किसी कंपनी के निदेशकों की कानूनी स्थिति

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Companies Act

यह लेख विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज (वीआईपीएस), जीजीएसआईपीयू, नई दिल्ली की छात्रा Nimisha Dublish  द्वारा लिखा गया है। यह लेख कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार एक कंपनी में एक निदेशक (डायरेक्टर) की कानूनी स्थिति पर चर्चा करता है। इस लेख में, हम एक कंपनी के लिए निदेशकों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के साथ-साथ उनकी विभिन्न भूमिकाओं के बारे में जानेंगे। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।

परिचय 

क्या आपने कभी सोचा है कि कोई निगम (कॉर्पोरेशन) या कंपनी कैसे निर्णय लेती है? एक कृत्रिम (आर्टिफिशियल) व्यक्ति कैसे निर्णय लेता है और उन्हें कैसे लागू करता है? कंपनी द्वारा किए गए सभी विचारों, योजनाओं और निर्णयों के पीछे निदेशक मंडल (बोर्ड) का दिमाग होता है। निदेशक कंपनी से संबंधित कोई भी निर्णय लेने वाले होते हैं। ये वह व्यक्ति है जिसके पास आवश्यक ज्ञान और कंपनी चलाने का इरादा है। चूंकि एक कृत्रिम व्यक्ति में ये सभी विशेषताएं नहीं हो सकती हैं, इसलिए निदेशकों को नियुक्त किया जाता है और संबंधित व्यवसाय को सौंपा जाता है। कंपनी के मामलों की देखभाल के लिए एक कंपनी द्वारा निदेशकों को काम पर रखा जाता है। निदेशकों की टीम को निदेशक मंडल के रूप में जाना जाता है। निदेशक मंडल को कंपनी का प्रबंधन (मैनेजमेंट) सौंपा जाता है। निदेशक मंडल कंपनी के प्रबंधकीय मामलों को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार सर्वोच्च कार्यकारी प्राधिकरण (एग्जिक्यूटिव अथॉरिटी) है। वे कंपनी के प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक (की मैनेजेरियल पर्सनल) (के.एम.पी.) हैं और उन्हें कंपनी में महत्व दिया जाता है। प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक (के.एम.पी.) कंपनी के पूर्णकालिक (फुल टाइम) कर्मचारियों को संदर्भित करता है जो सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के साथ निहित होते हैं। ये मल्टी-टास्किंग और कठिन निर्णय लेने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। ये मूल रूप से एक ऐसे लोगों का समूह हैं जिन पर कंपनी और उसके शेयरधारकों के हितों पर भरोसा किया जाता है।

एक कंपनी में निदेशकों द्वारा कई भूमिकाएँ निभाई जाती हैं, जिनके बारे में हम इस लेख में चर्चा करेंगे। चूंकि कंपनी कानून की नजर में एक कृत्रिम व्यक्ति है, इसलिए इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है, क्योंकि न तो इसमें आत्मा है और न ही स्वयं का शरीर है। तो इसे नियंत्रित और प्रबंधित करने के लिए मनुष्यों की कोई एजेंसी होनी चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं और एक एजेंसी का गठन करते हैं उन्हें निदेशक मंडल के रूप में जाना जाता है। वे मामले के प्रबंधन के प्रभारी हैं। निदेशकों की स्थिति अपनी प्रकृति के कारण हमेशा जटिल रही है। अब हम जानते हैं कि एक कंपनी मूल रूप से निदेशकों द्वारा प्रबंधित और नियंत्रित होती है, हमारे मन में अगला सवाल यह उठता है कि यदि निदेशक कंपनी का संचालन करते हैं, तो निदेशकों का प्रबंधन कौन करता है? क्या कोई कानून है? वे किसके प्रति उत्तरदायी हैं और किसी कंपनी में वे किस कानूनी स्थिति में हैं? इसलिए, इन सभी प्रश्नों और इनके उत्तर पर इस लेख में चर्चा की गई है।

एक कंपनी निदेशक कौन है?

एक कंपनी का निदेशक एक पेशेवर व्यक्ति होता है जिसे कंपनी द्वारा उसके व्यवसाय का प्रबंधन और उसे चलाने के लिए काम पर रखा जाता है। एक निदेशक को कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(34) के तहत कंपनी के मंडल में नियुक्त व्यक्ति (निदेशक) के रूप में परिभाषित किया गया है। किसी कंपनी में निदेशक के पद के लिए किसी कृत्रिम व्यक्ति या संस्था का चयन नहीं किया जा सकता है। केवल एक व्यक्ति को ही कंपनी के निदेशक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। 

यदि हम एक कंपनी को एक अलग कानूनी इकाई के रूप में सोचते हैं, तो हम देख सकते हैं कि निदेशकों को मूल रूप से कंपनी का दिमाग और इच्छा कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे कारोबारी माहौल में कंपनी के कार्यों और व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। एक कुशल और प्रभावी तरीके से काम करने के लिए, निदेशकों को कई बार अलग-अलग क्षमताओं में काम करना पड़ता है। 

कंपनी अधिनियम, 2013 एक कंपनी के निदेशकों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट करने का प्रयास करता है। इस अधिनियम के प्रावधान एक निदेशक की भूमिकाओं, आचरण, शक्तियों, जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को स्पष्ट करते हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 के अध्याय XI की धारा 149 एक कंपनी में एक निदेशक की कुछ कानूनी आवश्यकताओं पर चर्चा करती है। वे इस प्रकार हैं-

  1. सार्वजनिक कंपनी- इसमें न्यूनतम 3 और अधिकतम 15 निदेशकों की नियुक्ति की जानी चाहिए (जिनमें से कम से कम एक तिहाई संख्या स्वतंत्र होनी चाहिए)।
  2. निजी कंपनी- इसमें न्यूनतम 2 और अधिकतम 15 निदेशकों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
  3. एक व्यक्ति कंपनी- इसमें कम से कम 1 निदेशक  होना चाहिए।
  4. कम से कम 1 महिला निदेशक होनी चाहिए और कम से कम 1 निदेशक पिछले कैलेंडर वर्ष में न्यूनतम 182 दिनों की अवधि के लिए भारत में रहना चाहिए।
  5. कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 149(1) के पहले प्रावधान के अनुसार कुछ मामलों में विशेष प्रस्ताव पारित करके निदेशकों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।
  6. कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 462 के तहत कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एम.सी.ए.) दिनांक 05/06/2015 द्वारा जारी अधिसूचना (नोटिफिकेशन) के अनुसार, मंडल में 15 निदेशकों की अधिकतम सीमा सरकारी कंपनियों पर लागू नहीं होगी।
  7. कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 462 के तहत जारी एम.सी.ए. दिनांक 05/06/2015 (संशोधित 13/06/2017) द्वारा अधिसूचना के अनुसार, 15 निदेशकों की अधिकतम सीमा लाइसेंस प्राप्त गैर-लाभकारी कंपनियों पर लागू नहीं है जो अधिनियम की धारा 8 के तहत आती हैं।

कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, निदेशक मंडल कंपनी का प्राथमिक एजेंट है। वे कंपनी द्वारा अपने कब्जे में रखी गई संपत्तियों के ट्रस्टी भी होते हैं। इससे पता चलता है कि निदेशकों को कंपनी के विकास और कल्याण में बहुआयामी (मल्टी फेसेट) भूमिका निभानी होती है। आम तौर पर, निदेशक मंडल को सभी संबंधित मामलों पर कंपनी की ओर से कार्य करना होता है, सिवाय इसके कि यदि यह अन्यथा कहा गया हो (विशेष रूप से कंपनी के लिए आरक्षित मामलों में)।

   

कंपनी अधिनियम, 1956 से कंपनी अधिनियम, 2013 तक ‘निदेशकों’ की स्थिती

क्रमांक कंपनी अधिनियम, 1956 कंपनी अधिनियम, 2013
1. अधिकतम 12 निदेशकों की नियुक्ति की जा सकती है, जबकि अतिरिक्त निदेशक की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार की सहमति आवश्यक है। अधिकतम 15 निदेशकों की नियुक्ति की जा सकती है और केंद्र सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं है। मंडल की बैठक में केवल एक विशेष प्रस्ताव पारित करने से कंपनी अतिरिक्त निदेशकों की नियुक्ति कर सकती है। 
2. महिला निदेशक की नियुक्ति अनिवार्य नहीं थी और इसके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं थे।  प्रावधानों का उल्लेख किया गया है कि कंपनियों के एक निश्चित वर्ग को कम से कम 1 महिला निदेशक नियुक्त करने का निर्देश दें (धारा 149(1))।
3. एक निदेशक के लिए भारत का निवासी होने की कोई आवश्यकता नहीं थी।  कम से कम 1 निदेशक पिछले कैलेंडर वर्ष (धारा 149 (3)) में न्यूनतम 182 दिनों की अवधि के लिए भारत का निवासी होना चाहिए।
4. अधिनियम में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं था। अधिनियम की धारा 149(4) के अनुसार, सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनी के मामले में निदेशकों की कुल संख्या का कम से कम एक तिहाई स्वतंत्र निदेशकों के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए। 
5. निदेशक के इस्तीफे के लिए कोई प्रावधान नहीं था। पारदर्शिता (ट्रांसपेरेंसी) सुनिश्चित करने के लिए निदेशक को पहले से ही एक त्याग पत्र देना होगा और 30 दिनों के भीतर कंपनी रजिस्ट्रार को एक प्रति भी प्रदान करनी होगी (धारा 168)।

निदेशक कौन हो सकता है: योग्यताएं और अयोग्यताएं?

एक व्यक्ति को केवल तभी एक निदेशक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है यदि उसे कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 153 द्वारा निर्धारित निदेशक पहचान संख्या (डी.आई.एन.) या कोई अन्य संख्या जारी की जाती है। वर्ष 2017 में किए गए संशोधन के अनुसार, केंद्रीय सरकार किसी व्यक्ति को एक पहचान संख्या दे सकती है जिसे इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए डी.आई.एन. माना जाएगा।

केंद्र सरकार को डी.आई.एन. के आवंटन (अलॉटमेंट) के लिए एक आवेदन उस व्यक्ति द्वारा किया जाएगा जो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 153 के अनुसार कंपनी का निदेशक बनना चाहता है। एक व्यक्ति जो कंपनी का निदेशक बनना चाहता है उसे प्रक्रिया जानने के लिए आधिकारिक वेबसाइट (एम.सी.ए. पोर्टल) पर जाना चाहिए। 

कंपनी अधिनियम में कोई पेशेवर योग्यता निर्धारित नहीं की गई है। जब तक कंपनी के ए.ओ.ए. में इसका उल्लेख नहीं किया जाता है, तब तक एक निदेशक को एक शेयरधारक होने की आवश्यकता नहीं है अगर वह स्वेच्छा से शेयरधारक नहीं बनना चाहता। अधिनियम निदेशकों पर कोई शेयर योग्यता नहीं लगाता है। एक सामान्य परिदृश्य में, आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन न्यूनतम संख्या में शेयर योग्यता प्रदान करते हैं। 

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 164(1) के अनुसार, एक व्यक्ति कंपनी में निदेशक के पद के लिए पात्र नहीं होगा यदि-

  1. उसे सक्षम न्यायालय द्वारा विकृत दिमाग का घोषित किया गया है।
  2. वह अनुन्मोचित दिवालिया (अन डिस्चार्जड इंसोलवेंट) है। दिवालिया वह व्यक्ति होता है जो अपने ऋणों को चुकाने में असमर्थ होता है और जब तक वह उस पद पर बना रहता है, वह अनुन्मोचित दिवालिया होता है। अर्थात्, जब तक उसने अपने ऋणों का निर्वहन नहीं किया है, तब तक वह “अनुन्मोचित दिवालिया” है।
  3. उन्होंने दिवालिया घोषित होने के लिए आवेदन किया है, लेकिन आवेदन लंबित है।
  4. उसे किसी भी अपराध के लिए अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाता है। यह सजा की समाप्ति की तारीख से 5 साल तक लागू होता है। यदि किसी व्यक्ति को 7 वर्ष या उससे अधिक की कैद होती है, तो वह अयोग्य हो जाता है और किसी कंपनी में निदेशक के पद पर नियुक्त होने के योग्य नहीं होता है। 
  5. यदि कोई न्यायालय या न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) यह निर्देश देता है कि उसे किसी कंपनी के निदेशक के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा और यह आदेश अभी भी लागू है।
  6. यदि किसी शेयर के संबंध में कॉल के भुगतान के लिए निर्धारित अंतिम दिन से छह महीने बीत चुके हैं, तो व्यक्ति कंपनी में निदेशक के पद से अयोग्य हो जाता है। 
  7. पिछले 5 वर्षों के दौरान किसी भी समय संबंधित पक्ष से लेनदेन से निपटने वाले किसी भी अपराध में शामिल होने के लिए, अधिनियम की धारा 188 के तहत दोषसिद्धि की जाती है।
  8. उन्होंने कंपनी अधिनियम की धारा 152(3) या धारा 165(1) का अनुपालन नहीं किया है। 
  9. एक निजी कंपनी अपने आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन (ए.ओ.ए.) में अतिरिक्त अयोग्यता प्रदान कर सकती है जिसका उल्लेख ऊपर नहीं किया गया है। 

एक कंपनी में निदेशकों के प्रकार

शेडो निदेशक

एक ‘शेडो निदेशक’ वह निदेशक होता है जो कंपनी के निदेशक मंडल के निर्णयों को दृढ़ता से प्रभावित करता है। वह इसे गुप्त रूप से करता है और कंपनी के पीछे से ही कार्य करता है। उन्हें औपचारिक (फॉर्मल) रूप से एक निदेशक के रूप में नियुक्त नहीं किया जाता है, लेकिन कंपनी द्वारा किए गए निर्णयों पर उनका बहुत प्रभाव होता है।

वास्तविक (डी फैक्टो) निदेशक

कुछ लोगों को कंपनी के निदेशक के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए अयोग्य ठहराया जाता है। कुछ मामलों में, इन्हें औपचारिक रूप से किसी कंपनी के निदेशक के रूप में नियुक्त नहीं किया जाता है, लेकिन वे एक निदेशक के कार्य करते हैं, भले ही उनके पास कार्य करने का अधिकार न हो। 

पहला निदेशक

प्रमोटर वे व्यक्ति होते हैं जो एक कंपनी को निगमित करते हैं। वे कुछ लोगों को उस कंपनी के निदेशक के रूप में नियुक्त करते हैं, जिन्हें कंपनी के पहले निदेशक के रूप में जाना जाता है। यही बात ‘पहले निदेशक’ शब्द से भी स्पष्ट होती है। 

अतिरिक्त निदेशक

एक व्यक्ति जिसे एक अतिरिक्त निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया है, वह अगली ए.जी.एम. (वार्षिक आम बैठक) की तारीख तक या ए.जी.एम. आयोजित होने की अंतिम तिथि (जो भी पहले हो) तक पद धारण कर सकते है। हालांकि, एक व्यक्ति जो ए.जी.एम. में निदेशक के रूप में नियुक्त होने में विफल रहता है, उसे अतिरिक्त निदेशक के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है। आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन (ए.ओ.ए.) किसी व्यक्ति को किसी भी समय एक अतिरिक्त निदेशक के रूप में नियुक्त करने की शक्ति देता है।

तदर्थ (एड हॉक) निदेशक

किसी निदेशक की मृत्यु, इस्तीफे, या किसी अन्य अप्रत्याशित (अनफोरसीन) परिस्थिति के कारण उत्पन्न होने वाली किसी भी रिक्तियों के मामले में, निदेशक मंडल द्वारा एक तदर्थ निदेशक नियुक्त किया जा सकता है। ये तदर्थ निदेशक मूल निदेशक के कार्यकाल तक पद ग्रहण कर सकते हैं।

वैकल्पिक निदेशक

यदि कोई निदेशक मंडल द्वारा आयोजित बैठकों से 3 महीने से अधिक समय तक अनुपस्थित रहता है, तो उसके स्थान पर निदेशक मंडल द्वारा एक वैकल्पिक निदेशक नियुक्त किया जाता है। वैकल्पिक निदेशक या तो कार्यकाल की समाप्ति की तारीख तक या मूल निदेशक के लौटने तक पद धारण करता है। तदर्थ और वैकल्पिक निदेशक के बीच यह अंतर यह है कि मूल निदेशक के लौटने तक वैकल्पिक निदेशक का पद अस्थायी होता है, जबकि तदर्थ निदेशक का पद स्थायी रहता है। 

कार्यकारी निदेशक

वे निदेशक जो कंपनी के दिन-प्रतिदिन के प्रबंधन में भाग लेते हैं। ये कंपनी के पूर्णकालिक निदेशक भी होते हैं। इन्हें वित्त (फाइनेंस) निदेशकों, विपणन (मार्केटिंग) निदेशकों आदि की भूमिकाओं में पाया जा सकता है। 

गैर – कार्यकारी निदेशक

निदेशक जो दिन-प्रतिदिन के प्रबंधन में भाग नहीं लेते हैं और शामिल नहीं होते हैं, वे कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक होते हैं। ये कंपनी में कोई कार्यकारी पद नहीं रखते हैं और निदेशक मंडल में अपने स्वयं के दृष्टिकोण के साथ एक स्वतंत्र आवाज लाते हैं।

घूर्णी (रोटेशनल) निदेशक

निदेशक कंपनी के मंडल से घूर्णी द्वारा सेवानिवृत्त (रिटायरमेंट) होते हैं, लेकिन उनकी सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें फिर से नियुक्त किया जा सकता है। 

महिला निदेशक

कंपनी अधिनियम 2013 द्वारा निर्धारित कंपनी में कम से कम एक महिला निदेशक होनी चाहिए। यह अधिनियम की धारा 149(1) के अनुसार कंपनियों के कुछ वर्गों तक सीमित है। धारा 149(2) के अनुसार, कंपनियों को उल्लिखित प्रावधानों का पालन करने के लिए अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख से एक वर्ष की समयावधि दी जाती है। इसके उल्लंघन की स्थिति में कंपनी अधिनियम की धारा 172 के तहत कंपनी उत्तरदायी होती है। एक महिला निदेशक की आवश्यकताएं कंपनी (निदेशकों की नियुक्ति और योग्यता) नियम, 2014 के नियम 3 में दी गई हैं ।

स्वतंत्र निदेशक

प्रत्येक सूचीबद्ध कंपनी के पास कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 149(4) के अनुसार एक स्वतंत्र निदेशक के रूप में अपने कुल निदेशकों की संख्या का कम से कम एक तिहाई होना चाहिए। कंपनी (निदेशकों की नियुक्ति और योग्यता), 2014 के नियम 4 में कुछ प्रावधानों और आवश्यकताओं का उल्लेख किया गया है। इस नियम के अंतर्गत आने वाली कंपनियों को अधिक संख्या में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति करने की आवश्यकता होती है। इसकी वजह इसकी ऑडिट समिति संरचना है। स्वतंत्र निदेशक पारिश्रमिक (रिम्यूनरेशन) के हकदार नहीं होते हैं। उन्हें केवल बैठक शुल्क दिया जाता है और मंडल की बैठकों और लाभ संबंधी आयोगों में भाग लेने के लिए खर्च की प्रतिपूर्ति (रीइंबर्समेंट) की जाती है। निष्पक्ष निर्णय लेने के लिए, स्वतंत्र निदेशकों की अवधारणा पेश की गई थी। स्वतंत्र निदेशक, मंडल की प्रक्रिया में स्थिरता और जवाबदेही लाते हैं।

निदेशकों की कानूनी स्थिति

यह स्पष्ट करना वास्तव में कठिन है कि किसी कंपनी में निदेशकों की सही कानूनी स्थिति क्या है। निदेशकों को कभी एजेंट के रूप में, कभी ट्रस्टी के रूप में, और कभी-कभी प्रबंध भागीदारों के रूप में परिभाषित करने के लिए न्यायाधीशों द्वारा कुछ स्पष्टीकरण दिए गए हैं। ये वह व्यक्ति हैं जिन्हें कंपनी द्वारा कंपनी के मामलों के निर्देशन और प्रबंधन के उद्देश्य से विधिवत नियुक्त किया जाता है। ये सभी अभिव्यक्तियाँ जिनके लिए निदेशकों को संदर्भित किया जाता है, जैसे एजेंट, ट्रस्टी, आदि, उनकी शक्तियों और जिम्मेदारियों से परिपूर्ण (एग्जास्टिव) नहीं हैं। यह राम चंद एंड संस शुगर मिल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम कन्हैयालाल भार्गव (1966) के मामले में देखा गया था, कि किसी कंपनी में निदेशकों की कानूनी स्थिति की सटीक व्याख्या करना वास्तव में कठिन है। न्यायाधीशों ने इसे एक बहु-आयामी स्थिति के रूप में बताया है जो एक एजेंट, ट्रस्टी या प्रबंधक की क्षमता में आयोजित किया जाता है, भले ही ये शब्द सही कानूनी अर्थ में समान अर्थ नहीं रखते हैं। 

एक एजेंट के रूप में निदेशक

जैसा कि चर्चा की गई है, एक कंपनी अपनी क्षमता में स्वयं कार्य नहीं कर सकती है। इसकी ओर से कार्य करने के लिए इसे हमेशा किसी की आवश्यकता होती है। एक कंपनी केवल निदेशकों के माध्यम से कार्य कर सकती है, और इसलिए यह एक प्रिंसिपल और एजेंट का संबंध बनाती है। यह संबंध निदेशकों को कंपनी की ओर से कार्य करने और निर्णय लेने की शक्ति देता है। कंपनी की ओर से किया गया कोई भी अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) या लेनदेन कंपनी को उत्तरदायी बनाता है न कि निदेशकों को। निदेशकों पर कोई दायित्व नहीं होता है, वे केवल कंपनी की ओर से हस्ताक्षर करते हैं और अनुबंध करते हैं। 

फर्ग्यूसन बनाम विल्सन (1904) के मामले में, यह स्थापित किया गया था कि निदेशक कंपनी के एजेंट होते हैं। यह कानून की नजर में स्थापित किया गया था कि एक कंपनी अपनी क्षमता में एक कृत्रिम व्यक्ति के रूप में काम नहीं कर सकती है, इसलिए इसे संचालित करने के लिए एक एजेंट की आवश्यकता होती है। रे सिलिंडर्स एंड कंटेनर्स बनाम हिंदुस्तान जनरल इंडस्ट्रीज लिमिटेड (1998) के मामले में, यह देखा गया कि निदेशक कंपनी के एजेंट होते हैं, लेकिन कंपनी के सदस्यों के नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि निदेशक कंपनी के एजेंट हैं और इसके व्यक्तिगत सदस्य के नहीं हैं, सिवाय उस मामले को छोड़कर जहां दोनों के बीच संबंध विशेष तथ्यों से उत्पन्न होता है। एक कंपनी अपने सदस्यों, यानी शेयरधारकों से अलग एक अलग कानूनी इकाई है। 

किरलमपुडी शुगर मिल्स लिमिटेड बनाम जी वेंकट राव (2003) के मामले में, यह देखा गया था कि यदि कंपनी का सी.ई.ओ. एक वचन पत्र निष्पादित करता है और कंपनी के उपयोग के लिए बाहर से पैसे उधार लेता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने अपने लिए पैसे उधार लिए है। यहां तक ​​कि अगर कंपनी वादा की गई राशि का भुगतान करने में विफल रहती है, तो कंपनी के एजेंट के रूप में पैसे उधार लेने वाले पर कोई दायित्व नहीं होता है। हालांकि, हिमाचल प्रदेश राज्य इलेक्ट्रिसिटी मंडल बनाम शिवालिक कास्टिंग (प्राइवेट) लिमिटेड [2003] के मामले में, यह स्थापित किया गया था कि यदि कोई निदेशक अपनी क्षमता/व्यक्तिगत क्षमता में प्रतिभूति (श्योरिटी) देता है और/या कंपनी की ओर से नहीं देता है, तो कंपनी पर प्रतिभूति की राशि के लिए मुकदमा नहीं किया जा सकता है। कुछ परिस्थितियाँ थीं जिन्हें विनीत कुमार माथुर बनाम भारत संघ [1996] के मामले में इंगित किया गया था जिसमें निदेशकों ने स्वयं पर दायित्व वहन किया-

  1. ऐसे मामलों में जहां निदेशक कंपनी के बजाय अपने नाम से अनुबंध करते हैं।
  2. ऐसे मामलों में जहां निदेशक कंपनी के नाम को छोड़ देते हैं या गलत तरीके से उपयोग करते हैं।
  3. ऐसे मामलों में जहां निदेशक अनुबंधों या समझौतों पर इस तरह से हस्ताक्षर करते हैं कि यह स्पष्ट नहीं है कि यह कंपनी (प्रिंसिपल) या निदेशक (एजेंट) है जो हस्ताक्षर कर रहा है और जो भविष्य की परिस्थितियों के लिए उत्तरदायी होगा।
  4. ऐसे मामलों में जहां निदेशक अनुमत सीमा से अधिक हैं और धन से अधिक उधार लेते हैं। 

ऐसे तरीके हैं जिनसे अनधिकृत (अनऑथराइज्ड) कार्यों की पुष्टि की जा सकती है। भजेकर बनाम शिंकर [1933] में, यह उल्लेख किया गया था कि यदि निदेशक द्वारा किया गया लेन-देन उसे दी गई शक्ति से अधिक है, लेकिन कंपनी द्वारा धारित शक्ति के दायरे में आता है, तो इसकी एक प्रस्ताव पारित करके पुष्टि की जा सकती है। हालाँकि, यदि कंपनी को रजिस्ट्रार द्वारा हटा दिया जाता है और भंग कर दिया जाता है, तो वह अपने कार्यों की पुष्टि नहीं कर सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक अस्तित्वहीन इकाई कार्रवाई शुरू नहीं कर सकती है।

एक ट्रस्टी के रूप में निदेशक

एक कंपनी में, एक निदेशक को एक ट्रस्टी के भी माना जाता है। एक निदेशक को ट्रस्टी के रूप में जाना जाता है क्योंकि वह संपत्ति का प्रबंधन करता है और कंपनी के हितों के लिए काम करता है। एक ट्रस्टी वह होता है जिसे कंपनी की संपत्ति के साथ सौंपा जा सकता है और अपने व्यक्तिगत लाभ के बजाय कंपनी के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करता है। इनके अलावा, एक ट्रस्टी को शेयरों के आवंटन, कॉल करने, हस्तांतरण (ट्रांसफर) को स्वीकार या अस्वीकार करने आदि जैसी शक्तियां दी जाती हैं, जिन्हें ट्रस्ट में शक्तियों के रूप में जाना जाता है। डेल एंड कैरिंगटन इन्वेस्टमेंट (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम पी.के प्रतापन [2004] के मामले में, यह देखा गया कि निदेशकों को अपनी भरोसेमंद क्षमता के भीतर कार्य करना होता है, जिसका अर्थ है कि कंपनी जिसका वे प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, की ओर से कंपनी के हितों के लिए अत्यंत सावधानी, कौशल, अच्छे विश्वास और उचित परिश्रम के साथ कार्य करना उनका कर्तव्य है।  

जैसा कि वी.एस रामास्वामी अय्यर बनाम ब्रह्मय्या एंड कंपनी (1966) के ऐतिहासिक मामले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा देखा गया था, कि निदेशकों को कंपनी के फंड को लागू करने की उनकी शक्ति के संदर्भ में ट्रस्टी के रूप में उत्तरदायी बनाया जा सकता है। एक निदेशक इनका कई तरह से दुरुपयोग कर सकता है। इसके कारण, यदि उल्लिखित अपराध के संदर्भ में एक निदेशक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है, तो उसके कानूनी प्रतिनिधि के खिलाफ निदेशक की मृत्यु के बाद भी कार्रवाई का कारण जीवित रहेगा। पर्सीवल बनाम राइट (1902) और पेस्किन बनाम एंडरसन (2001) दोनों मामलों में, यह माना गया था कि एक कंपनी के निदेशक समग्र रूप से कंपनी के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हैं, और व्यक्तिगत शेयरधारकों के लिए ट्रस्टी नहीं होते हैं या केवल उनके कार्यालयों के आधार पर एक प्रत्ययी (फिडुशियरी) कर्तव्य का पालन करते हैं। ये कंपनी के उपक्रम (अंडरटेकिंग) की बिक्री के लिए लंबित बातचीत का खुलासा किए बिना अपने शेयर खरीद सकते हैं।

एक प्रबंध भागीदार के रूप में निदेशक

एक कंपनी के निदेशक शेयरधारकों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये शेयरधारकों और उनके लक्ष्यों की ओर से कार्य करते हैं। इसके कारण, वे विशाल शक्तियों का आनंद लेते हैं और कई कार्य कर सकते हैं जो प्रकृति में स्वामित्व वाली हैं। कंपनियों के एमओए (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) और ए.ओ.ए. में उल्लिखित प्रावधानों के कारण, निदेशक मंडल सर्वोच्च नीति और निर्णय लेने वाले प्राधिकरण के रूप में कार्य करते है। 

एक कर्मचारी/अधिकारी के रूप में निदेशक

शेयरधारक कंपनी द्वारा आयोजित एक आम बैठक में निदेशकों का चुनाव करते हैं। एक बार निदेशक चुने जाने के बाद, वह अधिनियम के अनुसार उसे दिए गए अधिकारों और शक्तियों का आनंद लेते है। इन शक्तियों और अधिकारों को शेयरधारकों द्वारा नहीं लिया जा सकता है और वे निदेशकों के निर्णय लेने में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। चूंकि निदेशकों के पास ऐसी शक्तियां और अधिकार होते हैं, इसलिए उन्हें कंपनी के कर्मचारी नहीं कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कर्मचारियों के पास सीमित अधिकार होते हैं और वे हमेशा नियोक्ता (एंप्लॉयर) के निर्देशों के तहत काम करते हैं और नियोक्ता के निर्णय लेने में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। 

ली बेहरेंस एंड कंपनी, रे [1932] के मामले में, यह देखा गया कि यह शेयरधारक हैं जो अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं जो उनकी ओर से कंपनी के मामलों को निर्देशित करने में संलग्न होंते है। इसका मतलब है कि वे इस स्थिति में एक एजेंट की हैसियत से काम करते हैं। यह भी देखा जा सकता है कि वे कंपनी के कर्मचारी या नौकर नहीं होते हैं। हालांकि, आर.आर कोठांदरमन बनाम सीआईटी (1957) के मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि कानून में कुछ भी उल्लेख नहीं है, इसलिए कोई भी निदेशक को एक कंपनी के साथ एक विशेष अनुबंध के तहत एक कर्मचारी के रूप में अपनी स्थिति को स्वीकार करने से नहीं रोक सकता है।  

कुछ मामलों के लिए निदेशकों को एक कंपनी में एक अधिकारी के रूप में भी माना जाता है। कानून का पालन करने में विफलता के लिए उन्हें दंड के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। एक कंपनी में निदेशकों की कानूनी स्थिति को बताने के लिए, जेसल एम.आर को डीन कोल माइनिंग कंपनी के वन रे [1878] के मामले से उद्धृत किया जा सकता है, “निदेशकों को कभी-कभी ट्रस्टी या वाणिज्यिक (कमर्शियल) ट्रस्टी के रूप में बुलाया जाता है, और कभी-कभी उन्हें प्रबंध भागीदार कहा जाता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उन्हें क्या कहते हैं, जब तक आप समझते हैं कि उनकी वास्तविक स्थिति क्या है, जो यह है कि वे वास्तव में वाणिज्यिक व्यक्ति हैं जो अपने और सभी शेयरधारकों के लाभ के लिए एक व्यापारिक चिंता का प्रबंधन करते हैं। वे अपनी शक्तियों और अपने नियंत्रण में पूंजी के संबंध में कंपनी के प्रति एक भरोसेमंद स्थिति में खड़े होते हैं।”

निष्कर्ष

निदेशक वे व्यक्ति होते हैं जो कानून द्वारा अपने कर्तव्यों और कंपनी के लक्ष्यों को पूरा करते हुए निष्पक्ष और उचित तरीके से कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं। एक निदेशक एक एजेंट के रूप में कार्य करता है और कंपनी के साथ एक भरोसेमंद संबंध भी रखता है। निदेशक की ये सभी भूमिकाएँ साथ-साथ चलती हैं। निदेशकों की सटीक कानूनी स्थिति पर बहुत स्पष्टता नहीं है, लेकिन यदि वे अपनी शक्तियों से अधिक कार्य करते है या उनका दुरुपयोग करते हैं तो वे आवश्यक कानून से बंधे होते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में निदेशकों की अपनी स्वतंत्र शक्तियां होती हैं, एजेंटों के विपरीत जिन्हें केवल प्रिंसिपल द्वारा दिए गए निर्देशों पर कार्य करना होता है। निदेशकों को कंपनी की संपत्ति और उनके प्रशासन के साथ भी सौंपा गया है। उन्हें अपनी शक्तियों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए और सद्भावपूर्वक और कंपनी के हित में कार्य करना चाहिए। 

अंत में यह भी कहा जा सकता है कि निदेशकों की भी एक पहचान होती है। यह सिर्फ इतना है कि उनके पास एजेंटों, ट्रस्टियों और प्रबंध भागीदारों की कुछ विशेषताएं हैं, लेकिन वे पूरी नहीं हैं। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि वे न तो एजेंट, ट्रस्टी हैं और न ही कंपनी के प्रबंध भागीदार हैं। कंपनी अधिनियम 2013 में निदेशक के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 149 के अनुसार कितने निदेशकों की नियुक्ति की जा सकती है?

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 149 के अनुसार अधिकतम 15 निदेशकों की नियुक्ति की जा सकती है। 

एक व्यक्ति कितनी कंपनियों में निदेशक बन सकता है?

एक व्यक्ति एक समय में 20 से अधिक कंपनियों में निदेशक नहीं हो सकता है। सार्वजनिक कंपनी के मामले में, एक व्यक्ति अधिकतम 10 कंपनियों का निदेशक हो सकता है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 165 इस मामले पर चर्चा करती है।

क्या शेयरधारक और निदेशक दोनों कंपनी के मालिक होते हैं?

शेयरधारकों और निदेशकों दोनों की अलग-अलग भूमिकाएँ होती हैं। शेयरधारक कंपनी के सदस्य/मालिक होते हैं, जबकि निदेशक कंपनी और उसके कार्यों का प्रबंधन करते हैं। 

क्या एक स्वतंत्र निदेशक कंपनी का कर्मचारी होता है?

एक स्वतंत्र निदेशक पिछले 3 वित्तीय वर्षों में कंपनी का कर्मचारी, मालिक या भागीदार नहीं हो सकता है। 

क्या निजी कंपनियों को स्वतंत्र निदेशकों की आवश्यकता होती है?

स्वतंत्र निदेशकों के प्रावधान निजी कंपनियों पर लागू नहीं होते हैं। संयुक्त उद्यम (ज्वाइंट वेंचर), पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों और निष्क्रिय (डोरमेंट) कंपनियों जैसी कंपनियों को एक स्वतंत्र निदेशक की नियुक्ति की आवश्यकता से छूट दी गई है। 

संदर्भ

 

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