सीपीसी के तहत निर्णय का पुनर्विलोकन

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Civil Procedure Code

यह लेख राजीव गांधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, पटियाला के छात्र Saurav Bhola के द्वारा लिखा गया है। इस लेख में वह सीपीसी के तहत निर्णय के पुनर्विलोकन (रिव्यू) पर चर्चा करते है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta के द्वारा किया गया है।

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परिचय

पुनर्विलोकन का अधिकार, सिविल प्रक्रिया संहिता द्वारा विशेष परिस्थितियों और शर्तों के तहत एक आवेदन के लिए मांगे जाने वाले उपाय के रूप में दिया गया है। इस अधिकार का उद्देश्य न्यायालय के निर्णय में हुई त्रुटि या किसी गलती को सुधारना है। यह अधिकार सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 47 में उल्लिखित कई प्रतिबंधों और शर्तों के अधीन है।

सीपीसी की धारा 114 के तहत यह अधिकार मूल अधिकार है और सीपीसी का आदेश 47 प्रक्रिया का विवरण प्रदान करता है।

सीपीसी की धारा 114 के अनुसार-

“पुनर्विलोकन – विषय पूर्वोक्त (एफोरसेड) रूप में, स्वयं को व्यथित समझने वाला कोई भी व्यक्ति-

  • एक डिक्री या आदेश से, जिसमें इस संहिता द्वारा अपील की अनुमति दी जाती है, लेकिन जिसकी कोई अपील नहीं की गई है,
  • एक डिक्री या आदेश द्वारा, जिसके लिए इस संहिता द्वारा किसी अपील की अनुमति नहीं है, या
  • लघु वाद (स्मॉल कॉज) न्यायालय के संदर्भ पर निर्णय द्वारा,

निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए उस न्यायालय को आवेदन कर सकता है जो डिक्री पारित करता है या आदेश देता है, और न्यायालय उस पर ऐसा आदेश दे सकता है जो वह ठीक समझे।”

न्यायालय के संबंध में ‘फंक्टस ऑफिशियो’ क्या है

जब न्यायालय के संबंध में “फंक्टस ऑफिशियो” शब्द का उपयोग किया जाता है, तो इसका अर्थ है कि ‘एक बार अदालत ने कानूनी सुनवाई के बाद कोई निर्णय पारित कर दिया, तो मामला फिर से नहीं खुल सकता है और निर्णय पक्षों पर बाध्यकारी होता है’। एक वैध सुनवाई और परीक्षण “फंक्टस ऑफिशियो” के लिए आवश्यक शर्तें हैं।

निर्णय का पुनर्विलोकन करने का अधिकार इस लैटिन शब्द “फंक्टस ऑफिसियो” का अपवाद है। किसी पीड़ित पक्ष या व्यक्ति के आवेदन पर, निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए कार्यवाही शुरू की जा सकती हैं।

निर्णय का पुनर्विलोकन क्या है

पुनर्विलोकन का डिक्शनरी अर्थ ‘परीक्षा करना या फिर से अध्ययन करना’ है। इसलिए, निर्णय के पुनर्विलोकन में मामले के तथ्यों और निर्णय की फिर से जांच या अध्ययन किया जाता है। निर्णय का पुनर्विलोकन सीपीसी की धारा 114 में उल्लिखित न्यायालय द्वारा पुनर्विलोकन की मूल शक्ति है। यह धारा पुनर्विलोकन के लिए कोई प्रतिबंध और शर्तें प्रदान नहीं करता है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 47 में सीमाएं और शर्तें प्रदान की गई हैं। आदेश 47 में 9 नियम शामिल हैं जो पुनर्विलोकन के लिए कुछ शर्तें लगाते हैं।

पुनर्विलोकन करने की शक्ति कानून द्वारा प्रदान की जाती है और पुनर्विलोकन करने की अंतर्निहित (इन्हेरेंट) शक्ति केवल अदालत में निहित होती है। एक सरकारी अधिकारी के पास अपने आदेशों का पुनर्विलोकन करने की कोई अंतर्निहित शक्ति नहीं होती है।

निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन दायर करने की समय सीमा क्या है

सर्वोच्च न्यायालय के नियम, 1966 के अनुसार, निर्णय या आदेश पारित होने के 30 दिनों के भीतर पुनर्विलोकन आवेदन दायर किया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय में किसी भी सजा या फैसले के खिलाफ अपील के लिए आवदेन, निर्णय के दिन से 60 दिनों के भीतर दायर किया जाएगा। मौत की सजा या मृत्युदंड के खिलाफ अपील के लिए, सीमा अवधि आदेश पारित होने से 30 दिन तक है।

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 47 में क्या नियम हैं

सीपीसी का आदेश 47 निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन से संबंधित है। पुनर्विलोकन के लिए एक आवेदन को विभिन्न आधारों पर खारिज किया जा सकता है। इन आधारों का उल्लेख सीपीसी के आदेश 47 के नियमों में किया गया है।

सीपीसी के आदेश 47 का नियम 1

  1. कोई भी व्यक्ति जो स्वयं को व्यथित समझता है-
  • एक डिक्री या आदेश से, जिससे अपील की अनुमति है, लेकिन कोई अपील नहीं की गई है,
  • एक डिक्री या आदेश से, जिससे कोई अपील की अनुमति नहीं है, या
  • लघु वाद न्यायालय के संदर्भ पर निर्णय द्वारा,

और जो, नए और महत्वपूर्ण मामले या सबूत की खोज से, जो उचित परिश्रम के अभ्यास के बाद उसके ज्ञान के भीतर नहीं थी या जिसे उसके द्वारा उस समय पेश नहीं किया जा सकता था जब डिक्री पारित की गई थी या आदेश दिया गया था, रिकॉर्ड में स्पष्ट दिखाई देने वाली किसी गलती या त्रुटि के कारण या किसी अन्य पर्याप्त कारण के लिए, पारित डिक्री या आदेश का पुनर्विलोकन करना चाहता है, तो उस न्यायालय मे निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन कर सकता है जिसने डिक्री पारित की है या आदेश दिया है।

2. एक पक्ष जो डिक्री या आदेश की अपील नहीं करता है, वह किसी अन्य पक्ष द्वारा अपील के लंबित होने के बावजूद निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन कर सकता है, सिवाय इसके कि जहां ऐसी अपील का आधार आवेदक और अपीलकर्ता के लिए सामान्य है, या जब, प्रतिवादी होने के नाते, वह अपीलीय न्यायालय में उस मामले को प्रस्तुत कर सकता है जिस पर वह पुनर्विलोकन के लिए आवेदन करता है।

निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए क्या आधार हैं

  • जब आवेदक द्वारा नए और महत्वपूर्ण साक्ष्य की खोज की जाती है और वह उसके ज्ञान में नहीं थे या लापरवाही के कारण, डिक्री पारित होने पर वह साक्ष्य प्रदान करने में सक्षम नहीं था।
  • पुनर्विलोकन की शक्ति केवल तभी उपलब्ध होती है जब रिकॉर्ड में कोई त्रुटि स्पष्ट होती है न कि गलत निर्णय पर। रिकॉर्ड में स्पष्ट एक त्रुटि को ठीक से परिभाषित नहीं किया जा सकता है और इसे प्रत्येक मामले के तथ्यों पर न्यायिक रूप से तय किया जाता है।
  • कोई अन्य पर्याप्त आधार जो इन नियमों में निर्दिष्ट के समान है।
  • न्यायालय की भ्रांति (मिसकंसेप्शन) को निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए पर्याप्त आधार माना जा सकता है।

पुनर्विलोकन के आवेदन की अनुमति देने वाले ‘कोई अन्य पर्याप्त कारण’ क्या हैं

शब्द ‘कोई अन्य पर्याप्त कारण’ का अर्थ, नियम में निर्दिष्ट के समान आधार पर पर्याप्त कारण है। 

स्वीकार किए गए रिकॉर्ड की गलत व्याख्या ‘नए तथ्यों की खोज’ और ‘रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि’ के दायरे में नहीं आती है। इसलिए, यह ‘किसी अन्य पर्याप्त कारण’ के दायरे में आता है। और पुनर्विलोकन आवेदन को एक हलफनामे (एफिडेविट) द्वारा समर्थित होना आवश्यक है।

सीपीसी के आदेश 47 का नियम 5

दो या दो से अधिक न्यायाधीशों से युक्त न्यायालय में पुनर्विलोकन के लिए आवेदन-

जहां न्यायाधीश या न्यायाधीशों में से कोई एक, जिसने डिक्री पारित की है या आदेश दिया है, जिसके पुनर्विलोकन के लिए आवेदन किया गया है, उस समय अदालत में रहते है जब पुनर्विलोकन के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जाता है, और आवेदन के बाद छह महीने की अवधि के लिए वह अनुपस्थिति है या अन्य कारण से डिक्री या आदेश पर विचार करने से उन्हें रोका गया है, तो ऐसे न्यायाधीश या उनमें से कोई भी आवेदन को सुनेंगे, और कोई अन्य न्यायालय के न्यायाधीश नहीं सुनेगे।

एक ही न्यायाधीश द्वारा पुनर्विलोकन की सुनवाई

एक पुनर्विलोकन एक ही न्यायाधीश या एक ही अदालत द्वारा सुना जाना चाहिए। इसके पीछे कारण यह है कि वही न्यायाधीश फैसले का पुनर्विलोकन करने की सबसे अच्छी स्थिति में होगा। लेकिन उस मामले में जहां वही न्यायिक अधिकारी उपलब्ध नहीं है, तब यह बहुत ही स्थापित कानून है कि सक्षम क्षेत्राधिकार (ज्यूरिसडिक्शन) की कोई भी अदालत मामले की सुनवाई कर सकती है।

नियम 5 के अनुसार,

वही न्यायाधीश फैसले का पुनर्विलोकन करने के लिए आदर्श न्यायाधीश होंगे। क्योंकि वही न्यायाधीश दूसरों की तुलना में अपने स्वयं के निर्णय का बेहतर और अधिक प्रभावी ढंग से पुनर्विलोकन कर सकते है। सिवाय, जहां न्यायाधीश पुनर्विलोकन आवेदन दाखिल करने की तारीख से छह महीने या उससे अधिक की अवधि के लिए अनुपस्थित है।

सीपीसी के आदेश 47 का नियम 6

आवेदन कहा खारिज कर दिया जाता है-

  • जहां पुनर्विलोकन के आवेदन की सुनवाई एक से अधिक न्यायाधीशों द्वारा की जाती है और न्यायालय समान रूप से विभाजित होता है, वहां आवेदन खारिज कर दिया जाएगा।
  • जहां बहुमत है, वहां बहुमत की राय के अनुसार निर्णय होता है।

जब निर्णय एक से अधिक न्यायाधीशों द्वारा दिया जाता है, तो आवेदन पर निर्णय बहुमत द्वारा किया जाएगा। पीठ विभाजित होती है और उस आवेदन को अस्वीकार कर देगी जहां एक से अधिक न्यायाधीशों द्वारा पुनर्विलोकन आवेदन की सुनवाई की जाती है।

वे कौन से आधार हैं जिन पर पुनर्विलोकन आवेदन को अस्वीकार किया जा सकता है

  • न्यायाधीश या अदालत पुनर्विलोकन आवेदन को तब अस्वीकार कर सकती हैं जब वे संतुष्ट हों कि पुनर्विलोकन का आवेदन नए तथ्यों की खोज पर आधारित नहीं है, रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि या कोई अन्य पर्याप्त आधार जो इन नियमों में निर्दिष्ट आधार के अनुरूप नहीं है।
  • यदि उचित कारण के बिना आवेदन दाखिल करने के लिए निर्धारित समय अवधि की समाप्ति के बाद पुनर्विलोकन दायर किया जाता है।
  • यदि अपील पहले से पुनर्विलोकन किए गए आदेश पर है तो पुनर्विलोकन के आवेदन को अस्वीकार कर दिया जाएगा। पुनर्विलोकन आदेश पर पारित किसी आदेश या निर्णय का आगे कोई पुनर्विलोकन नहीं होगा।
  • यदि बिना किसी पर्याप्त कारण के पुनर्विलोकन के लिए निर्धारित तिथि पर आवेदक उपस्थित नहीं होता है।
  • दो या दो से अधिक न्यायाधीशों के मामले में बहुमत के निर्णय पर विचार किया जाएगा।

सीपीसी के आदेश 47 का नियम 7

अस्वीकृति का आदेश अपील योग्य नहीं है। आवेदन स्वीकृत करने के आदेश पर आपत्तियां-

  1. आवेदन को खारिज करने वाले न्यायालय के आदेश पर अपील नहीं की जा सकती है, लेकिन आवेदन को स्वीकार करने वाले आदेश की अपील या वाद (सूट) में अंतिम रूप से पारित या दिए गए आदेश या डिक्री की अपील पर तुरंत आपत्ति की जा सकती है।
  2. जहां आवेदक के उपस्थित होने में विफलता के परिणामस्वरूप आवेदन को खारिज कर दिया गया है, वह खारिज किए गए आवेदन को बहाल (रिस्टोर) करने के आदेश के लिए आवेदन कर सकता है, और जहां न्यायालय मे यह साबित हो जाता है कि जब ऐसे आवेदन को सुनवाई के लिए बुलाया गया था, तो उसे किसी पर्याप्त कारण से पेश होने से रोका गया था, तो न्यायालय इसे लागत या शर्तों पर बहाल करने का आदेश देगा और उस पर सुनवाई के लिए एक दिन नियुक्त करेगा।
  3. उपनियम (2) के तहत कोई आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि आवेदन की सूचना विरोधी पक्ष को नहीं दी गई हो।

न्यायाधीशों द्वारा पुनर्विलोकन आवेदन की अस्वीकृति अपील योग्य है या नहीं

सीपीसी के आदेश 47 के नियम 7 के अनुसार, पुनर्विलोकन आवेदन की अस्वीकृति का आदेश अपील योग्य नहीं है। पुनर्विलोकन के आवेदन को दाखिल करने वाला पक्ष फिर से अपील नहीं कर सकता है यदि उनका पुनर्विलोकन आवेदन न्यायाधीशों या अदालत द्वारा खारिज कर दिया जाता है। लेकीन स्वीकृत आवेदन अपील योग्य है।

जहां आवेदन की अस्वीकृति सुनवाई के लिए निर्धारित तिथि पर आवेदक की उपस्थिति में विफलता के कारण है, तो आवेदक अपने आवेदन को बहाल करने के लिए आवेदन कर सकता है और अदालत उसकी अपील को बहाल करेगी यदि यह साबित हो जाता है कि न उपस्थिति होने के लिए यह पर्याप्त कारण था।

विरोधी पक्ष को पुनर्विलोकन आवेदन की स्थिति के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।

सीपीसी के आदेश 47 का नियम 8

स्वीकार किए हुए आवेदन की रजिस्ट्री, और सुनवाई के लिए आदेश-

जब पुनर्विलोकन के लिए एक आवेदन दिया जाता है, तो उसका एक नोट रजिस्टर में बनाया जाएगा और न्यायालय मामले की फिर से सुनवाई कर सकता है या फिर से सुनवाई के संबंध में ऐसा आदेश दे सकता है जैसा वह ठीक समझे।

जब अदालत पुनर्विलोकन निर्णय के लिए आवेदन को स्वीकार करती है, तो अदालत मामले की सुनवाई की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी। और पुनर्विलोकन के बाद का निर्णय पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है।

सीपीसी के आदेश 47 का नियम 9

निश्चित आवेदन पर निषेध (बार) –

पुनर्विलोकन के लिए आवेदन पर किए गए आदेश के पुनर्विलोकन करने के लिए कोई आवेदन या पुनर्विलोकन पर पारित डिक्री या दिए गए आदेश पर विचार नहीं किया जाएगा।

सीपीसी के आदेश 47 के नियम 9 में उल्लेख किया गया है कि पुनर्विलोकन आदेश पर पारित किसी आदेश या निर्णय का आगे कोई पुनर्विलोकन नहीं होगा।

निष्कर्ष

अपने स्वयं के निर्णय का पुनर्विलोकन करने की शक्ति न्यायालय को प्रदान की जाती है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 114 और आदेश 47 निर्णय का पुनर्विलोकन करने का अधिकार प्रदान करती है। धारा 114 केवल निर्णय का पुनर्विलोकन करने का अधिकार प्रदान करती है और सीपीसी का आदेश 47 प्रतिबंध और शर्तें प्रदान करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 ने सर्वोच्च न्यायालय को अपने स्वयं के आदेशों और निर्णयों का पुनर्विलोकन करने की अनुमति दी। इस शक्ति के पीछे का उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है। यह ठीक ही कहा गया है कि “कानून को न्याय के सामने झुकना पड़ता है”।

एंडनोट्स

  • Usha Rani Banik v. Hardas, AIR 2005 Gau 1.
  • Lily Thomas v. Union of India, AIR 2000 SC 1650 (1665) : (2000) 6 SCC 224 : 2000 CrLJ 2433.
  • Soumitra Panda v. A.K. Agarwal, AIR 1994 Cal 165.
  • Moran M.B. Catholicos v. Mar Poulose AIR 1954 SC 526 : (1955) 1 SCR 520 : (1954) TC 867: 1954 KLT 385

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