यह लेख Buddhisagar Kulkarni, जो इन-हाउस काउंसल के लिए बिजनेस लॉ में डिप्लोमा कर रहें हैं और के.आई.आई.टी. स्कूल ऑफ लॉ, भुवनेश्वर की छात्रा Raslin Saluja के द्वारा लिखा गया है। इस लेख को Tanmaya Sharma (एसोसिएट, लॉसिखो) के द्वारा संपादित (एडिट) किया गया है। यह लेख इलेक्ट्रॉनिक संविदा (कॉन्ट्रेक्ट) और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों की वैधता और प्रवर्तनीयता (एनफोर्सेबिलिटी) पर प्रकाश डालता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja के द्वारा किया गया है।
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परिचय
कोविड 19 महामारी की विनाशकारी स्थिति और उसके बाद भारत सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों ने सभी व्यावसायिक गतिविधियों को बंद कर के रख दिया था और गंभीर रसद (लॉजिस्टिकल) चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूर किया था। चूंकि भौतिक (फिजिकल) संविदा पर हस्ताक्षर करना संभव नहीं हो रहा था, इसलिए महामारी से पहले चर्चा में रह रहे कई सौदों को रोक दिया गया था। कंपनियों और व्यक्तियों ने ऐसे समय में इलेक्ट्रॉनिक संविदा को चुनने पर विचार किया है। इलेक्ट्रॉनिक संविदा भारत में एक नया विचार नहीं है, और इसे महामारी से बहुत पहले ही पहचान लिया गया था। महामारी के परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक संविदा और दस्तावेजों के इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के निष्पादन (एक्जीक्यूशन) में तेजी आई है।
वहीं दूसरी ओर जैसे-जैसे हम डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहे हैं, इलेक्ट्रॉनिक संविदा, जिन्हें ई-संविदा के रूप में भी जाना जाता है, अब पेपर पर आधारित संविदा की जगह ले रहे हैं। समय के साथ- साथ, व्यापार करने के तरीके में बदलाव आया है, जिसमें आभासी (वर्चुअल) काम को प्राथमिकता दी जा रही है। व्यवसाय ई-संविदा को प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि वे कम पैसों में भी बन जाते हैं और बड़े पैमाने पर लाभ प्रदान करते हैं। कुछ मामलों में तात्कालिकता (अर्जेंसी) की भावना और कंपनियों को अपने व्यवसायों के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता ने लोगों को इस साधन का सहारा लेने की आवश्यकता दिखाई है।
एक ई-संविदा क्या होता है?
एक ई संविदा नियमित तौर पर पेपर और पेन पर आधारित संविदा का डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप होता है। ई-संविदा की आवश्यकताएं भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के तहत लिखित या मौखिक संविदा के समान हैं। इसके अलावा, ई-संविदा की एक अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकता इसकी स्वीकृति है, जिसमें या तो इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर या कोई भी अन्य स्वीकृति के तरीके शामिल है, जो इलेक्ट्रॉनिक रूप पर आधारित हों।
इलेक्ट्रॉनिक संविदा के रूप
इलेक्ट्रॉनिक संविदा के 4 रूप होते हैं:
- श्रिंक रैप संविदा
- क्लिक रैप संविदा
- ब्राउज रैप संविदा
- ई मेल
आइए इन सब रूपों को विस्तार में जाने:
1. श्रिंक रैप संविदा
श्रिंक-रैप संविदा अक्सर सॉफ़्टवेयर लाइसेंसिंग समझौते होते हैं।
“श्रिंक-रैप” नाम सी.डी.-रोम की सिकुड़ी हुई रैप पैकेजिंग से लिया गया है, जिसका उपयोग सॉफ्टवेयर को स्थानांतरित (ट्रांसफर) करने के लिए किया जाता था। जब एक लाइसेंसिंग संविदा को किसी सॉफ्टवेयर के साथ पैक किया जाता है, तो संविदा तब शुरू होता है जब उपयोगकर्ता उत्पाद का उपयोग करने के लिए सिकुड़ने वाले रैप को फाड़ देता है।
सॉफ़्टवेयर इंस्टॉल होने से पहले लाइसेंसिंग संविदा सामने आते हैं और फिर उसके बाद यह आमतौर पर सॉफ़्टवेयर पैकेज के साथ शामिल नहीं होते हैं। अन्य प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक संविदा पर, श्रिंक रैप संविदा का एक अलग लाभ यह होता है की इसमें माल वापस करके उनकी स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है।
2. क्लिक रैप संविदा
क्लिक रैप संविदा, टेक्स्ट के वे बड़े – बड़े ब्लॉक होते हैं जिन्हें आमतौर पर बहुत से लोग नहीं पढ़ते हैं, जो की वेब पर आधारित सेवा, सॉफ़्टवेयर या अन्य सेवाओं का उपयोग करने के लिए संविदा की शर्तों के बारे में बताते है। उपयोगकर्ता को एक बटन पर क्लिक करना होता है या एक बॉक्स पर चेक करना होता है, यह दिखाने के लिए कि वे संविदा के नियमों और शर्तों से सहमत हैं, और इसलिए यही कारण है कि उन्हें क्लिक रैप संविदा कहा जाता है।
आपने शायद देखा होगा कि क्लिक-रैप संविदा, श्रिंक रैप संविदा की तुलना में “कम परक्राम्य (नेगियोशिएबल)” हैं क्योंकि उपयोगकर्ता को अगले वेब पेज पर आगे जाने के लिए या किसी सॉफ़्टवेयर का एक्सेस प्राप्त करने के लिए ऐसे संविदा की शर्तों को स्वीकार करना होता है। संक्षेप में समझें तो, क्लिक रैप समझौते, ऐसी स्थिति बना देते हैं जिसमें उपयोगकर्ता उन शर्तों को स्वीकार करने या छोड़ने के लिए बाध्य होता है और यही चीज क्लिक रैप संविदा की प्रवर्तनीयता से संबंधित कई कानूनी मुद्दों को उठाता है।
3. ब्राउज़ रैप संविदा
आपने निःसंदेह ब्राउज़ रैप संविदा हर रोज़ देखे ही होंगे। वे विभिन्न वेबसाइटों पर इन शब्दों से संबंधित होते हैं जो कहते हैं कि “इन सेवाओं का उपयोग करते रहने से, आप इसके नियम और शर्तों से सहमत होते हैं” या “साइन अप करके, मैं उपयोग की शर्तों से सहमत होता हूं।” ब्राउज-रैप संविदा, ऐसे संविदा होते हैं जिनके लिए आप केवल उसमे प्रदान की गई सेवा का उपयोग जारी रख कर ही या वेब पेज ब्राउज़ करके सहमत होते हैं, और इसलिए यहां से ही इसका यह नाम आता है। इसके अलावा, ब्राउज रैप समझौतों की शर्तें आमतौर पर हाइपरलिंक के माध्यम से देखी जा सकती हैं।
4. ई मेल
ई मेल कुछ ऐसा नहीं है जिसे आप इलेक्ट्रॉनिक संविद की सूची में देखने का अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन फिर भी वे कुछ परिस्थितियों में कानूनी रूप से लागू करने योग्य होते हैं।
ट्राइमेक्स इंटरनेशनल एफ.जेड.ई. बनाम वेदांता एल्युमिनियम लिमिटेड, भारत 2010 के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा यह माना गया था कि यदि ई मेल के माध्यम से किसी अपंजीकृत (अनरजिस्टर्ड) और अहस्ताक्षरित संविदा पर चर्चा की जाती है, तो वह वैध होता है। इसलिए, ऐसे संविदा जिन्हें ई मेल के द्वारा सहमत मिली होती है, वह भी लागू करने योग्य होते हैं। ई मेल को इलेक्ट्रॉनिक रूप से भी हस्ताक्षरित किया जा सकता है, जो यह निर्धारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है कि कोई समझौता संविदा बन जाता है या नहीं।
क्या ई संविदा कानूनी रूप से स्वीकार्य हैं?
किसी भी अन्य मूर्त (टैंजिबल) संविदा की तरह, एक ई संविदा काफी हद तक भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (आई.सी.ए.) के प्रावधानों से बाध्य होता है। जिसके परिणाम स्वरूप, ई संविदा की वैधता, एक वैध संविदा के मानदंडों को पूरा करने पर निर्भर करती है। आइ.सी.ए. की धारा 10 एक कानूनी संविदा के आवाश्यक तत्वों के बारे में बताती है।
- एक पक्ष द्वारा एक प्रस्ताव (ऑफर) दिया जाना चाहिए और दूसरे द्वारा उस प्रस्ताव को स्वीकार किया जाना चाहिए।
- पक्षों का आपसी समझौता होना चाहिए।
- दोनों के बीच कानूनी संबंध स्थापित करने की इच्छा होनी चाहिए।
- संविदा के पक्षों को संविदा में प्रवेश करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम होना चाहिए, जिसका अर्थ यह है कि पक्षों की उम्र 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए, स्थिर (स्टेबल) दिमाग, विलायक (सॉल्वेंट), और आदि होना चाहिए।
- संविदा का उद्देश्य कानूनी होना चाहिए और सार्वजनिक नीति का उल्लंघन नहीं करना चाहिए; उदाहरण के लिए, अवैध नशीले पदार्थों को बेचने का समझौता वैध संविदा नहीं होता है।
- समझौते का समर्थन करने के लिए प्रतिफल (कंसीडरेशन) का उपयोग किया जाना चाहिए, यानी, मौद्रिक या कुछ उसी तरह का मुआवजा होना चाहिए।
- समझौते को अंजाम देना संभव होना चाहिए।
- संविदा के प्रावधान स्पष्ट रूप से दिए जाने चाहिए।
ई-संविदा के इस रूप के कारण, कई कानून हैं जिनमें ई-संविदा को नियंत्रित करने के लिए विशिष्ट प्रावधान दिए गए हैं। ऐसे सभी कानूनों की व्याख्या आई.सी.ए. के प्रावधानों के संयोजन (कंजंक्शन) में की जानी चाहिए न कि एक दूसरे से अलग करके की जानी चाहिए।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट) (आई.टी. अधिनियम) की धारा 4 के तहत ये आवश्यकता दी गई है कि कोई भी जानकारी या मामला जो लिखित रूप में है, उसे तृप्त (सेटिसफाइड) माना जाएगा, यदि ऐसी जानकारी या मामला इलेक्ट्रॉनिक रूप में है और इसे अच्छी तरह से देखा जा सकता है, ताकि इसे भविष्य के विश्लेषण (एनालिसिस) के लिए उपयोग किया जा सके।
इसके अलावा, आई.टी. अधिनियम की धारा 10A के तहत, जहां पर,
- एक संविदा का निर्माण,
- प्रस्तावों का संचार (कम्युनिकेशन),
- प्रस्तावों की स्वीकृति,
- प्रस्तावों को रद्द करना, और
- स्वीकृति, जैसा भी मामला हो, इलेक्ट्रॉनिक रूप में या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के माध्यम के द्वारा किया जाता है, तो ऐसे संविदा को केवल इस आधार पर लागू ना करने योग्य नहीं माना जाएगा कि इस तरह के इलेक्ट्रॉनिक रूप या साधन का उपयोग उस उद्देश्य के लिए किया गया था।
तमिलनाडु ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मामले में, इलेक्ट्रॉनिक नीलामी के परिणाम को मद्रास उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था। इसमें कहा गया था कि इलेक्ट्रॉनिक संविदा के माध्यम से संविदात्मक (कॉन्ट्रैक्चुअल) दायित्व उत्पन्न हो सकते हैं और ऐसे संविदा को कानून के माध्यम से लागू किया जा सकता है। उच्च न्यायालय के अनुसार, आई.टी. अधिनियम की धारा 10A, समझौतों और संविदा को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और इलेक्ट्रॉनिक तरीकों के उपयोग की अनुमति देती है।
ई संविदा के संबंध में आई.टी. अधिनियम के लागू होने के अपवाद (एक्सेप्शन)
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि आई.टी. अधिनियम की पहली अनुसूची (शेड्यूल) में इसको लागू करने से निम्नलिखित दस्तावेजों और लेनदेन को स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया है:
- चेक के अलावा अन्य परक्राम्य लिखत (नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट), जैसा कि परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 13 में निर्दिष्ट किया गया है।
- पावर ऑफ अटॉर्नी अधिनियम, 1882 की धारा 1A में निर्दिष्ट पावर ऑफ अटॉर्नी;
- एक ट्रस्ट, जैसा कि 1882 के भारतीय न्यास अधिनियम (इंडियन ट्रस्ट एक्ट) की धारा 3 में निर्दिष्ट किया गया है;
- एक वसीयत (विल), जैसा कि 1925 के भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2 (h) में वर्णित किया गया है; तथा
- अचल संपत्ति की बिक्री या हस्तांतरण (ट्रांसफर) के साथ साथ ऐसी संपत्ति में कोई हित के लिए कोई संविदा।
आई.टी.अधिनियम के उपरोक्त प्रावधानों को देखते हुए, भारतीय अदालतों ने समय-समय पर इलेक्ट्रॉनिक रूप में किए गए संविदा की वैधता को मान्यता दी है।
ई संविदा पर स्टांप शुल्क
भारत में, लागू केंद्रीय या राज्य स्तर के स्टांप शुल्क नियमों के अनुसार कुछ लिखतों (इंस्ट्रूमेंट) पर एक निश्चित या यथामूल्य (एड वेलोरेम) आधार पर स्टांप शुल्क देय होता है।
स्टांप शुल्क, आमतौर पर उन दस्तावेजों पर लगाया जाता है जो भौतिक रूप से मुद्रित और हस्ताक्षरित होते हैं।
भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 (“स्टांप अधिनियम”) के तहत, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड या उनके निष्पादन पर देय स्टाम्प शुल्क से संबंधित कोई विशेष प्रावधान नहीं है। भारतीय स्टाम्प अधिनियम के अनुसार, एक लिखत कोई भी ऐसा दस्तावेज होता है जो किसी अधिकार या जिम्मेदारी को बनाता है, उसे स्थानांतरित करता है, सीमित करता है, बढ़ाता है, काम करता है, या रिकॉर्ड करता है या ऐसा करने का दिखावा करता है। जबकि ज्यादातर राज्य स्टांप शुल्क क़ानून, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का उल्लेख नहीं करते हैं, लेकिन उनके अलावा कुछ राज्य करते हैं। महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, “लिखत” की परिभाषा में शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन पर स्टाम्प शुल्क लगाया जाता है।
स्टाम्प शुल्क का भुगतान करने में विफल होने के निहितार्थ (इमप्लिकेशंस)
- जैसा कि पहले भी कहा गया है, ऐसा लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक रूप से किया गया कोई भी संविदा (और यदि उपयुक्त स्टाम्प अधिनियमों के तहत वह शुल्क के लिए उत्तरदायी है) स्टाम्प शुल्क भुगतान के अधीन हो सकता है।
- जब तक संबंधित स्टांप ड्यूटी कानून के तहत इलेक्ट्रॉनिक रूप से निष्पादित लिखतों के लिए विशेष प्रभाव निर्धारित नहीं किया गया है, ऐसे दस्तावेजों के संबंध में स्टांप शुल्क का भुगतान करने में विफलता के परिणाम भौतिक लिखतों पर लागू होने वाले परिणामों के समान होंगे।
- जिन दस्तावेजों पर स्टाम्प अधिनियम के अनुसार स्टाम्प शुल्क लगाया जाता है, उन्हें अदालत में साक्ष्य के रूप में अनुमति नहीं है।
फिर भी, स्टाम्प अधिनियम और साथ ही ज्यादातर राज्य स्टाम्प शुल्क विनियमों (रेगुलेशन) के तहत भी, अनुचित रूप से मुहर लगी लिखतों को उचित शुल्क के भुगतान के बाद साक्ष्य के रूप में स्वीकार करते है और शुल्क की राशि के संबंध में 10 गुना तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके अलावा, जो कोई भी गवाह के अलावा अन्य स्टाम्प ड्यूटी के साथ देय ऐसे किसी भी लिखत को निष्पादित या हस्ताक्षर करता है, उस पर उचित रूप से मुहर लगाए बिना मौद्रिक जुर्माना लगाया जा सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर किसी व्यक्ति की पहचान का प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंटेशन), इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रदान करता है। आई.टी. अधिनियम की धारा 2(1)(ta) के तहत इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को इस तरह से परिभाषित किया गया है: “दूसरी अनुसूची में प्रदान की गई इलेक्ट्रॉनिक तकनीक के माध्यम से एक ग्राहक के द्वारा किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का प्रमाणीकरण (ऑथेंटिकेशन) और इसमें एक डिजिटल हस्ताक्षर भी शामिल होता है।”
ई हस्ताक्षर की आवश्यकता
एक हस्ताक्षर का प्राथमिक उद्देश्य एक संविदा को प्रमाणित करना है और उन पक्षों पर इस संविदा को बाध्यकारी बनाना है, जो इस संविदा का हिस्सा बनने के लिए अपनी सहमति व्यक्त करते है। उन मामलों के लिए जहां संविदा ऑनलाइन दर्ज किए जाते हैं और ई मेल के माध्यम से दस्तावेजों का आदान-प्रदान किया जाता है, पक्ष वास्तव में व्यावहारिक रूप से इस पर हस्ताक्षर करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, जिससे ऑनलाइन दस्तावेज़ के प्रवर्तक (ओरिजिनेटर) की पहचान करना और दस्तावेज का प्रमाणीकरण मुश्किल हो जाता है। इस सीमा को ‘ई हस्ताक्षर’ का उपयोग करके दूर किया जा सकता है, जिन्हें कानूनी मान्यता दी गई है और आई.टी. अधिनियम के माध्यम से विनियमित किया जाता है।
ई संविदा के प्रमाणीकरण के लिए इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के मान्यता प्राप्त रूप
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को आई.टी. अधिनियम के तहत शासित किया जाता हैं। इस अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से, इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों और अभिलेखों (रिकार्ड्स) को सत्यापित (वेरिफाई) और प्रमाणित करने के लिए दो प्रकार के ई-हस्ताक्षर को मान्यता दी गई है, जो इस प्रकार हैं:
- डिजिटल हस्ताक्षर जो सममित (सिमेट्रिक) क्रिप्टोसिस्टम और हैश फ़ंक्शन के अनुप्रयोग (एप्लीकेशन) के माध्यम से काम करते हैं।
- दूसरा प्रकार, आई.टी. अधिनियम की दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट किए गए इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर या इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण की विधियां मेथड्स है।
क्या ई हस्ताक्षर कानूनी रूप से स्वीकार्य होते हैं?
ऊपर चर्चा किए गए सभी विषयों में हमने देखा कि कोई भी व्यक्ति कानूनी रूप से इलेक्ट्रॉनिक तरीको के माध्यम से संविदा में प्रवेश कर सकता है। निम्नलिखित प्रश्न इस बात से संबंधित है कि एक इलेक्ट्रॉनिक संविदा को कैसे मान्य किया जा सकता है। पक्ष अपने स्वयं के द्वारा किया गए हस्ताक्षरों के साथ, संविदा पर हस्ताक्षर करके कागजी संविदा को मान्य बना देते हैं। इसी तरह, आई.टी. अधिनियम की धारा 3 और 3A के अनुसार, दोनों पक्ष संविदा में अपने इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर लगाकर इलेक्ट्रॉनिक संविदा को मान्य बना सकते हैं। केंद्र सरकार ने आई.टी. अधिनियम की धारा 3A के तहत परिभाषित इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों को स्वीकार कर लिया है, और उन्हें आई.टी. अधिनियम की अनुसूची II में शामिल किया गया है। वर्तमान में, केंद्र सरकार के द्वारा, दो प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों को मंजूरी दी गई है, जो इस प्रकार है:
1. ई प्रमाणीकरण के लिए आधार या अन्य ई के.वाई.सी. सेवाओं का उपयोग करना
एक उपयोगकर्ता जिसके मोबाइल नंबर से आधार आई.डी. जुड़ी हुई होती है, वह ऑनलाइन ई-हस्ताक्षर सेवा का उपयोग करके सुरक्षित रूप से ऑनलाइन डिजिटल दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर सकता है। इस उदाहरण में, एक एप्लिकेशन सेवा प्रदाता (एप्लीकेशन सर्विस प्रोवाइडर) (ए.एस.पी.) उपयोगकर्ताओं को एक मोबाइल या वेब ऐप इंटरफ़ेस देने के लिए ऑनलाइन ई-हस्ताक्षर सेवा के साथ मिश्रित (अमलगमेट) हो जाता है, जिसके साथ उपयोगकर्ता जुड़ सकते हैं। इसके बाद, उपयोगकर्ता तब किसी भी डिजिटल दस्तावेज़ में ऑनलाइन ई हस्ताक्षर करने के लिए ऐप इंटरफ़ेस का उपयोग कर सकते हैं। एक बार जब उपयोगकर्ता ई हस्ताक्षर सेवा प्रदाता, जैसे कि ओ.टी.पी. (वन-टाइम पासकोड), द्वारा प्रदान की गई ई के.वाई.सी. सेवा का उपयोग करके अपना नाम मान्य कर देता है, तो ई हस्ताक्षर को किसी भी डिजिटल दस्तावेज़ से जोड़ा जा सकता है। ऑनलाइन ई हस्ताक्षर सेवा, सरकार के अनुरूप (कंप्लाएंट) प्रमाण पत्र और प्रमाणीकरण सेवाएं देने के लिए, अधिकृत सेवा प्रदाता के साथ सहयोग करती है।
2. केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित (अप्रूव्ड) प्रमाणन प्राधिकरण (सर्टिफाइंग अथॉरिटी) द्वारा जारी डिजिटल हस्ताक्षर के लिए प्रमाण पत्र पर आधारित ई प्रमाणीकरण तकनीक
इस स्थिति में, कोई व्यक्ति किसी डिजिटल दस्तावेज़ को प्रमाणित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रमाणित, प्रमाणन प्राधिकरण से प्राप्त डिजिटल हस्ताक्षर के लिए प्रमाण पत्र का उपयोग कर सकता है। डिजिटल हस्ताक्षर का प्रमाण पत्र एक व्यक्तिगत पहचान संख्या (पर्सनल आइडेंटिफिकेशन नंबर) (पिन) के साथ यू.एस.बी. टोकन में शामिल होता है। पिन का उपयोग करके डिजिटल दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए यू.एस.बी. टोकन को कंप्यूटर में प्लग करना होता है।
एक इलेक्ट्रॉनिक संविदा के साथ लगा हुआ एक इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर, एक कागजी संविदा से जुड़े हस्तलिखित हस्ताक्षर के बराबर होता है और इसकी वैधता उसी के समान होती है।
आई.टी. अधिनियम की धारा 5 के अनुसार, यदि किसी भी कानून के तहत यह बोला जाता है कि कोई भी जानकारी या किसी अन्य मामले को किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर लगाकर मान्य किया जाए, या किसी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए या उस पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर होने चाहिए, तो ऐसी आवश्यकता को पूरा किया गया तब माना जाएगा, जब ऐसी जानकारी या मामले को इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के माध्यम से प्रमाणित किया जाता है, और उस तरीके से जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा बताया जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के तरीके या तकनीके
जैसा की ऊपर भी बताया गया है, इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को आई.टी. अधिनियम की दूसरी अनुसूची के तहत विनियमित किया गया है और इसमें इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण तकनीक या प्रक्रियाएं भी शामिल हैं। ये तकनीके इस प्रकार हैं:
- बायोमेट्रिक और वन-टाइम-पासवर्ड (ओ.टी.पी.) आधारित आधार ई के.वाई.सी. (अपने ग्राहक को जानें (नो योर कस्टमर)) की तकनीक-
इसका एक उदाहरण आधार ई हस्ताक्षर (ई-साइन) के रूप में भी जाना जाता है। यहां एक व्यक्ति जिसकी आधार आई.डी. उसके मोबाइल नंबर से जुड़ी होती है, वह ऑनलाइन डिजिटल दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए एक ऑनलाइन ई-हस्ताक्षर का उपयोग कर सकता है। यह एक एप्लिकेशन सेवा प्रदाता (ए.एस.पी.) के साथ ऑनलाइन ई-हस्ताक्षर को एकीकृत (इंटीग्रेट) करके उपयोगकर्ताओं को ई के.वाई.सी. या ओ.टी.पी. के माध्यम से उनकी पहचान को प्रमाणित करके, डिजिटल दस्तावेजों पर ई-हस्ताक्षर करने के लिए एक मोबाइल या वेब एप्लिकेशन इंटरफेस प्रदान करने के लिए किया जाता है।
2. अन्य ई के.वाई.सी. सेवाएं जैसे ऑफलाइन आधार ई के.वाई.सी., संगठनात्मक (आर्गेनाइजेशन) ई के.वाई.सी. या बैंकिंग ई के.वाई.सी. की तकनीक-
आप पहचान के सत्यापन के विभिन्न रूपों के बारे में विवरण के लिए प्रमाणन प्राधिकरण के नियंत्रक (सी.सी.ए.) द्वारा जारी किए गए पहचान सत्यापन दिशानिर्देश पा सकते हैं, जो डिजिटल हस्ताक्षर के प्रमाण पत्र बनाने के लिए उपयोगकर्ता पहचान के लिए उपयोग किए जाने वाले फॉर्म होते हैं; तथा
3. ई प्रमाणीकरण तकनीक और विश्वसनीय तृतीय पक्षों द्वारा सुगम (फैसिलिटेट) ग्राहक की हस्ताक्षर कुंजी बनाने और उस तक पहुंचने की प्रक्रिया-
आवेदक (एप्लीकेंट) की पहचान और पते के सत्यापन के सफल होने के बाद डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाण पत्र (डी.एस.सी.) जारी करने के लिए इन तरीकों या तकनीकों का उपयोग किया जाता है। यह आई.टी. अधिनियम के तहत लाइसेंस प्राप्त एक विश्वसनीय स्वतंत्र तृतीय पक्ष (प्रमाणन प्राधिकारी) द्वारा हस्ताक्षरित होता है। एक प्रमाणित प्राधिकारी (सी.ए.) एक इकाई है जिसे सी.सी.ए. द्वारा लाइसेंस प्राप्त है और वह इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाण पत्र जारी करती है। सी.सी.ए., सी.ए. को लाइसेंस प्रदान करने और विनियमित (रेग्यूलेट) करने के लिए आई.टी. अधिनियम के तहत नियुक्त प्राधिकरण है। सी.ए. की वर्तमान सूची यहां उपलब्ध है।
आमतौर पर, एक डी.एस.सी. एक व्यक्तिगत पिन के साथ एक यूनिवर्सल सीरियल बस (यू.एस.बी.) टोकन में समाहित (कंटेन) होता है, जिसका उपयोग यू.एस.बी. को कंप्यूटर में प्लग करके किया जाता है और उस पिन का उपयोग करके डिजिटल दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करके किया जा सकता है। एक डी.एस.सी. में तीन तत्व होते हैं जो इस प्रकार हैं:
- धारक (होल्डर) का नाम और एक्सटेंशन सहित उसकी राष्ट्रीयता (नेशनलिटी), ई मेल एड्रेस, धारक के कार्यस्थल (वर्कप्लेक) का विवरण, धारक की तस्वीर, उसकी उंगलियों के निशान का एक लेआउट, पासपोर्ट नंबर आदि।
- धारक की सार्वजनिक कुंजी (पब्लिक की) की जानकारी।
- प्रमाणीकरण प्राधिकारी।
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की वैधता और प्रवर्तनीयता
आई.टी. अधिनियम की धारा 5 के तहत, इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों को मान्यता दी जाती है और हस्ताक्षर की किसी भी आवश्यकता पर विचार किया जाता है और उसे संतुष्ट माना जाता है, यदि दस्तावेज़ को अधिनियम के तहत निर्धारित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के माध्यम से प्रमाणित किया जाता है। भारतीय कानून के तहत हस्तलिखित हस्ताक्षर के समान स्थिति वाले इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल हस्ताक्षरों और अन्य स्वीकृत वैध इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों की प्रवर्तनीयता के बीच कोई अंतर नहीं होता है। एक वैध इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर (जैसा कि आई.टी. अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त है) का उपयोग करके हस्ताक्षरित इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के लिए वैधता का अनुमान होता है, जिसे किसी कागज़ पर किए हस्ताक्षर के बराबर माना जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के वैध होने के लिए, दो मानदंड होते हैं:
- यह विश्वसनीय होना चाहिए।
- इसे दूसरी अनुसूची के तहत मान्यता दी जानी चाहिए।
एक इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को विश्वसनीय तब ही माना जाता है जब वे इन शर्तों को पूरा करते हैं:
- यह धारक या हस्ताक्षरकर्ता के लिए अद्वितीय (यूनिक) होना चाहिए।
- हस्ताक्षरकर्ता के पास हस्ताक्षर के समय, हस्ताक्षर उत्पन्न करने के लिए उपयोग किए गए डेटा पर नियंत्रण होना चाहिए।
- किसी भी दस्तावेज़ होल्डिंग में कोई भी परिवर्तन पता लगाने योग्य होना चाहिए।
- हस्ताक्षर प्रक्रिया के दौरान उठाए गए कदमों का ऑडिट ट्रेल होना चाहिए।
- डी.सी.ए. को सी.सी.ए. द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, जिसे सी.ए. द्वारा जारी किया जाना चाहिए।
हालांकि, कोई भी इलेक्ट्रॉनिक संविदा जो क्लिक रैप के माध्यम से बनाएं जाते हैं, जो सी.ए. द्वारा जारी न किए गए प्रमाण पत्र है, उन्हें आई.टी. अधिनियम के तहत कोई मान्यता नहीं दी जाती है। हालांकि वे अधिनियम की धारा 10A के आधार पर अमान्य नहीं हो सकते हैं, वे वैधता का अनुमान नहीं रखते हैं और इसलिए उनमें विवाद हो सकते हैं। उन मामलों में, हस्ताक्षरकर्ता को निम्नलिखित साबित करना होता है:
- उत्पन्न हस्ताक्षर अद्वितीय होता है और इसे केवल हस्ताक्षरकर्ता से ही जोड़ा जा सकता है;
- हस्ताक्षर के समय केवल हस्ताक्षरकर्ता ही उस दस्तावेज़ को देख सकता था और उस पर उसका नियंत्रण था;
- हस्ताक्षर में कोई परिवर्तन या हस्ताक्षर के बाद की गई जानकारी का पता लगाया जा सकता है; तथा
- यह भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के तहत एक वैध संविदा की अनिवार्यताओं का पालन करता है, जैसे कि प्रस्ताव, स्वीकृति और कानूनी संबंध बनाने का इरादा, पक्षों की क्षमता, प्रतिफल आदि।
संविदा या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की विषय-वस्तु (सब्जेक्ट मैटर) के संबंध में पक्षों का कोई अन्य आचरण भी इस संदर्भ में जरूरी हो सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की स्वीकार्यता (एडमिसिबिलीटी)
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (इंडियन एविडेंस एक्ट), 1872 के तहत इलेक्ट्रॉनिक समझौतों के हस्ताक्षर और अनुमान के प्रमाण के रूप में भी काम करते हैं। इसमें कहा गया है कि ई संविदा का एक कागजी समझौते के समान कानूनी प्रभाव है और यह धारा 3 में साक्ष्य की परिभाषा के तहत शामिल हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में मान्यता देता है। धारा 65B के अनुसार, यह एक इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ में निहित किसी भी जानकारी को कार्यवाही में स्वीकार्य बनाता है, जिसे उस साक्ष्य के किसी भी मूल दस्तावेज और सबूत के बिना सस्वीकर किया जा सकता है, यदि इसके साथ एक प्रमाण पत्र है, जो बताता है कि:
- रिकॉर्ड बनाने वाले कंप्यूटर का नियमित रूप से उपयोग, उस व्यक्ति द्वारा किया जाता है, जिसका रिकॉर्ड बनाने के समय उस पर वैध नियंत्रण था।
- उक्त कंप्यूटर ने सामान्य गतिविधियों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की जानकारी प्राप्त या संग्रहीत (स्टोर) की थी।
- आउटपुट कंप्यूटर उचित संचालन की स्थिति में था, या, यदि इसमें परिचालन (ऑपरेशनल) से संबंधित कठिनाइयाँ थीं, तो यह दर्ज किए गए डेटा की सटीकता को प्रभावित नहीं करता था, और;
- इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में निहित जानकारी सामान्य गतिविधियों के दौरान कंप्यूटर में दर्ज की गई जानकारी को फिर से पेश करती है।
क्या अदालत में सबूत के तौर पर ई संविदा और ई-हस्ताक्षर का इस्तेमाल किया जा सकता है?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65A और 65B की व्याख्या करते हुए अदालत ने अर्जुन पंडितराव खोतकर बनाम कैलाश कुषाणराव गोरंट्याल और अन्य (2020) के मामले में एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का निष्पादन पूरी तरह से कैसे किया जाता है, पर चर्चा की थी। फैसले के पैरा 72 के अनुसार, एक लैपटॉप कंप्यूटर, कंप्यूटर टैबलेट, या यहां तक कि एक मोबाइल फोन के मालिक द्वारा एक मूल इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ को अदालत में साबित किया जा सकता है, जहां इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ संभाल कर रखा गया है, अगर वे उपर्युक्त साबित करने में सक्षम हैं या तो कटघरे (विटनेस बॉक्स) में प्रवेश करके या धारा 65B(4) के तहत प्रमाण पत्र के साथ धारा 65B के अनुसार ऐसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ का प्रिंटआउट प्रदान करके यह दर्शाता है कि संबंधित डिवाइस, जिस पर मूल डेटा पहले सहेजा गया है, स्वामित्व में है और / या उसके द्वारा नियंत्रित है।
- ऐसे मामलों में जहां पूर्वगामी (फोरगोइंग) संभव नहीं है, ऐसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ का एक प्रिंटआउट प्राप्त किया जा सकता है और साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 B (4) के तहत आवश्यक प्रमाण पत्र के साथ साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 B (1) के अनुसार प्रदर्शित किया जा सकता है, जैसा कि अनवर पीवी बनाम पीके बशीर और अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की एक और तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा स्थापित किया गया था।
- साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 B(4) के तहत प्रमाण पत्र, उपरोक्त निर्णय के अनुसार, उस लिखत के संचालन के संबंध में एक सक्षम आधिकारिक पद रखने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ रखा गया है, और इसे निम्नलिखित मानदंडो को पूरा करना होता है:
- इसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ को पहचानना चाहिए;
- इसे उस प्रक्रिया की व्याख्या करनी चाहिए जिसके माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ बनाया गया था;
- उसे उस दस्तावेज़ के निर्माण में प्रयुक्त लिखत के बारे में जानकारी प्रदान करनी चाहिए; तथा
- प्रमाण पत्र को साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B(2) में निर्दिष्ट मानदंडों को पूरा करना चाहिए।
धारा 47A के तहत न्यायालय, प्रमाणन प्राधिकारी की राय को संदर्भित कर सकता है, जिसने राय बनाने के लिए एक प्रासंगिक तथ्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाण पत्र जारी किया है। इसके अलावा, धारा 85A और 85B के तहत, जब तक इसके विपरीत न साबित हो, तब तक इसे अनुमान का लाभ मिलता है। न्यायालय का मानना है कि:
- इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को सुरक्षित होने का दर्जा मिलने के बाद से उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।
- यह कि ग्राहक का इरादा सुरक्षित डिजिटल हस्ताक्षर लगाने पर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पर हस्ताक्षर या अनुमोदन करने का था।
इस प्रकार, मान्यता प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर तब तक वैध माने जाते हैं जब तक कि इसके विपरीत साबित न हो जाए।
उस संविदा की वैधता जिसे वैधानिक रूप से अधिकृत (ऑथराइज्ड) इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों का उपयोग करके प्रमाणित नहीं किया गया हो
- जैसा की उपर चर्चा की गई है, आधार ई के.वाई.सी. दृष्टिकोण (एप्रोच), जैसे कि अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले कानूनी दस्तावेज़, के अलावा अन्य तरीकों के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर लगाकर निष्पादित किए गए संविदा को लागू करना और उसकी वैधता पर सवाल उठाया जा सकता है।
- वहां जरूरी प्रश्न यह है कि क्या एक संविदा जिसे दोनों पक्षों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप से हस्ताक्षरित किया गया है (आधार ई-के.वाई.सी. दृष्टिकोण के अलावा अन्य तरीकों का उपयोग करके) और पक्षों के बीच ई मेल के माध्यम से संचार (कम्युनिकेशन) किया गया है, यह सिर्फ इसलिए अमान्य है क्योंकि इसमें वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर नहीं है।
- ट्राइमेक्स मामले में इसके प्रावधानों की प्रवर्तनीयता के लिए एक संविदा के औपचारिक (फॉर्मल) निष्पादन की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नानुसार राय दी थी:
तथ्य यह है कि एक संविदा को मौखिक रूप से या लिखित रूप में पूरा करने के बाद पक्षों द्वारा एक औपचारिक संविदा का मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार किया जाना चाहिए और उस पर हस्ताक्षर किए गए संविदा की स्वीकृति या प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ता है, भले ही औपचारिक संविदा पर कभी भी हस्ताक्षर नहीं किया गया हो।
- नतीजतन, यह तर्क दिया जा सकता है कि पक्षों के बीच ई मेल के माध्यम से एक संविदा किया गया है और इसके प्रावधानों के बारे में पक्षों के बीच कोई असहमति नहीं थी, और यह ही दोनों पक्षों की संविदा की स्वीकृति का प्रतीक है और इसलिए उक्त संविदा दोनों पक्षों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाता है। जब तक पक्षों ने कानूनी रूप से बाध्य होने के लिए एक शर्त के रूप में संविदा के औपचारिक निष्पादन को स्थापित नहीं किया था, तब तक यह निष्कर्ष मान्य होगा चाहे संविदा की एक्सचेंज की गई इलेक्ट्रॉनिक कॉपी में वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर हो या इसमें कोई हस्ताक्षर न हो। इस सिद्धांत को इसी तरह आई.टी. अधिनियम की धारा 10A में शामिल किया गया है, जो इलेक्ट्रॉनिक प्रस्तावों, स्वीकृति और संविदा निर्माण के लिए विधायी भार प्रदान करती है।
प्रामाणिकता अनुमान: डिजिटल हस्ताक्षर की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर
डिजिटल हस्ताक्षर के माध्यम से मान्य दस्तावेज़ और आई.टी. अधिनियम की दूसरी अनुसूची के तहत निर्धारित इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के माध्यम से मान्य दस्तावेज़ के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि डिजिटल हस्ताक्षर को सत्यता और स्वीकार्यता के अनुमान का लाभ मिलता है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को उसकी सच्चाई के लिए स्पष्ट रूप से सिद्ध होना होता है।
डिजिटल हस्ताक्षर
एक डिजिटल हस्ताक्षर, भौतिक दुनिया के हस्तलिखित हस्ताक्षर का एक इलेक्ट्रॉनिक रूप है। ये कागजी दस्तावेजों के बजाय इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों पर लगाए जाते हैं। एक लिखित हस्ताक्षर के समान, इसमें अखंडता (इंटीग्रिटी) और अस्वीकृति की कमी का दोहरा कार्य होता है। यह हस्ताक्षर प्रत्येक व्यक्ति के लिए अद्वितीय होते हैं और केवल उनके धारक के पास ही होते हैं और इसलिए उन्हें बाद में अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह अखंडता को बनाए रखने में भी मदद करता है क्योंकि एन्क्रिप्शन तकनीक के कारण दस्तावेज़ के साथ कोई भी छेड़ छाड़ पकड़ी जाती है। यह एक असममित (एसिमेट्रीक) क्रिप्टोसिस्टम और हैश फ़ंक्शन का उपयोग करता है।
एक संदेश जिस पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होती है उसे हैश फ़ंक्शन का उपयोग करके एक हैश परिणाम के रूप में जाना जाने वाला आउटपुट बनाने के लिए चित्रित और संसाधित (प्रोसेस्ड) किया जाता है। हैश परिणाम मूल संदेश से छोटा होता है और इसके लिए अद्वितीय होता है, जो मूल संदेश में परिर्वतन करने पर ही बदलता है। हैश परिणाम तब प्रेषक (सेंटर) की एक निजी कुंजी के माध्यम से एन्क्रिप्ट (रूपांतरित (ट्रांसफॉर्म)) किया जाता है। यह एन्क्रिप्टेड हैश का परिणाम, एक डिजिटल हस्ताक्षर होता है। इस हस्ताक्षर को तब लगा दिया जाता है और संदेश के साथ भेजा जाता है और इसे केवल इच्छित रिसीवर द्वारा डिक्रिप्ट (मूल संदेश में परिवर्तित) किया जा सकता है, जिसके पास प्रेषक द्वारा प्रदान की गई सार्वजनिक कुंजी होती है।
दस्तावेज़ जिन पर डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर अमान्य हैं
केंद्र सरकार ने यह भी प्रावधान किया है कि किस श्रेणी के दस्तावेजों के ऊपर इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर का उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसमें निम्नलिखित शामिल किया गया है:
- आधिकारिक राजपत्र (ऑफिशियल गैजेट) में प्रकाशित अधिसूचना (नोटिफिकेशन) के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा बताए गए दस्तावेजों का कोई भी वर्ग (क्लास)।
- किसी भी अचल संपत्ति को बेचने के लिए, ब्याज या संवहन (कन्वेयंस) करने के लिए कोई संविदा।
- पावर ऑफ अटॉर्नी एक्ट, 1882 की धारा 1A के तहत पावर ऑफ अटॉर्नी।
- भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (इंडियन सक्सेशन एक्ट), 1925 की धारा 2(h) के अनुसार वसीयत और/या वसीयतनामा (टेस्टामेंट)।
- परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 13 के अनुसार एक परक्राम्य लिखत (चेक को छोड़कर)।
- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 3 के अनुसार एक ट्रस्ट।
निष्कर्ष
2000 में आई.टी. अधिनियम के पास होने के बाद से, भारत में सूचना प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करने वाले कानूनों ने एक लंबा सफर तय किया है। उपरोक्त शर्तों को देखते हुए और उनके अधीन, एक ठीक से निष्पादित इलेक्ट्रॉनिक संविदा की वैधता और प्रवर्तनीयता, बिलकुल एक भौतिक संविदा के समान ही होती है।
हालाँकि, एक ऑनलाइन संविदा के कई हिस्सों के संबंध में कठिनाइयाँ और भ्रम होते हैं, जिसमें हस्ताक्षर और मुहर लगाने की आवश्यकता भी शामिल है। डिजिटलीकरण (डिजिटलाइजेशन) के प्रति वर्तमान झुकाव के साथ, ई संविदाओं और ई हस्ताक्षरों की वैधता के बारे में किसी भी संदेह को दूर करना एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता प्रतीत होती है, और हम आशा करते हैं कि सरकार इस क्षेत्र में आवश्यक कदम उठाएगी।
तो ऊपर लेख मे प्रदान किए गए कानूनों और निर्णयों को के संयुक्त रूप से पढ़ने पर, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि, इलेक्ट्रॉनिक संविदा और हस्ताक्षरों की वैधता की पर्याप्त मान्यता है। उनका उपयोग भी समय के साथ व्यापक रूप से बढ़ा है। दस्तावेज़ीकरण और निष्पादन में किसी भी धोखाधड़ी से बचने के लिए कई फिनटेक संस्थाएं इस रूप का सख्ती से उपयोग कर रही हैं और प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ, ओ.टी.पी., सत्यापन या इलेक्ट्रॉनिक लिखत के विवरण की ट्रैकिंग के लिए जियोलोकेशन का उपयोग करके ई-हस्ताक्षर को बनाए रखने के लिए, सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत जोड़ी जा सकती है।
संदर्भ