यह लेख, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ लॉ की छात्रा Richa Singh के द्वारा लिखा गया है। इस लेख मे उनके द्वारा चिकित्सकीय लापरवाही (मेडिकल नेगलिजेंस) के सभी कानूनी पहलुओं, शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया और चिकित्सकीय लापरवाही के परिणामों को शामिल किया गया है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।
Table of Contents
परिचय
चिकित्सकीय लापरवाही हाल के वर्षों में देश में गंभीर मुद्दों में से एक बन गई है। यहां तक कि चिकित्सा पेशा, जिसे सबसे महान व्यवसायों में से एक के रूप में जाना जाता है, लापरवाही से अप्रभावित नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर रोगी की मृत्यु हो जाती है या कोई ऐसी पूर्ण या आंशिक हानि या कोई अन्य परेशानी हो जाती है, जिसका रोगी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां कम पढ़े लिखे डॉक्टरों द्वारा दिखाए गए लापरवाही या अपने द्वारा जानबूझकर किए गए कार्य की भयावहता (मैग्नीट्यूड) के कारण, वह कानून की अदालत में कार्यवाही का सामना करते हैं।
भारत में हर साल लगभग 52 लाख चिकित्सा हानि दर्ज की जाती हैं, जिनमें से देश में 98,000 लोग एक साल में चिकित्सकीय लापरवाही के कारण अपनी जान गंवाते हैं। यह वास्तव में पूरे देश के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है कि इस चिकित्सा त्रुटि के कारण, देश में हर मिनट 10 लोग चिकित्सकीय लापरवाही का शिकार होते हैं और इस कारण से देश में हर घंटे 11 से अधिक लोगों की मौत होती है।
यह कोई आश्चर्य करने की बात नहीं है कि डॉक्टर द्वारा की गई थोड़ी सी भी गलती रोगियों पर जीवन परिवर्तनकारी (लाइफ ऑल्टरिंग) प्रभाव डाल सकती है। इसलिए, ऐसी घटनाओं से बचने के लिए उचित देखभाल करना डॉक्टर का कर्तव्य है।
चिकित्सकीय लापरवाही
स्वास्थ्य के पेशे में गलती या लापरवाही के परिणामस्वरूप मामूली चोट लग सकती है या कुछ गंभीर चोटें भी लग सकती हैं और इन गलतियों से मृत्यु भी हो सकती है। चूँकि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से सही नहीं है, इसलिए एक व्यक्ति जो कुशल है और किसी विशेष विषय का ज्ञान रखता है, वह भी उस विषय मे गलतियाँ कर सकता है। गलती करना मानवीय होता है लेकिन अपनी लापरवाही के कारण उसी गलती को दोहराना, लापरवाही होती है।
चिकित्सकीय लापरवाही के पीछे सबसे मूल कारण यह है कि डॉक्टरों या चिकित्सा पेशेवरों की लापरवाही का पता अक्सर विभिन्न मामलों में लगाया जाता है, जहां निदान (डायग्नोसिस) के दौरान, ऑपरेशन के दौरान, एनेस्थीशिया का इंजेक्शन लगाने आदि के दौरान उचित देखभाल नहीं की जाती है।
चिकित्सकीय लापरवाही की परिभाषा
हम ‘चिकित्सकीय लापरवाही’ को एक चिकित्सक द्वारा रोगी के अनुचित या अकुशल (अनस्किल्ड) उपचार के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। इसमें नर्स, चिकित्सक, सर्जन, फार्मासिस्ट, या किसी अन्य चिकित्सक की देखभाल में लापरवाही शामिल हो सकती है। चिकित्सक लापरवाही ‘चिकित्सीय कदाचार (मैलप्रैक्टिसेस)’ की ओर ले जाती है, जहां पीड़ितों को डॉक्टर या किसी अन्य चिकित्सक या स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर द्वारा दिए गए उपचार से किसी प्रकार की चोट लगती है।
चिकित्सकीय लापरवाही के उदाहरण
चिकित्सकीय लापरवाही के कुछ उदाहरण है, जो की इस प्रकार हैं:
- पीड़ितो को अनुचित रूप से दवाओं का सेवन करवाना।
- गलत या अनुचित प्रकार की सर्जरी करना।
- उचित चिकित्सकीय सलाह न देना।
- सर्जरी के बाद रोगी के शरीर में कोई बाहरी वस्तु जैसे स्पंज या पट्टी आदि छोड़ देना।
चिकित्सकीय लापरवाही के अंतर्गत क्या नहीं आता है
एक डॉक्टर उन सभी मामलों में उत्तरदायी नहीं होता है जहां एक मरीज को चोट लगती है। उसके पास एक वैध बचाव हो सकता है कि उसने देखभाल के कर्तव्य का उल्लंघन नहीं किया है।
निर्णय की त्रुटि दो प्रकार की हो सकती है:
- निर्णय की त्रुटि – ऐसे मामलों में, यह माना जाता है कि इसके कारण कर्तव्य का उल्लंघन नहीं होता है। केवल इसलिए कि एक डॉक्टर का निर्णय गलत निकला था, हम उसे चिकित्सकीय लापरवाही के लिए उत्तरदायी नहीं बना सकते है।
- लापरवाही के कारण निर्णय की त्रुटि – यदि किसी निर्णय पर आने से पहले सभी कारकों पर विचार किया जाता है, तो इसे लापरवाही के कारण निर्णय की त्रुटि कहा जाएगा। यह कर्तव्य का उल्लंघन होता है।
चिकित्सकीय लापरवाही के प्रकार
चिकित्सकीय लापरवाही विभिन्न तरीकों से हो सकती है। आम तौर पर, यह तब होती है जब एक चिकित्सकीय पेशेवर आवश्यक देखभाल के मानक से विचलित (डिविएट) हो जाता है।
इसलिए, हम कह सकते हैं कि दवा और देखभाल के स्वीकृत मानकों से किसी भी प्रकार के विचलन को चिकित्सकीय लापरवाही माना जाता है और यदि इससे किसी मरीज को चोट लगती है तो उसका ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर, अन्य स्टाफ और/या अस्पताल को इस लापरवाही के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
चिकित्सकीय लापरवाही की कुछ सामान्य श्रेणियां इस प्रकार हैं:
- गलत निदान- जब कोई व्यक्ती अस्पताल, क्लिनिक या चिकित्सा कक्ष आदि में जाता है, तो प्रवेश के बाद पहला कदम डॉक्टर द्वारा निदान होता है। किसी भी रोगी को चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए उसकी बीमारी के लक्षणों का सही निदान करना महत्वपूर्ण और आवश्यक होता है। हालांकि, यदि निदान में किसी भी गलती के कारण रोगी का ठीक से इलाज नहीं किया जाता है, तो गलत निदान के परिणामस्वरूप होने वाली किसी भी चोट या क्षति के लिए डॉक्टर को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- निदान में देरी- एक विलंबित निदान को चिकित्सकीय लापरवाही के रूप में माना जाता है यदि कोई अन्य चिकित्सक समय पर उसी स्थिति का यथोचित (रीजनेबल) निदान करता है। निदान में देरी से रोगी को अनुचित चोट लग सकती है, यदि मरीज को हुई बीमारी या चोट का इलाज करने के बजाय, उसे समय के साथ खराब होने के लिए छोड़ दिया जाता है। जाहिर है, किसी चोट की पहचान और उपचार में किसी भी तरह की देरी के कारण मरीज के ठीक होने की संभावना कम हो सकती है।
- सर्जरी में त्रुटि- सर्जिकल ऑपरेशन के लिए बहुत अधिक कौशल (स्किल) की आवश्यकता होती है और इसे उचित देखभाल और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए क्योंकि थोड़ी सी भी गलती रोगी पर बहुत गहरा प्रभाव डाल सकती है। गलत जगह पर की गई सर्जरी, व्यक्ति के किसी भी आंतरिक (इंटरनल) अंग का टूटना, गंभीर रक्त की हानि, या रोगी के शरीर में कोई बाहरी वस्तु छोड़ जाना, यह सब सर्जिकल त्रुटि के अंतर्गत आता है।
- अनावश्यक सर्जरी – अनावश्यक सर्जरी आमतौर पर रोगी के लक्षणों के गलत निदान या अन्य विकल्पों या जोखिमों पर उचित विचार किए बिना चिकित्सा निर्णय से जुड़ी होती है। वैकल्पिक रूप से, कभी-कभी सर्जरी को अन्य विकल्पों की तुलना में, उनकी समीचीनता (एक्सपीडिएंसी) और आसानी के लिए पारंपरिक उपचारों पर चुना जाता है।
- एनेस्थीशिया के प्रशासन में त्रुटियां- एनेस्थीशिया किसी भी प्रमुख चिकित्सा ऑपरेशन का एक जोखिम भरा हिस्सा है और रोगी पर इसके प्रभाव को प्रशासित करने और निगरानी करने के लिए एक विशेषज्ञ (एनेस्थीशियोलॉजिस्ट) की आवश्यकता होती है। एनेस्थीशिया की आवश्यकता वाली किसी भी चिकित्सा प्रक्रिया से पहले, एनेस्थीशियोलॉजिस्ट को उपयोग की जाने वाली सभी दवाओं में से सबसे उपयुक्त निर्धारित करने के लिए रोगी की स्थिति, इतिहास, दवाओं आदि की समीक्षा (रिव्यू) करनी होती है। एनेस्थीशिया के संबंध में कदाचार, ऑपरेशन के पहले चिकित्सा समीक्षा के दौरान या प्रक्रिया के दौरान भी हो सकता है।
- प्रसव (चाइल्ड बर्थ) और प्रसव पीड़ा (लेबर) कदाचार – प्रसव, एक महिला के लिए एक कठिन घटना है और अगर डॉक्टरों और नर्सों द्वारा ठीक से इसका इलाज नहीं किया जाता है तो यह और भी खराब हो जाता है। बच्चे के जन्म के दौरान चिकित्सकीय लापरवाही के कई उदाहरण होते हैं, जिनमें एक कठिन जन्म को गलत तरीके से संभालना, प्रेरित प्रसव पीड़ा के साथ जटिलताएं (कॉम्प्लिकेशंस), नवजात शिशु की चिकित्सा स्थिति का गलत निदान आदि शामिल हो सकते हैं।
- लंबे समय तक लापरवाही से इलाज- लंबी उपचार अवधि के दौरान चिकित्सकीय लापरवाही सूक्ष्म (सटल) तरीकों से भी हो सकती है। आमतौर पर, लापरवाही, उपचार का पालन करने में विफलता या उपचार के प्रभावों की ठीक से निगरानी करने में डॉक्टर की विफलता का रूप ले सकती है।
चिकित्सकीय लापरवाही की अनिवार्यता
‘चिकित्सकीय लापरवाही’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – चिकित्सा और लापरवाही। लापरवाही केवल उचित देखभाल करने में विफलता है। चिकित्सकीय लापरवाही इससे अलग नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि चिकित्सकीय लापरवाही के मामले में डॉक्टर ही प्रतिवादी होता है।
लापरवाही के लिए कार्रवाई में, निम्नलिखित आवश्यक तत्व होते हैं:
- प्रतिवादी का वादी के प्रति देखभाल का कर्तव्य था।
- प्रतिवादी ने उस कर्तव्य का उल्लंघन किया था।
- उस उल्लंघन के परिणामस्वरूप वादी को नुकसान हुआ था।
एक डॉक्टर अपने रोगियों की देखभाल के लिए कुछ कर्तव्य रखता है, वे इस प्रकार हैं:
- यह तय करना उसका कर्तव्य है कि वह मामला लेना चाहता है या नहीं,
- यह तय करना उसका कर्तव्य है कि क्या उपचार दिया जाना चाहिए या नहीं और;
- उपचार के प्रशासन को तय करना उसका कर्तव्य होता है।
यदि कोई डॉक्टर उपरोक्त कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहता है तो इसका परिणाम कर्तव्य का उल्लंघन होता है और रोगी को कार्रवाई का अधिकार देता है। एक डॉक्टर द्वारा कर्तव्य का उल्लंघन तब किया जाता है जब वह एक उचित डॉक्टर की तरह देखभाल नहीं करता है।
कुसुम शर्मा बनाम बत्रा अस्पताल के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह आयोजित किया गया था कि एक डॉक्टर अक्सर एक ऐसी प्रक्रिया अपनाता है जिसमें जोखिम का एक उच्च तत्व शामिल होता है, लेकिन ऐसा करने में वह ईमानदारी से मानता है कि यह रोगी की बीमारी को सफलता की अधिक संभावना प्रदान करेगा। यदि किसी डॉक्टर ने रोगी को उसकी पीड़ा से छुड़ाने के लिए अधिक जोखिम उठाया है और यह वांछित परिणाम नहीं देता है, तो यह चिकित्सकीय लापरवाही नहीं हो सकती है।
जसबीर कौर बनाम पंजाब राज्य के मामले में एक नवजात शिशु अस्पताल में बिस्तर से गायब पाया गया था। फिर वह बच्चा खून से लथपथ और बाथरूम के वॉशबेसिन के पास पाया गया था। अस्पताल के अधिकारियों ने तर्क दिया कि बच्चे को एक बिल्ली ने ले लिया था, जिससे उसे नुकसान हुआ था। अदालत ने यह माना कि अस्पताल के अधिकारियों ने लापरवाही की थी और उचित देखभाल और एहतियात (प्रीकॉशन) नहीं बरती थी। इस प्रकार, उन्हे 1 लाख रुपये के मुआवजे की राशि प्रदान की गई थी।
देखभाल का मानक (स्टैंडर्ड ऑफ़ केयर)
देखभाल का एक मानक आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त उपचार और दवा प्रक्रिया को निर्दिष्ट करता है, जिसे एक चिकित्सक द्वारा अपने रोगियों को उपचार प्रदान करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए। देखभाल न तो उच्चतम डिग्री की होनी चाहिए और न ही निम्नतम डिग्री की होनी चाहिए।
यहां, डिग्री का अर्थ है एक ही समुदाय में समान परिस्थितियों में देखभाल का स्तर, जो एक सामान्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर, समान प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) और अनुभव के साथ रोगियों को प्रदान कर सकता है। चिकित्सीय कदाचार के मामलों में यह महत्वपूर्ण प्रश्न है और यदि उत्तर “नहीं” है और खराब उपचार के परिणामस्वरूप आपको चोट लगीती है, तो आप चिकित्सीय कदाचार के लिए मुकदमा दायर कर सकते हैं।
डॉ. लक्ष्मण बालकृष्ण जोशी बनाम. डॉ त्र्यंबक बापू गोडबोले और अन्य के मामले मे सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि एक डॉक्टर के कुछ पूर्वोक्त (एफोरसेड) कर्तव्य हैं और उनमें से किसी भी कर्तव्य का उल्लंघन उसे चिकित्सकीय लापरवाही के लिए उत्तरदायी बना सकता है। एक डॉक्टर को इस पेशे के लिए निर्धारित उचित देखभाल करने की आवश्यकता होती है।
देखभाल का कर्तव्य
चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में, देखभाल का कर्तव्य एक पक्ष (डॉक्टर) पर दूसरे पक्ष (रोगी) को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए, उसकी देखभाल करने का दायित्व होता है। आम तौर पर, डॉक्टरों का दायित्व यह होता है कि वे अपने मरीजों की देखभाल करें।
देखभाल के कर्तव्य को स्थापित करने के लिए कुछ आवश्यकताएं होती हैं। वे इस प्रकार हैं:
- एक चिकित्सक को सभी की देख भाल करने के लिए नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जब वह किसी रोगी का मामला ले रहा हो तो उसे उचित देखभाल के साथ और देखभाल के निर्धारित मानक के अनुसार इसका इलाज करना चाहिए। एक अतिरिक्त स्वास्थ्य व्यवसायी के प्रदाता की तलाश करने के लिए एक मरीज को निर्धारित करने वाला डॉक्टर या नैदानिक व्यवसायी स्वीकार्य है। हालांकि, जब कोई आपात स्थिति होती है, तो एक चिकित्सक को रोगी का इलाज करना चाहिए। कोई भी स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर तुरंत मामले से निपटने का विरोध नहीं कर सकता जब तक कि यह उसकी विशेषज्ञता के क्षेत्र से बाहर न हो।
- चिकित्सक को रोगी की स्थिति की गंभीरता का कभी भी खिंचाव या कम नहीं करना चाहिए। उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि वह व्यक्ति जिस प्रकार की बीमारी से पीड़ित है, उसे देखते हुए वह रोगी को उचित उपचार देता है।
- एक डॉक्टर को धैर्य रखना चाहिए क्योंकि वह इसके बिना किसी व्यक्ति का इलाज नहीं कर सकता है। रोगी के विवरण की गोपनीयता (कॉन्फिडेंशियलिटी) गुप्त रखी जानी चाहिए। हालाँकि, कुछ मामलों में, वह विवरण प्रकट कर सकता है यदि उसे लगता है कि ऐसा करना उसका कर्तव्य है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बीमारी फैल रही है और लोगों के लिए वह खतरनाक है, तो वह इसके बारे में अन्य लोगो को बता सकता है और दूसरों को इसके बारे में सचेत कर सकता है।
- एक चिकित्सक या डॉक्टर यह चुनने के लिए स्वतंत्र है कि वह किसका इलाज करना चाहता है लेकिन आपात स्थिति में वह रोगी का इलाज करने से इनकार नहीं कर सकता है। लेकिन एक मामला लेने के बाद, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर पीड़ित के परिवार के सदस्यों को सूचित किए बिना मामले से पीछे नहीं हट सकता है। अस्थायी रूप से या पूरी तरह से पंजीकृत (रजिस्टर्ड) चिकित्सक को अपनी इच्छा से लापरवाही का ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जो उसके रोगियों को देखभाल के मानक से वंचित करता हो।
- जब एक चिकित्सक जो किसी विशेष समस्या से निपटता है और उस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखता है, वह तब अनुपलब्ध है और उस रोगी को दूसरे चिकित्सक के पास इलाज के लिए भेजा जाता है, तो कार्यवाहक (एक्टिंग) डॉक्टर अपने शुल्क प्राप्त करने का हकदार है, लेकिन उसे चिकित्सक के संलग्न (इंगेज) होने पर मरीज की स्वीकृति या इलाज से इनकार करने की अनुमति को सुनिश्चित करना चाहिए।
सबूत का बोझ (बर्डन ऑफ़ प्रूफ)
लापरवाही के सबूत का बोझ आम तौर पर शिकायतकर्ता के पास होता है। किसी भी डॉक्टर के खिलाफ लापरवाही के आरोप का समर्थन करने के लिए कानून को उच्च स्तर के साक्ष्य की आवश्यकता होती है। चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में, रोगी को सफल होने के लिए डॉक्टर के खिलाफ दावा स्थापित करना चाहिए।
कलकत्ता मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाम बिमलेश चटर्जी के मामले में, न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि लापरवाही का सबूत और सेवा में कमी के खिलाफ सबूत साबित करने की जिम्मेदारी शिकायतकर्ता पर स्पष्ट रूप से थी।
लापरवाही का सबूत
चिकित्सक पर चिकित्सकीय लापरवाही का आरोप लगाने के लिए, विभिन्न निर्णयों में यह आयोजित किया गया है, कि सबूत का बोझ उस व्यक्ति पर होता है जो अपने (रोगी) खिलाफ लापरवाही होने का आरोप लगाता है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि विशेषज्ञों के साथ भी चीजें गलत हो सकती हैं। और अपराध या लापरवाही को तभी स्थापित किया जा सकता है जब उसके कार्य देखभाल के मानक से नीचे आते हैं, जिसे उसे लेना चाहिए था।
चिकित्सीय कदाचार के दावे को साबित करने के लिए जरूरी कदम
- पहली चीज जो आपको साबित करने की जरूरत होती है वह यह होती है कि डॉक्टर-रोगी संबंध मौजूद है। चिकित्सकीय लापरवाही साबित करने के लिए यह सबसे आसान कदम होता है।
- अगली चीज़ जो आपको करनी चाहिए वह यह साबित करना है कि आपका डॉक्टर इस पेशे के लिए एक दायित्व के रूप में आवश्यक निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करता है।
- फिर अपको साबित करना चाहिए कि उस चिकित्सकीय लापरवाही के परिणामस्वरूप आपको चोट लगी है।
- नुकसान का प्रमाण प्रस्तुत किया जाना चाहिए और इसमें डॉक्टर के लापरवाह व्यवहार के कारण आपको हुए सभी नुकसान शामिल होते हैं।
- चिकित्सकीय लापरवाही के विरुद्ध दावे में सफल होने के लिए उपरोक्त सभी तत्वों को सिद्ध किया जाना चाहिए।
दायित्व कब उत्पन्न होता है
आम तौर पर, डॉक्टर का दायित्व तब उत्पन्न होता है जब डॉक्टर के खराब आचरण, जो देखभाल के उचित मानक से काफी नीचे था, के कारण रोगी को चोट लगती है। इसलिए, रोगी को यह स्थापित करना चाहिए कि एक कर्तव्य मौजूद है जिसका डॉक्टर को पालन करने की आवश्यकता होती है और फिर अगला कदम कर्तव्य का उल्लंघन साबित करना होता है।
आम तौर पर दायित्व तभी उत्पन्न होता है जब शिकायतकर्ता लापरवाही साबित करने के लिए उस पर बोझ का निर्वहन (डिसचार्ज) करने के लिए तैयार होता है। हालांकि, कुछ मामलों में “रेस इप्सा लोक्विटर” का सिद्धांत, जिसका अर्थ है कि बात खुद के लिए बोलती है, कार्रवाई में आ सकती है। अधिकतर डॉक्टर केवल अपने स्वयं के कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं, लेकिन कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें एक डॉक्टर को दूसरे के कार्यों के लिए वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी भी बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब एक जूनियर डॉक्टर वरिष्ठ डॉक्टर के लिए काम कर रहा होता है, तो वह गलती करता है, तो यह वरिष्ठ की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह उसे उत्तरदायी बना दे।
रेस इप्सा लोक्विटर
लैटिन कहावत “रेस इप्सा लोक्विटर” का अर्थ है कि “चीजे अपने लिए बोलती है।”
चिकित्सीय कदाचार के संदर्भ में, यह उन मामलों को संदर्भित करता है जहां डॉक्टर का उपचार देखभाल के निर्धारित मानकों से काफी नीचे था, जिसके तहत लापरवाही की जाती है।
यह सिद्धांत निम्नलिखित मानता है:
- चोट की प्रकृति यह संकेत देती है कि लापरवाही के बिना, यह कार्य नहीं हो सकता था।
- चोट में खुद मरीज का किसी भी तरह से कोई हाथ नहीं था।
- चोट उन परिस्थितियों में हुई थी जो डॉक्टर की देखरेख और नियंत्रण में थीं।
इसका मतलब यह है कि इस सिद्धांत को लागू करके न्यायाधीश ने स्वीकार किया है कि लापरवाही हुई है। इसके बाद डॉक्टर को इस बात का खंडन करना होगा और अगर वह ऐसा करने में विफल रहता है तो मरीज को चिकित्सकीय लापरवाही के मामले में सफल माना जाएगा।
एक रेस इप्सा लोक्विटर के मामले को कैसे साबित किया जा सकता है
घायल पक्ष को यह साबित करना होता है कि चिकित्सक द्वारा देखभाल के निर्धारित मानकों का पालन करने में विफल रहने के कारण चिकित्सक के द्वारा देखभाल के कर्तव्य का उल्लंघन किया गया है। उल्लंघन एक विशेषज्ञ के सत्यापन (अटेस्टेशन) द्वारा प्रदर्शित किया जाना चाहिए। रेस इप्सा लोक्विटर के लापरवाही के मामलों में देखभाल के मानक के बारे में विशेषज्ञ घोषणा की वास्तव में आवश्यकता नहीं होती है।
एक रेस इप्सा मामले को साबित करने के लिए, निम्नलिखित किया जाना चाहिए:
- यह सभी को पता है कि अगर कोई मामला ऐसा लगता है कि डॉक्टर की लापरवाही के बिना यह कभी नहीं हो सकता था, तो यह सीधे तौर पर साबित करता है कि यह रेस इप्सा लोक्विटर के मामलों की श्रेणी में आता है।
- जिस उपकरण या उपचार के तरीके से क्षति हुई थी, वह हर समय डॉक्टर के नियंत्रण में था।
- चोट वह थी जिसे घायल व्यक्ति स्वेच्छा से नहीं लगा सकता था।
रेस इप्सा लोक्विटर के चिकित्सक मामलो के कुछ उदाहरण
रेस इप्सा मामलों के कुछ सामान्य परिदृश्य (सिनेरियो) नीचे दिए गए हैं:
- सर्जरी के बाद रोगी के शरीर के अंदर कोई बाहरी वस्तु छोड़ देना।
- यदि किसी गलत मरीज का ऑपरेशन हो जाता है।
- यदि रोगी के गलत अंग का ऑपरेशन हो जाता है।
शिकायत दर्ज करना
एक महान पेशे में होने के कारण व्यवसायी को उचित मात्रा में कौशल करनी चाहिए और उचित मात्रा में देखभाल करनी चाहिए। कानून को न तो बहुत उच्चतम और न ही बहुत कम देखभाल और कौशल की आवश्यकता होती है और यह अलग- अलग मामलों के लिए अलग होता है। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
चिकित्सकीय लापरवाही की शिकायत
शिकायत, एक शिकायतकर्ता द्वारा लगाया गया आरोप है। यह लिखित रूप में होती है। इसमें बयान और कुछ महत्वपूर्ण तथ्य शामिल होते हैं जो एक मामले को स्थापित करने के लिए होते हैं कि किसी उपभोक्ता को किसी सेवा की कमी के कारण नुकसान या क्षति हुई है।
शिकायत दर्ज करने में शामिल लागत क्या है?
चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों के लिए जिला उपभोक्ता निवारण मंच के समक्ष शिकायत दर्ज करने के लिए न्यूनतम शुल्क की आवश्यकता होती है।
दायित्व का न्यायनिर्णयन (एडज्यूडिकेशन)
जब चिकित्सकीय लापरवाही के खिलाफ शिकायत दर्ज की जाती है, तो फोरम के द्वारा शिकायत को स्वीकार करने के 30 दिनों के भीतर विरोधी पक्ष को मामले का अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक नोटिस भेजा जाता है। उचित जांच करने के बाद फोरम या तो हलफनामा (एफिडेविट) दाखिल करने के लिए कहेगा या न्यायिक मिसालों (प्रीसिडेंट), विशेषज्ञ राय आदि के रूप में सबूत पेश करने के लिए कहेगा।
चिकित्सकीय लापरवाही के मामले के तहत पालन करने के लिए कदम
- शिकायत राज्य चिकित्सा परिषद (काउंसिल) में दर्ज होनी चाहिए – यदि आप चिकित्सकीय लापरवाही के शिकार हैं तो पहला आवश्यक कदम राज्य चिकित्सा परिषद में डॉक्टर के खिलाफ शिकायत दर्ज करना है। शिकायत राज्य उपभोक्ता अदालत में दायर की जा सकती है और डॉक्टर या अस्पताल के अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी लाया जा सकता है।
- यदि शिकायत दर्ज करने के पीछे मुख्य उद्देश्य मौद्रिक मुआवजे की मांग करना है तो मामले को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज की जानी चाहिए।
- यदि यह दुर्लभतम (रेयर) चिकित्सकीय लापरवाही का मामला है तो उपभोक्ता अदालतें डॉक्टर के लाइसेंस को रद्द कर सकती हैं।
- मरीज-वकील के पास जाएँ – दूसरा कदम जो चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में बहुत उपयोगी साबित होता है, वह मरीज का एक वकील के पास जाना है।
यदि चिकित्सक की ओर से कोई कर्तव्य भंग होता है तो रोगी के मन में इस तस्वीर को साफ कर मामले को सुलझाने के लिए, एक वकील आवश्यक कदम उठाने के लिए कह सकता है।
मरीज-वकील ऐसे मामलों में भी रोगी की मदद कर सकते हैं यदि चिकित्सकीय लापरवाही के कारण कुछ मुआवजा दिया जाना चाहिए।
चरण दर चरण प्रक्रिया
निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
- स्थानीय पुलिस और राज्य चिकित्सा परिषद में शिकायत दर्ज की जानी चाहिए।
- यदि यह केवल पुलिस के पास दर्ज है, तो पुलिस राज्य चिकित्सा परिषद को रिपोर्ट भेज सकती है।
- यदि रिपोर्ट परिषद को उपयुक्त लगती है तो वह इसे संबंधित धाराओं के तहत विभिन्न अन्य अदालतों में भेज देगी।
- यदि मामला आपराधिक प्रकृति का है तो यह राज्य बनाम अस्पताल या डॉक्टर के खिलाफ होगा।
- यदि परिषद को लगता है कि मामला गंभीर है और रोगी के जीवन के लिए खतरा है तो वह प्रासंगिक अवधि के लिए डॉक्टर के लाइसेंस को भी रद्द कर सकता है।
- यदि परिषद उसे दोषी पाती है तो मामले के तथ्य और परिस्थितियाँ डॉक्टर को दी जाने वाली सजा तय करेंगी।
- अगर मरीज अभी भी फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वह भारतीय चिकित्सा परिषद (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) में अपील कर सकता है।
- उपभोक्ता अदालतें मौद्रिक (मॉनेटरी) मुआवजे की मांग में मरीज की मदद कर सकती हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि उपभोक्ता अदालतें आपको केवल मुआवजा ही प्रदान कर सकती हैं लेकिन यह दोषियों को दंडित नहीं कर सकती हैं।
- यदि शिकायतकर्ता अभी भी संतुष्ट नहीं है तो वह राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन) से संपर्क कर सकता है।
चिकित्सकीय लापरवाही से संबंधित साक्ष्यों का संग्रहण (कलेक्शन)
साक्ष्य का संग्रह इस तरह से होना चाहिए:
- सभी चिकित्सक रिकॉर्ड लिए जाने चाहिए।
- भारतीय चिकित्सा परिषद के दिशा-निर्देशों के अनुसार, मरीज को नियुक्ति की तारीख और समय से 72 घंटे के भीतर सभी मेडिकल रिकॉर्ड मिल जाने चाहिए।
चिकित्सकीय लापरवाही से पीड़ित लोगों के सामने चुनौतियां
चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में शिकायतकर्ता के सामने निम्नलीखित कुछ चुनौतियाँ होती हैं:
- चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों को तय करने में समय लगता है। इसलिए, कभी-कभी यह शिकायतकर्ता के मनोबल को कम कर देता है।
- कभी-कभी, अस्पताल की प्रतिष्ठा के कारण, डॉक्टर के पास मामले को जीतने की संभावना अधिक हो जाती है।
- कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें डॉक्टर को पहले से ही पता होता है कि उन्होंने लापरवाही की है, इसलिए वे सभी आवश्यक सबूत हटा देते हैं जो शिकायतकर्ता के लिए समस्या पैदा करते हैं।
- आपको अपनी बीमा पॉलिसी की सीमाओं के बारे में जानने की जरूरत होती है क्योंकि कभी-कभी बीमा कंपनी खुद ही मामले को खारिज कर देती है।
चिकित्सकीय लापरवाही निर्धारित करने के लिए आवश्यक परीक्षण (टेस्ट)
इस परीक्षण का नाम कस्टम परीक्षण है।
- इस परीक्षण में यह साबित करना होता है कि अस्पताल या उसके किसी कर्मचारी ने अपने कर्तव्यों का पालन करने में लापरवाही नहीं की थी।
- अगली बात जो साबित की जानी चाहिए वह यह है कि संबंधित चिकित्सक द्वारा अपनाई गई विधि नैतिक नहीं थी।
- ज्यादातर मामलों में, सबूत का बोझ शिकायतकर्ता पर होता है, लेकिन कभी-कभी यह डॉक्टर के पास स्थानांतरित (शिफ्ट) हो जाता है यदि उसकी ओर से उचित प्रबंधन (मैनेजमेंट) नहीं किया जाता है।
आपराधिक अदालत में चिकित्सकीय लापरवाही की शिकायत
यदि एच.आई.वी., एच.बी.एस.ए.जी. आदि किसी अस्पताल या डॉक्टर के कारण संक्रमित (ट्रांसमिट) हो जाते हैं, तो कई मामलों में अस्पतालों पर लापरवाही का आरोप लगाया जाता है। इसलिए, यदि कोई अपने चिकित्सक की देखरेख में उपचार के दौरान इस तरह की बीमारी विकसित करता है और यह साबित हो जाता है कि यह अस्पताल की ओर से लापरवाह और असावधान व्यवहार के कारण हुआ है, तो अस्पताल को देखभाल के लिए कर्तव्य और देखभाल के मानक के रूप में उन्हें दिए गए उचित मानकों पर विचार करने में विफल रहने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
हालांकि, अगर मकसद या इरादा, अपराध की भयावहता (मैग्निट्यूड) और आरोपी के चरित्र जैसे तत्वों को स्थापित किया जाता है, तो यह उसे आपराधिक कानून के तहत उत्तरदायी बनाता है।
प्रावधान
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 304 A के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जल्दबाजी में या लापरवाही से कोई काम करता है, जो गैर इरादतन हत्या (कल्पेबल होमिसाइड) की श्रेणी में आता है, तो उस व्यक्ति को दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 337 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जल्दबाजी या लापरवाही से कोई कार्य करता है जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा होता है, तो उस व्यक्ति को कारावास से, जिसकी अवधि छह माह तक की हो सकती है, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकता है, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 338 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जल्दबाजी या लापरवाही का कार्य करता है, जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा होता है तो उस व्यक्ति को कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकती है या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकता है, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
बचाव (डिफेंस) के लिए प्रावधान
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 80 के तहत कहा गया है कि जो कुछ भी कार्य दुर्घटना या दुर्भाग्य के परिणामस्वरूप होता है और बिना किसी आपराधिक इरादे या ज्ञान के होता है, वैध उद्देश्य से और वैध तरीको के द्वारा होता है और उचित देखभाल और सावधानी के साथ होता है, वह कोई अपराध नहीं है।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 81 के तहत कहा गया है कि यदि कोई कार्य केवल इस कारण से किया जाता है कि इससे नुकसान होने की संभावना है, लेकिन यदि वह किसी व्यक्ति या उसकी संपत्ति को अन्य नुकसान से बचाने के लिए नुकसान पहुंचाने के इरादे के बिना और सद्भाव (गुड फेथ) में किया जाता है तो वह कार्य कोई अपराध नहीं है।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 88 के तहत कहा गया है कि किसी को भी किसी भी अपराध का आरोपी नहीं बनाया जा सकता है यदि वह अन्य लोगों की भलाई के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है और जोखिम होने पर भी नुकसान पहुंचाने का इरादा नहीं रखता है और जिसके लिए रोगी ने स्पष्ट रूप से या परोक्ष (इंप्लीसिट) रूप से सहमति दी है।
विशेषज्ञ की राय
आयोग खुद को एक विशेषज्ञ निकाय में गठित नहीं कर सकता है और डॉक्टर के बयान का खंडन नहीं कर सकता है जब तक कि किसी विशेषज्ञ की राय के माध्यम से रिकॉर्ड के विपरीत कुछ न साबित हो या, यदि कोई चिकित्सा लेखन (मेडिकल राइटिंग) है जिस पर भरोसा किया जा सकता है, तो बयान प्राथमिक रूप से आधारित हो सकता है।
चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है इसलिए ऐसे मामलों में विशेषज्ञ की राय महत्वपूर्ण होती है।
सिविल मामलों में चिकित्सकीय लापरवाही की शिकायत
- सिविल कानून के तहत लापरवाही से संबंधित स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें विभिन्न तत्व शामिल होते हैं।
- टॉर्ट कानून या सिविल कानून के तहत, यह सिद्धांत लागू होता है, भले ही डॉक्टर मुफ्त सेवाएं प्रदान करें। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि जहां उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (सी.पी.ए.) समाप्त होता है, वहां टॉर्ट कानून शुरू होता है।
- ऐसे मामलों में जहां डॉक्टर या अस्पताल द्वारा दी जाने वाली सेवाएं सी.पी.ए. के तहत ‘सेवाओं’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती हैं, तो मरीज टॉर्ट कानून के तहत मुआवजे का दावा कर सकते हैं।
- सबूत का भार (बोझ) रोगी पर होता है और उसे यह साबित करने की आवश्यकता होती है कि डॉक्टर के कार्यों के कारण उसे चोट लगी है।
मुआवजे का दावा
सिविल दायित्व में, मुआवजे के रूप में नुकसान का दावा किया जाता है। यदि ऑपरेशन के दौरान या अस्पताल या किसी डॉक्टर की देखरेख में देखभाल के कर्तव्य का उल्लंघन होता है। वे इस तरह के गलत किए जाने के लिए प्रतिवर्ती (वाइकेरियस) रूप से उत्तरदायी होते हैं और मुआवजे के रूप में हर्जाने का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
अगर कोई व्यक्ति एक अस्पताल में कर्मचारी है और वह कर्मचारी लापरवाही से किसी मरीज को नुकसान पहुंचाता है, तो यह अस्पताल की जिम्मेदारी होती है।
श्री एम रमेश रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में, अस्पताल के अधिकारियों को बाथरूम को साफ नहीं रखने के लिए लापरवाही माना गया था, जिसके कारण एक प्रसूति (ओब्सटेट्रिक्स) का रोगी बाथरूम में गिर गया था और उसमें मृत्यु हो गई थी। अस्पताल के खिलाफ जो मुआवजे की राशि दी गई थी, वह 1 लाख रुपए की थी।
उपभोक्ता अदालतों में चिकित्सकीय लापरवाही के मामले
सभी चिकित्सा सेवाएं, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में आती हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी.पी. शांता के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद, चिकित्सा पेशे और सेवाओं को इस अधिनियम के दायरे में लाया गया था।
इस मामले में, अदालत के द्वारा चिकित्सकीय लापरवाही के महत्वपूर्ण प्रश्न पर चर्चा की गई थी कि क्या एक चिकित्सक को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(o) के तहत सेवाएं प्रदान करने के लिए कहा जा सकता है।
इस निर्णय में निम्नलिखित बिंदु निर्धारित किए गए थे:
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(o) के तहत चिकित्सा सेवाओं को “सेवाओं” के रूप में माना जाना चाहिए। यह व्यक्तिगत सेवा का अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) नहीं है क्योंकि उनके बीच कोई मालिक-सेवक संबंध नहीं है।
- धारा 2(1)(o) में सेवा का अनुबंध केवल घरेलू नौकरों के रोजगार के अनुबंधों तक ही सीमित नहीं हो सकता है। नियोक्ता (एम्प्लॉयर) को प्रदान की जाने वाली सेवाएं अधिनियम के अंतर्गत शामिल नहीं होती हैं।
- नि:शुल्क चिकित्सा सेवाओं को अधिनियम की धारा 2(1)(o) के दायरे के तहत नहीं माना जाता है।
- चिकित्सा सेवाएं जो स्वतंत्र डॉक्टरों द्वारा प्रदान की जाती हैं और नि: शुल्क होती हैं, वह अधिनियम की धारा 2 (1) (o) के अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) के तहत आती हैं।
- प्रतिफल (कंसीडरेशन) के भुगतान के लिए प्रदान की गई चिकित्सा सेवाएं भी अधिनियम के दायरे के तहत आती हैं।
- एक चिकित्सा सेवा जिसके प्रतिफल का भुगतान किसी तीसरे पक्ष द्वारा किया जाता है, उसे भी इस अधिनियम के दायरे में माना जाता है।
- जिन अस्पतालों में कुछ व्यक्तियों को उनकी अक्षमता या किसी अन्य वित्तीय (फाइनेंशियल) समस्या के कारण शुल्क लेने से छूट दी गई है, उन्हें भी उपभोक्ता के रूप में माना जाएगा।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(o) ‘सेवा की कमी’ को परिभाषित करती है, जिसका अर्थ है किसी भी कानून द्वारा या उसके तहत बनाए रखने के लिए आवश्यक गुणवत्ता (क्वालिटी) या प्रदर्शन के तरीके में कोई दोष, अपूर्णता आदि, जो किसी व्यक्ति द्वारा अनुबंध के अनुसरण (परसुएंस) में या अन्यथा निष्पादित (अंडरटेकन) करने के लिए किया गया है।
उपभोक्ता कौन होता है
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता वह है जो:
- कोई भी सामान खरीदता है या कोई भी सेवा किराए पर लेता है।
- किसी खरीदार या सेवा प्रदान करने के अनुमोदन (अप्रूवल) से माल का उपयोग करता है या किसी सेवा को किराए पर लेता है।
- आजीविका (लाइवलीहुड) कमाने के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करता है।
शिकायत कब दर्ज की जा सकती है
निम्नलिखित मामलों में चिकित्सकीय लापरवाही के बारे में शिकायत दर्ज की जा सकती है:
- डॉक्टर का दायित्व तभी उठता है जब रोगी को उसके लापरवाह या असावधान आचरण के कारण चोट लगती है, जो चिकित्सा पेशे के निर्धारित मानकों के अनुसार उचित नहीं था।
- वह केवल उन परिणामों के लिए उत्तरदायी होता है जो उसके कर्तव्यों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप हुए हैं।
- वादी को कर्तव्य और कार्य-कारण (कॉसेशन) के उल्लंघन को साबित करना होगा।
- यदि कोई भी उल्लंघन नहीं होता है तो न तो चिकित्सक और न ही अस्पताल के अधिकारियों को उत्तरदायी बनाया जा सकता है।
- यदि चोट के संभावित कारण तीसरे पक्ष की लापरवाही, दुर्घटना आदि हैं, तो यह साबित होना चाहिए कि रोगी (वादी) पर सबूत का बोझ लगाने के लिए चोट का सबसे संभावित कारण डॉक्टर की लापरवाही थी।
- कभी-कभी, ‘रेस इप्सा लोक्विटर’ का सिद्धांत जिसका अर्थ है “कोई चीज अपने स्वयं के लिए बोलती है” चलन में आता है। ऐसे में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि डॉक्टर अपने कर्त्तव्य को पूरा करने में लापरवाही बरत रहे हैं। इससे वादी पर लापरवाही साबित करने का भार छूट जाता है।
- आम तौर पर एक व्यक्ति अपने स्वयं के कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है, लेकिन जब प्रतिवर्ती दायित्व की अवधारणा सामने आती है, तब एक डॉक्टर को अन्य व्यक्तियों के कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जो वादी को हुई चोट के लिए जिम्मेदार होते हैं।
शिकायत कौन दर्ज कर सकता है
नीचे उल्लिखित लोग शिकायत दर्ज कर सकता है;
- एक उपभोक्ता या
- कोई भी मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ (कंज्यूमर एसोसिएशन) चाहे उपभोक्ता ऐसे संघ का सदस्य हो या नहीं, या
- केंद्र या राज्य सरकार।
एक “मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ” एक स्वैच्छिक उपभोक्ता संघ है, जो कंपनी अधिनियम, 1956 या उस समय लागू किसी भी अन्य कानून के तहत पंजीकृत (रजिस्टर्ड) है।
फ़ोरम जिसमें कोई व्यक्ति शिकायत दर्ज कर सकता है
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत चिकित्सा लापरवाही के लिए निम्नलिखित फोरम में शिकायत दर्ज की जा सकती है:
फोरम/आयोग | आर्थिक अधिकार क्षेत्र |
जिला फोरम | 20 लाख रुपये से कम |
राज्य आयोग | 20 लाख से ज्यादा लेकिन 1 करोड़ से कम |
राष्ट्रीय आयोग | 1 करोड़ से अधिक |
मुआवजे का दावा
सी.पी.ए. उन मरीजों की मदद नहीं कर पाएगा जिन्होंने डॉक्टर की मुफ्त सेवा ली है या यदि उन्होंने केवल मामूली पंजीकरण शुल्क का भुगतान किया है।
हालांकि, अगर किसी मरीज ने कुछ वित्तीय समस्याओं या भुगतान करने में असमर्थता के कारण भुगतान नहीं किया है, तो वे अभी भी इस अधिनियम के तहत शामिल किए जाएंगे और उन्हें उपभोक्ता माना जाएगा और वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मुकदमा दायर कर सकते हैं।
डॉक्टर द्वारा अपील
जिला फोरम के किसी भी निर्णय के खिलाफ राज्य आयोग के समक्ष अपील दायर की जा सकती है और यदि आप फिर भी संतुष्ट नहीं हैं तो यह राष्ट्रीय आयोग के पास जाता है और अंतिम कदम जो उठाया जा सकता है वह राष्ट्रीय आयोग से सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करना है।
अपील निर्णय की तारीख से 30 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए।
एक डॉक्टर निम्नलिखित मामलों में अपील कर सकता है:
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 80 के अनुसार, यदि दुर्घटना या दुर्भाग्य से कोई भी कार्य होता है और ऐसा करने का कोई इरादा या ज्ञान नहीं था और कार्य वैध था और उचित देखभाल और सावधानी के साथ वैध तरीके से किया जा रहा था, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 81 के अनुसार, यदि कोई भी कार्य इस ज्ञान के साथ किया जाता है कि इससे नुकसान होने की संभावना है और यदि वह किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के इरादे के बिना और किसी व्यक्ति को या उसकी संपत्ति को अन्य किसी नुकसान से बचाने के लिए, सद्भाव में किया जाता है तो उस कार्य को अपराध नहीं माना जाता है।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 88 के अनुसार, किसी ऐसे कार्य के लिए किसी को भी उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है जो किसी के लाभ के लिए सद्भावपूर्वक किया गया हो और जिसमें कोई जोखिम शामिल होने पर भी नुकसान पहुंचाने का इरादा न हो और रोगी ने या तो परोक्ष (इंप्लीसिट) रूप से या स्पष्ट रूप से उस कार्य के लिए सहमति दी है।
उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय में चिकित्सकीय लापरवाही के मामले
हरियाणा राज्य बनाम श्रीमती संतरा के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा यह माना गया था कि उचित स्तर की देखभाल के साथ कार्य करना प्रत्येक चिकित्सक का कर्तव्य है। हालांकि, इस दुनिया में कोई भी इंसान पूर्ण नहीं है और यहां तक कि विशेषज्ञ भी गलती करते हैं, एक डॉक्टर को तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जब वह इतनी उचित देखभाल के साथ कार्य करने में विफल रहता है कि सामान्य कौशल वाला हर डॉक्टर ऐसा करने में सक्षम होगा।
अच्युतराव हरिभाऊ खोड़वा और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह देखा गया था कि चिकित्सा का पेशा बहुत व्यापक है और इसके लिए कई स्वीकार्य पाठ्यक्रम (कोर्सेज) हैं। इसलिए, जब तक एक डॉक्टर उचित देखभाल और सावधानी के साथ अपने कर्तव्य को निभा रहा है, तब तक हम उन को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते है। केवल इसलिए कि वह किसी अन्य कार्रवाई का कोई अन्य तरीका चुनता है, उनको उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
सी.पी. श्रीकुमार (डॉ.), एम.एस. (ऑर्थो) बनाम एस. रामानुजम के मामले में, अदालत ने एक चिकित्सकीय लापरवाही के मामले को निपटाया जिसमें प्रतिवादी साइकिल पर जाते समय घायल हो गया था। उन्हें गंभीर चोटें आईं थी और गर्दन का हेयरलाइन फ्रैक्चर हो गया था। उपलब्ध विभिन्न विकल्पों पर विचार करने के बाद डॉक्टर ने आंतरिक निर्धारण प्रक्रिया के बजाय हेमीआर्थ्रोप्लास्टी करने का विकल्प चुना। अगले दिन ऑपरेशन किया गया था। प्रतिवादी ने चोट के लिए आंतरिक निर्धारण प्रक्रिया को नहीं अपनाने के लिए डॉक्टर के खिलाफ मामला दर्ज किया। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि चिकित्सकीय लापरवाही का मामला बनाने के लिए अपीलकर्ता का 42 वर्ष की आयु के व्यक्ति के लिए हेमीआर्थ्रोप्लास्टी चुनने का निर्णय अस्वीकार्य नहीं है।
विनोद जैन बनाम संतोकबा दुर्लभजी मेमोरियल अस्पताल और अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में दायित्व स्थापित करते समय विचार किए जाने वाले कारकों का उल्लेख किया गया था। इस मामले में अपीलकर्ता के द्वारा एन.सी.डी.आर.सी. को देश के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने एन.सी.डी.आर.सी. के फैसले को बरकरार रखा और निम्नलिखित टिप्पणियां कीं:
- यदि एक डॉक्टर के कार्य निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार हैं, तो उसको लापरवाह नहीं कहा जा सकता है, केवल इसलिए कि एक अन्य निकाय है जो ऐसे मामले में एक विपरीत दृष्टिकोण रखता है।
- एक डॉक्टर को चिकित्सा में विशेष विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं होती है और यह पर्याप्त है यदि वह सामान्य कौशल का प्रयोग करता है जो उस पेशे का एक सामान्य व्यक्ति, प्रयोग करने में सक्षम होगा।
- एक डॉक्टर किसी भी बीमारी से ठीक होने का आश्वासन नहीं दे सकता क्योंकि यह उसके हाथ में नहीं है और वह केवल अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर सकता है। वह केवल यह आश्वासन दे सकता है कि वह पेशे में आवश्यक कौशल रखता है और इसे करते समय उसे पेशे के एक उचित व्यक्ति के रूप में और चिकित्सा पेशे में देखभाल के मानक के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
भारत में चिकित्सकीय लापरवाही के मामले
चिकित्सकीय लापरवाही के मामले
डॉ एम. कोचर बनाम इस्पिता सील के मामले में, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के द्वार आई.वी.एफ. प्रक्रिया में विफलता के मुद्दे पर चर्चा की गई थी। मरीज ने इस प्रक्रिया की विफलता के लिए डॉक्टर के खिलाफ चिकित्सकीय लापरवाही के लिए शिकायत दर्ज की थी। राष्ट्रीय आयोग के द्वारा कहा गया था कि किसी मरीज का ऑपरेशन करने में कोई भी सफलता डॉक्टर को चिकित्सकीय लापरवाही के लिए उत्तरदायी नहीं बना सकती है।
चिकित्सकीय लापरवाही के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले
चिकित्सकीय लापरवाही पर सर्वोच्च न्यायालय के कुछ ऐतिहासिक निर्णय है, जिन्हें नीचे सूचीबद्ध किया गया हैं:
- चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में ऐतिहासिक निर्णय और अब तक दी गई सबसे अधिक मुआवजे की राशि के साथ हमारे दिमाग में जो पहला निर्णय आता है, वह डॉ. कुणाल साहा बनाम डॉ. सुकुमार मुखर्जी और अन्य का मामला है जो अनुराधा साहा केस के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मामले में, पत्नी ड्रग एलर्जी से पीड़ित थी और डॉक्टरों ने उसके लिए उचित दवाएं लिखने में लापरवाही की था, जिससे अंततः उसकी हालत बिगड़ गई और रोगी की मृत्यु हो गई थी। अदालत के द्वारा डॉक्टर को चिकित्सकीय लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया गया और उन्हें 6.08 करोड़ रुपये का मुआवजा प्रदान किया गया था।
- वी.किशन राव बनाम निखिल सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के मामले में, जहां एक महिला जिसका मलेरिया के बुखार का इलाज होना था, के साथ अलग तरह से व्यवहार किया गया था। मलेरिया विभाग के एक अधिकारी ने उसकी पत्नी का इलाज लापरवाही से करने के लिए अस्पताल के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दायर किया, जो मलेरिया बुखार के बजाय टाइफाइड बुखार का इलाज करवा रही थी। पति को 2 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया गया और इस मामले में रेस इप्सा लोक्विटर के सिद्धांत को भी लागू किया गया था।
- जेकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य, के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा यह कहा गया था कि कुछ मामलों में डॉक्टर कुछ मुश्किल विकल्पों के बीच चुनाव करने के लिए बाध्य हैं। कभी-कभी परिस्थितियाँ उन्हें अधिक जोखिम वाली चीजों को चुनने के लिए प्रेरित करती हैं क्योंकि उस निर्णय को लेने में सफलता की संभावना अधिक होती है। और कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनमें कम जोखिम शामिल होता है और विफलता की संभावना अधिक होती है। इसलिए, ऐसे निर्णय मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करते है।
- जुग्गन खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में, अपीलकर्ता एक पंजीकृत होम्योपैथिक चिकित्सक था। एक विज्ञापन देखने के बाद एक महिला उनके पास गिनी के कीड़े के इलाज के लिए गई। उसके द्वारा बताई गई दवा लेने के बाद उसे बेचैनी होने लगी और कुछ एंटीडोट्स देने के बाद भी शाम को उसकी मौत हो गई। आरोपी को आई.पी.सी. की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी ठहराया गया था। अदालत के द्वारा माना गया कि बिना उचित जांच और उसकी जानकारी के जहरीली दवाएं लिखना एक लापरवाही भरा काम है।
- ए.एस. मित्तल और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में एक ‘नेत्र शिविर’ में एक दुर्घटना के मामले को निपटाया था। शिविर में करीब 108 मरीजों का ऑपरेशन किया गया था, जिनमें से 88 का मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ था। इन सभी में से 84 लोगों की आंखों की रोशनी स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त (डैमेज) हो गई थी। यह पाया गया था कि यह दुर्घटना सामान्य खारा (सलाइन) होने के कारण हुई थी, जिसका उपयोग ऑपरेशन में किया गया था। अदालत ने चिकित्सक को जिम्मेदार ठहराया क्योंकि यह चिकित्सकीय लापरवाही थी। इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक जनहित याचिका दायर की गई थी।
- पूनम वर्मा बनाम अश्विन पटेल और अन्य के मामले में, प्रतिवादी के पास होम्योपैथिक चिकित्सा में डिप्लोमा की डिग्री थी और उसने तेज बुखार से पीड़ित एक मरीज को कुछ एलोपैथिक दवाएं दीं। इसके बाद मरीज को नर्सिंग होम ले जाया गया जहां उसकी मौत हो गई थी। अदालत के द्वारा प्रतिवादी को उत्तरदायी ठहराया गया था क्योंकि वह होम्योपैथिक उपचार प्रदान करने के लिए पंजीकृत था, लेकिन एलोपैथी उपचार के तहत नहीं था और उसका कार्य चिकित्सकीय लापरवाही था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में “चिकित्सकीय लापरवाही” शब्द को भी परिभाषित किया था।
- स्प्रिंग मीडोज अस्पताल और अन्य बनाम हरजोल अहलूवालिया के मामले में, टाइफाइड से पीड़ित एक बच्चे को अपीलकर्ता के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। नर्स ने बच्चे को एक इंजेक्शन दिया जिसके बाद वह गिर पड़ा। बच्चे को हर संभव कदम उठाने के बाद एम्स में शिफ्ट कर दिया गया था। वहां डॉक्टरों ने बच्चे की हालत नाजुक होने पर परिजनों को सूचना दी। बच्चे को अधिक मात्रा में इंजेक्शन दिए जाने के कारण उसे कार्डियक अरेस्ट हुआ था। अदालत ने इस लापरवाही की भरपाई के लिए डॉक्टर और नर्स को जिम्मेदार ठहराया था।
- भालचंद्र उर्फ बापू और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लापरवाही कुछ ऐसा कार्य करने में चूक है, जो एक उचित व्यक्ति सही से करेगा या ऐसा कुछ करना है जो एक उचित व्यक्ति कभी नहीं करेगा; आपराधिक लापरवाही जनता के साथ-साथ किसी व्यक्ति के खिलाफ सुरक्षा के लिए उचित देखभाल और सावधानी बरतने की घोर उपेक्षा है।
निष्कर्ष
हालांकि डॉक्टरों को भगवान के रूप में देखा जाता है और मरीजों का मानना है कि इलाज के बाद वे ठीक हो जाएंगे। लेकिन कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि डॉक्टर भी गलतियां कर देते हैं, जिसकी कीमत मरीजों को कई तरह से चुकानी पड़ती है। साथ ही, कुछ मामलों में उनके द्वारा की गई गलतियाँ इतनी खतरनाक होती हैं कि रोगी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है और अत्यधिक कष्टों का सामना करना पड़ता है।
स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में उपकरणों और चिकित्सा उपकरणों का उपयोग उचित देखभाल और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए क्योंकि इससे उपभोक्ता को चोट लग सकती है जिसके परिणामस्वरूप डॉक्टरों और अन्य अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है। फिर भी, ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो ऐसे अनुपयुक्त उपकरणों के निर्माताओं को नुकसान के लिए उत्तरदायी बना सके।
एक अन्य महत्वपूर्ण चिंता का विषय यह है कि नि:शुल्क प्रदान की जाने वाली सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे से बाहर रखा गया है। यह उन रोगियों के लिए एक समस्या पैदा करता है जिन्हें इन स्थितियों में नुकसान उठाना पड़ता है।
कुछ गंभीर चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों के कारण लोग चिकित्सा पेशे में विश्वास खो रहे हैं, जिसने उन्हें अपने शेष जीवन के लिए अक्षम बना दिया है। चिकित्सा पेशे के लिए कुछ गंभीर आत्मनिरीक्षण (इंट्रोस्पेक्शन) और विश्लेषण करने की आवश्यकता है। यह स्वशासन (सेल्फ- गवर्नेंस) में पूरी तरह से विफल रहा है। पूरी धार्मिकता के साथ सेवा करने के लिए चिकित्सा नैतिकता में सुधार और विकास की आवश्यकता है।
संदर्भ
- 2010
- 1995 ACJ 1048
- 1969 AIR 128
- 1998
- 1975 36 STC 439 AP
- 1995 SCC (6) 651
- 2000
- 1996 SCC (2) 634
- 1996
- 2018
- 2011
- 2011
- 2010
- 2005
- 1965 SCR (1) 14
- 1989 AIR 1570
- 1996 SCC (4) 332
- 1968 SCR (3) 766