणीय क्षति (डैमेज) को परिभाषित किया और इसके परिणामस्वरूप राज्यों के मुआवजा देने के दायित्व को भी परिभाषित किया। इस मामले मे, मध्यस्थता मूल रूप से किसानों और स्मेल्टर कंपनी के बीच थी, लेकिन संघीय (फेडरल) अधिकारियों की भागीदारी (पार्टनरशिप) के साथ यह एक अंतरराष्ट्रीय विवाद बन गया। 1935 में ही ट्रेल में स्मेल्टर के संचालन (ऑपरेशन) से उत्पन्न कठिनाइयों के निपटारे के लिए राज्य दलों ने एक कन्वेंशन में प्रवेश किया और उसी के तहत न्यायाधिकरण का गठन किया गया। आर्थिक मुआवजा देते हुए, न्यायाधिकरण ने अंतरराष्ट्रीय वायु प्रदूषण के लिए राज्य की जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक लागू किया।
सदर्न ब्लूफिन टूना मामलों में, विवाद एक तरफ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दूसरी तरफ जापान के बीच अंटार्कटिका के पास दक्षिणी समुद्रों पर जापान द्वारा आयोजित (हेल्ड) एक प्रयोगात्मक (एक्सपेरिमेंटल) मछली पकड़ने के कार्यक्रम के कारण था, जो अधिक मछली पकड़ने से बढ़ रहा था। मामला आई.सी.एस.आई.डी. को मध्यस्थता के लिए भेजा गया था क्योंकि पार्टियां आई.टी.एल.ओ.एस. के हस्ताक्षरकर्ता थी, जो एक अनिवार्य मध्यस्थता की अनुमति देता है। लेकिन जापान ने इस न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र का तर्क इस आधार पर दिया कि यह विवाद पूरी तरह से दक्षिणी ब्लूफिन टूना, 1993 के संरक्षण के कन्वेंशन से उत्पन्न हुआ है जो विवाद को हल करने के लिए किसी भी शांतिपूर्ण तरीके की अनुमति देता है और जरूरी नहीं कि मध्यस्थता। यह माना गया कि ट्रिब्यूनल का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था क्योंकि दोनों कन्वेंशन में विवाद उत्पन्न हो गया था और पार्टियां इसे बातचीत के जरिए सुलझा सकती हैं।
ऐसे कई अन्य मामले हैं जो इस स्थिति को स्पष्ट करते हैं कि राज्य संस्थाएं मध्यस्थता के माध्यम से पर्यावरणीय विवादों को हल करने के लिए तैयार हैं और वह भी ज्यादातर तदर्थ लोगों से और संस्थागत नहीं है।
अनिवार्य मध्यस्थता प्रदान करने वाले वाणिज्यिक अनुबंध
पर्यावरणीय विवाद जटिल (कॉम्प्लेक्स) हैं और आम तौर पर सरकारों और प्रमुख कार्बन उत्सर्जक (एमिटर्स) और सरकार द्वारा शुरू की गई जांच के बीच होते हैं। लेकिन शायद ही कभी ऐसा अवसर आता है, जब पक्षों के बीच एक संविदात्मक और वाणिज्यिक अनुबंध में पर्यावरणीय घटक वाले विवाद उत्पन्न होते हैं। एक मध्यस्थता प्रक्रिया वास्तव में लचीली (फ्लेक्सिबल) और अंतरराष्ट्रीय है जिसमें पक्षों के पास मध्यस्थों को चुनने और एक ट्रिब्यूनल बनाने का विकल्प होता है जिसे जलवायु परिवर्तन विवाद में शामिल नियामक (रेगुलेटरी) और तकनीकी मुद्दों का पर्याप्त ज्ञान होता है। गोपनीयता के विकल्प के कारण ये जलवायु परिवर्तन विवाद मुख्य रूप से ऊर्जा और निर्माण क्षेत्रों से उत्पन्न हो सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते, 2015 को लागू करने के बाद, राज्य वाणिज्यिक संस्थाओं पर भी पर्यावरण से संबंधित प्रकटीकरण (डिस्क्लोजर) और एहतियाती (प्रीकॉशनरी) दायित्वों को पेश कर रहे हैं और बढ़ा रहे हैं। इन दायित्वों का पालन न करने पर संविदात्मक प्रावधानों का उल्लंघन होगा, जिसके परिणामस्वरूप पक्षों को उन विवादों की मध्यस्थता के लिए उत्तरदायी बनाया जाएगा। इसके अलावा, अप्रत्याशित (मेज्यूर) परिस्थितियों के कारण वाणिज्यिक दायित्वों का उल्लंघन और दावेदारों (क्लैमेंट) के संचालन को नुकसान पहुंचाकर, जलवायु परिवर्तन में योगदान के परिणामस्वरूप पर्यावरण से संबंधित मध्यस्थता होगी।
पर्यावरणीय विवादों को शामिल करने के लिए मध्यस्थ संस्थाओं द्वारा उठाए गए कदम
मध्यस्थता का स्थायी न्यायालय (परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन)
अंतरराष्ट्रीय विवादों के पेसिफिक समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन, 1899 (हेग कन्वेंशन) पी.सी.ए. मध्यस्थता के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विवादों को हल करने और प्रशासित (एडमिनिस्टर) करने के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठान (एस्टेब्लिशमेंट) है और संस्था के बाहर मध्यस्थता करने में सहायता करता है। नॉर्थ अटलांटिक कॉस्ट फिशरी मामले में, वाशिंगटन में हस्ताक्षरित उनके विशेष समझौते के तहत अमेरिका और ब्रिटेन के बीच एक अंतर-राज्यीय विवाद उत्पन्न हुआ, जिसने अमेरिकी निवासियों को ब्रिटिश विषयों के समान अधिकार दिए, जो ब्रिटिश के एक निर्दिष्ट हिस्से, न्यूफाउंडलैंड और लैब्राडोर के समुद्र तट पर सभी प्रकार की मछली पकड़ने में संलग्न (एंगेज) थे। ट्रिब्यूनल ने कन्वेंशन के आर्टिकल 1 और अन्य पर्यावरणीय विवादों की व्याख्या पर निर्णय लिया और पी.सी.ए. द्वारा इसका निपटारा किया गया था।
पी.सी.ए. ने इसी तरह के अन्य मामलों को प्रशासित किया था और इस दिशा में प्रगति के लिए प्राकृतिक संसाधनों (रिसोर्सेज) और/ या पर्यावरण से संबंधित विवादों के मध्यस्थता के लिए वैकल्पिक नियम, 2001 के साथ आया था। यह पहले ऐसे नियम हैं जो राज्य के अलावा काम करने वालों को शामिल करते हैं, जैसे की मध्यस्थता में एक पक्ष के रूप में गैर-सरकारी संगठन, जो पर्यावरण संबंधी चिंताओं के लिए राज्य पर बहुत प्रभाव डालते हैं। यदि सभी पक्ष अपने विवाद को मध्यस्थता में भेजने के लिए सहमत हो जाते हैं, तो यह, अधिकार क्षेत्र तय करने के लिए एक विवाद को एक पर्यावरण या प्राकृतिक संसाधन के रूप में चिह्नित करने की आवश्यकता को समाप्त करता है। यह कार्यवाही को गुणदोष (मेरिट्स) से पर्यावरणीय विवाद और प्राकृतिक संसाधनों की परिभाषाओं की व्याख्या की ओर मोड़ने से रोकता है। यह आगे न्यायिक मुद्दों पर समय बचाता है और कार्यवाही को समय पर पूरा करने में सहायता करता है।
अमेरिकन आर्बिट्रेशन एसोसिएशन
इसी तरह, अन्य मध्यस्थता संस्थानों ने अपने विवाद समाधान तंत्र के एक हिस्से के रूप में पर्यावरणीय मुद्दों की पहचान करने के लिए विभिन्न रूपों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। अमेरिकन आर्बिट्रेशन एसोसिएशन ने हालांकि पर्यावरणीय विवादों के लिए अलग नियम नहीं बनाए हैं, लेकिन इसे निर्माण और रियल-एस्टेट विवादों के विवाद की श्रेणी के रूप में सूचीबद्ध (लिस्ट) किया है। इसमें कहा गया है कि पर्यावरण में प्रदूषण पैदा करने वाली औद्योगिक परियोजनाओं (इंडस्ट्रियल प्रॉजेक्ट) से उत्पन्न होने वाले विवादों को उनके तहत हल किया जाता है और वे बहुदलीय और बहु-क्षेत्राधिकार मध्यस्थता में पक्षों की मदद करते हैं।
इंटरनेशनल कमर्शियल चैंबर
2019 में, इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स ने एक पहल की और जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतरराष्ट्रीय विवादों के समाधान में मध्यस्थता और ए.डी.आर. की भूमिका की जांच करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन विवादों की तीन श्रेणियों की पहचान की गई है- सामान्य वाणिज्यिक अनुबंध, पेरिस समझौते के अनुसार संपन्न अनुबंध, और प्रभावित समूह द्वारा विवाद उत्पन्न होने के बाद दर्ज किए गए सबमिशन समझौते। रिपोर्ट में इष्टतम (ऑप्टीमल) मध्यस्थता कार्यवाही के लिए पक्षों द्वारा विचार की जाने वाली छह प्रक्रियात्मक (प्रोसीजरल) विशेषताओं की भी पहचान की गई है। वे इस प्रकार हैं –
- मध्यस्थों और विशेषज्ञों की नियुक्ति के लिए उपयुक्त वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करना।
- तत्काल अंतरिम राहत (इंटरिम रिलीफ) की तलाश करना।
- जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं (कमिटमेंट्स) और कानूनों का अनुप्रयोग (एप्लाई) करना।
- पारदर्शिता (ट्रांसपेरेंसी)।
- तीसरे पक्ष की भागीदारी।
- आवंटन लागत (एलोकेटिंग कॉस्ट)।
इंटरनेशनल बार एसोसिएशन
मध्यस्थ संस्थानों के अलावा, इंटरनेशनल बार एसोसिएशन (आई.बी.ए.) जैसे स्वतंत्र संघों ने भी जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों पर एक टास्क फोर्स रिपोर्ट जारी की है और लंदन के नागरिकों को जलवायु परिवर्तन दायित्वों को पूरा करने में विफलता के मामले में उनकी सरकार पर मुकदमा करने के लिए एक मॉडल क़ानून दिया है। नागरिक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकार द्वारा उपयोग किए जाने वाले तंत्र की न्यायिक समीक्षा (ज्यूडिशियल रिव्यू) के लिए कह सकते हैं। विभिन्न संस्थानों और संगठनों द्वारा इस तरह के कदम, जटिल पर्यावरणीय विवादों में शामिल कई पक्षों और मध्यस्थता के माध्यम से उनके समाधान के लिए समान अवसर पैदा कर रहे हैं।
मध्यस्थता के साथ जलवायु परिवर्तन के दावों का भविष्य
पर्यावरणीय विवादों और मध्यस्थता के भाग्य को मानने से पहले, हमें पहले उन नुकसानों पर ध्यान देना चाहिए जो मध्यस्थता से पर्यावरण को हो सकते हैं। डेचर्ट एल.एल.पी. द्वारा किए गए एक अध्ययन (स्टडी) के अनुसार, यह स्वीकार किया गया है कि एक मध्यम साइज के मध्यस्थता का कार्बन उत्सर्जन लगभग 418,531 किलोग्राम CO2e है जो इसके प्रभाव को ऑफसेट करने के लिए 20,000 पेड़ लगाने के बराबर है। अध्ययन में लंबी और छोटी उड़ान करने वाले हॉल, श्रवण बंडलों (हियरिंग बंडल) की छपाई, कूरियर और होटल में ठहरना आदि शामिल थे। इसकी संख्या बहुत बड़ी है और यह तदर्थ मध्यस्थता पर विचार नहीं करते हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन विवादों की तकनीक के लिए तकनीकी विशेषज्ञों, गवाहों आदि जैसे अधिक पक्षों की आवश्यकता होती है, और इसके परिणामस्वरूप उड़ानों और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि के लिए क्रॉस एग्जामिनेशन के अधिक दौर की आवश्यकता होती है।
मध्यस्थता की आभासी (वर्चुअल) सुनवाई की शुरुआत के कारण कोविड 19 परिदृश्य (सिनेरियो) ने इस कारण से थोड़ी मदद की है। मध्यस्थता समुदाय ने कार्यवाही के इस “आभासीकरण” को अपनाया है और यह ऑनलाइन क्रॉस एग्जामिनेशन करने में भी संकोच नहीं करता है। पर्यावरणीय सरोकार (कंसर्न) के दृष्टिकोण (प्रोस्पेक्टिव) से, यह व्यवस्था कोविड के बाद भी बनी रहनी चाहिए और सुनवाई या साइट के दौरे के लिए, इसमें यात्रा करने की बहुत कम या कोई आवश्यकता नहीं है। नई तकनीकी प्रगति (एडवांवमेंट) किसी के लिए भी किसी भी स्थान से कार्यवाही में गवाह और उपस्थित होना संभव बनाती है। इसलिए, कार्बन उत्सर्जन की चिंता का इलाज संभव है और यह मध्यस्थता समुदाय के हाथों में है। उपरोक्त चिंता के अलावा, यह कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन विवादों के लिए मध्यस्थता अद्भुत है और निकट भविष्य में इसमें और बदलाव दिखाई देंगे।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
इस लेख ने स्पष्ट रूप से हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचा दिया है कि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विवादों में विवाद समाधान बिखरा हुआ और खंडित (फ्रैगमेंट) है। निवेश संधियों, अंतरराष्ट्रीय समझौतों, और वाणिज्यिक अनुबंधों और स्थायी संस्थानों और तदर्थ मध्यस्थता सहित विभिन्न संरचनाओं सहित विभिन्न डोमेन के बीच मध्यस्थता का सहारा भी खंडित है। विवाद की जटिल प्रकृति के कारण यह एक विस्तृत सूची भी नहीं हो सकती है जो भविष्य में कोई भी रूप ले सकती है। लेकिन एक और विश्वासपूर्ण निष्कर्ष यह है कि शासन में कार्य करने वाले कई लोग कई, चाहे वह मध्यस्थ संस्थान हों या स्व-विनियमित (सेल्फ रेगुलेटेड) संगठन, सभी भविष्य की मांगों को पूरा करने के लिए मौजूदा डोमेन में किए जाने वाले किसी भी बदलाव को अपनाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
कुछ समय के लिए यह कहा जा सकता है कि पर्यावरणीय विवादों की मध्यस्थता एक युवा शासन है और तेजी से मध्यस्थता समुदाय में शामिल कार्यकर्ताओं की मदद से एक मजबूत और स्पष्ट संरचना ले रही है। यह पक्षों को मामले की प्रकृति और जटिलता के अनुसार सुनवाई की प्रक्रिया को ढालने और मामले पर निर्णय लेने के लिए मध्यस्थों के एक विशेषज्ञ पैनल का चयन करने की स्वायत्तता प्रदान करता है। निस्संदेह, मध्यस्थता की कार्यवाही के कारण कार्बन उत्सर्जन के तथ्य और उसी पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता के अलावा, पर्यावरणीय विवादों के साथ मध्यस्थता का भविष्य काफी उज्ज्वल है।
संदर्भ (रेफरेंसेस)