भारत में सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास पर कौन से कानून लागू होते हैं? प्रक्रिया अनुपालन, सर्वोत्तम प्रथाएं और लागू कानून

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1846
Transfer of Property Act

इस लेख में, Kshitij Datta Rishi, जो वर्तमान में एनयूजेएस, कोलकाता से बिजनेस लॉ में एमए कर रहे हैं, चर्चा करते हैं कि भारत में सार्वजनिक धर्मार्थ (चेरिटेबल) न्यास (ट्रस्ट) पर कौन से कानून लागू होते हैं? और साथ ही वह इसकी अनुपालन की जाने वाली प्रक्रिया, सर्वोत्तम प्रथाएं और लागू कानून पर भी चर्चा करते है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

इससे पहले कि हम भारत में सार्वजनिक न्यासों पर लागू कानूनों को समझें, हमें भारत में विभिन्न गैर-लाभकारी संगठनों, सोसायटी, धारा 25, कंपनियों और न्यासों के बीच अंतर को समझने की जरूरत है।

गैर-लाभकारी संगठनों के प्रकार

सोसायटी

  • 1857 के करीब 19वीं शताब्दी के दौरान, कला, राजनीति, विज्ञान और साहित्य के समसामयिक (कंटेंपररी) मुद्दों पर देश में विभिन्न समूहों और संगठनों की स्थापना की गई थी। बाद में ऐसे संगठनों को कानूनी दर्जा देने के लिए, 1860 में भारत में सोसायटी पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) अधिनियम लागू किया गया था। यह अधिनियम, अधिनियम की धारा 20 में वर्णित किसी भी उद्देश्य के लिए किसी भी साहित्यिक, धर्मार्थ और वैज्ञानिक सोसायटी के गठन की अनुमति देता है। अधिनियम के तहत, सात व्यक्तियों का कोई भी समूह जो मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (एम.ओ.ए.) का पालन करने के लिए सहमत है, एक सोसायटी को पंजीकृत कर सकता है।
  • ऐसे मेमोरेंडम में सोसायटी का नाम, उद्देश्य और सदस्यों का विवरण शामिल होना चाहिए। साथ ही, इसके साथ नियमों और विनियमों (रेगुलेशंस) का एक सेट भी होना चाहिए।
  • भारत की स्वतंत्रता के बाद, अनुकूलन (अडैप्टेशन) आदेश 1948/50 के आधार पर, यह अधिनियम क़ानून के रूप में बना रहा, लेकिन राज्य सरकारों की विधायिका (लेजिस्लेचर) के अंतर्गत आ गया और विभिन्न राज्यों में इसमें कई संशोधन हुए हैं।

धारा 8 कंपनियां (कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत) या पुरानी धारा 25 कंपनियां (कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत)

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 एक ऐसी व्यवस्था की अनुमति देती है जिसके माध्यम से एक कंपनी को सीमित देयता (लायबिलिटी) के साथ पंजीकृत किया जा सकता है यदि ऐसी कंपनी कला, विज्ञान, वाणिज्य (कॉमर्स), पर्यावरण की सुरक्षा या किसी अन्य उपयोगी उद्देश्य को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है, बशर्ते वह अंतर्निहित (अंडरलाइंग) उद्देश्यों को बढ़ावा देने में आय और मुनाफे को लगाने का इरादा रखता हो। साथ ही, सदस्यों को लाभ से कोई लाभांश नहीं दिया जा सकता है।

इस संरचना का उद्देश्य ऐसी कंपनियों को भारी कानूनी/नियामक (रेगुलेटरी) आवश्यकताओं से छूट देते हुए एक कॉर्पोरेट दृष्टिकोण प्रदान करना है।

ऐसी धारा 8 कंपनी को पंजीकृत करने के लिए, इसकी प्रक्रिया धारा 8 कंपनी के लिए विशिष्ट अतिरिक्त लाइसेंस आवश्यकता के अपवाद के साथ अन्य कंपनियों को पंजीकृत करने के समान है।

न्यास, धर्मस्व (एंडोमेंट), और वक्फ

  • भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 3 के अनुसार, ‘न्यास’ संपत्ति के स्वामित्व से जुड़ा एक दायित्व है, और मालिक द्वारा जताए गए और स्वीकार किए गए विश्वास से उत्पन्न होता है, या मालिक की ओर से स्वीकार किया जाता है या दूसरे की ओर से, या उसके द्वारा मालिक और दुसरे की ओर से घोषित और स्वीकार किया जाता है।’
  • विश्वास को नामित करने वाले पक्ष/व्यक्ति को ‘न्यास का लेखक’ (वसीयतकर्ता (टेस्टेटर)) कहा जाता है, जो व्यक्ति ऐसे न्यास को स्वीकार करता है उसे ‘न्यासी’ कहा जाता है और जिस व्यक्ति के लाभ के लिए उल्लिखित विश्वास को स्वीकार किया जाता है वह ‘लाभार्थी (बेनिफिशियरी)’ होता है।
  • अनिवार्य रूप से, इस प्रकार के संगठन कानूनी रूप से निश्चित धर्मार्थ और धार्मिक उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्ति निपटान/व्यवस्था के तरीके के रूप में बनाए जाते हैं। उनके गठन का आधार एक संपत्ति या परिसंपत्ति (एसेट) की उपस्थिति है जिसे वसीयत बनाने वाले के द्वारा किसी विशिष्ट उद्देश्य, अर्थात धार्मिक या सामाजिक अद्देश्य, के लिए दान किया गया है। धर्मार्थ और धार्मिक संस्थाएँ विशेष प्रकार के न्यास हैं जिनका इरादा स्पष्ट रूप से गैर-धर्मनिरपेक्ष (नॉन सेकुलर) होता है। वक्फ न्यास का एक और प्रकार है जहां दानकर्ता (डोनर) मुस्लिम होता है।
  • उनका निगमन (इनकॉरपोरेशन), संगठनात्मक संरचना और कार्यों और शक्तियों का वितरण उस विशिष्ट कानून के प्रावधानों द्वारा नियंत्रित होता है जिसके तहत वे पंजीकृत होते हैं।

आम तौर पर, इन संगठनों को निम्नलिखित पाँच तरीकों से कानूनी रूप से पंजीकृत किया जा सकता है:

  1. संबंधित राज्य सार्वजनिक न्यास अधिनियम जैसे राजस्थान सार्वजनिक न्यास अधिनियम, गुजरात सार्वजनिक न्यास अधिनियम, बॉम्बे सार्वजनिक न्यास अधिनियम, 1950 आदि के तहत पंजीकरण महानिरीक्षक (इंस्पेक्टर जनरल)/धर्मदान आयुक्त (कमिश्नर) के समक्ष पंजीकरण करना;
  2. सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 92 और 93 के तहत एक न्यास को संचालित करने के लिए योजनाएं निर्धारित करने के लिए सिविल अदालतों के हस्तक्षेप की मांग करके;
  3. पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत न्यास विलेख (डीड) (सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास का) का पंजीकरण;
  4. धर्मार्थ न्यासों और धार्मिक धर्मस्व की सूची में एक संगठन को अधिसूचित (नोटिफाई) करना, जिसकी देखरेख राज्य के धर्मस्व आयुक्त या धर्मार्थ धर्मस्व अधिनियम, 1890 के तहत या हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ धर्मस्व पर अन्य राज्य कानूनों के तहत गठित एक प्रबंध समिति द्वारा की जाती है; और
  5. वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के तहत वक्फ बनाना।

न्यासों को सार्वजनिक और निजी में विभाजित किया जा सकता है। न्यासों से लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्तियों, समूहों, कंपनियों आदि को लाभार्थी कहा जाता है। लाभार्थियों के प्रकार सार्वजनिक न्यास को निजी न्यास से अलग करते हैं।

  • निजी न्यास के लाभार्थी आम तौर पर बंद समूह, व्यक्ति, कंपनियां होते हैं लेकिन सार्वजनिक न्यास के लाभार्थियों को हमेशा परिभाषित नहीं किया जाता है, यानी यह बड़े पैमाने पर सार्वजनिक होते हैं। यह सार्वजनिक न्यास एक ऐसा संगठन है जिसका गठन जनता को धर्मदान देने के प्राथमिक उद्देश्य से किया गया है।
  • एक न्यास, लिखित विलेख, वसीयत द्वारा बनाया जा सकता है या इसे मौखिक रूप से भी बनाया जा सकता है। हालाँकि, विषय के रूप में अचल संपत्ति के मामले में, न्यास केवल न्यास के लेखक द्वारा हस्ताक्षरित और पंजीकृत गैर-वसीयतनामा दस्तावेज या लेखक की वसीयत द्वारा बनाया जा सकता है। इसलिए, ‘वसीयत’ का पंजीकृत होना जरूरी नहीं है, भले ही वह अचल संपत्ति से संबंधित हो।
  • न्यास बनाने का प्राथमिक लिखत (इंस्ट्रूमेंट) न्यास विलेख है, जो निर्धारित शुल्क के गैर-न्यायिक स्टाम्प पेपर पर बनाया जाता है और संबंधित रजिस्ट्रार को प्रस्तुत करने के लिए न्यासी द्वारा हस्ताक्षरित होता है। इसके लिए, चूंकि न्यास संपत्ति हस्तांतरण (ट्रांसफर) के सिद्धांत पर आधारित है, इसलिए संपत्तियों को पंजीकृत करने के लिए अधिकृत रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार को इस न्यास विलेख को पंजीकृत करने का अधिकार है। इस कारण से, प्रस्तावित न्यास के न्यास विलेख को संपत्तियों के रजिस्ट्रार या तहसीलदार के साथ पंजीकृत किया जा सकता है, इसके बाद जिला स्तर पर कलक्ट्रेट में धर्मस्व की जा सकती है। महानगरीय क्षेत्रों/शहरों के मामले में, यह प्रक्रिया संपत्ति और धर्मस्व रजिस्ट्रार के अलग-अलग कार्यालयों के साथ की जाती है।

न्यास विलेख में लेखकों के नाम, न्यासियों के नाम; न्यास के निवासी; लाभार्थियों के नाम, यदि कोई हों, या क्या यह बड़े पैमाने पर सार्वजनिक है; न्यास का नाम और पता; न्यास के उद्देश्य; न्यासियों की नियुक्ति, निष्कासन या प्रतिस्थापन, उनकी शक्तियों, अधिकारों और कर्तव्यों और शक्तियों पर विशिष्ट बातें; दूसरों के बीच न्यास के निर्धारण की विधि और तरीके सहित विभिन्न विवरण शामिल होने चाहिए।

सोसायटी न्यास और धारा 8 कंपनी के बीच तुलना

  सोसायटी  सार्वजनिक न्यास धारा 8 कंपनी
अधिनियम/विधान सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 सार्वजनिक न्यास अधिनियम की तरह 1950 का बॉम्बे सार्वजनिक न्यास अधिनियम कंपनी अधिनियम 1956
क्षेत्राधिकार (ज्यूरिसडिक्शन) राज्य जहां यह पंजीकृत है राज्य जहां यह पंजीकृत है राज्य जहां यह पंजीकृत है
अधिकार सोसायटी के रजिस्ट्रार धर्मदान आयुक्त कंपनियों के रजिस्ट्रार
पंजीकरण सोसायटी के रूप में (और महाराष्ट्र और गुजरात में न्यास के रूप में भी) न्यास के रूप में मेमोरेंडम एंड आर्टिकल ऑफ़ एसोसियेशन
पंजीकरण के लिए आवश्यक व्यक्तियों की संख्या न्यूनतम सात; कोई ऊपरी सीमा नहीं न्यूनतम दो न्यासी; न्यूनतम 2 शेयरधारक/न्यूनतम 2 निदेशक (डायरेक्टर)
प्रबंधन का मंडल शासी परिषद या निकाय/कार्यकारी (एग्जिक्यूटिव) या प्रबंध समिति न्यासी  निदेशक मंडल/प्रबंध समिति
प्रबंधन मंडल पर उत्तराधिकार का तरीका सामान्यतः सामान्य निकाय के सदस्यों द्वारा चुनाव किया जाता है आमतौर पर नियुक्ति से सामान्यतः सामान्य निकाय के सदस्यों द्वारा चुनाव किया जाता है।

अब जब हम गैर-लाभकारी संगठनों के बुनियादी प्रकारों को समझ गए हैं, तो यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि धर्मार्थ संगठनों का क्या अर्थ है ।

धर्मार्थ संगठन

  • धर्मार्थ संगठन धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए स्थापित संगठन हैं। ये गैर-लाभकारी संगठन हैं; हालाँकि, यह महसूस किया जाना चाहिए कि सभी गैर-लाभकारी संगठन धर्मार्थ संगठन नहीं हैं। कुछ धर्मार्थ संगठन मुख्य रूप से अपनी कर नियोजन रणनीतियों के एक भाग के रूप में कंपनियों द्वारा स्थापित किए जा सकते हैं।
  • किसी भी धर्मार्थ संगठन की मुख्य जिम्मेदारी उन कारणों पर ध्यान केंद्रित करके जनता के लाभ के लिए काम करना है जो बड़े पैमाने पर जनता की मदद करते हैं। इसके साथ ही इन संगठनों द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य वैधानिक होने चाहिए तथा उनकी नीति सामान्य सार्वजनिक नीति के अनुरूप होनी चाहिए।

धर्मार्थ उद्देश्य

  • जनता के व्यापक लाभ के लिए सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास बनाया जाना चाहिए। इसी प्रकार, सोसायटी को धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए पंजीकृत किया जा सकता है। जैसा कि पहले वर्णित है, धारा 8 कंपनियाँ “वाणिज्य, कला, विज्ञान, धर्म, दान या किसी अन्य उपयोगी उद्देश्य को बढ़ावा देने” के सीमित उद्देश्यों के लिए बनाई गई हैं।
  • कानूनी दृष्टि से, “धर्मार्थ उद्देश्य” की अवधारणा शब्द की शब्दकोश परिभाषाओं से थोड़ी भिन्न हो सकती है।
  • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2(15) के अनुसार, धर्मार्थ उद्देश्यों में “गरीबों को उपचार, शिक्षा, चिकित्सा राहत और सामान्य सार्वजनिक उपयोगिता की किसी अन्य उद्देश्य की उन्नति” शामिल है। इसके अलावा, वित्त (नंबर 2) अधिनियम, 2009 ने धर्मार्थ शब्द के दायरे में “पर्यावरण का संरक्षण (जलक्षेत्र, वन और वन्य जीवन सहित) और स्मारकों या स्थानों या कलात्मक या ऐतिहासिक रुचि के उद्देश्यों का संरक्षण” जोड़ा।
  • इसके अलावा, वित्त अधिनियम, 2008 ने “धर्मार्थ उद्देश्य” की परिभाषा को यह उल्लेख करते हुए प्रतिबंधित कर दिया कि यदि “सामान्य सार्वजनिक उपयोगिता की किसी अन्य उद्देश्य की उन्नति” में कोई व्यावसायिक गतिविधि, व्यापार या वाणिज्य करना या किसी संबंधित सेवा किसी शर्त या शुल्क पर प्रदान करना “धर्मार्थ उद्देश्य” नहीं माना जाएगा।
  • वित्त अधिनियम 2010, 1 अप्रैल 2009 से पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिव) प्रभाव से, एक सीमा निर्धारित करके और ऐसी गतिविधियों से प्राप्तियों की कुल राशि को दस लाख रुपये तक छूट देकर कुछ राहत प्रदान की गई। शिक्षा, गरीबी से राहत और चिकित्सा सहायता के लिए स्थापित और चलाने वाला एक संगठन 2009 या 2010 के संशोधनों से प्रभावित नहीं हुआ।

राज्य कानूनों के तहत, बॉम्बे सर्वजनिक न्यास अधिनियम, 1950 की धारा 9(1) के अनुसार, धर्मार्थ उद्देश्य में शामिल हैं:

  1. शिक्षा
  2. गरीबी या संकट से राहत
  3. चिकित्सा राहत
  4. मनोरंजन या अन्य ख़ाली समय के व्यवसायों के लिए सुविधाओं का प्रावधान, यदि उक्त सुविधाएं सार्वजनिक लाभ और सामाजिक कल्याण के हित में प्रदान की जाती हैं।
  5. सामान्य सार्वजनिक उपयोगिता के किसी अन्य उद्देश्य की उन्नति, लेकिन इसमें कोई ऐसा उद्देश्य शामिल नहीं है जो विशेष रूप से धार्मिक शिक्षण या पूजा से संबंधित हो।

जैसा कि ऊपर महसूस किया जा सकता है, धर्मार्थ उद्देश्य की परिभाषा गरीबी या आपदाओं से सीधे राहत प्रदान करने की दिशा में काम करने के अलावा अन्य गतिविधियों को शामिल करने के लिए काफी व्यापक है।

भारत में सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों पर लागू कानून

इससे पहले कि हम सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों की बारीकियों में जाएं, धर्मदान क्षेत्र के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया जाना चाहिए:

ऐसा कोई व्यक्तिगत कानून नहीं है, जो धर्मार्थ संगठन क्षेत्र को व्यापक रूप से नियंत्रित करता हो और इसी तरह भारत में इस क्षेत्र में कोई एकल नियामक नहीं है।

  • धर्मदान देने वाले व्यक्तियों की पसंद और उद्देश्य के आधार पर, एक धर्मार्थ संगठन विभिन्न तरीकों से बनाया जा सकता है और कानून के विभिन्न अधिनियम के अधीन हो सकता है।
  • राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग कानूनी प्रावधान मौजूद हैं।
  • गैर-लाभकारी संगठनों को भी किसी भी ‘राजनीतिक गतिविधि’ में शामिल होने की अनुमति नहीं है। बॉम्बे सार्वजनिक न्यास अधिनियम के तहत, ‘राजनीतिक शिक्षा’ भी ‘धर्मार्थ उद्देश्य’ के दायरे से बाहर है।
  • भारत, एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बने रहने के लिए, किसी भी धर्मार्थ संगठन के गठन में रंग, जाति और पंथ के भेदभाव की अनुमति नहीं देता है। हालाँकि, समुदाय के एक विशिष्ट वर्ग के लाभ के लिए एक वैध न्यास बनाना अभी भी संभव है। लेकिन तब इस तरह के न्यास को आयकर में कोई छूट नहीं मिलेगी।
  • जैसा कि ऊपर बिंदु में चर्चा की गई है, किसी विशिष्ट धार्मिक समुदाय के लाभ के लिए स्थापित धार्मिक न्यासों को भी आयकर छूट का लाभ उठाने की अनुमति नहीं है।

भारत में ऐसे सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों के गठन/पंजीकरण को नियंत्रित करने वाले कानून

भारत में न्यासों पर पहला कानून 1882 में लागू हुआ और इसे भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के रूप में जाना गया। यह अधिनियम मूल रूप से निजी न्यासों के प्रबंधन के लिए था।

  • निजी न्यासों से केंद्रीय कानून के विपरीत, अलग-अलग राज्यों में सार्वजनिक न्यास के रूप में गठित एक धर्मार्थ संस्थान, संबंधित राज्य में लागू सार्वजनिक न्यास अधिनियम द्वारा शासित होता है। उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र राज्य में गठित/पंजीकृत सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास बॉम्बे सार्वजनिक न्यास अधिनियम, 1950 द्वारा शासित होते हैं।
  • इसी तरह का अधिनियम गुजरात राज्य में भी लागू है। ऐसे न्यासों के लिए, राजस्थान में 1959 का न्यास अधिनियम है और मध्य प्रदेश में 1951 का अधिनियम है। कुछ दक्षिणी राज्यों में, धर्मस्व अधिनियम हैं (उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश), जबकि भारत के कई उत्तरी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में कोई भी न्यास अधिनियम नहीं है।
  • यहां तक ​​कि नई दिल्ली में भी कोई न्यास कानून नहीं है। ऐसे मामलों में, यदि उस राज्य में कोई सार्वजनिक न्यास अधिनियम मौजूद नहीं है, तो इन राज्यों में सार्वजनिक न्यास भारतीय न्यास अधिनियम 1882 द्वारा शासित होते हैं।

हनुमंतराम रामनाथ (बोम) के मामले के फैसले के आधार पर, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भले ही भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 विशेष रूप से सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों पर लागू नहीं होता है, एक धर्मार्थ न्यास बनाने के लिए तीन न्यूनतम आवश्यकताएं हैं। ये:

  1. न्यास की घोषणा – निपटानकर्ता पर बाध्यकारी,
  2. एक निश्चित संपत्ति को अलग करना और निपटानकर्ता का खुद को स्वामित्व से वंचित करना, और
  3. लाभार्थी(ओं) – जिसके लिए संपत्ति उसके बाद धारित की जानी है,

यह महत्वपूर्ण है कि निपटान कर्ता द्वारा संपत्ति का हस्तांतरणकर्ता (ट्रांसफरर) या न्यास के लेखक को अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के लिए सक्षम होना चाहिए। इसके साथ ही न्यासी भी ऐसे व्यक्ति होने चाहिए जो अनुबंध पर हस्ताक्षर करने में सक्षम हों। यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि पहचाने गए न्यासियों को न्यास को कानूनी रूप से वैध बनाने के लिए न्यासी के रूप में कार्य करने के लिए अपनी स्वीकृति का संकेत देना चाहिए।

सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों या समान धर्मस्व को नियंत्रित करने वाले विभिन्न राज्यों के लिए विशिष्ट अधिनियमों का उल्लेख लेख के अंत में सूची में किया गया है।

सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों पर आयकर अधिनियम 1961 की प्रयोज्यता (एप्लीकेबिल्टी)

सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों को आयकर से छूट दी गई है। सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों को प्रदान की गई ये छूट आयकर अधिनियम की धारा 11, धारा 12 और धारा 13 में निर्दिष्ट हैं।

  • अधिनियम की धारा 11 ऐसे सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों को आयकर से छूट के तरीकों का विवरण प्रदान करती है।
  • धारा 12 में न्यास की आय के योगदान के लिए छूट का उल्लेख है।
  • इन योगदानों से न्यासों की आय।
  • पूरी तरह से धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए बनाए गए न्यास या ऐसे उद्देश्यों के लिए पूरी तरह से स्थापित संस्था द्वारा प्राप्त स्वैच्छिक योगदान।
  • आयकर अधिनियम की धारा 13 सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास द्वारा आयकर छूट की जब्ती से संबंधित विवरण देती है।
  • सभी न्यास वार्षिक रिपोर्ट दाखिल करने के लिए बाध्य हैं। आय के ये रिटर्न उस राज्य के क्षेत्राधिकार वाले संबंधित अधिकारियों के पास दाखिल किए जाने चाहिए जहां न्यास पंजीकृत हैं। ऐसे मामलों में जहां न्यास विलेख में न्यास को रद्द करने का प्रावधान है, न्यास के लेखकों की आय पर आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 6063 के तहत व्यक्तिगत आय के रूप में कर लगाया जा सकता है।

धारा 80G सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों के दानकर्ता को उपलब्ध विशेषाधिकारों का विवरण प्रदान करती है। इस धारा के तहत, यदि किसी व्यक्तिगत दानकर्ता को इस तरह के सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों को दान दिया जाता है तो उसे विशिष्ट कटौती दी जाती है। अपने दानकर्ता  को यह लाभ प्रदान करने में सक्षम होने के लिए, एक सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास को एक वैध प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक है। इस प्रमाणपत्र को प्राप्त करने के लिए, न्यास को आयकर कार्यालय में न्यास विलेख के साथ फॉर्म 10G के साथ आवेदन देना आवश्यक है। दानकर्ता  को लाभ प्रदान करने के लिए इस प्रमाणपत्र को प्राप्त करने की प्राथमिक शर्त यह है कि न्यास की संपत्ति से प्राप्त आय का उपयोग केवल धर्मार्थ उद्देश्यों (जैसा कि पहले बताया गया है) में किया जाना चाहिए। इस प्रमाणीकरण को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों द्वारा पूरी की जाने वाली विशिष्ट शर्तें हैं:

  • न्यास एक सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास होना चाहिए, इसका लाभ निजी न्यासों के लिए नहीं है।
  • न्यास को राज्य के प्रासंगिक कानूनों के तहत और आयकर विभाग के साथ पंजीकृत होना चाहिए।
  • न्यास की कोई भी आय या योगदान आयकर अधिनियम की धारा 11, धारा 12, धारा 12A और धारा 12AA के तहत छूट के लिए लागू नहीं होना चाहिए। यदि यह मामला है, तो न्यास को निजी व्यवसाय के लिए दान का उपयोग नहीं करना चाहिए और अलग-अलग खातों का रखरखाव करना चाहिए।
  • न्यास के उपनियम और उद्देश्य केवल धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए होने चाहिए।
  • न्यास को खातों का नियमित रखरखाव और उसका नियमित लेख परीक्षण होना चाहिए।
  • आयकर रिटर्न दाखिल करने में कोई अनियमितता नहीं होनी चाहिए।

सार्वजनिक धर्मार्थ न्यासों पर विदेशी अंशदान (कंट्रीब्यूशन) (विनियमन) अधिनियम, 2010 की प्रयोज्यता

सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास जो विदेशी योगदान या विदेशी स्रोतों से दान प्राप्त करते हैं, उन्हें विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम, 2010 की धारा 6(1) के तहत पंजीकरण प्राप्त करना आवश्यक है। अधिनियम के तहत इस तरह के पंजीकरण को एफसीआरए पंजीकरण कहा जाता है।

एफसीआरए पंजीकरण के लिए आवेदन करने के लिए पात्र होने के लिए एक न्यास को कुछ मानदंडों को पूरा करना चाहिए,

  • निश्चित सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक या शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए विदेशी योगदान चाहने वाला एक सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास एफसीआरए पंजीकरण प्राप्त कर सकता है या “पूर्व अनुमति” मार्ग के माध्यम से विदेशी योगदान प्राप्त कर सकता है।
  • एफसीआरए आवेदन करने के समय न्यास को कम से कम तीन साल तक अस्तित्व में रहना चाहिए और सरकार की मंजूरी के बिना इसके लिए आवेदन करने से पहले कोई विदेशी योगदान प्राप्त नहीं करना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त, पंजीकरण चाहने वाले न्यास को किसी भी प्रशासनिक व्यय को छोड़कर, अपने लक्ष्य और उद्देश्यों पर पिछले तीन वर्षों में कम से कम 10,00,000/- रुपये खर्च करने चाहिए। इसे साबित करने के लिए, पिछले तीन वर्षों के लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा विधिवत लेखा परीक्षित आय और व्यय का विवरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

आवेदन हो जाने के बाद, एफसीआरए पंजीकरण प्रदान करने से पहले विभिन्न अतिरिक्त मानदंडों की जाँच की जाती है। हालाँकि, पंजीकरण के बाद भी, न्यासों को विदेशी संस्थाओं से अनुदान स्वीकार करने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि ये उनके धन के स्रोत के संदर्भ में जोखिम भरा हो सकता है या इन धन का उद्देश्य जनता/राष्ट्र की भलाई के विरुद्ध हो सकता है।

न्यासों के लिए अन्य लागू कानून

वक्फ

कुछ प्रासंगिक राज्य अधिनियम

संदर्भ

  • Societies, Trusts/ Charitable Institutions, Waqfs and Endowments: Social Capital – A Shared Destiny
  • Handbook on Laws Governing formation and Administration of Charitable Organizations in India – CA Rajkumar S. Adukia
  • FCRA Registration for Trusts and NGOs – India Filings

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