भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के तहत मिसरिप्रेजेंटेशन

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4018
Indian Contract Act
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यह लेख भारती विद्यापीठ, न्यू लॉ कॉलेज पुणे में द्वितीय वर्ष की छात्रा Isha द्वारा लिखा गया है। यह लेख संविदा में मिसरिप्रेजेंटेशन (दुर्व्यपदेशन) के बारे में बात करता है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।

परिचय

एक मिसरिप्रेजेंटेशन, एक पक्ष द्वारा किए गए भौतिक तथ्य का एक असत्य बयान है जो संविदा के तहत किसी दूसरे पक्ष के निर्णय को प्रभावित करता है। यदि संविदा के तहत मिसरिप्रेजेंटेशन पाया जाता है, तो संविदा को शून्य घोषित किया जा सकता है और स्थिति के आधार पर, प्रतिकूल (अनफेवरेबल) रूप से प्रभावित पक्ष नुकसान की मांग कर सकता है। ऐसे संविदा के विवाद में, मिसरिप्रेजेंटेशन करने वाला पक्ष, प्रतिवादी (डिफेंडेंट) बन जाता है और पीड़ित पक्ष वादी (प्लेंटिफ) होता है।

संविदा कानून में मिसरिप्रेजेंटेशन विशेष रूप से व्यावसायिक सौदों में महत्वपूर्ण है जहां बड़े लेनदेन होते हैं। एक समझौते के साथ सहसंबद्ध (कोरिलेटेड) मूल्य और/या जोखिम का मिसरिप्रेजेंटेशन, सहयोगी व्यावसायिक उपक्रमों (वेंचर) के जोखिम को बढ़ाते हुए व्यवसायों और व्यक्तियों को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचा सकती है। तदनुसार, व्यक्तियों और व्यवसायों के बीच समझौतों में प्रवेश करने के जोखिम को कम करने और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए मिसरिप्रेजेंटेशन संविदा कानून महत्वपूर्ण है।

परिभाषा

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 18 के तहत मिसरिप्रेजेंटेशन को परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि मिसरिप्रेजेंटेशन संविदा के पूरा होने से पहले दिए गए बयान का एक रूप है। संविदा के गठन से पहले दो प्रकार के बयान दिए जा सकते हैं, ये या तो:

  • संविदा का हिस्सा होंगे, या
  • संविदा का हिस्सा नहीं होंगे, इसलिए यह एक अभ्यावेदन (रिप्रेजेंटेशन) बन जाते है।

मिसरिप्रेजेंटेशन की अवधारणा

मिसरिप्रेजेंटेशन की अवधारणा को समझने के लिए  हमें पहले संविदा के संदर्भ में अभ्यावेदन का अर्थ जानना होगा। एक अभ्यावेदन को ऐसा कथन कहा जाता है जो एक संविदा में प्रवेश उत्पन्न करता है लेकिन संविदा की अवधि का हिस्सा नहीं है।

मिसरिप्रेजेंटेशन, संविदा करने से पहले एक पक्ष (या उनके एजेंट) द्वारा दूसरे को गलत जानकारी देने के बारे में है जो उन्हें संविदा करने के लिए प्रेरित करता है। यदि कोई व्यक्ति मिसरिप्रेजेंटेशन पर भरोसा करके संविदा करता है और इसके परिणामस्वरूप उसे नुकसान उठाना पड़ता है, तो वे संविदा को रद्द कर सकते हैं या नुकसान का दावा कर सकते हैं।

अनुचित बयान

बिना किसी उचित आधार के दिया गया बयान एक अनुचित बयान है। जब कोई व्यक्ति सूचना के किसी भरोसेमंद स्रोत के बिना किसी तथ्य का सकारात्मक बयान देता है और उस कथन को सत्य मानता है, तो यह कार्य मिसरिप्रेजेंटेशन की श्रेणी में आता है। जब कुछ अनुचित होता है तो उसे प्रदान की गई परिस्थितियों में नहीं माना जाता है। उदाहरण के लिए, किसी की प्रतिभा की खूबियों पर बहस करना एक बात है, लेकिन उन्हें मूर्खता से संबोधित करना अनुचित है।

कर्त्तव्य भंग (ब्रीच ऑफ़ ड्यूटी)

एक बार प्रतिवादी के संबंध में एक कर्तव्य स्थापित हो जाने के बाद हमें यह पता लगाना चाहिए कि प्रतिवादी ने कर्तव्य भंग किया है या नहीं। देखभाल का कर्तव्य भंग तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी पहलू में बुद्धिमानी से कार्य करने के लिए देखभाल के अपने कर्तव्य को प्राप्त करने में विफल रहता है। आम तौर पर, यदि कोई पक्ष दूसरों को होने वाली संभावित क्षति को रोकने के लिए उचित तरीके से कार्य नहीं करता है, तो देखभाल का कर्तव्य भंग होता है। कर्तव्य भंग को वॉन बनाम मेनलोव नामक एक बहुत ही रोचक मामले में परिभाषित किया गया था जिसमें यह कहा गया था कि प्रतिवादी को दावेदार (क्लेमेंट) के अतिदेय (ओवर ड्यू) के रूप में पाया जाता है और यदि वह उचित मानक से नीचे कार्य करता है तो कर्तव्य भंग किया जाता है।

  • वे भंग के कारण का पता लगा सकते हैं और इसे दूर करने का प्रयास कर सकते हैं;
  • वे विवाद कर सकते हैं कि कर्तव्य भंग हुआ है;
  • वे तर्क दे सकते हैं कि संविदा में एक बहिष्करण खंड (एक्सक्लूजन क्लॉज) या अन्य शर्तें हैं जो भंग के लिए उनकी देयता (लाइबिलिटी) को सीमित करती हैं; या
  • वे तर्क दे सकते हैं कि उनके भंग का एक कारण है, या यह कि संविदा अमान्य है।

विषय के बारे में किसी गलती को प्रेरित करना

विषय वस्तु के बारे में गलती को प्रेरित करने में तथ्य की गलती शामिल है। ऐसा तब होता है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे को महत्वपूर्ण और निर्णायक क्षण पर छोड़कर एक-दूसरे को गलत समझ लेते हैं। ऐसा गलत कार्य या गलती, समझ में त्रुटि, या अज्ञानता या चूक आदि के कारण हो सकती है। लेकिन गलती कभी जानबूझकर नहीं होती है, यह एक निर्दोष होती है। ये गलतियाँ या तो एकपक्षीय (यूनिलेटरल) या द्विपक्षीय (बायलेटरल) हो सकती हैं, जिन्हें नीचे समझाया गया है।

  • द्विपक्षीय गलती

धारा 20, एक द्विपक्षीय गलती को परिभाषित करती है। जहां एक संविदा के दोनों पक्ष समझौते के लिए आवश्यक तथ्य की गलती के अधीन हैं, ऐसी गलती को द्विपक्षीय गलती कहा जाता है। यहाँ दोनों पक्षों ने सहमति की परिभाषा के अनुसार एक ही अर्थ में अनुमति नहीं दी है या अपनी सहमति नहीं दी है। सहमति की अनुपस्थिति को ध्यान में रखते हुए समझौता पूरी तरह से शून्य है।

हालाँकि, एक समझौते को शून्य बनाने के लिए तथ्य की गलती कुछ महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में होनी चाहिए जो एक संविदा में महत्वपूर्ण है। इसलिए यदि गलती विषय वस्तु या उसके शीर्षक, गुणवत्ता (क्वालिटी), मूल्य आदि की उपस्थिति के बारे में है तो यह एक शून्य संविदा होगा। लेकिन अगर गलती कुछ अप्रासंगिक है, तो समझौता शून्य नहीं होगा और संविदा अस्तित्व में रहेगा।

उदाहरण के लिए, X अपनी बकरी B को बेचने के लिए सहमत होता है। लेकिन समझौते के समय पर, बकरी पहले ही मर चुकी थी। न तो X और न ही B को इसकी जानकारी थी। इसलिए, दोनों के बीच कोई संविदा नहीं था यानी तथ्य की गलती के कारण संविदा लागू करने योग्य नहीं था।

  • एकपक्षीय गलती

एकपक्षीय गलती तब होती है जब संविदा के लिए केवल एक व्यक्ति ही गलती के अधीन होता है। ऐसी स्थिति में संविदा को शून्य नहीं माना जाएगा। अतः अधिनियम की धारा 22 में कहा गया है कि सिर्फ इसलिए कि एक पक्ष के द्वारा तथ्य की गलती की गई थी, संविदा शून्य या शून्यकरणीय (वॉयडेबल) नहीं होगा। इसलिए यदि केवल एक पक्ष ने तथ्य की गलती की है तो संविदा एक वैध संविदा बना रहता है।

हालाँकि, इसकी कुछ सीमाएँ हैं। कुछ शर्तों में, तथ्य की एकपक्षीय गलती भी समझौते को वापस लेने या रद्द करने योग्य हो सकती है।

मिसरिप्रेजेंटेशन के प्रकार

संविदा में तीन प्रकार के मिसरिप्रेजेंटेशन मौजूद हैं:

  • कपटपूर्ण (फ्रॉडुलेंट) मिसरिप्रेजेंटेशन

कपटपूर्ण मिसरिप्रेजेंटेशन तब होगा जब एक झूठा अभ्यावेदन किया जाता है और अभ्यावेदन करने वाला पक्ष, उदाहरण के लिए X को पता था कि यह गलत था या लापरवाह था इसलिए इसकी सच्चाई में सटीक विश्वास की कमी, इसे कपटपूर्ण रूप में पेश करती है। यदि A ईमानदारी से कथन को सत्य मानता है तो यह कपटपूर्ण मिथ्या मिसरिप्रेजेंटेशन नहीं हो सकता है, गलत कथन बनाने में लापरवाही का परिणाम कपटपूर्ण नहीं होगा। हालांकि, अगर यह दिखाया जा सकता है कि A को संदेह है कि बयान गलत हो सकता है, लेकिन स्थिति की जांच करने के लिए कोई पूछताछ नहीं की, तो यह पर्याप्त होगा। बेईमान मकसद को साबित करना अनिवार्य नहीं होगा।

  • लापरवाह मिसरिप्रेजेंटेशन

मिसरिप्रेजेंटेशन अधिनियम 1967 (एम.ए. 1967) के तहत लापरवाही से मिसरिप्रेजेंटेशन तब होता है जब एक संविदा करने वाले पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को लापरवाही से या इसकी सच्चाई पर विश्वास करने के लिए उचित आधार के बिना घोषणा की जाती है। परीक्षण एक अवैयक्तिक (इंपर्सनल) है।

कपट को स्थापित करने के लिए कोई दायित्व नहीं है। यदि निर्दोष पक्ष बयान को झूठा साबित कर सकता है, तो बयान के निर्माता को यह स्थापित करना होगा कि उस पक्ष ने तर्कसंगत रूप से कथन की सच्चाई (यानी अभ्यावेदन) में विश्वास किया था।

लापरवाह मिसरिप्रेजेंटेशन का समाधान आम कानून में है, हालांकि, एम.ए .1967 की धारा 2(1) के परिणामस्वरूप संविदात्मक (कॉन्ट्रैक्चुअल) स्थितियों में इसका उपयोग काफी कम कर दिया गया है।

  • निर्दोष मिसरिप्रेजेंटेशन

बिना किसी गलती के पूरी तरह से किया गया मिसरिप्रेजेंटेशन को एक निर्दोष मिसरिप्रेजेंटेशन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

यदि X यह दिखाने में असमर्थ है कि उसके पास यह मानने के लिए वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) आधार हैं कि उसकी घोषणा सही थी तो मिसरिप्रेजेंटेशन कपटपूर्ण या लापरवाह होगा।

महत्वपूर्ण तथ्यों का दमन (सप्रेशन)

  • रेमंड वूलन मिल्स लिमिटेड बनाम आयकर अधिकारी, सेंटर सर्कल शी, रेंज बॉम्बे और अन्य

उपरोक्‍त मामले में अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि विभाग (डिपार्टमेंट) ने गंभीर गलती की थी। इस मामले में, अदालत को अंतिम निर्णय देने की आवश्यकता नहीं है कि क्या सबूतों का दमन है और क्या नहीं। हमारा विचार है कि न्यायालय इस मामले के तथ्यों के आधार पर मामले को फिर से खोलने पर रोक नहीं लगा सकता है। यह कर निर्धारिती (एसेसी) के लिए मुनाफे को कम करने के लिए खुला होगा। यह जानकारी राजस्व (रिवेन्यू) द्वारा बाद के वर्ष की निर्धारण कार्यवाही में प्राप्त की गई थी। प्रथम दृष्टया (प्राइम फेसी) इस तथ्य के आधार पर विभाग मामले को फिर से खोल सकता था। इस स्तर पर तथ्य या सामग्री की पर्याप्तता या शुद्धता पर विचार करने की बात नहीं है।

  • राज कुमार सोनी बनाम यू.पी. राज्य 2007

इस मामले में फिर से भौतिक तथ्यों के दमन को कानून की प्रक्रिया का विरोध माना गया था और यह माना गया था कि सही तथ्यों का अभ्यावेदन न करने के दोषी पक्ष को किसी भी भत्ते (पर्क) से लाभ नहीं होना चाहिए ताकि ऐसे पक्ष को बिना किसी दोष के अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़े।

मिसरिप्रेजेंटेशन के उपाय

जैसा कि हम जानते हैं कि मिसरिप्रेजेंटेशन में किया गया संविदा शून्यकरणीय है जो पक्ष द्वारा जानबूझकर नहीं किया जाता है। तो इसे ध्यान में रखते हुए, मिसरिप्रेजेंटेशन के उपाय हैं:

  • रद्द करना: रद्द करने का अर्थ है रोक देना। जब पीड़ित पक्ष चाहे, तो वह संविदा को रद्द करने और/या हर्जाने का दावा कर सकता है। संविदा कानून के तहत, रद्द करने को पक्षों के बीच एक संविदा को तोड़ने के रूप में परिभाषित किया गया है। रद्द करना एक लेन-देन की समाप्ति है। यह पक्षों को, जहां तक ​​संभव हो, उस स्थिति में वापस लाने के लिए किया जाता है, जिसमें वे संविदा (पूर्व स्थिति) में प्रवेश करने से पहले थे।
  • प्रदर्शन पर जोर देना: पीड़ित पक्ष पहले पक्ष पर दावा कर सकता है जिसने वस्तु को उस तरीके से प्राप्त करने के लिए गलत तरीके से प्रस्तुत किया है जो संविदा से पहले था।

उपाय के लिए उपलब्ध सीमाएं

संविदा में एक ऐसी शर्त को शामिल किया जा सकता है जो उन उपायों को सीमित करती है जो किसी पक्ष के पास मिसरिप्रेजेंटेशन का दावा करने के लिए उपलब्ध होते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसा खंड संविदा के उल्लंघन के लिए उपलब्ध उपचारों को सीमित कर सकता है- निश्चित रूप से संविदा को रद्द करने के लिए निर्दोष पक्ष के अधिकार को छोड़कर।

मन की स्थिति का अभ्यावेदन

अभ्यावेदन एक संविदा शुरू करता है और प्रेरित करता है। यह वह जानकारी है जिसके द्वारा एक संविदा करने वाला पक्ष यह निर्णय लेता है कि संविदा को जारी रखना है या नहीं। एक अभ्यावेदन एक व्यक्त या निहित बयान है जो संविदा के पहले या संविदा के समय पर संविदा के लिए एक पक्ष बनाता है। यह अतीत या मौजूदा तथ्य के संबंध में दर्ज किया जाता है। एक उदाहरण यह हो सकता है कि किसी वस्तु का विक्रेता यह दर्शाता है कि पेटेंट उल्लंघन की कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई थी।

एक अभ्यावेदन शुरू में एक संविदा का हिस्सा नहीं हो सकता है और इसलिए आमतौर पर एक मिसरिप्रेजेंटेशन के कारण हुए नुकसान के दावे की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसके बजाय, एक ऐसा दावा हुआ है की एक मिसरिप्रेजेंटेशन के कारण एक संविदा बनाया गया था, तो इसे कपटपूर्ण इरादे से बनाया गया कहा जा सकता है जिससे संविदा को रद्द कर दिया जा सकता है या फिर हर्जाना प्राप्त किया जा सकता है। कुछ मामलों में, दावा लापरवाही से मिसरिप्रेजेंटेशन के टोर्ट पर आधारित हो सकता है।

मिसरिप्रेजेंटेशन करने के परिणाम

बस्कीब बनाम ई.डी.एस. के मामले में मिसरिप्रेजेंटेशन के परिणामों की व्याख्या की गई थी, इस मामले में वर्ष 2010 में पास किया गया निर्णय, कि ई.डी.एस. ने एक विशिष्ट समय के भीतर एक परियोजना (प्रोजेक्ट) को वितरित (डिलीवर) करने की अपनी क्षमता के रूप में कपटपूर्ण मिसरिप्रेजेंटेशन किया था और एक विशेष तरीके से कि उसने यह बयान देने के लिए सक्षम करने के लिए एक उचित जांच की थी। न्यायाधीश ने यह भी पाया कि यह इन मिसरिप्रेजेंटेशन का परिणाम था कि बस्कीब को ई.डी.एस. के साथ संविदा करने के लिए प्रेरित किया गया था। एक परिणाम के रूप में देय नुकसान को £200 मिलियन या अधिक पर निर्धारित किया गया था। संविदा में £30 मिलियन तक की देयता की सीमा थी, लेकिन दोनों पक्षों ने स्वीकार किया कि इस तरह की सीमा कपटपूर्ण मिसरिप्रेजेंटेशन के लिए देयता को सीमित करने के लिए प्रभावी नहीं है।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, उक्त कारकों का निष्कर्ष निकालते हुए हम कह सकते हैं कि, मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर एक संविदा को शून्य या शून्यकरणीय करने योग्य कहा जाता है। यदि कोई संविदा शून्य है तो इसे दोनों पक्षों द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है, जबकि यदि किसी संविदा को शून्यकरणीय के रूप में व्याख्यायित (इंटरप्रेट) किया जाता है, तो हालांकि यह एक वैध संविदा है, लेकिन इसे रद्द या रोका जा सकता है। अनिवार्य रूप से, जबकि एक शून्य संविदा का प्रदर्शन नहीं किया जा सकता है, शून्यकरणीय संविदा को रद्द करने का निर्णय लेने के बाद दोनों पक्षों में से किसी एक पर यह निर्भर हो सकता है। यदि कोई मिसरिप्रेजेंटेशन या गलती हुई है तो संविदा को शून्य घोषित किया जा सकता है और इसलिए समाप्त किया जा सकता है। यदि दबाव या अनुचित प्रभाव हुआ है, तो संविदा शून्यकरणीय हो सकता है और इस प्रकार इसे रद्द किया जा सकता है।

संदर्भ

  • INDIAN CONTRACT ACT,1872 (Bare Act)

 

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