यह लेख Aarchie Chaturvedi द्वारा लिखा गया है, जो वर्तमान में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची में बीए-एलएलबी की छात्रा हैं। यह व्यापार और वाणिज्य (ट्रेड एंड कॉमर्स) की स्वतंत्रता के बारे में एक विस्तृत लेख है, जिसमें अनुच्छेद 301 से 307 के प्रावधान और ऐतिहासिक निर्णय शामिल हैं। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।
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परिचय
व्यापार हमेशा महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि कोई भी देश या राज्य अपनी जरूरत के सभी उत्पादों का उत्पादन नहीं कर सकता है। इस कारण से, हमें व्यापार को नियंत्रित करने, प्रबंधित करने और सुविधाजनक बनाने के लिए विनियमों (रेगुलेशन) और कानूनों की आवश्यकता है। व्यापार, वाणिज्य और समागम (इंटरकोर्स) की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के भाग XIII के तहत अनुच्छेद 301 से 307 में प्रदान की गई है। अनुच्छेद 301 व्यापार और वाणिज्य के सामान्य सिद्धांतों को निर्धारित करता है जबकि अनुच्छेद 302 से 305 उन प्रतिबंधों को स्पष्ट करता है जो व्यापार के अधीन हैं। इन प्रावधानों को अपनाने का स्रोत (सोर्स) ऑस्ट्रेलियाई संविधान था।
संघीय (फेडरल) संविधान में ऐसे प्रावधानों का उद्देश्य
संविधान के निर्माता भारत में व्यापार और वाणिज्य के मुक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करना चाहते थे क्योंकि उनके अनुसार, एक देश को आंतरिक व्यापार में बिना किसी बाधा के एक एकल आर्थिक इकाई के रूप में काम करना चाहिए। उन्होंने महसूस किया कि आर्थिक एकता और राष्ट्र की एकता संघीय राज्य व्यवस्था की स्थिरता और सांस्कृतिक एकता के लिए मुख्य शक्ति होगी।
एक संघ में, राज्यों के बीच बाधाओं (टैरिफ, गैर-टैरिफ, कोटा, आदि) को यथासंभव कम करना आवश्यक है ताकि लोगों को लगे कि वे एक ही देश के सदस्य हैं, हालांकि वे देश के विभिन्न भौगोलिक (ज्योग्राफिकल) क्षेत्रों में रहते हैं।
व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 301 पूरे देश में व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता के बारे में बात करता है। इसमें कहा गया है कि भाग XIII के तहत अन्य प्रावधानों के अधीन, इन गतिविधियों को करने की स्वतंत्रता मुक्त होगी। यहां स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति, संपत्ति, चीज जो मूर्त या अमूर्त हो सकती है, की आवाजाही की स्वतंत्रता का अधिकार राज्य के भीतर (इंट्रा-स्केल) या राज्यों के बाहर (इंटर-स्केल) में बाधाओं से अबाधित हो सकता है।
इस लेख में प्रयुक्त तीन मुख्य शब्द हैं:
व्यापार
व्यापार का अर्थ है लाभ कमाने के उद्देश्य से माल खरीदना और बेचना। अनुच्छेद 301 के तहत व्यापार शब्द का अर्थ एक निश्चित उद्देश्य के साथ एक वास्तविक, संगठित (ऑर्गेनाइज्ड) और संरचित (स्ट्रक्चर्ड) गतिविधि है। अनुच्छेद 301 के उद्देश्य के लिए व्यापार शब्द का प्रयोग व्यवसाय के साथ परस्पर किया जाता है।
वाणिज्य
वाणिज्य का अर्थ है हवा, पानी, टेलीफोन, टेलीग्राफ या किसी अन्य माध्यम से संचरण (ट्रांसमिशन) या आवाजाही; अनुच्छेद 301 के तहत वाणिज्य के लिए जो आवश्यक है वह परिवहन (ट्रांसपोर्टेशन) या संचरण है न कि लाभ है।
समागम
इसका अर्थ है माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना। इसमें वाणिज्यिक और गैर-वाणिज्यिक दोनों तरह के सौदे शामिल हैं। इसमें यात्रा और दूसरों के साथ व्यवहार के सभी रूप शामिल होंगे। हालांकि, यह तर्क दिया जाता है कि अनुच्छेद 301 में गारंटीकृत स्वतंत्रता अपने व्यापक अर्थ में समागम तक नहीं पहुंचती है। इसके दो कारण हैं।
- सबसे पहले, “समागम” शब्द का प्रयोग ‘व्यापार और वाणिज्य’ शब्दों के साथ किया जाता है और इसलिए यहां इस शब्द का अर्थ “वाणिज्यिक-समागम” होगा न कि उद्देश्यहीन गति।
- दूसरा कारण यह है कि यद्यपि अनुच्छेद 301 विधानमंडल और संसद की शक्ति (अनुच्छेद 245 और 246 के तहत उन्हें प्रदान की गई है) पर एक सीमा लगाता है लेकिन समागम शब्द 7वीं अनुसूची के तहत कानून के विषय के रूप में शामिल नहीं है (जैसे कि शब्द व्यापार और वाणिज्य को शामिल किया गया है) और इसलिए यहां समागम शब्द का अर्थ व्यापक अर्थ में नहीं लगाया जा सकता है।
अनुच्छेद 301 में ‘मुक्त’ शब्द के प्रयोग का अर्थ देश पर शासन करने वाले कानूनों और नियमों से स्वतंत्रता नहीं है। स्वतंत्रता में बाधा डालने वाले कानूनों और व्यापार गतिविधियों के सुचारू और आसान तरीके से उचित संचालन के लिए नियमों और विनियमों वाले कानूनों के बीच स्पष्ट अंतर है।
गतिविधियाँ जो व्यापार नहीं हैं
अनुच्छेद 301 व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता देता है लेकिन कुछ गतिविधियां हैं जो व्यापार, वाणिज्य या समागम गतिविधियों के दायरे में आ सकती हैं लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता द्वारा संरक्षित नहीं हैं।
लॉटरी और जुआ जैसी अवैध गतिविधियां एक उदाहरण हो सकती हैं। इन अवैध गतिविधियों पर प्रतिबंध को सर्वोच्च न्यायालय ने बॉम्बे राज्य बनाम आर.एम.डी. चमारबागवाला (1957) के मामले में बरकरार रखा था। इस मामले में, यह माना गया कि आपराधिक प्रकृति की सभी गतिविधियों या अवांछित (अनडिजायरेबल) गतिविधियों को अनुच्छेद 301 के तहत कोई संरक्षण नहीं दिया जाएगा। ऐसी गतिविधियों के कुछ उदाहरण पैसे के लिए अश्लील तस्वीरें क्लिक करना, महिलाओं और बच्चों की तस्करी, गुंडों या आतंकवादियों को काम पर रखना आदि हो सकते हैं। हालांकि व्यापार के रूपों, तरीकों और प्रक्रियाओं को लागू किया जा सकता है, ये गतिविधियां अतिरिक्त-वाणिज्यिक हैं (निजी स्वामित्व या अधिग्रहण (एक्विजिशन) के अधीन नहीं), और इस प्रकार अनुच्छेद 301 के तहत कवर नहीं की जाती हैं।
अनुच्छेद 301 और अनुच्छेद 19(1)(g) के बीच अंतर-संबंध
- भाग XIII के तहत अनुच्छेद 301 पूरे देश में व्यापार के मुक्त प्रवाह को सशक्त बनाता है जबकि अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत आम जनता के हित में किसी भी व्यापार या व्यवसाय का अभ्यास करने की स्वतंत्रता है। अनुच्छेद 301 के तहत अधिकार संवैधानिक है और किसी के द्वारा दावा किया जा सकता है। अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत अधिकार मौलिक है और केवल नागरिकों द्वारा दावा किया जा सकता है। इस प्रकार, अनुच्छेद 19 की सीमा के इस पहलू को अनुच्छेद 301 के तहत निपटाया जाता है जो नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को उनके अधिकार का उल्लंघन होने पर अदालत जाने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 19(1)(g) में व्यवसाय या व्यापार करने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है जबकि अनुच्छेद 301 के साथ अनुच्छेद 302-307 है जो देश में व्यापार के मुक्त प्रवाह पर प्रतिबंध लगाते है। हालाँकि, अनुच्छेद 302-307 में निर्दिष्ट (स्पेसिफिक) प्रतिबंधों के अप्रत्यक्ष (इंडायरेक्ट) परिणाम होने चाहिए और अनुच्छेद 19(1)(g) में निर्धारित स्वतंत्रता को सीधे कम नहीं करना चाहिए। इस प्रकार अनुच्छेद 301 को अनुच्छेद 19(1)(g) के लिए एक व्याख्यात्मक (एक्सप्लेनेटरी) प्रावधान माना जाता है और इसमें अनुच्छेद 19(1)(g) की तुलना में अधिक सीमित दायरा भी है क्योंकि यह केवल वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह के बारे में है।
- यह भी अक्सर तर्क दिया जाता है कि अनुच्छेद 301 समग्र रूप से व्यापार के लिए उपलब्ध अधिकार है जबकि अनुच्छेद 19(1)(g) व्यक्तियों के लिए अधिकार है। वैसे यह सत्य नहीं है। अनुच्छेद 301 ऑस्ट्रेलियाई संविधान की धारा 92 से लिया गया है और इसलिए यह अधिकार व्यक्तियों के लिए भी उपलब्ध है।
- इस प्रकार इन दोनों को कुछ पहलुओं में परस्पर संबंधित कहा जा सकता है। इन्हें आपातकाल के समय परस्पर संबंधित अवधारणाओं के रूप में भी देखा जा सकता है। आपातकाल के समय, अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत अधिकारों को निलंबित कर दिया जाता है। उस समय अदालत अनुच्छेद 301 के तहत प्रदान किए गए अधिकारों की जांच करने के लिए तत्पर है कि क्या कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं।
व्यापार और वाणिज्य पर प्रतिबंध
जनहित में व्यापार और वाणिज्य को विनियमित करने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 302 संसद को एक राज्य के भीतर या भारत के क्षेत्र में कहीं भी राज्यों में किए जाने वाले व्यापार, वाणिज्य या समागम की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति देता है। ये प्रतिबंध केवल जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए लगाए जा सकते हैं। कुछ जनता के हित में है या नहीं यह तय करने की शक्ति पूरी तरह से संसद को दी गई है। यह देखा जा सकता है कि सूरजमल रूपचंद और कंपनी बनाम राजस्थान राज्य (1967) के मामले में भारत रक्षा नियमों के तहत, आम जनता के हित में, अनाज की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाए गए थे।
व्यापार और वाणिज्य को विनियमित करने की राज्यों की शक्ति
अनुच्छेद 302 में संसद की शक्ति को अनुच्छेद 303 द्वारा रोक कर रखा गया है। अनुच्छेद 303(1) में कहा गया है कि संसद के पास ऐसा कोई कानून बनाने की शक्ति नहीं है जो 7वीं अनुसूची में से किसी एक सूची में व्यापार और वाणिज्य में किसी भी प्रविष्टि के आधार पर एक राज्य को दूसरे राज्य की तुलना में अधिक बेहतर स्थिति में रखे। हालांकि, खंड (2) में कहा गया है कि संसद ऐसा कर सकती है यदि कानून द्वारा यह घोषित किया जाता है कि ऐसे प्रावधान या विनियम बनाना आवश्यक है, क्योंकि वास्तव में देश के कुछ हिस्सों में माल की कमी है। यह तय करने की शक्ति कि क्षेत्र के कुछ हिस्सों में माल की कमी है या नहीं, संसद के हाथों में निहित है।
अनुच्छेद 304 (A) आगे कहता है कि राज्य को अन्य राज्यों से परिवहन (ट्रांसपोर्ट)/आयातित (इंपोर्ट) किसी भी माल पर कर लगाना चाहिए यदि राज्य में भी समान वस्तुओं पर कर लगाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि राज्य के भीतर उत्पादित माल और कुछ अन्य राज्यों से आयातित माल के बीच कोई भेदभाव न हो। मध्य प्रदेश राज्य बनाम भाईलाल भाई (1964) के मामले में, मध्य प्रदेश राज्य ने आयातित तंबाकू पर कर लगाया जो कि अपने ही राज्य यानी मध्य प्रदेश राज्य में कर के अधीन नहीं था। अदालत ने कर स्टेटमेंट को अस्वीकार कर दिया कि यह प्रकृति में भेदभावपूर्ण था।
राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर प्रतिबंध
अनुच्छेद 304 का खंड (2) राज्यों को व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाने के लिए मार्गदर्शन करता है जो सार्वजनिक हित के अनुकूल हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए कोई भी विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति के पूर्वानुमोदन (प्रायर अप्रूवल) के बिना राज्य विधानमंडल में पेश नहीं किया जाएगा। अंतरराज्यीय व्यापार को विनियमित करने के लिए राज्य द्वारा पारित एक कानून को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना चाहिए-
- राष्ट्रपति से पहले अनुमोदन लेना होगा,
- प्रतिबंध समझदार और तर्कसंगत (रेशनल) होना चाहिए,
- यह जनता के हित में होना चाहिए।
ये शर्तें यह स्पष्ट करती हैं कि संसद की व्यापार और वाणिज्य को विनियमित करने की शक्ति राज्य की शक्ति से श्रेष्ठ है।
मौजूदा कानूनों की बचत
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 305 राज्य के एकाधिकार के लिए पहले से बने कानूनों को बचाता है। अनुच्छेद 305 ऐसा तभी तक कर सकता है जब तक कि राष्ट्रपति इसके विपरीत या पहले से बने कानून के विपरीत कुछ आदेश नहीं दे देते है। सगीर अहमद बनाम उत्तर प्रदेश (1954) में, सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल उठाया कि क्या एक अधिनियम जो एक विशिष्ट व्यापार या वाणिज्य में राज्य के एकाधिकार (मोनोपॉली) का प्रावधान करता है, उसे अनुच्छेद 301 के तहत भारत के संविधान का उल्लंघन माना जाएगा।
अनुच्छेद 19(1)(g) को पहले संवैधानिक संशोधन द्वारा संशोधित किया गया था, इस तरह की गतिविधियों को अनुच्छेद 19(1)(g) के दायरे से बाहर कर दिया गया था। अब संविधान के चौथे संशोधन के बाद, व्यापार में राज्य के एकाधिकार के लिए पहले से बने कानून और कानून, अनुच्छेद 301 और 304 के उल्लंघन के आधार से मुक्त हैं।
अनुच्छेद 301 से 304 के उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्राधिकरण (अथॉरिटी) की नियुक्ति
भाग XIII का अनुच्छेद 307 संसद को ऐसे प्राधिकरण को नामित करने की अनुमति देता है जिसे वह अनुच्छेद 301, 302, 303 और 304 में निर्धारित प्रावधानों को पूरा करने के लिए उपयुक्त समझता है। संसद ऐसे प्राधिकरणों को अन्य कार्य और शक्ति भी प्रदान कर सकता है जो उसे लगता है कि आवश्यक है।
ऐतिहासिक निर्णय
अतिबारी चाय कंपनी बनाम असम राज्य (1961)
तथ्य
अतिबारी चाय कंपनी लिमिटेड बनाम असम राज्य, के मामले में असम कराधान अधिनियम अंतर्देशीय जलमार्ग (इनलैंड वाटरवेज) और सड़क के माध्यम से प्रेषित (ट्रांसमिट) माल पर कर लगाता है। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता असम के रास्ते कलकत्ता (अब कोलकाता) तक चाय पहुँचाने का व्यवसाय करता था। कलकत्ता में परिवहन के उद्देश्य से असम से गुजरते समय, उक्त अधिनियम के तहत चाय पर कर लगता था।
मुद्दे
1954 के असम कराधान अधिनियम की तर्कसंगतता (रेशनेलिटी) पर इस आधार पर सवाल उठाया गया था कि:
- क्या यह अनुच्छेद 301 का उल्लंघन है या नहीं?
- क्या इसे अनुच्छेद 304 (b) के दायरे में लाकर संरक्षित किया जा सकता है या नहीं?
निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विवादित कानून निर्विवाद (अनडेनाएबली) रूप से एक ऐसा कर लगाता है जो सीधे और तुरंत माल की आवाजाही का उल्लंघन करता है और इसलिए यह अनुच्छेद 301 के दायरे में आता है। सर्वोच्च न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि ये कर केवल अनुच्छेद 304 (b) की शर्तों को पूरा करने के बाद ही लगाया जा सकता हैं, जिसमें कहा गया है कि किसी भी राज्य द्वारा इस तरह के कानून को लागू करने से पहले राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक है। इस मामले में, अनुच्छेद 304 (b) की आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं किया गया था। यदि संविधान के अनुच्छेद 302 से अनुच्छेद 304 तक निर्धारित मानदंडों (क्राइटेरिया) को पूरा किए बिना माल के प्रसारण में बाधा उत्पन्न होती है, तो अनुच्छेद 301 के तहत सुनिश्चित स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी।
ऑटोमोबाइल ट्रांसपोर्ट लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य (1963)
तथ्य
ऑटोमोबाइल ट्रांसपोर्ट लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य के मामले में, राजस्थान राज्य ने मोटर वाहनों पर वार्षिक कर लगाया (एक मोटर वाहन पर 60 रुपये और एक माल वाहन पर 2000 रुपये)।
मुद्दा
अपीलकर्ता ने अनुच्छेद 301 के तहत लगाए गए कर की वैधता को चुनौती दी। अब लगाया गया कर संवैधानिक रुप से सही था या नहीं, इसकी जांच की जानी थी।
निर्णय
यह अदालत द्वारा कहा गया था कि वर्तमान मामले में लगाया गया कर वैध है क्योंकि यह व्यापार, वाणिज्य और समागम के सुचारू संचालन की सुविधा के लिए केवल एक नियामक उपाय (रेगुलेटरी मेजर) या प्रतिपूरक (कंपेंसेटरी) कर है। अदालत ने टिप्पणी की कि राज्य की वित्तीय व्यवस्था को बड़े पैमाने पर संरक्षित करने के लिए कर ही राज्य के लिए एकमात्र कुंजी है। “प्रतिपूरक या नियामक कर” की अवधारणा यह सुनिश्चित करने के लिए विकसित हुई है कि राज्य ऐसे कर लगाएंगे जो मुआवजे के रूप में एक उद्देश्य के रूप में निर्धारित किए गए हैं, यानी सार्वजनिक हित के साथ-साथ नियामक उद्देश्यों के लिए यदि आवश्यक हो तो इनका उपयोग राज्य के भीतर किया जाएगा। यदि इसे न्यायालय में उल्लंघन के रूप में या अनुच्छेद 301 के तहत स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी जाती है तो इसे उल्लंघन नहीं माना जाएगा और इस तरह के उपाय या कर को अनुच्छेद 304(b) के तहत प्रावधानों के सत्यापन (वैलीडेशन) की भी आवश्यकता नहीं है।
मैसूर राज्य बनाम संजीविया (1967)
तथ्य
मैसूर राज्य बनाम संजीविया के मामले में, मैसूर वन अधिनियम, 1900 के तहत सरकार ने सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच वन उपज की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून बनाया।
मुद्दा
क्या यह संविधान के अनुच्छेद 301 की स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन था?
निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने कानून को अमान्य करार दिया। इसने टिप्पणी की कि ऐसा कानून प्रतिबंधात्मक था और नियामक नहीं था इसलिए अनुच्छेद 301 के तहत प्रदान की गई स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
जी.के.कृष्णा बनाम तमिलनाडु राज्य (1975)
तथ्य
जी.के कृष्णा बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में, मद्रास मोटर वाहन अधिनियम के तहत एक सरकारी अधिसूचना (नोटिफिकेशन) जारी की गई थी, जिसमें सभी वाहनों पर मोटर वाहन कर 30 रुपये से बढ़ाकर 100 रुपये कर दिया गया था। इस कर को लगाते समय सरकार का तर्क यह था कि यह ओमनीबस और नियमित चरण कैरिज बसों के बीच अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा (कॉम्पिटीशन) को रोकने और ओमनीबस के दुरुपयोग को कम करने के लिए किया गया था।
मुद्दे
याचिकाकर्ता ने अपने तर्क में सवाल किया:
- क्या कर प्रतिपूरक या नियामक था?
- क्या यह व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता में बाधक था या नहीं?
निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि कैरिज शुल्क पर कर प्रतिपूरक या नियामक प्रकृति का था और इसलिए यह अनुच्छेद 301 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं था। अदालत ने फैसले के पीछे के तर्क को स्पष्ट करते हुए कहा कि ये कर बाधाएं नहीं हैं बल्कि एक माध्यम है जो व्यापार को सुविधाजनक बनाता है। निषिद्ध (प्रोहिबीटेड) कर बनने के लिए कर पहले प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) कर होना चाहिए। प्रत्यक्ष कर एक ऐसा कर है जो किसी व्यापार या व्यवसाय में वस्तुओं या सेवाओं के प्रसारण का उल्लंघन करता है। हालाँकि, न्यायालय ने इस संबंध में अपना विचार प्रस्तुत किया कि किसी भी नागरिक को विशेष सेवा के लिए राज्य को प्रतिपूर्ति (रीइंबर्स) किए बिना किसी भी सेवा में संलग्न होने का अधिकार नहीं है। ऐसे में वाहनों के सुचारू रूप से चलने के लिए सुरक्षित और कुशल सड़कों की आवश्यकता होती है। ऐसी सड़कों के रख-रखाव में सरकार का पैसा खर्च होगा और सार्वजनिक मोटर वाहनों का उपयोग इसके सीधे संबंध में है। इसलिए कर लगाना अनुचित नहीं होना चाहिए अर्थात राज्य को करदाताओं द्वारा आम तौर पर प्रदान किए गए योगदान के ऊपर एक विशेष योगदान देना है। इस प्रकार कर में वृद्धि को कानून की नजर में सही और वैध माना गया।
निष्कर्ष
जब संविधान व्यापार की स्वतंत्रता प्रदान करता है, तो ऐसी स्वतंत्रता पूर्ण नहीं हो सकती। इस प्रकार अनुच्छेद 302 से 305 प्रतिबंध लगाता है और यह सुनिश्चित करता है कि व्यापार पूरे राज्यों और देश में वैध तरीके से किया जाए। ये सभी प्रावधान एक साथ व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक स्थिति के प्रावधान को सुनिश्चित करते हैं। अब कम से कम भौगोलिक विविधताओं या इस तरह की अन्य बाधाओं के आधार पर व्यापार और वाणिज्य में कोई अनुचित हस्तक्षेप नहीं होगा।