यह लेख भारती विद्यापीठ, न्यू लॉ कॉलेज पुणे की छात्रा Isha ने लिखा है। यह लेख आई.पी.सी के तहत गुलामी और गैरकानूनी अनिवार्य मजदूरी (अनलॉफुल कंपलसरी लेबर) के बारे में बात करता है। इस लेख का अनुवाद Sonia Balhara द्वारा किया गया है।
Table of Contents
परिचय (इंट्रोडक्शन)
इंडियन पीनल कोड, 1860 की धारा 374 के तहत “गैरकानूनी अनिवार्य मजदूरी” शब्द को परिभाषित किया गया है, जो कहता है कि कोई भी किसी व्यक्ति को उस व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध मजदूरी करने के लिए मजबूर करता है, उसे एक उल्लिखित (मेंशन्ड) अवधि के कारावास जिसे 1 साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, या दोनों के साथ दंडित किया जाएगा। भारतीय संविधान के आर्टिकल 23 के अनुसार भीख मांगना जबरन मजदूरी (फोर्स्ड लेबर) वर्जित (फोर्बिडन) है। यह गैरकानूनी अनिवार्य मजदूरी को अपराध बनाता है।
धारा 374 के आवश्यक तत्व (एसेंशियल इंग्रेडिएंट्स) हैं:
- मजदूरी के लिए एक मजबूरी होनी चाहिए।
- मजबूरी अवैध (इल्लीगल) होनी चाहिए।
जबरन मजदूरी पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन फोर्स्ड लेबर)
-
पारिश्रमिक सम्मेलन, 1951 (रेम्युनेरेशन कन्वेंशन, 1951)
पारिश्रमिक एक्ट्स का उद्देश्य मजदूरों को बराबर वेतन या मजदूरी प्रदान करना है। पारिश्रमिक शब्द में बुनियादी (बेसिक) कम से कम मजदूरी या आवश्यकताएं शामिल हैं। यह श्रमिकों (वर्कर्स) को लिंग या जन्म स्थान के भेदभाव के बिना समान पारिश्रमिक प्रदान करता है। इसका उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से संतुलित (बैलेंस्ड) कार्य के लिए आनुपातिक (प्रोपोरशनल) पारिश्रमिक देना है। यह एक्ट 34वें इंटरनेशनल लॉ कमीशन (आईएलसी) सेशन में पास किया गया था, जहां हर एक सरकारी पार्टी घरेलू कानून (डोमेस्टिक लेजिस्लेशन), सांप्रदायिक सौदेबाजी प्राधिकरणों (कम्युनल बार्गेनिंग ऑथराइजेशन) को कानून बनाने और वेतन निर्धारण (डिटर्मिनेशन) के लिए एक समझौता (एग्रीमेंट) करने के इस उद्देश्य को प्राप्त करेगी।
-
न्यूनतम आयु सम्मेलन, 1973 (मिनिमम ऐज कन्वेंशन, 1973)
34वें आईएलसी सेशन में न्यूनतम मजदूरी के सम्मेलन को मंजूरी दी गई। यह 1976 में 19 जून को लागू हुआ था। अनुसमर्थन (रेटीफाय) करने वाले राज्यों को बाल मजदूरी (चाइल्ड लेबर) के उन्मूलन (इरेडिकेट) के उद्देश्य से एक नीति अपनाने और अपने क्षेत्र में काम करने के लिए कम से कम उम्र निर्दिष्ट (स्पेसिफाय) करने की आवश्यकता है। न्यूनतम आयु 15 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए (आर्टिकल 2) जबकि किसी भी ऐसे रोजगार और कार्य के क्षेत्र में जिसकी प्रकृति ऐसी है की उसमे काम किया गया तो युवा आदमी के स्वास्थ्य, नैतिकता (मोरल) या सुरक्षा को नुकसान होगा तो इसमें न्यूनतम आयु सम्मेलन के तहत प्रवेश की न्यूनतम आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए (आर्टिकल 3)। किसी भी प्रकार के काम या नौकरी जिसमें व्यवहार या परिस्थितियों की प्रकृति से युवा मनुष्यों के स्वास्थ्य, नैतिकता या निष्पक्षता (फेयरनेस) को नुकसान पहुंचने की संभावना है में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
-
संगठित और सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार, 1939 (राइट टू ऑर्गेनाइज एंड कलेक्टिव बार्गेनिंग, 1939)
इसे 32वें आईएलसी सेशन, जिनेवा में अपनाया गया था। यह 18 जुलाई 1951 को लागू हुआ। इस कन्वेंशन एक्ट के अनुसार श्रमिकों को उनके काम के संबंध में एंटी-यूनियन भेदभाव के कार्यों (आर्टिकल 2) के खिलाफ पूरी सुरक्षा मिलेगी और किसी भी कार्य के खिलाफ एक दूसरे या एक दूसरे के एजेंटों उनके कामकाज, स्थापना या प्रशासन के सदस्य द्वारा अशांति पहुंचने पर पूरी सुरक्षा मिलेगी (आर्टिकल 3)।
जबरन मजदूरी और गुलामी (फोर्स्ड लेबर एंड स्लेवरी)
गुलामी और जबरन मजदूरी के बीच का अंतर एक व्यापक (वाइड) अवधारणा (कांसेप्ट) है। गुलामी, जबरन मजदूरी शब्द से अलग है। गुलामी यूनाइटेड नेशंस सम्मेलनों का विषय है। सभी प्रकार की गुलामी में जबरन मजदूरी शामिल है लेकिन सभी जबरन मजदूरी में गुलामी शामिल नहीं है।
गुलामी को उस व्यक्ति की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जिस पर स्वामित्व (ओनरशिप) के अधिकार से जुड़ी किसी या सभी शक्तियों का इस्तेमाल किया जाता है।
बिना किसी अपवाद (एक्सेप्शन) के गुलामी पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध (इंटरनेशनल प्रोहिबिशन) पूर्ण है। गुलामी एक प्रकार की संस्था (इंस्टीट्यूशन) है जिसमें गुलाम का मालिक स्वामित्व के न्याय का प्रयोग करके मानव चरित्र को नष्ट कर देता है, अधिकारों के वाहक (बेयरर) के रूप में व्यक्ति गुलाम को अधिकारों के बिना संपत्ति में कम कर देता है। गुलामी स्वामित्व की एक पूर्ण अवधारणा है। यह एक सामाजिक संस्था है जिसमें समुदाय (कम्युनिटी) बिना अधिकारों के श्रमिकों के एक अलग समूह के रूप में गुलामों को रखता है और यह उनके लिए बेहद अन्यायपूर्ण है।
गुलामी एक स्थायी (परमानेंट) स्थिति है। गुलाम के मालिक के पास गुलाम के जीवन के हर पहलू पर पूर्ण अधिकार होता है, जिसमें गुलाम किससे शादी कर सकता है, वे क्या खाते हैं और सोते समय क्या पहनते हैं, क्या वे शिक्षित हैं या चिकित्सा उपचार लेते हैं, और क्या गुलाम धार्मिक कार्य कर सकते है आदि शामिल है। परंपरागत (ट्रेडिशनल) रूप से, एक गुलाम के मालिक दण्ड से मुक्ति के साथ बच्चे या वयस्क (एडल्ट) गुलामों का आदान-प्रदान, बिक्री या उधार दे सकते है। स्वामित्व की धारणाएँ पूर्ण हैं। इस प्रकार, गुलामी में किसी अन्य व्यक्ति पर साधारण अधिकार से कहीं ज्यादा शामिल है।
गुलामी अब माली को छोड़कर पूरी दुनिया में प्रतिबंधित (रिस्ट्रिक्टेड) है। हालांकि गुलामी की प्रथा अवैध है, फिर भी यह कई देशों में मौजूद है जहाँ सरकार इसकी उपस्थिति को नज़रअंदाज़ करना चुनती है।
जबरन मजदूरी करना (फोर्स्ड लेबर)
29 आईएलओ की जबरन मजदूरी के सम्मेलन में निम्नलिखित परिभाषाएं शामिल हैं:
“जबरन मजदूरी का अर्थ वह सभी होगे जिन्हे दंड के डर से एक व्यक्ति द्वारा कराए जाते है और जिसके लिए उक्त व्यक्ति ने अपनी इच्छा से खुद को पेश नहीं किया है।”
तथ्य और आंकड़े (फैक्ट्स एंड फिगर्स)
- हर बाद के समय में, अनुमानित (एस्टिमेटेड) रूप से लगभग 40.3 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी में हैं, जिसमें वर्ष 2017 में 24.9 मिलियन जबरन मजदूरी और 15.4 मिलियन जबरन विवाह शामिल हैं।
- यह स्वीकार करता है कि दुनिया में 1,000 लोगों में से 5.4 आधुनिक गुलामी के शिकार हैं।
- आधुनिक गुलामी के 4 पीड़ितों में से 1 में बच्चे शामिल हैं।
शोषण का अंतहीन सिलसिला (द एंडलेस लूप्स ऑफ एक्सप्लोइटेशन)
ऐसे सैकड़ों लोग मौजूद हैं जो भारत में बंधुआ (बोंडेड) मजदूर के रूप में पीड़ित हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि 2016 में पूरे भारत में मानव तस्करी (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) के 8,132 मामले दर्ज किए गए हैं।
चित्रण (इलस्ट्रेशन)
ललिता नाम की एक भारतीय लड़की को अमेरिका के एक संपन्न परिवार के अधीन घरेलू नौकर के रूप में काम करने के लिए उसके आपने देश से दूसरे देश में ले जाया गया। उसे दिन में 18 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता था और मालिक की सलाह के बिना घर से बाहर जाने से भी मना किया गया था। उसके साथ बुरा व्यवहार किया जाता था, उसे बचा हुआ खाना परोसा जाता था और उसके नियोक्ता (एम्प्लायर) द्वारा उसे धमकी दी जाती थी।
घरेलू गुलामी (डोमेस्टिक स्लेवरी)
घरेलू गुलामी, घरेलू गतिविधियों से संबंधित है जो विशेष रूप से अद्वितीय (अनपैरलेल्ड) प्रकार की परिस्थितियों या कानूनी सुरक्षा की कमी के साथ घरेलू परिसर के अंदर श्रम के कारण शोषण के लिए कमजोर हैं।
ऐसे घरेलू श्रमिक सफाई, कपड़े धोना, खाना पकाना, बच्चे की देखभाल करना आदि जैसे काम करते हैं। उन्हें मिलने वाली मजदूरी या वेतन अक्सर बहुत कम होता है, जिसमें बार-बार देरी होती है। घरों के कुछ श्रमिकों को मजदूरी या वेतन नहीं दी जाती है या केवल आवास (अकोमोडेशन), भोजन या कपड़े जैसे ‘वस्तु के रूप में भुगतान’ किया जाता है।
घरेलू गुलामी कैसे होती है?
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) के अनुसार, यह अनुमान है कि बच्चों को छोड़कर पूरी दुनिया में कम से कम 6.8 करोड़ महिलाएं और पुरुष घरेलू श्रमिको के रूप में कार्यरत (एम्प्लॉयड) हैं।
घरेलू श्रमिको में महिलाओं की संख्या लगभग 80% है। आईएलओ ने गणना (कैलक्युलेटिड) की कि 16 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को बाल मजदूरी के किसी भी अन्य सहयोगी की तुलना में घरेलू सेवाओं में कार्यरत किया जाता है।
कुछ घरेलू श्रमिक अन्य क्षेत्रों या देशों के प्रवासी (माइग्रेंट) श्रमिक हैं, मुख्य रूप से गांवों या ग्रामीण (रूरल) क्षेत्रों से शहर की ओर आए हुए है। कई लोगों के लिए, घरेलू काम उन बहुत कम विकल्पों में से एक है जो उन्हें अपने परिवार के साथ खुद के लिए सशक्त (एम्पावर) बनाने के लिए उपलब्ध हैं।
घरेलू काम खराब तरीके से संभाला और विनियमित (रेगुलेटेड) किया जाता है। अक्सर कई अन्य देशों में, घरेलू श्रमिको को ‘श्रमिक’ नहीं माना जाता है, बल्कि अनौपचारिक (इनफॉर्मल) ‘मदद करने वाला’ माना जाता है और उन्हें राष्ट्रीय मजदूर नियमों से निकाला जाता है।
अक्सर उन्हें अन्य श्रमिकों के समान सुरक्षा का विशेषाधिकार (प्रिविलेज) नहीं मिलता है, जैसे कि न्यूनतम वेतन, कानूनी कॉन्ट्रैक्ट, स्वास्थ्य देखभाल, छुट्टियां, सामाजिक सुरक्षा और मातृत्व (मैटरनिटी) लाभ। उन देशों में जहां घरेलू श्रमिक राष्ट्रीय श्रम कानूनों के अंदर आते हैं, प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) खराब है और इन सुरक्षा को व्यवहार में नहीं लाया गया है।
गैरकानूनी अनिवार्य श्रम के प्रभाव (इफेक्ट्स ऑफ अनलॉफुल कंपलसरी लेबर)
यह दुनिया भर में लाखों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को प्रभावित करता है। यह अक्सर उन उद्योगों (इंडस्ट्रीज) में पाया जाता है जिनमें बड़ी संख्या में श्रमिक होते हैं लेकिन विनियमन कम होता है। इसमे शामिल है:
- कृषि (एग्रीकल्चर) और मत्स्य पालन (फिशिंग);
- घरेलू कार्य;
- निर्माण, खनन (माइनिंग), खदान और ईंट के भट्टे (ब्रिक किल्न);
- विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग), प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) और पैकेजिंग;
- वेश्यावृत्ति (प्रॉस्टिट्यूशन) और यौन शोषण (सेक्सुअल एक्सप्लोइटेशन);
- बाजार व्यापार (ट्रेड) और अवैध गतिविधि।
महिलाओं को बंधुआ मजदूरी से असमान रूप से प्रभावित किया जाता है, जो कि वाणिज्यिक (कमर्शियल) सेक्स उद्योग (इंडस्ट्री) में 99% पीड़ितों और अन्य क्षेत्रों में 58% पीड़ितों के लिए अनुमानित है। जबरन श्रम आधुनिक गुलामी का सबसे आम तत्व है। यह शोषण का सबसे चरम (एक्सट्रीम) रूप है। हालांकि कई लोग जबरन मजदूरी और गुलामी को शारीरिक हिंसा से जोड़ते हैं; हालांकि, लोगों को काम करने के लिए मजबूर करने के तरीके ज्यादा कपटी (इंसिडियस) हैं और कुछ संस्कृतियों में निहित (रूटेड) हैं। जबरन श्रम अक्सर सबसे कमजोर और बहिष्कृत (एक्सक्लूडेड) समूहों को प्रभावित करता है, उदाहरण के लिए, भारत में दलितों के साथ आमतौर पर भेदभाव किया जाता है। लड़कों और पुरुषों की तुलना में महिलाओं और लड़कियों को ज्यादा जोखिम होता है, और मजबूर श्रम करने वाले लोगो में लड़के एक चौथाई (¼) होते हैं। प्रवासी श्रमिक को निशाना बनाया जाता है क्योंकि वे अक्सर हमारे जैसी भाषा नहीं बोलते हैं, उनके बहुत कम दोस्त होते है, उनके पास सीमित अधिकार होते हैं और वे अपने नियोक्ताओं पर निर्भर होते हैं।
कारण
जबरन मजदूरी गरीबी, टिकाऊ कृषि शिक्षा की कमी, साथ ही कमजोर कानून, भ्रष्टाचार और सस्ती मजदूरी पर निर्भर अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी) के संदर्भ में होता है। हर एक तत्व जिसे हमने मांग पक्ष पर विश्लेषण (एनलाइज़) करने के लिए चुना है, बाजार के भीतर काम के ज्यादातर शोषक रूपों के लिए दबाव बनाता है या रिक्त स्थान खोलता है जिसमें इस काम का शोषण किया जा सकता है। यह सभी गतिशीलता वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (ग्लोबल सप्लाय चैन) की प्रकृति का एक अभिन्न (इंटीग्रल) अंग हैं क्योंकि यह हाल ही में गठित (कांस्टीट्यूट) हुई हैं। इसमे शामिल है:
- केंद्रित कॉर्पोरेट शक्ति और स्वामित्व– यह काम करने की स्थिति पर बहुत ज्यादा दबाव बनाता है, आंशिक (पार्टली) रूप से श्रमिकों के लिए मजदूरी के रूप में उपलब्ध मूल्य के हिस्से को कम करता है;
- आउटसोर्सिंग– यह मजदूरी मानकों से पहले जिम्मेदारी को विभाजित (फ़्रैगमेन्ट्स) करता है और निगरानी और जवाबदेही को बहुत कठिन बना देता है;
- गैर-जिम्मेदार सोर्सिंग प्रथाएं– इसने भारी लागत और समय पूर्व-कृषि आपूर्तिकर्ताओं (प्री-अग्रेरियन सप्लायर्स) को लगाया जाता है, जिससे अनधिकृत उप-ठेकेदारी (अनऑथराइज्ड सबकॉन्ट्रैक्टिंग) जैसे जोखिम भरी प्रथा हो सकती हैं;
- गवर्नेंस गैप्स– यह जानबूझकर और आपूर्ति श्रृंखलाओं के भीतर बनाया गया है, जो खराब प्रथाओं के लिए जगह खोल रहा है।
नया आपराधिक अपराध (न्यू क्रिमिनल ऑफेंस)
परामर्श (कंसल्टेशन) नेशनल मिनिमम वेजेस (एनएमडब्ल्यू) आपराधिक प्रतिबंधों (सैंक्शंस) और आधुनिक (मॉडर्न) स्लेवरी अपराधों के बीच अंतर की पहचान करता है। बेईमान नियोक्ता जिनके कर्मचारियों के खिलाफ अपराध इन दो अवधारणाओं के बीच आते हैं और उनके साथ अकुशलता (इनेफिशिएंटली) से व्यवहार किया जाता है।
नए अपराध के लिए दो विकल्प प्रस्तावित (प्रपोज़्ड) हैं। पहला उन नियोक्ताओं के लिए एक हिरासत दंड है जिन्होंने मजदूरी बाजार प्रवर्तन (इंफोर्समेंट) निदेशक (डायरेक्टर) के आदेश के भीतर मजदूरी कानून का अपराध किया है (इनमें से कई अपराध वर्तमान में जुर्माने से दंडनीय हैं)। यह जुर्माना तब लगाया जाएगा जब:
- अपराध के पीछे की प्रेरणा (पूरी तरह या आंशिक रूप से) एक कर्मचारी के रूप में एक व्यक्ति के अधिकारों से वंचित थी (उदाहरण के लिए, वेतन प्राप्त करने का अधिकार); या
- नियोक्ता ने अपराध करने के संबंध में श्रमिक का शोषण किया है (उदाहरण के लिए, एक कर्मचारी को एनएमडब्ल्यू से कम पर काम करने की धमकी देना)।
दूसरा, सरकार सुधार के नोटिस की एक प्रणाली (सिस्टम) शुरू करेगी (जो एक नागरिक कार्यवाही में जारी की जाएगी, लेकिन एक उल्लंघन आपराधिक होगा)। एक प्रवर्तन एजेंसी रोजगार कानून के उल्लंघन के बाद सुधार की सूचना के लिए अदालत से पूछ सकती है, जिसके लिए कंपनी को एक विशिष्ट अवधि के भीतर सुधारात्मक (करेक्टिव) कार्रवाई करने की आवश्यकता होगी।
बंधुआ मजदूरी से संबंधित मामले (केसेस रिलेटेड टू फोर्स्ड लेबर)
गुजरात राज्य बनाम गुजरात के माननीय हाई कोर्ट के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जिस कैदी को क्रूर कारावास की सजा सुनाई गई है वह शिकायत नहीं कर सकता की जेल अधिकारियों ने उसे कारावास की अवधि के चलते और बाद में अतिरिक्त भार उठाने के लिए बाध्य (ओब्लाइज) करके आई.पी.सी की धारा 374 के तहत गैरकानूनी अनिवार्य मजदूरी को बढ़ावा दिया है।
पीपलस यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया को आमतौर पर एशियाड मामले के रूप में जाना जाता है, में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जमादारों द्वारा एशियाड परियोजना के लिए ठेकेदारों द्वारा नियोजित श्रमिकों के वेतन में से प्रति दिन 1/- रुपये की कमी अवैध है। चूंकि मजदूरों को 9.25 रुपये प्रति दिन की कम से कम मजदूरी नहीं मिलती है, यह संविधान के आर्टिकल 23 का उल्लंघन है और जबरन मजदूरी है। जबरन मजदूरी का हर रूप, भिखारी या अन्यथा, आर्टिकल 23 के अस्तित्व के भीतर ‘गैरकानूनी अनिवार्य मजदूरी’ है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जिस व्यक्ति को अपना श्रम या सेवा किसी अन्य व्यक्ति को देने के लिए मजबूर किया जाता है, उसे पारिश्रमिक दिया जाता है या नहीं।
निष्कर्ष (कंक्लूज़न)
जबरन मजदूरी चाहे वह किसी भी रूप में हो, मानवता के विरुद्ध अपराध है। इसलिए भारत जैसे देश में इसके उन्मूलन (अबोलिशन) की तत्काल (अर्जेंट) आवश्यकता है, जिसका अंतिम लक्ष्य एक एकीकृत (इंटीग्रेटेड) और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करना है, जो सभी के लिए समान अवसर और बुनियादी आर्थिक कम से कम मजदूरी के साथ व्यक्तिगत अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करता है।
दरअसल, जबरन या बंधुआ स्लेवरी का मुद्दा हमारे देश में व्यापक कृषि समस्या का एक हिस्सा है। इसलिए समस्या का समाधान ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संरचना (स्ट्रक्चर) और सामाजिक संबंधों में मूलभूत (फंडामेंटल) परिवर्तन लाकर मजदूरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का परिवर्तन है।