आईपीसी की धारा 498A को साबित करने के लिए जरूरी साक्ष्य

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Indian Penal Code

यह लेख नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा की कानून की छात्रा Ansruta Debnath ने लिखा है। यह लेख आईपीसी की धारा 498A के तहत क्रूरता साबित करने के लिए आवश्यक साक्ष्यों के प्रकारों की गणना करता है। इस लेख का अनुवाद Shubhya Paliwal द्वारा किया गया है। 

परिचय

भारतीय दंड संहिता, 1860 में धारा 498A एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो एक महिला के खिलाफ उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता को दंडित करता है। चूंकि क्रूरता व्यक्तिपरक (सब्जेक्टिव) है, इसलिए इसे न्यायालय में सफलतापूर्वक साबित करने के लिए विभिन्न आवश्यकताएं हैं। सफलतापूर्वक साबित होने पर, उस महिला को राहत प्रदान की जा सकती है, जो अक्सर इन मामलों में घरेलू हिंसा की शिकार होती है। कभी-कभी, तीव्र (इंटेंस) क्रूरता से महिला को आत्महत्या तक करनी पड़ सकती है। ऐसे मामलों में, यह सुनिश्चित करना अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) पक्ष का कर्तव्य है कि न्याय के पहिये सही दिशा में चल रहे हैं, और ऐसे अपराध करने वाले लोगों को कानून द्वारा पर्याप्त रूप से दंडित किया जाता है।

आईपीसी की धारा 498A क्या है

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A में एक महिला को उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के अधीन किए जाने के बारे में बात की गई है। यह अपराध संज्ञेय (कॉग्निजेबल), गैर-जमानती (नॉन बेलेबल), गैर-शमनीय (नॉन कंपाउंडेबल) और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय (ट्रायबल) है।

इस क़ानून में क्रूरता को किसी भी जानबूझकर किए गए आचरण के रूप में वर्णित किया गया है जिसमें महिला को आत्महत्या करने या गंभीर चोट या महिला के जीवन, अंग, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करने की क्षमता है। इस धारा में किसी महिला को या उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति को किसी संपत्ति या व्यक्तिगत सुरक्षा को देने के लिए मजबूर करने के संबंध में उत्पीड़न भी शामिल है। संपत्ति को देने की उस गैरकानूनी मांग को पूरा करने में विफलता के लिए एक महिला का उत्पीड़न भी क्रूरता है।

जैसा कि इस धारा के सार से स्पष्ट है, इसका प्रयोग अक्सर घरेलू हिंसा के मामलों में किया जाता है। बी.एस. जोशी बनाम हरियाणा राज्य (2003) के मामले में इस धारा के बारे में अति-तकनीकी (हाइपर टेक्निकल) दृष्टिकोण अपनाने के प्रति आगाह किया, कहा गया है कि, व्यक्तिगत स्कोर को निपटाने के लिए इस धारा का बढ़ता दुरुपयोग भी उचित ध्यान देने योग्य है। न्यायालयों को सावधानीपूर्वक निर्णय लेना चाहिए कि क्या क्रूरता का मामला पर्याप्त है और अभियोजन की आवश्यकता के लिए पर्याप्त सबूत हैं या नहीं।

आईपीसी की धारा 498A और 304B के बीच का अंतर

धारा 304B एक महिला, पत्नी पर पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता और उत्पीड़न को दंडित करती है, जब ऐसी क्रूरता (जो दहेज के संबंध में हो सकती है) से महिला की मृत्यु शारीरिक चोटों, जलने से होती है (या किसी अन्य तरीके से होती है जो सामान्य परिस्थितियों से विचलित है)। इसके अलावा, मृत्यु शादी के सात साल के भीतर होनी चाहिए और इसे “दहेज मृत्यु” कहा जाता है।

शांति बनाम हरियाणा राज्य (1991) और केशव चंद्र पांडा बनाम राज्य (1994) में इन दो धाराओं के बीच अंतर स्पष्ट किया गया था। यह कहा गया था कि ये दोनों धाराएं परस्पर अनन्य (म्यूचुअली एक्सक्लूसिव) नहीं हैं। जबकि धारा 498A में परिभाषित क्रूरता धारा 304B के तहत क्रूरता के समान है, धारा 498A के तहत, क्रूरता स्वयं दंडनीय है। लेकिन धारा 304B के तहत क्रूरता के कारण दहेज हत्या दंडनीय है। इसके अलावा, धारा 304B सात साल की समय सीमा के लिए कहती है, जो धारा 498A में मौजूद नहीं है। इसके अलावा, धारा 340B के तहत अगर ऐसा कोई मामला बनता है तो आरोपित व्यक्ति को धारा 498A के तहत भी दोषी ठहराया जा सकता है।

आईपीसी की धारा 498A को साबित करने के लिए जरूरी साक्ष्य 

धारा 498A के एक सादे पठन से, क्रूरता की सामग्री कुछ इस प्रकार है की वह एक स्पष्ट, जानबूझकर कार्य होना चाहिए जिससे एक महिला आत्महत्या कर सकती है या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंच सकती है। इसके अलावा, एक महिला का लगातार उत्पीड़न भी क्रूरता का गठन करता है। साक्ष्य के प्रकार जो एक मजबूत अभियोजन मामले को सफलतापूर्वक स्थापित कर सकते हैं और आरोपियों की दोषसिद्धि में सहायता कर सकते हैं, नीचे दिए गए हैं। हालांकि ये श्रेणियां अतिव्यापी (ओवरलैपिंग) हैं, अदालतों में इनकी स्वीकार्यता की विभिन्न आवश्यकताओं के कारण इन्हें व्यक्तिगत चर्चा की आवश्यकता है।

मौखिक बयान

शपथ के तहत अदालतों में मौखिक बयान गवाहों और शामिल पक्षों की परीक्षा में मदद करते हैं और साक्ष्यों की जालसाजी में कमी करते हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 59 के अनुसार, मौखिक बयान जो मौखिक साक्ष्य का एक रूप है, का उपयोग किसी अपराध के भौतिक (मैटेरियल) तथ्यों (दस्तावेजों या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की सामग्री के अलावा) को साबित करने के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा, साक्ष्य अधिनियम में यह भी अनिवार्य किया गया है कि किसी अपराध को देखने, सुनने या महसूस करने वाले गवाहों के संबंध में मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) (धारा 60) होना चाहिए। उदाहरण के लिए, धारा 498A के संबंध में, प्रत्यक्षदर्शी (आईविटनेस) जिन्होंने पति को अपनी पत्नी पर हमला करते हुए देखा है या पड़ोसियों ने एक पत्नी को वर्षों से लगातार पति द्वारा अपमानित हुए देखा है, वे गवाही दे सकते हैं जिन्हें मौखिक साक्ष्य माना जाएगा।

प्रत्यक्ष साक्ष्य

किसी भी प्रकार का साक्ष्य जो सीधे तौर पर किसी अपराध की ओर इशारा करता है, प्रत्यक्ष साक्ष्य है। यह मौखिक या दस्तावेजी हो सकते है। उदाहरण के लिए, एक पत्नी जो लगातार उत्पीड़न का सामना कर रही है, जो अंततः उसे आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करती है, उसकी डायरी को प्रत्यक्ष साक्ष्य माना जा सकता है।

अप्रत्यक्ष (इनडायरेक्ट) साक्ष्य

इस प्रकार के साक्ष्य को अपराध स्थापित करने के लिए अन्य साक्ष्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, पत्नी द्वारा आत्महत्या करना क्रूरता का अप्रत्यक्ष साक्ष्य है। साक्ष्य जो यह साबित करते हैं कि उसे अपने पति या उसके रिश्तेदारों के हाथों शारीरिक या मानसिक आघात का सामना करना पड़ा और उसी ने उसे आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया, साबित होना चाहिए।

चिकित्सा साक्ष्य

एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रकार का साक्ष्य जो धारा 498A के तहत क्रूरता के मामलों को साबित करने में मदद करता है, वह है चिकित्सा साक्ष्य। ये मौखिक या दस्तावेजी हो सकते हैं। इस प्रकार, शारीरिक या मानसिक रूप से लगी चोटों के संबंध में एक पेशेवर से देखभाल करवाने वाली पत्नी की चिकित्सा रिपोर्ट  इस श्रेणी के अंतर्गत आती हैं। बेशक, ऐसे साक्ष्य अप्रत्यक्ष होंगे और साक्ष्य का बोझ अभियोजन पक्ष पर होगा कि वह इस तरह की चोटों और पति और उसके रिश्तेदारों के जानबूझकर, क्रूर आचरण के बीच एक कड़ी को सफलतापूर्वक स्थापित करे। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रत्यक्ष साक्ष्य और चिकित्सा साक्ष्य के बीच विवाद के मामले में, प्रेम बनाम दौला (1997) में यह कहा गया था कि यदि प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य अभेद्य (अनइम्पीचेबल) है, तो उसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए और चिकित्सा साक्ष्य उस साक्ष्य को रद्द नहीं कर सकते है। 

विशेषज्ञ गवाह 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 अदालत को विज्ञान सहित अन्य मामलों में विशेषज्ञ राय लेने की अनुमति देती है। इस प्रकार, डॉक्टरों जैसे चिकित्सा पेशेवरों को अदालत में मौखिक साक्ष्य देने के लिए बुलाया जा सकता है। इस तरह के साक्ष्य मौखिक चिकित्सा साक्ष्य का हिस्सा होते हैं और जब यह प्रत्यक्षदर्शियों के मौखिक साक्ष्य के साथ क्रूरता के कार्यों  की पुष्टि करते है, तो यह अभियोजन के मामले में और मदद करता है।

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य

साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के अनुसार क्रूरता की ओर इशारा करने वाले इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड अदालतों में स्वीकार्य हैं। उदाहरण के लिए, एक महिला पर उसके पति द्वारा किए गए क्रूरता के कार्य की वीडियो रिकॉर्डिंग प्रत्यक्ष साक्ष्य का एक इलेक्ट्रॉनिक रूप है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत उपधारणा (प्रिजंप्शन) – धारा 113A

धारा 113A एक विवाहित महिला द्वारा आत्महत्या के लिए उकसाने की उपधारणा के बारे में बात करती है। इसमें कहा गया है कि ऐसे मामलों में जब पत्नी शादी के सात साल के भीतर आत्महत्या कर लेती है और यह साबित किया जा सकता है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत महिला के साथ उसके पति या पति के संबंधियों द्वारा क्रूरता की गई है, तब यह उपधारणा की जाएगी कि पति या उसके रिश्तेदारों ने ही उसे आत्महत्या के लिए उकसाया है।

मध्य प्रदेश राज्य बनाम गीताबाई (1996), में अदालत ने कहा कि इस उपधारणा को लागू करने के लिए, अभियोजन पक्ष को पहले यह साबित करना होगा कि आरोपी द्वारा मृतक के खिलाफ क्रूरता की गई थी। दूसरी ओर, जब महिला शादी के सात साल से अधिक समय के बाद आत्महत्या कर लेती है, तो धारा 498A के तहत उसके साथ की गई क्रूरता के बावजूद इस उपधारणा को लागू नहीं किया जाएगा। ऐसे मामलों में, अभियोजन पक्ष को अतिरिक्त रूप से यह साबित करना होगा कि क्रूरता से महिला को आत्महत्या के लिए उकसाया गया था। इस सिद्धांत को पंजाब राज्य बनाम इकबाल सिंह (1991) में दोहराया गया था।

अन्य प्रासंगिक मामले

  • गिरधर शंकर तावड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य (2002) में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 498A यह स्पष्ट करती है कि इस धारा के तहत उत्पीड़न के लिए घटनाओं या कार्यों की एक श्रृंखला होनी चाहिए। इसके अलावा, इस धारा के तहत आरोप को सिद्ध करने के लिए कुछ ठोस सबूत होने चाहिए।
  • रूपाली देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2019), के मामले में गहन शारीरिक शोषण से पीड़ित होने के बाद पत्नी द्वारा वैवाहिक घर छोड़कर अपने पैतृक घर जाना शामिल था। अदालत ने कहा कि वैवाहिक घर छोड़ने के बाद, शारीरिक शोषण और इस प्रकार, शारीरिक क्रूरता बंद हो गई। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं था कि मानसिक क्रूरता बंद हो गई। शारीरिक क्रूरता से उत्पन्न हुई मानसिक क्रूरता, अपमानजनक मौखिक क्रूरता के आदान-प्रदान से माता-पिता के घर में भी जारी रहेगी, भले ही ऐसी जगह पर शारीरिक क्रूरता का कोई स्पष्ट कार्य न हो।
  • रेशमा राकेश कदम बनाम राकेश विजय कदम (2013), में धारा 498A का मामला इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि अभियोजन पक्ष पत्नी पर उसके पति और उसकी मां द्वारा मानसिक क्रूरता साबित करने में असमर्थ था। इसके बजाय, प्रतिवादी सफलतापूर्वक यह स्थापित करने में सक्षम था कि पति को वास्तव में पत्नी द्वारा क्रूरता के अधीन किया जा रहा था।

निष्कर्ष

उपरोक्त चर्चा से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि क्रूरता सिद्ध करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य का अधिक महत्व है। क्रूरता का सिर्फ एक कार्य धारा 498A के तहत सफलतापूर्वक सजा सुनिश्चित नहीं कर सकता है। इसके बजाय, ऐसे कार्यों की एक श्रृंखला जिसका महिला पर मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से लगातार हानिकारक प्रभाव दिखाया जा सकता है, जो आरोपी की सजा सुनिश्चित कर सकता है।

संदर्भ 

 

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