इंडियन कंस्टीट्यूशन के तहत फेडरलिज्म – अर्थ और विशेषताएं

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Constitution of India
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इस लेख में, Uzzair ने इंडियन कंस्टीट्यूशन के तहत फ़ेडरलिज्म कीअर्थ और विशेषताएं पर चर्चा की  है। इस लेख का अनुवाद  Revati Magaonkar ने किया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

एक यूनियन सरकार, सरकार की एक प्रणाली (सिस्टम) है जो देश की केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच की शक्ति को अलग करती है। यह प्रत्येक क्षेत्र को कुछ जिम्मेदारियां सौंपता है ताकि केंद्र सरकार का अपना कार्य हो और राज्य सरकार का अपना कार्य हो।

एक क्वासी-फेडरल सरकार, सरकार की एक प्रणाली है जो देश की केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच शक्ति को अलग करती है लेकिन अर्ध-संघीय सरकार में, केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की तुलना में अधिक शक्ति प्रदान की है। क्वासी फेडरल सरकार प्रणाली में, केंद्र सरकार राज्य सरकार द्वारा किए गए निर्णय में हस्तक्षेप (इंटरफेअर) कर सकती है।

इंडियन फेडरलिज्म की प्रकृति (नेचर ऑफ़ इंडियन फेडरलिज्म)

इंडियन कंस्टीट्यूशन ने भारत को एक यूनियन के रूप में वर्णित (डिस्क्राइब) नहीं किया है। हालाँकि,इंडियन कंस्टीट्यूशन का आर्टिकल 1 भारत को ‘राज्यों के संघ (यूनियन ऑफ़ स्टेट्स)’ के रूप में वर्णित करता है। इसका अर्थ है कि भारत कई अलग-अलग राज्यों से युक्त (कंप्राइजिंग) एक यूनियन है जो इसका एक अभिन्न अंग (इंटेग्राल पार्ट) है। यहां, राज्य यूनियन से अलग नहीं हो सकते। उनके पास यूनियन से अलग होने की शक्ति नहीं है। एक सच्चे यानी ट्रू फेडरेशन में, गठित इकाइयों (कंस्टीट्यूटिंग यूनिट) या राज्यों को संघ से बाहर आने की स्वतंत्रता होती है।

भारत एक सच्ची संघीय सरकार नहीं है क्योंकि यह एक संघीय सरकार की विशेषताओं और यूनिटरी सरकार की विशेषताओं को जोड़ती है, जिसे क्वासी फेडरल सरकार भी कहा जा सकता है।

इंडियन कंस्टीट्यूशन की फ़ेडरल विशेषताएं (फ़ेडरल फिचर्स ऑफ़ इंडियन कंस्टिट्यूशन)

1. सरकार के दो भाग (टू सेट्स ऑफ़ गवर्नमेंट)

भारत में सरकार के 2 भाग हैं और वह है यूनियन सरकार और केंद्र सरकार। केंद्र सरकार पूरे देश की देखभाल करती है और राज्य सरकार मुख्य रूप से राज्यों के लिए काम करती है। दोनों सरकारों के कामकाज अलग-अलग हैं।

2. शक्तियों का विभाजन (डिविजन ऑफ़ पॉवर्स)

केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच शक्तियों को भारत के  कंस्टीट्यूशन द्वारा विभाजित (डिवाइड) किया गया है। इंडियन कंस्टीट्यूशन की 7वा शेड्यूल बताता है कि राज्य और केंद्र सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन कैसे किया जाता है। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास अलग-अलग शक्तियां और जिम्मेदारियां हैं।

इंडियन कंस्टीट्यूशन की 7वीं शेड्यूल में यूनियन लिस्ट, स्टेट लिस्ट और कॉनकरंट लिस्ट शामिल है।

यूनियन लिस्ट

  • इसमें वे सभी मामले (मैटर्स) शामिल हैं जिन पर केवल केंद्र सरकार ही कानून बना सकती है।

स्टेट लिस्ट

  • इसमें वे सभी मामले शामिल हैं जिन पर राज्य सरकार कानून बना सकती है।

कंक्योरंट लिस्ट

  • इसमें वे सभी मामले शामिल हैं जिन पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों कानून बना सकती हैं।

3. लिखित कंस्टीट्यूशन 

भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा कंस्टीट्यूशन है, जिसमें 395 आर्टिकल्स 22 भाग (पार्ट्स) और 12 शेड्यूल शामिल हैं। इंडियन कंस्टीट्यूशन का हर आर्टिकल स्पष्ट रूप से लिखा गया है और इसकी पूरी विस्तार (डिटेल्ड) से चर्चा की गई है।

4. कंस्टीट्यूशन की सर्वोच्चता (सुप्रीमसी ऑफ़ द कंस्टिट्यूशन)

भारत के कंस्टीट्यूशन को भूमि का सर्वोच्च कानून (सुप्रीम लॉ ऑफ़ लैंड) माना जाता है। भारत के कंस्टीट्यूशन के खिलाफ कोई कानून बनाया या पारित (पास) नहीं किया जा सकता है। भारत का  कंस्टीट्यूशन देश के सभी नागरिकों और संगठनों (ऑर्गनाइजेशन) से ऊपर है।

5. सर्वोच्च ज्यूडिशियरी (सुप्रीम ज्यूडिशियरी)

भारत के सुप्रीम कोर्ट को देश का सर्वोच्च (सुपीरियर) न्यायालय माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी (बाइंडिंग) होता है और इसे  कंस्टीट्यूशन के आर्टिकल्स का अर्थ करने की शक्ति प्राप्त है।

6. बाईकैमरल- लेजिस्लेशन

भारत में लेजिस्लेचर बाईकैमरल है। इसके दो सदन (हाउसेस) हैं और वह हैं लोकसभा और राज्यसभा। संसद का ऊपरी सदन जो राज्यों का प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंट) करता है वह राज्यसभा है और संसद का निचला सदन, जो सामान्य रूप से लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, वह लोकसभा है।

भारत के  कंस्टीट्यूशन में फेडरलिज्म की विशेषताएं हैं जैसे कि सत्ता का विभाजन, सर्वोच्च न्यायपालिका, सरकार के दो भाग, बाईकैमरल लेजिस्लेशन आदि, जो स्पष्ट रूप से इसकी फेडरल प्रकृति को दर्शाता है। राज्य और केंद्र सरकार के बीच सत्ता का विभाजन भारत की फेडरल प्रकृति को दर्शाता है और न्यायपालिका की सर्वोच्चता, सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण शक्ति को दर्शाती है कि उसका निर्णय सर्वोच्च है और सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी है। हालाँकि, केंद्र सरकार को दी गई शक्तियों का भार राज्य सरकार की तुलना में अधिक होता है।

जीएसटी कंस्टीट्यूशन के फ़ेडरल स्ट्रक्चर को कैसे कमजोर करता है (हाउ जीएसटी अंडरमाइन द फ़ेडरल स्ट्रक्चर ऑफ़ द कंस्टीट्यूशन)?

जीएसटी अथॉरिटीज ने सभी अप्रत्यक्ष करों (इंडायेक्ट टैक्सेस) को सिंगल टैक्सेशन सिस्टम के तहत शामिल किया है। हालांकि, टैक्सेशन एक सोवरिन् कार्य है और इसे 2 मुख्य भागों जमा और इंपोज इनमें विभाजित किया गया है। जीएसटी के अनुसार, यूनियन कर जमा करता है, लेकिन काउंसिल की सिफारिशों (रिकमेंडेशन) के अनुसार राज्यों को पुनर्वितरित (रीडीस्ट्रीबुटेड) किया जाएगा। इंडियन कंस्टीट्यूशन की फेडरल विशेषता में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच शक्तियों का वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) होना चाहिए। कंस्टीट्यूशन का आर्टिकल 246 केंद्र और राज्य सरकार दोनों को यूनियन लिस्ट, स्टेट लिस्ट और कॉनकरंट लिस्ट में प्रदान किए गए संबंधित मामलों में कानून बनाने की शक्ति देता है। लेकिन जीएसटी ने अलग-अलग राज्यों की अपनी जरूरत और कस्टमर ओरिएंटेड कर के अनुसार, कर लगाने की स्वतंत्रता को छीन लिया है, इसकी वजह से उच्च उत्पादन वाले राज्यों को कर खोना होगा।

जीएसटी और शराब, पेट्रोल और डीजल पर कर के संबंध में फेडरलिज्म का उदाहरण (एग्जांपल ऑफ़ फेडरलिज्म इन रिस्पेक्ट ऑफ़ जीएसटी एंड टैक्सेस ऑन एल्कोहोल, पेट्रोल एंड डीजल)

इंडियन कंस्टीट्यूशन की आर्टिकल 7 के अनुसार कानून बनाने और कर लगाने की शक्ति केंद्र और राज्य सरकार के बीच विभाजित है।

जीएसटी के तहत, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों पर टैक्सेशन की शक्तियां छोड़ दी गई हैं और परिणामस्वरूप नीचे दिए गए करों को समाप्त कर दिया गया है।

जीएसटी के दायरे में आने वाले केंद्रीय कर हैं (टैक्सेस कमिंग अंडर द जुरिसडिक्शन ऑफ़ जीएसटी):

  • केंद्रीय उत्पाद शुल्क (सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी)
  • उत्पाद शुल्क (ड्यूटीज ऑफ़ एक्साइज) (औषधीय और शौचालय की तैयारी)
  • उत्पाद शुल्क के अतिरिक्त शुल्क (एडिशनल ड्यूटीज ऑफ़ एक्साइज) (विशेष महत्व के सामान)
  • उत्पाद शुल्क के अतिरिक्त शुल्क (वस्त्र और वस्त्र उत्पाद)
  • सीमा (कस्टम्स) शुल्क के अतिरिक्त शुल्क (आमतौर पर सीवीडी के रूप में जाना जाता है)
  • विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑन कस्टम) (एसएडी)
  • सेवा कर (सर्विस टैक्स)
  • केंद्रीय अधिभार (सरचार्ज) और उपकर (सिजेस) जहां तक ​​वे वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति (सप्लाई) से संबंधित हैं।

जीएसटी के दायरे में आने वाले राज्य कर हैं (स्टेट टैक्सेस दैट वुड़ फॉल अंडर द एंबिट ऑफ़ जीएसटी आर):

  • राज्य वैट
  • केंद्रीय बिक्री (सेल्स) कर
  • लक्जरी टैक्स
  • प्रवेश कर (सभी रूप)
  • मनोरंजन (एंटरटेनमेंट एंड अम्यूजमेंट) कर (स्थानीय निकायों (लोकल बॉडीज) द्वारा लगाए जाने को छोड़कर)
  • विज्ञापनों (एडवरटाइजमेंट) पर कर उदाहरण; खरीद कर
  • लॉटरी, सट्टे और जुए (बेटिंग एंड गैंबलिंग) पर कर
  • राज्य के सरचार्ज और सेज जहां तक ​​वे वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित हैं।

शराब, पेट्रोल और डीजल पर कर (टैक्सेस ऑन एल्कोहोल, पेट्रोल एंड डीजल)

केंद्र सरकार ने शराब, पेट्रोल और डीजल को जीएसटी से बाहर रखने का फैसला किया है और राज्य सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों और पीने योग्य शराब की बिक्री पर कर लगाने की शक्ति अपने पास बरकरार रखी है। शराब, पेट्रोल और डीजल पर राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही कर वसूलते हैं। हालाँकि शराब, पेट्रोल और डीजल पर कर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होते हैं, शराब, पेट्रोल और डीजल पर कोई निश्चित कर शुल्क नहीं होता है।

इंडियन कंस्टीट्यूशन की नॉन-फ़ेडरल विशेषताएं     

1. शक्ति का विभाजन समान नहीं है (डिवीजन ऑफ़ पॉवर इज नॉट इक्वल)

भारत में केंद्र सरकार को राज्य सरकार की तुलना में अधिक शक्तियां दी गई हैं। आमतौर पर संघीय सरकार में शक्तियों को दोनों सरकारों के बीच समान रूप से विभाजित किया जाता है।

2. एकल (सिंगल)  कंस्टीट्यूशन

इंडियन कंस्टीट्यूशन की एक और नॉन-फ़ेडरल विशेषता यह है कि इसमें केवल एक ही कंस्टीट्यूशन है। भारत में राज्यों के लिए कोई अलग कंस्टीट्यूशन नहीं है और यह संघ और राज्यों दोनों पर लागू होता है। एक वास्तविक संघीय व्यवस्था में राज्य और संघ के लिए अलग-अलग  कंस्टीट्यूशन होते हैं।

3. कंस्टीट्यूशन सख्ती से कठोर नहीं है (कंस्टीट्यूशन इज नॉट स्ट्रिक्टली रिजिड)

इंडियन कंस्टीट्यूशन की एक और नॉन-फ़ेडरल विशेषता यह है कि इसे भारतीय संसद द्वारा संशोधित (अमेंड) किया जा सकता है। कई विषयों पर संसद को कंस्टीट्यूशन में संशोधन करने के लिए स्टेट लेजिस्लेचर के अनुमोदन (अप्रूवल) की आवश्यकता नहीं होती है। हालाँकि, वास्तविक संघीय सरकार में राज्य और केंद्र सरकार दोनों सभी मामलों के संबंध में कंस्टीट्यूशन के संशोधन में भाग लेते हैं। इसलिए, वे कंस्टीट्यूशन कठोर हैं और संशोधन करना आसान नहीं है।

4. राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण (सेंट्रल कंट्रोल ओवर स्टेट्स)

इंडियन कंस्टीट्यूशन की एक और नॉन-फ़ेडरल विशेषता यह है कि केंद्र सरकार का राज्य सरकार पर नियंत्रण होता है। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी कानून का पालन राज्य सरकार को करना होता है और राज्य सरकार केंद्र सरकार के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।

5. एकल नागरिकता (सिंगल सिटिजनशिप)

भारत में नागरिकों के पास पूरे देश की केवल एक ही नागरिकता होती है। लेकिन सच्ची फेडरल सरकार में, नागरिकों को दोहरी (ड्यूल) नागरिकता दी जाती है। पहले वे अपने-अपने प्रांतों या राज्यों के नागरिक होते हैं और फिर वे अपने देश के नागरिक होते हैं।

6.संसद समान रूप से राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है (पारलिमेंट डज नॉट रिप्रेजेंट द स्टेट्स इक्वली)

भारत में उच्च सदन (राज्य सभा) और निचले सदन (लोकसभा) का राज्यों में समान प्रतिनिधित्व नहीं है। जिस राज्य की जनसंख्या (पॉपुलेशन) अधिक है, उस राज्य की तुलना में राज्य सभा में अधिक प्रतिनिधि हैं जो कम जनसंख्या वाला है। लेकिन, एक सच्ची यूनियन सरकार में लेजिस्लेचर के ऊपरी सदन का गठन करने वाले राज्यों से समान प्रतिनिधित्व होता है।

7. एकीकृत न्यायपालिका (यूनिफाइड ज्यूडिशियरी)

भारतीय न्यायिक प्रणाली (जुडिशल सिस्टम), एकीकृत (यूनिफाइड ऑर इंटेग्रेटेड) है और भारत के सुप्रीम कोर्ट को देश में न्याय का सर्वोच्च न्यायालय माना जाता है। हाई कोर्ट और अन्य सभी अधीनस्थ न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हैं।

8. आपातकाल की घोषणा (प्रोक्लामेशन ऑफ़ इमर्जेंसी)

भारत के राष्ट्रपति को भारत के कंस्टीट्यूशन द्वारा आपातकालीन शक्तियां दी गई हैं। हालाँकि, वह ऐसी शक्तियों को निष्पादित (एक्जीक्यूट) कर सकते है और तीन शर्तों (कंडीशंस) के तहत देश में आपातकाल की घोषणा कर सकते है। एक बार जब राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा की जाती है तो केंद्र सरकार हावी हो जाती है और राज्य सरकारें इसके पूर्ण नियंत्रण में आ जाती हैं। राज्य सरकारें अपनी स्वतंत्रता खो देती हैं और यह संघीय सरकार के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

भारत को क्वासी फेडरल क्या बनाता है? 

ऐसे कई उदाहरण हैं जो स्पष्ट रूप से दिखाते हैं किइंडियन कंस्टीट्यूशन में फेडरल विशेषताएं हैं लेकिन यह, यह भी दर्शाता है कि यह अर्ध-संघीय विशेषताओं के साथ भी स्पष्ट है। कुछ उदाहरण जो दिखाते हैं कि भारत एक क्वासी-फेडरल है, इस प्रकार हैं-

  • केंद्र और राज्य सरकार के बीच सत्ता का विभाजन लेकिन केंद्र सरकार को राज्य सरकार की तुलना में अधिक शक्ति दी गई है।
  • संसद उन कानूनों को ओवरराइड कर सकती है जो राज्यों द्वारा राष्ट्रीय हित के लिए पारित किए जाते हैं।
  • अवशिष्ट (रेसिड्यूल) शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास होती हैं।
  • प्रमुख कराधान शक्तियां भी केंद्र सरकार के पास निहित हैं।
  • संसद समान रूप से राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है, हालांकि, एक शुद्ध संघीय सरकार में लेजिस्लेचर के ऊपरी सदन का गठन राज्यों से समान प्रतिनिधित्व होता है। लेकिन हमारी राज्यसभा में राज्यों का समान प्रतिनिधित्व नहीं है। जनसंख्या वाले राज्य में राज्यसभा में अधिक प्रतिनिधि होते हैं जो कम आबादी वाले राज्यों में होते हैं।
  • भारत में, नागरिकों को एकल नागरिकता अलॉट की जाती है जो शुद्ध फ़ेडरल सरकार की विशेषता नहीं है। जैसा कि सच्चे फ़ेडरल राष्ट्र में होता है, नागरिकों को दोहरी नागरिकता दी जाती है। पहले वे अपने प्रांतों के नागरिक हैं फिर वे अपने देश के नागरिक हैं।

फेडरलिज्म पर संवैधानिक बहस (कंस्टीट्यूशनल डिबेट ऑन फेडरलिज्म)

डॉ. आंबेडकर ने  कंस्टीट्यूशन के मसौदे (ड्राफ्ट) की कई विशेषताओं को सूचीबद्ध (लिस्टेड) किया, जिसने नवंबर 1949 में कंस्टीट्यूशन सभा में अपने ऐतिहासिक भाषण में संघवाद की कठोरता और वैधता (वैलिड) को कम किया। निम्नलिखित विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • इंडियन कंस्टीट्यूशन का आर्टिकल 246 संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्ति का वितरण करता है। यह लिस्ट 1 में निहित मामलों के संबंध में कानून बनाने के लिए संघ को विशेष शक्ति देता है और  कंस्टीट्यूशन की शेड्यूल 7 की लिस्ट 3 में दिए गए मामलों के संबंध में कानून बनाने की समवर्ती शक्ति देता है।
  • संसद को विशेष रूप से राज्य के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति दी गई है अर्थात्:
  1. इंडियन कंस्टीट्यूशन का आर्टिकल 249 राष्ट्रीय हित में स्टेट लिस्ट में मामले के संबंध में संसद को शक्ति प्रदान करता है।
  2. इंडियन कंस्टीट्यूशन का आर्टिकल 250 राज्य सूची में किसी भी मामले के संबंध में संसद को शक्ति देता है यदि आपातकाल की घोषणा लागू होती है।
  3. इंडियन कंस्टीट्यूशन का आर्टिकल 252 संसद को उन राज्यों की सहमति से दो या दो से अधिक राज्यों में कानून बनाने की शक्ति देता है।
  4. आर्टिकल 352 और  आर्टिकल 353 में आपातकाल की उद्घोषणा (प्रोक्लेमेशन) के प्रावधानों (प्रोविजन) और ऐसी उद्घोषणा के प्रभाव के बारे में बताया गया है।
  5. कंस्टीट्यूशन में ऐसे प्रावधान शामिल हैं जो तब तक लागू होते हैं जब तक कि संसद ने उसी प्रभाव के लिए कोई विपरीत प्रावधान या शब्द नहीं बनाया है।
  6. इंडियन कंस्टीट्यूशन का  आर्टिकल 368 कंस्टीट्यूशन में संशोधन से संबंधित प्रावधानों के बारे में बताता है।

डॉ. आंबेडकर ने स्पष्ट किया कि प्रावधान इंडियन कंस्टीट्यूशन को समय और परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुसार एकात्मक और फ़ेडरल दोनों बनाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सामान्य समय में इसे फ़ेडरल प्रणाली के रूप में काम करने के लिए तैयार किया जाता है। लेकिन युद्ध के समय में इसे इस तरह बनाया जाता है कि मानो यह एक एकात्मक व्यवस्था हो। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया किइंडियन कंस्टीट्यूशन के आर्टिकल 250, 352, 353 का प्रयोग केवल भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जा सकता है और इसके लिए भारतीय संसद के दोनों सदनों के अनुमोदन की आवश्यकता होती है।

महत्वपूर्ण मामले (इंपॉर्टेंट केसेस)

राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ, 1977

राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ, 1977 में पूर्व मुख्य न्यायाधीश बेग ने भारत के  कंस्टीट्यूशन को “उभयचर (एंफिबीअन)” कहा, उन्होंने आगे कहा कि यदि हमारा  कंस्टीट्यूशन एक केंद्र सरकार बनाता है, इस अर्थ में उभयचर है जो स्थिति की आवश्यकता और मामले की परिस्थिति के अनुसार कि यह फ़ेडरल या एकात्मक हो सकता है ।

एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ

इस मामले में अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति को अपनी शक्तियों का प्रयोग संसद के दोनों सदनों द्वारा उसकी घोषणा के बाद ही करना चाहिए। राज्य सरकार को बर्खास्त (डिस्मिस) करने की राष्ट्रपति की शक्ति पूर्ण नहीं है।

हरियाणा बनाम पंजाब राज्य 

हरियाणा राज्य बनाम पंजाब राज्य में भारत के लिए क्वासी-फेडरल शब्द का इस्तेमाल किया गया था और शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य में  कंस्टीट्यूशन को संघीय से अधिक एकात्मक कहा गया था।

पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ

यह मामला भारतीय राज्यों द्वारा सोवरिन शक्तियों के प्रयोग के मुद्दे से संबंधित है। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना किइंडियन कंस्टीट्यूशन पूर्ण संघवाद के सिद्धांत को बढ़ावा नहीं देता है। अदालत आगे 4 विशेषताओं को बताती है, जो इस तथ्य को उजागर करती है कि इंडियन कंस्टीट्यूशन एक पारंपरिक संघीय  कंस्टीट्यूशन नहीं है।

  1. न्यायालय द्वारा पहली विशेषता पर प्रकाश डाला गया है कि भारत का  कंस्टीट्यूशन सर्वोच्च दस्तावेज है जो सभी राज्यों को नियंत्रित करता है और प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग कंस्टीट्यूशन का प्रावधान नहीं है जैसा कि फ़ेडरल राज्य में आवश्यक है।
  2. न्यायालय द्वारा दूसरी विशेषता पर प्रकाश डाला गया है कि राज्यों के पास  कंस्टीट्यूशन को बदलने की कोई शक्ति नहीं है, लेकिन केवल केंद्र सरकार के पास भारत के कंस्टीट्यूशन को बदलने की शक्ति है।
  3. अदालत द्वारा तीसरी विशेषता पर प्रकाश डाला गया है कि इंडियन कंस्टीट्यूशन अदालतों को कंस्टीट्यूशन का उल्लंघन करने वाली किसी भी कार्रवाई (एक्शन) को अमान्य (इनवैलिडेट) करने के लिए सर्वोच्च शक्ति प्रदान करता है।
  4. न्यायालय द्वारा चौथी विशेषता पर प्रकाश डाला गया है कि शक्तियों का वितरण केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय नीतियों (पॉलिसीज) के मामले और राज्य सरकार द्वारा स्थानीय शासन की सुविधा (फैसिलिटेट) प्रदान करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि केंद्र सरकार किसी भी मुद्दे के लिए अंतिम अधिकार है। केंद्र सरकार को दिए गए अधिक भार के साथ केंद्र और राज्य सरकार दोनों के बीच वितरित राजनीतिक शक्ति।

एक और बात जो फ़ेडरलिज्म के शुद्ध रूप के खिलाफ है, वह है भारत में एकल नागरिकता की अवधारणा (कॉन्सेप्ट)।

विद्वान न्यायाधीशों ने यह अंततः निष्कर्ष निकाला कि कंस्टीट्यूशन द्वारा प्रदान की गई भारत की सेंट्रलाइज्ड स्ट्रक्चर है, जिसमें राज्यों का केंद्र के मुकाबले एक माध्यमिक स्थान (सेकंडरी पोजिशन) है।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

भारत सरकार प्रकृति में क्वासी-फेडरल है क्योंकि इसमें एकल नागरिकता, एकल कंस्टीट्यूशन और कंस्टीट्यूशन के लचीलेपन (फ्लेक्सिबिलिटी) की विशेषताएं शामिल हैं जो एक शुद्ध फ़ेडरल सरकार की विशेषताएं नहीं हैं जिसका पालन केवल संयुक्त (यू एस ए) राज्य अमेरिका में किया जाता है। यद्यपि भारत सरकार में फ़ेडरल सरकार की विशेषताएं हैं जैसे कि सत्ता का विभाजन,  कंस्टीट्यूशन की आंशिक (पार्टली) रूप से कठोरता, यह शुद्ध फ़ेडरल सरकार के रूप में नहीं बल्कि क्वासी-फेडरल सरकार के रूप में मानती है।

संदर्भ (रेफरेंसेस)

 

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