चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता

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Model code of conduct during elections

यह लेख Upasana Dash द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में ओडिशा के मधुसूदन लॉ कॉलेज से बीए एलएलबी (ऑनर्स) कर रही हैं। यह लेख चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता (मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट) के व्यापक विश्लेषण पर आधारित है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar द्वारा किया गया है। 

परिचय

मूल संरचना के सिद्धांत (डॉक्ट्रिन ऑफ़ बेसिक स्ट्रक्चर) के अनुसार, भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यह सरकार का एक रूप है जहां संप्रभु (सोवरेन) शक्ति के अभ्यास में राज्य की शक्ति कानूनी रूप से समुदाय के सदस्यों पर निहित होती है। इसलिए चुनाव प्रक्रिया स्वतंत्र, निष्पक्ष, नियमित और समय पर चुनाव पर आधारित होनी चाहिए। इन सिद्धांतों के शासन में चुनाव के दौरान कुछ दिशा-निर्देश दिए जाते हैं, जिन्हें आदर्श आचार संहिता कहा जाता है।

2014 में, चुनाव आयोग ने माना था कि नरेंद्र मोदी ने आदर्श आचार संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन किया है, जो किसी को भी मतदान केंद्र के 100 मीटर के भीतर प्रचार करने से रोकता है। चुनाव आयोग के आदेश पर गुजरात पुलिस ने उनके खिलाफ दो प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की थी। 

2017 में, गुजरात में मतदान के अंतिम चरण से एक दिन पहले राहुल गांधी को उनके टेलीविजन साक्षात्कार (इंटरव्यू) के लिए चुनाव आयोग द्वारा आरोपित किया गया था। चुनाव आयोग ने गुजरात के मुख्य चुनाव अधिकारी बी. बी स्वैन को राज्य में उन चैनलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया है जो राहुल गांधी के साक्षात्कारों का प्रसारण करते हैं। 

बीजेपी नेता सरिता चौधरी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान अपने पोस्टरों पर विंग कमांडर अभिनंदन की तस्वीरें पोस्ट की थीं। जिसे चुनाव आयोग ने हटाने का आदेश दिया था। चुनाव आयोग द्वारा 4 दिसंबर 2014 को घोषित सामान्य सलाह के अनुसार, नेताओं और उम्मीदवारों को विज्ञापनों में या अन्यथा उनके राजनीतिक प्रचार के हिस्से के रूप में रक्षा कर्मियों या कार्यों में शामिल होने वाले किसी भी फोटो को दिखाने की सख्त मनाई है। आयोग ने इस सलाह का सामना किया है कि “किसी देश की सशस्त्र सेनाएं उसकी सीमाओं, सुरक्षा और राजनीतिक व्यवस्था की संरक्षक होती हैं।” 

चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता क्या है

सरकार बनाने की प्रक्रिया में सत्ता की प्रमुख भूमिका होती है। शांति और व्यवस्था सुनिश्चित करने वाली एक स्वस्थ प्रक्रिया में इस प्रतियोगिता को संचालित (ऑपरेट) करने के लिए कुछ दिशानिर्देश होने चाहिए। इसके बाद, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को विनियमित (रेगुलेट) करने के लिए, स्वतंत्र, निष्पक्ष, नियमित और समय पर चुनाव सुनिश्चित करने के लिए, चुनाव आयोग ने नियमों और विनियमों (रेगुलेशंस) का एक सेट लागू किया है, जिसे चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता कहा जाता है।

ये दिशा-निर्देश नैतिक रूप से बाध्य हैं अर्थात कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं, यह अप्रत्यक्ष रूप से दंडनीय हैं। यह पहली बार 1960 में केरल राज्य विधानसभा चुनाव में पेश किया गया था। इसे प्रायोगिक (एक्सपेरिमेंटल) आधार पर शुरू किया गया था। 1962 में, लोकसभा के आम चुनाव, आदर्श आचार संहिता को मान्यता प्राप्त पक्षों को प्रसारित किया गया था, और सरकार ने पक्षों से प्रतिक्रिया मांगी थी। चुनाव में पक्षों द्वारा आदर्श आचार संहिता का बड़े पैमाने पर पालन किया गया था और इसलिए यह बाद के चुनाव तक जारी रहा।

प्रारंभ में, छह आदर्श आचार संहिता थीं, बाद में, चुनाव आयोग ने 1979 में “पक्षों की शक्ति” और 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को “चुनाव घोषणापत्र” में जोड़ा। इसलिए आदर्श आचार संहिता में कुल मिलाकर आठ दिशानिर्देश हैं, 6 मूल और 2 बाद में जोड़े गए हैं। वे इस प्रकार हैं:

सामान्य आचरण 

राजनीतिक दलों की आलोचना उनकी क्षमता की कमी, नीतियों और कार्यक्रमों तक सीमित होनी चाहिए। यह नीचे दिए गए बिंदुओं पर आधारित नहीं होना चाहिए: 

  1. जाति या सांप्रदायिक (कम्यूनल) भावनाएँ; 
  2. असत्यापित (अनवेरिफाइड) रिपोर्ट, मतदाताओं को रिश्वत देना या डराना; 
  3. व्यक्तियों के घरों के बाहर उनकी राय के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का आयोजन।

बैठक 

पक्षों या उम्मीदवारों को सुरक्षा व्यवस्था करने के लिए अभियान या नेटवर्किंग के माध्यम से पुलिस या स्थानीय अधिकारियों को कार्यक्रम स्थल और बैठकों के समय की सूचना देनी चाहिए।

जुलूस (प्रोसेशन) 

रैली या जुलूस निकालने के लिए यदि दो या दो से अधिक दल एक मार्ग से जाते हैं तो उन्हें उचित समन्वय और सद्भाव (कोऑर्डिनेशन एंड हार्मनी) बनाए रखना चाहिए। ताकि जुलूसों में टकराव न हो। विपक्षी दलों के पुतले जलाने की अनुमति नहीं है।

मतदान के दिन 

मतदान के दिन पक्ष के अधिकृत (ऑथराइज्ड) कार्यकर्ताओं को पहचान पत्र दिया जाना चाहिए। इनमें पक्ष का नाम, प्रतीक या उम्मीदवारों का नाम नहीं होना चाहिए।

मतदान की जगह 

मतदान की जगह पर केवल मतदाताओं को जाने की अनुमति है, सभी राजनीतिक पक्ष बूथ के बाहर रहेंगे। यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ पीपल्स एक्ट) के विरुद्ध है।

पर्यवेक्षक 

चुनाव आयोग उन पर्यवेक्षकों को अनुमति देगा जिन्हें कोई भी उम्मीदवार चुनाव के संचालन के संबंध में समस्याओं की रिपोर्ट देता है।

सत्ताधारी पक्ष

आमतौर पर सत्ताधारी पक्ष के पास कई ऐसे फायदे होते हैं जिसके आधार पर वह कई बैठकें कर सकता है, शायद विपक्षी दल ऐसा नहीं कर सकता। और चुनाव के दौरान अंतिम क्षणों में मतदाताओं के मनोविज्ञान को प्रभावित करने के लिए सड़कों के निर्माण के लिए मौद्रिक योजना, विज्ञापन या वादे जारी करना। राजनीतिक पक्षों या किसी भी उम्मीदवार द्वारा इस तरह की गतिविधियों से लोगो को बचना चाहिए।

हालाँकि, इन दिशानिर्देशों के विपरीत, 2019 के चुनाव में, कुछ राजनीतिक दलों द्वारा कुछ विज्ञापन दिए गए थे, जिसके विपरीत में, उन्होंने दावा किया कि उन्होंने विज्ञापनों के लिए पहले से बुकिंग की थी, लेकिन संयोग से चुनाव के दौरान वह जारी कर दिए गए थे।

चुनावी घोषणा पत्र 

वैक्टर पर अनुचित प्रभाव पैदा करने के लिए योजनाओं के लिए तर्कहीन रूप से कोई भी वादा करना निषिद्ध होना चाहिए।

उद्देश्य 

आदर्श आचार संहिता का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी राजनीतिक दल चुनाव के दौरान लाभ उठाने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करे। पक्षों के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए और उन्हें स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान बनाए रखा जाना चाहिए। अनुचित प्रभाव, मजबूरी, शरीर या संपत्ति को नुकसान करने की धमकी या मतदाताओं को रिश्वत नहीं देना चाहिए। राजनेताओं को कोई घृणा फैलानेवाले भाषण या विज्ञापन नहीं करने चाहिए। किसी भी पक्ष के प्रचार के लिए फेसबुक, ट्वीटर को नियंत्रण में रखने की जरूरत है। और इसमें व्हाट्सएप के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है। 

कोई भी राजनीतिक पक्ष जाति या सांप्रदायिक मानहानि (डिफामेशन) या मतदाताओं पर प्रभाव के आधार पर प्रचार नहीं कर सकता है। इस तरह के कार्यो के लिए सभी उम्मीदवार जवाबदेह हैं। मंत्रियों को विपक्षी दलों के खिलाफ असत्यापित रिपोर्ट नहीं देनी चाहिए। 

जुलूस के दौरान राजनीतिक दल की रैली से सार्वजनिक सड़कों पर कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान किसी भी तरह के कल्याणकारी कार्यक्रम का वादा नहीं करना चाहिए। बैठकों के लिए, सार्वजनिक स्थानों पर सत्ताधारी दल का एकाधिकार (मोनोपॉली) नहीं होना चाहिए।

सीमा और दायरा

आदर्श आचार संहिता “क्या करें और क्या न करें” का एक सेट है, न कि न्यायिक रूप से बाध्य नियम जो चुनावी सभाओं, भाषणों और नारों को नियंत्रित करते हैं। चुनाव आयोग का उद्देश्य आदर्श आचार संहिता में बदलाव करना और राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति की कमी के कारण मतदान में देरी से 72 घंटे पहले राजनीतिक दलों को अपने घोषणापत्र प्रकाशित करने से रोकना है।

आदर्श आचार संहिता लोकसभा और राज्य विधानसभा दोनों के चुनावों पर भी लागू होती है। आदर्श आचार संहिता की आलोचना की जाती है कि यह कानून द्वारा लागू करने योग्य नहीं है। हालांकि, आदर्श आचार संहिता के कुछ प्रावधानों को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा-125, और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-153A, और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 जैसे कानूनों के संबंधित प्रावधानों को लागू करके किया जा सकता है। 

संवैधानिक वैधता 

चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि राजनीतिक दल संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए आदर्श आचार संहिता का पालन करें. डराने-धमकाने, अनुचित प्रभाव डालने के मामले में चुनाव आयोग उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करता है। लोग ऐसे अपराधों के सुनाई और दिखाई देनेवाले सबूत के जरिए सीविजिल मोबाइल एप्लिकेशन के जरिए सीधे चुनाव आयोग से शिकायत कर सकते हैं। आदर्श आचार संहिता की एक दन्तविहीन (टूथलेस) शेर मतलब बिना शक्ति के दिए गए अधिकार के रूप में आलोचना की गई है क्योंकि चुनाव आयोग के पास चुनाव से परे प्रशासनिक अधिकार को लागू करने की शक्ति और नियंत्रण नहीं है। एक बार जब चुनाव परिणाम घोषित हो जाते हैं, तो अचानक से चुनावी अपराधों के आरोपों को मुकदमा चलाने और दोषसिद्धि के तार्किक अंत तक ले जाना संवैधानिक रूप से असंभव और कमजोर हो जाता है।

आदर्श आचार संहिता का प्रभाव 

आदर्श आचार संहिता के कई प्रभाव नीचे दिए गए हैं:

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराता है;
  • चुनाव के दौरान शांति और व्यवस्था बनाए रखता है;
  • उम्मीदवारों और राजनीतिक पक्षों के बीच टकराव को रोकना या बचाता है;
  • धार्मिक और साम्प्रदायिक पक्षपाती मतो पर रोक लगाता है;
  • चुनाव के दौरान किसी भी रैली या जुलूस को सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध (ब्लॉक) नहीं करने वाले दिशानिर्देशों के कारण अराजकता मुक्त (चाओस फ्री) सार्वजनिक सड़क में मदद करता है;
  • हिंसा मुक्त चुनाव;
  • मत लेने के लिए सड़क और भवन निर्माण के झूठे वादे न होने देना;
  • मतदान केंद्र पर शांति बनाए रखने के लिए;
  • यह सीविजील मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से शिकायत दर्ज करने की गुंजाइश देता है;
  • सत्तारूढ़ पार्टी को सार्वजनिक स्थानों या बैठकों के हॉल पर एकाधिकार करने की अनुमति नहीं देता।

मुद्दे और चुनौतियाँ

महत्वपूर्ण यह है कि आदर्श आचार संहिता न्यायिक रूप से बाध्य नहीं है, चुनाव आयोग का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय में तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित (पेंडिंग) हैं, और चुनाव की अवधि लगभग 45 दिन है। इसलिए मामले की सुनवाई में देरी हो सकती हैं, मामले की कार्यवाही के परिणामस्वरूप, राजनीतिक पक्ष अपना आरोप नहीं लगा सकते हैं। जब तक सजा नहीं हो जाती, तब तक हर मामला अधिग्रहण (एक्विजिशन) मात्र है। इसलिए न्यायिक विलंब इस संबंध में प्रमुख चुनौतियों में से एक है।

जटिल अन्वेषण

आधुनिक परिदृश्य (सिनेरियो) में आदर्श आचार संहिता की प्रभावकारिता नीचे दी गई है:

सोशल मीडिया की दुनिया में नजर रखना मुश्किल है। सोशल मीडिया मतदाताओं पर एक बड़ा प्रभाव हो सकता है। सीविजील मोबाइल एप्लिकेशन चुनाव में दिशानिर्देशों के उल्लंघन या किसी भी प्रकार के अपराध के संबंध में मतदाता की शिकायतों को दर्ज करने के लिए बनाया गया है।

सभी उम्मीदवारों को अपने सोशल मीडिया खातों का विवरण आयोग को देना होगा और सोशल मीडिया पर सभी विज्ञापनों के लिए मंजूरी देनी होगी। इसके अलावा, आदर्श आचार संहिता सोशल मीडिया की जानकारी पर लागू होती है। आयोग ने आदर्श संहिता के पेड न्यूज और मीडिया से संबंधित उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए मीडिया प्रमाणन और निगरानी समितियों का भी गठन किया है। फेसबुक, गूगल, ट्विटर और यूट्यूब को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके प्लेटफॉर्म पर सभी राजनीतिक विज्ञापन इन समितियों द्वारा पूर्व-प्रमाणित हों, जिनमें से हर एक में एक सोशल मीडिया विशेषज्ञ शामिल होगा। व्हाट्सएप को इन ग्रुप से बाहर रखा गया है। भारत में मुद्दों पर आधारित विज्ञापन के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं है, जिसका अर्थ है राजनीतिक मुद्दों को बढ़ावा देना जो लोगों को राजनीतिक दल को मत देने के लिए प्रभावित कर सकते हैं। इसे आदर्श आचार संहिता के दायरे में लाना चाहिए।

सिफारिश

आदर्श आचार संहिता के तमाम दिशा-निर्देशों के बावजूद राजनीतिक दल उन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हैं क्योंकि यह न्यायपालिका के लिए बाध्य नहीं है। आदर्श आचार संहिता पूरी तरह से नैतिक दायित्व पर आधारित है। दिशानिर्देशों को और अधिक कठोर बनाने की आवश्यकता है ताकि प्रत्येक उम्मीदवार इसका सख्ती से पालन करे। चुनाव के दौरान शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उम्मीदवारों के बीच सहमति को और मजबूत करने की जरूरत है। कोई भी राजनीतिक दल सड़कों या भवनों के झूठे निर्माण का वादा नहीं करता है, यह मतदाताओं को झूठी उम्मीद देता है। हिंसा के कारण हड़ताल और भाषणों पर रोक लगाने की आवश्यकता है क्योंकि यह सार्वजनिक संपत्ति के साथ-साथ नागरिकों की शांति को भी नुकसान पहुँचाता है। सोशल मीडिया के दौर में आदर्श आचार संहिता के विशिष्ट दिशा-निर्देशों में कुछ हद तक संशोधन किया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण मामले  

के जी उथयकुमार बनाम राज्य में 7 जनवरी 2015 को यह माना गया था कि आरोपी व्यक्ति ने लोक निर्माण विभाग के भवन में रहकर आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया था। उसने भारतीय दंड संहिता की धारा-171 के तहत अपराध किया था यानी चुनाव अपराध, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-154 के तहत; इस मामले में कोई भी थाना, जिलाधिकारी, राजस्व मंडल अधिकारी (रेवेन्यू डिविजनल ऑफिसर) को शिकायत कर सकता है।

9 नवंबर 2018 को एम वी निकेश कुमार बनाम के एम शाजी के मामले में, याचिकाकर्ता इस विश्वास पर था कि प्रतिवादी एक मुस्लिम उम्मीदवार और उनकी पक्ष के सदस्य होने के नाते उसके द्वारा धर्म के आधार पर मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं से संपर्क किया गया था। उन्होंने अपने अभियान में अधिक मत हासिल करने के लिए ब्रोशर का प्रचार किया था। इसके परिणामस्वरूप, प्रतिवादी चुनाव जीता। इसलिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (रिप्रेजेनटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट), 1951 की धारा-100(1)(b) और धारा-100(1)d(ii) के तहत, प्रतिवादी को शून्य घोषित करने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया और याचिकाकर्ता को विधिवत निर्वाचित किया गया है।

26 मार्च 2019 को के के रमेश बनाम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में उम्मीदवार ने यातायात में बाधा उत्पन्न करके सार्वजनिक सभाओं के लिए अस्थायी फ्लेक्स बोर्ड और अस्थायी डायस की स्थापना की थी। न्यायालय ने कहा कि वह आदर्श आचार संहिता के दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए उत्तरदायी हैं। 

निष्कर्ष 

1962 के बाद से, आदर्श आचार संहिता का क्रमिक रूप से पालन किया गया है। लेकिन पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया ट्रेंड कर रहा है और भारत के राजनीतिक पहलुओं को भी अपग्रेड किया गया है। चुनाव आयोग को आदर्श आचार संहिता के कुछ दिशानिर्देशों को फिर से बनाने की जरूरत है।

संदर्भ 

  • भारतीय संविधान,
  • फर्स्ट पोस्ट 
  • भारत चुनाव आयोग 

 

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