कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 203

0
1727
Companies Act 2013

यह लेख इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, रोहतक में बीबीए एलएलबी की छात्रा Manya Manjari द्वारा लिखा गया है। यह लेख कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 203 के बारे में बात करता है। यह धारा प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों (की मैनेजेरियल पर्सोनल) के लिए प्रावधान करता है। यह लेख प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों को नियुक्त करने के तरीके और महत्वपूर्ण मामले के साथ-साथ उनके चयन के लिए महत्वपूर्ण पात्रता मानदंड पर प्रकाश डालता है। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(4) सभी भारतीय नागरिकों को संघ बनाने की स्वतंत्रता देता है। इनमें कंपनियां, समाज, ट्रेड यूनियन, साझेदारी उद्यम (पार्टनरशिप वेंचर) और क्लब शामिल हैं। भारत में उद्योग और व्यवसाय के विकास के साथ, कंपनियों, साझेदारियों और अन्य व्यवसायों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। स्वतंत्रता के बाद कंपनी अधिनियम, 1956 को अधिक एकरूपता लाने और कंपनियों और निगमों के संचालन को नियंत्रित करने के लिए पेश किया गया था। इसे कंपनी अधिनियम, 2013 से बदल दिया गया, जिसमें बदलते समय के साथ कई अन्य प्रावधान शामिल किए गए थे। कई बदलावों के अलावा, नए अधिनियम ने प्रमुख प्रबंधकीय पदों के दायरे का विस्तार किया और इसमें कई अन्य सदस्यों को जोड़ा।

कंपनी या निगम को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए महत्वपूर्ण नियामकों (रेगुलेटर्स) या लोगों की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी महत्वपूर्ण निकाय कर्मी हैं जो निगमों के व्यवसायों की विभिन्न शाखाओं की देखभाल करते हैं। ये बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये एक कंपनी के कुशल कार्य को सुनिश्चित करते हैं।

प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी: ये कौन हैं

“प्रबंध निदेशक (मैनेजिंग डायरेक्टर), पूर्णकालिक निदेशक (होल टाइम डायरेक्टर) या प्रबंधक (मैनेजर), प्रबंधकीय पारिश्रमिक (मैनेजेरियल रिम्यूनरेशन), सचिवीय (सेक्रेटेरियल) ऑडिट”, आदि सहित प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों की नियुक्ति से संबंधित कानूनी और प्रक्रियात्मक पहलुओं को कंपनी अधिनियम, 2013 के अध्याय XIII में शामिल किया गया है, इसे कंपनी नियम, 2014 के साथ पढ़ा जाता है। निगमों को 2013 के कंपनी अधिनियम के अनुसार प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों (संक्षेप में केएमपी) को नामित करना चाहिए। ये निर्णय लेने और व्यवसाय के कुशल संचालन की गारंटी देने के प्रभारी होते हैं।

धारा 2(51) में कहा गया है कि, एक कंपनी के संबंध में, “प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों” में निम्नलिखित लोग शामिल होते हैं:

  1. मुख्य कार्यकारी अधिकारी (चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर), प्रबंधक या प्रबंध निदेशक;
  2. कंपनी सचिव (कंपनी सेक्रेटरी);
  3. पूर्णकालिक निदेशक;
  4. मुख्य वित्तीय अधिकारी;
  5. मंडल (बोर्ड) द्वारा प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों के रूप में नामित कोई अन्य अधिकारी जो पूर्णकालिक कर्मचारी है और निदेशकों से एक स्तर से नीचे नहीं है; और
  6. केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कोई अन्य अधिकारी।

प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों को नियंत्रित करने वाले नियम

  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 203, जब कंपनी (प्रबंधकीय कार्मिकों की नियुक्ति और पारिश्रमिक) नियम, 2014 के नियम 8 के साथ पढ़ी जाती है, तो इसमें कहा गया है कि दस करोड़ रुपये या उससे अधिक की शेयर पूंजी वाली प्रत्येक सार्वजनिक कंपनी और प्रत्येक सूचीबद्ध कंपनी (कंपनियां जिनके शेयर निफ्टी जैसे सार्वजनिक व्यापार के लिए मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं) में पूर्णकालिक प्रमुख प्रबंधकीय कर्मचारी होने चाहिए, जैसे प्रबंध निदेशक, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, या प्रबंधक और मुख्य वित्तीय अधिकारी।
  • कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 203, कंपनी (प्रबंधकीय कर्मियों की नियुक्ति और पारिश्रमिक) नियम 2014 के नियम 8A के अनुसार, प्रत्येक निजी कंपनी के लिए दस करोड़ रुपये या अधिक की चुकता शेयर पूंजी (पेड अप शेयर कैपिटल) के साथ एक पूर्णकालिक कंपनी सचिव को काम पर रखना अनिवार्य है। 
  • कंपनी अधिनियम, 2013, अपनी अनुसूची V में, प्रबंध निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक, या प्रबंधक की नियुक्ति और वेतन के लिए आवश्यकताओं को निर्धारित करता है।

प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों की परिभाषाएँ

मुख्य कार्यकारी अधिकारी

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(18) के अनुसार, एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (संक्षिप्तता के लिए सीईओ) एक निगम का एक अधिकारी है जिसे उस कंपनी द्वारा नियुक्त किया गया है। सीईओ किसी कंपनी का सर्वोच्च पद का अधिकारी होता है और कंपनी की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को संभालने के लिए जिम्मेदार होता है। ये पूंजी आवंटन (कैपिटल एलोकेशन), संगठन की रणनीति का निर्धारण, और कंपनी के कार्यकारी कर्मचारियों के प्रबंधन और संगठन को संभालते हैं।

मुख्य वित्तीय अधिकारी

मुख्य वित्तीय अधिकारी, जिसे सीएफओ के रूप में भी जाना जाता है, वह व्यक्ति है जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(19) के तहत मुख्य वित्तीय अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है। ये नकदी प्रवाह (कैश फ्लो) की निगरानी करते हैं, वित्तीय योजना बनाते हैं, फर्म की ताकत और कमजोरियों का आकलन करते हैं, और साथ ही रणनीतिक सिफारिशें भी विकसित करते है।

कंपनी सचिव

धारा 2(24) के अनुसार, “कंपनी सचिव,” जिसे “सचिव” भी कहा जाता है, का अर्थ है एक व्यक्ति जिसे कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कंपनी सचिव के कर्तव्यों को पूरा करने के लिए किसी कंपनी द्वारा नियुक्त किया जाता है। ऐसा व्यक्ति वह है जिसे कंपनी सचिव अधिनियम, 1980 की धारा 2(1)(c) द्वारा परिभाषित कंपनी सचिव माना गया है। कंपनी अधिनियम, 2013 भी कंपनी सचिव अधिनियम, 1980 में निर्धारित सचिव या कंपनी सचिव की परिभाषा का अनुसरण करता है, जो इस शब्द को भारतीय कंपनी सचिव संस्थान (इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया) (आईसीएसआई) के सदस्यों के रूप में परिभाषित करता है जो कंपनी सचिव के रूप में काम करते हैं। ये संगठन के एक सदस्य के रूप में आईसीएसआई के लिए कई मंत्रिस्तरीय (मिनिस्टीरियल) और प्रबंधकीय क्षमताओं में कई कर्तव्यों का पालन करते हैं।

प्रबंधक

धारा 2(53) के अनुसार, एक प्रबंधक वह है जो निदेशक मंडल (जो लोग कंपनी के शेयरधारकों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कंपनी के प्रबंधन की देखभाल करते हैं) के पर्यवेक्षण (सुपरविजन), नियंत्रण और दिशा के तहत कंपनी के सभी मामलों का प्रबंधन करते है। इसमें निदेशक और प्रबंधक का पद धारण करने वाला कोई भी व्यक्ति शामिल है, भले ही ये सेवा के अनुबंध के तहत कार्यरत हों या सेवा के किसी अनुबंध के तहत। ये परिचालन रणनीतियों को विकसित करने, प्रदर्शन की समीक्षा (रिव्यू) करने और सभी दैनिक कार्यों की देखरेख करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये हर समय कंपनी की उत्पादकता, दक्षता (एफिशिएंसी) और संगठन को बनाए रखने के लिए काम करते हैं।

प्रबंध निदेशक

धारा 2(54) के अनुसार, एक प्रबंध निदेशक कोई भी निदेशक होता है, जिसे कंपनी के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन के आधार पर और, इसकी आम बैठक द्वारा अपनाए गए संकल्प द्वारा, या किए गए निर्णय द्वारा इसके निदेशक मंडल द्वारा कंपनी के मामलों पर पर्याप्त पर्यवेक्षी भूमिका दी जाती है। इस परिभाषा में कोई भी निदेशक शामिल है, जो अपने नाम के बावजूद प्रबंध निदेशक का पद धारण करता है। प्रबंध निदेशक व्यवसाय को बनाए रखने और विस्तार करने के लिए सभी कॉर्पोरेट संचालन, कर्मियों और प्रयासों की देखरेख और समन्वय (एक्सपैंड) करता है।

पूर्णकालिक निदेशक

धारा 2(94) एक पूर्णकालिक निदेशक को परिभाषित करती है, और इसमें एक ऐसा व्यक्ति शामिल होता है जो कंपनी का पूर्णकालिक कर्मचारी होता है। कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत, पूर्णकालिक निदेशक अपनी नियुक्ति की पूरी अवधि के दौरान काम करता है और कंपनी द्वारा तय किए गए कार्यों को भी पूरा करता है। लेकिन, ये स्वतंत्र निदेशक के समान नहीं होते हैं। ये दैनिक आधार पर काम करते हैं और कंपनी में उनकी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी होती है। एक प्रबंध निदेशक पूर्णकालिक निदेशक के रूप में भी कार्य कर सकता है।

नियम और जिम्मेदारियाँ

मुख्य कार्यकारी अधिकारी

सीईओ किसी भी कंपनी के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक होते हैं। एक सीईओ एक निदेशक, प्रबंध निदेशक, अध्यक्ष या किसी अन्य कर्मचारी के रूप में कार्य कर सकता है। कंपनी अधिनियम, 1956 में सीईओ के लिए कोई प्रावधान नहीं था। यह एक अवधारणा है जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका से उधार लिया गया है। एक सीईओ की जिम्मेदारियां निम्नलिखित हो सकती हैं:

  • कंपनी की ओर से प्रमुख कॉर्पोरेट निर्णय लेने की शक्ति सीईओ के पास निहित होती है।
  • वह कंपनी के समग्र संचालन और विभिन्न विभागों को संसाधनों के आवंटन का प्रभारी भी होता हैं।
  • उनके पास संगठन में दृष्टि स्थापित करने, मूल्यों को निर्धारित करने और एक स्वस्थ कॉर्पोरेट संस्कृति को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी होती है।
  • चूँकि सीईओ किसी भी कंपनी का चेहरा होता है और आम तौर पर बड़ी जनता, मीडिया और समाज के सामने कंपनी का प्रतिनिधित्व करता है, ये सभी हितधारकों के साथ प्रभावी संचार बनाए रखने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं।

मुख्य वित्तीय अधिकारी

  • मुख्य वित्तीय अधिकारी या सीएफओ वित्तीय नियोजन से संबंधित कंपनी की दैनिक गतिविधियों में लगे हुए होते हैं।
  • सीएफओ नई वित्तीय रणनीतियों को तैयार करने और कंपनी के वित्तीय कार्य को प्रोत्साहित करने की शक्ति के साथ निहित होते हैं।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 134 सीएफओ द्वारा वित्तीय विवरणों पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य करती है, और उन्हें सभी वित्तीय नियमों का पालन करना चाहिए, खातों को देखना चाहिए, और कंपनी के सामने आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए नए तरीके प्रकाशित करना चाहिए।
  • कंपनी के लेखकों की सुरक्षा और निवेशकों और मंडल के सदस्यों को कंपनियों की कार्य के बारे में महत्वपूर्ण सुझावों को संप्रेषित (कम्युनिकेट) करने की जिम्मेदारी भी सीएफओ के पास ही होती है।
  • सीएफओ सुनिश्चित करते हैं कि कंपनी सभी निर्धारित कर मानकों का अनुपालन करती है और किसी भी आर्थिक कदाचार में संलग्न नहीं होती है।

कंपनी सचिव

  • कंपनी सचिव को अनुपालन अधिकारी के रूप में भी जाना जाता है। एक सीएस कंपनी के कानूनों और नियामक प्राधिकरणों (अथॉरिटी) के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होता है।
  • कंपनी सचिव सीधे कंपनी के मंडल को कंपनी के कानूनी प्रावधानों और अनुपालन के बारे में रिपोर्ट करते हैं जिनका पालन किया जाना चाहिए। 
  • कंपनी सचिव कंपनी के दैनिक कामकाज में कंपनियों के मंडल की सहायता भी करता है।
  • ये कंपनी के निदेशकों को कानूनी आवश्यकताओं का सुझाव देने और उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को इंगित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
  • कंपनी सचिव सरकारी हितधारकों और कंपनी के बीच मध्यस्थ (मीडिएटर) के रूप में भी कार्य करते हैं, क्योंकि उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक सकारात्मक कॉर्पोरेट प्रशासन प्रथाओं को सुनिश्चित करना होता है।

प्रबंध निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक और प्रबंधक

  • निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक और प्रबंधक सभी लगभग समान कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करते हैं क्योंकि उन्हें कंपनी के मामलों के प्रबंधन के साथ जोड़ा जाता है जैसा कि मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (एमओए एक कानूनी दस्तावेज है जिसमें कंपनी के बारे में सभी जानकारी शामिल है, जैसे दृष्टि (विजन), गठन के पीछे के लक्ष्य और उसके अधिकार) और आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन (एओए एक कानूनी दस्तावेज है जिसमें कंपनी के घटकों, उद्देश्य और उसके अधिकारियों के बारे में सभी जानकारी शामिल होती है) में दिया गया हो।
  • ये कंपनी के मंडल को सुचारू रूप से कार्य करने और उसके उद्देश्य की उपलब्धि के लिए मार्गदर्शन और निर्देशन के लिए भी जिम्मेदार होते हैं।
  • उनका कर्तव्य है कि ये दस्तावेजों या वित्तीय विवरणों पर हस्ताक्षर करें, किसी बैठक की कार्यवाही करें, या यहां तक ​​कि कंपनी की ओर से किसी भी अनुबंध में प्रवेश भी करें।
  • ये कंपनियों के संचालन निवेश या अन्य उपक्रमों (वेंचर्स) को देखते हैं और कंपनी के सामने आने वाली समस्याओं का प्रबंधन करने के लिए मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण पहुँच प्रदान करते हैं।

प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों के लिए योग्यता

कंपनी अधिनियम, 2013 किसी भी प्रमुख प्रबंधकीय पद पर नियुक्ति के लिए कोई विशिष्ट योग्यता निर्धारित नहीं करता है, लेकिन इसके द्वारा आयु मानदंड तय किए गए हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 196 (3) (a) एक प्रमुख प्रबंधकीय पद के लिए नियुक्त किए जाने वाले किसी भी व्यक्ति की न्यूनतम आयु निर्धारित करती है, जो कि बीस वर्ष हो सकती है। इसे 2013 के अधिनियम द्वारा पच्चीस से घटाकर बीस कर दिया गया है।

अधिनियम ने आयु की ऊपरी सीमा भी निर्धारित की है, जो सत्तर है। यदि सत्तर वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को नियुक्त करना होगा, तो यह विशेष रूप से नोटिस के साथ एक प्रस्ताव पारित करके और उस व्यक्ति को नियुक्त करने के कारण के स्पष्टीकरण के द्वारा किया जाएगा।

व्यक्ति के केएमपी बनने पर रोक

  • कंपनी अधिनियम, 2013, उम्र के साथ-साथ, ऐसे लोगों को केएमपी के रूप में नियुक्त किए जाने से भी बाहर करता है जो एक अनुन्मोचित दिवालिया (अनडिस्चार्जड इंसोल्वेंट) (एक व्यक्ति जो अपने ऋण का भुगतान करने में सक्षम नहीं है) या अभी तक निर्णय नहीं लिया गया है, है।
  • यह उन लोगों को बाहर करता है जिनमें उचित लोगों के रूप में कार्य करने की मानसिक क्षमता का अभाव होता है।
  • यह किसी ऐसे व्यक्ति को भी बाहर करता है जिसने अपने लेनदारों को भुगतान में देरी या चूक की है।
  • अंत में, किसी भी अपराध के लिए अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए लोगों पर भी रोक है, जिन्हें छह महीने से अधिक की अवधि के लिए कैद किया गया है।

अनुसूची V के तहत छूट (एक्सक्लूजंस)

कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची V, अन्य छूटो के अलावा, कुछ स्थितियों को निर्धारित करती है जहाँ लोग केएमपी के सदस्य बनने के योग्य नहीं होते है।

  • अनुसूची V में कानून की एक अलग सूची है, और यह उस व्यक्ति को केएमपी बनने से रोकता है, जिसे कभी किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है और कैद किया गया है या यदि उसे कभी 1000 से 5000 रुपये तक का जुर्माना देना पड़ा है।
  • यदि किसी व्यक्ति को विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (कंजर्वेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज एंड प्रिवेंशन ऑफ स्मगलिंग एक्टिविटीज एक्ट), 1974 के तहत किसी अपराध के लिए हिरासत में लिया गया है।
  • किसी अन्य कंपनी में उसी पद पर कार्यरत केएमपी को कंपनी अधिनियम, 2013 द्वारा निर्धारित उच्चतम सीमा के अनुसार कंपनियों से पारिश्रमिक प्राप्त होता है।
  • अंत में, व्यक्ति को भारत का निवासी होना चाहिए। भारत के निवासी शब्द को भी अधिनियम द्वारा परिभाषित किया गया है ‘किसी भी व्यक्ति के रूप में जो नियुक्ति की तारीख से पहले बारह महीने से अधिक समय तक लगातार भारत में रहा है’।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र (स्पेशल इकोनॉमिक जोन) (एसईजेड) से संबंधित लोगों से संबंधित अनुपालन ऐसे क्षेत्र हैं जहां व्यापार कानून बाकी देशों से अलग हैं) और वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) द्वारा किए गए परिवर्तनों के अधीन हैं। ये केवल वीज़ा दस्तावेज़ प्रस्तुत करके बिना किसी समस्या के पद ग्रहण कर सकते हैं।

मुख्य कार्यकारी अधिकारी के लिए योग्यता

कंपनी अधिनियम, 2013 सीईओ बनने के लिए कोई सख्त दिशानिर्देश नहीं देता है। इस पद के लिए न तो योग्यता, सेवा अवधि, अनुभव, या नियम और शर्तें मौजूद हैं। इसलिए, यह पूरी तरह से कंपनी के सदस्यों के प्रबंधन पर है कि उनकी योग्यता, भूमिका या कार्य क्या होना चाहिए। भारत और कई अन्य देश इस प्रणाली का अभ्यास करते हैं जहां उनकी कोई परिभाषित योग्यता या भूमिका नहीं होती है। आवश्यकताएं किसी भी कंपनी के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन के प्रावधानों के अधीन होते हैं।

कंपनी सचिव के लिए योग्यता

सीईओ के विपरीत, कंपनी सचिव के रूप में नियुक्त होने के लिए अधिनियम की धारा 2(45) द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करना होता है, जो कि इस प्रकार है:

  • व्यक्ति को कंपनी अधिनियम, 1956 द्वारा निगमित और लाइसेंस प्राप्त भारतीय कंपनी सचिव संस्थान का सदस्य होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति जो लंदन के चार्टर्ड सचिवों के संस्थान का सदस्य भी है, वह भी इसके लिए पात्र होता है। यह योग्यता 50 लाख रुपये या उससे अधिक की चुकता शेयर पूंजी वाली कंपनी के लिए होती है।

किसी अन्य प्रकार की कंपनी के मामले में, कंपनी सचिव बनने के योग्य व्यक्ति के पास निम्नलिखित में से एक से अधिक योग्यताएं होनी चाहिए:

  • व्यक्ति के पास किसी भी विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री होनी चाहिए।
  • उन्हें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान का सदस्य होना चाहिए।
  • उनके पास भारत के लागत लेखाकारों (कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया) की सदस्यता होनी चाहिए।
  • किसी भी कॉलेज या भारतीय प्रबंधन संस्थान से प्रबंधन में स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएट) डिग्री या डिप्लोमा होना चाहिए।
  • वाणिज्य (कॉमर्स) में किसी भी विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री होनी चाहिए।
  • भारतीय कानून संस्थान से कंपनी कानून में डिप्लोमा होना चाहिए।

विविध योग्यताओं के लिए निम्नलिखित की आवश्यकता भी होती है:

मुख्य वित्त अधिकारी के लिए योग्यता

कंपनी अधिनियम, 2013 सीएफओ की नियुक्ति के लिए कोई निश्चित योग्यता, अनुभव या नियम और शर्तें निर्धारित नहीं करता है। यह भूमिकाओं या कार्यों के नामकरण पर भी मौन है। यह कंपनी के प्रबंधन पर निर्भर करता है कि उन्हें किस योग्यता की आवश्यकता है। फिर भी, सीएफओ के पास आम तौर पर एमबीए (बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के परास्नातक (मास्टर्स)) या लेखांकन (अकाउंटिंग) में मास्टर डिग्री होती है।

निदेशक के लिए योग्यता

सीईओ या सीएफओ के प्रावधान के समान, कंपनी अधिनियम, 2013 निदेशक के लिए भी कोई शैक्षिक या व्यावसायिक योग्यता प्रदान नहीं करता है। जब तक कि कुछ ऐसा कंपनी द्वारा अन्यथा न कहा गया हो।

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 149(1) सार्वजनिक कंपनी होने पर कम से कम तीन निदेशकों और निजी कंपनी होने पर दो निदेशकों की नियुक्ति का प्रावधान करती है। वन पर्सन कंपनी (ओपीसी) के मामले में केवल एक निदेशक आवश्यक होता है। किसी भी मामले में, अधिकतम पंद्रह निदेशक हो सकते हैं, और यदि कोई कंपनी इससे अधिक निदेशक नियुक्त करना चाहती है, तो यह कंपनी के द्वारा, उस कंपनी की आम बैठक में एक विशेष प्रस्ताव पारित करके किया जाएगा। हालाँकि, निदेशक की नियुक्ति के लिए कुछ शर्तों का पालन किया जाना चाहिए, जो इस प्रकार है:

  • एक स्वाभाविक व्यक्ति ही निर्देशक बन सकता है।
  • व्यक्ति के पास एक निदेशक आईडी नंबर (डीआईएन) होना आवश्यक है।
  • व्यक्ति के पास पद के लिए अपनी सहमति देने वाला एक डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (डीएससी) भी होना चाहिए।

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 164(1) के तहत, एक व्यक्ति अयोग्य हो जाएगा और इन शर्तों के तहत निदेशक के पद के लिए योग्य नहीं होगा जब:

  • यदि व्यक्ति अस्वस्थ मस्तिष्क का है और न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया है।
  • यदि व्यक्ति अनुन्मोचित दिवालिया है।
  • यदि व्यक्ति ने आवेदन किया है और उसे दिवालिया घोषित किया गया है।
  • यदि व्यक्ति पर किसी ऐसे अपराध का आरोप लगाया गया है जिसमें छह महीने से पांच साल के बीच की अवधि के कारावास की सजा है या सात साल या उससे अधिक के लिए उसे दोषी ठहराया गया है।
  • यदि व्यक्ति कंपनी के शेयरों के जवाब में कॉल अनुरोधों का पालन नहीं कर रहा है।
  • यदि न्यायालय ने व्यक्ति को कंपनी निदेशक के रूप में नियुक्त होने से रोकने का आदेश दिया है।

प्रबंध निदेशक और प्रबंधक के लिए योग्यता

अन्य केएमपी के लिए योग्यता मानदंड के प्रावधानों के समान, प्रबंध निदेशक और प्रबंधक की योग्यता आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन में कंपनियों के प्रबंधन द्वारा निर्धारित प्रावधानों के अधीन होती हैं।

प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों की नियुक्ति प्रक्रिया

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 203 अनिवार्य रूप से केएमपी को पूर्णकालिक आधार पर नियुक्त करने की आवश्यकता प्रदान करती है, जिसका अर्थ है कि केएमपी को कंपनी के प्रबंधन और गतिविधियों के लिए पूर्णकालिक सेवा प्रदान करनी चाहिए। हालांकि, कंपनी अधिनियम, 2013 की 203 की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आने वाली कंपनियां भी कंपनी के प्रबंधन के लिए अंशकालिक (पार्ट टाइम) प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों को नियुक्त कर सकती हैं।

निदेशकों की नियुक्ति

भारत में अधिकांश कंपनियों में, पहले निदेशकों (पहले निदेशक ये व्यक्ति होते हैं जिन्होंने मुख्य रूप से कंपनी की स्थापना की होती है) को कंपनी के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन में निदेशकों के रूप में नामित किया जाता है। यदि ऐसा नहीं होता है, तो ज्ञापन (मेमो) के ग्राहकों में से एक (कंपनी के शेयरधारकों के पहले सदस्यों में से एक) को निदेशक नामित किया जाएगा।

यह मामला अलग हो जाता है जहां एक व्यक्ति कंपनी (ओपीसी) का संबंध होता है; कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 152 के अनुसार, जो व्यक्ति कंपनी का सदस्य है, उसे इसका पहला निदेशक तब तक माना जाएगा जब तक कि उस कंपनी के सदस्य निदेशक का चयन नहीं कर लेते।

निदेशक की नियुक्ति करते समय आमतौर पर जिन प्रावधानों का पालन किया जाता है, वे इस प्रकार हैं

  • कंपनी के निदेशकों को कंपनी की आम बैठक में नियुक्त किया जाना चाहिए, सिवाय इसके कि कंपनी अधिनियम, 2013 में अन्यथा उल्लेख किया गया हो।
  • निदेशकों के पास डीआईएन (निदेशक पहचान संख्या) होना चाहिए।
  • जिस व्यक्ति को निदेशक के पद पर नियुक्त किया जाना है, उसे अपनी पहचान के लिए एक डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा।
  • इसके बाद कंपनी फॉर्म डीआईआर-12 दाखिल करती है, जिसमें संबंधित व्यक्ति और केएमपी से संबंधित जानकारी होती है।
  • निदेशक नियुक्त होने के लिए व्यक्ति की स्वतंत्र सहमति के लिए फॉर्म डीआईआर-2 भी दाखिल किया जाता है।
  • ये दस्तावेज निर्धारित शुल्क के साथ, केएमपी की नियुक्ति के 30 दिनों के भीतर कंपनियों के रजिस्ट्रार को दायर किए जाते हैं।

नामांकन द्वारा नियुक्ति

धारा 161(3) नामांकन द्वारा निदेशक की नियुक्ति के लिए प्रावधान करती है। नामांकन द्वारा नियुक्त निदेशकों को नामांकित निदेशक कहा जाता है। कंपनी का मंडल लागू कानून के आधार पर या कंपनी के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन में उल्लिखित नामांकन के अनुसार एक व्यक्ति को निदेशक के रूप में नियुक्त करता है।

आकस्मिक रिक्ति (कैजुअल वेकेंसी) के अनुसार नियुक्ति

धारा 161(4) रिक्ति के अनुसार एक निदेशक की नियुक्ति करती है। मान लीजिए कि पिछले निदेशक के इस्तीफे या मृत्यु या निदेशक के कार्यकाल की समाप्ति जैसे किसी भी कारण से निदेशक का पद खाली हो जाता है। उस स्थिति में, मंडल पद भरने के लिए एक नया निदेशक नियुक्त करेगा। वह व्यक्ति पिछले निदेशक के कार्यालय की अवधि के अंत तक कार्यालय में रहेगा।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व (प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन) द्वारा नियुक्ति

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 163 निदेशकों की नियुक्ति के लिए प्रावधान करती है। कंपनी के निदेशकों की कुल संख्या में से दो-तिहाई को मतदान या संचयी (क्यूमुलेटीव) मतदान द्वारा चुना जाएगा। जब भी ऐसे किसी स्थिति में रिक्तियां उत्पन्न होती हैं, यह हर तीन साल में मतदान करके भी किया जा सकता है।

मुख्य वित्तीय अधिकारी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी और कंपनी सचिव की नियुक्ति

निदेशक के अलावा सभी केएमपी के लिए नियुक्ति प्रक्रिया काफी समान है। उन्हें संबंधित पदों पर उनकी नियुक्ति के लिए शर्तों वाले संकल्प द्वारा नियुक्त किया जाता है। यह कंपनी के मंडल के सदस्यों द्वारा तय और पारित किया जाएगा। धारा 203 (3) के अनुसार उनके लिए एक समय में केवल एक ही कंपनी में कार्यालय रखना अनिवार्य है। यदि व्यक्ति को एक से अधिक कंपनी के सीईओ या सीएफओ के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो उन्हें दूसरी कंपनी में शामिल होने के छह महीने के भीतर स्थिति को जारी रखने के लिए एक कंपनी का चयन करना होगा।

समिति की सिफारिशें

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 178 के अनुसार प्रत्येक कंपनी की एक नामांकन और पारिश्रमिक समिति (नॉमिनेशन एंड रिम्यूनरेशन कमिटी) होती है। ये कंपनी के सदस्यों के लिए नियुक्ति और अन्य पारिश्रमिक सुविधाओं का निर्णय लेते हैं, इसलिए केएमपी को उनकी पूर्व सिफारिश के बाद ही नियुक्त किया जाता है। कई कंपनियों में धारा 177 के तहत ऑडिट कमेटी की सिफारिश पर भी विचार किया जाता है।

मंडल की आम बैठक

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 173 के तहत, बैठक से कम से कम एक सप्ताह के भीतर मंडल के सदस्यों की बैठक नोटिस द्वारा बुलाई जाती है। बैठक का एजेंडा और उद्देश्य नोटिस में स्पष्ट रूप से बताया जाता है। मंडल के सदस्य एक बैठक करते हैं जिसमें उपरोक्त समितियों के प्रस्तावों को मंजूरी देकर केएमपी नियुक्त किए जाते हैं। फिर नियुक्ति पत्र संबंधित व्यक्ति को उनके पदनाम के अनुसार दिया जाता है।

सेबी का आदेश

सेबी का मतलब भारतीय प्रतिभूति विनिमय मंडल (सिक्योरिटी एक्सचेंज मंडल ऑफ इंडिया) है, और यह भारत में प्रतिभूतियों और कई कमोडिटी बाजारों को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार होता है। बैठक के मिनट मंडल के सदस्यों को परिचालित (ऑपरेट) किए जाते हैं, और यदि कंपनी किसी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है, तो इस तरह की नियुक्ति के 24 घंटे के भीतर स्टॉक एक्सचेंज को बदलाव की सूचना दी जाती है। बैठक के 2 दिनों के भीतर कंपनी की वेबसाइट पर भी इसे संशोधित (मोडिफाई) किया जाता है। यह सेबी विनियम 30 और विनियम 46 द्वारा अनिवार्य किया गया है।

आरओसी के साथ फॉर्म भरना

कंपनी को नियुक्ति के तीस दिनों के भीतर कंपनियों के रजिस्ट्रार को फॉर्म एमजीटी-14 (यह फॉर्म दाखिल करने और संकल्प पारित करने के लिए उपयोग किया जाता है) दाखिल करना चाहिए, जैसा कि धारा 117 द्वारा निर्धारित किया गया है। धारा 170 के अनुसार, फॉर्म डीआईआर-12 भी साठ दिनों के भीतर दायर किया जाना चाहिए, जिसमें केएमपी की नियुक्ति के सभी विवरण शामिल होने चाहिए, जिसमें शामिल होंगे- मंडल के सदस्यों द्वारा पारित संकल्प की प्रमाणित प्रति, नियुक्ति पत्र और रजिस्ट्रार द्वारा निर्धारित अन्य दस्तावेज।

आरओसी के रजिस्टर में प्रविष्टि (एंट्री)

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 170 द्वारा अनिवार्य रूप से निदेशकों और प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों के रजिस्टर में परिवर्तन करके नियुक्ति प्रक्रिया समाप्त की जाती है।

कानूनी मामले 

स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर बनाम किंग्स्टन कंप्यूटर (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड (2011)

तथ्य

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को रद्द कर दिया और विचरण न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा था। इस मामले में, वादी कंपनी स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर ने श्री ए. के. शुक्ला द्वारा मुकदमों को संभालने की अवैधता के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया था, जिन्होंने कंपनी के निदेशकों में से एक होने का दावा किया था और यह भी दावा किया था कि उन्हें कंपनी के सीईओ श्री आर. के. शुक्ला द्वारा कंपनी की ओर से मुकदमा दायर करने और संभालने के लिए अधिकृत (ऑथराइज्ड) किया गया था। इस दाये को विचरण न्यायालय ने खारिज कर दिया क्योंकि नियुक्ति कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बदले में नहीं हुई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस फैसले को खारिज कर दिया था और नियुक्ति के समर्थन में साक्ष्य की कमी को नजरअंदाज कर दिया था, और इसलिए इस मामले की सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गई थी।

मुद्दा

सर्वोच्च न्यायालय में उठाया गया मुद्दा यह था कि क्या उच्च न्यायालय का आदेश न्यायसंगत था और क्या किसी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ था।

फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने विचरण न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा, और उच्च न्यायालय के फैसले को उलट दिया और यह निर्धारित किया कि “कोई भी व्यक्ति कंपनी के मामलों का संचालन नहीं करेगा यदि ये ऐसा करने के लिए कंपनी द्वारा अधिकृत नहीं किया गया हैं।” चूँकि श्री ए. के. शुक्ला को कंपनी के सीईओ श्री आर. के. शुक्ला ने एक अधिकार पत्र जारी करके नियुक्त किया था और उन्हें कंपनी के मामलों को संभालने और कंपनी की ओर से मुकदमा दायर करने की अनुमति दी गई थी, यह एक गैरकानूनी नियुक्ति है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नियुक्ति कंपनी के निदेशक मंडल द्वारा नहीं की गई थी और धारा 203 और 196 के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था। इसलिए, श्री ए. के. शुक्ला द्वारा दायर मुकदमे को खारिज कर दिया गया और इस मामले में अपील की अनुमति दी गई।

मयंक अग्रवाल बनाम टेक्नोलॉजी फ्रंटियर्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड (2021)

तथ्य

इस मामले में, वादी श्री मयंक अग्रवाल ने कंपनी सचिव, श्री श्रीराम एस. पर पेशेवर कदाचार (प्रोफेशनल मिसकंडक्ट) का आरोप लगाते हुए प्रतिवादी कंपनी के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया, क्योंकि वह कंपनी सचिव के रूप में अपने अधिकार से बाहर काम कर रहे थे और कंपनी से वादी उसके खिलाफ किए गए गलत कामों के लिए जुड़ी सभी लागतों का भुगतान करने की मांग कर रहे थे। इस मामले में कंपनी सचिव द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाया गया था। कंपनी की ओर से नोटिस जारी करने या घोषणा करने के लिए कंपनी जिम्मेदार थी। इसने निदेशक मंडल के अनुसार काम किया, इसलिए कंपनी सचिव द्वारा दायर किए गए मुकदमे अवैध थे और इसलिए कानून के प्रावधानों के खिलाफ थे।

मुद्दा

इस मामले में उठाया गया मुद्दा यह था कि क्या कंपनी सचिव को कंपनी की ओर से कार्य करने का अधिकार था जब मामलों के लिए आवेदन करने के लिए केवल कंपनी ही जिम्मेदार हो सकती थी।

फैसला

न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) द्वारा यह आयोजित किया गया था कि कंपनी सचिव प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों में से एक होता है। इसलिए, वह कंपनी का अनुपालन अधिकारी भी है, और उसे कंपनी द्वारा सौंपे गए कर्तव्यों का पालन करने का अधिकार भी होता है। निदेशक मंडल द्वारा पारित प्रस्ताव के लिए उस पर विशेष शक्तियों की पुष्टि करने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 20 के अनुसार, कंपनी सचिव, कंपनी अधिनियम की धारा 203 के अनुसार अपने कार्यालय के आधार पर, कंपनी की ओर से याचिका पर हस्ताक्षर और सत्यापन (वेरिफाई) कर सकता है। कंपनी सचिव को कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 205 और नियम 10(4) के अनुसार कुछ कार्य भी प्राप्त हुए हैं। फैसले में कहा गया कि कंपनी सचिव अपने अधिकार के दायरे में काम कर रहा था क्योंकि वह मुकदमा दायर करते समय पर्याप्त सावधानी बरत रहा था, और इसलिए आवेदन खारिज कर दिया गया था।

एलएसएफ 10 रोज इंवेस्टमेंट एस.ए.आर.एल. बनाम रतनइंडिया फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड और अन्य (2022)

तथ्य

इस मामले में, याचिकाकर्ता एलएसएफ 10 रोज इन्वेस्ट, और प्रतिवादी, रतनइंडिया फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड, पूर्णकालिक सीएफओ की नियुक्ति के संबंध में विवाद में थे। आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन ने सीएफओ की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया निर्धारित की, जो यह थी कि याचिकाकर्ता को सीएफओ नामित करने का अधिकार था, और असंतुष्ट होने पर प्रतिवादी इसे हटा भी सकता था। याचिकाकर्ता दूसरे सीएफओ को नामित कर सकता है, और अगर वह भी प्रतिवादियों द्वारा खारिज कर दिया जाता है, तो ये तीसरे सीएफओ को नियुक्त कर सकते हैं। याचिकाकर्ताओं ने दो उम्मीदवारों को नामांकित किया था, दोनों को याचिकाकर्ताओं ने धारा 203(3) के आधार पर खारिज कर दिया था, जिसके अनुसार एक केएमपी एक समय में एक ही कंपनी में अपना कार्यालय रख सकता था। चूंकि नामांकित व्यक्ति अपने नामांकन के बाद अपनी रुचि का खुलासा करने में विफल रहे कि ये किस कंपनी के साथ काम करेंगे, उन्हें खारिज कर दिया गया। जब अंतिम उम्मीदवार को खारिज कर दिया गया, तो याचिकाकर्ता ने तीसरे नामांकित व्यक्ति को सीएफओ के रूप में नियुक्त करने के लिए न्यायाधिकरण को कई आवेदन दायर किए, जैसा कि आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन में सहमति है।

मुद्दा

उठाया गया मुद्दा यह था कि क्या याचिकाकर्ता ने सीएफओ के रूप में तीसरे नामिती को नियुक्त करने में विफलता के लिए कई आवेदन भरकर गैरकानूनी तरीके से काम किया था।

फैसला

न्यायाधिकरण द्वारा यह आयोजित किया गया था कि आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन, खुद ही स्पष्ट रूप से पालन की जाने वाली प्रक्रिया को निर्धारित करता है। इसलिए नामांकन की वैधता के आधार पर बचाव प्रतिवादी द्वारा नहीं लिया जा सकता है। चूंकि प्रतिवादियों ने दावा किया कि पहले दो नामांकित व्यक्ति धारा 203 के आधार पर अमान्य थे, इसका मतलब यह नहीं है कि तीसरा नामांकित व्यक्ति, जिसकी वैधता थी, पहले नामित उम्मीदवार के रूप में गिना जाता है। इसलिए आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन के बाद, न्यायाधिकरण ने इस मामले में तीसरे नामांकित उम्मीदवार, कंपनी के सीएफओ की नियुक्ति का आदेश दिया और आवेदन की अनुमति दी गई थी।

सैमको सिक्योरिटीज लिमिटेड के साथ सैमको कमोडिटीज लिमिटेड की व्यवस्था और समामेलन (एमाल्गामेशन) की योजना (2022)

तथ्य

इस मामले में, सैमको कमोडिटीज लिमिटेड की व्यवस्था और समामेलन की योजना का उपरोक्त समामेलन, ट्रांसफ़र कंपनी सैमको सिक्योरिटीज लिमिटेड के साथ, ट्रांसफरी कंपनी से संबंधित था, और यह मामला न्यायाधिकरण के समक्ष नियुक्त आधिकारिक परिसमापक द्वारा कंपनियों के रजिस्ट्रार की टिप्पणियों के लिए लाया गया था। अन्य टिप्पणियों में, चिंता का एक महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि समामेलन करने वाली कंपनियों ने कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं के अनुसार किसी भी कंपनी सचिव को नियुक्त नहीं किया था। कंपनी ने अनुपालन की विफलता के लिए कंपनियों के रजिस्ट्रार के साथ अपराधों की प्रशमन (कंपाउंडिंग) के लिए एक आवेदन को दायर किया था। 

मुद्दा

उठाया गया मुद्दा यह था कि क्या कंपनी को धारा 203 का अनुपालन न करने और कंपनी सचिव नियुक्त करने के लिए अपराधों के शमन (कंपाउंडिंग) के लिए आवेदन दाखिल करने की अनुमति दी जा सकती है या नही।

फैसला

न्यायाधिकरण ने पाया कि कंपनी सचिव की नियुक्ति के मानदंडों को पूरा करने के बाद भी कंपनियां कंपनी सचिव की नियुक्ति के दिए गए मानक का पालन करने में विफल रहीं थी। हालाँकि, आधिकारिक परिसमापक (ऑफिशियल लिक्विडेटर) द्वारा अवलोकन से पता चला कि कंपनियों ने सूचित किए जाने के बाद, एक कंपनी सचिव नियुक्त किया और किए गए अपराध की प्रशमन के लिए भी एक आवेदन दायर किया। इसलिए, इस मामले में परिसमापन की अनुमति दी गई, और कंपनियों के रजिस्ट्रार के साथ अपराध के शमन के लिए आवेदन को स्वीकार कर लिया गया था।

निष्कर्ष

कंपनी या निगम को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए महत्वपूर्ण नियामकों या लोगों की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी महत्वपूर्ण निकाय कर्मी हैं जो निगमों के व्यवसायों की विभिन्न शाखाओं की देखभाल करते हैं। ये बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये एक कंपनी के कुशल कार्य को सुनिश्चित करते हैं।

प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी कंपनी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। ये उनके द्वारा किए गए किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जिम्मेदार होते हैं और अपने रोजगार के दौरान कई निर्णय लेने के प्रभारी भी होते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित करना सर्वोपरि है कि केएमपी मानदंडों के अनुसार योग्य हैं और नियुक्ति निर्धारित विधियों के अनुरूप है। चूंकि ये प्रावधान कंपनी और नौकरीपेशा लोगों के लाभ के लिए बनाए गए हैं, इसलिए इनका हर तरह से पालन किया जाना चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

क्या एक प्रबंध निदेशक को निदेशक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है?

हां, एक एमडी एक बार में अधिकतम 20 कंपनियों में निदेशक के रूप में पद धारण कर सकता है, लेकिन इसकी सूचना आरओसी को दी जानी चाहिए।

इस अधिनियम के तहत दिए गए फॉर्म कहां भरे जाते हैं?

फॉर्म कंपनी मामलों के मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर ऑनलाइन दाखिल किए जाते हैं। उन्हें निर्दिष्ट समय के भीतर दायर किया जाना चाहिए जैसा कि अधिनियम या सरकार निर्धारित करती है।

क्या नियुक्ति प्रक्रिया में केंद्र सरकार की कोई भूमिका है?

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 200 के अनुसार, यदि कंपनी किसी भी अनुसूची V मानकों का पालन करने में विफल रहती है, तो केंद्र सरकार से केएमपी की नियुक्ति की सुविधा के लिए अनुरोध किया जा सकता है।

संदर्भ

  • Company Law by Avtaar Singh, 17th Edition

 

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here