पट्टे और लाइसेंस

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Transfer of Property act

यह लेख Muhammad Jahangir Hossain द्वारा लिखा गया है, जो रियल एस्टेट कानूनों में सर्टिफिकेट कोर्स कर रहे हैं, और इसे Oishika Banerji (टीम लॉसिखो) द्वारा संपादित (एडिट) किया गया है। इस लेख में लेखक पट्टे (लीज) और लाइसेंस के बीच अंतर के बारे में चर्चा करते है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय 

मान लीजिए, मिस्टर X के पास कुछ संपत्ति है। लेकिन उसके पास संपत्ति से लाभ प्राप्त करने के लिए समय और संसाधनों (रिसोर्सेज) की कमी है। वह किसी ऐसे व्यक्ति को चाहता है जो उनके स्वामित्व के संबंध में कुछ भी बाधा डाले बिना संपत्ति का उचित रूप से उपयोग करे। बदले में, वह व्यक्ति उस संपत्ति का उपयोग करके अर्जित लाभ को मिस्टर X को साझा करे। इस प्रकार के संविदात्मक समझौते को विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है। पट्टा और लाइसेंस दो ऐसे आदर्श तरीके हैं। पट्टे या लाइसेंस समझौते के नियमों और शर्तों को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए कि यह पक्षों के वास्तविक इरादे को दर्शाता है कि क्या वे चाहते हैं कि विलेख (डीड) एक पट्टा समझौता या लाइसेंस समझौता हो। इसलिए, एक वकील के लिए पट्टे और लाइसेंस के बीच समानताओं और अंतरों को जानना बहुत महत्वपूर्ण है। कभी-कभी लोग दो शब्दों को लेकर भ्रमित हो जाते हैं। इस लेख का उद्देश्य ऐसे भ्रम को दूर करना है। 

पट्टे और लाइसेंस की वैधानिक परिभाषा

विवरण में जाने से पहले, यह देखना उचित होगा कि भारतीय कानून पट्टे और लाइसेंस के बारे में क्या कहता है। संपत्ति हस्तांतरण (ट्रांसफर) अधिनियम, 1882 की धारा 105 और भारतीय सुखाचार (ईजमेंट) अधिनियम, 1882 की धारा 52 के तहत ‘पट्टे’ और ‘लाइसेंस’ शब्द क्रमशः परिभाषित किए गए हैं। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 105 में कहा गया है कि,

“अचल संपत्ति का पट्टा ऐसी संपत्ति का आनंद लेने के अधिकार का हस्तांतरण है, जो एक निश्चित समय के लिए बनाया जाता है, यह व्यक्त या निहित हो सकता है, या सदा के लिए हो सकता है और हस्तांतरी (ट्रांसफरी), जो ऐसे हस्तांतरण की शर्तो को स्वीकार करता है, के द्वारा हस्तांतरणकर्ता (ट्रांसफरर) को समय समय पर या किसी विशिष्ट अवसर पर किसी मूल्य, या धन, फसलों का एक हिस्सा, सेवा या कोई भी अन्य वस्तु जिसका कोई मूल्य हो, का प्रतिफल (कंसीडरेशन) के रूप में भुगतान किया जाता है, या भुगतान करने का वादा किया जाता है।

हस्तांतरणकर्ता को पट्टाकर्ता (लेस्सर) कहा जाता है, हस्तांतरी को पट्टेदार (लेस्सी) कहा जाता है, मूल्य को प्रीमियम कहा जाता है, और पैसा, हिस्सा, सेवा या अन्य चीज जो प्रदान की जाती है उसे किराया कहा जाता है। इस लेख के शुरू में दी हुई घटना पट्टे का उदाहरण है। 

इसके अलावा, सुखाचार अधिनियम, 1882 की धारा 52 प्रदान करती है कि,

“जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को, या अन्य व्यक्तियों की एक निश्चित संख्या को, अनुदानकर्ता (ग्रैंटर) की अचल संपत्ति में या उस पर कुछ करने का अधिकार देता है, जो इस तरह के अधिकार के अभाव में गैरकानूनी होगा, और इस तरह के अधिकार को सुखाचार या संपत्ति में कोई हित नहीं माना जाता है, तो ऐसे अधिकार को लाइसेंस कहा जाता है।

लाइसेंस देने वाले पक्ष को लाइसेंसकर्ता (लाइसेंसर) कहा जाता है और लाइसेंस प्राप्त करने वाले पक्ष को लाइसेंसधारी (लाइसेंसी) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, किसी देश की सरकार, बार के मालिक को अपना शराब का कारोबार करने के लिए लाइसेंस जारी करती है। यहां सरकार लाइसेंसकर्ता है और बार का मालिक लाइसेंसधारी है। बिना लाइसेंस के शराब का कारोबार करने की अनुमति नहीं है। यदि हम पट्टे और लाइसेंस की उपरोक्त दो वैधानिक परिभाषाओं को विच्छेदित (डाईसेक्ट) करते हैं, तो हम उन घटकों का पता लगा सकते हैं जिनसे ये बने हैं।

पट्टे के घटक

एक पट्टा ‘आनंद लेने के अधिकार’ का हस्तांतरण है जिससे पट्टेदार का हित बनता है। यह एक लाइसेंस की तरह मात्र अनुमति नहीं है, बल्कि यह पक्षों द्वारा निर्धारित एक निश्चित अवधि के लिए या सदा के लिए एक प्रकार का कब्ज़ा और स्वामित्व बनाता है। हालांकि, वास्तविक अधिकार, शीर्षक, स्वामित्व हमेशा पट्टाकर्ता के पास रहता है और पट्टाकर्ता अपने कब्जे और पूर्ण नियंत्रण को पुनः प्राप्त कर सकता है यदि पट्टे को विधिवत समाप्त कर दिया जाता है या पट्टेदार को उसकी इच्छा या कानून के अनुसार रोक दिया जाता है। 

पट्टे का गठन करने के लिए एक ‘प्रतिफल’ होना चाहिए, जिसका भुगतान पट्टेदार द्वारा हस्तांतरण के समय पट्टाकर्ता को किया जा सकता है या पट्टेदार द्वारा समय-समय पर या विशिष्ट अवसरों पर भुगतान करने का वादा किया जा सकता है, जैसा कि पक्षों द्वारा निर्धारित किया जाता है। 

यह प्रतिफल धन के रूप में या पट्टे की भूमि की खेती से उगाई गई फसलों के हिस्से के रूप में, सेवा प्रदान करके, या किसी अन्य मूल्यवान वस्तु के रूप में हो सकता है। प्रतिफल की प्रकृति जो भी हो, पट्टा बनाने के लिए प्रतिफल अवश्यक है। प्रतिफल के बिना पट्टा अमान्य है। पट्टे के घटक नीचे दिए गए हैं:

  • ऐसी (अचल) संपत्ति का आनंद लेने के अधिकार का हस्तांतरण, 
  • एक निश्चित समय के लिए, व्यक्त या निहित, या सदा के लिए बनाया गया, 
  • भुगतान किए गए या या भुगतान का वादा किए गाय मूल्य, या धन, फसलों के हिस्से, सेवा या मूल्य की किसी अन्य वस्तु के प्रतिफल में, 
  • हस्तांतरी द्वारा हस्तांतरणकर्ता को समय-समय पर या विशिष्ट अवसरों पर प्रदान किए जाने के लिए, 
  • जो ऐसी शर्तों पर हस्तांतरण स्वीकार करता है। 

लाइसेंस के घटक

लाइसेंस एक प्रकार का अनुदान या अनुमति है, लेकिन हित या कब्जे का कोई हस्तांतरण नहीं है। लाइसेंस प्राप्त करने के बाद, लाइसेंसधारी व्यवसाय की प्रकृति के अनुसार अपना व्यवसाय कहीं भी कर सकता है। मान लीजिए, एक बार मालिक अपने स्थान पर अपना व्यवसाय करता है, दूसरी ओर एक कस्टम एजेंट लाइसेंस लाइसेंसधारी को संबंधित कार्यालयों में काम करने का अधिकार देता है। एक भूस्वामी किसी को भी या एक निश्चित संख्या में लोगों को अपने परिसर में प्रवेश करने की अनुमति दे सकता है और भूस्वामी द्वारा निर्धारित शुल्क का भुगतान करने के अधीन अपना काम कर सकता है। यह अनुमति एक तरह का लाइसेंस है। यदि कोई व्यक्ति संबंधित कार्य बिना लाइसेंस के करता है तो वह गैर कानूनी गतिविधि होगी। इसके घटकों को नीचे बताया गया है: 

  • एक व्यक्ति दूसरे को या निश्चित संख्या में अन्य व्यक्तियों को अनुदान देता है, 
  • कुछ कार्य करने का अधिकार, या कार्य करने को जारी रखना का अधिकार देता है, 
  • अनुदानकर्ता की अचल संपत्ति में या उस पर, 
  • कुछ ऐसा जो इस तरह के अधिकार के अभाव में गैरकानूनी होगा, और 
  • इस तरह के अधिकार में सुखाचार या संपत्ति में कोई हित नहीं होता है, अधिकार को लाइसेंस कहा जाता है।

पट्टे और लाइसेंस के बीच समानताएं और अंतर

हस्तांतरण की प्रकृति: 

एक पट्टे की संपत्ति के संबंध में हित का हस्तांतरण होता है। पट्टाकर्ता कुछ शर्तों जैसे समय की अवधि या भुगतान की विधि पर पट्टेदार के पक्ष में संपत्ति के उपयोग या कब्जे का अधिकार हस्तांतरित करता है। इसलिए, पट्टेदार को पट्टे की संपत्ति में अपने कब्जे की रक्षा करने का अधिकार मिलता है। लाइसेंस के मामले में, लाइसेंसधारी को लाइसेंस प्राप्त संपत्ति के उपयोग के कुछ अधिकार भी मिलते हैं या लाइसेंसकर्ता के कब्जे के क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है। सूक्ष्म अंतर यह है कि लाइसेंस में पूरी संपत्ति, लाइसेंस के लिए अनुमत, लाइसेंसधारी के अनन्य कब्जे के लिए हस्तांतरित नहीं होती है। उसे सिर्फ लाइसेंस के अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिकशन) के अनुसार संपत्ति का उपयोग करने की अनुमति मिलती है। 

इसलिए, एक लाइसेंसधारी के पास लाइसेंस प्राप्त संपत्ति के साथ अपने कब्जे की रक्षा करने का कोई हित या अधिकार नहीं होता है। उसे बस लाइसेंसकर्ता के इरादे के अनुसार या लाइसेंस पेपर में निर्दिष्ट के अनुसार कुछ कार्य करने की या कुछ कार्य को जारी रखने की अनुमति मिलती है। जैसे, जब हम रेलवे स्टेशन से टिकट खरीदते हैं, तो हमें प्लेटफॉर्म में प्रवेश करने और ट्रेन से कहीं भी जाने का लाइसेंस मिल जाता है, जिसका स्वामित्व रेलवे अधिकारियों के पास होता है। लेकिन हमें रेलवे या ट्रेन के क्षेत्र पर अपनी मर्जी से कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं मिलता है। दूसरी ओर, पट्टे पर दी हुई संपत्ति पट्टेदार के पूर्ण नियंत्रण में उसके पास रहती है, हालांकि पट्टाकर्ता संपत्ति का वास्तविक शीर्षक-धारक होता है। 

मान लीजिए, सरकार किसी को कुछ वर्षों के लिए पट्टे पर प्लॉट देती है। पट्टेदार भूमि पर कोई भी निर्माण कर सकता है और उससे लाभ प्राप्त कर सकता है। हालांकि, पट्टेदार पट्टे पर दी संपत्ति के संबंध में सरकार के सभी नियमों का पालन करने के लिए बाध्य है।  

आगे हस्तांतरित करना: 

एक पट्टेदार पट्टे को उपपट्टे के माध्यम से हस्तांतरित कर सकता है या पट्टे को मूल पट्टेदार की मृत्यु पर उत्तराधिकारी (इन्हेरिटर) को हस्तांतरित किया जा सकता है। पट्टाकर्ता या पट्टेदार के परिवर्तन पट्टे को प्रभावित नहीं करते हैं, यदि अन्य शर्तें समान रहती हैं। इसी तरह, यदि पट्टेदार संपत्ति को बिक्री के माध्यम से किसी तीसरे पक्ष के पक्ष में हस्तांतरित करता है, तो पट्टेदार के अधिकार की वैसे भी चिंता नहीं की जाएगी जमीन के नए मालिक को पट्टा समाप्त होने तक कब्जा पाने के लिए इंतजार करना पड़ता है। 

लेकिन लाइसेंस को उपपट्टे पर या उत्तराधिकार के माध्यम से हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। लाइसेंस हमेशा किसी विशिष्ट व्यक्ति या निकाय द्वारा किसी अन्य विशिष्ट व्यक्ति या निकाय को दिया जाता है, जो लाइसेंस के अनुसार कार्य करने के लिए एकमात्र अधिकृत (ऑथराइज) होता है। लाइसेंसकर्ता या लाइसेंसधारी की मृत्यु के साथ, लाइसेंस तुरंत समाप्त हो जाता है। इसी तरह, यदि लाइसेंसकर्ता या लाइसेंसधारी को बदल दिया जाता है, तो लाइसेंस समझौता मान्य नहीं होता है। जैसा कि लाइसेंस समझौता हमेशा किसी विशिष्ट व्यक्ति या निकाय द्वारा किसी अन्य विशिष्ट व्यक्ति या निकाय को दिया जाता है। 

संपत्ति के संबंध में, जिस संपत्ति को पट्टे के लिए चुना गया है, उसे किसी अन्य संपत्ति के साथ विनिमय (एक्सचेंज) के माध्यम से परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। लेकिन लाइसेंस के मामले में, व्यवसाय की प्रकृति के आधार पर इसका उपयोग किसी भी स्थान पर किया जा सकता है, क्योंकि लाइसेंस में संपत्ति के कब्जे का वास्तविक हस्तांतरण नहीं होता है।

प्रतिसंहरणीयता (रिवोकेबिलिटी): 

लाइसेंसकर्ता अपने विवेक से लाइसेंस को कभी भी रद्द कर सकता है। लेकिन पट्टे के मामले में, पट्टेदार को पट्टाकर्ता जो मूल मालिक होता है के खिलाफ भी संपत्ति पर विशेष अधिकार प्राप्त होता है । इसलिए, एक पट्टे को पट्टेदार द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता है, जब तक कि यह समझौते के भाग द्वारा प्रदान न किया गया हो या अदालत द्वारा आदेशित न हो।

 

पट्टे और लाइसेंस के बीच अंतर पर पूर्व निर्णय

कुछ न्यायिक निर्णय जो पट्टे और लाइसेंस के बीच के अंतर को निर्धारित करने में सक्षम रहे हैं, उन्हें नीचे दिया गया है। 

एसोसिएटेड होटल्स ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम आरएन कपूर (1960)

एसोसिएटेड होटल्स ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम आरएन कपूर (1960) के मामले में, न्यायाधीश सुब्बा राव ने देखा था कि पट्टा और लाइसेंस के बीच एक स्पष्ट अंतर मौजूद है और इसे निम्नलिखित तरीकों से समझा जा सकता है:

  1. यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई दस्तावेज़ लाइसेंस या पट्टा बनाता है या नहीं, दस्तावेज़ के सार को ही उसके प्रकार के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए;
  2. वास्तविक परीक्षण पक्षों के इरादे से होता है कि क्या वे पट्टा या लाइसेंस बनाने का इरादा रखते हैं;
  3. जब दस्तावेज़ पक्षों के बीच हित को दर्शाता है तो पट्टा बनाया जाता है। जबकि, लाइसेंस का तात्पर्य किसी अन्य को उस संपत्ति का उपयोग करने की अनुमति देना है, जिसके मूल मालिक का उसी पर कानूनी कब्जा है। 
  4. यदि प्रदान किए गए दस्तावेज़ के तहत किसी पक्ष के पास संबंधित संपत्ति का विशेष अधिकार है, तो उसे किरायेदार माना जाएगा। अन्य सभी मामलों में दस्तावेज़ एक लाइसेंस समझौते को दर्शाता है। 

डेल्टा इंटरनेशनल लिमिटेड बनाम श्याम सुंदर गनेरीवाला और अन्य (1999)

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने डेल्टा इंटरनेशनल लिमिटेड बनाम श्याम सुंदर गनेरीवाला और अन्य (1999) के मामले का फैसला करते हुए, जिसमें एक अस्पष्ट दस्तावेज़ शामिल था, जो पट्टे और लाइसेंस के बीच अंतर नहीं कर सकता था, कहा है कि पट्टे और लाइसेंस के बीच अंतर करने के लिए दस्तावेज़ के सही इरादे या उद्देश्य को बनाना आवश्यक है। वर्तमान मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित आधारों के आधार पर दस्तावेज़ को पट्टे के बजाय अनुमति और लाइसेंस के रूप में निर्धारित किया: 

  1. वर्तमान मामले में प्रतिवादियों द्वारा कोई याचिका प्रदान नहीं की गई थी ताकि यह कहा जा सके कि संबंधित दस्तावेज़ एक छलावरण (कैमोफ्लेज) था जिसने किरायेदार के अधिकारों को पराजित किया। 
  2. कथित दस्तावेज़ में तीन अलग-अलग प्रकार के समझौतों पर विचार किया गया था, अनुमति और लाइसेंस; उप-पट्टे का निष्पादन (एग्जिक्यूशन) यदि किरायेदार से सहमति प्राप्त की जा सकती है और उप-पट्टे के मामले में उपकरणों की खरीद। 
  3. संबंधित समझौते का दूसरा और तीसरा भाग कभी भी सार्वजनिक  रूप से सामने नहीं आया था, जिसके कारण न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला था कि संबंधित समझौता ‘अनुमति और लाइसेंस’ का एक विलेख है, और ‘पट्टा’ नही है।

निष्कर्ष

पट्टा और लाइसेंस हमारे दैनिक जीवन में नियमित व्यवसाय के दो रूप हैं। जब एक वकील पट्टे या लाइसेंस पर एक समझौते का मसौदा तैयार करने का इरादा रखता है, तो उसे चिंतित होना चाहिए कि समझौते के खंड पट्टे या लाइसेंस के समझदार तथ्यों का पालन करें। ताकि पक्षों के वास्तविक इरादे में रुकावट न आए।

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