भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970 के तहत पेटेंट उल्लंघन के लिए आपराधिक और सिविल उपचारों का अवलोकन

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यह लेख Amith Singh द्वारा लिखा गया है, जो लॉसिखो से “पेटेंट कानून और विश्लेषण (यूएसपीटीओ): सर्च, स्पेसिफिकेशन्स, अभियोजन, मुकदमा और लाइसेंसिंग” में डिप्लोमा कर रहे हैं। इस लेख में हम भारतीय पेटेंट अधिनियम के तहत पेटेंट उल्लंघन के लिए आपराधिक और सिविल उपचारों का विस्तृत अवलोकन करेंगे। इस लेख का अनुवाद Ayushi Shukla के द्वारा किया गया है।

Table of Contents

परिचय

पेटेंट एक विशेषाधिकार है, जो किसी उत्पाद या प्रक्रिया के आविष्कारक को प्रदान किया जाता है, जिससे एक उपयोगी और अनूठा (यूनिक) उत्पाद उत्पन्न होता है, जो पहले कभी अस्तित्व में नहीं था। इसका अर्थ यह है कि पेटेंट एक एकाधिकार (मोनोपली) है, अगर आप किसी व्यक्ति के विचारों (दूसरे आविष्कारक या व्यवसाय संगठन) को पेटेंट धारक के प्रति देखेंगे, तो वे पेटेंट की सराहना कभी नहीं कर पाएंगे, बल्कि केवल इसे सहन करेंगे। इसे एक नकारात्मक अधिकार भी कहा जा सकता है। यह बिल्कुल उसी तरह है जैसे कक्षा का परिवीक्षक (मॉनिटर) अनुशासन की ड्यूटी पर होता है, जिसे सम्मानपूर्वक सहन करना होता है और ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे आपको कक्षा शिक्षक के कमरे या उससे भी बुरी स्थिति में प्राचार्य के कार्यालय जाना पड़े।

सामान्य रूप से उल्लंघन का अर्थ है किसी कानून, समझौते आदि की शर्तों को तोड़ना। पेटेंट उल्लंघन की मजेदार बात यह है कि पेटेंट कानून में उल्लंघन की कोई परिभाषा नहीं दी गई है। बल्कि, यह पेटेंटधारी के अधिकारों का वर्णन करता है और आगे यह कहता है कि यदि कोई व्यक्ति या संगठन पेटेंटधारी के समान अधिकारों का प्रयोग करता है, तो वे निश्चित रूप से पेटेंट उल्लंघन कर रहे हैं और यही कारण है जो कि पेटेंट उल्लंघन को एक कठिन विषय बना देता है।

मैं यह बताना चाहूंगा कि व्यापार चिह्न (ट्रेड मार्क) और कॉपीराइट अधिनियम उल्लंघन को परिभाषित करते हैं, जबकि पेटेंट अधिनियम नहीं करता। इसलिए पेटेंट और व्यापार चिह्न एवं कॉपीराइट के बीच एक न्यायशास्त्रीय अंतर है। यदि आप चाहें तो इस जानकारी को छोड़ सकते हैं, लेकिन यदि यह आपके मन में एक बड़ा चित्र बनाने में मदद करती है, तो मैं सुझाव दूंगा कि आप इसे सुरक्षित रखें, ठीक उसी तरह जैसे आप किसी प्रियजन से मिले फूल को अपनी नोटबुक के पन्नों के बीच संभालकर रखते हैं। अब हम पेटेंटधारी के विभिन्न अधिकारों पर एक नज़र डालते हैं।

पेटेंटधारी के अधिकार  

भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 48 पेटेंटधारी को विशिष्ट अधिकार प्रदान करती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि भारत में पेटेंट के स्वामित्व के साथ कौन-कौन से अधिकार आते हैं। आइए इन अधिकारों का अध्ययन करें:  

आविष्कार करने का अधिकार 

  • यह अधिकार केवल उत्पाद से संबंधित पेटेंट पर लागू होता है। केवल पेटेंटधारी को ही उत्पाद बनाने या उसके उत्पादन का अधिकार होता है।  
  • यह दूसरों को पेटेंट द्वारा संरक्षित आविष्कार को बनाने, उपयोग करने, बेचने या उसकी नकल करने से रोकता है, जब तक कि पेटेंटधारी की अनुमति न हो। 
  • यह अधिकार पेटेंटधारी को अपने नवोन्मेषी (इनोवेटिव) कार्य की सुरक्षा करने और आविष्कार के उत्पादन और वितरण को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।  

आविष्कार का अभ्यास करने का अधिकार 

  • यह अधिकार मुख्य रूप से प्रक्रिया या विधि (मैथड) पेटेंट से संबंधित है। केवल पेटेंटधारी को ही पेटेंट की गई प्रक्रिया या विधि का उपयोग करने का अधिकार है, जितना वह अपने आविष्कार को उपयोग (या शोषण) करना चाहता है। 
  • यह दूसरों को पेटेंटधारी की अनुमति के बिना प्रक्रिया को अपनाने, उपयोग करने या लागू करने से रोकता है। 
  • यह अधिकार पेटेंटधारी के विचारों और विधियों की रक्षा करता है; यह उन्हें उनके आविष्कार के अनुप्रयोग को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।  

आविष्कार का उपयोग करने का अधिकार 

  • यह अधिकार पेटेंटधारी को अपने पेटेंट किए गए आविष्कार का व्यावसायिक उपयोग करने की अनुमति देता है। इसमें आविष्कार का व्यावसायीकरण (कमर्शियलाइज) करने का अधिकार शामिल है।  
  • यह अधिकार पेटेंटधारी को अपने आविष्कार का व्यावसायिक रूप से उपयोग करने, आय उत्पन्न करने और अपनी बुद्धिमत्ता से लाभ प्राप्त करने का अवसर देता है। 
  • पेटेंट यह अधिकार प्रदान करते हुए नवाचार (इनोवेशन) को प्रोत्साहित करते हैं, ताकि आविष्कारक अपने आविष्कार के उपयोग का एकाधिकार कर सकें।  

आविष्कार को बाजार में बेचने का अधिकार

  • इस अधिकार के तहत, पेटेंटधारी को अपने पेटेंट किए गए उत्पाद को बाजार में बेचने का अधिकार होता है। वे बिक्री की शर्तें तय कर सकते हैं। 
  • यह पेटेंटधारी को अपने आविष्कार का शोषण करने और संभावित ग्राहकों से जुड़ने की अनुमति देता है। 
  • यह अधिकार पेटेंटधारी को उनके आविष्कार के आर्थिक लाभों को प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।  

आविष्कार को वितरण करने का अधिकार 

  • यह अधिकार पेटेंटधारी को पेटेंट किए गए उत्पाद के वितरण और प्रचार को नियंत्रित करने का अधिकार देता है। वे यह तय कर सकते हैं कि उत्पाद को कौन, किसे वितरित करेगा। 
  • यह गारंटी देता है कि पेटेंटधारी अपने आविष्कार को बाजार में लाने और अंतिम उपभोक्ताओं तक उपलब्ध कराने के तरीके को नियंत्रित कर सके।  
  • यह अनुमति, जिसे अक्सर “प्रथम बिक्री का अधिकार” कहा जाता है, पेटेंटधारी के लिए अपने आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चैन) को प्रबंधित करने और बाजार में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए आवश्यक होती है।  

मुख्य बिंदु

  • भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 48 के तहत दिए गए अधिकार पेटेंट संरक्षण के अंतर्गत निहित अधिकार हैं। 
  • ये अधिकार पेटेंटधारी को उनके आविष्कार पर एक विशेषाधिकारपूर्ण स्थिति प्रदान करते हैं, जिसके तहत वे यह निर्धारित कर सकते हैं कि उनके आविष्कार को कौन बना सकता है, उपयोग कर सकता है और बेच सकता है। 
  • यह नवाचार को प्रोत्साहित करता है क्योंकि यह आविष्कारकों को नई तकनीकों के विकास में समय, संसाधन और परिश्रम लगाने का अधिकार देता है; यह विशिष्टता (एक्सक्लूसिविटी) उनके प्रयासों का इनाम है।  
  • उल्लंघन — पेटेंट किए गए आविष्कार का अनधिकृत उपयोग, निर्माण, बिक्री या वितरण।  
  • इन पहलुओं की जानकारी होना न केवल पेटेंटधारकों बल्कि उन व्यक्तियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण कौशल है, जो पहले से पेटेंट किए गए सिस्टम का उपयोग करना चाहते हैं ताकि कानून का पालन सुनिश्चित किया जा सके। 
  • भारत में पेटेंट अधिकार और संबंधित मुद्दों पर विशिष्ट सलाह के लिए कानूनी परामर्श लेना अत्यंत आवश्यक है।  

पेटेंटधारी के अधिकारों के आधार पर पेटेंट उल्लंघन के प्रकार  

प्राथमिक/प्रत्यक्ष उल्लंघन  

पेटेंटधारी के पहले और दूसरे अधिकार (a और b) प्राथमिक उल्लंघन की श्रेणी में आते हैं, जहां तीसरा पक्ष (आप) स्वयं उल्लंघन करता है। इस प्रकार के उल्लंघन में केवल एक ही पक्ष शामिल होता है।  

द्वितीयक/अप्रत्यक्ष उल्लंघन

पेटेंटधारी के चौथे और पांचवें अधिकार (d और e) द्वितीयक उल्लंघन की श्रेणी में आते हैं, जहां आप स्वयं उल्लंघन नहीं करते बल्कि दूसरों को आविष्कार का उल्लंघन करने में सहायता करते हैं। अप्रत्यक्ष उल्लंघन में कई पक्ष शामिल होते हैं।  

डि-मिनिमस उल्लंघन

दंड कानून में “डि-मिनिमस नॉन-क्यूरेट लेक्स” नामक एक सिद्धांत है। यह एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है कि कानून तुच्छ मामलों पर ध्यान नहीं देता। इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए एक उदाहरण लें। मान लीजिए कि एक 19 वर्षीय लड़का अपने पड़ोसी की संपत्ति में प्रवेश करके कुछ आम तोड़ लेता है। क्या वह अपराध कर रहा है? निस्संदेह हां, उसने भारतीय दंड संहिता के तहत अतिचार (ट्रेसपास) और चोरी का अपराध किया है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि हर पड़ोसी बच्चा जो आपके घर में घुसकर कुछ आम तोड़े, उसे अतिचार और चोरी के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए?  

नहीं, कानून का इरादा ऐसा नहीं है। कानून कहता है कि तुच्छ उल्लंघनों पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए।  

पेटेंट उल्लंघन के मामले में भी, ऐसे उल्लंघन जो कुछ कारकों के आधार पर तुच्छ माने जा सकते हैं, उन्हें डि-मिनिमस उल्लंघन की श्रेणी में रखा जाएगा और देश या उल्लंघनकर्ता के व्यापक हित में अभियोजन से बचा जा सकता है।  

डि-मिनिमस उल्लंघन से छूट  

भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा 49 में डि-मिनिमस उल्लंघन से छूट को परिभाषित किया गया है।  

यदि किसी विदेशी देश में पंजीकृत कोई जहाज, विमान या भूमि वाहन आकस्मिक रूप से या किसी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए अस्थायी रूप से भारतीय क्षेत्र में आता है, और उस जहाज के कार्य, निर्माण या मरम्मत के लिए पेटेंट किए गए आविष्कार का उपयोग किया जा रहा है, तो इसे पेटेंट उल्लंघन नहीं माना जाएगा।  

उदाहरण: यदि कोई विदेशी जहाज भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करता है और पेटेंट आविष्कार का उपयोग करता है, तो सामान्यतः पेटेंट उल्लंघन का मामला उस स्थान पर दर्ज किया जाना चाहिए जहां जहाज पंजीकृत है या जहाज कंपनी का निगमित (कॉर्पोरेट) कार्यालय स्थित है। परंतु धारा 49 के अनुसार, यदि संबंधित देश समान समाधान प्रदान करता है, तो भारतीय न्यायालय उस मामले में क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं करेंगे।  

यहां तक कि डब्ल्यू.टी.ओ भी यह मानता है कि डि-मिनिमस उल्लंघन बौद्धिक (इंटेलेक्चुअल) संपदा (प्रॉपर्टी) अधिकार (आई पी आर) के उल्लंघन के विरुद्ध एक वैध बचाव है।  

पेटेंट कानून में पूर्वानुमान 

जैसा कि इस लेख की शुरुआत में बताया गया था, पेटेंट उल्लंघन के लिए कोई विशेष नियम नहीं हैं, बल्कि पेटेंटधारी के अधिकारों को गहराई से परिभाषित किया गया है। पेटेंट कानून में कुछ अनुमान हैं जो केवल पेटेंट कानून के लिए विशिष्ट नहीं हैं बल्कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम के साक्ष्य कानून में निहित हैं।  

आइए इन अनुमानों में से एक पर चर्चा करते हैं।  

सबूत का भार: (भारतीय पेटेंट अधिनियम, धारा 104A, अध्याय XVIII

मान लीजिए कि श्री अमित के पास वर्तमान में एक उत्पाद और उस उत्पाद के लिए एक प्रक्रिया पेटेंट है। अब उन्हें पता चलता है कि श्री आशीष नामक एक अन्य व्यक्ति बिना अमित की सहमति के वही उत्पाद बना रहा है। यह जानने के बाद, श्री अमित क्रोधित हो जाते हैं और श्री आशीष के खिलाफ उल्लंघन का अभियोजन शुरू करने का निर्णय लेते हैं। यहां अमित वादी हैं और आशीष प्रतिवादी हैं।  

यहां अमित को केवल अदालत को यह साबित करना है कि अमित के प्रक्रिया पेटेंट के अंतर्गत प्रक्रिया विनिर्देश (स्पेसिफिकेशन) उस उत्पाद को शामिल करता है जिसे आशीष बना रहा है। जैसे ही वह यह साबित कर लेता है, वह भार आशीष पर डाल देता है। अब आशीष पर यह भार है कि वह साबित करे कि जो उत्पाद वह बना रहा है, वह अमित के प्रक्रिया पेटेंट के विनिर्देश में शामिल नहीं है। दूसरे शब्दों में, आशीष को यह साबित करना होगा कि वह उत्पाद किसी ऐसी प्रक्रिया से बना रहा है जो अमित के प्रक्रिया पेटेंट विनिर्देश में शामिल नहीं है। यदि आशीष ऐसा कर सकता है, तो वह भार फिर से अमित पर स्थानांतरित कर देता है।

अब, इस प्रक्रिया में झूठ बोलने की बहुत गुंजाइश नहीं होती, जैसा कि अन्य सिविल कार्यवाही में होती है, क्योंकि यह प्रक्रिया पूरी तरह तकनीकी होती है। दुर्भाग्य से, एक पूरक प्रक्रिया जिसे खोज (डिस्कवरी) और  पूछताछ (इंटरोगेशन) कहा जाता है, भारत में अधिकांशतः लागू नहीं होती। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से जापान, अमेरिका और यूरोपीय अदालतों में देखी जाती है। हम खोज और पूछताछ प्रक्रिया पर आगे विस्तार से चर्चा करेंगे। इसलिए, थोड़ा धैर्य रखें।

ज्यादातर सामान्य कानून देशों में मुकदमेबाजी प्रक्रिया, जिसमें भारत शामिल है 

उल्लंघन को समझने के लिए, हमें उन सामान्य कानून देशों में मुकदमेबाजी प्रक्रिया को समझने की कोशिश करनी होगी, जिसमें भारत, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, अमेरिका और कई यूरोपीय देश शामिल हैं।  

  • मान लीजिए कि अमित वादी हैं; इसलिए वह मामला दर्ज करते हैं। अपने मामले को समर्थन देने के लिए उन्हें कई दस्तावेजों पर निर्भर होना होगा और यह दावा करना होगा कि अन्य पक्ष (आशीष) इन दस्तावेजों में दिए गए तथ्यों से परिचित हैं, जो मुकदमे की वजह बने।  
  • मुकदमे के बाद, दूसरे पक्ष यानी आशीष को सूचित किया जाना चाहिए। अमित के आशीष को सूचित करने और उसे तैयारी के लिए दिया जाने वाला समय 30-45 दिन का होता है, जिसे सूचनापत्र का जारी होना कहा जाता है।  
  • अब, सीपीसी  के अनुसार, प्रतिवादी यानी आशीष को समन या सूचनापत्र मिलने की तिथि से 90 दिनों के भीतर अपना लिखित बयान (रिटेन स्टेटमेंट) दाखिल करना होता है। यदि प्रतिवादी ऐसा करने में असफल रहता है, तो अदालत इसे और 90 दिनों के लिए माफ कर सकती है।  
  • मान लीजिए आशीष ने 90 दिनों के बाद अपना लिखित बयान प्रस्तुत किया।  
  • इसके बाद मामला “मुद्दों” के चरण में चला जाता है, जहां मुद्दों का निर्धारण (फ्रेमिंग ऑफ इश्यूज) किया जाता है।  
  • मुद्दों के निर्धारण के बाद, या इसके साथ ही, खोज और पूछताछ  का चरण आता है। अधिकतर भारतीय वकील इस प्रक्रिया का उपयोग दूसरे पक्ष के साक्ष्यों को उजागर करने के लिए नहीं करते। यह हिस्सा आमतौर पर बॉलीवुड फिल्मों में ज्यादा देखा जाता है।  
  • इसके बाद मामला वादी के साक्ष्य के चरण में जाता है, जहां गवाहों की जांच भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तीन चरणों के तहत की जाती है।  
  • तीन प्रकार की जांचें होती हैं: मुख्य परीक्षा (चीफ़ एग्जामिनेशन) : इसमें प्रश्न पूछे जाते हैं, लेकिन लीडिंग प्रश्न (वह प्रश्न जिनमें उत्तर निहित हो) की अनुमति नहीं होती।  
  • जिरह (क्रॉस एग्जामिनेशन) : इसे वह पक्ष संचालित करती है जिसके खिलाफ गवाह गवाही दे रहा होता है और इसमें लीडिंग प्रश्नों की अनुमति होती है।  
  • पुनः परीक्षा (री एग्जामिनेशन) : यह मुख्यतः जिरह के दौरान उत्पन्न हुई किसी भी अस्पष्टता या भ्रम को दूर करने के लिए की जाती है। इस दौरान गवाह कोई अतिरिक्त तथ्य या दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकता।

पेटेंट उल्लंघन से संबंधित मुकदमे में मूल नियम/सुझाव  

पेटेंट उल्लंघन पर विचार सिविल संहिता द्वारा किया जाता है, न कि पेटेंट कार्यालय द्वारा। पेटेंट कार्यालय कार्यपालिका शक्तियों का पालन करता है लेकिन किसी भी प्रकार की मनमानी नहीं करता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में यह अदालत के अधिकारों का प्रयोग कर सकता है। पेटेंट कार्यालय एक स्वशासित विधान है और विशेष रूप से साक्ष्य अधिनियम या अन्य सिविल संहिता को नहीं अपनाता, लेकिन न्याय को प्राथमिकता देता है।  

पेटेंट उल्लंघन मुकदमे के मूल नियम: 

  • सबसे निचली अदालत जहां मुकदमा दायर किया जा सकता है, वह जिला न्यायालय है। (धारा 104)  
  • प्रत्येक प्रतिवादी, वादी के पेटेंट की अमान्यता का प्रतिवाद (काउंटर क्लेम) प्रस्तुत कर सकता है। इस स्थिति में, मामला उच्च न्यायालय में स्थानांतरित हो जाता है। (धारा 104)  
  • यदि पेटेंट एक वर्ष से कम पुराना है, तो प्रतिवादी आई पी ए बी (भारतीय पेटेंट अपीलीय मंडल) के समक्ष भी मामला दायर कर सकता है।  
  • यदि पेटेंट एक वर्ष से कम पुराना है, तो प्रतिवादी पोस्ट-ग्रांट आपत्ति भी दर्ज कर सकता है। (धारा 25, बिंदु 2, अध्याय V)  
  • यदि पेटेंट एक वर्ष से अधिक पुराना है, तो प्रतिवादी पेटेंट परीक्षक मंडल के समक्ष दावा कर सकता है। (पेटेंट परीक्षक मंडल का गठन चयनित पेटेंट परीक्षकों और भारतीय पेटेंट कार्यालय के नियंत्रक (कंट्रोलर) के साथ होता है।)  
  • कई बार, चुनौतियों को दूर करने के लिए वादी को पेटेंट में संशोधन करना पड़ता है। (भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 57, 58 और 59 का संदर्भ लें)। संशोधन का अधिकार पेटेंट नियंत्रक, आई पी ए बी और उच्च न्यायालय के पास होता है।  
  • यदि नुकसान की राशि अधिक हो, तो पेटेंट उल्लंघन का मामला चार महानगर न्यायालयों में दायर करना बेहतर है, क्योंकि इन अदालतों में फीस तुलनात्मक रूप से कम होती है।  

पेटेंट उल्लंघन मामले में उपचार  

  • नुकसान के लिए दावा : इस विषय को अगले भाग में “मामले का अध्ययन” के माध्यम से विस्तार से देखा जाएगा।  
  • लाभ के खातों के लिए मुकदमा :  इस प्रक्रिया में आमतौर पर सनदी लेखाकार (चार्टर्ड अकाउंटेंट) या वकील की नियुक्ति की जाती है। वे प्रतिवादी (उल्लंघन करने वाली कंपनी) के रिकॉर्ड की जांच करते हैं। इसमें उनके बिक्री कारोबार (सेल्स टर्नओवर) का मूल्यांकन किया जाता है और यह देखा जाता है कि पेटेंट के उल्लंघन से प्रतिवादी ने कितने लाभ अर्जित किए हैं। यह प्रतिशत 2-25% के बीच हो सकता है। यहां लाभ की मात्रा और स्तर का आकलन किया जाता है।  
  • प्रतिवादी/उल्लंघनकर्ता से सुरक्षा राशि (सिक्युरिटी) की मांग : प्रतिवादी से दावा मूल्य और लागत के बराबर सुरक्षा राशि जमा करने की मांग की जाती है।  
  • मुकदमे के अंत में निषेधाज्ञा (इनजंक्शन) : विचारण (ट्रायल) के अंत में स्थायी निषेधाज्ञा दी जाती है ताकि उल्लंघनकर्ता को भविष्य में पेटेंट का उपयोग करने से रोका जा सके। 
  • अंतरिम निषेधाज्ञा : सामान्यत: अंतरिम निषेधाज्ञा उपलब्ध नहीं होती है क्योंकि पेटेंट उल्लंघन से उत्पन्न नुकसान को वित्तीय मुआवजे के रूप में पर्याप्त रूप से पूरा किया जा सकता है।  

आइए पेटेंट उल्लंघन के उपायों को बेहतर तरीके से मामले के अध्ययनों के साथ समझें। इससे पहले, यह जान लेते हैं कि उल्लंघन का निर्धारण कैसे किया जाए।
पेटेंट द्वारा प्रदान किए गए एकाधिकार के दायरे को केवल दावों से देखा जाएगा। इसलिए, दावे पेटेंट का मुख्य और आधारभूत हिस्सा होते हैं। इस प्रकार, पेटेंट उल्लंघन का निर्धारण दावों को पढ़कर किया जाएगा।

पेटेंट उल्लंघन से बचने के तरीके 

पूर्व कला खोज करें: 

  • किसी भी नए उत्पाद या प्रक्रिया को विकसित या लॉन्च करने से पहले मौजूदा पेटेंट और प्रकाशनों की खोज करें। 
  • यू एस पी टी ओ (संयुक्त राज्य पेटेंट और व्यापार चिह्न कार्यालय) जैसे पेटेंट डेटाबेस में अपने विशेषज्ञता के क्षेत्र से जुड़े मौजूदा पेटेंट खोजें। 
  • एक पेशेवर पेटेंट खोजकर्ता या वकील को इस प्रक्रिया में मदद के लिए नियुक्त करना फायदेमंद हो सकता है।  

फ्रीडम टू ऑपरेट (एफ टी ओ) राय प्राप्त करें:

  • एफ टी ओ राय एक जटिल कानूनी विश्लेषण है जो पेटेंट उल्लंघन के जोखिम का मूल्यांकन करता है।  
  • एक पेशेवर पेटेंट वकील आपके उत्पाद या प्रक्रिया और संबंधित पेटेंट का निरीक्षण करके उल्लंघन के जोखिम का निर्धारण कर सकता है। 
  • एफ टी ओ राय आपको उत्पाद विकास या बाजार में प्रवेश के संबंध में सूचित निर्णय लेने में मदद करती है।  

मौजूदा पेटेंट के चारों ओर डिज़ाइन करें:  

  • यदि आपकी खोज में उल्लंघन की संभावना का पता चलता है, तो आप अपने उत्पाद या प्रक्रिया को बदलने पर विचार कर सकते हैं। 
  • इसके लिए डिज़ाइन में बदलाव, वैकल्पिक सामग्री या घटकों का उपयोग, या अलग-अलग प्रक्रियाओं का विकास आवश्यक हो सकता है। 
  • यह सुनिश्चित करने के लिए पेटेंट वकील के साथ काम करें कि आपके समाधान वैध हैं और अन्य पेटेंट का उल्लंघन नहीं करते।  

अपने स्वयं के पेटेंट प्राप्त करें: 

  • यदि आपके आविष्कार पेटेंट हैं, तो यह उल्लंघन के खिलाफ एक मजबूत बचाव प्रदान करता है। 
  • पेटेंट लाइसेंसिंग या क्रॉस-लाइसेंसिंग समझौतों में बातचीत के लिए उपयोगी हो सकते हैं। 
  • एक पेटेंट वकील को नियुक्त करें ताकि आपकी व्यावसायिक लक्ष्यों के अनुसार पेटेंट रणनीति विकसित और लागू हो सके।  

पेटेंट वॉच सिस्टम अपनाएं:  

  • अपने उद्योग में जारी नए पेटेंट पर नियमित निगरानी रखें ताकि आप उल्लंघन से बच सकें।  
  • पेटेंट निगरानी सेवाओं या सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके प्रासंगिक पेटेंट गतिविधियों पर नज़र रखें।  
  • यदि आप संभावित उल्लंघन वाले पेटेंट को देखते हैं, तो जोखिम का मूल्यांकन करने और प्रतिक्रिया रणनीति तय करने के लिए पेटेंट वकील से परामर्श करें।  

कर्मचारियों को पेटेंट कानून के बारे में शिक्षित करें: 

  • अनुसंधान और विकास, उत्पाद डिज़ाइन, और विपणन में काम करने वाले कर्मचारियों और टीम के सदस्यों को पेटेंट कानून और पेटेंट उल्लंघन के खतरों के बारे में शिक्षित करें। 
  • कर्मचारियों को किसी भी संभावित उल्लंघन की चिंता प्रबंधन या कानूनी सलाहकार को रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित करें।  

सटीक रिकॉर्ड बनाए रखें:  

  • अपने उत्पाद विकास प्रक्रिया के रिकॉर्ड बनाए रखें — डिज़ाइन दस्तावेज़, प्रोटोटाइप, परीक्षण परिणाम। 
  • ऐसे रिकॉर्ड किसी भी उल्लंघन दावों के खिलाफ अपना बचाव करने के लिए उपयोगी प्रमाण के रूप में काम कर सकते हैं।  

अतिरिक्त विचार

  • अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट सुरक्षा: यदि आप अपने उत्पादों या सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचना चाहते हैं, तो इन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेटेंट करवाने पर विचार करें।
  • पेटेंट मुकदमा: यदि किसी पर पेटेंट उल्लंघन का आरोप है, तो विकल्पों का मूल्यांकन करने और बचाव योजना तैयार करने के लिए जल्द से जल्द कानूनी सलाह प्राप्त करें।
  • विकल्पी विवाद समाधान: पेटेंट विवादों को अदालत के बाहर हल करने के लिए मध्यस्थता या आर्बिट्रेशन जैसी विकल्पी विवाद समाधान विधियों पर विचार करें।

मामला अध्ययन  

मामला अध्ययन 1 (टेलोफोनअक्टिबोलागेट एलएम एरिक्सन… बनाम प्रतिस्पर्धा आयोग भारत और…)  

वादी को एरिक्सन के नाम से भी जाना जाता है और प्रतिवादी यहाँ माइक्रोमैक्स है। ये दोनों नाम जब अब कहे जाते हैं तो आपके दिमाग में मोबाइल फोन/स्मार्टफोन के उत्पाद से जुड़ी कंपनियों की याद आनी चाहिए। यह मामला जीएसएम, एडीज और 3जी तकनीकी से संबंधित कई मानक आवश्यक पेटेंट्स (एस ई पी) के लिए दावे के कारण दायर किया गया था।  

अदालत का निर्णय एरिक्सन के पक्ष में था और माइक्रोमैक्स को पेटेंट उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। माइक्रोमैक्स को एरिक्सन को रॉयल्टी के रूप में एक बड़ी राशि चुकानी पड़ी। अदालत के निर्णय ने पेटेंट प्रौद्योगिकी को लाइसेंस देने के मामले में एफ.आर.ए.एन.डी (न्यायसंगत, उचित, और बिना भेदभाव के) शर्तों को प्रतिबिंबित किया।  

मामला अध्ययन 2 (स्मिथक्लाइन बीचम बनाम फुजिमोटो फार्मास्युटिकल्स कंपनी, टोक्यो जिला न्यायालय 1998)  

पहली बात यह है कि यह मामला अध्ययन भारत का नहीं है, बल्कि जापान के पेटेंट उल्लंघन के मामले का एक उदाहरण है और मैं आपको बता दूं कि इस मामले ने जापान के पेटेंट उल्लंघन मामलों के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा पुरस्कार प्राप्त किया।  

स्मिथक्लाइन बीचम के पास एक उत्पाद जिसका नाम सिमेटिडाइन (एक दवा) था, पर प्रक्रिया पेटेंट था, जो 5 सितंबर 1993 तक वैध था।  

फुजिमोटो ने दिसंबर 1986 में स्लोवेनिया से उल्लंघन करने वाला उत्पाद आयात किया, 68,000 गोलियां बेचीं और सिमेटिडाइन सायलोक का जनरिक संस्करण निर्मित किया।  

स्मिथक्लाइन ने दावा किया कि फुजिमोटो ने उनके पेटेंट का उल्लंघन दिसंबर 1986 से लेकर सितंबर 1993 तक किया।  

न्यायाधीश ने अंततः स्मिथक्लाइन बीचम के पक्ष में निर्णय लिया, उन्हें 4.2 मिलियन डॉलर रॉयल्टी के रूप में और 21 मिलियन डॉलर खोए हुए लाभ के रूप में दिए, मानते हुए कि लाभ दर 15% थी।  

यह आज तक जापान में पेटेंट उल्लंघन के मुकदमे में दिया गया सबसे बड़ा मौद्रिक पुरस्कार है। मेरा अनुमान है कि तब से यह हर अन्य कंपनी और व्यवसायी के दिल में डर उत्पन्न कर चुका होगा।

निष्कर्ष  

निष्कर्ष में, पेटेंट उल्लंघन केवल भारत में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक वास्तविक समस्या है और हमें इन उल्लंघनकर्ताओं को भी श्रेय देना चाहिए क्योंकि वे कोई चाकू चलाने वाले जंगली नहीं हैं; वे काफी बुद्धिमान हैं, वास्तव में, किसी दूसरे व्यक्ति के आविष्कार को सभी विवरणों के साथ अपना श्रेय पाने के लिए वे अच्छी तरह से रणनीति बनाते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जब पेटेंट दाखिल किया जाए, तो पहले से ही उल्लंघनकर्ताओं के तैयार होने के लिए योजना बनानी चाहिए ताकि वे लाभ का एक हिस्सा छीन सकें और पेटेंट तैयार करते समय उल्लंघनकर्ताओं को ध्यान में रखते हुए उपायों को लागू किया जाए, साथ ही पेटेंट को और अधिक संपूर्ण और उल्लंघन-मुक्त बनाने की कोशिश की जाए। यदि ऐसा होता भी है, तो भारत में हमारे पास अदालतें, पेटेंट नियंत्रक, और आईपीएबी हैं, जिनके पास पेटेंट उल्लंघन के किसी भी परिदृश्य के लिए कई उपाय मौजूद हैं। गलती से भी यह मत समझिए कि मैं उल्लंघनकर्ताओं की प्रशंसा कर रहा हूं, बल्कि मैं उनकी चतुराई का संकेत दे रहा हूं, इस तरह से आविष्कारकों और पेटेंट विनिर्देशन तैयार करने वालों को यह प्रेरित करने का प्रयास कर रहा हूं कि वे पेटेंट दाखिल करते समय उल्लंघनकर्ताओं को भी ध्यान में रखें। समय के साथ, पेटेंट उल्लंघन के लिए उपाय बढ़े हैं और भारत, जो पेटेंट स्वीकृति के मामले में दुनिया के सबसे कड़े देशों में से एक है, उल्लंघन के ऐसे मामलों में उपायों के साथ खड़ा है।  

संदर्भ

 

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