कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत विदेशी कंपनी

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Companies Act, 2013

इस लेख में, Somya Agarwal कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत विदेशी कंपनी से संबंधित प्रावधानों पर चर्चा करती हैं। इस लेख का अनुवाद Shreya Prakash के द्वारा किया गया है।

परिचय

सार्वजनिक, निजी या सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों जैसी विभिन्न प्रकार की कंपनियां हैं जो एक देश में काम करती हैं। उनकी विशिष्ट प्रकृति के आधार पर, प्रत्येक प्रकार की कंपनी के लिए उपयुक्त नियम और विनियम (रेगुलेशन) तैयार करने होते हैं। घरेलू कंपनियों के लिए हर देश में विशेष नियम और कानून लागू होते हैं। इसी तरह, अपने गृह देश के अलावा किसी अन्य देश में काम करने वाली कंपनी को संचालन के दिए गए स्थानीय क्षेत्र और उस देश के नियमों और विनियमों का पालन करना आवश्यक है, जहां इसे मूल रूप से निगमित (इनकॉरपोरेट) किया गया है।

भारत में, एक विदेशी कंपनी को घरेलू कंपनी की तुलना में कुछ विशेष या संशोधित प्रावधानों का पालन करना अनिवार्य होता है। उदाहरण के लिए, भारत में निवेश करने या कार्यालय स्थापित करने के समय एक विदेशी कंपनी को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट – फेमा) का पालन करना आवश्यक होता है। इसी तरह, यदि विदेशी कंपनी माल की बिक्री या सेवाएं प्रदान करने में शामिल है, तो उसे भारतीय कर (टैक्स) कानूनों का पालन करना आवश्यक होता है।

एक ‘विदेशी कंपनी’ एक ऐसी संस्था होती है, जो भारत के बाहर निगमित होती है, लेकिन उनका भारत में व्यवसाय का स्थान होता है या वे किसी अन्य तरीके से भारत में कोई व्यावसायिक गतिविधि करती है। विदेशी कंपनी की सटीक परिभाषा कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत दी गई है, हालांकि पुराने अधिनियम में भी ‘विदेशी कंपनी’ की अवधारणा मौजूद थी।

पुराने अधिनियम के तहत परिभाषा: कंपनी अधिनियम, 1956

पहले के कंपनी अधिनियम 1956 (पुराना अधिनियम), ने ‘विदेशी कंपनी’ के लिए कोई परिभाषा प्रदान नहीं की थी। पुराने अधिनियम की धारा 591, उपधारा 1, के तहत किसी कंपनी को विदेशी कंपनी के रूप में वर्गीकृत करने के लिए एकमात्र उपाय था।

धारा 591 (1) में कहा गया है कि विदेशी कंपनियों का मतलब कंपनियों के निम्नलिखित दो वर्गों से होगा:

  1. भारत के बाहर निगमित कंपनियाँ, जो पुराने अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, भारत के भीतर व्यवसाय का स्थान स्थापित करती हैं; और
  2. भारत के बाहर निगमित कंपनियाँ जिन्होंने, पुराने अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले, भारत के भीतर व्यवसाय का एक स्थान स्थापित किया है और पुराने अधिनियम के प्रारंभ में भारत के भीतर व्यवसाय का एक स्थापित स्थान जारी रखा है।

व्यवसाय के स्थान का अर्थ है वह परिसर जहां भौतिक (फिजिकल) या दृश्य संकेत (विजिबल इंडिकेशन) है कि उस कंपनी से वहां संपर्क किया जा सकता है। भारतीय अदालतों ने एक विदेशी निकाय कॉर्पोरेट के लिए भारत में एक भौतिक उपस्थिति स्थापित करने की आवश्यकताओं पर जोर दिया है, जिसे भारत में व्यवसाय का स्थान माना जाता है, और इसके परिणामस्वरूप कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत एक ‘विदेशी कंपनी’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। विलिस यूरोप बीवी बनाम विलिस इंडिया इंश्योरेंस ब्रोकर्स (पी) लिमिटेड के मामले में, बॉम्बे के उच्च न्यायालय ने देखा कि “धारा 591(1) (a) उन कंपनियों पर लागू नहीं होती है जो भारत में कारोबार करती हैं, बल्कि उन कंपनियों पर लागू होती हैं जो भारत में कारोबार का स्थान स्थापित करती हैं।”

यह निर्धारित करने में कि क्या किसी विदेशी कंपनी ने कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 591 के तहत भारत में व्यवसाय का स्थान स्थापित किया है, डाबर (नेपाल) पी. लिमिटेड बनाम वुडवर्थ ट्रेड लिंक्स पी. लिमिटेड के मामले में दिल्ली के उच्च न्यायालय ने यह माना था कि “एक कंपनी को भारत में व्यवसाय की जगह स्थापित करने के लिए आयोजित किया जाएगा यदि उसके पास एक निर्दिष्ट या पहचान योग्य स्थान है जिस पर वह व्यवसाय करता है, जैसे कार्यालय, भंडारगृह (स्टोर हाउस), गोदाम या अन्य परिसर, और जगह और उसके व्यवसाय के बीच कुछ ठोस संबंध है।”

उपर दिया गया वाक्य यह स्पष्ट करता है कि 1956 के अधिनियम के तहत, ‘विदेशी कंपनी’ की परिभाषा विशेष रूप से भारत में ‘व्यवसाय की जगह’ स्थापित करने की शर्त पर आधारित थी। व्यापार का भौतिक स्थान होने की आवश्यकता ने भारत में काम करने वाली बहुत सारी कंपनियों को विदेशी कंपनियों के रूप में प्रतिबंधित कर दिया था। तकनीकी उछाल के कारण, विभिन्न कंपनियां बिना किसी भौतिक उपस्थिति के देश में काम कर रही थीं, और केवल इंटरनेट के माध्यम से अपने कार्यों का समन्वय (कोऑर्डिनेशन) कर रही थीं और भारतीय नागरिकों को सेवाएं प्रदान कर रही थीं।

2013 के दौरान भारत में कंपनी कानूनों के ओवरहाल के दौरान, विदेशी कंपनियों की परिभाषा का भी विस्तार किया गया ताकि भारत में कार्यरत सभी प्रकार की कंपनियों को शामिल किया जा सके और उनके कामकाज को विनियमित किया जा सके।

कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत विदेशी कंपनी की परिभाषा और इसका दायरा

कंपनी अधिनियम, 2013 (नया अधिनियम) की धारा 2 उप-धारा 42 के तहत ‘विदेशी कंपनी’ शब्द को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। एक विदेशी कंपनी भारत के बाहर निगमित कोई भी कंपनी या निकाय कॉर्पोरेट है जो,

  1. भारत में व्यवसाय का स्थान रखती है, चाहे वह स्वयं हो या एजेंट के माध्यम से हो, भौतिक रूप से हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से हो; और
  2. किसी अन्य तरीके से भारत में किसी भी व्यावसायिक गतिविधि का संचालन करती है।

एक ‘विदेशी कंपनी’ माने जाने के लिए, उपरोक्त दोनों मानदंडों को पूरा करना होगा। इसलिए, इस नई परिभाषा में पहले के अधिनियम की तुलना में व्यापक दायरा है। परिभाषा के दायरे को पूरी तरह से समझने के लिए, ‘इलेक्ट्रॉनिक मोड’ के साथ-साथ ‘व्यावसायिक गतिविधि’ शब्दों को परिभाषित करना आवश्यक है।

इलेक्ट्रॉनिक मोड

कंपनी (परिभाषा विवरण की विशिष्टता) नियम (कंपनीज (स्पेसिफिकेशन ऑफ डेफिनेशंस डिटेल्स) रूल्स), 2014 के नियम 2 (h) के तहत एक विदेशी कंपनी के संदर्भ में ‘इलेक्ट्रॉनिक मोड’ शब्द को परिभाषित किया गया है। इसे कंपनी (विदेशी कंपनियों का पंजीकरण) नियम (कंपनीज (रिजिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन कंपनीज) रूल्स, 2014 के नियम 2 (1) (c) के तहत भी परिभाषित किया गया है।

इलेक्ट्रॉनिक मोड की परिभाषा में सभी इलेक्ट्रॉनिक आधारित लेनदेन शामिल हैं, जैसे व्यवसाय से व्यवसाय और व्यवसाय से उपभोक्ता (कंज्यूमर) लेनदेन, डेटा विनिमय (एक्सचेंज) और अन्य डिजिटल आपूर्ति (सप्लाई) लेनदेन। इसमें आगे सभी ऑनलाइन सेवाएं और सभी संबंधित डेटा संचार सेवाएं शामिल हैं, चाहे वह ई-मेल, मोबाइल डिवाइस, क्लाउड कंप्यूटिंग, सोशल मीडिया, डेटा ट्रांसमिशन या अन्यथा द्वारा संचालित हो।

यह परिभाषा स्पष्ट रूप से बताती है कि भले ही मुख्य सर्वर का स्थान भारत से बाहर हो, फिर भी यह ‘इलेक्ट्रॉनिक मोड’ शब्द के दायरे में आएंगे। इसलिए, यह कहकर इसकी व्याख्या में कोई अस्पष्टता नहीं रह गई है।

व्यावसायिक गतिविधि

कंपनी (पंजीकरण कार्यालय और शुल्क) नियम (कंपनीज (रजिस्ट्रेशन ऑफिसेज एंड फीस) रूल्स), 2014, के नियम 3 के तहत ‘व्यावसायिक गतिविधि’ को परिभाषित किया गया है। ‘व्यावसायिक गतिविधि’ की परिभाषा ‘इलेक्ट्रॉनिक मोड’ के समान है। नियम 3 में कहा गया है कि एक विदेशी कंपनी सहित हर कंपनी जो इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से अपना कारोबार करती है, चाहे उसका मुख्य सर्वर भारत में स्थापित हो या भारत के बाहर, उसका कारोबार भारत में किया माना जाएगा।

इसमें एकमात्र अंतर यह है कि कंपनी (परिभाषा विवरण की विशिष्टता) नियम, 2014 में ‘इलेक्ट्रॉनिक मोड’ की परिभाषा केवल विदेशी कंपनियों पर लागू होती है, जबकि कंपनी (पंजीकरण कार्यालय और शुल्क) नियम, 2014 के तहत परिभाषित ‘व्यावसायिक गतिविधि’ सभी प्रकार की कंपनियों पर लागू होती है।

निर्दिष्ट शब्दों की परिभाषा के अनुसार, कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत एक ‘विदेशी कंपनी’ में न केवल भारत के बाहर निगमित कंपनियां शामिल होंगी, जिन्होंने बाद में व्यावसायिक गतिविधि करने के लिए भारत के क्षेत्र में एक कार्यालय या एक शाखा की स्थापना की, बल्कि इसका विस्तार किसी भी विदेशी कंपनी तक होगा, जिसने इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से भारत में स्थित किसी इकाई या व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का लेन-देन किया है। कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत ‘विदेशी कंपनी’ की इस परिभाषा के आधार पर, भारत के बाहर स्थित एक विदेशी ई-कॉमर्स वेबसाइट, भारत में कोई कार्यालय, कर्मचारी, सर्वर या किसी अन्य प्रकार की भौतिक उपस्थिति नहीं होने पर भी कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों को आकर्षित कर सकती है, यदि कोई भारतीय निवासी ऐसी मर्चेंट वेबसाइट पर ऑर्डर देता है।

कंपनी अधिनियम के तहत विदेशी कंपनी – पुराने और नए अधिनियम के बीच अंतर

पहले तो पुराने अधिनियम और नए अधिनियम के प्रावधान समान प्रतीत होते हैं, लेकिन 2013 के अधिनियम ने विदेशी कंपनियों के दायरे का विस्तार किया है और अनुपालन की जाने वाली आवश्यकताओं को भी बढ़ाया है।

  • विदेशी कंपनी की नई परिभाषा में निकाय कॉरपोरेट’ के साथ-साथ निगम भी शामिल है, इस प्रकार इसका दायरा उन विभिन्न संस्थाओं तक फैला हुआ है जो पहले के अधिनियम में विनियमित नहीं थे। जैसा कि पहले के अधिनियम में केवल कंपनियों को संदर्भित किया गया था, न कि निकाय कॉरपोरेट’ को।
  • 2013 के अधिनियम ने पुराने अधिनियम के तहत आवश्यक ‘विदेशी कंपनी’ के रूप में पहचाने जाने के लिए व्यवसाय करने के लिए भारत में किसी भी प्रकार की भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है। अब, किसी भी आभासी उपस्थिति वाली संस्थाएं भी नए अधिनियम के दायरे में आएंगी।

यह नियम 2(1) (c) (इलेक्ट्रॉनिक मोड की परिभाषा) के साथ कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 379 (विदेशी कंपनियों के लिए अधिनियम का आवेदन) और धारा 2 (42) (विदेशी कंपनी की परिभाषा) और कंपनियों (विदेशी कंपनियों का पंजीकरण) नियम, 2014 के संयुक्त पठन से स्पष्ट होता है जो इस बात को सामने लाता है कि भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता है, क्योंकि ऐसी संस्थाएं जिनकी कोई भौतिक उपस्थिति नहीं है, और फिर भी उनकी आभासी (वर्चुअल) उपस्थिति है, वे भी अब इसके दायरे में आ जाएंगी।

  • नए अधिनियम के तहत विदेशी कंपनी की परिभाषा ने भारतीय कॉरपोरेट द्वारा नियंत्रित विदेशी कंपनियों के लिए नियमों को और विस्तृत कर दिया है, जिससे बाद में अनुपालन का दबाव बढ़ गया है। भारतीय कॉरपोरेट्स द्वारा नियंत्रित विदेशी कंपनियों को अध्याय 22 के प्रावधानों के साथ-साथ भारत में निगमित कंपनियों के लिए निर्धारित नए अधिनियम के अन्य प्रावधानों का पालन करने के लिए अनिवार्य किया गया है। अनिवार्य रूप से, भारतीय नागरिकों या कॉरपोरेट्स द्वारा नियंत्रित विदेशी कंपनियों को भारत में निगमित घरेलू कंपनी के बराबर करना है।

इसके आलोक में, निःसंदेह यह कहा जा सकता है कि 2013 अधिनियम के तहत परिभाषा में स्पष्ट रूप से शर्तों को निर्धारित किया गया है और भारत में विदेशी कंपनी के दायरे का स्पष्ट रूप से सीमांकन (डिमार्केटेड) किया गया है।

कंपनी अधिनियम के तहत विदेशी कंपनी की नई परिभाषा का प्रभाव

नए अधिनियम के तहत विदेशी कंपनियों की परिभाषा का प्रभाव दो गुना हो गया है। पहला, जैसा कि परिभाषा के दायरे का विस्तार हुआ है, इसमें विभिन्न कंपनियां शामिल हैं जो पहले कंपनी अधिनियम के दायरे से बाहर थीं। दूसरा, नए अधिनियम के तहत विदेशी कंपनियों के वैधानिक अनुपालन (स्टेच्यूटरी कंप्लायंस) में वृद्धि हुई है।

1. व्यापक दायरा

विदेशी कंपनी की परिभाषा में ‘इलेक्ट्रॉनिक मोड’ और ‘व्यावसायिक गतिविधि’ को शामिल करने से कंपनी अधिनियम, 2013 के लागू होने पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

विदेशी कंपनी की परिभाषा के तहत ‘इलेक्ट्रॉनिक मोड’ शब्द का दायरा इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से किए गए सभी लेनदेन को अनिवार्य रूप से कवर करने के लिए पर्याप्त व्यापक है। इसलिए, इस तरह की परिभाषा में विभिन्न विदेशी कंपनियों द्वारा किए गए लेनदेन को प्रभावित करने की एक बड़ी क्षमता है। नए अधिनियम के अनुसार, परामर्श सेवाओं (कंसल्टेंसी सर्विसेज), वित्तीय सेवाओं (फाइनेंशियल सर्विसेज), ई-कॉमर्स आदि से संबंधित लेन-देन में शामिल कंपनियों को भारत में ग्राहक आधार रखने के लिए पंजीकरण के माध्यम से भारत में एक स्थायी कार्यस्थल स्थापित करने की आवश्यकता होगी, ताकि देश में काम करना जारी रखा जा सके।

वर्तमान में, कई विदेशी आधारित वेबसाइटें हैं जो भारत में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संचालित होती हैं और कहा जा सकता है कि इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से भारत में व्यापार का स्थान भी रखती है। उदाहरण के लिए, कई एयरलाइनों के साथ संयुक्त उद्यम (ज्वाइंट वेंचर) में ऑनलाइन ट्रैवल कंपनियां अपने ऑनलाइन पोर्टल पर उन एयरलाइनों के टिकट बेचती हैं, एयरलाइन कंपनियां जो भारत में अपने बुकिंग एजेंटों के माध्यम से काम करती हैं या कंपनी या निकाय कॉरपोरेट भारतीय छात्रों को ऑनलाइन कोचिंग प्रदान करती हैं।

इसके अलावा, विदेशी कंपनी की परिभाषा का दूसरा भाग किसी भी अन्य ‘व्यावसायिक गतिविधि’ को संदर्भित करता है जिसमें अब ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइज लिमिटेड जैसे मीडिया और प्रसारण व्यवसाय में कंपनियां शामिल हो गई है, जिनकी एशिया टुडे लिमिटेड जैसी विदेशी सहायक कंपनियां हैं, जो भारत या भारतीय में उपग्रह (सैटेलाइट) सेवाएं प्रदान करती हैं। सिंगापुर और मॉरीशस जैसे देशों में विदेशी सहायक कंपनियों वाली परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां (एसेट मैनेजमेंट कंपनी) भारतीय प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) या भारतीय म्यूचुअल फंड में निवेश कर रही हैं। इस तरह के व्यवसाय पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि उन पर कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत वैधानिक अनुपालन का पालन करने का बोझ होगा।

2. बढ़ा हुआ अनुपालन

भारत के बाहर निगमित विदेशी कंपनियों में कंपनी अधिनियम, 1956 के भाग XI के कुछ प्रावधान हमेशा उन पर लागू होते थे। ऐसी विदेशी कंपनियां जिन्होंने पुराने अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले या बाद में भारत में अपने व्यवसाय की स्थापना की होगी, उन्हें पुराने अधिनियम के कुछ प्रावधानों का पालन करना होगा, जिसमें भारत में व्यवसाय के स्थान के रजिस्ट्रार चार्टर दस्तावेजों में पता, पंजीकरण के लिए निदेशकों (डायरेक्टर्स) का विवरण आदि, भारतीय इकाई के खाते, भारत में संपत्ति पर किए गए शुल्क का विवरण आदि को जमा करना शामिल था।

विदेशी कंपनियों पर लागू प्रावधानों को अब नए अधिनियम के तहत विस्तृत कर दिया गया है। उदाहरण के लिए, पुराने अधिनियम के तहत विदेशी कंपनियों को भारत में संपत्ति पर बनाए गए शुल्कों का विवरण देना था, नए अधिनियम के तहत ऐसी विदेशी कंपनी द्वारा बनाए गए किसी भी शुल्क को कंपनी के रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत करना होगा। वे आगे संबंधित पक्ष के लेनदेन, मुनाफे के प्रत्यावर्तन (रिपेट्रिएशन), आदि के संबंध में एक बयान दर्ज करने के लिए बाध्य हैं और भारत में एक चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा अपने खातों का ऑडिट करवाते हैं। पंजीकरण और अन्य अनुपालन की नई आवश्यकताओं का फिर से विभिन्न कंपनियों के संचालन पर प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यह विदेशी कंपनियों पर बढ़ते बोझ के रूप में कार्य करेगा।

2017 का संशोधन

कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2017 (इसके बाद “संशोधन अधिनियम” के रूप में संदर्भित है) के अधिनियमन से पहले एक अस्पष्टता थी कि क्या 2013 का अध्याय 22 सभी विदेशी कंपनियों या विशेष रूप से 50% चुकता पूंजी (पेड अप शेयर कैपिटल) से कम वाली विदेशी कंपनियों पर लागू था जो भारतीय नागरिक या भारत में निगमित कंपनियों/निकाय कॉर्पोरेट द्वारा धारित होती है।

2013 के अधिनियम की धारा 379 में यह निर्धारित किया गया है कि जहां किसी विदेशी कंपनी की चुकता पूंजी का 50% से कम भारत के एक या अधिक नागरिकों या भारत में निगमित कंपनियों/ निकाय कॉरपोरेट्स के पास नहीं है, ऐसी कंपनी को अध्याय 22 के प्रावधान और 2013 अधिनियम के अन्य प्रावधान का अनुपालन करना होगा, जैसा कि निर्धारित किया गया है।

लेकिन, यह स्पष्ट करने में विफल रहा कि क्या अध्याय 22 ‘भारत के बाहर निगमित कंपनियों’ का जिक्र करते हुए सभी विदेशी कंपनियों पर लागू होता है। प्रावधानों के केवल अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि ‘विदेशी कंपनियों’ को व्यापक तरीके से परिभाषित करने के बाद, विधायिका का इरादा अध्याय 22 की प्रयोज्यता (एप्लीकेबिलिटी) के दायरे को कंपनियों के एक विशिष्ट वर्ग तक सीमित करना नहीं था।

इससे पहले कि विदेशी कंपनियां अपने वैधानिक अनुपालन से बचने के लिए उसी कमी का उपयोग कर सकें, उसी अंतर को पूरा करने की तत्काल आवश्यकता थी। इस मुद्दे को अंततः कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2017 द्वारा संबोधित किया गया है।

“(1) धारा 380 से 386 (दोनों शामिल) और धारा 392 और 393 सभी विदेशी कंपनियों पर लागू होंगे:

बशर्ते कि केंद्र सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, आदेश में निर्दिष्ट विदेशी कंपनियों के किसी भी वर्ग को धारा 380 से 386 और धारा 392 और 393 के किसी भी प्रावधान से छूट दे सकती है और ऐसे प्रत्येक आदेश की एक प्रति, इसे बनने के बाद जितनी जल्दी हो सके, संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखी जाए…”

इस संशोधन ने स्पष्ट किया कि 2013 के अधिनियम का अध्याय 22 किसी भी अन्य शर्त के बावजूद ‘सभी विदेशी कंपनियों’ पर लागू होगा। इस संशोधन ने केंद्र सरकार को 2013 के अधिनियम के एक या अधिक प्रावधानों के अनुपालन से विदेशी कंपनियों के किसी भी वर्ग को छूट देने का अधिकार दिया है।

निष्कर्ष

2013 के अधिनियम और हाल के संशोधनों ने काफी हद तक ‘विदेशी कंपनियों’ की परिभाषा के दायरे को स्पष्ट किया है। फिर भी, दी गई परिभाषा के तहत अभी भी कुछ अंतराल मौजूद हैं। कंपनी कानून समिति ने 2016 की अपनी रिपोर्ट में पाया कि कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत ‘विदेशी कंपनी’ शब्द की परिभाषा ‘इलेक्ट्रॉनिक मोड’ की परिभाषा के साथ पढ़ी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप कंपनी के इंटरनेट आधारित इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन नगण्य (इनसिग्निफिकेंट) हो सकते हैं जो भारत के बाहर निगमित है, और जिसका भारतीय ग्राहकों से कोई पर्याप्त संबंध नहीं है और भारत में कोई भी प्रतिष्ठान (एस्टेब्लिशमेंट) ऐसी परिभाषा के दायरे में नहीं आता है। समिति द्वारा आगे यह मान लिया गया था कि भारत से बाहर निगमित कंपनियों को शामिल करना अव्यावहारिक होगा, जिनकी भारत में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से केवल आकस्मिक उपस्थिति (इंसीडेंटल प्रेजेंस) है, कंपनी का देश में व्यवसाय स्थापित करने का कोई वास्तविक इरादा नहीं है। इसके आलोक में, समिति द्वारा यह सुझाव दिया गया था कि इसे कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत विदेशी कंपनियों के लिए लागू पंजीकरण और अन्य वैधानिक आवश्यकताओं से छूट दी जाए।

समिति की ऐसी सिफारिशों के अलावा, वित्त संबंधी स्थायी समिति (स्टैंडिंग कमिटी ऑन फाइनेंस) (2016-2017) द्वारा जारी 37वीं रिपोर्ट ने कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2016 में इसे लागू करने की मांग की थी। कंपनियों के तहत प्रस्तावित महत्वपूर्ण संशोधनों में से (संशोधन) विधेयक, 2016, 2013 अधिनियम की धारा 379 में प्रस्तावित संशोधन था, जिसमें कहा गया था कि “… इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से आकस्मिक लेनदेन करने वाली विदेशी कंपनियों को अधिनियम के तहत पंजीकरण और अनुपालन व्यवस्था से छूट दी जाएगी।”

कंपनी के उद्देश्यों और कारणों का विवरण (संशोधन) विधेयक, 2016 अधिनियम के तहत कुछ कंपनियों को छूट देने की आवश्यकता पर जोर देता है। विदेशी कंपनियों के लिए कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों की प्रयोज्यता के संबंध में स्पष्टता लाने के लिए विधेयक के खंडों ने इसे और स्पष्ट कर दिया।

हालांकि, संशोधित धारा 379 आकस्मिक लेनदेन के बहिष्करण (एक्सक्लूजन) का उल्लेख नहीं करती है। इसके अलावा, कंपनी अधिनियम, 2013 की संशोधित धारा 379 के प्रावधान के तहत कोई भी आदेश सार्वजनिक डोमेन में पेश नहीं किया गया है। इसलिए, आकस्मिक लेनदेन से संबंधित मुद्दा अभी भी कायम है।

उपर्युक्त पाठ के आलोक में, 2017 के संशोधन अधिनियम के अधिनियमन ने विदेशी कंपनी की परिभाषा के व्यापक दायरे को सीमित कर दिया है, लेकिन फिर भी कंपनी अधिनियम 2013 के तहत ‘विदेशी कंपनी’ की दी गई परिभाषा में सुधार की गुंजाइश है। 

संदर्भ

  • Section 591, Companies Act, 1956.
  • Willis Europe BV v. Willis India Insurance Brokers (P) Ltd. (2011 (113) Bom LR 1842).
  • Dabur (Nepal) P. Ltd. v. Woodworth Trade Links P. Ltd. [2012] 175 Comp Cas 338 (Delhi).
  • Section 2 (42), Companies Act, 2013.
  • Companies (Amendment) Act, 2017 notified on January 8, 2018.
  • Section 77 of Amendment Act amended Section 379 of the Companies Act 2013 the same being notified on February 9, 2018.
  • Report of The Companies Law Committee. New Delhi, Dated 1st February, 2016.
  • Standing Committee on Finance (2016-17) “The Companies (Amendment) Bill, 2016 (Ministry of Corporate Affairs)” Sixteenth Lok Sabha.

 

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