तुलनात्मक विज्ञापन द्वारा किसी ट्रेडमार्क के उल्लंघन के बारे में जाने

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Trademark Act
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यह लेख Swapna Gokhale द्वारा लिखा गया है जो लॉसिखो से इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी, मीडिया और एंटरटेनमेंट लॉ में डिप्लोमा कर रही हैं। इस लेख में वह तुलनात्मक विज्ञापन (कंपेरीटिव एडवरटाइजमेंट) और कैसे यह किसी और के ब्रांड नाम के ट्रेड मार्क का उल्लंघन (इंफ्रिंजमें) करता है, इसके बारे में बताती है और कई उदाहरण देते हुए इस पर चर्चा करती है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है। 

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

क्या आपने कभी मैक और पी.सी. (कंप्यूटर) का एक बहुत ही दिलचस्प विज्ञापन (एडवरटाइजमेंट) देखा है?

यदि नहीं, तो कृपया यू ट्यूब पर जाएं और उसे देखें। ऐप्पल ने कई नए विज्ञापन अभियान (कैंपेन) बनाए हैं, जो उन समस्याओं पर टिप्पणी (कमेंट) करते हैं जिनका सामना, पी.सी. उपयोगकर्ताओं (यूजर) को विस्टा के साथ करना पड़ा है। विज्ञापनों की इन सीरीज में मैक और पी.सी. दोनों को एक जीवित व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है। ये बहुत ही मजेदार विज्ञापन सीरीज हैं। हम में से कई लोगों ने हिंदुस्तान यूनिलीवर के रिन कमर्शियल को भी देखा है, जहां प्रतिद्वंद्वी (राइवल) कंपनी प्रॉक्टर एंड गैंबल के स्वामित्व (ओन) वाले ब्रांड, ‘टाइड नेचुरल’ का एक पैकेट, प्रमुख रूप से वॉयसओवर “टाइड से कहीं बेहतर सफेदी दे रिन” के साथ प्रदर्शित (डिस्प्ले) किया गया था। ऐसे सभी विज्ञापनों को तुलनात्मक विज्ञापन कहा जाता है, और यह पूरी तरह से कानूनी है!

जैसा कि हम जानते हैं, एक पंजीकृत (रजिस्टर्ड) ट्रेड मार्क अपने साथ कई वैध (लेजिटीमेट) अधिकार लाता है। तुलनात्मक विज्ञापन इन्हीं वैध अधिकारों में से एक है।

जनता तक पहुँचने के लिए विज्ञापन एक अत्यंत ही प्रभावी साधन (टूल) है। यह सक्रिय व्यापार (एक्टिव बिजनेस) के विकास की रणनीतियों (स्ट्रेटजी) में से एक है। तुलना करना, अपने उत्पादों (प्रोडक्ट्स) और ब्रांडों को बढ़ावा देने की एक सामान्य प्रवृत्ति है। तुलनात्मक विज्ञापन में, प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) या अप्रत्यक्ष (इंडायरेक्ट) रूप से एक उत्पाद या सेवा को दूसरे की तुलना में दिखाया जाता है। इस तरह के विजुअल प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंटेशन) में शामिल रचनात्मकता (क्रिएटिविटी) के कारण ऐसे विज्ञापन उपभोक्ताओं (कंज्यूमर) के दिमाग में लंबे समय तक बने रहते हैं। जैसा की उपर बताया गया है, तुलनात्मक विज्ञापन एक नई तकनीक है जिसमें विज्ञापनदाता (एडवरटाइजर) व्यावसायिक (कमर्शियल) रूप से लाभ पाने के लिए किसी अन्य ब्रांड के उत्पाद की तुलना में, अपने उत्पाद की उपयोगिता (यूटिलिटी) के बारे में उत्कृष्ट बयान (सुपरलेटिव स्टेटमेंट) देता है। यह मुख्य रूप से बाजार में समानांतर (पैरलल) रूप से चलने वाले प्रतिद्वंद्वी (कंपेटीटर) के ब्रांडों के बीच अंतर को इंगित (पॉइंट) करने के लिए किया जाता है।

लेकिन किसी अन्य ब्रांड का अनुचित उपयोग और उसका प्रदर्शन कभी-कभी कानून के तहत ट्रेडमार्क उल्लंघन के मुकदमे को आकर्षित करता है। हम यहां तुलनात्मक विज्ञापन के संबंध में कुछ सामान्य प्रश्नों पर चर्चा करेंगे, जैसे कि ऐसे तुलनात्मक विज्ञापनों के लिए क्या कानून और नियम हैं? क्या वे उस ब्रांड के ट्रेडमार्क का उल्लंघन करते हैं जिसकी तुलना की जाती है? ट्रेडमार्क के उल्लंघन का अपवाद (एक्सेप्शन) क्या है? क्या अपने ब्रांड के लाभ के लिए, किसी दूसरे ब्रांड का उपयोग या प्रदर्शन करना उचित व्यापार है?

तुलनात्मक विज्ञापन को समझना (अंडरस्टैंडिंग कंपेरिटिव एडवरटाइजिंग)

विज्ञापनों का मूल तत्व (बेसिक एलिमेंट), अत्यधिक प्रशंसा करना है। विज्ञापनदाता अपने उत्पादों के बारे में बहुत अधिक दावे करते हैं। विज्ञापनदाताओं के अतिरंजित (एक्जेगरेटेड) दावे चाहे तथ्यात्मक (फैक्चुअली) रूप से सही हों या नहीं, लेकिन विवाद का विषय बन जाते है। लेकिन इसका उपयोग विज्ञापनदाताओं द्वारा उपभोक्ताओं को लक्षित (टारगेट) करने और व्यावसायिक रूप से हासिल करने के लिए किया जाता है। उपभोक्ता कभी-कभी ऐसे अति प्रशंसक विज्ञापनों के आधार पर उत्पादों को खरीदने के लिए प्रवृत्त होते हैं।

लेकिन कभी-कभी अपने ब्रांड को अति प्रशंसक बनाने के चक्कर में वे एक कदम आगे बढ़ जाते हैं और, उपभोक्ता का ध्यान आकर्षित करने के लिए, किसी अन्य ब्रांड के समान उत्पादों के साथ तुलना करके, अपने उत्पाद को बढ़ावा देते हैं। तुलनात्मक विज्ञापन के मामले में, विज्ञापनदाता अपने दावे को बढ़ावा देने के लिए एक कदम आगे निकल जाते हैं। वे अपने प्रतिद्वंद्वी के ब्रांड के उत्पाद या सेवाओं को, उनके ट्रेडमार्क को प्रकाशित (इंडिकेट) करके दिखाते हैं, जो उस उत्पाद के ट्रेडमार्क के मालिक द्वारा पंजीकृत है। वे उसमें या तो, निहित (इंप्लीसिट) रूप से या स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करते हैं कि कैसे उनका उत्पाद उनके प्रतिद्वंद्वी की तुलना में ‘अच्छा’ या ‘सबसे अच्छा’ या कितना अच्छा’ है।

निहित तुलनात्मक विज्ञापन (इंप्लीसिट कंपेरिटिव एडवरटाइजमेंट)

निहित तुलनात्मक विज्ञापन वह है जहाँ किसी विशेष (पार्टिकुलर) तुलनात्मक उत्पाद का कोई प्रत्यक्ष संकेत नहीं होता है, लेकिन उसी का एक सुझाव होता है। उदाहरण के लिए, तुलना किए गए उत्पाद पर ब्रांड का नाम धुंधला करना या प्रतिद्वंद्वी के उत्पाद, आदि के ब्रांड का नाम बोलते समय केवल चरित्र की आवाज़ को म्यूट कर देना। कभी-कभी विज्ञापनदाता “दुनिया का सबसे अच्छा उत्पाद या सेवा” जैसे शब्दों का उपयोग करते है। एक निहित तुलनात्मक विज्ञापन में, प्रतिद्वंद्वी का कोई विशेष नाम नहीं लिया जाता है, लेकिन यह इंगित करा जाता है कि उनका उत्पाद दुनिया की अन्य ब्रांडों के समान उत्पाद/सेवा से बेहतर है।

स्पष्ट तुलनात्मक विज्ञापन (एक्सप्लिसिट कंपेरिटिव एडवरटाइजमेंट)

स्पष्ट तुलनात्मक विज्ञापन के मामले में, किसी अन्य उत्पाद का प्रत्यक्ष संदर्भ (रेफरेंस) होता है जिससे यह लोगों को स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। जैसे रिन और टाइड कमर्शियल जिसमें गुणवत्ता (क्वालिटी) के तत्व को लेकर सीधी तुलना दिखाई गई थी। हाल ही में डाबर इंडिया अनमोल गोल्ड कोकोनट हेयर ऑयल के विज्ञापन में, मैरिको के पैराशूट ऑयल को सीधे, कीमत की तुलना में दिखाया गया था।

ये विज्ञापन आम तौर पर सामान्य मानव मनोविज्ञान (साइकोलॉजी) का विश्लेषण (एनालिसिस) करके बनाए जाते हैं, जो एक उपभोक्ता को ऐसे तुलनात्मक विज्ञापनों में दिखाए गए उत्पादों को खरीदने के लिए, किए गए दावों पर निर्भर करता है। हालांकि, ऐसे मामलों में विज्ञापनदाता को अपने उत्पाद के बारे में, अपने दावे को बढ़ावा देते हुए, चिह्न (मार्क) के तहत किसी अन्य उत्पाद को बदनाम करने की अनुमति नहीं दी गई हैं। अन्यथा, यह उत्पाद की अवमानना ​​(डिसपैरेजमेंट) (प्रतिद्वंद्वी के उत्पाद के बारे में एक भ्रामक (मिसलीडिंग) या असत्य कथन) करना होगा, जैसा कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों द्वारा, यहां तक ​​कि संयुक्त राज्य अमेरिका और यू.के. की अदालतों द्वारा कई मामलों में समझाया गया है।

‘ट्रेडमार्क का उल्लंघन’ क्या है?

ट्रेडमार्क, एक ब्रांड के तहत किसी भी कंपनी की पहचान का चिह्न है जो एक अद्वितीय (यूनिक) नाम, लोगो, प्रतीक (सिंबल), डिज़ाइन या इन सभी का संयोजन (कॉम्बिनेशन) हो सकता है। मूल रूप से, ट्रेडमार्क का उद्देश्य उत्पादों या सेवाओं को दूसरे से अलग करना है। इस प्रकार, ट्रेडमार्क, उपभोक्ताओं को उत्पादों और उनके मूल (ओरिजिन) की पहचान करने में सक्षम बनाता है।

कंपनी की प्रतिष्ठा (रेप्यूटेशन), ट्रेडमार्क के तहत उसके ब्रांड पर निर्भर करती है। ट्रेडमार्क मालिक को न केवल वस्तुओं या सेवाओं के संबंध में अपने चिह्न का उपयोग करने का विशेष अधिकार (एक्सक्लूसिव राइट) प्राप्त होता है, बल्कि किसी के द्वारा अपने चिह्न का उल्लंघन होने से बचाने का भी अधिकार उसके पास होता है। ट्रेडमार्क के उल्लंघन का मतलब, ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत, ट्रेडमार्क के मालिक की वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में, उनको दिए गए इन विशेष अधिकारों का उल्लंघन है।

यदि कोई, आपकी अनुमति के बिना, आपके ब्रांड नाम का उपयोग अपने लाभ के लिए करता है, तो वे ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के तहत उल्लंघन के मुकदमे के तहत वैधानिक परिणामों (स्टेच्यूटरी कंसीक्वेंस) का सामना करने के लिए उत्तरदायी हैं। संक्षेप (शॉर्ट) में, अधिकृत (ऑथराइज) चिह्न का अनधिकृत (अनऑथराइज) उपयोग उल्लंघन का गठन (कांस्टीट्यूट) करता है। उल्लंघन में दो तत्व (एलिमेंट्स) होते हैं। पहला तत्व, बिना अधिकार के उपयोग है और दूसरा तत्व, ईमानदार अभ्यास (प्रैक्टिस) के खिलाफ, अनुचित लाभ के लिए चिह्न का उपयोग करना है। तुलनात्मक विज्ञापन के मामले में, ट्रेडमार्क का मुद्दा तभी उठता है जब उस चिह्न को वास्तव में विज्ञापन में दिखाया जाता है या बारीकी से दर्शाया जाता है

ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 29 और 30, उल्लंघन के मामले में ट्रेडमार्क की सुरक्षा का प्रावधान (प्रोविजन) करती है। आइए इन प्रावधानों को देखें।

ट्रेडमार्क और तुलनात्मक विज्ञापन के उल्लंघन के लिए वैधानिक (स्टेच्यूटरी) प्रावधान 

विज्ञापन में ट्रेडमार्क उल्लंघन को, ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 29(8) के तहत परिभाषित किया गया है। इस धारा के अनुसार, यदि कोई विज्ञापनदाता, प्रतिद्वंद्वी के ट्रेडमार्क का उपयोग, तुलना करने के लिए करता है और उसके दौरान, उन्हें अपमानित करता है, तो ऐसा कार्य न केवल तुलनात्मक विज्ञापन बल्कि ट्रेडमार्क उल्लंघन से संबंधित मुद्दों को भी आमंत्रित करता है।

ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 29 ट्रेडमार्क के उल्लंघन के अवसर प्रदान करती है। लेकिन साथ ही ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 30(1) एक अपवाद (एक्सेप्शन) देती है। इस धारा के अनुसार, किसी अन्य व्यापारी के ट्रेडमार्क का उपयोग करना उल्लंघन नहीं है, जब यह ईमानदारी के अनुसार किया गया हो और यह किसी तुलना किए गए ट्रेडमार्क का कोई अनुचित लाभ न उठा रहा हो और न ही यह विशिष्ट चरित्र या तुलना चिह्न की प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक हो।

इस प्रकार, उत्पाद या सेवा को बढ़ावा देने के लिए, यदि विज्ञापनदाता विज्ञापन में अपने उत्पाद पर अपना चिह्न दिखाकर किसी प्रतिद्वंद्वी के उत्पाद का उपयोग करता है, तो उस चिह्न की प्रतिष्ठा का अपमान करना, जो उसके विशेष चरित्र के लिए हानिकारक है, एक अनुचित व्यापार अभ्यास (अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस) होगा और या चिह्न के उल्लंघन के लिए कानूनी कार्यवाही आकर्षित कर सकता है ।

लेकिन साथ ही, अगर विज्ञापनदाता, विज्ञापन में दिखाए गए प्रतिद्वंद्वी के उत्पाद या सेवा को अपमानित किए बिना अपने उत्पाद या सेवा के बारे में अपने दावे को बढ़ावा दे रहा है, तो यह एक ईमानदार अभ्यास होगा और कानून के तहत पूरी तरह से इसकी अनुमति दी गई है। हालांकि, ट्रेड मार्क के प्रासंगिक (रिलेवेंट) कानून के तहत ईमानदार व्यवहार या अनुचित व्यापार व्यवहार की एक दम सटीक (एक्जैक्ट) परिभाषा कहीं भी दी नहीं गई है। इसी तरह, ऐसा कोई भी भारतीय क़ानून नहीं है जो तुलनात्मक विज्ञापन के कारण तुलनात्मक विज्ञापन या ट्रेडमार्क उल्लंघन को विनियमित (रेग्यूलेट) करने के लिए विशेष रूप से प्रावधान करता है।

फिर भी, ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामलों में, कई बार हमारी अदालत ने ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की उपर दी गईं धारा, धारा 29 और 30 से यह अनुमान (इंफर) लगाया है कि जब विज्ञापन में प्रतिद्वंद्वी के ट्रेडमार्क का उपयोग, उपभोक्ताओं के मन में, उस चिह्न के उत्पाद या सेवाओं की गुणवत्ता (क्वालिटी) या उपयोगिता (यूटिलिटी) के संबंध में, उचित रूप से भ्रम पैदा करता है, तो इस तरह के उपयोग को ट्रेडमार्क अधिनियम 1999 के तहत उल्लंघन माना जाता है और इसके अनुसार, ऐसे विज्ञापन पर निषेधाज्ञा (इनजंक्शन) दी गई है। इसलिए, तुलनात्मक विज्ञापन के कारण ट्रेडमार्क उल्लंघन के प्रत्येक मामले को उसके विशिष्ट तथ्यों (डिस्टिंक्ट फैक्ट्स) और परिस्थितियों के आधार पर तय करने की आवश्यकता है।

तुलनात्मक विज्ञापन में अनुचित व्यापार व्यवहार और ईमानदार व्यवहार की अवधारणा अनुचित व्यापार व्यवहार 

हालांकि, तुलनात्मक विज्ञापन के संबंध में कोई समर्पित (डेडीकेटेड) वैधानिक प्रावधान नहीं हैं, यह अनुचित व्यापार व्यवहार की अवधारणा द्वारा सीमित है। अनुचित व्यापार व्यवहार का अर्थ है भ्रामक विज्ञापन, जो अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए ट्रेडमार्क के तहत, झूठे और भ्रामक तथ्य देते हैं जिससे, अन्य ब्रांडों की वस्तुओं, सेवाओं या व्यापार की अवमानना होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई उपभोक्ताओं से अपने उत्पाद को खरीदने के लिए कहता है, क्योंकि प्रतिद्वंद्वी का उत्पाद गुणवत्ता में निम्न (इनफिरियर) है, तो यह अनुचित व्यापार व्यवहार होगा क्योंकि वह प्रतिद्वंद्वी के ब्रांड को बदनाम करने के अनुचित तरीकों का उपयोग करके ग्राहकों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा है।

अनुचित व्यापार प्रथा पहले एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (मोनोपोलीज एंड रिस्ट्रिक्टिव ट्रेड प्रैक्टिसेज एक्ट), 1969 (‘एम.आर.टी.पी. अधिनियम’) की धारा 36A के तहत शासित (गवर्न) थी। इसके बाद, प्रतिस्पर्धा अधिनियम (कंपेटीशन एक्ट), 2002 द्वारा एम.आर.टी.पी. अधिनियम को निरस्त (रीपील) कर दिया गया था। लेकिन इस अधिनियम में अनुचित व्यापार व्यवहार का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। इसके बाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट), 2019 (उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 संशोधन (अमेंडमेंट) से पहले) द्वारा अनुचित व्यापार प्रथा को संबोधित (एड्रेस) किया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(47)(j) में कहा गया है कि “अनुचित व्यापार व्यवहार” का अर्थ एक व्यापार प्रथा (ट्रेड प्रैक्टिस) है, जो किसी भी वस्तु या सेवा की बिक्री, उपयोग या आपूर्ति (सप्लाई) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, किसी भी अनुचित तरीके को  या अनुचित या भ्रामक व्यवहार को अपनाती है, जो किसी अन्य व्यक्ति की वस्तुओं, सेवाओं या व्यापार को अपमानित करने वाले झूठे या भ्रामक तथ्य देता है। लेकिन फिर भी, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 केवल उपभोक्ताओं के लिए है न कि निर्माताओं (मैन्युफैक्चरर), सेवा प्रदाताओं (सर्विस प्रोवाइडर) आदि के लिए।

तुलनात्मक विज्ञापन में ईमानदार अभ्यास (ऑनेस्ट प्रैक्टिस इन कंपेरिटिव एडवरटाइजमेंट)

यह सवाल एक खुला सवाल है कि क्या विशेष विज्ञापन ईमानदार है या नहीं। इस प्रकार, यह उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण (व्यूपॉइंट) से तय किया जाना चाहिए। ईमानदार व्यावसायिक प्रथा वह है जो भ्रामक न हो और जिससे उपभोक्ता के मन में भ्रम पैदा करने का कोई अवसर न हो। इसका कोई स्पष्ट फॉर्मूला नहीं है। लेकिन ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999, तीन तरीकों से तुलनात्मक विज्ञापनों की अनुमति देता है:

  1. यदि ट्रेडमार्क का वास्तविक उपयोग होता है,
  2. यदि विज्ञापन, ईमानदार प्रथाओं के अनुसार होता है,
  3. यदि विज्ञापन, चिह्न की प्रतिष्ठा का अनुचित लाभ नहीं उठाता है।

इस प्रकार, जहां विज्ञापन में कोई अपमानजनक संदर्भ नहीं है, विज्ञापनदाता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है, भले ही विज्ञापनदाता के उत्पाद के बारे में दावा असत्य हो। व्यावसायिक रूप से लाभ प्राप्त करने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके चरित्र को बाधित किए बिना किसी अन्य चिह्न का इस तरह का वास्तविक उपयोग ईमानदार अभ्यास के दायरे में आएगा। साथ ही, एक विज्ञापन केवल व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं होता है। यह वास्तव में लोगों को उत्पाद के बारे में बताता है। इस प्रकार, उपभोक्ताओं को उत्पादों की गुणवत्ता के बारे में गुमराह करने वाली झूठी सूचना, कानून के तहत स्वीकार्य नहीं होती है।

इस प्रकार, एक ईमानदार व्यापार अभ्यास में केवल अपने उत्पाद को बढ़ावा देने की अनुमति है, लेकिन जिस क्षण (मोमेंट) विज्ञापनदाता कहता है या इंगित करता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी का सामान खराब या घटिया गुणवत्ता वाला है, मानहानि (डिफेमेशन) के तत्व की उपस्थिति के कारण ऐसे तुलनात्मक विज्ञापन की अनुमति नहीं दी जाएगी।

बेशक, जैसा कि ऊपर कहा गया है, प्रत्येक मामले को उनके तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर तय करना होता है।

कई मामलों में, अदालत ने इस सिद्धांत (प्रिंसिपल) को लागू किया है कि एक विज्ञापनदाता के पास यह बयान देने का हक है कि उसकी वस्तुएं उसके प्रतिद्वंद्वी या दुनिया में सबसे बेहतर है, जो समान वस्तुओं को अन्य ब्रांडों के लिए कार्रवाई का कारण (कॉज ऑफ़ एक्शन) नहीं देगा।

इस तर्क पर एक बहुत प्रसिद्ध मामला, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा, ‘पेप्सी कंपनी इनकॉरपोरेशन और अन्य बनाम हिंदुस्तान कोका कोला लिमिटेड और अन्य’ 2003 (दिल्ली उच्च न्यायालय) में तय किया गया था। जिसमें अपीलकर्ता (अपीलेट) पंजीकृत ट्रेडमार्क पेप्सी, पेप्सी कोला, ग्लोब डिवाइस का मालिक है और “ये दिल मांगे मोर”, जो उनकी प्रसिद्ध टैगलाइन है, का कॉपीराइट मालिक भी है। अपीलकर्ता का तर्क था कि प्रतिवादी (रिस्पॉन्डेन) ने अपने उत्पाद “थम्स अप” और “स्प्राइट” का प्रचार (प्रमोट) करते हुए टेलीविजन विज्ञापनों की सिरीज़ शुरू की थी, जिसमें तुलना में दिखाई गई बोतल पर ‘पप्पी’ शब्द लिखा था और साथ ही, यह संकेत दिया गया था कि उस बोतल में तरल (लिक्विड) “बच्चों वाली ड्रिंक” है, और यह अपीलकर्ता के उत्पाद का अपमान है और इस प्रकार उसके ट्रेडमार्क का उल्लंघन किया गया है। प्रतिवादी का बचाव था कि वे अपने उत्पाद को बढ़ावा देने के अपने दावे को बढ़ा रहे थे जो बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा है।

माननीय दिल्ली न्यायालय की डिवीजन बेंच ने मामले मे विचाराधीन (इम्पंज्ड) विज्ञापन के प्रकाशन (पब्लिकेशन) और स्क्रीनिंग के लिए प्रतिवादी के विरुद्ध निषेधाज्ञा देते हुए कहा कि विज्ञापन में तुलना पेप्सी से की गई थी। प्रतिवादी के विज्ञापन में दिखाई गई बोतल पर लिखा पप्पी शब्द अपीलकर्ता के ट्रेडमार्क पेप्सी को स्पष्ट रूप से इंगित कर रहा था। ऐसे मामलों में “वाणिज्यिक तरीके (मैनर ऑफ़ द कमर्शियल)” बहुत महत्वपूर्ण है। यदि तरीका उपहासपूर्ण (रिडिक्यूलिंग) है या प्रतिद्वंद्वी का उत्पाद की बुराई करता है तो यह अपमानजनक है। प्रतिवादिओं ने पेप्सी को केवल एक मीठे पेय के रूप में दर्शाया, इसलिए निम्न गुणवत्ता का और इसे “ये ​​बच्चन वाली है” के रूप में बुलाकर, प्रतिवादिओं ने वाणिज्यिक को अपमानजनक और मजाकिया तरीके से चित्रित किया है, जिसे कानून के तहत बिल्कुल भी अनुमति नहीं दी गई है।

संविधान के तहत तुलनात्मक विज्ञापन और व्यापार का अधिकार (राइट टू ट्रेड) और बोलने की स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ स्पीच)

पहले, वाणिज्यिक भाषण (कमर्शियल स्पीच) भारत के संविधान, 1950 के तहत बोलने की स्वतंत्रता का हिस्सा नहीं था। लेकिन टाटा प्रेस बनाम महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड [(1995) 5 एससीसी 139] के मामले में, माननीय अदालत ने ‘व्यावसायिक भाषण’ को विज्ञापन का एक हिस्सा माना, और इसलिए इसे संविधान के आर्टिकल 19(1)(A) द्वारा प्रदान किए गए संवैधानिक संरक्षण (कांस्टीट्यूशनल प्रोटेक्शन) के दायरे में लाया गया। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ दिशानिर्देश (गाइडलाइंस) दिए हैं, जिसके तहत विज्ञापन, उपभोक्ताओं के लाभ के लिए तब तक है, जब तक कि यह लोगों को उत्पाद के बारे में जानकारी देता है। बाजार में कई उत्पादों के विकास से विज्ञापन के साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है, जो उपभोक्ता की मांग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार, कानून के तहत निष्पक्ष (फेयर) विज्ञापन की अनुमति दी जाती है।

भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया) (‘ए.एस.सी.आई.’)

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ताओं के लिए केवल झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ उनकी शिकायतों के निवारण (रिड्रेसल) के लिए एक तंत्र (मैकेनिज्म) है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत कोई भी निर्माता या प्रतिद्वंद्वी ब्रांड, तुलनात्मक विज्ञापनदाताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं कर सकता है। विशेष रूप से तुलनात्मक विज्ञापनों से निपटने वाले विशिष्ट (स्पेसिफिक) कानूनी प्रावधानों की अनुपस्थिति के कारण, एक स्व-नियामक (सेल्फ रेगुलेटरी) गैर-सांविधिक निकाय (नॉन स्टेच्यूटरी बॉडी) का गठन किया गया है, जिसे भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (“ए.एस.सी.आई.”) कहा जाता है।

इस निकाय ने कुछ दिशानिर्देश दिए हैं जिनमें कहा गया है कि विज्ञापनदाताओं को तुलनात्मक विज्ञापन बनाते समय लोगों के विभिन्न समूहों के हितों (इंटरेस्ट) को ध्यान में रखना चाहिए, जिससे लोगों को प्रतिद्वंद्वी के उत्पाद या सेवाओं का अनुचित लाभ उठाने के लिए गुमराह नहीं करना चाहिए।

आपत्तिजनक विज्ञापन होने पर इस निकाय के सदस्य अपनी शिकायतों के लिए, अपने द्वारा बनाए गए प्राधिकरण, जिसे उपभोक्ता शिकायत परिषद (कंज्यूमर कंप्लेंट काउंसिल) (सी.सी.सी.) कहते है,  के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकते हैं। लेकिन इस निकाय द्वारा किए गए प्रावधानों में कानून की कोई बाध्यता (फोर्स) नहीं है। ये प्रकृति में केवल अनुशंसात्मक (डिसिप्लिनरी) हैं। इस प्रकार ब्रांड, परिषद में जाए बिना अपनी शिकायतों के निवारण के लिए सीधे उच्च न्यायालय जा सकता है।

विदेशी नियमन (फॉरेन रेगुलेशन)

यू.के., यू.एस.ए. और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में तुलनात्मक विज्ञापनों का उपयोग भारत की तुलना में बहुत आम और उदार (लिबरल) है। लेकिन ऐसे सभी विज्ञापन, तुलनात्मक विज्ञापन निर्देशों (कंपेरिटिव एडवरटाइजिंग डायरेक्टिव) का पालन करने के लिए बाध्य हैं। उत्पादकों को आम तौर पर बिना किसी सबूत के अपने उत्पादों के संबंध में कोई उत्कृष्ट (सुपरलेटिव) दावा करने की अनुमति नहीं है। यदि विज्ञापनदाताओं का दावा वैध है और कुछ उचित और विश्वसनीय सबूतों के आधार पर है तो उन्हें अपने विज्ञापन में यह भी उल्लेख करने की अनुमति है कि दूसरे का उत्पाद उनके उत्पाद जितना अच्छा नहीं है।

लेकिन चीन, जापान, दक्षिण (साउथ) अफ्रीका, इटली आदि देशों में इस तरह के तुलनात्मक विज्ञापन पर पूरी तरह प्रतिबंध (बैन) है।

तुलनात्मक विज्ञापन का न्यायिक पहलू और समझ (ज्युडिशियल एस्पेक्ट एंड अंडरस्टैंडिंग ऑफ़ कंपेरिटिव एडवरटाइजिंग)

  1. ब्रिटानिया बनाम यूनीबिक बिस्किट इंडिया (2007)– ब्रिटानिया अपने बिस्किट उत्पाद के लिए एक पंजीकृत ट्रेडमार्क, ‘गुड डे’ का मालिक है। एक निर्माता, यूनिबिक इंडिया ने अपनी टैग लाइन के साथ ‘ग्रेट डे’ नाम से एक बिस्किट लॉन्च किया – ‘व्हाई हैव ए गुड डे, व्हेन कैन हैव ए ग्रेट डे!’ यह ब्रिटानिया के गुड डे बिस्किट से सीधी तुलना में था, जिसमें कहा गया था कि उपभोक्ताओं को वादी (प्लेंटिफ) के बिस्किट को नहीं खाना चाहिए, जब उनके पास ग्रेट डे बिस्किट उपलब्ध है। वादी का यह आरोप था कि प्रतिवादी ने सीधे तौर पर उनके ट्रेडमार्क गुड डे का उल्लंघन किया है। 12 दिसंबर 2007 को बैंगलोर की दीवानी अदालत ने वादी के ‘गुड डे’ बिस्किट को अपमानित करने के लिए प्रतिवादी को निषेधाज्ञा प्रदान की। अदालत ने इस मामले का फैसला करते हुए विज्ञापनदाता की मंशा (इंटेंशन), जनता को संदेश और संदेश भेजने के तरीके को ध्यान में रखा है।
  2. हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड बनाम रेकिट बेंकिज़र (इंडिया) लिमिटेड, 23 सितंबर, 2013, (विम और डेटॉल केस) 23 अप्रैल, 2013 को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश (ऑर्डर)। इस मामले में चार विज्ञापन शामिल थे। दो हिंदुस्तान द्वारा प्रकाशित किए गए थे और अन्य दो रेकिट द्वारा प्रकाशित किए गए थे। प्रत्येक कंपनी ने अपने विज्ञापनों का विरोध किया कि दूसरे ने उनके उत्पादों की अवहेलना (डिसपैरेज्ड) की है। हिंदुस्तान, ब्रांड नाम “लाइफबॉय” और “विम” का मालिक है। रेकिट अपने प्रसिद्ध एंटीसेप्टिक तरल, “डेटॉल” के अलावा इन उत्पादों का भी निर्माण करता है। इसने बाजार में एक बर्तन साफ ​​करने वाला तरल पेश किया था, जिसे “डेटॉल हेल्दी किचन जेल” कहा जाता है। विज्ञापन में दिखाई गई सफेद प्लेट को दो हिस्सों में बांटा गया था, जिसमें यह दर्शाया गया था कि इन तरल पदार्थों से सफाई करने के बाद, प्लेट के एक हिस्से में कई कीटाणु रह जाते हैं, जिसके लिए पीले रंग के जेल का इस्तेमाल किया गया था और दूसरा आधा हिस्सा साफ हो जाता है, क्योंकि इसे डेटॉल लिक्विड से धोया गया था। प्रतिवादी पर निषेधाज्ञा देते हुए, माननीय न्यायालय ने कहा कि तुलना ‘बढ़ावा देने’ से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि विज्ञापनदाताओं ने अपने विज्ञापनों में विम नहीं दिखाया, लेकिन इसमें इसे ‘अग्रणी (लीडिंग) डिशवॉश’ के रूप में संदर्भित किया था, जो किसी भी उचित व्यक्ति को यह सोचने के लिए प्रेरित (लीड) करेगा कि जिस डिशवॉश को संदर्भित किया जा रहा है वह ‘विम’ ही है। इस प्रकार, यह एक ईमानदार अभ्यास नहीं कहलाया जाएगा। विज्ञापन में दिखाई गई तुलना न केवल उत्पाद को बढ़ावा दे रही है बल्कि यह एक गंभीर तुलना है जिससे प्रतिवादी के उत्पाद की प्रतिष्ठा कम हो रही है।
  3. कोलगेट पेलमोलिव कंपनी और और अन्य बनाम हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड: इस मामले में एच.यू.एल. के पेप्सोडेंट टूथपेस्ट को कोलगेट से 130% बेहतर दिखाया गया था। एच.यू.एल. का मूल तर्क (बेसिक कंटेंशन) है कि उनके उत्पाद में, कोलगेट की तुलना में दंत गुहाओं (डेंटल कैविटी) से निपटने में ज्यादा दक्षता (एफिशिएंसी) है और दंत पट्टिका (डेंटल प्लेक) पर ट्राइक्लोसन के प्रतिधारण (रिटेंशन) के बारे में विस्तृत अध्ययन (डिटेल्ड स्टडी) के आधार पर इसकी पुष्टि (सब्सटेंशिएट) की गई थी। माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि, विज्ञापन को पूरी तरह से देखा जाना चाहिए और प्रत्येक शब्द या अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) को अलग करना आवश्यक नहीं है। कहानी और संदेश की जांच करना भी महत्वपूर्ण है कि, विवादित टी.वी.सी. एक औसत (एवरेज) व्यक्ति को बताता है जो विज्ञापित उत्पादों का उपभोक्ता या संभावित (प्रोस्पेक्टिव) उपभोक्ता है। प्रतिवादी के खिलाफ कोई निषेधाज्ञा नहीं दी गई, लेकिन इस आधार पर वाणिज्यिक को उपयुक्त रूप से संशोधित (मोडिफाई) करने का निर्देश दिया गया था कि व्यापारी यह नहीं कह सकता कि उसका उत्पाद उसके प्रतिद्वंद्वी से बेहतर है और उसके प्रतिद्वंद्वी का उत्पाद खराब है। यदि वह ऐसा कहता है, तो वह वास्तव में अपने प्रतिद्वंद्वी के उत्पाद की बुराई करता है।

तुलनात्मक विज्ञापन को समझने के लिए वास्तविक जीवन के उदाहरण

इस प्रतिद्वंद्वी दुनिया में जीवित रहने के लिए, ब्रांडों को अधिक रचनात्मक, स्मार्ट और कुछ नया सोचने की जरूरत है। किंगफिशर के अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हावी होने के कार्य ने मार्केटिंग रणनीति को नया अर्थ दिया। 2007 में, जेट एयरवेज ने “हम बदल गए हैं!” वाक्यांश के साथ एक होर्डिंग लगाकर एक आउटडोर अभियान जारी किया था। यह 2007 में उनके मेकओवर के संदर्भ में था। शायद सबसे शानदार अभियानों में से एक, जिसे भारतीय विज्ञापन दृश्य (सीन) ने प्रदर्शित किया था, किंगफिशर ने लगभग तुरंत ऊपर एक होर्डिंग लगाया, जिसमें लिखा था, “हमने उन्हें बदल दिया है!”। जेट एयरवेज ने लगभग तुरंत ही अपना होर्डिंग हटा दिया, और किंगफिशर के विज्ञापन का कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि उसमें न तो ब्रांड का अपमान किया गया था और न ही जेट के ट्रेडमार्क का किसी भी तरह से उपयोग किया गया था। किंगफिशर ने कई तरह के होर्डिंग लगाए थे जो सीधे इंडिगो को निशाना बनाते थे। तमाम होर्डिंग्स तुलनात्मक विज्ञापन का प्रयोग कर रहे थे।

तकनीकी रूप से इस प्रकार के विज्ञापन में वर्तमान भारतीय क़ानून के तहत कानून के उल्लंघन के तत्व शामिल नहीं हैं, क्योंकि न तो ये विज्ञापन किसी भी आई.पी. अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और न ही उनके प्रतिद्वंद्वियों के ट्रेडमार्क का कोई उल्लंघन है। लेकिन इस तरह के अभियानों ने निश्चित रूप से उद्योग (इंडस्ट्री) में विज्ञापन के रूप को बदल दिया है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न) 

अपने उत्पाद या सेवा को बढ़ावा देने के लिए अपने प्रतिद्वंद्वियों के ट्रेडमार्क का उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन इसे अपने प्रतिद्वंद्वी के उत्पाद या सेवाओं का अनादर करके कानून के तहत सीमाओं को पार नहीं करना चाहिए। आप किसी अन्य चिह्न को बदनाम किए बिना और उनका अनुचित तरह से लाभ उठाए बिना, किसी भी तरह से अपने ब्रांड को बढ़ावा देने के हकदार हैं। भले ही आपके उत्कृष्ट कथन तथ्यात्मक रूप से सही न हों, आपको भारतीय क़ानून के तहत अपने उत्पाद को बढ़ावा देने की पूरी अनुमति है।

विज्ञापन के पीछे की वास्तविक मंशा का पता लगाने के लिए विज्ञापन की सामग्री (कंटेंट) और तरीके का विश्लेषण किया जाना चाहिए। और विज्ञापनदाताओं को यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके विज्ञापनों में किसी भी डिज़ाइन या लोगो का उपयोग नहीं किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप अनुमेय (पर्मिसिबल) तुलनात्मक विज्ञापनों का उल्लंघन होता है। ऐसे मुद्दों को तय करते समय उपभोक्ता के दृष्टिकोण से विज्ञापन का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है।

हालांकि, ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत उल्लंघन के प्रावधान व्यापक (कॉन्प्रिहेंसिव) नहीं हैं। विभिन्न परिदृश्यों में ट्रेडमार्क के उल्लंघन के अवसरों के संबंध में प्रावधान बहुत अस्पष्ट हैं। इस प्रकार, ऐसे मामलों को, प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर विशेष रूप से निपटाए जाने की आवश्यकता होती है।

इसके अलावा, मुझे लगता है कि विदेशों में लागू किए गए उचित और विश्वसनीय साक्ष्य के फार्मूले को भारत में भी अपनाया जाना चाहिए, क्योंकि बिना किसी सबूत के उत्पादों के बारे में उत्कृष्ट दावे करना, उपभोक्ताओं को व्यापारी की भ्रामक प्रथाओं से बचाने के मुख्य उद्देश्य को विफल करता है। दो उत्पादों के बीच अंतर का प्रमाण दिखाने वाले विज्ञापनों से उपभोक्ताओं को बेहतर उत्पाद चुनने में मदद मिलती है और यह प्रतिद्वंद्वी को अपने उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करने में भी मदद करता है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

 

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