रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत का विश्लेषण

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Indian Penal Code
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यह लेख, एमिटी यूनिवर्सिटी, कोलकाता की छात्रा, Pubali Chatterjee और Sayani Daas द्वारा लिखा गया है। इस लेख में वह रेयरेस्ट ऑफ रेयर सिद्धांत के बारे में बताती हैं। इसका अनुवाद  Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

परिचय( इंट्रोडक्शन)

रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत का कोई पारंपरिक नियम नहीं है। आपराधिक मामलों में, विचारण (ट्रायल) की दो आवश्यकताएं होती हैं, जो कि अपराध का स्वभाव और उसकी गंभीरता (ग्रेविटी) होती है। इन दो आवश्यकताओं के आधार पर दंड का परिमाण तय किया जाता है। भारत की जूडीकेचर, एक ओर स्थिति को सुधारने और दूसरी ओर आम आदमी की गुहार के बीच सामंजस्य (हारमोनी) लाने क लिए प्रतिबद्ध (कमिटेड) है और डेथ पेनल्टी देने के उल्लेखनीय (रिमार्केबल) आधार स्थापित करने के लिए भी प्रतिबद्ध है।  हाल ही में, निर्भया रेप और मर्डर के मामले को रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत, घोषित करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को डेथ पेनल्टी की सजा दी। भारत में डेथ पेनल्टी देने का मापदंड (मेज़र), रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत है।

भारतीय कानून, डेथ पेनल्टी को न ही पूर्ण सहमति देते हैं और न ही इसका पूरी तरह विरोध करते हैं। भारत में डेथ पेनल्टी को रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामलों तक ही सीमित किया गया है, जैसे धारा 121 (भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना), धारा 302 (मर्डर), धारा 364A (फिरौती के लिए किडनैप करना) एवं इंडियन पीनल कोड, 1860 की अन्य धाराऐं। डेथ पेनल्टी, सबसे ज्यादा उन मामलों में मान्य होता है जो, अत्याधिक भय आधारित, उत्पीड़न पहुंचाने वाले और हमले के साथ मर्डर के मामले होते हैं। रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत के दो विभाजन किए जा सकते हैं- एग्रावेटिंग स्थितियां और मिटिगेटिंग स्थितियां, एग्रावेटिंग स्थिति के मामले में जज अपनी मर्जी के अनुसार डेथ पेनल्टी दे सकता है और दूसरी तरफ मिटिगेटिंग स्थिति में रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामलों में डेथ पेनल्टी नहीं दिया जाता।

रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत की शुरुआत (इन्सेप्शन ऑफ रेयरेस्ट ऑफ रेयर डॉक्ट्रिन) 

नाथूराम गोडसे बनाम क्रॉउन (महात्मा गांधी के मर्डर का मामला), आजाद भारत में, रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर  सिद्धांत की मुख्य घटना, नाथूराम गोडसे का मामला था। दिल्ली के बिरला मंदिर में हुई पिटीशन मीटिंग में 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मारकर उनका मर्डर कर दिया। प्रारंभिक (प्रिलिमनरी) विलंब (डिले) के बाद, जस्टिस अमरनाथ ने गोडसे को डेथ पेनल्टी की सजा दी, इसे पंजाब हाई कोर्ट के तीन एडज्यूडिकेटर की सामूहिक पुष्टि मिली।

केहर सिंह वर्सेज दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन के मामले में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने, ट्रायल कोर्ट द्वारा तीन अप्पिलंट (केहर सिंह, बलबीर सिंह और सतवंत सिंह) को कांस्पीरेसी रचने के और श्रीमती इंदिरा गांधी का  मर्डर करने हेतु, इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 302, 120B, 34, 107 और 109 के अंतर्गत दी गई डेथ पेनल्टी की पुष्टि (अफर्म) करी, जिस पर हाई कोर्ट की भी सहमति थी। कोर्ट ने यह कहा कि होमीसाइड, रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामला माना जा सकता है, जहां पेशेवर मर्डरर और उसके साथियों को असामान्य दंड देना आवश्यक है। 

संतोष सिंह बनाम केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली (मट्टू मर्डर कांड) के चौका देने वाले मामले में, पर्सन इन क्वेश्चन का रेप करने के दोषी, संतोष कुमार सिंह द्वारा लड़की के शरीर की हर हड्डी को तोड़ देने के आचरण को इतना हिंसक नहीं समझा गया, कि वह रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामले में गिना जा सके।

भारत में, इंडियन पेनल कोड की धारा 303 के अंतर्गत डेथ पेनल्टी अनिवार्य है। 1983 में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मिथ्थु सिंह वर्सेज स्टेट ऑफ पंजाब के मामले में यह घोषणा करी की धारा 303 संविधान के विरुद्ध है, यह अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 21 में दिए गए राइट टू लाइफ के विरुद्ध है। 

सिद्धांत का उपयोग (एप्लीकेशन ऑफ डॉक्ट्रिन) 

अन्य विषयों की तरह रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत का विवरण (डिटेल) भी अन्य लोगों के विश्लेषण (एनालिसिस) से मुक्त नहीं है। अनेक विरोधियों ने, इस सिद्धांत के अस्पष्ट होने और अन्य अनुवाद पर निर्भर होने के विचार पर ध्यान केंद्रित किया है। जस्टिस भगवती का एक मजबूत विश्लेषण सामने आया, जिसमें वे यह कहते हुए जताते हैं कि, ऐसा आधार, गतिशील (डाइनामिक) में आत्मीयता (सब्जेक्टिविटी) के अधिक उल्लेखनीय (नोटवर्थी) उपाय की पेशकश करता है और इस विकल्प पर समझौता करता है कि, क्या वह व्यक्ति संगठन पर खुश रहेगा या नहीं। आरोपी की जिंदगी बेंच की मानसिकता पर निर्भर करना,  कॉन्स्टिट्यूशन के अनुच्छेद 14 और 21 के विरुद्ध है।

इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि यह सिद्धांत, विकल्प आत्मीयता पर आधारित है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के प्रति निष्ठा (लॉयल्टी) दिखाते हुए, पत्नी की आज्ञा पर उसका सर काट दे, तो सुप्रीम कोर्ट निश्चिंत होकर इसे रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामला बताकर डेथ पेनल्टी देगी। 

अमृता वर्सेज स्टेट ऑफ महाराष्ट्र का मामला यहां उपयोगी है, जैसा कि पहले दिए गए उदाहरण में तुलनात्मक (कंपैरेटिव) वास्तविकता यदि ध्यान में रखी जाती तो, डेथ पेनल्टी नहीं दी जाती। यहां कोर्ट ने यह तय किया कि हमला करने के बाद औरत की, दृढ़ निश्चयता (डिटरमाइंड), बेरहमी और निर्दयता से किया गया  मर्डर, निश्चित रूप से रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामले की श्रेणी में आएगी।

कुमुदि लाल वर्सेज स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश, भी एक जवान औरत पर हमले और उसकी मृत्यु का मामला है, परंतु यहां डेथ पेनल्टी नहीं दी गई। अमृत सिंह वर्सेज स्टेट ऑफ पंजाब, में एक औरत पर भयंकर हमला हुआ था, जहां कुछ वक्त बाद औरत की मृत्यु हो गई थी। यहां, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट एवं माननीय हाईकोर्ट ने धारा 302 के अंतर्गत, डेथ पेनल्टी घोषित की, परंतु माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि भले ही हमला भीषण था, लेकिन मौत आरोपी के इच्छा अनुरूप (देलीब्रेट) नहीं थी।

कांस्टीट्यूशनल वैलिडिटी का विश्लेषण

डेथ पेनल्टी की वैधता की आवश्यकता, जगमोहन वर्सेज स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश के मामले में पड़ी। इंडियन  पीनल कोड की धारा 302 को, संविधान के अनुच्छेद 14,19 और 21 के विरुद्ध पाया गया। कोर्ट ने डेथ पेनल्टी   की सजा को लीगल  बताते हुए यह कहा कि राइट टो लाइफ की स्थापना, कॉन्स्टिट्यूशन के अनुच्छेद 19 में दिए गए अवसर से होती है और कोई भी कानून, किसी व्यक्ति से जीने का अधिकार तब तक नहीं छीन सकता है, जब तक डेथ पेनल्टी प्रत्यक्ष रूप से समझ बूझ कर और बगैर किसी साजिश के, दी गई हो।

यह तर्क दिया गया कि, सुप्रीम कोर्ट ने मेनका गांधी वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया में संविधान के अनुच्छेद 14,19 और 21 की कुछ अलग व्याख्या की थी और यह कहा कि रिफॉर्मेटरी इंप्रिजनमेंट के प्रत्येक कानून से इन तीनों अनुच्छेदों का आपसी संबंध, प्रोसीजरल और विचारणात्मक (कंसीडरेबल) दोनों ही रूप से,  उनके मूल्यांकन (व्यू प्वाइंट) के साथ स्पष्ट होना चाहिए, लेकिन यह तर्क कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह कहा कि अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 21 की तरह, राइट टू लाइफ और पर्सनल फ्रीडम का संचालन (मैनेज) नहीं करता है और इसके आधार पर धारा 302 की लीगैलिटी को तय करना अनुचित है। जहां तक बात अनुच्छेद 21 की है तो हमारे कॉन्स्टिट्यूशन मेकर्स ने यह समझ लिया था कि राज्य के पास  राइट टू लाइफ और पर्सनल फ्रीडम को कानून द्वारा स्थापित, न्यायसंगत (जस्टिफाइड), उचित और निष्पक्ष तकनीक से अस्वीकृत करने का विशेषाधिकार होगा। हमारे कॉन्स्टिट्यूशन में कुछ ऐसे संकेत मौजूद हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि हमारे कॉन्स्टिट्यूशन मेकर्स, डेथ पेनल्टी की उपस्थिति से अवगत थे, जैसे कॉन्स्टिट्यूशन की दूसरी सूची की 1 और 2 प्रविष्टियों (एंट्री), अनुच्छेद 72(1)(c), अनुच्छेद 161 और अनुच्छेद 34। 

सिद्धांत की कार्यप्रणाली (वर्किंग ऑफ डॉक्ट्रिन)

रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत की उपज बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य से हुई, जहां माननीय सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से मर्डर से जुड़े अपराधों के स्थापित नियम को हटाया, यह दर्शाते हुए की, कब डेथ पेनल्टी जैसी उच्च कोटि का दंड दिया जाना चाहिए। 4:1 के बहुमत से डेथ पेनल्टी का समर्थन हुआ और यह नियम स्थापित किया गया की डेथ पेनल्टी सिर्फ रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर  मामलों तक सीमित रहेगी। हालांकि, इस नियम की सीमा को अस्पष्ट तरीके से छोड़ दिया गया।

बच्चन सिंह मामले के निर्णय का रेश्यो देसिडेंडे यह है कि, डेथ पेनल्टी केवल उन अवसरों तक सीमित है जहां  होमीसाइड का अपराध हो और उसकी सजा लाइफ इंप्रिजनमेंट या फिर डेथ पेनल्टी हो, इसका मतलब यह हुआ कि डेथ पेनल्टी केवल रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामलों तक ही सीमित है, जहां और कोई विकल्प बचा ना हो।

इसके बाद, मच्छी सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब, में कोर्ट ने अपराध के रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर होने के कुछ निर्धारित नियमों की स्थापना की। मच्छी सिंह मामले में कोर्ट ने निर्धारित मापदंड तय कर दिए, कि कब अपराध रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर की श्रेणी में  माना जाएगा।

नियमों की जांच पड़ताल निम्न रूप से होनी चाहिए- 

  • होमीसाइड करने का तरीका- यदि मर्डर भयंकर, घृणित, रिवॉल्टिंग या अक्षम्य (अनफॉरगिवेबल) रूप से असाधारण क्रोध को भड़काने के लिए कि गई हो।
  • जैसे जब पीड़ित के परिवार वाले पीड़ित को बचाने के लिए गोली मारने को तैयार हों ।
  • उस परिस्थिति में जब दुर्घटना के कष्ट को क्रूर तरीकों से अत्याधिक करते हुए मृत्यु की पुष्टि की  गई हो ।
  • उस परिस्थिति में जब शव को क्रूरता से काटा जाए।
  • होमीसाइड करने का औचित्य (रैशनल)।
  • जब मर्डर करने की चिंतन प्रक्रिया केवल क्रूरता हो। 
  • सामाजिक रुप से घृण (हेट) तरीके से मर्डर करना।
  • ऐसे व्यक्ति की मर्डर करना जिसकी समाज में स्थिति कमतर हो।
  • अपराध का परिमाण, जब अपराध की सीमा से भी विशाल हो जैसे अनेक मर्डर के मामले में होता है। 
  • मृत्यु की दुर्घटना का स्वरूप जब मृतक कोई निर्दोष नौजवान, आलोचनीय (वल्नरेबल) स्त्री या व्यक्ति (वृद्ध या बीमार होने की वजह से), कोई बड़ा आदमी आदि।

संतोष कुमार बेरिया बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि, रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत धारा 354(3) के समर्थन में एक नियम है, पर यह स्थापित करता है की जीवन निरोध एक मान्य (स्टैंडर्ड) है और मृत्यु अनुशासन एक अपवाद है।  इंडियन पीनल कोड की धारा 303 सभी दोषियों के लिए डेथ पेनल्टी का प्रावधान रखती है, यह धारा अनकंस्टीट्यूशनल घोषित करके हटा दी गई।

2008 के पृजीत कुमार सिंह बनाम स्टेट ऑफ बिहार के मामले में कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह बताया कि रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामला क्या है। कोर्ट ने यह कहा की डेथ पेनल्टी तभी दी जाएगी जब मर्डर असामान्य, क्रूर और अप्रिय रूप से समुदाय के गंभीर और असाधारण चिड़चिड़ेपन को भड़काने के लिए किया गया हो।

निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)

लेखक रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर सिद्धांत पर चल रही चर्चा को प्रत्यक्ष और मध्य करने के लिए सुझावों के साथ यह प्रस्तुत करते हैं कि-

  • एक साधारण नियम होना चाहिए- सभी के लिए सामान एक ऐसा कानून होना चाहिए जो यह बतलाता हो कि किन मामलों को रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर कहा जा सकता है।
  • विचार और संवेदनशीलता के साथ डेथ पेनल्टी का चयन किया जाए- डेथ पेनल्टी जब दी जाए तो यह ध्यान में रखा जाए कि निर्मम प्रदर्शन के बाद भी यदि संभव है कि दोषी आगे जाकर समाज को कोई चोट नहीं पहुंचाएगा तो उसे डेथ पेनल्टी नहीं दी जानी चाहिए।
  • डेथ पेनल्टी दी जाने के बाद उसे टालना नहीं चाहिए

त्रिवेणी बाई बनाम केंद्र शासित प्रदेश गुजरात, में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि डेथ पेनल्टी को उचित कारणों के चलते ही टालना चाहिए, इससे दोषी को उचित प्रारंभिक जांच पड़ताल का अवसर मिलेगा। डेथ पेनल्टी  की घोषणा के बाद स्थगन (डिफरल) नहीं होना चाहिए। इसका यह मतलब नहीं है कि आरोपी को अनुरोध करने का मौका नहीं मिलेगा परंतु यह अवसर सीमित अवधि तक मिलेगा। समय के अनुसार आवश्यकता यह है कि रेयर से असाधारण मामलों को चिन्हित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के तमाम निर्णय पुरुष प्रधान समाज को अथक रूप से चर्चा में नहीं लाते हैं।

उपर्युक्त विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है  कि, डेथ पेनल्टी का असामान्य उपदेश, जज की आत्मीयता पर निर्धारित है। अब समय आ चुका है कि रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर मामलों का पुनरवर्गीकरण (री क्लासिफिकेशन) किया जाए।

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