यह लेख Surojit Shaw द्वारा लिखा गया है। इस लेख को Ojuswi (एसोसिएट, लॉसीखो) द्वारा एडिट किया गया है। इस लेख में आकस्मिक अनुबंध (कंटिंजेंट कॉन्ट्रैक्ट) और दांव लगाने के समझौते (वेजरिंग एग्रीमेंट) और इनके बीच के अंतर पर चर्चा की गई हैं। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।
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परिचय
जैसा की हम जानते है कि भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 2 (h) के अनुसार, कानून द्वारा लागू करने योग्य समझौता, एक अनुबंध होता है। जैसा कि यहां प्रयोग किया गया है, “अनुबंध” का अर्थ वैध प्रतिफल (कंसीडरेशन) के लिए और वैध उद्देश्य के साथ सक्षम पक्षों की स्वैच्छिक सहमति द्वारा बनाया गया कोई समझौता है, जो शून्य (वॉयड) नहीं है। पक्ष एक निश्चित प्रतिफल के बदले में, कुछ दायित्वों के लिए खुद को बाध्य करने के लिए एक अनुबंध में प्रवेश करते हैं।
एक आकस्मिक अनुबंध कुछ अनिश्चित भविष्य की घटना के होने या न होने पर निर्भर करता है और एक दांव लगाने का समझौता एक अनिश्चित घटना के आधार पर धन की राशि का भुगतान करने का एक समझौता है। इस लेख में, हम एक आकस्मिक अनुबंध और एक दांव लगाने के समझौते के बीच के अंतर पर चर्चा करेंगे। एक अनुबंध है और दूसरा एक समझौता है, इसलिए हम समझ सकते हैं कि कुछ समझौते अनुबंध बनाते हैं और कुछ नहीं। समझौते जो अनुबंध नहीं बनाते हैं वे लागू करने योग्य नहीं होते हैं।
आकस्मिक अनुबंध
भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 31 के अनुसार, एक “आकस्मिक अनुबंध” कुछ करने या न करने का अनुबंध है, यदि कोई घटना, ऐसे अनुबंध के लिए संपार्श्विक (कोलेटरल), होती है या नहीं होती है। सरल शब्दों में, आकस्मिक अनुबंध वे होते हैं जहां अनुबंध का प्रदर्शन किसी अनिश्चित भविष्य की घटना के होने या न होने पर निर्भर करता है। बीमा, क्षतिपूर्ति (इंडेम्निटी) और गारंटी के अनुबंध, आकस्मिक अनुबंध की श्रेणी में आते हैं।
उदाहरण: रीता और गीता के बीच एक अनुबंध यह निर्धारित करता है कि यदि गीता का घर जल जाता है, तो रीता को 59,000 रुपये का भुगतान करना होगा। यह एक आकस्मिक अनुबंध है।
आकस्मिक अनुबंध के आवश्यक तत्व
- एक आकस्मिक अनुबंध का प्रदर्शन किसी घटना या स्थिति के घटित होने या न होने पर निर्भर करता है।
- यह घटना अनुबंध के लिए संपार्श्विक है। यह घटना अनुबंध का हिस्सा नहीं है। किसी वादे के लिए प्रदर्शन या प्रतिफल का वादा, घटना से जुड़ा नहीं होना चाहिए।
- घटना अनिश्चित होनी चाहिए। यदि घटना निश्चित है, तो यह एक आकस्मिक अनुबंध नहीं है।
- आकस्मिकता केवल वचनकर्ता (प्रॉमिसर) की इच्छा नहीं होनी चाहिए।
आकस्मिक अनुबंध का प्रवर्तन (एनफोर्समेंट)
भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 32–36 आकस्मिक अनुबंधों के प्रवर्तन के लिए कुछ नियम बताती है। ये इस प्रकार हैं:
धारा 32
धारा 32 में, जब तक भविष्य की कोई अनिश्चित घटना नहीं होती है, तब तक आकस्मिक अनुबंध कानून द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हो सकते हैं। यदि घटना असंभव हो जाती है, तो अनुबंध शून्य हो जाता है। उदाहरण के लिए, अगर श्याम गीता से शादी करता है, तो राम श्याम को पैसे देने का अनुबंध करता है। श्याम से विवाह किए बिना ही गीता की मृत्यु हो जाती है, तो ऐसे में अनुबंध शून्य हो जाता है।
इस परिदृश्य में, अनिश्चित भविष्य की घटना (जो यहां विवाह है) नहीं होती है। गीता शादी से पहले ही मर जाती है, और श्याम गीता से शादी नहीं कर पाता है। इसलिए, यह अब वैध समझौता नहीं है, और राम श्याम को भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
धारा 33
धारा 33 में, भविष्य की घटनाओं के लिए आकस्मिक अनुबंधों का प्रवर्तन केवल तभी लागू किया जा सकता है जब उन घटनाओं का घटित होना असंभव हो जाए। उदाहरण के लिए, यदि एक निश्चित जहाज वापस नहीं आता है, तो आर्यन राहुल को एक निश्चित राशि का भुगतान करने के लिए सहमत होता है। जहाज डूब जाता है। जहाज के डूबने पर अनुबंध लागू किया जा सकता है।
धारा 34
धारा 34 में, जब अनुबंध भविष्य के किसी कार्य के प्रदर्शन पर निर्भर करता है जो भविष्य के किसी भी समय पर होगा, तो वह कार्य असंभव हो जाता है जब प्रदर्शन करने वाला कुछ ऐसा करता है जिससे उसके लिए एक निर्धारित समय अवधि के भीतर या किसी अन्य परिस्थिति के तहत कार्य करना असंभव हो जाता है। उदाहरण के लिए, राम श्याम को 15,00,000 रुपये देने के लिए सहमत होता है अगर श्याम गीता से शादी करता है। गीता राहुल से शादी कर लेती है। श्याम का गीता से विवाह करना अब असंभव हो जाता है, हालाँकि यह तब संभव है जब राहुल की मृत्यु हो जाए और गीता बाद में श्याम से विवाह कर ले।
धारा 35
धारा 35 में, आकस्मिक अनुबंध को, कुछ करने के लिए या कुछ भी न करने के लिए, यदि एक निश्चित अवधि के भीतर एक अनिश्चित घटना नहीं होती है, तो कानून द्वारा इसे तब लागू किया जा सकता है जब निर्दिष्ट अवधि समाप्त हो गई है और अनिश्चित घटना नहीं हुई है या जब यह निश्चित हो जाता है कि यह कार्य निश्चित समय समाप्त होने से पहले नहीं होगा। उदाहरण के लिए, कबीर राहुल को एक वर्ष के भीतर एक निश्चित जहाज वापस नहीं आने पर एक राशि का भुगतान करने का वादा करता है। यदि जहाज एक वर्ष के भीतर वापस नहीं आता है, या उस वर्ष के भीतर जल जाता है तो अनुबंध लागू किया जा सकता है।
धारा 36
धारा 36 में, यदि कोई असंभव घटना होती है, तो कुछ भी करने या न करने के लिए आकस्मिक अनुबंध शून्य हैं, भले ही पक्षों को समझौते पर हस्ताक्षर करने के समय असंभवता के बारे में पता था या नहीं। उदाहरण के लिए, अगर टिंकू राजू की बेटी स्नेहा से शादी करेगा, तो राजू टिंकू को 1,000 रुपये देने के लिए सहमत होता है। समझौते के वक्त स्नेहा की मौत हो चुकी थी। तो समझौता शून्य है।
मामला
नेमी चंद और अन्य बनाम हरक चंद और अन्य (1964) के मामले में, न्यायाधीशों ने माना कि एक दावा कि एक अनुबंध एक आकस्मिक अनुबंध है, को प्रस्तुत किया जाना चाहिए, और इसे स्थापित करने वाले पक्ष द्वारा समर्थित होना चाहिए। यह तर्क देना बेकार है कि निचली अदालत का इस तरह के मामले पर विचार करने के लिए बाध्य कर्तव्य है। हालांकि अनुबंध अधिनियम की धारा 32 वास्तव में कहती है कि आकस्मिक अनुबंध कुछ करने या न करने के लिए यदि अनिश्चित भविष्य की घटना होती है, तो उन्हें कानून द्वारा तब तक लागू नहीं किया जा सकता है जब तक कि वह घटना नहीं हुई हो। इसका उपयोग इस दावे का समर्थन करने के लिए नहीं किया जा सकता है कि निचली अदालत को मुकदमे को खारिज कर देना चाहिए यदि यह एक आकस्मिक अनुबंध से संबंधित है, लेकिन आकस्मिकता को तर्क के रूप के प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
दांव लगाने के समझौते
भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 30 दांव लगाने के समझौते को परिभाषित करती है। इस धारा के अनुसार, “दांव के रूप में समझौता शून्य हैं; और किसी भी ऐसी चीज जिसे दांव पर जीतने के लिए और उसे वसूलने के लिए दलील पेश की गई है, या जिसे किसी भी खेल या अन्य अनिश्चित घटना के परिणाम का पालन करने के लिए किसी भी व्यक्ति को सौंपा जाएगा, जिस पर कोई दांव लगाया जाता है, के लिए कोई मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता है।
उदाहरण: एक आईपीएल मैच में, अगर टीम A जीत जाती है तो राम, राहुल को 50,000 रुपये देगा और अगर टीम B मैच जीत जाती है तो राहुल, राम को 50,000 रुपये देगा। यह एक दांव लगाने वाला समझौता है क्योंकि समझौता एक अनिश्चित घटना के आधार पर, एक राशि का भुगतान करना है।
एक दांव एक मौका है जिसमें प्रत्येक पक्ष एक अनिश्चित घटना के परिणाम के आधार पर जीतने या हारने के लिए खड़े होते है जिसके संदर्भ में इसे लिया जाता है और जिसके होने पर किसी भी पक्ष का वैध हित नहीं होता है। पैसा ही उनके लिए मायने रखता है। चूंकि कोई भी पक्ष दांव पर मुकदमा दायर नहीं कर सकता, इसलिए समझौता शून्य होता है। पैसा ही वह सब है जो इस स्थिति में मायने रखता है, घटना मायने नहीं रखती है। एक समझौते में दांव लगाने के समझौते का उल्लेख नहीं है, लेकिन हम जो देखते हैं उसके आधार पर यह एक मौके का खेल लगता है, इसलिए हम इसे समझौते के रूप में समझते हैं।
एक दांव लगाने के समझौते के आवश्यक तत्व
- दो पक्ष होने चाहिए।
- एक दांव लगाने के समझौते में एक राशि का भुगतान करने की प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) शामिल होनी चाहिए।
- समझौते में शामिल घटना अनिश्चित होनी चाहिए।
- एक साझा इरादा होना जरूरी है।
- घटना पर पक्षों का कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
- पक्षों को इस आयोजन में हिस्सेदारी के अलावा कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए।
- दोनों पक्षों के जीतने या हारने का मौका होना चाहिए। जब कोई भी पक्ष जीत सकता है लेकिन हार नहीं सकता या हार सकता है लेकिन जीत नहीं सकता है, तो इस प्रकार का समझौता दांव लगाने वाला समझौता नहीं होता है।
एक दांव लगाने के समझौते के नियम के अपवाद
वाणिज्यिकी लेनदेन (कमर्शियल ट्रांजेक्शन)
जब भी वैध व्यवसाय करने का वास्तविक इरादा होता है, जैसे कि माल या शेयरों की डिलीवरी, तब लेन-देन को दांव नहीं माना जा सकता है। लेन-देन को एक दांव लगाने वाला समझौता माना जाएगा यदि कोई वास्तविक इरादा नहीं हैं और पक्ष केवल बाजार के उतार या चढ़ाव (राइज और फॉल) पर दांव लगाने में रुचि रखता हैं।
उपहार प्रतियोगिता
कुछ प्रतियोगिताएं ऐसी होती हैं जिनमें सफल होने के लिए कौशल (स्किल) महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए, क्रॉसवर्ड प्रतियोगिताएं, चित्र पहेली, एथलेटिक प्रतियोगिताएं आदि। उपहार प्रतियोगिताएं कौशल का खेल हैं और इसमें दांव शामिल नहीं हैं क्योंकि उपहार इसे खेलों में समाधान की खूबियों के लिए दिया जाता है।
बीमा का अनुबंध
बीमा का अनुबंध बीमाधारक (इंश्योर्ड) और बीमा कंपनी के बीच एक समझौता है जिसके तहत, पॉलिसीधारकों द्वारा भुगतान किए गए प्रीमियम के बदले में बीमा कंपनी बीमाधारक को किसी भी आकस्मिकता (कंटिंजेंसी) में सहमत राशि तक होने वाली किसी भी हानि के लिए क्षतिपूर्ति (इंडेम्निफाई) करने का वचन देती है। बीमा पॉलिसी का प्रदर्शन, चाहे वह जीवन के लिए हो, आग या समुद्री के लिए हो, अनिश्चित घटना पर निर्भर करता है।
घुड़दौड़
किसी भी घुड़दौड़ के विजेता या विजेताओं के द्वारा, किसी प्लेट, पुरस्कार, या 500 रुपये या उससे अधिक की राशि के लिए योगदान या सदस्यता (सब्सक्रिप्शन) करने के लिए एक समझौता, इस धारा के आधार पर शून्य नहीं है।
इस धारा के प्रावधानों का उद्देश्य भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 294A के तहत आने वाले घुड़दौड़ लेनदेन को वैध बनाना नहीं है।
मामले
बाबासाहेब रहीमसाहेब बनाम राजाराम रघुनाथ अल्पे (1930) के मामले में, दो पहलवानों ने एक समझौता किया कि वे एक निश्चित दिन पूना में कुश्ती करेंगे। जो पक्ष कुश्ती मैच में शामिल होने में विफल रहता है, उसे दूसरे पक्ष को 500 रुपये का भुगतान करना होगा और विजेता पहलवान को गेट मनी से 1,125 रुपये मिलेंगे। उनमें से एक पहलवान कुश्ती मैच में उपस्थित होने में विफल रहा और वादी ने उस पर रु. 500 के लिए वाद दायर कर दिया। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि समझौता शून्य है क्योंकि यह एक दांव लगाने वाला समझौता था। अदालत ने कहा कि यह दांव लगाने का समझौता नहीं था क्योंकि इसमें लाभ या हानि की कोई पारस्परिक (म्यूचुअल) संभावना नहीं थी। इस परिदृश्य में, दोनों पक्ष जीत सकते थे, लेकिन हार नहीं सकते थे क्योंकि पैसा जनता द्वारा दी गई गेट फीस से चुकाना पड़ता था, न कि किसी भी पक्ष की जेब से।
घेरूलाल पारख बनाम महादेवदास मैया और अन्य (1959) के मामले में, अपीलकर्ता, घेरूलाल पारख, और पहले प्रतिवादी, महादेवदास मैया, दो संयुक्त परिवारों के प्रबंधकों (मैनेजर) ने दो फर्मों के साथ दांव लगाने के अनुबंध को आगे बढ़ाने के लिए एक साझेदारी में प्रवेश किया। भागीदारों ने सहमति व्यक्त की है कि लेनदेन से लाभ और हानि समान रूप से वितरित की जाएगी। इन सभी लेन-देन का शुद्ध परिणाम घाटा था। चूंकि अपीलकर्ता ने नुकसान के अपने हिस्से को वहन करने की अपनी जिम्मेदारी से इनकार किया, इसलिए पहले प्रतिवादी ने लेनदेन में हुए नुकसान के आधे हिस्से की वसूली के लिए एक मुकदमा दायर किया।
अधीनस्थ (सबोर्डिनेट) न्यायाधीश ने पाया कि पक्ष बाजार के उतार या चढ़ाव के आधार पर दांव लगाने के अनुबंध में प्रवेश करने का इरादा रखते हैं। चूंकि समझौते का उद्देश्य कानून द्वारा प्रतिबंधित था और सार्वजनिक नीति के विपरीत था, तो यह शून्य था। एक अपील में, उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि साझेदारों का उद्देश्य अंतर से निपटना था और यह कि लेनदेन, दांव के रूप में, भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 30 के तहत शून्य थे, और उद्देश्य उक्त अधिनियम की धारा 23 के अर्थ में गैरकानूनी नहीं था। शून्य समझौते अवैध समझौतों के समान नहीं हैं। एक समझौता केवल तभी शून्य है जब कानून इसके प्रवर्तन को प्रतिबंधित करता है। जैसे, यह कहा जा सकता है कि सभी अवैध अनुबंध शून्य हैं, लेकिन सभी शून्य अनुबंध अवैध या गैरकानूनी नहीं हैं।
आकस्मिक अनुबंध और दांव लगाने के समझौते के बीच अंतर
एक आकस्मिक अनुबंध और एक दांव लगाने के समझौते के बीच अंतर इस प्रकार है –
- भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 31 के तहत एक आकस्मिक अनुबंध को परिभाषित किया गया है। इस अधिनियम की धारा 30 के तहत एक दांव लगाने के समझौते को परिभाषित किया गया है।
- भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 31 “आकस्मिक अनुबंध” को कुछ करने या न करने के अनुबंध के रूप में परिभाषित करती है, यदि कोई घटना, ऐसे अनुबंध के लिए संपार्श्विक, होती है या नहीं होती है। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 30 दांव से संबंधित है लेकिन यह शब्द को परिभाषित नहीं करती है। हालांकि, एक दांव का मतलब अनिश्चित घटना के निर्धारण और पता लगाने पर पैसे का भुगतान करने का वादा है।
- एक आकस्मिक अनुबंध प्रकृति में आकस्मिक नहीं हो सकता है। एक दांव लगाने का समझौता मूल रूप से प्रकृति में आकस्मिक होता है।
- आकस्मिक अनुबंध वैध और प्रवर्तनीय प्रकृति के होते हैं। दांव लगाने के समझौते शून्य और प्रकृति में अप्रवर्तनीय (अनएनफोर्सेबल) होते हैं।
- एक आकस्मिक अनुबंध के पक्ष पारस्परिक वादों से खुद को बांध सकते हैं या ऐसा नहीं भी कर सकते हैं। दांव लगाने के समझौते दोनों पक्षों को पारस्परिक वादों के लिए बाध्य करते हैं।
- एक आकस्मिक अनुबंध का उद्देश्य कुछ घटनाओं के जवाब में कुछ करना या न करना है। एक दांव लगाने के समझौते का उद्देश्य सट्टेबाजी की राशि को जीतना या खोना है।
- एक आकस्मिक अनुबंध नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए एक अनुबंध है। दांव लगाने के समझौते में अनिश्चित घटना के परिणाम पर पैसे का भुगतान करना शामिल है।
- आकस्मिक अनुबंध समाज के लिए फायदेमंद होते हैं। यह माना गया है कि दांव लगाने के समझौते जनता की भलाई के लिए हानिकारक हैं।
- एक आकस्मिक अनुबंध में, भविष्य की घटना केवल संपार्श्विक है। यह केवल भविष्य की घटना है जो एक दांव लगाने के समझौते के परिणाम को निर्धारित करती है।
निष्कर्ष
दोनों अवधारणाओं का विश्लेषण करने के बाद हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि दांव लगाने के समझौते शून्य हैं और आकस्मिक अनुबंध वैध हैं। इसलिए, हम कह सकते हैं कि हमें दांव लगाने के समझौतों से बचना चाहिए।
संदर्भ
- Law of Contract & Specific Relief- by Dr Avtar Singh
- Elements of Mercantile Law- by N.D. Kapoor