इंडियन कांस्टीट्यूशन की महत्वपूर्ण विशेषताएं

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1905
Constitution of India
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यह लेख Saumya Saxena द्वारा लिखा गया है, जो 2022 बैच के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, नोएडा में बीबीए एलएलबी की छात्रा है। यह लेख इंडियन कांस्टीट्यूशन की मुख्य विशेषताओं पर चर्चा करता है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।

परिचय (इंट्रोडक्शन)

ए.वी. डाईसी के अनुसार कांस्टीट्यूशन में “सभी नियम शामिल हैं, जो डायरेक्टली या इंडिरेक्टली रूप से डिस्ट्रीब्यूशन या स्टेट में सोवरेन शक्ति के प्रयोग को प्रभावित करते हैं”। इंडियन कांस्टीट्यूशन, भारत में सभी कानूनों का जनक (पैरेंट) है, डेमोक्रेसी केतीनो स्तंभ (पिलर)- लेजिस्लेचर, एग्जिक्यूटिव और ज्यूडिशियरी, कांस्टीट्यूशन से अपना अधिकार प्राप्त करते हैं।

1.  विभिन्न स्रोतों से लिया गया (ड्रॉन फ्रॉम डिफरेंट सोर्सेज)

इंडियन कांस्टीट्यूशन कई रिमार्केबल विशेषताओं के लिए उल्लेखनीय है, जो इसे अन्य कांस्टीट्यूशन्स से अलग बनाता है, भले ही इसे “दुनिया के सभी ज्ञात (नॉन) कांस्टीट्यूशन्स को तोड़कर” तैयार किया गया हो और इसके ज्यादातर प्रोविजन दूसरे कांस्टीट्यूशन्स से काफी हद तक बोरो किए गए है। हमारे कांस्टीट्यूशन को ‘बैग ऑफ बोरोविंग्स’ कहा जाता है, कांस्टीट्यूशन मेकर्स को मौजूदा कांस्टीट्यूशन्स में से प्रत्येक की सर्वोत्तम (बेस्ट) विशेषताओं को इकट्ठा करने और उनके कामकाज में प्रकट की गई त्रुटियों (फॉल्ट्स) से बचने के लिए उन्हें मोडिफाई करने का श्रेय दिया जाता है और उन्हें मौजूदा परिस्थितियों और देश की जरूरतों के अनुकूल बनाया है। ड्राफ्टिंग कमिटी के चेयरमैन डॉ. अम्बेडकर ने इस संबंध में कहा था कि – “जहां तक ​​आरोप है कि ड्राफ्ट कांस्टीट्यूशन ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 के प्रोविजंस का एक अच्छा हिस्सा पुन: पेश किया है, मुझे इसका कोई खेद नहीं है। बोरोविंग करने में शर्म की कोई बात नहीं है। इसमें कोई प्लैग्रिज्म शामिल नहीं है। कांस्टीट्यूशन के फंडामेंटल विचारों में किसी के पास कोई पेटेंट अधिकार नहीं है।”

इंडियन कांस्टीट्यूशन के स्रोत

स्रोत  प्रोविजंस
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 बेसिक स्ट्रकचर (फेडरल स्कीम, गवर्नर का कार्यालय, ज्यूडिशियरी, पब्लिक सर्विस कमीशन, इमरजेंसी प्रोविजन, एडमिनिस्ट्रेटिव विवरण (डिटेल))
ब्रिटिश कांस्टीट्यूशन पार्लियामेंट्री फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट, सिंगल सिटिजनशिप का विचार, रूल ऑफ लॉ, कानून बनाने की प्रिक्रिया, रिट
यूनाइटेड स्टेट्स कांस्टीट्यूशन प्रिएंबल, फंडामेंटल राइट्स, सरकार का फेडरल स्ट्रकचर, इलेक्टोरल कॉलेज, शक्तियों का विभाजन (सेपरेशन), ज्यूडिशियल रिव्यू, ज्यूडिशियरी की इंडिपेंडेंस, प्रेसिडेंट का इंपीचमेंट और न्यायाधीशों को हटाना।
इरिश कांस्टीट्यूशन डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी (आयरलैंड ने खुद इसे स्पेन से बोरो किया था)
कैनेडियन कांस्टीट्यूशन सरकार का क्वासी फेडरल फॉर्म, सेंटर और स्टेट सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण, सेन्ट्रल सरकार की रेसिडुअरी शक्तियां।
ऑस्ट्रेलियन कांस्टीट्यूशन देश के भीतर और स्टेट्स के बीच ट्रेड और कॉमर्स की स्वतंत्रता, कॉन्कररेंट लिस्ट।
फ्रेंच कांस्टीट्यूशन प्रिएंबल में लिबर्टी, इक्वालिटी और फ्रेटरनिटी के आदर्श
सोविएत यूनियन का कांस्टीट्यूशन (यूएसएसआर) फंडामेंटल ड्यूटीज़
साउथ अफ्रीका का कांस्टीट्यूशन कांस्टीट्यूशन में अमेंडमेंट और राज्यसभा के सदस्यो का चुनाव
जर्मनी का कांस्टीट्यूशन (वेइमार कांस्टीट्यूशन) इमरजेंसी के दौरान फंडामेंटल राइट्स का सस्पेंशन
जैपनीज कांस्टीट्यूशन प्रोसिजर एस्टेब्लिश्ड बाय लॉ

2. विश्व का सबसे लंबा कांस्टीट्यूशन

इंडियन कांस्टीट्यूशन दुनिया के किसी भी सोवरेन देश का सबसे लंबा और विस्तृत (डिटेल्ड) हस्तलिखित (हैंडरिटन) कांस्टीट्यूशन है। भारत का ओरिजनल कांस्टीट्यूशन, प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा द्वारा इटैलिक शैली में हस्तलिखित किया गया था। ओरिजनली, इसमें 22 पार्ट्स में 395 आर्टिकल और 8 शेड्यूल शामिल थे, लेकिन समय-समय पर इसमें अमेंडमेंट किये गये है। वर्तमान में इसमें प्रिएंबल, 12 शेड्यूल के साथ 25 पार्ट्स, 448 आर्टिकल और 103 अमेंडमेंट हैं।

3. रिज़िड से अधिक फ्लेक्सिबल

इंडियन कांस्टीट्यूशन, पार्लियामेंट को सामान्य कानून के लिए सिंपल मेजॉरिटी से कई प्रोविजंस को मोडिफाई करने की शक्ति देता है। कांस्टीट्यूशन में कुछ ही प्रोविजन हैं, जिनके लिए स्टेट लेजिस्लेचर द्वारा रेटिफिकेशन की आवश्यकता है, वह भी केवल आधे स्टेट्स द्वारा ही। कांस्टीट्यूशन के शेष प्रोविजंस को यूनियन पार्लियामेंट की स्पेशल मेजॉरिटी से अमेंडेड किया जा सकता है, अर्थात प्रत्येक हाउस के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों की कम से कम दो-तिहाई (टू थर्ड) मेजॉरिटी, जो सदन की कुल सदस्यता की मेजॉरिटी होनी चाहिए। पार्लियामेंट को कानून द्वारा कांस्टीट्यूशन के प्रोविजंस को सप्लीमेंट करने की शक्ति भी दी गई है।

4. फंडामेंटल राइट्स और कांस्टीट्यूशनल रेमेडीज़

इंडियन कांस्टीट्यूशन का पार्ट III कुछ फंडामेंटल राइट्स की गारंटी देता है, जैसे समानता का अधिकार, विशेष स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण (एक्सप्लॉयटेशन) के खिलाफ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, और अन्य। ये सभी अधिकार स्टेट के विरुद्ध उपलब्ध हैं, ये अधिकार एब्सोल्यूट नहीं हैं और रीजनेबल रिस्ट्रिक्शंस के अधीन हैं। ओरिजनली, संपत्ति का अधिकार भी एक फंडामेंटल राईट था लेकिन 44वें अमेंडमेंट द्वारा इसे समाप्त कर दिया गया और अब यह कानूनी अधिकार है।

फंडामेंटल राइट्स किसी भी व्यक्ति द्वारा लागू किए जा सकते हैं जिनके फंडामेंटल राइट्स का उल्लंघन स्टेट की कार्रवाई से हुआ है। फंडामेंटल राइट्स को लागू करने की रेमेडीज़ हेबियस कॉर्पस, मैनडेमस, सर्टियोरारी, प्रोहिबिशन और क्यू वारेंटो की रिट हैं, इनकी भी कांस्टीट्यूशन द्वारा गारंटी दी गई है। फंडामेंटल राइट्स का उल्लंघन करने वाला कोई भी कानून सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा अमान्य घोषित किया जा सकता है।

5. फंडामेंटल ड्यूटी

42वें कांस्टीट्यूशन अमेंडमेंट एक्ट, 1976 ने स्वर्ण सिंह कमिटी की सिफारिशों पर, पार्ट IV-A में आर्टिकल 51-A के तहत फंडामेंटल ड्यूटीज को शामिल किया था। ये ड्यूटीज़ केवल नागरिकों पर लागू होते हैं और नागरिकों पर इन ड्यूटीज़ का पालन करने का मोरल ओब्लिगेशन होता है। हालाँकि, इन ड्यूटीज़ को ज्यूडिशियली रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।

6. डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ़ स्टेट पॉलिसी

ये सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित और संरक्षित करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए स्टेट के लिए दिशा-निर्देश हैं, जो कांस्टीट्यूशन के पार्ट IV में आर्टिकल 36 से 51 में वर्णित हैं। यह प्रकृति में नॉन जस्टिशिएबल हैं, यानी उनके उल्लंघन के लिए अदालतों द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, कांस्टीट्यूशन स्वयं घोषणा करता है कि ‘ये सिद्धांत देश के शासन (गवर्नेंस) में फंडामेंटल हैं और कानून बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना स्टेट की ड्यूटी होगी’। इसलिए, वे अपनी एप्लीकेशन के लिए स्टेट की अथॉरिटीज पर एक मोरल ऑब्लिगेशन लगाते हैं।

7. इंडिपेंडेंट ज्यूडिशियरी

हमारे कांस्टीट्यूशन में यूनियन के साथ-साथ स्टेट्स के लिए न्यायालयों की सिंगल इंटीग्रेटेड सिस्टम है, जो यूनियन और स्टेट्स दोनों कानूनों का एडमिनिस्ट करती है, और सुप्रीम कोर्ट पूरे सिस्टम का प्रमुख है। प्रत्येक हाई कोर्ट के अंदर, अन्य न्यायालयों की एक हायरार्की होती है, जिन्हें कांस्टीट्यूशन में सबोर्डिनेट कोर्ट के रूप में संदर्भित (रेफर) किया जाता है, अर्थात अन्य न्यायालय, हाई कोर्ट के सबोर्डिनेट और उसके नियंत्रण में होते है। हमारे कांस्टीट्यूशन की एक अन्य प्रमुख विशेषता एक इंडीपेंडेंट ज्यूडिशियरी है, जिसके पास ‘ज्यूडिशियल रिव्यू’ की शक्ति है। कांस्टीट्यूशन के तहत न्यायालयों द्वारा प्रयोग की जाने वाली स्टेट की ज्यूडिशियल शक्ति कानून के शासन के प्रहरी (सेंटाइल्स) के रूप में कांस्टीट्यूशन की एक बुनियादी (बेसिक) विशेषता है।

8. यूनिवर्सल एडल्ट सफरेज़

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत में सफरेज़, इंग्लैंड और अमेरिका की तुलना में बहुत व्यापक (वाइड) है। भारत में, प्रत्येक नागरिक जो 18 वर्ष से अधिक आयु का है, उसे जाति, धर्म, लिंग, साक्षरता (लिट्रेसी) आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के मतदान करने का अधिकार है। यूनिवर्सल एडल्ट सफरेज़ सभी नागरिक की सामाजिक असमानताओं (इनेक्वालिटीज) को दूर रखता है, और राजनीतिक समानता के सिद्धांत को बनाए रखता है।

9. पार्लियामेंट्री फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट

हमारे कांस्टीट्यूशन ने यूनियन और स्टेट्स दोनों में पार्लियामेंट्री फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट की शुरुआत की। सरकार के इस सिस्टम को चुनने का एक प्राइमरी कारण यह था कि लोगों को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत इस सिस्टम का लंबा अनुभव था। यद्यपि ब्रिटिश फॉर्म ऑफ पार्लियामेंट्री गवर्नमेंट को अपनाया गया था, लेकिन एक हेरेडिटरी रूलर को मुखिया (हेड) नियुक्त (अपॉइंट) नहीं किया जा सकता था, क्योंकि भारत एक रिपब्लिक देश बन गया था। इसलिए, पार्लियामेंट्री सिस्टम का नेतृत्व एक इलेक्टेड प्राइम मिनिस्टर द्वारा किया जाना था।

भारत में एक बाइकैमरल लेजिस्लेचर है, जिसके दो हाउस, लोकसभा और राज्यसभा हैं। पार्लियामेंट्री फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट में; लेजिस्लेटिव और एक्जीक्यूटिव अंगों की शक्तियों का कोई स्पष्ट विभाजन (डिवीजन) नहीं है। भारत में; सरकार का मुखिया प्रेसिडेंट होता है।

10. यूनिटरी बायस के साथ फेडरल सिस्टम

इंडियन कांस्टीट्यूशन की एक और उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यह एक फेडरल सिस्टम को यूनिटरी सरकार की ताकत प्रदान करता है। हालांकि आम तौर पर सरकार का सिस्टम फेडरल है, कांस्टीट्यूशन, फेडरेशन को खुद को यूनिटरी स्टेट में बदलने में सक्षम बनाता है। भारत का कांस्टीट्यूशन यूनियन और स्टेट्स के बीच शक्तियों के विभाजन का प्रावधान प्रदान करता है। कांस्टीट्यूशन की फेडरल प्रकृति को दिखाने वाली कुछ विशेषताएं कांस्टीट्यूशन की रिजिडिटी, लिखित कांस्टीट्यूशन, बाइकैमरल लेजिस्लेचर, इंडीपेंडेंट ज्यूडिशियरी और कांस्टीट्यूशन की सुप्रीमेसी हैं। जब भी इमरजेंसी की घोषणा (प्रोक्लेमेशन) की जाती है, फेडरल चरित्र यूनिटरी विशेषताओं को प्राप्त करता है, सेंटर और स्टेट्स के बीच शक्तियों के सामान्य वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) में बड़े बदलाव होते हैं।

11. सिंगल सिटिजनशिप

आम तौर पर, एक फेडरल स्टेट के नागरिक के पास डुअल सिटिजनशिप होती है, क्योंकि सरकार के दो सेट होते हैं, लेकिन भारत एक फेडरल स्टेट होने के बावजूद सिंगल सिटिजनशिप का पालन करता है। भारत का कांस्टीट्यूशन देश के प्रत्येक व्यक्ति को सिंगल और यूनिफॉर्म सिटिजनशिप प्रदान करता है। यहां स्टेट की सिटिजनशिप की कोई अवधारणा (कॉन्सेप्ट) नहीं है, क्योंकि दो या दो से अधिक स्टेट्स के नागरिकों के बीच कोई अंतर नहीं है। भारत में कोई भी स्टेट किसी भी नागरिक के साथ उसके जन्म स्थान या निवास के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है। इसके अलावा, भारत में, किसी व्यक्ति को (कुछ स्थानों को छोड़कर) देश के किसी भी हिस्से में जाने या भारत के क्षेत्र में कहीं भी रहने का अधिकार है। कश्मीर इस नियम का अपवाद है, केवल कश्मीर के स्थायी (पर्मानेंट) निवासी ही कश्मीर में भूमि और संपत्ति का अधिग्रहण (एक्वायर) कर सकते हैं। हालांकि, यह प्रोविजन अस्थायी (टेंपरेरी) है और जब कश्मीर पूरी तरह से भारत में इंटीग्रेटेड हो जाएगा तो इसे समाप्त कर दिया जाएगा।

12. इमरजेंसी प्रोविजन

प्रेसिडेंट को उन असामान्य परिस्थितियों में राष्ट्र की सोवरेग्निटी, यूनिटी और इंटीग्रिटी को बनाए रखने के लिए शक्ति दी गई है, जब किसी भी हिस्से या पूरे भारत की सुरक्षा खतरे में हो। जब भी कोई इमरजेंसी लगाई जाती है, तो सेंटर के पास सारी शक्तियाँ होती हैं और स्टेट सबोर्डिनेट हो जाते हैं। हमारा कांस्टीट्यूशन किसी भी स्थिति से सुरक्षा के उद्देश्य से इमरजेंसी प्रोविजन प्रदान करता है जहां भारत या उसके किसी हिस्से की सुरक्षा, वॉर या एक्सटर्नल एग्रेशन या आर्म्ड रिबेलियन से खतरे में हो। हमारे कांस्टीट्यूशन के पार्ट XVIII में तीन अलग-अलग प्रकार की इमरजेंसीज के लिए प्रोविजन हैं: 

  • नेशनल इमरजेंसी 
  • स्टेट इमरजेंसी 
  • फाइनेंशियल इमरजेंसी

13. सामाजिक समानता

इंडियन कांस्टीट्यूशन का पार्ट III जिसमें फंडामेंटल राइट्स शामिल हैं, का उद्देश्य राजनीतिक समानता के साथ-साथ सामाजिक समानता प्रदान करना है। बेसिक फंडामेंटल राइट्स के अलावा, हमारा कांस्टीट्यूशन किसी भी रूप में अनटचैबिलिटी की प्रथा को प्रोहिबिट करता है और यह निर्धारित करता है, कि किसी भी नागरिक को किसी भी सार्वजनिक स्थान पर धर्म, नस्ल (रेस), जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।

14. माइनोरिटीज़ के लिए विशेष प्रोविजन

हमारे कांस्टीट्यूशन में माइनोरिटीज़, शेड्यूल कास्ट, शेड्यूल ट्राइब्स और अन्य बैकवर्ड क्लासेज़ के लिए विशेष प्रोविजन हैं। यह न केवल पार्लियामेंट और स्टेट लेजिस्लेशन में उनके लिए सीटों का रिजर्वेशन प्रदान करता है, बल्कि उन्हें विशेष अधिकार (प्रिविलेज) भी देता है। हमारा कांस्टीट्यूशन उन्हें उनके अस्तित्व के फंडामेंटल राइट के तहत विभिन्न अवसर प्रदान करता है। इन प्रोविजंस का मुख्य उद्देश्य माइनोरिटीज़ का उत्थान (अपलिफ्ट) करना है ताकि वे मेजोरिटी के बराबर हों और नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव न हो।

15. रूल ऑफ लॉ

रूल ऑफ लॉ की अवधारणा ब्रिटेन से बोरो की गई थी। इसका तात्पर्य है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और सभी व्यक्ति सामान्य न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) के अधीन हैं। मोंटेस्क्यू के दृष्टिकोण (एप्रोच) के बाद, वर्ष 1885 में, ए.वी. डाईसी ने यू.के. मॉडल के अवलोकन (ऑब्जर्विंग) पर रूल ऑफ लॉ से उत्पन्न होने वाले तीन सिद्धांतों को निर्धारित किया।

  • सुप्रीमेसी ऑफ लॉ;
  • कानून के समक्ष समानता;
  • प्रीडोमिनेंस ऑफ लीगल स्पिरि

इंडियन कांस्टीट्यूशन ने ब्रिटिश कांस्टीट्यूशन से रूल ऑफ लॉ को बोरो किया है। मनमानी (आर्बिट्ररी) शक्ति का अभाव रूल ऑफ लॉ की पहली आवश्यकता है, जिस पर हमारी पूरी कांस्टीट्यूशनल व्यवस्था आधारित है। गवर्नेंस नियम से होना चाहिए, न कि मनमाना, अस्पष्ट (वेग) और काल्पनिक (फेन्सीफुल)। हमारे कांस्टीट्यूशन के तहत, रूल ऑफ लॉ, एडमिनिस्ट्रेशन के पूरे क्षेत्र में व्याप्त (पर्वेड) है और स्टेट का हर अंग रूल ऑफ लॉ द्वारा नियंत्रित होता है। रूल ऑफ लॉ की अवधारणा को भावना और अक्षर से बरकरार नहीं रखा जा सकता है यदि स्टेट के उपकरणों (इंस्ट्रूमेंटेलिटीज) को निष्पक्ष (फेयर) और न्यायपूर्ण (जस्ट) तरीके से अपने कार्य का निर्वहन करने की ड्यूटी नहीं सौंपी जाती है।

16. ऑफिशियल भाषाएं

इंडियन कांस्टीट्यूशन में विभिन्न इंस्टीट्यूशंस से निपटने के लिए अलग-अलग भाषाएं हैं, यानी युनियन की भाषा, रीजनल भाषाएं, ज्यूडिशियरी की भाषा और कानून की टेक्स्ट और स्पेशल डायरेक्टिव्स। इंडियन कांस्टीट्यूशन का आर्टिकल 346 देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की ऑफिशियल भाषा के रूप में मान्यता देता है। कांस्टीट्यूशन ने ऑफिशियल उद्देश्यों के लिए अंग्रेजी भाषा के उपयोग को जारी रखने की अनुमति दी। आर्टिकल 345, स्टेट लेजिस्लेचर द्वारा अपनाई गई किसी भी भाषा को उस रस्टेट की ऑफिशियल भाषा के रूप में मान्यता देता है। आर्टिकल 347 में कहा गया है कि यदि प्रेसिडेंट इस बात से संतुष्ट हैं कि किसी स्टेट की आबादी का एक बड़ा हिस्सा किसी भी उद्देश्य के लिए पूरे स्टेट में अपनी भाषा की मान्यता प्राप्त करना चाहता है, तो वह उस भाषा की मान्यता की घोषणा कर सकता है।

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