आईपीसी 1860 के तहत डिसीटफुल और फ्रॉड्युलेंट मैरिज से संबंधित प्रावधान

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Indian penal Code
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यह लेख अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की Anushka Yadav, फैकल्टी ऑफ लॉ द्वारा लिखा गया है। यह एक विस्तृत लेख है जो इंडियन पीनल कोड के तहत डिसीटफुल और फ्रॉड्युलेंट मैरिज के अपराध से संबंधित प्रावधानों (प्रोविजन) से संबंधित है। इस लेख का अनुवाद Sonia Balhara द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

क्या होगा अगर आपका मैरिटल पार्टनर धोखेबाज हो? उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है? क्या होगा यदि आप जानते हैं कि आप अपने पार्टनर से विवाहित हैं लेकिन वास्तव में आप नहीं हैं?

ये कुछ सवाल हैं जो शादीशुदा जोड़ों के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं। इंडियन पीनल कोड के तहत मैरिज में साथी द्वारा धोखाधड़ी या छल करना एक क्रिमिनल ऑफेन्स माना जाता है।

इंडियन पीनल कोड के चैप्टर XX के तहत शादी से जुड़े अपराध निपटाए जाते हैं। इसमें नकली या अवैध (इनवैलिड) मैरिज (धारा 493 और 496), बायगेमी (धारा 494 और 495), और आपराधिक पलायन (लोप्मेन्ट) (धारा 498) के अपराध शामिल हैं। नकली या अवैध मैरिज डिसीटफुल या फ्रॉड्युलेंट मैरिज है। धारा 493 डिसीटफुल मैरिज के अपराध से संबंधित है और धारा 496 फ्रॉड्युलेंट मैरिज के अपराध से संबंधित है।

इंडियन पीनल कोड के तहत डिसीटफुल मैरिज से संबंधित  प्रावधान

परिभाषा (डेफिनेशन)

इंडियन पीनल कोड की धारा 493 में मैरिज में डिसीटफुल के अपराध को परिभाषित किया गया है। यदि कोई पुरुष किसी महिला को यह विश्वास करने के लिए धोखा देता है कि वह उससे कानूनी रूप से विवाहित है और यह मानते हुए, वह उसके साथ कोहैबिटेशन और सेक्शुअल इंटरकोर्स करती है, तो कहा जाता है कि पुरुष ने आईपीसी की धारा 493 के अनुसार अपराध किया है। ऐसे व्यक्ति को इस धारा के तहत दंडित किया जाता है।

यह धारा ऐसी महिला के अधिकार की रक्षा करती है जिसे एक पुरुष द्वारा उपपत्नी (कॉनक्यूबाइन) के रूप में रखा जाता है जबकि वह उस व्यक्ति की वैध (वैलिड) पत्नी होने का विश्वास रखती है।

छल को राम चंद्र भगत बनाम स्टेट ऑफ झारखंड, (2013) 1 एस.सी.सी 562 के मामले में परिभाषित किया गया था, “किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर या लापरवाही से इस आशय से किए गए झूठे बयान के रूप में कि उस पर कार्रवाई की जाएगी और चोट से पीड़ित होगा।”

इस तरह के अपराध को आईपीसी की धारा 375(4) के तहत बलात्कार के अपराध के रूप में भी दंडित किया जा सकता है।

आवश्यक इंग्रेडिएंट्स

आईपीसी की धारा 493 के तहत अपराध के लिए, निम्नलिखित इंग्रेडिएंट्स को साबित करना होता है:

  • अपराध विशेष रूप से एक आदमी के कारण हुआ है;
  • ऐसा पुरुष एक महिला को यह झूठा विश्वास करने के लिए धोखा देता है कि वह उस पुरुष से कानूनी रूप से विवाहित है;
  • ऐसी महिला ने ऐसे पुरुष के साथ कोहैबिटेशन या सेक्शुअल इंटरकोर्स किया होगा।

डिसीट इंटेंशन

पति की ओर से साबित करने के लिए छल का इंटेंशन एक आवश्यक तत्व (एलिमेंट) है। इस तरह के धोखे का नतीजा यह होता है कि महिला को यह विश्वास हो जाता है कि उसने उससे कानूनी रूप से शादी कर ली है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। के.ए.एन. सुब्रह्मण्यम बनाम जे रामलक्ष्मी, (1971) मद एल.जे. (सीआर) 604 के मामले में, यह देखा गया कि शादी के समय पति की ओर से इस तरह के धोखेबाज इरादे मौजूद होने चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि मैरिज के समय पति का कोई डिसीट इंटेंशन नहीं है और वह मानता है कि वह कानूनी रूप से महिला से शादी कर रहा है तो वह धारा 496 के तहत उत्तरदायी (लाइब्ल) नहीं होगा। इस धारा के तहत अपराध को आकर्षित (अट्रैक्ट) करने के लिए, एक आदमी को मैरिज के समय पर पता होना चाहिए  कि ऐसी मैरिज वैध नहीं है।

झूठा विश्वास 

पुरुष द्वारा किए गए धोखे से महिला को ऐसे पुरुष से कानूनी रूप से विवाहित होने के झूठे विश्वास की ओर ले जाना चाहिए। केवल पति के धोखे के इरादे ही पर्याप्त नहीं हैं। मोइदीन कुट्टी हाजी बनाम कुन्हिकोया, ए.आई.आर 1987 केर 184 के मामले में यह देखा गया कि उसके द्वारा महिला को कोहैबिट करने या उसके साथ सेक्शुअल इंटरकोर्स बनाने के लिए भी प्रेरित किया जाना चाहिए।

यदि पति ने पत्नी को झूठे विश्वास में नहीं डाला है, तो वह इस अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के लिए उत्तरदायी नहीं है।

यदि महिला इस तथ्य को जानती है कि वह कानूनी रूप से उस पुरुष से विवाहित नहीं है जिसके साथ वह रहती है और फिर भी उसके साथ रहना जारी रखती है, तो वह गलत विश्वास में नहीं है। ऐसे में उसे इस धारा का लाभ नहीं मिलने वाला है। अमृता गड़तिया बनाम त्रिलोचन प्रधान, (1993) सीआर एलजे 1022 (ओ.आर.आई) के मामले में, अदालत ने कहा कि महिला को इस तथ्य की जानकारी थी कि उसने उस पुरुष से कानूनी रूप से शादी नहीं की थी जिसके साथ वह रह रही थी और फिर उसने भी अनुमति दी पुरुष ने उसके साथ सेक्शुअल इंटरकोर्स बनाए। न्यायालय ने धारा 493 के तहत अपराध के लिए पुरुष को उत्तरदायी नहीं ठहराया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि एक पुरुष द्वारा एक महिला के साथ कोहैबिटेशन या सेक्शुअल इंटरकोर्स करना जो कानूनी रूप से विवाहित नहीं है, इस अपराध के लिए पुरुष को दंडित करने का एकमात्र मापदंड (क्राइटेरियन) नहीं है। इस धारा के तहत उसे दंडित करने के लिए झूठे विश्वास सहित सभी इंग्रेडिएंट्स को पूरा किया जाएगा, जिसमें महिला को ऐसे पुरुष द्वारा रखा गया है।

कोहैबिटेशन और सेक्शुअल इंटरकोर्स

एक अन्य आवश्यक तत्व जिसे सिद्ध किया जाता है वह है कोहैबिटेशन या सेक्शुअल इंटरकोर्स करना। पीड़ित महिला, यह जानते हुए कि वह अपने पति से कानूनी रूप से विवाहित है, उसने अपने पति के साथ कोहाबिटेड या सेक्शुअल इंटरकोर्स किया होगा। धारा 493 के तहत दायित्व (लायबिलिटी) को आकर्षित करने के लिए इस शर्त को साबित करना आवश्यक है।

दायरा (स्कोप)

आईपीसी की धारा 493 का दायरा यह है कि यह, एक पुरुष को न केवल मैरिज करने के लिए दंडित करती है बल्कि यह उसे एक महिला को कोहैबिट करने के लिए प्रेरित करने या उसके साथ सेक्शुअल इंटरकोर्स बनाने के लिए दंडित करती है, जो कि अमान्य हो जाता है, जिससे उसे विश्वास हो जाता है कि ऐसा मैरिज वैध थी। अपराध का दायरा इस हद तक सीमित है कि कोई पुरुष किसी महिला को धोखे से उसके शरीर को यह विश्वास दिलाकर प्राप्त कर लेता है कि इस तरह का अधिग्रहण (टेकओवर) जस मेरिट (वैध मैरिज द्वारा ली गई पत्नी पर पति का अधिकार) द्वारा किया गया था।

रघुनाथ पाढ़ी बनाम राज्य, ए.आई.आर 1957 ओ.आर.आई 198 के मामले में, अदालत ने यह देखा कि धारा 463 के तहत अपराध के लिए उत्तरदायी होने के लिए एक व्यक्ति द्वारा कोहैबिट या सेक्शुअल इंटरकोर्स  करने के लिए प्रलोभन आवश्यक रूप से किया जाता है। केवल धोखे का तथ्य एक पुरुष द्वारा महिला को पुरुष से कानूनी रूप से विवाहित होने का झूठा विश्वास बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

सजा

अपराधी की सजा आईपीसी की धारा 493 के तहत परिभाषित की गई है। धारा में जुर्माने के अलावा साधारण या कठोर प्रकृति की कारावास, अधिकतम (मैक्सिमम) 10 वर्ष की अवधि के लिए निर्धारित (प्रेसक्राइब्ड) है।

केस कानून (केस लॉज़) 

रामचंद्र भगत बनाम स्टेट ऑफ झारखंड

राम चंद्र भगत बनाम स्टेट ऑफ झारखंड, (2013) 1 एस.सी.सी 562 के तथ्य यह थे कि एक पुरुष ने एक महिला से शादी करने का वादा किया था और अंततः उससे शादी करने का समझौता किया था। इस तरह के वादे के भरोसे महिला ने 9 साल तक पुरुष के साथ कोहैबिटेशन किया।

अदालत इस सवाल पर विचार कर रही थी कि क्या वादा शादी में विश्वास करने के लिए एक प्रलोभन (इंड्यूसमेंट) था या नहीं। अदालत ने माना कि यह मैरिज के विश्वास के लिए एक प्रलोभन नहीं था और पुरुष को उत्तरदायी नहीं ठहराया गया था।

रविंदर कौर बनाम अनिल कुमार

रविंदर कौर बनाम अनिल कुमार, ए.आई.आर 2015 एस.सी. 2447 के तथ्य यह थे कि एक व्यक्ति ने एक-तरफा तलाक की डिक्री प्राप्त की और अपनी पत्नी को इसके बारे में सूचित नहीं किया। उस फरमान के कारण उनके बीच वैवाहिक संबंध समाप्त हो गए और पत्नी को इस बात का पता नहीं चला। उसने इस विश्वास के साथ उसके साथ रहना जारी रखा कि वह अभी भी उससे विवाहित है। पत्नी को सच्चाई का पता तब चला जब उसके पति ने दूसरी महिला से शादी कर ली।

अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि पति ने अपनी पत्नी को यह विश्वास दिलाने के लिए धोखा दिया कि उसने उससे कानूनी रूप से शादी की है और उस व्यक्ति को आईपीसी की धारा 493 के तहत अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया।

हालांकि, इस निर्णय की व्याख्या (इंटरप्रिटेशन) की अत्यधिक आलोचना (क्रिटिसाइज्ड) हुई। इस मामले में यह स्पष्ट था कि पति ने अपनी पत्नी को यह न बनाकर धोखा दिया कि उनके बीच वैवाहिक संबंध समाप्त हो गए हैं। इससे पत्नी को स्वतः ही यह विश्वास हो गया कि वह उसके साथ कानूनी रूप से विवाहित है और उसके साथ रहती है।

मोइदीन कुट्टी हाजी बनाम कुन्हिकोय

अदालत ने मोइदीन कुट्टी हाजी बनाम कुन्हिकोया, ए.आई.आर 1987 केर 184 के मामले में साफ कर दिया कि इस धारा के अनुसार एक पुरुष केवल उस महिला के साथ कोहैबिट करने या सेक्शुअल इंटरकोर्स बनाने के लिए उत्तरदायी नहीं है जो उसे कानूनी रूप से विवाहित नहीं है। इस धारा के तहत दायित्व के लिए, यह साबित होना चाहिए कि ऐसे पुरुष ने महिला को उसके साथ रहने या उसके साथ सेक्शुअल इंटरकोर्स बनाने के लिए इस विश्वास के साथ प्रेरित किया है कि वह उससे कानूनी रूप से विवाहित है।

इंडियन पीनल कोड के तहत फ्रॉड्युलेंट मैरिज से संबंधित प्रावधान

परिभाषा (डेफिनेशन) 

धारा 496 धोखाधड़ी मैरिज के अपराध को परिभाषित करती है। मैरिज सेरेमनी की प्रकृति को अमान्य के रूप में जानने के लिए धोखाधड़ी या बेईमान इरादे वाला व्यक्ति इस तरह के सेरेमनी के माध्यम से जाता है, धारा 496 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है।

इस तरह की नकली या फ्रॉड्युलेंट मैरिज को इस धारा के तहत दंडित किया जाता है।

आवश्यक इनग्रेडिएंट

आईपीसी की धारा 496 के तहत धोखाधड़ी मैरिज का अपराध गठित करने के लिए, निम्नलिखित आवश्यक तत्वों को पूरा किया जाना चाहिए:

  • एक पुरुष या महिला का अपनी ओर से धोखाधड़ी या बेईमानी का इंटेंशन होना चाहिए;
  • इस तरह के इरादे से, उसे एक विवाह सेरेमनी से गुजरना होगा;
  • उसे अपने हिस्से का ज्ञान होना चाहिए कि ऐसा सेरेमनी वैध मैरिज का गठन नहीं करता है।
  • मेन्स रिया फ्रॉड्युलेंट मैरिज के अपराध का सार है। इससे साफ है कि यह अपराध किसी पुरुष या महिला द्वारा किया जा सकता है।

दायरा (स्कोप)

इस धारा का दायरा एक ऐसे व्यक्ति को दंडित करने तक सीमित है, जिसने धोखाधड़ी के इरादे से एक मैरिज सेरेमनी का गठन किया है, जो किसी भी तरह से एक वैध मैरिज का गठन नहीं करता है और इससे दूसरे पक्ष को यह विश्वास हो जाता है कि एक वैध मैरिज हो गया है। धारा 493 के तहत अपराध को पूरा करने के लिए कोहिबीटड या सेक्शुअल इंटरकोर्स की आवश्यकता नहीं है।

रानी बनाम कुदुम, 1864 डब्ल्यू.आर. (सी.आर.) 13 के मामले में, यह अदालत द्वारा देखा गया था कि धारा 496 के तहत अपराध का सार है। अपराधी को यह पता होना चाहिए कि जिस शादी में वह प्रवेश कर रहा है एक अमान्य  मैरिज है। इस तथ्य का ज्ञान आवश्यक है। यदि किसी भी मामले में, आरोपी को इस तथ्य की जानकारी नहीं है कि  मैरिज वैध नहीं है तो वह दंडित होने के लिए उत्तरदायी नहीं है।

सजा 

धारा 496 के तहत अपराध की सजा दी जाती है। धारा में निर्धारित सजा जुर्माने के अलावा, अधिकतम 7 साल की अवधि के लिए साधारण या कठोर प्रकृति का कारावास है।

मामला कानून (केस लॉज़)

शेख अलीमुद्दीन बनाम एम्परर

शेख अलीमुद्दीन बनाम एम्परर 4 सी.आर.आई एलजे 152 के मामले में, जहां मैरिज सेरेमनी जो पिछले मैरिज के अस्तित्व के कारण अमान्य है, वहां धारा 496 लागू नहीं होगी। इसे द्विविवाह के अपराध के रूप में माना जाता है जिसे आईपीसी की धारा 494 के तहत निपटाया जाता है।

कैलाश सिंह बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान

कैलाश सिंह बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान, 1982 सी.आर.आई एलजे 1005 के मामले के तथ्य यह था कि तलाक की डिक्री के खिलाफ अपील के लंबित (पेंडेंसी) रहने के दौरान एक आरोपी ने दूसरी शादी की। हालांकि, उसने लड़की से इस बात को नहीं छुपाया।

अदालत ने आरोपी को धारा 496 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया क्योंकि उसका कार्य बेईमान नहीं था।

धारा 493 और 496 के बीच अंतर 

दोनों धारा कुछ मामलों में एक दूसरे से भिन्न हैं। वे कुछ पहलुओं में एक जैसे दिखते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।

धारा 493 धारा 496 
धारा 493 के तहत एक अपराध के लिए एक पुरुष द्वारा धोखे की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप उसके द्वारा महिला के साथ कोहैबिटेशन या सेक्शुअल इंटरकोर्स किया जाता है। धारा 496 के तहत अपराध में कोहैबिटेशन या सेक्शुअल इंटरकोर्स की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए केवल एक फ्रॉड्युलेंट मैरिज सेरेमनी की आवश्यकता होती है।
धारा 493 के तहत अपराध विशेष रूप से केवल एक व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है। धारा 496 के तहत अपराध एक पुरुष या एक महिला दोनों द्वारा किया जा सकता है।

 

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

मैरिज एक पवित्र रिश्ता है। छल और कपट गंभीर अपराध है जो मैरिज के बंधन को अशुद्ध बना सकते हैं। ऐसे शुद्ध संबंधों की रक्षा के लिए इस तरह के अपराधों को रोकने की जरूरत है। आईपीसी ऐसे अपराधों से अच्छे तरीके से निपटती है। मैरिज इंस्टीट्यूशन इस तरह से आईपीसी द्वारा सुरक्षित है। यह माना जाता है कि शादी एक निजी मामला है। इसलिए, राज्य को इसमें हस्तक्षेप (इंटरफेयर) करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन धोखाधड़ी या छल की प्रथा राज्य के लिए इस मामले में प्रवेश करना आवश्यक बना देती है अन्यथा यह मैरिज के इंस्टीट्यूशन पर प्रतिकूल (एडवर्स) प्रभाव डालेगा।

संदर्भ (रेफरेन्सेस)

  • KI Vibhute; PSA Pillai’s Criminal Law; Lexis Nexis, Gurgaon, Haryana (2019).
  • Prof. S.N. Misra; Indian Penal Code; Central Law Publication, Allahabad, Uttar Pradesh (2018).
  • Fraudulent or unlawful marriage under IPC, available at: www.journal.lex.warrier.in (last assessed at Jul 3, 2020).
  • Chapter (iii), deceitful or fraudulent marriages under Indian penal code, available at: https://shodhganga.inflibnet.ac.in (last assessed at Jul 3, 2020).

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