इस लेख में यह बताया गया है कि अगर पति या पत्नी एडल्टरी करे तो उनके खिलाफ क्या कानूनी कार्रवाई कर सकते है। इस लेख का अनुवाद Sakshi Gupta द्वारा किया गया है।
Table of Contents
परिचय (इंट्रोडक्शन)
एडल्टरी न केवल भारत में एक अपराध है बल्कि भारत के सभी व्यक्तिगत कानून में तलाक के लिए एक वैध आधार भी है। जब किसी का जीवनसाथी एडल्टरी करे तो क्या करें? भारत में एडल्टरी के संबंध में कौन से कानून हैं? भारत में एडल्टरी साबित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और कानूनी प्रक्रिया क्या है? सबूत कैसे एकत्र करें, एडल्टरी साबित करने के लिए भारत में कानून की अदालत के तहत सबूत के रूप में क्या स्वीकृत है? क्या कोई अपने पति या पत्नी के एडल्टरस कार्य को साबित करने के लिए एक निजी जासूस को नियुक्त कर सकता है? यदि हां, तो इस पर कानून कैसे कार्य करता है? भारत के व्यक्तिगत कानूनों में एडल्टरी क्या है और एडल्टरी के आधार पर तलाक लेने के लिए आवश्यक कदमों के बारे में विस्तृत (डिटेल्ड) जानकारी है।
भारत में एडल्टरी को नियंत्रित करने वाला कानून
एडल्टरी को एक विवाहित व्यक्ति द्वारा किसी अन्य विवाहित या अविवाहित व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक यौन कार्य (सेक्सुअल एक्शन) के रूप में समझा जाता है। लगभग हर धर्म इसकी निंदा करते है और इसे पाप मानते है। इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) एडल्टरी को एक विवाहित या अविवाहित पुरुष, और एक विवाहित महिला के बीच अपने पति की सहमति या मिलीभगत के बिना संभोग (सेक्सुअल इंटरकोर्स) के रूप में मानता है। आईपीसी के तहत केवल एक व्यक्ति पर एडल्टरी के अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। एक एडल्टरेस “पत्नी” आपराधिक जिम्मेदारी से मुक्त है। एक महिला को अपराध को “उकसाने (अबेट)” के लिए दंडित भी नहीं किया जा सकता है। एडल्टरी कानून के तहत एक पत्नी को एडल्टरी का एक असहाय शिकार माना जाता है।
एक आदमी पर एडल्टरी के अपराध के लिए मुकदमा तभी चलाया जा सकता है जब पीड़ित पति अदालत में शिकायत करता है। आपराधिक कानून को विनियमित (रेगुलेट) करने वाली प्रक्रिया कहती है कि अदालत एडल्टरी से संबंधित मामले को तब तक नहीं ले सकती जब तक कि “पीड़ित” पति शिकायत नहीं करता है।
मान लीजिए कि A और B विवाहित जोड़े हैं और A की पत्नी उसकी जानकारी के बिना C के साथ यौन संबंध रखती है। B पर एडल्टरी के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है बशर्ते (प्रोवाइडेड) B के पति A द्वारा औपचारिक (फॉर्मल) शिकायत दर्ज कराई गई हो। यहां बताया गया है कि कानून C के साथ कैसा व्यवहार करेगा।
- C एक धोखेबाज है और विवाहित महिला, B, केवल उसकी असहाय और निष्क्रिय (पैसिव) शिकार है।
- C किसी अन्य पुरुष A की वैवाहिक संपत्ति मतलब उसकी पत्नी B पर, उसकी सहमति से लेकिन पति की सहमति के बिना यौन संबंध स्थापित करके अतिचार (ट्रेसपास) करता है।
- A, एडल्टरेस पत्नी B का पति, एक पीड़ित पक्ष है और वह (कुछ मामलों में एक व्यक्ति जो एडल्टरी करते समय विवाहित महिला की देखभाल करता था), औपचारिक शिकायत करने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) है।
- मान लें कि C एडल्टरी करने के समय D के साथ विवाहित था। उस व्यक्ति की पत्नी, जिसने किसी अन्य विवाहित या अविवाहित महिला के साथ सहमति से यौन संबंध बनाए, एक पीड़ित पक्ष नहीं मानी जाती है और अपने पति या एडल्टरेस महिला के खिलाफ़ औपचारिक शिकायत करने के लिए पात्र नहीं है।
- एक विवाहित पुरुष, दण्ड से मुक्ति के साथ, एक अविवाहित महिला, एक विधवा, या एक तलाकशुदा (क्योंकि यह एडल्टरी के रूप में शामिल नहीं है) के साथ यौन संबंध स्थापित कर सकता है, भले ही इस तरह के यौन संबंध उसके और पत्नी के बीच के विवाह को बर्बाद करने के लिए और तलाक के लिए एक योग्य आधार हों।
महिलाएं और एडल्टरी से संबंधित अपराध? क्या इंडियन पीनल कोड के तहत महिलाओं के लिए एडल्टरी एक अपराध है? एडल्टरी कानून के तहत किसे शामिल नहीं किया गया है?
नहीं, एडल्टरेस “पत्नी” आपराधिक जिम्मेदारी से मुक्त है। एक विवाहित या अविवाहित पुरुष और एक अविवाहित महिला या तलाकशुदा या विधवा के बीच सहमति से यौन कार्य, एडल्टरी के दायरे में नहीं आता है। इसमें पुरुष को भी शामिल किया गया है, न कि किसी अन्य पुरुष की एडल्टरेस पत्नी को जो अपने पति से बेवफा रही है, यौन संपर्क के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है। यह तलाक के लिए एक ठोस आधार है जैसा कि लेख के बाद के भाग में बताया गया है।
व्यक्तिगत कानून और एडल्टरी
क्या भारत के व्यक्तिगत कानून में एडल्टरी तलाक का आधार है?
हिंदू विवाह अधिनियम (हिंदू मैरिज एक्ट), 1955 के तहत एडल्टरी तलाक का आधार है
हिंदू कानून के तहत एडल्टरी को तलाक के आधार के रूप में समझने के लिए, हमारे लिए इस सामान्य परिभाषा के अनुसार एडल्टरी को समझना महत्वपूर्ण है। एडल्टरी का मतलब एक विवाहित व्यक्ति और एक ऐसे व्यक्ति के बीच स्वैच्छिक संभोग जो उनका जीवनसाथी नहीं है। एक हिंदू पुरुष, साथ ही महिलाएं, इस आधार पर तलाक की मांग कर सकती हैं कि उसकी पत्नी या उसका पति, जैसा भी मामला हो, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधान के अनुसार एडल्टरस है।
हिंदू विवाह अधिनियम में एक प्रावधान (प्रोविजन) है जो कहता है, पति या पत्नी द्वारा एक शिकायत अदालत के समक्ष पेश की जा सकती है, जिसमें आरोप लगाया जा सकता है कि दूसरे पक्ष ने, शादी के बाद, अपने जीवनसाथी के अलावा किसी और व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक यौन संबंध बनाए हैं। इसलिए, अपने पति या पत्नी (एडल्टरी) के अलावा किसी और के साथ स्वेच्छा से संभोग करना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के लिए एक वैध आधार है। अपने पति या पत्नी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के साथ साथी द्वारा स्वैच्छिक संभोग का एक भी कार्य हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत तलाक की डिक्री का आधार है। विवाह के दौरान बच्चे का जन्म वैधता का निर्णायक (कंक्लूजिव) प्रमाण है जब तक कि यह नहीं दिखाया जा सकता कि विवाह के पक्षों की एक-दूसरे तक पहुंच नहीं थी, जब वे एक साथ हो सकते थे। यह तर्क कि पत्नी जून 1973 से उससे अलग रह रही है और उसने 1 मई 1974 को एक बच्चे को जन्म दिया और इसलिए यह माना जाना चाहिए कि पत्नी ने किसी तीसरे व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक संभोग किया और यह तलाक के लिए एक वैध आधार साबित हुआ।
मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत एडल्टरी तलाक के लिए एक वैध आधार है
जब एक मुस्लिम महिला पर एडल्टरी का आरोप लगाया जाता है
लियान (एडल्टरी का आरोप लगने पर विवाहित महिला द्वारा विवाह को खत्म करने का एक तरीका)
यह पति द्वारा पत्नी पर एडल्टरी का आरोप है जो उसे विवाह को खत्म करने के लिए मुकदमा दायर करने और आरोप को झूठा साबित करने पर तलाक लेने का अधिकार देता है। मुस्लिम कानून के अनुसार, जब तक न्यायाधीश द्वारा कोई निर्णय पास नहीं किया जाता है, तब तक विवाह कायम रहता है और यदि डिक्री पास होने से पहले कोई मर जाता है तो विरासत के पारस्परिक (म्यूचुअल) अधिकार हैं। इस तरह के विवाह को लियान के सिद्धांत के तहत खत्म करने के लिए, अदालत को न्यायिक रूप से यह निर्धारित करना होगा कि क्या एडल्टरी का आरोप अन्यायपूर्ण था या नहीं और क्या पति आरोपों से मुकर गया है या नहीं। सबूत का मुहम्मडन कानून अब लागू नहीं है और सामान्य सिविल अदालतों ने काज़ियों की जगह ले ली है, ये अदालत ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें सबूत के सामान्य नियमों के अनुसार संतुष्ट होने पर विवाह के खत्म होने के लिए एक डिक्री बनानी चाहिए कि पति द्वारा एक झूठा आरोप लगाया गया था, मुहम्मडन कानून के अनुसार लियान की औपचारिकताओं का पालन करना अनावश्यक है। जहां एक मुस्लिम पति ने अपनी पत्नी पर एडल्टरी का झूठा आरोप लगाया और पत्नी द्वारा विवाह के खत्म करने के लिए एक मुकदमा लाने पर उसने आरोप को झूठा स्वीकार कर दिया तो यह मानने के लिए पर्याप्त है कि पति ने अपने आरोपों को वापस ले लिया है।
जब एक मुस्लिम व्यक्ति पर एडल्टरी का आरोप लगाया जाता है
इस्लाम में ज़िना (अवैध यौन संबंध) हराम है और एक बड़ा पाप है। मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम (डिसोल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट), 1939 के अनुसार मुस्लिम कानून के तहत विवाहित महिला इस आधार पर अपने विवाह को खत्म करने के लिए एक डिक्री प्राप्त करने की हकदार है कि उसका पति बुरी प्रतिष्ठा (रेप्यूट) वाली महिलाओं के साथ संबंध रखता है या एक बदनाम जीवन जीता है। अधिनियम में तलाक के आधार के रूप में एडल्टरी का कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन ऊपर दी हुई धारा की व्याख्याएं (इंटरप्रिटेशन) बताती हैं कि यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति एडल्टरी में लिप्त है तो यह तलाक के लिए वैध आधार होगा।
विशेष विवाह अधिनियम (स्पेशल मैरिज एक्ट) में एडल्टरी के आधार पर तलाक के लिए प्रावधान
जब एडल्टरी की बात आती है, तो विशेष विवाह अधिनियम, 1954 हिंदू विवाह अधिनियम के समान है। यह अधिनियम पति और पत्नी दोनों को इस आधार पर तलाक का अधिकार देता है कि विवाह में दूसरा साथी विवाह से बाहर किसी के साथ स्वैच्छिक यौन संबंध रखता है। तलाक या न्यायिक अलगाव (सेपरेशन) या वैवाहिक अधिकारों की बहाली (रेस्टिट्यूशन) के लिए किसी भी कार्यवाही में, प्रतिवादी (डिफेंडेंट) न केवल याचिकाकर्ता के एडल्टरी के आधार पर मांगी गई राहत का विरोध कर सकता है, बल्कि किसी भी राहत के लिए प्रतिवाद भी कर सकता है और यदि याचिकाकर्ता की एडल्टरी साबित हो जाती है, तो अदालत प्रतिवादी को कोई भी राहत दे सकती है जिसका वह हकदार होता है।
भारत में एडल्टरी साबित करने के लिए वैध सबूत क्या हैं?
वैधानिक (स्टेच्यूटरी) नहीं है लेकिन फिर भी इन अनुमानित (प्रिजंप्टिव) आधारों को अदालत द्वारा एडल्टरी साबित करने के लिए स्वीकार किया जाता है।
- गतिविधिक (सर्कमस्टेंशियल) सबूत,
- कॉन्ट्रैक्टिंग यौन रोग (वेनरेबल डिसीज),
- बदनाम घरों में जाने का सबूत,
- पिछली कार्यवाही में की गई स्वीकारोक्ति (एडमिशन),
- पक्षों के बयान और स्वीकारोक्ति। केवल संदेह ही पर्याप्त नहीं है।
अगर जीवनसाथी एडल्टरी कर रहा है तो क्या करें?
किसी भी कदम से पहले यह जानना जरूरी है कि कौन से ऐसे मामले हैं जिन्हें एडल्टरी के कानून के तहत कवर किया जा सकता है और क्या नहीं।
चरण (स्टेप) 1: सुनिश्चित करें कि कार्य एडल्टरी है। एडल्टरी कार्य के उदाहरण निम्नलिखित हैं
- जीवनसाथी के बीच वैवाहिक संघ (कंसोर्टियम) की समाप्ति के बाद 12 महीने की अवधि के बाद पैदा हुआ बच्चा।
- पत्नी या पति द्वारा एडल्टरी की स्वीकृति।
- गवाहों की गवाही इस मामले में नहीं है कि उन्होंने पुरुष या महिला को एडल्टरी और अन्य स्थितियों में देखा था।
एडल्टरी क्या नहीं है
- संभोग महत्वपूर्ण है।
- जिन स्थितियों में पत्नी का स्तन किसी अन्य व्यक्ति के हाथ में था, वे एडल्टरी साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
- केवल तथ्य कि कुछ पुरुष एक विवाहित महिला को पत्र लिखते हैं, यह जरूरी नहीं है कि लेखक और पत्र प्राप्त करने वाले और अन्य स्थितियों के बीच एक अवैध संबंध था।
चरण 2: सबूत के लिए निजी जासूस की नियुक्ति करना।
व्हाट्सएप, फेसबुक, यहां तक कि गूगल टॉक पर संदेश अब आसान सबूत हैं जिनकी अदालत में अनुमति है। अपने साथी के एडल्टरी के अपराध के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने के लिए एक निजी जासूस को नियुक्त किया जा सकता है। अब एक निजी जासूस को नियुक्त करने, फोटोग्राफ, वीडियो और अन्य सबूत एकत्र करने का एक नवीनतम चलन है। निजी जासूस आईएनआर 10000 से आईएनआर 50000 के बीच का शुल्क ले सकते है।
चरण 3: सबूत इकट्ठा करने के बाद, किसी को यह सुनिश्चित करने के लिए वकील से संपर्क करना चाहिए कि सबूत एडल्टरी के बराबर है।
चरण 4: अदालत का रुख करना
ऐसे मामलों में जहां एक महिला चाहती है कि उसके पति को दंडित किया जाए, वह आईपीसी की धारा 497 के तहत, जिसे सीआरपीसी की धारा 198 के साथ पढ़ा जाता है जिसमें महिला मामला दर्ज कर सकती है जैसा कि ब्लॉग के दूसरे पैराग्राफ में उल्लेख (मेंशन) किया गया है। तलाक के मामले में जहां विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार या विशेष विवाह अधिनियम के माध्यम से किया जाता है, पति और पत्नी दोनों पारिवारिक अदालत में जा सकते हैं और तलाक के लिए याचिका (पिटीशन) दायर कर सकते हैं।
चरण 5: अपने जीवनसाथी के साथ इस बारे में बात करें। आपसी सहमति से तलाक के लिए जाएं।
वकीलों द्वारा हमेशा सलाह दी जाती है कि पहला कदम पत्नी से मामले के बारे में बात करना और आपसी सहमति से तलाक मांगना है। यदि सहमत हो, तो मामले में अधिक समय नहीं लगेगा और भरण-पोषण (मेंटेनेंस) की राशि भी अलग-अलग होगी। यदि पत्नी आपसी तलाक के लिए तैयार है तो यह प्रक्रिया है:
- चरण 1 दोनों पक्षों को एक साथ जिला अदालत में तलाक की याचिका दायर करनी होगी।
- चरण 2 याचिका दायर करने से पहले, विवाहित जोड़े को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए अलग रह रहे हैं। याचिका की अनुमति के बाद, पक्षों को बयान दाखिल करने की आवश्यकता होती है। यदि कोई पक्ष उपलब्ध नहीं है, तो ऐसे पक्ष का कोई भी परिवार का सदस्य उसकी ओर से बयान दर्ज कर सकता है। एक बार यह हो जाने के बाद, ‘प्रथम गति (फर्स्ट मोशन)’ स्थापित हो जाती है।
- चरण 3 आपसी सहमति से तलाक लेने वाले जोड़े को कारण बताना होगा कि वे एक साथ क्यों नहीं रह पा रहे हैं और याचिका में यह उल्लेख करना होगा कि वे एक साथ नहीं रह पाए हैं और वे परस्पर सहमत हैं कि विवाह को खत्म कर दिया जाना चाहिए।
- चरण 4 कोर्ट 6 महीने की अवधि के बाद और 18 महीने से अधिक नहीं (कूलिंग-ऑफ़ अवधि) पक्षों को सुनने के लिए एक तारीख देगा। यदि मामला वापस ले लिया जाता है या पक्ष दी गई तारीख पर अदालत में नहीं जाते हैं, तो याचिका रद्द हो जाती है। पक्षों को सुनने के बाद और संतुष्ट होने पर अदालत विवाह को खत्म करने की घोषणा करते हुए तलाक की डिक्री पास कर सकती है।
आवश्यक कागज़: आयकर (इनकम टैक्स) रिटर्न (3 वर्ष), वर्तमान आय का विवरण (डिटेल), जन्म और परिवार का विवरण और संपत्ति का विवरण।
चरण 6: विवाद के माध्यम से तलाक
चूंकि पति या पत्नी द्वारा मांगा गया तलाक (ज्यादातर मामलों में) आपसी नहीं होता है, इसलिए मामले को विवाद के माध्यम से लिया जाता है। विवाद के माध्यम से तलाक की एक लंबी प्रक्रिया है। इसमें शामिल कदम हैं:
- चरण 1 तलाक याचिका परिवार अदालत में दायर की जानी चाहिए।
- चरण 2 अदालत याचिका की एक प्रति (कॉपी) पति या पत्नी को भेजेगा।
- चरण 3 चूंकि तलाक का तरीका विवादित है, इसलिए व्यक्ति को समय और मानसिक आघात (ट्रॉमा) और लंबी अदालती प्रक्रिया के लिए तैयार रहना चाहिए।
- चरण 4 अगर तलाक मंजूर हो जाता है, तो कोर्ट पुनर्विचार (रिकंसीडर) के लिए 6 महीने का समय देगा और भरण-पोषण भी तय किया जाएगा।
जब एडल्टरी के आधार पर तलाक होता है तो भरण-पोषण प्रदान किया जाता है
एक हिंदू पत्नी अपने पति से भरण-पोषण के दावे को ज़ब्त किए बिना अलग रहने की हकदार होगी- यदि वह एक रखैल को उसी घर में रखता है जिसमें उसकी पत्नी रहती है या एक रखैल के साथ कहीं और रहता है। जिस पत्नी पर एडल्टरी में लिप्त होने का आरोप लगाया गया है, उसे भरण पोषण का आनंद लेने के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है। कोई भी पत्नी इस धारा के तहत अपने पति से भत्ता (एलाउंस) पाने की हकदार नहीं होगी यदि वह एडल्टरी में रह रही है, या बिना किसी पर्याप्त कारण के वह अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है या यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं।
संदर्भ (रेफरेंसेस)
- Section 497
- Section 198 CrPC
- Adultery in the Indian Penal Code: Need for a Gender Equality Perspective, K.I Vibhute, (2001) 6 SCC J-16
- Yusuf Abdul Aziz v. State, AIR 1951 Bom 470
- Section 13(1)(i)
- 1981 SCC OnLine Del 364
- 125 CrPC