यह लेख Swapna Gokhale द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी, मीडिया और एंटरटेनमेंट लॉ में डिप्लोमा कर रही हैं। इस लेख का संपादन (एडिट) Prashant Baviskar (एसोसिएट, लॉसिखो) और Smriti Katiyar (एसोसिएट, लॉसिखो) ने किया है। इस लेख में भारत में आईपीआर उल्लंघन के लिए आपराधिक उपाय के प्रावधान के बारे में चर्चा की गई हैं। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।
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परिचय
“सभी आईपी उल्लंघन अपराध नहीं हैं, लेकिन सभी आईपी अपराध उल्लंघन हैं।” भारत में, बौद्धिक संपदा (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) पेटेंट अधिनियम, 1970; ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999; कॉपीराइट अधिनियम 1957; डिजाइन अधिनियम 2001 के तहत शासित है। भूमि, फ्लैट आदि जैसे अमूर्त (इंटेंजिबल) संपत्तियों के अधिकारों की मान्यता के विपरीत, आईपीआर को आमतौर पर एक नकारात्मक अधिकार माना जाता है। दिलचस्प और स्पष्ट कारण इन अधिकारों के धारक को दी गई सुरक्षा है, विशेष रूप से तीसरे व्यक्ति को इसे लागू करने से रोकना है।
सामान्य शब्दों में, आईपीआर को दिमाग के निर्माण से जुड़े अधिकारों के रूप में परिभाषित किया गया है और केवल निर्माता या उसके द्वारा अधिकृत (ऑथराइज्ड) व्यक्ति तक ही सीमित है। एक प्रसिद्ध कहावत “उबी जस इबी रेमेडियम”, का अर्थ है कि जहां कानून ने अधिकार दिया है, उसके स्थान पर इसके उल्लंघन के लिए एक समान उपाय भी होना चाहिए। बौद्धिक संपदा के मामले में, अधिकारों के उल्लंघन को आम तौर पर आईपीआर उल्लंघन कहा जाता है और यह अधिकार धारक की प्रतिष्ठा, पहचान और सद्भावना को प्रभावित करता है। निषेधात्मक निषेधाज्ञा (प्रोहिबिटरी इंजंक्शन) आईपीआर धारक के लिए उपलब्ध सबसे आम और महत्वपूर्ण सिविल उपाय है। हालांकि, मेरे दिमाग में यह सवाल आता है कि क्या आईपीआर गलत करने वालों पर आपराधिक तंत्र (मैकेनिज्म) द्वारा मुकदमा चलाया जा सकता है? आईपीआर उल्लंघन के आपराधिक निहितार्थ (इंप्लीकेशन) क्या हैं? आईपी अपराध किस प्रकार के होते हैं? और भारत में आईपी उल्लंघन के लिए आपराधिक उपाय प्राप्त करने के पक्ष और विपक्ष क्या हैं? कौन आपराधिक कार्रवाई शुरू कर सकता है और किन परिस्थितियों में कर सकता है? इन सभी सवालों पर हम इस लेख में चर्चा करेंगे।
आईपीआर उल्लंघन में आपराधिक प्रभाव
आईपीआर उल्लंघन में, आम तौर पर, लोग धन हासिल करने के लिए विचारों, आविष्कारों, अभिव्यक्तियों (एक्सप्रेशन), रचनात्मकता (क्रिएटिविटी) आदि का शोषण करके लूट लेते हैं। डिजिटल तकनीक के इस दौर में इस तरह के गलत काम असामान्य नहीं हैं। आईपीआर उल्लंघन के लिए सबसे लोकप्रिय उपाय अदालत से एक स्थायी निषेधाज्ञा आदेश है जो एक सिविल उपाय है। जैसा कि हम जानते हैं, आईपीआर उल्लंघन व्यक्तिगत रूप से आईपी अधिकारों का उल्लंघन है, जिसका अर्थ है कि किसी विशेष व्यक्ति / संस्था के अधिकारों का उल्लंघन और वह विशेष अधिकार धारक उल्लंघनकर्ता के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। लेकिन अपराध राइट इन रेम यानी राज्य या राष्ट्र के खिलाफ अपराध है। वह राज्य या राष्ट्र अपराधी के खिलाफ कार्रवाई करता है। इस प्रकार, यहां एक दिलचस्प सवाल यह उठता है कि क्या आईपीआर उल्लंघन के लिए कोई आपराधिक उपाय उपलब्ध है? अच्छा, तो जवाब हैं हां। आईपीआर अधिकारों को सिविल और आपराधिक दोनों तंत्रों द्वारा संरक्षित किया जा सकता है। हालांकि, उल्लंघन के मामले में केवल ट्रेडमार्क अधिनियम और कॉपीराइट अधिनियम में आपराधिक उपाय प्रदान किए गए है।
हालांकि आईपीआर कानून के तहत कोई स्पष्ट अंतर नहीं है, बशर्ते कि किस प्रकार के आईपीआर उल्लंघन को आपराधिक अपराध कहा जाएगा। लेकिन आम तौर पर, जब आईपीआर उल्लंघन जालसाजी (काउंटरफिटिंग) और चोरी के रूप में होता है, तो इसके लिए आपराधिक उपाय निर्दिष्ट किए जाते है। जालसाजी में ट्रेडमार्क, डिजाइन आदि जैसे अधिकारों का जानबूझकर उल्लंघन शामिल है। इस प्रकार के अपराध में, ज्यादातर छोटे पैमाने के विक्रेता शामिल होते हैं जो व्यापार नेटवर्क में श्रृंखला का एक हिस्सा होते हैं जिसमें पैसा हासिल करने के लिए आईपी का अनधिकृत (अनऑथराइज) शोषण शामिल होता है। चोरी के मामले में, कॉपीराइट, पेटेंट आदि का जानबूझकर उल्लंघन शामिल है। आईपी अपराध दुनिया के लिए नए नहीं हैं। तकनीकी प्रगति के कारण, ऐसे व्यवसाय दुनिया भर में फैले हुए हैं।
आईपी कानून के तहत आपराधिक प्रावधान
आईपी कानून के तहत, केवल ट्रेडमार्क अधिनियम और कॉपीराइट अधिनियम आपराधिक प्रावधानों को निर्धारित करता है। पेटेंट और डिजाइन कानून में अधिकारों के उल्लंघन के लिए कोई आपराधिक उपाय नहीं है।
- ट्रेडमार्क अधिनियम 1999 की धारा 103–108, विभिन्न आधारों पर ट्रेडमार्क के उल्लंघन के लिए कारावास और जुर्माने का प्रावधान करता है। धारा 115 पुलिस अधिकारियों को तलाशी और जब्ती की शक्ति भी देती है। हालांकि धारा 115(4) के प्रावधान के तहत “बशर्ते कि पुलिस अधिकारी, कोई भी तलाशी और जब्ती करने से पहले, ट्रेडमार्क से संबंधित अपराध में शामिल तथ्यों पर रजिस्ट्रार की राय प्राप्त करेगा और इस तरह प्राप्त राय का पालन करेगा।” इस प्रकार ऐसा कोई भी काम करने से पहले पुलिस अधिकारियों के लिए इस प्रावधान का पालन करना आवश्यक है।
- कॉपीराइट अधिनियम 1957 की धारा 63–69 कॉपीराइट उल्लंघन के लिए सजा के रूप में कारावास का प्रावधान करती है।
ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 और कॉपीराइट अधिनियम, 1957 दोनों, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट के उल्लंघन और कार्रवाई से संबंधित प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन (इंप्लीमेंटेशन) के लिए क्रमशः धारा 115 और धारा 64 के तहत पुलिस को तलाशी और जब्ती की शक्ति प्रदान करते हैं।
आईपीआर अपराधों के प्रकार
आईपीआर उल्लंघन
आपके आईपी अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है यदि आपके बौद्धिक कार्य जो संबंधित आईपी कानूनों के तहत संरक्षित है, का आपकी अनुमति के बिना कॉपी या अन्यथा उपयोग या शोषण किया जाता है। इसमें उत्पाद के लिए आपके मार्क का अनधिकृत उपयोग शामिल है। अंकों की सटीक नकल के अलावा, आईपी उल्लंघन में भ्रामक रूप से समान मार्क का उपयोग भी शामिल होगा। इस प्रकार, उल्लंघन एक व्यापक अवधारणा है जिसमें केवल धोखे से लेकर सटीक नकल तक सब कुछ शामिल है।
आईपीआर जालसाजी
जालसाजी किसी चीज की कपटपूर्ण नकल है। उदाहरण के लिए किसी ट्रेडमार्क को किसी भी व्यक्ति द्वारा सटीक या काफी हद तक समान उत्पाद के लिए उपयोग करके नकली बनाया जा सकता है, यह दर्शाता है कि यह मूल स्रोत (सोर्स) से उत्पन्न हुआ है। जालसाजी में सटीक नकल शामिल है, जिससे असली और नकली उत्पाद काफी हद तक अप्रभेद्य (इनडिस्टिंग्विशेबल) हो जाते हैं। जालसाजी प्रकृति में अधिक गंभीर है। यह एक संज्ञेय (कॉग्निजेबल) अपराध है और भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय है। नकली सामानों के कुछ सबसे सामान्य उदाहरणों में नकली हैंडबैग, कपड़े, उपकरण, इत्र और इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं।
आईपीआर चोरी
चोरी में किसी की सहमति के बिना उसकी संपत्ति को लूटना शामिल है। अमूर्त प्रकृति के कारण बौद्धिक संपदा शाब्दिक अर्थ में चोरी का विषय नहीं है। हालाँकि, बौद्धिक संपदा के मामले में चोरी आईपी के उल्लंघन से जुड़ी कुछ भौतिक (फिजिकल) संपत्ति की हो सकती है, जिसमें उल्लंघनकर्ता किसी के विचार, आविष्कार, रचनात्मक अभिव्यक्ति, व्यापार रहस्य आदि की चोरी करता है, जो उसके लिए मूल्यवान अमूर्त बौद्धिक संपदा हैं। हालांकि चोरी आपराधिक कार्यवाही का विषय है, आईपी चोरी को सिविल और आपराधिक दोनों प्रक्रियाओं द्वारा दूर किया जा सकता है। जब ट्रेडमार्क जालसाजी या कॉपीराइट चोरी जानबूझकर और व्यावसायिक स्तर पर होती है तब आपराधिक प्रक्रिया अनिवार्य है।
साइबर चोरी
आज के युग में, आईपीआर अपराधों में एक बड़ी चुनौती साइबर अपराध है जो लगातार बदलते चेहरे के कारण है। साइबर अपराध में कंप्यूटर और इंटरनेट का उपयोग करके विचारों, व्यापार रहस्यों, कॉपीराइट, पेटेंट की चोरी करना, शामिल हैं। अन्य आईपी के बीच, व्यापार रहस्य और कॉपीराइट लुटेरों द्वारा अक्सर दुरुपयोग किए जाने वाले आईपी जैसे प्रसिद्ध व्यंजनों की चोरी, वेबसाइट इंटरफेस, डिजाइन, व्यापार रणनीति आदि होते हैं। आम तौर पर इन सामग्रियों को प्रतिद्वंद्वी (राइवल) कंपनियों को भारी प्रतिफल (कंसीडरेशन) के लिए बेचा जाता है जो फिर इसका फायदा उठाते हैं। तेजी से बढ़ती “जी” तकनीक ने आश्चर्यजनक विचारों का उपयोग करके आईपी चोरी का मार्ग प्रशस्त (पेव) किया है। एक व्यक्ति कंप्यूटर और इंटरनेट का उपयोग करके एक ही स्थान पर बैठकर किसी के भी आईपी का दुरुपयोग कर सकता है। पायरेसी, जो एक आईपी चोरी भी है, भारत में बहुत आम है। लोग आसानी से पुस्तकों, फिल्मों, सॉफ्टवेयर आदि की चोरी की हुई प्रतियां प्राप्त करने का प्रबंधन कर सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप कॉपीराइट स्वामी / धारक के लिए भारी राजस्व (रिवेन्यू) हानि होती है। ऐसे चोरों को दंडित करने के लिए उनका पता लगाना एक कठिन काम हो जाता है क्योंकि वे आसानी से गायब हो जाते हैं और कंप्यूटर से डेटा हटा देते हैं।
जालसाजी और चोरी दोनों को भारतीय कानूनों यानी भारतीय दंड संहिता 1860, ट्रेडमार्क अधिनियम 1999, कॉपीराइट अधिनियम 1957 और सूचना प्रौद्योगिकी (टेक्नोलोजी) अधिनियम, 2000 के तहत अपराधों के रूप में मान्यता दी गई है।
सरकारी उपाय
21वीं सदी में, देशों की प्रगति उनकी ज्ञान अर्थव्यवस्था के माध्यम से तेज होती है जो रचनात्मक समर्थन और नवाचारों (इनोवेशन) के लिए राष्ट्र की नीति पर निर्भर करती है। भारत में, डीपीआईआईटी (उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग) (डिपार्टमेंट फॉर प्रोमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड) देश में आईपीआर के पोषण के लिए नोडल विभाग है। भारत में, आईपीआर के लिए कानूनी ढांचा काफी विकसित है। उच्च स्तर पर आर्थिक और सामाजिक लाभ प्राप्त करने के लिए आईपीआर नीति को मजबूत करते हुए, यह एक आईपी पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन उन आईपी की सुरक्षा के लिए एक प्रभावी निर्णायक तंत्र भी उतना ही महत्वपूर्ण है। भारत सरकार ने साइबर सुरक्षा की घटनाओं को रोकने और कम करने के लिए कई उपाय किए हैं। राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (नेशनल साइबर कॉर्डिनेशन सेंटर) (एनसीसीसी) भारत में एक परिचालन (ऑपरेशनल) साइबर सुरक्षा और ई-निगरानी एजेंसी है। इसी तरह भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आईसीसीसी) देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए गृह मंत्रालय (एमएचए) की एक पहल है।
राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अपने कानून प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) तंत्र के माध्यम से अपराधों की रोकथाम, पता लगाने, जांच और अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार हैं। इसलिए, 2016 में, भारत की पहली साइबर अपराध इकाई तेलंगाना राज्य में स्थापित की गई थी। इसके बाद, महाराष्ट्र ने भी डिजिटल चोरी से लड़ने के लिए महाराष्ट्र साइबर डिजिटल अपराध इकाई (एमसीडीसीयू) की स्थापना करके इसका अनुसरण (फॉलो) किया। इस इकाई ने उल्लंघनकारी सामग्री वाली कई साइटों को हटा दिया है। इसके बाद मिजोरम राज्य ने भी इसी तरह की एक इकाई की स्थापना की।
इसके अतिरिक्त, सरकार ने न्यायिक आईपी मामलों में देरी को कम करने और विशेषज्ञता बढ़ाने के लिए वाणिज्यिक (कमर्शियल) न्यायालय अधिनियम, 2016 को अधिनियमित किया। हालांकि भारतीय कानून, धारा 63-B के तहत, कंप्यूटर पर किसी कंप्यूटर प्रोग्राम की उल्लंघनकारी प्रति के जानबूझकर उपयोग को अपराधी बनाता है, लेकिन सभी कॉपी की गई डिजिटल सामग्री यानी इंटरनेट से डाउनलोड की गई मूवी और ऑडियो फ़ाइलें आदि को आपराधिक अपराध नहीं कहा जाता है। निर्धारित सजा 7 दिन से 3 साल के बीच कुछ भी हो सकती है और जुर्माना पचास हजार से दो लाख रुपये के बीच कुछ भी हो सकता है।
भारत में आईपीआर उल्लंघन के लिए आपराधिक उपाय
सीआरपीसी की अनुसूची I के भाग II के तहत, वे अपराध जो 3 साल से कम कारावास या केवल जुर्माने से दंडनीय हैं, जमानती और गैर-संज्ञेय (नॉन कॉग्निजेबल) हैं। हालांकि, 3 साल और उससे अधिक के कारावास से दंडनीय अपराध, लेकिन 7 साल से अधिक दंडनीय नहीं, गैर-जमानती और संज्ञेय हैं। कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 और ट्रेडमार्क अधिनियम की धारा 103, कुछ अपराधों के लिए कम से कम 6 महीने के कारावास की सजा का प्रावधान करती है और इसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। इसलिए, विवादास्पद मुद्दा यह था कि क्या कॉपीराइट अधिनियम और ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत शब्द ‘3 साल तक बढ़ाया जा सकता है’ को सीआरपीसी में इस्तेमाल किए गए ‘3 साल और उससे अधिक’ शब्दों के साथ जोड़ा जा सकता है?
हाल ही में, माननीय बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पीयूष सुभाषभाई रानीपा बनाम महाराष्ट्र राज्य में अग्रिम जमानत (एंटीसिपेटरी बेल) अर्जी संख्या 2021 की 336 में जमानत अर्जी खारिज करते हुए इस मसले पर फैसला किया है। माननीय अदालत ने कहा कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 और ट्रेडमार्क अधिनियम की धारा 103 के तहत अपराध गैर-जमानती हैं। इसने कॉपीराइट कानून और ट्रेडमार्क कानून के तहत प्रासंगिक (रिलेवेंट) प्रावधानों पर विचार किया है जो स्पष्ट रूप से 3 साल तक की सजा का प्रावधान करते है। यानी ठीक 3 साल की सजा दिए जाने की संभावना है। और इसलिए, ऐसे अपराध गैर-जमानती होंगे। तदनुसार, न्यायालय ने माना कि कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 और ट्रेडमार्क अधिनियम की धारा 103 के तहत अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय हैं।
बौद्धिक संपदा अधिकार (आयातित (इंपोर्टेड) सामान) प्रवर्तन नियम, 2007
आईपी उल्लंघन गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए कानून को और अधिक सख्त बनाते हुए, सरकार को आईपी अधिकार धारक से भी सहयोग की उम्मीद है। इसलिए सरकार ने बौद्धिक संपदा अधिकार (आयातित सामान) प्रवर्तन नियम, 2007 तैयार किया था, जिसका उद्देश्य भारतीय बाजार में आयात किए जाने वाले सामानों की जालसाजी और उल्लंघन को प्रतिबंधित करना था। इस सीमा शुल्क (कस्टम) रिकॉर्ड प्रक्रिया में, कोई भी आईपी अधिकार धारक भारतीय सीमा शुल्क आईपीआर रिकॉर्डेशन पोर्टल के माध्यम से अपने आईपी अधिकार यानी ट्रेडमार्क, डिजाइन, कॉपीराइट, जीआई को सीमा शुल्क प्राधिकारी (अथॉरिटी) के साथ ऑनलाइन रिकॉर्ड कर सकता है। अधिकारों के इस तरह के रिकॉर्ड दाखिल करने पर, सीमा शुल्क अधिकारी केवल उचित संदेह पर प्रवेश बिंदु पर किसी भी उल्लंघन/अवैध सामान के लिए कड़ी निगरानी रखते हैं और उन्हें जब्त कर लिया जाता है। उसके बाद, सीमा शुल्क अधिकारी दोनों पक्षों यानी आयातक और अधिकार धारक को माल की निकासी के निलंबन (सस्पेंशन) के बारे में सूचित करते हैं।
पहले, पेटेंट भी इस सूची में था, लेकिन बाद में, इसे नए आईपीआर संशोधन नियम ‘2018 द्वारा हटा दिया गया, जिसके द्वारा सरकार ने केवल पेटेंट धारक द्वारा उल्लंघन की शिकायतों को प्राप्त करते हुए, आयातित माल को जब्त करने के लिए सीमा शुल्क अधिकारियों की शक्ति को रद्द कर दिया। सीमा शुल्क विभाग के तहत यह प्रक्रिया आईटी क्षेत्र में वर्तमान उन्नत प्रौद्योगिकी में एक द्वारपाल के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
आपराधिक प्रक्रियाएं
अपराधों की संज्ञेय श्रेणी होने के नाते, ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 और कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के तहत अपराध की जांच पुलिस द्वारा केवल एक प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करके की जा सकती है। आगे ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 115(4) के तहत, ट्रेडमार्क के संबंध में एक आपराधिक कार्रवाई के लिए ट्रेडमार्क रजिस्ट्रार की राय अनिवार्य है। लेकिन इसमें कई प्रक्रियाएं शामिल हैं। इस प्रकार, पुलिस अधिकारी के समक्ष प्राथमिकी दर्ज करने के बजाय, मजिस्ट्रेट के समक्ष एक सीधी आपराधिक शिकायत एक अधिक प्रभावी विकल्प होगा जिसमें ट्रेडमार्क रजिस्ट्रार से राय प्राप्त करने की शर्त को माफ किया जा सकता है। इसके अलावा, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 93 और धारा 94 के तहत कोई भी ज्ञात और अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ तलाशी और जब्ती की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध कर सकता है।
भारत में आपराधिक उपाय और सिविल उपाय
आपराधिक उपाय | सिविल उपाय |
कुछ ज्ञात या अज्ञात उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ शुरू किए जाने के बावजूद आपराधिक कार्रवाई सामान्य प्रतिरोध (डिटेरेंस) को प्रभावित करती है। | एक सिविल कार्रवाई एक विशेष व्यक्ति की ओर निर्देशित होती है। |
इसमें कारावास/जुर्माने या दोनों का प्रावधान है। | इसमें निषेधाज्ञा प्रदान की जाती है। |
इसकी कार्रवाई अधिक कठोर है। | इसमें आपराधिक उपाय की तुलना में कम गंभीर कार्रवाई है। |
इसके लिए किसी प्रकार के आपराधिक इरादे जैसे कि इच्छाशक्ति, मेन्स रीआ आदि की आवश्यकता होती है। | यहां तक कि उल्लंघन के अनजाने में किए गए कार्य भी सिविल कार्रवाई को आकर्षित कर सकते हैं। |
जालसाजी, चोरी, साइबर चोरी एक आपराधिक अपराध है। | उल्लंघन, आईपीआर का अनधिकृत उपयोग आम तौर पर सिविल गलत के अंतर्गत आता है। |
पुलिस का सामना करने में सामाजिक आलोचना और शर्मिंदगी जुड़ी हुई है। | इसमें पुलिस कार्रवाई शामिल नहीं है। |
इसमें आईपी अधिकार धारक की मूर्त (टैंजिबल) संपत्ति का नुकसान शामिल हो सकता है। | इसमें मूर्त संपत्ति का नुकसान नहीं होता है। |
इसमें अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। | इसमें उल्लंघनकर्ता की पहचान अज्ञात होने पर कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती है। |
किसी ज्ञात या अज्ञात उल्लंघनकर्ता के खिलाफ तलाशी और जब्ती की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध, सी.आर.पी.सी की धारा 93 और 94 के तहत किया जा सकता है। | किसी अज्ञात उल्लंघनकर्ता के खिलाफ तलाशी और जब्ती की कार्यवाही का कोई अनुरोध नहीं किया जा सकता है। |
एक आपराधिक कार्रवाई में दंडात्मक (प्यूनीटिव) क्षति प्रदान की जा सकती है। | इसमें उल्लंघन करने वाले के खिलाफ दंडात्मक क्षति होने की संभावना बहुत कम होती है। |
आईपी अधिकार धारक द्वारा शिकायत के अभाव में राज्य या राष्ट्र द्वारा गलत काम करने वालों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू की जा सकती है। | इसमें केवल आईपी अधिकार धारक ही गलत काम करने वालों के खिलाफ सिविल कार्रवाई शुरू कर सकते हैं। |
आईपी अधिकारों का गैर-पंजीकरण (नॉन रजिस्ट्रेशन) आपराधिक उपाय की शुरुआत को रोकता नहीं है। | इसमें आईपी अधिकार धारकों के गैर-पंजीकरण उल्लंघन के मुकदमे शुरू नहीं कर सकते हैं, लेकिन उनके पास सामान्य कानून के तहत कार्रवाई को पारित करने का उपाय होगा। |
आईपी अपराधों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार किसके पास है?
धारा 63 के संबंध में आंध्र प्रदेश राज्य बनाम नागोटी वेंकटरमण, सिविल अपील संख्या 1996 की 1644-45 (एसएलपी (सीआरएल) संख्या 1991 की 2002-03 से उत्पन्न हुई) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उठाये गए एक दिलचस्प मुद्दे में 20 अगस्त 1996 को निर्णय लिया कि क्या कॉपीराइट के मालिक की पहचान धारा 63 या 68-A के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए एक पूर्व शर्त है, जैसा कि इस प्रावधान के तहत हो सकता है। यह मामला बड़े पैमाने पर वीडियो चोरी के संदर्भ में सामने आया, जहां प्रतिवादी को ‘वीडियो कैसेट’ माध्यम में सिनेमैटोग्राफ फिल्मों के अनधिकृत प्रजनन (रिप्रोडक्शन) और किराये पर लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था। प्रतिवादी ने दलील दी कि इन सिनेमैटोग्राफ फिल्मों के कॉपीराइट मालिकों ने उनके आचरण के खिलाफ शिकायत नहीं की थी, और ऐसी शिकायत के अभाव में, उन्हें उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता था। इस तर्क को खारिज करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष के लिए कॉपीराइट के मालिक का पता लगाना और कॉपीराइट के उल्लंघन के सबूत पेश करना अनावश्यक होगा।
क्या आपराधिक उपाय लागू करने से पहले आईपी अधिकारों का पंजीकरण अनिवार्य है?
प्रासंगिक कानून में प्रदान किए गए आपराधिक उपाय में कहीं भी अपराधी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए पंजीकृत शब्द नहीं है। कई निर्णयों में, यह निर्धारित किया गया है कि कॉपीराइट या ट्रेडमार्क का पंजीकरण केवल स्वामित्व के तथ्य का रिकॉर्ड है, लेकिन यह आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए पूर्व शर्त नहीं हो सकता है। इसलिए, एक अपंजीकृत ट्रेडमार्क के धारक भी आपराधिक कार्रवाई का सहारा ले सकते हैं। हालांकि, गैर-पंजीकरण केवल एक सिविल उल्लंघन कार्रवाई की शुरुआत के संबंध में एक रोक के रूप में कार्य कर सकता है और एक सामान्य कानूनी उपाय है जो एक पारित कार्रवाई की शुरूआत को रोकता नहीं है। फिर भी, आईपी के पंजीकरण की हमेशा अनुशंसा (रिकमेंड) की जाती है और यह तत्काल आदेश प्राप्त करने के लिए बहुत मददगार होता है।
निष्कर्ष
आत्मानिर्भर भारत के माध्यम से भारत सरकार की पहल को देखते हुए, आईपी शासन को मजबूत करने की आवश्यकता को और अधिक महत्व मिला है। एक आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से शक्तिशाली देश बनने के लिए, आईपी अधिकारों के लिए सख्त प्रवर्तन तंत्र प्रासंगिक आईपी कानूनों के पीछे के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। 21वीं सदी में कंप्यूटर और इंटरनेट ने डिजिटल और तकनीकी क्रांति लाई जिससे स्वाभाविक रूप से आईपी परिसंपत्तियों (एसेट) की विविधता में वृद्धि हुई। लेकिन साथ ही, इसने आईपी उल्लंघन के कई तरह के विचारों को जन्म दिया है। हमारा भारतीय कानून आईपी अपराधों के लिए सिविल और आपराधिक दोनों तरह के उपाय प्रदान करता है। सिविल मामलों में, आईपी मालिक को निषेधाज्ञा आदेश मिल सकता है। लेकिन यह तब प्राप्त किया जा सकता है जब गलत करने वाले का पता लगाया जाए। आईपी चोरी, जालसाजी, साइबर चोरी आदि जैसे अपराधों के मामले में अपराधी की पहचान का पता लगाना बहुत मुश्किल काम होता है। लेकिन ऐसे परिदृश्यों में, आपराधिक कार्रवाई अधिक सहायक हो जाती है जिसमें पुलिस अधिकारियों के पास ज्ञात और अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ तलाशी और जब्ती सहित विभिन्न शक्तियां होती हैं। एक आपराधिक उपाय की मूलभूत विशेषताएं, यानी आईपी धारक ज्ञात/अज्ञात गलत काम करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही शुरू कर सकते हैं और सामाजिक कलंक का निवारक प्रभाव इसे भारत में आईपीआर उल्लंघन के लिए एक अधिक उपयोगी और उचित उपाय बनाता है। और इसे शुरू करने के लिए, आईपी पंजीकरण, हालांकि सलाह दी जाती है, अनिवार्य पूर्व शर्त नहीं है। हालांकि, हर उल्लंघन को अपराध नहीं कहा जा सकता है।
हालांकि आईपी उल्लंघन के लिए आपराधिक उपाय सिविल उपाय की तुलना में कम खर्चीला और तेज है, लेकिन यह आईपी धारक को मुआवजा नहीं देता है। साथ ही, आईपी अपराधों में आपराधिक अदालतों के साथ-साथ जांच एजेंसियों की विशेषज्ञता कानून के तहत अलग से नहीं दी गई है और इसके अभाव में, आपराधिक उपाय का लाभ उठाने के सभी प्रयास व्यर्थ हो सकते हैं। अपराधीकरण के अलावा, यदि इसका दुरुपयोग किया जाता है, तो इसके विपरीत प्रभाव हो सकते हैं। इस प्रकार, हालांकि आपराधिक उपाय सबसे प्रभावी उपाय है, वही एक दोधारी तलवार है जिसे सावधानी से उपयोग करने की आवश्यकता है।
संदर्भ